scorecardresearch
Wednesday, 20 November, 2024
होमफीचर'मेड इन हेवन' ने भारत में बौद्ध शादियों के लिए उत्सुकता पैदा की- वे इस तरह की जाती हैं

‘मेड इन हेवन’ ने भारत में बौद्ध शादियों के लिए उत्सुकता पैदा की- वे इस तरह की जाती हैं

धर्मांतरण से कुछ दिन पहले, स्कूल के हेडमास्टर भाऊ कार्डक ने आम्बेडकर को एक पत्र लिखकर उनकी शादी पर मार्गदर्शन मांगा था. आम्बेडकर ने अपने जवाब में सामान्य भाषा में बताया कि बौद्ध विवाह रिवाजों के साथ कैसे किए जाने चाहिए.

Text Size:

मुंबई: मुंबई: यूरोप में काम करने वाली पश्चिमी महाराष्ट्र की इंजीनियर बौद्ध, मंजुश्री को अपने यूरोपीय सहकर्मी रॉबर्ट से प्यार हो गया. रॉबर्ट को यात्रा में रूचि रखने वाली मंजुश्री पहले से पसंद थीं. सालों तक, एक प्रोजेक्ट पर साथ काम करते हुए भी उन्होंने अपनी भावनाओं को खुद तक ही सीमित रखा. आख़िरकार जब उन्होंने एक साथ रहने की इच्छा जाहिर की, तो दोनों के के माता-पिता ख़ुशी से सहमत हो गए. रॉबर्ट बौद्ध परंपरा से शादी करने के लिए सहमत होकर पिछले साल अपने परिवार के साथ भारत आए. उनकी आधिकारिक तौर पर कोई सगाई नहीं की, दोनों ने सीधे शादी रचाई.

मंजुश्री कहती हैं, “मैं रॉबर्ट को कई सालों से जानती थी लेकिन झिझक रही थी इसकी वजह यह थी की में कई साल पहले एक ‘उच्च जाति’ भारतीय लड़के के साथ रिलेशनशिप में थी.” वह कहती हैं, “लेकिन जब शादी के बारे में चर्चा शुरू हुई तब मेरा बौद्ध धर्म (और दलित पृष्ठभूमि) एक बाधा बनकर सामने आ गया.

विवाह के तौर-तरीकों पर चर्चा करते समय, मंजुश्री के पूर्व साथी ने हिंदू रिवाजों (या फेरों) पर जोर दिया था. मंजुश्री ने कहा, “उसके माता-पिता ने मुझे बहू के रूप में सिरे से खारिज कर दिया और अपने बेटे को भी मुझसे शादी नहीं करने को लेकर धमकी दी. मुझे बहुत हैरानी हुई, जब उनके बेटे ने उनके फैसले को स्वीकार कर लिया, और ब्रेकअप करते समय मुझसे कहा कि अगर मैं बौद्ध के अलावा किसी अन्य जाति की होती, तो वह अपने माता-पिता को मना सकता था.”

वह समझ नहीं पा रही थी कि उसके जैसी सुशिक्षित, 21वीं सदी की तकनीकी विशेषज्ञ को इस तरह के भेदभाव का सामना कैसे करना पड़ सकता है . “हमारा समाज कब विकसित होगा? शुक्र है, अब मेरे पास एक ऐसा साथी है जो समानता और सम्मान में विश्वास करता है.”

बौद्ध विवाह रिवाजों के हिस्से के रूप में, मंजुश्री और रॉबर्ट ने एक अहम प्रतिज्ञा ली – कि वे एक-दूसरे के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार करेंगे.

मंजुश्री और रॉबर्ट अपनी शादी में | फोटो: विशेष व्यवस्था द्वारा

अमेज़न प्राइम वीडियो के मेड इन हेवन सीज़न 2 के पांचवें एपिसोड में राधिका आप्टे के दलित बौद्ध चरित्र का जिक्र करते हुए मंजूश्री कहती हैं, “मैं पल्लवी [मेन्के] को देखती हूं, तो ऐसा लगता है कि इसमें मैं खुद हूं. ”

मंजुश्री जैसी अनेकों लड़कियों ने लगभग वही अनुभव किया है जो नीरज घायवान द्वारा निर्देशित एपिसोड में पल्लवी ने किया – एक शिक्षित, निपुण महिला जो प्रत्यक्ष और गुप्त जाति भेदभाव का सामना करती हैं .

लेकिन निर्णायक क्षण एपिसोड पांच के आखिरी सीन में आता है.

चमकदार ऑफ-व्हाइट साड़ी, कोल्हापुरी सोने के ज़ेवर और अपने डोनट बन बालों के चारों ओर एक सफेद फूलों की माला पहने एक दुल्हन धीरे-धीरे सफेद कमल से भरे स्वच्छ तालाब से होते हुए 10 फुट ऊंची बुद्ध प्रतिमा के सामने विवाह मंच पर पहुंचती है. इसके बाद दूल्हा और दुल्हन ने अम्बेडकर और बुद्ध के लिए मोमबत्तियां जलाते हैं. एक सफेद सूती धागे का एक सिरा दोनों पकड़ते है जो पानी के बर्तन के माध्यम से गुजरता है. पृष्ठभूमि में बुद्धम शरणम गच्छामि पंचशील बजता है.

यह मंत्रमुग्ध कर देने वाला बौद्ध विवाह का सीन बेहद खास बन गया है, जिसे भारत में बड़े या छोटे पर्दे पर पहले कभी नहीं देखा गया. यह वीडियो क्लिप सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल होने के साथ शहरों में चर्चा का विषय बन गया है.

हाल ही में वास्तविक जीवन की एकमात्र बौद्ध शादी जो दिमाग में आती है वह आकाश आनंद की प्रज्ञा सिद्धार्थ से शादी है. आकाश बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख मायावती के भतीजे हैं, जबकि प्रज्ञा बसपा नेता अशोक सिद्धार्थ की बेटी हैं. एक अतिथि के अनुसार, भव्य शादी मार्च में गुरुग्राम के एक विशाल सम्मेलन केंद्र में (आदरणीय) चंद्रमा भंते और चार अन्य भिक्षुओं की उपस्थिति में हुई.

आकाश आनंद के साथ प्रज्ञा सिद्धार्थ की शादी | आकाश आनंद की एक्स (पूर्व में ट्विटर) प्रोफ़ाइल के माध्यम से वीडियो स्क्रीनशॉट

विडंबना देखिये . मौर्य काल के दौरान भारत और एशिया में एक प्रमुख धर्म होने के बावजूद, बौद्ध धर्म का पतन हो गया और अम्बेडकर के ऐतिहासिक धर्म परिवर्तन तक यह पूर्वोत्तर तक ही सीमित रहा. हमने हिंदू, मुस्लिम, ईसाई, सिख और यहां तक कि पारसी शादियां देखीं लेकिन भारतीय लोकप्रिय संस्कृति में बौद्ध शादियां कभी नहीं देखीं.

निश्चित रूप से, घेवान दिग्दर्शित एपिसोड की बदौलत बौद्ध विवाह की परंपरा को लेकर बहुत उत्सुकता पैदा हो गई है. वास्तविक जीवन में यह समारोह कैसे होता है? और यह परंपरा कैसे शुरू हुई?


यह भी पढ़ेंः मराठा आरक्षण आंदोलनकारियों के साथ महाराष्ट्र पुलिस की झड़प, 250 के खिलाफ FIR दर्ज, विपक्ष ने उठाया सवाल


आम्बेडकर और बौद्ध विवाह

आम्बेडकर ने 1956 में लाखों दलित अनुयायियों के साथ नागपुर, महाराष्ट्र में बौद्ध धर्म अपना लिया. लेकिन वो करने से पहले उन्होंने धर्मान्तरित लोगों के पालन के लिए बौद्ध धर्म और उसके रीति-रिवाजों की नींव रखी और दस्तावेज़ बनाएं . उन्होंने कहा कि “भगवान बुद्ध द्वारा प्रचारित सिद्धांत अमर हैं. लेकिन भगवान बुद्ध ने ऐसा कोई दावा नहीं किया. समय बदलने के साथ परिवर्तन का भी प्रावधान है. ऐसी उदारता किसी भी धर्म में नहीं मिलती.”

नागपुर में धम्म दीक्षा समारोह के दौरान आम्बेडकर अपनी दूसरी पत्नी डॉ. सविता आम्बेडकर के साथ, बुद्ध की मूर्ति पकड़े हुए। 14 अक्टूबर 1956 | विकिमीडिया कॉमन्स

1956 के धर्मांतरण से कुछ दिन पहले, स्कूल के हेडमास्टर भाऊ कार्डक ने अम्बेडकर को एक पत्र लिखकर अपनी शादी पर मार्गदर्शन मांगा था. उन्होंने लिखा, ”स्वाभाविक रूप से हम अपनी शादी बौद्ध धर्म के अनुसार करना चाहते हैं. इस संबंध में हमारा मार्गदर्शन करने के लिए आपके अलावा कोई बेहतर प्राधिकारी नहीं है. हमारे जैसे युवा शिक्षित बौद्धों को इस सिद्धांत को अपनाना चाहिए और अपने आंदोलन को मजबूत करना चाहिए.”

आंबेडकर ने अपने जवाब में सामान्य भाषा में बताया कि बौद्ध विवाह रिवाजों के साथ कैसे किए जाने चाहिए.

“बौद्ध विवाह समारोह एकदम सरल है. कोई होम (हवन) नहीं है, और कोई सप्तपदी नहीं है [सात फेरे जिसके लिए पल्लवी के ससुराल वाले उत्सुक थे.] समारोह का सार दुल्हन [और] दूल्हे के बीच एक स्टूल पर नया बनाया गया मिट्टी का बर्तन रखना और उसे पानी से भरना है. दूल्हा और दुल्हन बर्तन के दो किनारों पर खड़े होते हैं. उन्हें पानी के बर्तन में एक सूती धागा रखना चाहिए और प्रत्येक धागे का एक सिरा अपने हाथ में पकड़ना चाहिए. कोई मंगल सुत्त गाए. दूल्हा और दुल्हन दोनों को सफेद कपड़े पहनने चाहिए.”

महाराष्ट्र में एक विशिष्ट बौद्ध विवाह | फोटो: विशेष व्यवस्था

ध्यान दें कि पत्र से पता चलता है कि शादी समारोह का संचालन कौन करता है यह जरुरी नहीं है , बशर्ते मंगल सुत्त का पाठ किया जाता हो. समारोह आयोजित करने के लिए, किसी भिक्षु (या भंते, जैसा कि उन्हें महाराष्ट्र में कहा जाता है) का होना आवश्यक नहीं है. लेकिन समारोह आयोजक एक एक नेक इंसान होना चाहिए.

पुणे के पचास वर्षीय महेंद्र कांबले, जिन्होंने पिछले 15 वर्षों में 150 से अधिक विवाह समारोह आयोजित किए हैं, इससे सहमत हैं. वे कहते हैं, “समारोह की खूबसूरती यह है कि कोई भी नेक व्यक्ति विवाह समारोह आयोजित कर सकता है. ऐसी कोई रोक नहीं है. हालांकि, महाराष्ट्र में ज्यादातर विवाह या तो बौद्धाचार्यों [भारतीय बौद्ध महासभा से], धमाचारियों [त्रैलोक्य बौद्ध महासभा से] या भिक्षुओं [भिक्षुओं] द्वारा संपन्न कराए जाते हैं. पहले दो आम लोग हैं, भिक्षु नहीं.”


यह भी पढ़ें: क्यों 1995 के हत्याकांड में बिहार के पूर्व-सांसद प्रभुनाथ सिंह को बरी करने के HC के फैसले को SC ने पलट दिया


‘पेशा नहीं, सामाजिक कर्तव्य’

कांबले ने 1954 में आम्बेडकर द्वारा गठित (और 1955 में पंजीकृत) भारतीय बौद्ध महासभा से अपना बौद्धाचार्य प्रमाणीकरण पूरा किया है. वह बौद्ध विवाह, मृत्यु और अन्य महत्वपूर्ण समारोहों के संचालन के लिए मार्गदर्शिका की किताबें रखते है और हर एक शादी पर मौके के अनुसार छोटा बड़ा परिवर्तन करते हैं.

शादी सीजन के दौरान, कांबले का सप्ताहांत व्यस्त रहता है. जब उन्हें विवाह समारोह आयोजित करने के लिए मेजबानों से फोन आता है, तो वह उनसे साधारण चीजों की एक सूची लाने के लिए कहते हैं – आम्बेडकर और बुद्ध की तस्वीरें या मूर्तियां, फूल, मोमबत्तियां और इन सभी चीजों को उचित ऊंचाई पर रखने के लिए एक मेज.

वह खुद सफेद शर्ट और पैंट पहनकर शादी में शामिल होते हैं और अपनी यात्रा का प्रबंधन और व्यवस्था स्वयं करते हैं. मेज़बान जो भी रकम पेशकश करते हैं, वह उसे ले लेते हैं.

वे कहते हैं, “डॉ. अम्बेडकर की भारत को बौद्ध बनाने की इच्छा के अनुसार बौद्ध धर्म का प्रसार करना मेरे लिए एक पेशा नहीं बल्कि एक सामाजिक कर्तव्य है.”

और कांबले अकेले नहीं हैं – उनके जैसे हजारों आम लोग बौद्धाचार्य हैं.

शादी के कार्यक्रम की शुरुआत आम्बेडकर और बुद्ध की तस्वीरों के सामने मोमबत्तियां जलाने से होती है, जिसके बाद त्रिशरण पंचशील के पांच उपदेशों का पाठ किया जाता है – पंचशील मतलब जीवित प्राणियों को नुकसान नहीं पहुंचाने, चोरी न करने, यौन दुर्व्यवहार में शामिल न होने, गलत या हानिकारक भाषण न देने या नशा न करने की प्रतिज्ञा. कपल सफेद धागे का एक सिरा पकड़ता है, जिसके बाद बुद्ध पूजा और भीमस्मरण (आम्बेडकर की स्तुति) होती है. इसके बाद विवाह अधिकारी परित्राण का पाठ करता है, जो दुर्भाग्य या खतरे से बचाता है. इसके बाद महामंगल सुत्त बोला जाता है आता है, जो बुद्ध का एक प्रवचन है जो संपूर्ण व्यक्तिगत उपलब्धियों का वर्णन करता है.

युगल दर्शकों के सामने कुछ प्रतिज्ञाएं लेते हैं जिसमे अन्य प्रतिज्ञाओं के अलावा एक-दूसरे का सम्मान करने के प्रतिज्ञा होती है . फिर अंत में जयमंगल अट्टागाथा का पाठ किया जाता है. यहां आठ प्रसिद्ध घटनाओं को याद किया जाता है जहां बुद्ध ने मुसीबत पर विजय प्राप्त की – उदहारण के तौर पर बुद्ध की डाकू अंगुलिमाल के ऊपर विजय की गाथा ) जयमंगल अट्ठगाथा के अंत में, दूल्हा और दुल्हन फूलों की पंखुड़ियों की वर्षा और उपस्थित लोगों की तालियों के बीच एक-दूसरे को माला पहनाते हैं. विवाह समारोह के बाद, जोड़े रिसेप्शन के लिए सफ़ेद कपडे बदलकर रंगीन पोशाक पहन लेते हैं . सगाई समारोह, भी यदि हो तो इसी समान तर्ज पर चलती है सिवाय इसके कि मालाओं के स्थान पर अंगूठियों का आदान-प्रदान किया जाता है.

लचीलापन प्रमुख है

कई बौद्ध विवाहों को देखने के बाद, मैं कह सकता हूं कि कोई भी दो समारोह एक जैसे नहीं होते. बौद्ध विवाहों में लचीलापन महत्वपूर्ण हैं. समय की उपलब्धता पर पूरा ध्यान दिया जाता है. जबकि सुत्तों की संख्या और क्रम समय के आधार पर बदल सकते हैं, मूल वही रहता है – बुद्ध, अम्बेडकर और पंचशील. वास्तविक समारोह से पहले, मेजबान अलग-अलग चीजें करते हैं, जैसे बारात, नाच गाना वगैरा. लेकिन मुख्य समारोह आमतौर पर वही होता है.

बौद्ध विवाहों में, मुहूर्त (शुभ समय), पंचांग (हिंदू कैलेंडर) या कुंडली (राशिफल मिलान) की अवधारणाएं मौजूद नहीं होती . बौद्ध विवाह की योजना बनाते समय वर और वधू के जन्म का समय पूछना असभ्य माना जाता है. इसके अलावा, शादियां आमतौर पर सप्ताहांत पर आयोजित की जाती हैं.

ये बौद्ध समारोह महाराष्ट्र में अधिक लोकप्रिय, परिष्कृत और मुख्यधारा बन रहे हैं. वे शांत भी है और मुखर भी, सादा सरल भी है और रंगीन भी, तर्कसंगत भी है और पारंपरिक भी.


यह भी पढ़ें: UCC शायद जल्द आने वाला है, लेकिन भारत में तलाक अभी भी कई प्रकार से होते हैं


एक बढ़ता हुआ चलन

नागपुर के बौद्ध सिद्धांत, जिन्होंने 16 साल पहले एक बुद्ध विहार में श्वेता से शादी की थी, मेड इन हेवन देखने के बाद अपनी शादी को याद करते हैं. “हमने बुद्ध विहार में शादी करने का फैसला किया क्योंकि मुझे और श्वेता को यही पसंद था.” उनकी शादी भी अंतरजातीय और अंतरधार्मिक थी, श्वेता एक गैर-बौद्ध, दलित परिवार से थीं.

शादी से ठीक पहले, उन्होंने बौद्ध धर्म अपनाने के लिए अम्बेडकर द्वारा निर्धारित 22 प्रतिज्ञाएं लीं. श्वेता आगे कहती हैं, “मैं लंबे समय से नास्तिक रही हूं, लेकिन प्रतिज्ञा लेना एक बेहद मुक्तिदायक अनुभव था; शायद जो लोग पहले से ही बौद्ध परिवारों में पैदा हुए हैं वे इस भावना को नहीं समझेंगे.”

दिलचस्प बात यह है कि सिद्धांत के पिता भी नागपुर में विवाह समारोह आयोजित करते हैं. वह गर्व से उस घटना को याद करते हैं जहां उनके पिता ने 1986 में राजस्थान में तनाव के बीच एक बौद्ध विवाह आयोजित किया था क्योंकि यह क्षेत्र में अपनी तरह का पहला विवाह था, जिसमें कई लोगों ने नए समारोह का विरोध किया था.

सिद्धांत का परिवार नागपुर के सबसे उच्च शिक्षित बौद्ध परिवारों में से एक है. नागपुर वह स्थान है जहां अम्बेडकर और महार समुदाय के सदस्यों के धर्म परिवर्तन के बाद बौद्ध आंदोलन को गति मिली. आज, 2011 की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार, महाराष्ट्र में बौद्ध आबादी 65 लाख है.

जबकि नागपुर धर्मांतरण का केंद्र था, महाराष्ट्र के अन्य हिस्सों ने भी धीरे-धीरे इसको अपनाया. इसके अलावा, दक्षिणी भारत में बौद्ध पारंपरिक विवाहों की भी सूचना मिली है. कर्नाटक के उडुपी ने संभवतः 2017 में अपना पहला बौद्ध विवाह देखा, जब दलित कला मंडली के रवींद्र बंटकल और कुशला कुंजरुगिरि ने दक्षिण कन्नड़ बौद्ध महासभा द्वारा आयोजित बौद्ध परंपरा में शादी करने के अपने सपने को पूरा किया.

धर्मांतरण के साथ-साथ दलितों में शैक्षिक और आर्थिक विकास भी देखा गया है. 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर इंडियास्पेंड के विश्लेषण के अनुसार, बौद्ध धर्म अपनाने वाले दलित, जिन्हें कोई लोग नव-बौद्ध भी कहते है , उनकी साक्षरता दर और लिंग अनुपात बाकी अनुसूचित जाति की आबादी की तुलना में काफी बेहतर है.

बौद्धों की दृढ़ता उनके द्वारा आयोजित किये जाने वाले समारोहों में झलकती है और वे ऐसे ही आयोजन करने पर जोर देते हैं. इसलिए, जब पल्लवी बौद्ध विवाह पर अड़ जाती है , और इसके विरोध में उसके ससुराल वाले उन्हें पारंपरिक फेरा समारोह आयोजित करने का सुझाव देते हैं, तो वह अपनी पहचान बरकरार रखने के लिए सारी ताकतों से लड़ निकलती हैं

आम्बेडकर के पोते प्रकाश आम्बेडकर ने एक्स (पूर्व में ट्विटर) पर पल्लवी के किरदार की अवज्ञा की सराहना की.

“उन वंचितों और बहुजनों के लिए, जिन्होंने एपिसोड देखा है, [मेरा सन्देश है ]अपनी पहचान का दावा करें, और तभी आपको राजनीतिक प्रमुखता मिलेगी. जैसा कि पल्लवी कहती हैं, ‘सब कुछ राजनीतिक है.’ जय भीम.”

कैलिफोर्निया में रहने वाले डॉ. आम्बेडकर इंटरनेशनल सेंटर (एआईसी) के संस्थापक सदस्य राम कुमार का जन्म उत्तर प्रदेश में एक हिंदू एससी परिवार में हुआ, जहां बौद्ध धर्मांतरण की प्रक्रिया महाराष्ट्र की तुलना में धीमी थी. कुमार ने 1996 में एक ब्राह्मण पुजारी द्वारा आयोजित पारंपरिक हिंदू समारोह से शादी की थी. धीरे-धीरे उन्होंने आम्बेडकर और बुद्ध को पढ़ना शुरू किया और उनके विचारों से प्रभावित हुए.

राम कुमार अपने घर पर | फोटो: विशेष व्यवस्था

2005 में, उन्होंने नई दिल्ली में बौद्ध धर्म अपना लिया. तब से वह बौद्ध परंपराओं का पालन कर रहे हैं.

वे कहते हैं, “यह मेरे और परिवार के लिए एक नई शुरुआत थी. यह ऐसा था मानो मुझे अंततः हमारी असली जड़ें मिल रही हों. मुझे एहसास हुआ कि बौद्ध धर्म तर्कवाद से समृद्ध है, और अब से, हमें उस विचारधारा का पालन करना चाहिए और [अपनी] पहचान बनाए रखनी चाहिए.”

कैलिफोर्निया के अपने विशाल घर से बोलते हुए, वह गर्व से अपने लिविंग रूम की तस्वीरें साझा करते हैं, जिसमें आम्बेडकर की तस्वीर और बुद्ध की मूर्ति के साथ-साथ उनके बेटे द्वारा बनाई गई पेंटिंग भी शामिल हैं.

इस साल 14 अक्टूबर को, एआईसी द्वारा अमरीका की राजधानी वाशिंगटन डीसी के पास अम्बेडकर की 12 फुट ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया जायेगा, जिसे स्टैच्यू ऑफ इक्वेलिटी भी कहा जा रहा है. यह अम्बेडकर की भारत के बाहर की सबसे ऊंची प्रतिमा होगी. कुमार कहते हैं, “जिस स्मारक का अनावरण किया जाएगा उसमें एक बुद्ध प्रतिमा और एक अशोक स्तंभ भी होगा. यह भविष्य में कई लोगों को प्रेरित करेगा.”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ‘क्या कोई समयसीमा तय की गई है?’ SC ने केंद्र से J&K के राज्य का दर्जा बहाल करने के लिए मांगा रोडमैप


 

share & View comments