पेशे से वकील राहुल म्हस्कर अपने वर्कप्लेस के प्रति इतने ज्यादा समर्पित हैं कि अपना वीकेंड भी वहीं बिताते हैं. जब वह मुंबई के फोर्ट इलाके में स्थित बॉम्बे हाई कोर्ट की इमारत के गॉथिक कॉरिडोर में यहां से वहां भाग-दौड़ नहीं कर रहे होते हैं या फिर कोर्ट रूम में दलीलें नहीं दे होते हैं, तो पर्यटकों और स्थानीय लोगों के समूहों को हेरिटेज वॉक पर ले जाते हैं, जिसमें सारा फोकस लीगल हिस्ट्री पर होता है.
म्हस्कर लॉरेंस ह्यूग जेनकिंस की एक प्रतिमा की ओर इशारा करते हैं, जो कभी बॉम्बे हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस रहे थे. इमारत के मुख्य द्वार से प्रवेश करते ही वलयाकार मैदान के बीच यह प्रतिमा नजर आती है.
म्हस्कर ने बताया, ‘उन्होंने ही भारतीय वकीलों के लिए नियमों में ढील दी थी, अन्यथा उनके लिए प्रैक्टिस करना मुश्किल हो जाता. इस प्रतिमा को पानी के जहाज पर कलकत्ता से बंबई लाया गया था. हालांकि अब इन दोनों ही बंदरगाह शहरों का नाम बदल चुके हैं. लेकिन जेनकिंस की ये प्रतिमा आज भी इमारत की शोभा बढ़ा रही है.
मुंबई को भले ही पैसों के पीछे भागने वाले धनकुबेरों का शहर कहा जाता हो, लेकिन यह कला और संस्कृति के मामले में भी कम समृद्ध नहीं है. यहां स्थानीय और बाहर से आने वाले पर्यटकों को आकृष्ट करने के लिए हेरिटेज वॉक, गाइडेड सीफ्रंट स्ट्रॉल्स, चोर बाजार और क्रॉफर्ड मार्केट टूर, काला घोड़ा और आर्ट डेको वॉक, बॉलीवुड गाइड, चाट और फूड ट्रेल्स हैं. इसके साथ ही धारावी स्लम का टूर कराने के इंतजाम भी हैं.
और अब, लीगल हेरिटेज वॉक एक नई पहल है. इसमें मुख्य आकर्षण है बॉम्बे हाई कोर्ट की इमारत, जिसे 2018 में यूनेस्को ने विश्व विरासत घोषित किया था. इतिहास का एक हिस्सा उन लोगों से भी जुड़ा है जिन्होंने बॉम्बे हाई कोर्ट की इमारत में समय गुजारा है. जिन्ना और अंबेडकर ने यहां पर लॉ की प्रैक्टिस की थी और यही वो जगह है जहां लोकमान्य तिलक पर मुकदमा चलाया गया था.
मुंबई में लीगल और कल्चरल वाक का आयोजन करने वाले समसोना गेटवे के क्रिएटर समीर कोर्डे कहते हैं, ‘ये यात्राएं नॉलेज और इंटरटेनमेंट का मिश्रण हैं. यह इमारतों और वास्तुकला से आगे बढ़कर लोगों के सामने यह झलक भी पेश करता है कि अंग्रेजों के अधीन और भारत की आजादी के शुरुआती वर्षों में अदालतें कैसे काम करती थीं.
बॉम्बे हाई कोर्ट भवन की अहमियत और राजस्व क्षमताओं को समझते हुए ही महाराष्ट्र सरकार के पर्यटन निदेशालय ने अक्टूबर 2021 में प्रति व्यक्ति 100 रुपये के हिसाब से वीकेंड टूर का आयोजन शुरू किया था.
और म्हस्कर जब फ्री होते हैं तो मूनलाइट सैमसोना गेटवे के लिए एक गाइड के तौर पर काम करते हैं, जो आम तौर पर महीने में दो बार दूसरे और चौथे शनिवार को आयोजित होता है. सरकारी टूर के विपरीत ये टूर हाई कोर्ट भवन के बाहरी वास्तुकला तक ही सीमित हैं. प्रत्येक समूह में 10-12 से अधिक लोग नहीं होते हैं, और टिकट की कीमत प्रति व्यक्ति 550-750 रुपये के बीच होती है.
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फुलर्स की डिजाइन में कहां हुईं गलती
विक्टोरियन गोथिक स्ट्रक्चर में पत्थरों पर उभरी आकृतियों वाली छतें हैं, वाल्ट जैसे चैंबर और ऊंची-ऊंची छतों वाले कमरे काफी दर्शनीय हैं. इस इमारत के सबसे ऊंचे सिरे की ऊंचाई 179 फीट है. इसकी मूर्तियां और कार्विंग, यहां तक कि छतों पर भी श्रमिकों की नाराजगी और वास्तुकारों की काल्पनाशीलता की खामियां साफ नजर आती हैं.
इसकी खास ढलान वाली छतों को रॉयल इंजीनियर्स के लेफ्टिनेंट-कर्नल जॉन ऑगस्टस फुलर की बेवकूफी से जोड़ा जाता है, जिन्हें इस इमारत को डिजाइन करने का जिम्मा सौंपा गया था. खाकी टूर्स के संस्थापक और शहर के इतिहास के जानकार भरत गोथोस्कर बताते हैं कि एक बार छुट्टी के दौरान उन्होंने जर्मन वास्तुकला से प्रेरित होकर इन छतों को डिजाइन किया. जर्मन वास्तुकला में ये छतें शो के लिए नहीं बनी थी बल्कि वहां सर्दियों के दौरान होने वाली भारी बर्फबारी से बचाने के लिए डिजाइन की गई थीं.
गोथोस्कर ने कहा, ‘लेकिन मुंबई में बर्फ नहीं पड़ती, बारिश होती है. और इसमें बारिश से बचाने का कोई उपाय नहीं किया गया है. इसलिए, जब भी भारी बारिश होती है, पानी अदालतों में रिसता रहता है और इसीलिए इसीलिए इसे फुलर्स फॉली भी कहा जाता है.’
लेकिन इस हाई कोर्ट की यह पहली इमारत नहीं थी. बॉम्बे हाई कोर्ट पहले अपोलो स्ट्रीट पर एडमिरल्टी हाउस में शुरू हुई थी, जहां कुछ समय के लिए रिकॉर्डर कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही भी चली थी. यह भवन मौजूदा कोर्ट परिसर से करीब एक किलोमीटर दूर है.
यद्यपि यह जगह व्यापारियों और कारोबारियों के लिए नजदीक होने के कारण एक आदर्श जगह थी. लेकिन जगह की कमी ने अदालती कार्यवाही को मुश्किल बना दिया. इसे अप्रैल 1871 में मौजूदा इमारत में स्थानांतरित करने का फैसला किया गया. भवन को बनाने पर कुल 16,44,528 लाख रुपये की लागत आई जो स्वीकृत अनुमानित लागत से 3,000 रुपये कम थी.
म्हस्कर कहते हैं, ‘केवल ब्रिटिश ही जानते होंगे कि उन्होंने इसे जरूरत से ज्यादा कम पैसे में कैसे बनाया था.’
सात साल बाद नवंबर 1878 में भवन बनकर तैयार हुआ. यह स्ट्रक्चर 562 फुट लंबा, 187 फुट चौड़ा है और 80,000 वर्ग फुट में फैला है.
म्हस्कर ने कहा, ‘जब आप हाई कोर्ट में प्रवेश करते हैं, तो आप इसके इतिहास से जुड़ी सभी जानकारियों वाला टैबलेट देखेंगे, जैसा संग्रहालयों में आवश्यक सूचनाएं देने के लिए प्रदर्शित किया जाता है.’
दो अष्टकोणीय टॉवरों वाली इस इमारत के पश्चिमी तरफ बनी सीढ़ियां न्यायाधीशों के निजी इस्तेमाल के लिए हैं. आम जनता के लिए मुख्य सीढ़ी और प्रवेश द्वार पूर्व की ओर है.
हाई कोर्ट में कुछ छोटे शब्दचित्र भी छिपे दिखते हैं. नक्काशीदार खंभों में छिपे बंदर जज और लोमड़ी अधिवक्ता जैसे संकेत साफ देखे जा सकते है. दि हिंदू की रिपोर्टों के मुताबिक, इसे ‘एक असंतुष्ट पारसी सब-कांट्रैक्टर की शरारत बताया जाता है, जिसने हाई कोर्ट के वकीलों और जजों की निंदा करके कानून से अपना बदला लिया था.’
प्रवेश द्वार से थोड़ा आगे एक कुआं है. म्हस्कर बताते हैं, ‘लेकिन इस पर लगे शिलालेख में उकेरा गया है कि कुआं निगेटिव वाइब्स देता है.’
इसमें पूरे लीगल हेरिटेज टूर की पेशकश तो नहीं की जाती है लेकिन बॉम्बे हाई कोर्ट के आसपास के फोर्ट क्षेत्र को जरूर कवर किया जाता है.
बहरहाल, हाई कोर्ट का स्वतंत्र प्रेस एक अनसुलझा रहस्य बना हुआ है. प्रेस के बारे में आज बहुत कम सबूत मिलते हैं लेकिन म्हस्कर बताते हैं कि यह 1868 से 1933 तक चला था. गोथोस्कर कहते हैं, ‘हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि यह वास्तव में कहां पर स्थित था. एक किताब में इसका जिक्र मिलता है, लेकिन स्थान का उल्लेख नहीं है.’
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केवल सात जजों के साथ चलती रही हाई कोर्ट की कार्यवाही
बॉम्बे हाई कोर्ट की स्थापना के समय वहां 15 न्यायाधीशों की नियुक्ति की मंजूरी दी गई थी, लेकिन इसकी कार्यवाही सिर्फ केवल सात जजों के साथ शुरू हुई. म्हस्कर ने कहा, ‘उल्लेखनीय तथ्य यह है कि उसके बाद लगभग 60 वर्षों तक हाई कोर्ट केवल सात जजों के साथ काम करने में कामयाब रहा.’
उस जमाने में टाइपराइटर नहीं होते थे, तो जिनकी लिखावट अच्छी होती थी, उन्हें बुलाकर जजमेंट लिखने का काम दे दिया जाता था.
प्रवेश द्वार पर लगी जेनकिंस की भव्य प्रतिमा ध्यान आकृष्ट करती है. वेबसाइट के मुताबिक, ‘हिज लॉर्डशिप को अंग्रेजी और भारतीय कानूनों दोनों में खासी महारत हासिल थी. उन्होंने भारतीय कानून पर अपने ज्ञान से बार को आश्चर्यचकित कर दिया था, जिसे उन्होंने स्पष्ट तौर पर अपनी समुद्री यात्रा के दौरान पढ़ा था.’
एक अन्य प्रमुख न्यायाधीश सर जॉन लियोनार्ड स्टोन थे जो कि बॉम्बे हाई कोर्ट के 12वें और अंतिम अंग्रेज चीफ जस्टिस थे. बॉम्बे हाई कोर्ट के रिकॉर्ड के मुताबिक, 14 अगस्त 1947 की रात मूल और अपीली न्यायालयों के सदस्य, वकील, अधिकारी, हाई कोर्ट के सभी कर्मचारी और अन्य गणमान्य लोगों के साथ लगभग 11.35 बजे सेंट्रल कोर्ट में एकत्र हुए थे.
सर स्टोन और अन्य न्यायाधीशों ने रात 11 बजकर 45 मिनट पर अपनी सीट संभाली. मुख्य न्यायाधीश के आसन के पास एक अस्थायी फ्लैग पोस्ट लगाया गया था.
बॉम्बे हाई कोर्ट का कोई भी टूर जमशेद कांगा यानी ‘ग्रैंड ओल्ड मैन ऑफ बॉम्बे बार’ के जिक्र बिना पूरा नहीं होता. म्हस्कर ने बताया, ‘1958 के आसपास, जब हाई कोर्ट का विस्तार किया जा रहा था तो तमाम वरिष्ठ अधिवक्ताओं से पुरानी इमारत खाली करने और नई एनेक्सी बिल्डिंग में जाने को कहा गया. लेकिन कांगा को यह बात पसंद नहीं आई. उन्होंने कहा—’अगर मैं हाई कोर्ट में नहीं बैठता तो इसका मतलब है मैं प्रैक्टिस ही नहीं कर रहा हूं. और मुझे नए भवन का कोई मोह नहीं है.’ और इसलिए दो इमारतों को जोड़ने वाला एक पुल बनाया गया.’
कुछ किस्से मुंबई में प्रैक्टिस करने वाले वकीलों के लिए भी नए होते हैं. समसोना गेटवे की तरफ से आयोजित लीगल टूर में शामिल हुईं सुप्रीम कोर्ट की अधिवक्ता मोहिनी प्रिया ने इसका पूरा आनंद लिया. उन्होंने कहा, ‘मुंबई में पांच साल कानून की पढ़ाई करने के बावजूद मुझे इमारत के इतिहास की जानकारी नहीं थी.’
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