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Thursday, 21 November, 2024
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सेल्फी और रील्स के लिए नया डेस्टिनेशन है किशनगढ़ मार्बल डंपिंग यार्ड, लेकिन हेल्थ के लिए गंभीर खतरा

नकली बर्फीले पहाड़ों और झील की खूबसूरती इसे लद्दाख और ग्रीस का सस्ता वर्जन बनाती है. लेकिन मार्बल की धूल त्वचा, आंख और फेफड़ों की समस्याओं के लिए जिम्मेदार है.

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किशनगढ़: 82 एकड़ में फैले किशनगढ़ डंपिंग यार्ड में गारा मार्बल कचरा डंप करने के लिए हर 10 मिनट में एक ट्रक आता है. कुछ ही दूरी पर एक जेसीबी इन मार्बल के कचरे के पहाड़ों में खुदाई कर रही थी. तेज़ रफ़्तार ट्रक और तेज़ हवाएं काफी धूल उड़ा रही थीं, और वहां लगभग हर किसी का दम घुट रहा था.

लेकिन यह उन तीन हजार लोगों की भीड़ के लिए बहुत कम मायने रखता था, जो इस साइट पर एक परफेक्ट सेल्फी लेने के लिए पूरे उत्तर भारत से आए थे. उस रविवार की सुबह कुछ लोग शाहरुख खान की तरह पोज दे रहे थे तो कुछ महिलाएं स्टाइलिश गॉगल्स लगाए सेल्फी ले रही थी और बच्चे आंखें मलते हुए इधर-उधर खेल रहे थे.

A family who came to visit the marble waste, taking a couple selfies while the son played around Jyoti Yadav | ThePrint
संगमरमर के कचरे को देखने आए दो परिवार | फोटो: ज्योति यादव, दिप्रिंट

जयपुर के एक बैंकर जय वर्मा, जो पिछले दो वर्षों से बर्फ से ढके इस पेड़ के पास अपनी तस्वीर क्लिक करवाना चाहते थे, ने कहा, ‘मैंने इसे कुछ रील्स में देखा और मैंने अपने दोस्तों से इसकी पुष्टि की, जिन्होंने बताया कि यह टाइम वॉच की तरह है. कोई भी व्यक्ति यहां बर्फ के खिंचाव को महसूस कर सकता है.’

किशनगढ़ में इस नकली बर्फ की घाटी के बीच दो वीआईपी का विशाल काफिला रुका तो भीड़ अचंभित रह गई. एक सफेद इलाके के सामने 15 वाहन कतार से खड़े थे.

इस सफेद घोड़े राजा की सवारी करने के लिए एक वरिष्ठ आईपीएस अधिकारी अपने वाहन से उतरे, और उनके सिपाही फोटो और वीडियो लेने के लिए उनके पीछे दौड़ पड़े. एक और वीआइपी, एक मंत्री और उनकी पार्टी के दर्जनों लोग इस नकली झील के किनारे सेल्फी लेने के लिए खड़े हो गए. उड़ने वाले ड्रोन, इंस्टाग्राम इंफ्लूएंसर्स, पर्यटकों और स्थानीय लोग, हर किसी ने जितनी हो सके उतनी तस्वीरें लेने की कोशिश की.

एशिया के सबसे बड़े मार्बल उद्योग के डंपिंग यार्ड के रील डेस्टिनेशन में बदलने की कहानी का कोई अलग मामला नहीं है. ड्रोन शूट के बढ़ते क्रेज के साथ, दिल्ली में प्रदूषित यमुना, पटना के असहनीय ट्रैफिक जाम और सुनसान उत्तराखंड के भुतहा गांव, हर अराजकता एक रील में बदल जाती है जिसे लाखों व्यूज मिलते हैं. दूसरों में, यह FOMO की भावना पैदा करता है.

जब एक फैशन ब्लॉगर आकृति राणा ने कुछ समय पहले किशनगढ़ की एक रील पोस्ट की, तो लोगों ने उसके रील के कमेंट सेक्शन में उस स्थान के बारे में कई सवाल किए और उसके बारे में जानने की जिज्ञासा प्रकट की. इस रील को एक मिलियन से भी अधिक व्यूज मिले और इसे लगभग हजार से अधिक बार शेयर किया गया.

लद्दाख घाटी या शिमला-मनाली के सस्ते संस्करण के रूप में प्रसारित, इस जहरीली बंजर भूमि के आश्चर्यजनक वीडियो फ्री नहीं हैं. यदि आप यहां एक कैमरा लेकर जाते हैं, तो आप एक दिन के लिए 500 रुपये का भुगतान करते हैं. प्री-वेडिंग शूट पर प्रति दिन 5,100 रुपये का खर्च आता है. कमर्शियल शूट की कीमतें और भी अधिक हो जाती हैं. गाने के वीडियो शूट करने के लिए प्रति दिन 21,000 रुपये चार्ज किए जाते हैं.

किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एसआर शर्मा ने डंपिंग यार्ड तक जाने के लिए शुल्क के रूप में एकत्र किए गए पैसे से बने चमचमाते सभागार में बैठते हुए पूछा, ‘किसने सोचा होगा कि डंपिंग यार्ड को भी राजस्व मॉडल में बदला जा सकता है?’

उन्होंने बड़ी उपलब्धि के साथ कहा, ‘हम भारत के लिए एक रोल मॉडल हैं.’


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प्रसिद्धि का कारण

एक्सपो किशनगढ़ मार्बल इंडस्ट्रीज की स्थापना 1980 के दशक में हुई थी. करीब 30 साल पहले राजस्थान राज्य औद्योगिक विकास एवं निवेश निगम (रीको) ने एसोसिएशन को दो डंपिंग प्लॉट आवंटित किए थे. और तभी यहां मार्बल का पहला कचरा डंप किया गया था.

 शर्मा ने कहा, ‘समय के साथ, कचरे ने बर्फ से ढके पहाड़ों का आकार ले लिया.’

अभी इस उद्योग में मार्बल काटने की 1,200 इकाइयां हैं. यह 4,500 पंजीकृत व्यवसायी, 25,000 से अधिक मजदूरों को रोजगार देती है. आधिकारिक तौर पर, साइट 50 किमी के दायरे में फैली हुई है, लेकिन शर्मा ने दावा किया कि जब रीको कमर्शियल लैंड से बाहर हो गया, तो व्यवसायियों ने एग्रीकल्चर लैंड खरीदी और उन्हें कमर्शियल लैंड में परिवर्तित कर दिया.

सालों तक किसी ने इसपर ध्यान नहीं दिया लेकिन 2015 में चीजें बदल गईं.

उन्होंने कहा, ‘किसी ने 2014 में अपना प्री-वेडिंग शूट यहां शूट किया था, लेकिन जब कॉमेडियन कपिल शर्मा 2015 में अपनी पहली फिल्म ‘किस किसको प्यार करूं’ के लिए एक गाने की शूटिंग के लिए आए, तो 8,000 लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया.’

कपिल शर्मा शूटिंग के बाद मुंबई के लिए रवाना हो गए लेकिन डंपिंग यार्ड को पहचान मिल चुकी थी. आसपास के इलाकों के लोगों को पता चला कि वे इससे पैसा कमा सकते हैं. इसलिए, वे ऊँटों, घोड़ों, और खाने के स्टालों को साइट पर ले आए. अजमेर और जयपुर के वेडिंग फोटोग्राफर प्री-वेडिंग शूट के लिए कपल्स लाने लगे. कुछ पंजाबी और राजस्थानी संगीत कंपनियां भी सफेद पहाड़ों के दृश्य लेने के लिए यहां आई. 

साथ ही कई बड़ी फिल्मी हस्तियां भी आने लगीं. नूरा फतेही ने अपना ‘छोर देंगे’ गाना शूट किया, हनी सिंह और नुसरत भरूचा ‘सइयां जी’ म्यूजिक वीडियो के लिए आए, और टाइगर श्रॉफ और श्रद्धा कपूर ने बागी 3 के लिए ‘दस बहाने 2.0’ शूट किया.


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सौंदर्यीकरण और रोजगार

इसके बाद किशनगढ़ मार्बल एसोसिएशन ने महसूस किया कि कचरे से पैसा कमाया जा सकता है.

शर्मा ने कहा, ‘हमने 2016 से चार्ज करना शुरू कर दिया था. पर्यटकों और आने वाले से एकत्रित धन सौंदर्यीकरण के काम में जाता है जो उन्हें लाभान्वित करता है.’

प्रदूषण बोर्ड में तैनात एक अधिकारी दीपक तंवर ने कहा, ‘हर ट्रक को उतारने के लिए प्रदूषण बोर्ड पर्यावरण शुल्क के रूप में प्रति दिन 300 रुपये लेता है.’

शर्मा ने दावा किया, ‘दोनों फंड का इस्तेमाल सौंदर्यीकरण के लिए किया गया था. हमने पेड़ लगाए, बंजर भूमि पर काम किया, सड़कें बनाईं, सीमाएँ बनाईं, शौचालय बनाए, चेंजिंग रूम बनाए और आठ गार्ड भी तैनात किए.’

सौंदर्यीकरण के साथ ही एसोसिएशन ने स्लरी वेस्ट के लिए सालाना टेंडर जारी किया ताकि उसका दोबारा टाइल्स बनाने में इस्तेमाल किया जा सके. डंपिंग यार्ड में आने वाले प्रत्येक 10 ट्रकों में से एक ट्रक गारा कचरे के साथ गुजरात के मोरबी के लिए रवाना होता है.

एसोसिएशन ने यह भी दावा किया कि उन्होंने एक अस्पताल भी बनाया है.

दो साल पहले, 23 वर्षीय केशव को एहसास हुआ कि वह डंप यार्ड में अपनी रोजी-रोटी कमा सकता है. अपने पांच चचेरे भाइयों के साथ, आठ घोड़े (दो बच्चे वाले) को लेकर उन्होंने सुबह 8 बजे से सूर्यास्त तक साइट पर काम करना शुरू कर दिया.

केशव ने कहा, जो हर दिन 1,000 रुपये तक कमा लेते हैं, ने कहा, ‘राजा, बादल और शेरा हैं जो हमसे ज्यादातर काम करवाते हैं.’ 

लेकिन तमाम ग्लैमर, शोहरत और रोजगार के पीछे एक और कहानी है.

मार्बल का चमकीला टुकड़ा बनाने में 30 से 35 प्रतिशत कचरा निकलता है. इस कचरे के कुछ कण 75 माइक्रोमीटर से भी छोटे होते हैं, जो जल और वायु प्रदूषण के लिए भी जिम्मेदार होते हैं. किशनगढ़ के डॉक्टरों का कहना है कि सफेद धूल के कण त्वचा की बहुत सारी समस्याओं, आंखों में संक्रमण और सांस लेने की समस्याओं के लिए जिम्मेदार होते हैं.

किशनगढ़ शहर से 20 किमी दूर राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में पर्यावरण विज्ञान के प्रोफेसर एलके शर्मा ने कहा कि बंजर भूमि बड़े पैमाने पर सिलिकोसिस पैदा करने के लिए जिम्मेदार है. यह मिट्टी को बंजर भी बनाता है.

उन्होंने कहा, ‘डंपिंग यार्ड का व्यावसायिक उपयोग खतरनाक है और इसके आसपास आठ गार्ड तैनात करना सही काम नहीं है.’

एहतियात के तौर पर, स्थानीय लोग जो दिन में 12 घंटे जहरीले बंजर भूमि में बिताते हैं, अपनी आंखों को बचाने के लिए सस्ते धूप के चश्मे और अपनी नाक को ढकने के लिए गमछा का इस्तेमाल करते हैं.

गणपत लाल, जो अपनी पत्नी और बेटे के साथ साइट पर घूमने आए, ने कहा, ‘मैंने इस जगह के बारे में बहुत कुछ सुना था. यहां का वातावरण बहुत सही है और हवा भी साफ है.’

गणपत लाल की पत्नी ने कहा, ‘यह बहुत सुंदर है.’

(संपादनः ऋषभ राज)

(इस फ़ीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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