इम्फाल: जब पिछले हफ्ते मणिपुर के कांगवई और मोरेह में हिंसा का ताजा दौर शुरू हुआ, जिसमें आक्रामक गोलीबारी हुई, घर जलाए गए और संपत्ति को नुकसान पहुंचाया गया, तो इस हिंसा में एक सामान बात थी जो दिप्रिंट को पता चला है और वह थी संघर्षरत समूहों द्वारा चुराए गए पुलिस हथियारों का इस्तेमाल,
पुलिस शस्त्रागारों से 200 से अधिक एके-47, 406 कार्बाइन, 551 इंसास राइफलें, 250 मशीनगन और पांच लाख राउंड गोला-बारूद लूटे हुए लगभग तीन महीने बीत चुके हैं. हालांकि, इसमें से बहुत ज्यादा कुछ भी पुलिस हासिल नहीं कर सकी है. जिसने स्थानीय लोगों के हाथों में एक महत्वपूर्ण शस्त्रागार छोड़ दिया गया है और जिसने हिंसा को बहुत तेज कर दिया है.
पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, चुराए गए 4,500 से अधिक अत्याधुनिक स्वचालित हथियारों में से अब तक केवल 1,195 ही बरामद किए गए हैं.
दिप्रिंट द्वारा देखे गए अस्पताल के आंकड़ों से एक गंभीर वास्तविकता का भी पता चलता है: मणिपुर में सबसे अधिक मौतों का कारण गोली लगना है, वहीं इस हिंसा में मरने वालों की संख्या अब तक 150 हो गई है और बढ़ती जा रही है.
इसके अलावा, मणिपुर में बंदूक हिंसा बड़े पैमाने पर स्थानीय लोगों द्वारा सर्विस हथियारों का उपयोग करके की जा रही है, ऐसा दावा सुरक्षा कर्मियों ने किया, जिन्होंने दिप्रिंट से बात की और इस्तेमाल किए गए कारतूसों के प्रकार, फायरिंग पैटर्न और नुकसान की सीमा जैसे सबूतों की ओर इशारा कर रहे हैं.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक सूत्र ने कहा, “इनमें से अधिकांश गोलीबारी और हिंसा की घटनाओं में, स्थानीय लोगों द्वारा सर्विस वेपन का उपयोग किया जा रहा है. ये देश-निर्मित हथियार नहीं हैं, इन पर अलग-अलग हस्ताक्षर हैं, ”
मणिपुर 3 मई से ही जल रहा है, जब प्रमुख मैतेई और आदिवासी कुकी समुदायों के बीच जातीय तनाव पूरी तरह से हिंसा में बदल गया.
इस अशांत माहौल में, आबादी के बीच घातक हथियारों का प्रसार गंभीर चिंता पैदा करता है.
सुरक्षा सूत्र ने बताया, “जब तक ये हथियार बरामद नहीं हो जाते, यह रुकने वाला नहीं है.”
हालांकि, हथियारों को फिर से प्राप्त करना एक जटिल काम है, जिनमें हथियारों के लापता रिकॉर्ड, जांच और गिरफ्तारी की कमी, कानून प्रवर्तन के भीतर जातीय विभाजन, स्थानीय लोगों का प्रतिरोध और अशक्त सुरक्षा बल शामिल हैं.
गायब रिकॉर्ड, कुछ खुफिया सूचनाएं
27 मई को, भीड़ ने इंफाल पूर्व के पांगेई में मणिपुर पुलिस प्रशिक्षण केंद्र पर हमला कर दिया, और राइफल, मशीन गन, कार्बाइन, ग्रेनेड, आंसू गैस के गोले और हजारों राउंड गोला बारूद सहित हथियारों का जखीरा लूट लिया.
7वीं मणिपुर राइफल्स बटालियन, 8वीं भारतीय रिजर्व बटालियन के साथ-साथ पूरे मणिपुर में स्थानीय पुलिस स्टेशन के शस्त्रागारों और स्टेशनों से भी हथियार चुराए गए थे.
सूत्रों ने कहा कि जब लोग हथियार लूट रहे थे, तो वे अपने साथ रिकॉर्ड रजिस्टर भी ले गए, जिससे गायब हथियारों को बरामद करना मुश्किल हो गया.
सुरक्षा सूत्र ने कहा,“हम जो एकत्र कर सके वह यह था कि 4,617 हथियार लूटे गए थे, जिनमें से 2,927 निश्चित रूप से घातक थे, लेकिन और भी हो सकते थे. हम बाकी 1,690 हथियारों की प्रकृति के बारे में निश्चित नहीं हैं.
सूत्र ने आगे कहा, “हमारे पास इसका पूरा रिकॉर्ड नहीं है कि क्या-क्या चोरी हुआ क्योंकि लोग रिकॉर्ड रजिस्टर अपने साथ ले गए थे.”
बड़ी संख्या में स्थानीय लोगों के खुलेआम सशस्त्र घूमने के कारण, पूरे राज्य में, विशेषकर तलहटी में, प्रतिदिन ताजा हिंसा की घटनाएं सामने आ रही हैं, जिससे मरने वालों की संख्या में लगातार वृद्धि हो रही है. पुलिस के आंकड़ों से पता चलता है कि जारी हिंसा में 150 से अधिक लोगों की जान चली गई है और 50,000 से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.
अब तक, संघर्ष को रोकने के प्रयास, जैसे शांति समिति की बैठकें, स्थानीय नेताओं के नेतृत्व में अपील और संयुक्त तलाशी अभियान, स्थानीय लोगों को निहत्था करने में विफल रहे हैं.
खुफिया सूचनाओं की कमी और स्थानीय लोगों का प्रतिरोध निरस्त्रीकरण के कार्य को और भी कठिन बना रहा है.
मणिपुर पुलिस के एक सूत्र ने कहा, “स्थानीय लोगों को निशस्त्र करने में हमें जिस बड़ी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है इसकी वजह खुफिया सूचनाओं की कमी है. चूंकि दोनों समुदायों के बीच लड़ाई जारी है, इसलिए जनता की ओर से इस बारे में कोई जानकारी नहीं मिल रही है कि हथियार कहां हैं,” जिससे निरस्त्रीकरण का काम और भी मुश्किल हो रहा है.
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चोरी किए गए हथियारों को बरामद करने की तत्काल आवश्यकता के बावजूद, लूट के लिए विशेष रूप से अब तक कोई गिरफ्तारी नहीं की गई है. इसके अलावा, चोरी होने पर स्थानीय पुलिस द्वारा कम प्रतिरोध करने के भी आरोप सामने आए हैं.
पुलिस सूत्रों ने कहा, मणिपुर हिंसा से संबंधित अब तक 5,960 एफआईआर दर्ज की जा चुकी हैं. हालांकि, केवल 4,983 ‘सामान्य गिरफ़्तारियां’ की गईं, जिनमें से अधिकांश लोगों को बाद में रिहा कर दिया गया.
जबकि मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह के निर्वाचन क्षेत्र (एक मैतेई क्षेत्र) के अंतर्गत आने वाले हिंगांग पुलिस स्टेशन ने विशेष रूप से लूट से संबंधित 10 एफआईआर दर्ज की हैं, लेकिन जांच अभी शुरू नहीं हुई है. थाने पर पुलिसकर्मी बिना किसी हथियार के बैठे हैं और स्थिति के ‘सामान्य होने’ का इंतजार कर रहे हैं.
सुरक्षा प्रतिष्ठान के एक दूसरे सूत्र ने कहा, “सभी पुलिस स्टेशनों में सीसीटीवी कैमरों की मौजूदगी के बावजूद, कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है, और हथियार लूटने के पीछे के मास्टरमाइंड की पहचान में कोई प्रगति नहीं हुई है.”
इसके अलावा, किसी भी एफआईआर में कोई कड़ी धाराएं नहीं लगाई गई हैं.
दिप्रिंट द्वारा देखी गई एफआईआर में भारतीय दंड संहिता की गैरकानूनी सभा, दंगा, डकैती, आपराधिक अतिचार और एक लोक सेवक की ड्यूटी में बाधा डालने की धाराएं, साथ ही शस्त्र अधिनियम के तहत प्रावधान लागू किए गए हैं. कुछ में, “अज्ञात हमलावरों” के खिलाफ हमले या आपराधिक बल की धाराएं भी लगाई गई हैं.
दूसरे सुरक्षा सूत्र ने बताया,“एफआईआर बहुत सामान्य हैं. उन्होंने बताया कि 500 लोगों की भीड़ आई और हथियार लूट लिए.”
इस सूत्र ने यह भी आरोप लगाया कि लूटपाट के प्रति पुलिस की प्रतिक्रिया शुरू से ही कमज़ोर रही.
सूत्र ने यह भी कहा, “पुलिस ने उन्हें रोकने के लिए हवा में गोलियां चलाईं, लेकिन वे आसानी से अंदर घुस आए और शस्त्रागार लूट लिए. अजीब बात है कि इस झड़प में पुलिस या आम जनता की ओर से कोई घायल नहीं हुआ.” “पुलिस ने स्वेच्छा से हथियार छोड़ दिए.”
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जैसा कि दिप्रिंट ने पहले बताया था, मणिपुर पुलिस बल में जातीय विभाजन गहरा गया है.
दूसरे सुरक्षा सूत्र ने कहा, यह विभाजन हथियारों की बरामदगी के लिए संयुक्त तलाशी अभियान में भी बाधा डाल रहा है क्योंकि पुलिसकर्मी कथित तौर पर अपने समुदाय के गांवों को अग्रिम चेतावनी और सूचना दे रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप अभियान विफल हो रहे हैं.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा, ”ऐसा विभाजन है कि वे अब खुद को मैतेई और कुकी पुलिस के रूप में पहचान रहे हैं.”
एक दूसरे पुलिस सूत्र ने बताया कि हथियार बरामद करने में स्थानीय प्रतिरोध भी एक बड़ी बाधा थी.
उन्होंने कहा, “हम बैकफुट पर हैं. बल प्रयोग करना और हथियार बरामद करना एक बड़ी चुनौती है, लोग बहुत आक्रामक हैं. जैसे ही उन्हें किसी ऑपरेशन की भनक लगती है, वे इकट्ठा हो जाते हैं और सड़कें बंद कर देते हैं, जिससे पुलिस को पीछे हटना पड़ता है.”
लाचार केंद्रीय बल
सुरक्षा प्रतिष्ठान के सूत्रों ने कहा कि मैतेई बहुल इम्फाल घाटी में प्रतिबंधित आतंकवादी समूहों के लिए जनता का समर्थन बढ़ रहा है, जो निरस्त्रीकरण प्रयासों में बाधा साबित हो रहा है.
चुनौती को बढ़ाते हुए, सेना और असम राइफल्स के पास इंफाल घाटी के अधिकांश गांवों में अभियान चलाने के लिए कानूनी ढांचे का अभाव है, क्योंकि इन क्षेत्रों को अब सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम (एएफएसपीए) के तहत “अशांत” के रूप में वर्गीकृत नहीं किया गया है.
मणिपुर के 92 पुलिस स्टेशनों में से सात जिलों के 19 स्टेशनों से AFSPA हटा लिया गया है. कानून और व्यवस्था में सुधार के कारण अप्रैल 2022 में 15 स्टेशनों से अधिसूचना हटा ली गई, और फिर अप्रैल 2023 में अन्य चार स्टेशनों से अधिसूचना हटा ली गई.
सूत्रों ने कहा कि ज्यादातर हमले मैतेई विद्रोही समूहों द्वारा गैर-अधिसूचित क्षेत्रों से किए जा रहे हैं जिन्हें अब अशांत नहीं माना जाता है.
सूत्र ने कहा, “मैतेई और कुकी दोनों के पास सशस्त्र समूह हैं जो उनका समर्थन और सहायता कर रहे हैं. इम्फाल घाटी में कार्रवाई को चुनौती देने वाली बात यह है कि यह एक ‘शांतिपूर्ण क्षेत्र’ है जो बलों को किसी भी खुली कार्रवाई से रोकता है,”
इंफाल घाटी में, केंद्रीय बलों के पास गिरफ्तारी करने या स्वतंत्र रूप से ऑपरेशन करने की शक्ति नहीं है, क्योंकि वे केवल पुलिस की सहायता के लिए तैनात हैं.
दूसरे सुरक्षा सूत्र ने कहा, “किसी भी छापेमारी, तलाशी अभियान या कार्रवाई के लिए हम स्थानीय पुलिस पर निर्भर हैं जो खुद जातीय आधार पर बंटी हुई है.”
इस बीच, के.एच. नागरिक समाज समूह कोऑर्डिनेशन कमेटी ऑन मणिपुर इंटीग्रिटी (COCOMI) के मैतेई नेता अथौबा ने इस महीने की शुरुआत में दिप्रिंट को बताया कि हथियार केवल आक्रामकता से बचाव के लिए लूटे गए थे और इससे आंतरिक सुरक्षा को कोई खतरा नहीं था.
उन्होंने कहा था, “मैतेई के हाथों में ये हथियार सुरक्षा बलों या राज्य के लिए खतरा नहीं हैं. इनका उपयोग किसी भी आपराधिक गतिविधि के लिए नहीं किया जा रहा है, एक बार स्थिति सामान्य होने पर हथियार भी वापस कर दिए जाएंगे. एक बार हिंसा ख़त्म हो जाए तो किसी भी चीज़ के लिए हथियारों की ज़रूरत नहीं रहेगी.”
(अनुवाद- पूजा मेहरोत्रा)
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