नई दिल्ली: हैदराबाद स्थित सॉफ्टवेयर इंजीनियर खालिद सैफुल्लाह के पास प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भारत में मुसलमानों की हर समस्या का तकनीकी समाधान है. ‘एनआरसी को हराने से लेकर लापता मुस्लिम मतदाताओं’ की पहचान करने से लेकर ‘तीन तलाक पर प्रतिबंध’ का विरोध करने तक इस 45-वर्षीय व्यक्ति ने लगभग हर ज्वलंत मुद्दे के लिए एक ऐप्प बनाई है.
नीली नेहरू जैकेट पहने खान मार्केट में कॉफी पीते हुए सैफुल्लाह ने कहा, “समस्याओं का समाधान हज़ारों साल पुराने तरीकों से नहीं खोजा जा सकता. मैं लोगों को विश्वास दिलाता हूं ताकि वे प्रौद्योगिकी के माध्यम से अपनी लड़ाई खुद लड़ सकें.”
वे खुद को one-man ‘technology movement’ कहते हैं. वे हस्ताक्षर याचिकाएं शुरू करते हैं, मुसलमानों को सरकारी योजनाओं से जोड़ते हैं और भारत के स्वतंत्रता संग्राम में मुसलमानों के योगदान पर प्रकाश डालते हैं. वे एक डिजिटल फीनिक्स हैं. जैसे-जैसे राजनीतिक हलचलें और रुझान बदलते हैं, पुराने ऐप्स की राख से नए ऐप्स सामने आते हैं.
उन्होंने स्वतंत्र रूप से अब तक लगभग 20 वेबसाइट और ऐप बनाए हैं — शाहीन बाग ऐप्प से लेकर फ्री राशन ऐप और मेरा लीडर ऐप तक, लेकिन इन दिनों लोकसभा चुनावों से पहले सबसे ज्यादा मांग मिसिंग वोटर्स ऐप की है, जिसमें नागरिक के घर के सदस्यों, विधानसभा क्षेत्र और पते जैसी डिटेल्स दर्ज करने, अपंजीकृत वोटों की पहचान करने और नए मतदाता पहचान पत्र के लिए आवेदन करने का सॉफ्टवेयर है.
लोगों द्वारा मतदाता पहचान पत्र सूची में अपना नाम जोड़ने के अनुरोध के साथ उनका फोन बजना बंद नहीं होता है, लेकिन सैफुल्ला के पास हर एक कॉलर या यूजर की डिटेल को वेरीफाई करने और उन्हें वोटर्स लिस्ट में रजिस्टर्ड करने के लिए जनशक्ति नहीं है. अब, वे वोटर ऐप को एनजीओ और नागरिकों के प्लेटफॉर्म से जोड़ने का विकल्प तलाश रहे हैं. वे वोटर्स लिस्ट में नए या लापता मतदाताओं को रजिस्टर्ड करने के लिए सॉफ्टवेयर और ऐप का उपयोग कर सकते हैं.
उनका दावा है कि 2019 और 2021 के बीच कम से कम 1.18 लाख लोगों ने मतदाता पहचान पत्र के लिए आवेदन किया था, इससे पहले कि कथित तौर पर इसके नियमों और शर्तों का पालन करने में विफल रहने के कारण मिसिंग वोटर्स को Google PlayStore से हटा दिया गया था. 2019 के चुनावों से पहले, यह Google PlayStore पर एक ‘ट्रेंडिंग ऐप’ के रूप में उभरा. सैफुल्ला ने कहा, “एंड्रॉइड पर इसके 80,000 से अधिक डाउनलोड और आईओएस पर 5,000 से अधिक डाउनलोड हुए और परिणामस्वरूप 40,000 लोगों को वोट देने के लिए पंजीकृत किया गया.”
अब, वह इसे फिर से शुरू करना चाहते हैं. वे जितने मतदाताओं को रजिस्टर्ड करने में सफल रहे, वो सागर में एक बूंद के बराबर है.
मेरे दादाजी ने एक बार मुझसे कहा था, “अगर आपके पास स्किल हैं, तो उन्हें समाज को बेहतर बनाने के लिए उपयोग करें, अन्यथा वही कौशल जजमेंट डे पर आपके गले का फंदा बन जाएंगे.”
—खालिद सैफुल्लाह
पिछले साल चुनाव आयोग के सर्वे में पाया गया था कि अकेले उत्तराखंड में दो लाख मतदाता ‘गायब’ हैं और पूरे भारत में 2019 के लोकसभा चुनावों की रिपोर्ट बताती है कि यह संख्या 30 करोड़ तक थी — जिनमें ज्यादातर शहरी क्षेत्रों के लोग, युवा मतदाता, प्रवासी, महिलाएं और मुस्लिम शामिल थे.
यही कारण है कि सैफुल्ला हाल ही में भारत जोड़ो अभियान के प्रतिनिधियों से मिलने के लिए दिल्ली में थे, जो “संवैधानिक मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थानों की रक्षा और प्रचार” के लिए गठित एक नागरिक समूह है.
भारत जोड़ो अभियान की सदस्य सामाजिक कार्यकर्ता कविता कुरुगांती ने कहा, “हमने लोगों को रजिस्टर्ड करने के लिए चुनाव आयोग ऐप का भी उपयोग किया है, लेकिन यह ठीक से काम नहीं करता है. इसका उपयोग करना मददगार होगा.” उन्होंने कहा, “सहयोग के लिए बातचीत अभी भी जारी है, लेकिन यह सही दिशा में एक कदम है. ऐसी और पहल की ज़रूरत है.”
ऐप डेवलपर, एक्टिविस्ट, राजनेता सैफुल्लाह को पहचानना मुश्किल है. वे सब एक में समाहित हैं, लेकिन उनके भागों के योग से भी बड़ा है.
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‘लापता मतदाताओं’ को मुफ्त राशन के लिए ऐप
जब भी कार्रवाई का आह्वान होता है, खालिद सैफुल्लाह मैदान में उतर जाते हैं. वे एक हॉट-बटन मुद्दे की पहचान करते हैं, और ज़मीनी स्तर पर समुदायों और कार्यकर्ताओं की मदद करने के लिए ऐप लेकर आते हैं.
सैफुल्लाह की ऐप यात्रा 2007 में मुसलमानों को स्टडी मटेरियल में मदद करने के साथ शुरू हुई, जब वे एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के रूप में Google इंडिया में शामिल हुए. उन्होंने बताया, “मैं स्टूडेंट्स को लेक्चर के लिए नहीं ले जा सकता, लेकिन मैं उनके लिए उसे यहां ला सकता हूं.” ऐप, सेल्फ प्रैक्टिस एंड असेसमेंट सॉफ्टवेयर, आंध्र प्रदेश के इंजीनियरिंग एग्रीकल्चरल एंड मेडिकल कॉमन एंट्रेंस टेस्ट (ईएएमसीईटी) की तैयारी करने वाले स्टूडेंट्स के लिए था, लेकिन तब से बंद कर दिया गया है.
15 अगस्त 2016 को खान ने मुस्लिम स्वतंत्रता सेनानी ऐप लॉन्च किया, जिसे स्टूडेंट्स को 155 स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों, दुर्लभ चित्रों और क्विज़ के साथ पढ़ाने के लिए डिज़ाइन किया गया था, लेकिन यह ऐप भी अब उपलब्ध नहीं है. उसी साल उन्होंने तीन तलाक पर कानूनी लड़ाई के दौरान विधि आयोग को जवाब देने में मदद करने के लिए ऑल-इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (एआईएमपीएलबी) के लिए एक ऐप भी बनाया, जो बंद हो चुका है.
दिसंबर 2019 सैफुल्लाह के लिए एक महत्वपूर्ण मोड़ था. यह तब था जब अमित शाह ने नागरिकता संशोधन विधेयक (अब एक अधिनियम) पेश किया. इस डर के बीच कि मुसलमानों को निशाना बनाया जाएगा और उन्हें राज्यविहीन कर दिया जाएगा, लोगों ने जेल और हिरासत केंद्रों के बारे में बात करने के लिए सैफुल्लाह को फोन करना शुरू कर दिया.
सैफुल्लाह ने कहा, “शाह ने लोगों को बहुत बुरी तरह डरा दिया था. मैंने सोचा चलो अमित शाह को पूरी तरह गलत साबित कर दिया जाए. मेरा ऐप भारत को बचाएगा और इसलिए मैंने डिफीट एनआरसी ऐप बनाया.” ऐप, जो अब चालू नहीं है, यूजर्स को फैमिली ट्री बनाने, नागरिकता दस्तावेज़ को वेरीफाई करने और अपने निर्वाचन क्षेत्र में विरोध प्रदर्शनों के बारे में सूचित रहने में मदद करता था. इसने चैट सहायता, पुलिस अनुमति प्रपत्र, कानूनी सहायता और पोस्टर बनाने के लिए टूल्स भी दिए. 72,000 से अधिक लोगों ने ऐप को डाउनलोड किया था.
शाह प्रतिरोध का स्वरूप बदलना चाहते हैं. जब शेष भारत और दुनिया ने शाहीन बाग की महिलाओं पर ध्यान देना शुरू किया जो नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ प्रदर्शन कर रही थीं, तो उन्होंने उनके नाम पर एक और ऐप लॉन्च किया.
(मिसिंग वोटर्स ऐप) के जरिए से मैं मलिन बस्तियों में रहने वाली अधिकांश महिलाओं को नामांकित करने में मदद करने में सक्षम थी जो शिवडी में चुनावी लिस्ट से बाहर थीं. लोकतंत्र में सभी की आवाज़ महत्वपूर्ण है. और कोई भी छूटना नहीं चाहिए
—स्मिता चौधरी, कांग्रेस नेता
अपने डिटेल्स में अब बंद हो चुके अंग्रेज़ी, हिंदी और उर्दू में शाहीन बाग ऐप ने दावा किया है कि इसमें “100 से अधिक लेख” हैं जो सैफुल्लाह ने 2014 से लिखे हैं, वीडियो और इंटरव्यू साथ ही एक ‘ask me’ फीचर भी है. महामारी के दौरान, उन्होंने लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के लिए राशन तक पहुंचाने और अपने पड़ोस में किराना स्टोर और किराने की दुकानों से जुड़ने के लिए मुफ्त राशन ऐप लॉन्च की, जिसे अख़बारों के स्थानीय संस्करणों में कवर किया गया था.
कार्रवाई के लिए उनके कई आह्वान सोशल डेटा इनिशिएटिव्स फोरम (एसआईडीएफ) के बैनर तले होते हैं, जहां वह निदेशकों में से एक हैं. बच्चों को स्कॉलरशिप प्रदान करने और बाढ़ राहत कार्य करने जैसी पहलों के अलावा, एसआईडीएफ डेटा-संचालित रिपोर्ट भी जारी करता है. पिछले साल इसने एक रिपोर्ट जारी की थी जिसमें कहा गया था कि हैदराबाद में 12वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा में असफल होने वाले 40 प्रतिशत छात्र मुस्लिम थे.
लेकिन जिस डेटा ने सभी को चर्चा में ला दिया, वो यह निष्कर्ष था कि 12.7 करोड़ लापता मतदाताओं में से 3 करोड़ मुस्लिम और 4 करोड़ दलित थे. यह 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले था और इसकी रिलीज़ का समय बिल्कुल सही था. इसे न केवल राष्ट्रीय मीडिया, बिजनेस स्टैंडर्ड और टाइम्स ऑफ इंडिया में जगह मिली बल्कि अल जज़ीरा, फॉरेन पॉलिसी और अरब न्यूज़ जैसे अंतरराष्ट्रीय प्रेस ने भी इसे कवर किया.
इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सैफुल्ला और उनके डेटा विश्लेषकों की टीम ने चुनाव आयोग की वोटर्स लिस्ट के खिलाफ जनगणना के आंकड़ों से एकल मतदाता परिवारों की जांच की. उन्होंने सामान्य उपनामों का इस्तेमाल किया और पाया कि मुस्लिम और दलित परिवारों में से 17 प्रतिशत परिवारों में केवल एक ही मतदाता था.
साथ ही, सैफुल्लाह ने उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तराखंड के 10 विधानसभा क्षेत्रों में ज़मीनी सर्वे के लिए गैर सरकारी संगठनों के साथ भी साझेदारी की. वहां, स्वयंसेवकों ने दावा किया कि उन्हें वैध मतदाता कार्ड वाले ऐसे लोग मिले हैं जिनके नाम चुनाव सूची में नहीं थे.
सैफुल्लाह ने 2019 में फॉरेन पॉलिसी को दिए एक इंटरव्यू में कहा, “इन (मुस्लिम और दलित) समुदायों में शिक्षा और सक्रियता की कमी है. किसी को यह देखने की ज़हमत नहीं है कि उनका नाम चुनावी लिस्ट में है या नहीं.” वे जोर देकर कहते हैं, 2023 में थोड़ा बदलाव आया है, लेकिन “अभी भी बहुत काम किया जाना बाकी है.”
मिसिंग वोटर्स ऐप नागरिकों के लिए उनकी जाति या धर्म की परवाह किए बिना उपयोगी साबित हुआ. मुंबई की 40-वर्षीय कांग्रेस नेता स्मिता चौधरी ने कहा कि उन्होंने 2019 में लोकसभा चुनाव से पहले शिवड़ी (जिसे सेवरी भी कहा जाता है) विधानसभा क्षेत्र से 3,000 लोगों का नामांकन करने के लिए ऐप का इस्तेमाल किया था.
उन्होंने कहा, “बहुत से लोग उनके नाम अभी भी इस लिस्ट से गायब हैं और वे अपना नाम रजिस्टर्ड कराने के लिए मेरे पास आते हैं.” चौधरी की इच्छा है कि वे विधानसभा चुनाव से पहले ऐप के एक वर्किंग एडिशन का इस्तेमाल कर पाएं.
कांग्रेस नेता, जिन्होंने आखिरी बार 2009 में शिवडी विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा था और तब से अभियानों में सहायता की है, को ऐप का यूज़ करना अपेक्षाकृत आसान लगा. इसमें ‘मतदाता पहचान पत्र के लिए आवेदन करें’, ‘मतदान केंद्र द्वारा छूटे हुए मतदाता’, ‘मतदाता पहचान पत्र सुधारें’ इत्यादि जैसे टैब थे. एक बार पंजीकरण प्रक्रिया पूरी हो जाने पर, ऐप यूजर्स की स्क्रीन पर स्वयंसेवकों की एक लंबी लिस्ट दिखाई देती है. सबसे नीचे, ऐप यूजर्स को स्वयंसेवक बनने और दूसरों को राष्ट्रीय डेटाबेस में नामांकित होने में मदद करने का विकल्प प्रदान करता है.
चौधरी ने कहा, “इसके जरिए से मैं झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वाली उन अधिकांश महिलाओं को नामांकित करने में मदद करने में सक्षम हुईं जो चुनावी लिस्ट से बाहर थीं. लोकतंत्र में सभी की आवाज़ महत्वपूर्ण है और किसी को भी नहीं छोड़ा जाना चाहिए.”
गूगल, डेल और बाद में इनोवा सॉल्यूशंस में काम करने के बाद, सैफुल्लाह आसानी से कॉर्पोरेट सीढ़ी पर चढ़कर लाखों रुपये प्रति माह कमा सकते थे.
कौशल, उद्देश्यों के बारे में संदेह
मिसिंग वोटर्स ऐप की वायरल सफलता ने सैफुल्लाह को काफी पहचान दिलाई है, लेकिन हर कोई उसकी संख्या या ऐप से आश्वस्त नहीं है, जिनमें से अधिकांश अब बंद हो चुके हैं. पिछले कुछ साल में सॉफ्टवेयर इंजीनियर राजनीतिक दलों के साथ काम कर रहे हैं, नेताओं से बातचीत कर रहे हैं और तेज़ी से कार्यकर्ता क्षेत्र में प्रवेश कर रहे हैं.
सैफुल्ला जो कर रहे हैं वो केवल डेटा का अंश निकाल रहा है, लेकिन सवाल यह है कि वो डेटा की व्याख्या कैसे कर रहे हैं? उनसे सवाल पूछने वाला कोई नहीं है
—बेंगलुरु स्थित नीति विश्लेषक
बेंगलुरु के 59-वर्षीय नीति विश्लेषक और शिक्षाविद्, जो अपने करियर में एक समय सलाहकार क्षमता में मनमोहन सिंह सरकार से जुड़े थे, ने कहा, “वे एक एजेंडा-चालित व्यक्ति हैं.” उन्होंने सैफुल्लाह के काम और उनकी डेटा व्याख्या पर सवाल उठाए और इसे “अनैतिक” तक कह दिया. उन्होंने तर्क दिया कि हालांकि, सैफुल्ला के पास ऐप्स विकसित करने के लिए सॉफ्टवेयर इंजीनियरिंग कौशल है, लेकिन उनके करियर पथ में बड़े डेटा में प्रशिक्षण का संकेत देने वाला कुछ भी नहीं है.
नाम न छापने की शर्त पर नीति विश्लेषक ने कहा, “सैफुल्ला जो कर रहे हैं वो केवल डेटा का अंश निकाल रहा है, लेकिन सवाल यह है कि वो डेटा की व्याख्या कैसे कर रहे हैं? उनसे सवाल पूछने वाला कोई नहीं है.” वे बताते हैं कि डेटा व्याख्या के लिए स्पेशल स्किल की ज़रूरत होती है और उनकी कमी से डेटा की गलत व्याख्या हो सकती है, जैसे महत्व को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करने के लिए छोटे नमूना आकार का उपयोग करना, या धारणा को प्रभावित करने के लिए संख्यात्मक डेटा में हेरफेर करना.
उन्होंने कहा, “यह शिक्षाविदों या शोधकर्ताओं का काम है.”
यह देखते हुए कि उन्होंने विपक्षी दलों के साथ सहयोग किया है, सैफुल्लाह को भी आलोचना का सामना करना पड़ा है कि उनकी राजनीतिक संबद्धताएं पानी को गंदा कर देती हैं, लेकिन उनका कहना है कि उन्होंने सीखा है कि उनकी मदद के बिना “समस्याओं का समाधान असंभव है”.
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परिवर्तन के लिए कोडिंग, पैसों के लिए नहीं
2002 में जवाहरलाल नेहरू टेक्नोलॉजिकल यूनिवर्सिटी, आंध्र प्रदेश से इंजीनियरिंग की डिग्री हासिल करने वाले सैफुल्लाह नकारात्मक बातों को खारिज कर देते हैं. वे क्रेडिट या आलोचना के लिए नहीं खेल रहे हैं.
गूगल, डेल और बाद में इनोवा सॉल्यूशंस में काम करने के बाद, वे आसानी से कॉर्पोरेट सीढ़ी पर चढ़कर लाखों रुपये प्रति माह कमा सकते थे. उन्होंने कहा, “लेकिन जब से उन्हें याद है, वे अपने समुदाय के लिए कुछ और करना चाहते थे.”
वे आईटी क्षेत्र और एसटीईएम क्षेत्रों में अधिक मुसलमानों को देखना चाहते हैं. उन्होंने कहा, “मुसलमानों के लिए आईटी क्षेत्र में नौकरी पाना मुश्किल है.”
आंध्र प्रदेश के कुरनूल में पले-बढ़े, वे अपने नाना सैयद मजहर हुसैन, जो एक प्रतिष्ठित वकील थे, से प्रेरित थे. अपने दादा को सामाजिक न्याय के मामलों को प्राथमिकता देते हुए देखने का युवा सैफुल्लाह पर गहरा प्रभाव पड़ा.
सैफुल्लाह ने कहा, “मेरे दादाजी ने एक बार मुझसे कहा था, अगर आपके पास स्किल हैं, तो उन्हें समाज को बेहतर बनाने के लिए इस्तेमाल करें, अन्यथा वही स्किल कयामत के दिन आपके गले का फंदा बन जाएंगे.” ये शब्द आज भी सैफुल्लाह के भीतर गहराई से गूंजते हैं. उन्होंने कहा, “मैं अपने काम के जरिए अपने दादाजी को ज़िंदा रखना चाहता हूं.” सैफुल्लाह के परिवार में उनकी पत्नी और दो बेटियां हैं.
सैफुल्लाह मेज को हाथ से थपथपाते हुए कहते हैं, “खेल जारी रखें, मैं यहां अल्पसंख्यक समुदाय को बचाने के लिए हूं और मैं आपका विपक्ष हूं.”
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