गोवा में IFFI 2023 में अपनी नई हिंदी ओटीटी फिल्म कड़क सिंह के प्रीमियर के बाद, बंगाली फिल्ममेकर अनिरुद्ध रॉय चौधरी को कोलकाता के टॉलीगंज क्लब में अपने कैडी से मिली एक सलाह याद आई. गोल्फ खेलने के उनके शुरुआती प्रयासों के दौरान, उनके कैडी उनसे गेंद को टकराने की आवाज़ सुनने के लिए कहते थे – यह एक संकेतक था कि कनेक्शन बन गया है या नहीं. जब 58 वर्षीय रॉय चौधरी ने बुधवार रात कड़क सिंह के अंतिम दृश्य के बाद दर्शकों की तालियां सुनीं, तो उन्हें पता चल गया कि उन्होंने एकदम सही शॉट लगाया है.
ऋत्विक घटक, सत्यजीत रे, मृणाल सेन, तपन सिन्हा युग के गुजरने के बाद बंगाली सिनेमा ने पश्चिम बंगाल के बाहर शोर मचाना बंद कर दिया था. निस्संदेह, रितुपर्णो घोष थे, जिन्होंने इस काम को आगे बढ़ाया और ऐसी फिल्में बनाईं, जिन्होंने दर्शकों के एक बड़े समूह को अपनी ओर आकर्षित किया. लेकिन फिल्ममेकर्स की वर्तमान पीढ़ी उन्हें दोहराने में सक्षम नहीं है.
मित्रों और सहयोगियों के लिए अनिरुद्ध रॉय चौधरी या टोनी-दा अपवाद हैं. वह बंगाली और हिंदी दोनों फिल्म उद्योगों में आसानी से और अपनी बंगाली पहचान से समझौता किए बिना काम करते हैं.
गोवा से फोन पर रॉय चौधरी कहते हैं, “मुझे दोपहर के भोजन के लिए चावल, बाउलिर दाल, पांच मसाला तोरकरी और काकरोल भाजा मिल जाए तो मैं संतुष्ट हो जाता हूं. यह भोजन के साथ, संस्कृति के साथ, कोलकाता के साथ जुड़ाव है जो मेरे अंदर एक रचनात्मक रस को प्रवाहित करता है.”
बंगाली और हिंदी फिल्म उद्योगों के साथ उनकी सहजता उन्हें ऐसा सिनेमा बनाने की इजाजत देता है जो अंतरराष्ट्रीय दर्शकों से बात करता है और इससे उन्हें ग्लोबल बंगाली उपनाम मिला है. कोलकाता स्थित फिल्म समीक्षक भास्वती घोष, जिन्होंने शुरू से ही उनके करियर पर नज़र रखी है, का कहना है कि फिल्ममेकर बंगाल की रचनात्मक संवेदनशीलता का सबसे अच्छा उपयोग करते हैं और इसे उन कहानियों के साथ जोड़ते हैं जिनमें अखिल भारतीय अपील होती है.
घोष कहते हैं, “यह सच में एक सराहनीय काम है कि एक बंगाली फिल्म निर्माता अपने काम का विस्तार करने में पूरी तरह से सफल रहा है. उनकी फिल्म कड़क सिंह के ट्रेलर ने पूरे भारत में जो उत्साह पैदा किया, वह वास्तव में गर्व की बात है. साथ ही यह तथ्य भी है कि भारत में अमिताभ बच्चन से लेकर पंकज त्रिपाठी जैसे बड़े अभिनेताओं के साथ काम करना रॉय चौधरी को और उत्साहित करता है.”
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
उनकी 2016 की फिल्म पिंक एक अव्यवस्थित समाज के बारे में बात करती है जहां महिलाओं को सहमति के बारे में सिखाने के लिए पुरुषों को अदालत में ले जाना पड़ता है और “नहीं का मतलब नहीं” की बात कहनी पड़ती है, तो कड़क सिंह एक अव्यवस्थित परिवार के बारे में है जो किसी तरह एक साथ रहने के लिए प्रबंधन करने की कोशिश करता है.
फिल्म निर्माता हमेशा जुड़ाव की तलाश में रहते हैं- अच्छी और सम्मोहक कहानी बताने के लिए बिंदुओं को आपस में जोड़ने की कोशिश. और यही वह ‘कनेक्ट’ है जिसने उन्हें बांग्लादेशी अभिनेत्री जया अहसान को कड़क सिंह के नायक, पंकज त्रिपाठी, जो वित्तीय अधिकारी ए.के. श्रीवास्तव की भूमिका निभाते हैं, की प्रेमिका के रूप में कास्ट करने के लिए प्रेरित किया. वह कौशिक गांगुली की 2017 की बंगाली भाषा की फिल्म बिशोरजोन में अहसान के प्रदर्शन से प्रभावित थे. यह फिल्म बांग्लादेश में इचामती नदी के तट पर बहकर आए एक मुस्लिम व्यक्ति और उसे बचाने वाली हिंदू महिला के बीच की प्रेम कहानी पर बनी थी.
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रॉय चौधरी कहते हैं, “मैं उसके प्रदर्शन से अभिभूत हो गया और उसे एक टेक्स्ट मैसेज के माध्यम से बधाई दी. मैं तभी से उसके साथ काम करना चाहता था.” लेकिन उन्हें एक ऐसा किरदार ढूंढने में कुछ साल लग गए जिसके साथ उन्हें लगा कि केवल अहसान ही उस किरदार के साथ न्याय कर सकती हैं. उनका कहना है कि अधिकारी ए.के.श्रीवातव की प्रेमिका नयना की भूमिका अहसान से बेहतर कोई नहीं निभा सकता था.
उन्होंने कहा, “फिल्म भूलने की बीमारी और परस्पर विरोधी पहचानों के बारे में है. [श्रीवास्तव और नयना दोनों की] ये किरदार ऐसे अभिनेता की मांग करते हैं जिन्होंने अलग-अलग प्रकार के किरदार निभाकर अपने कौशल को निखारा है.”
हिंदी ओटीटी क्षेत्र में अहसान की शुरुआत एक अन्य बांग्लादेशी अभिनेता अज़मेरी हक बधोन द्वारा विशाल भारद्वाज की ओटीटी हिट खुफ़िया में तब्बू के प्रेमी की भूमिका निभाने के तुरंत बाद हुई. बधोन इस बात से खुश हैं कि एक और बांग्लादेशी अभिनेत्री हिंदी ओटीटी इंडस्ट्री में कदम रख रही हैं.
चौधरी कहते हैं, “मैंने अहसान को इसलिए कास्ट नहीं किया क्योंकि वह बांग्लादेशी है और उस देश के अभिनेता-अभिनेत्री को कास्ट करना एक चलन बनता जा रहा है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई अभिनेत्री चटगांव से है या सिनसिनाटी से. उन्हें भी अच्छी एक्टिंग आनी चाहिए.”
बधोन कहते हैं, “जया-आपा बांग्लादेश में एक बड़ा नाम है. वह हमारे लिए एक प्रेरणा रही हैं. हालांकि, उनके पास साबित करने के लिए कुछ भी नहीं है. बांग्लादेश और पश्चिम बंगाल दोनों के सिनेमा में अभिनय करने के बाद, अनिरुद्ध रॉय चौधरी की फिल्म में शानदार पंकज त्रिपाठी के साथ उनकी हिंदी फिल्म की शुरुआत बांग्लादेश फिल्म उद्योग के लिए अच्छी खबर है.”
वह आगे कहते हैं, “वह सीमाओं और भौगोलिक को बाधाओं को तोड़ कर आगे बढ़ रही हैं. और बड़ी संख्या में बांग्लादेशी कलाकार बंगाली और बॉलीवुड फिल्मों में बड़ी भूमिकाएं निभा रहे हैं. बांग्लादेशी ओटीटी प्लेटफॉर्म चोरकी के अब पश्चिम बंगाल में स्ट्रीमिंग के साथ सीमा पार और भी अधिक कंटेट देखने को मिलेगी.”
लेकिन रॉय चौधरी इसे एक चलता-फिरता चलन बताकर ख़ारिज कर देते हैं.
रॉय चौधरी कहते हैं, “मैंने अहसान को इसलिए नहीं चुना क्योंकि वह बांग्लादेशी है और उस देश के अभिनेताओं को कास्ट करना एक चलन बनता जा रहा है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई अभिनेत्री चटगांव से है या सिनसिनाटी से. बसे उनमें अच्छा प्रदर्शन करने की क्षमता होनी चाहिए.”
कड़क सिंह में दो अन्य महिला किरदार हैं जिसमें से एक संजना सांघी ने निभाए हैं जो मुंबई से हैं और दूसरी पार्वती थिरुवोथु केरल से हैं. उन्होंने आगे कहा, “एक अभिनेता या अभिनेत्री कहां से आता है या आती है यह अप्रासंगिक है. वे परिणाम क्या देते हैं बस यहीं मायने रखता है.”
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बंगाल से कभी दूर नहीं
फिल्म निर्माता यह स्वीकार करते हैं कि उनमें एक बांग्लादेशी भी है. विभाजन की संतान, उनके माता-पिता दोनों पूर्वी बंगाल से थे जो पहले पूर्वी पाकिस्तान और फिर बांग्लादेश बन गया. बड़े होते हुए, रॉय चौधरी ने अपने घर में बोली जाने वाली बांग्लादेशी बोली सुनी थी जो कोलकाता की बोली से बहुत अलग थी, जो उन्होंने बाहर सुनी थी.
उन्हें खुशी है कि ओटीटी ने पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश के बीच की भौगोलिक सीमाएं मिटा दी हैं. खाने की आदतों से लेकर कलात्मक संवेदनाओं तक सर्वोत्कृष्ट बंगाली, टोनी-दा ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत 2006 की बंगाली फिल्म अनुरानन से की, जिसने बंगाली श्रेणी में सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म में राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार जीता था.
यह दो विवाहित जोड़ों के रिश्तों और आधुनिक जीवन की जटिलताओं की पड़ताल करता है.
रॉय चौधरी कहते हैं, “यह एक ऐसी फिल्म है जो विवाहेतर संबंधों को छूती है लेकिन ऐसी संकीर्ण परिभाषाओं से परे जाकर कहती है कि इसमें कोई लेबल नहीं है, केवल प्यार है.”
जब अनुरानन रिलीज़ हुई, तो कुछ आलोचकों ने कहा कि फिल्म इतनी अंग्रेजी भाषा में रची गई थी कि बंगाली दर्शकों को पसंद नहीं आ रही थी. फिल्म के पात्र अंग्रेजी में बात करते थे और उनकी जीवनशैली स्पष्ट रूप से ऊपरी स्तर की थी. यह तथ्य कि इतने सालों बाद भी फिल्म के बारे में बात की जाती है, उन्हें गलत साबित करता है.
फिल्म निर्माता कहते हैं, “सिर्फ कोलकाता की भीड़ ही नहीं, मैं छोटे शहरों के लोगों से भी मिला हूं जो अभी भी फिल्म की पंक्तियां उद्धृत करते हैं.”
उन्होंने तीन राष्ट्रीय पुरस्कार जीते हैं. साथ ही अरविंदन पुरस्कारम पुरस्कार, एक अंतर्राष्ट्रीय भारतीय फिल्म अकादमी पुरस्कार, दो ज़ी सिने पुरस्कार, दो ईटीसी बॉलीवुड बिजनेस पुरस्कार, एक स्टारडस्ट पुरस्कार और कई अन्य पुरस्कारों की एक सम्मानजनक सूची उनके पास है.
घोष कहते हैं, “रॉय चौधरी ने दिखाया है कि एक बंगाली फिल्म निर्माता के लिए अपनी बंगाली संवेदनाओं को जाने न देते हुए बंगाल की सीमाओं से परे जाकर राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाना संभव है.”
पिंक के बाद, रॉय चौधरी ने यामी गौतम के साथ थ्रिलर लॉस्ट का निर्देशन किया, जिसमें राहुल खन्ना और पंकज कपूर ने अभिनय किया. हालांकि, उनका दिल अभी भी कोलकाता में है. काम के कारण उन्हें ज्यादातर समय मुंबई में रहना पड़ता है, लेकिन वह “कोलकाता की कमी” को पूरा करने के लिए हमेशा उस शहर की ओर भागते हैं जिसे वह अपना घर कहते हैं.
वह कहते हैं, “हवा, खाना, अड्डा और वहां के लोग मुझे मेरी फिल्मों के लिए कंटेट देते हैं. मैं हमेशा एक और बंगाली फिल्म बनाने के लिए कहानी की तलाश में रहता हूं.”
बॉलीवुड में अपनी सफलता के बावजूद, रॉय चौधरी ने कोलकाता या उसके सिनेमा को पीछे नहीं छोड़ा है. यह उनकी कला, उनकी कहानियों को बताता है.
वह कहते हैं, “स्थानीय नया वैश्विक है. मैं यह सुनिश्चित करता हूं कि सीमाओं से परे सिनेमा बनाने के लिए मैं कभी भी संबंध न खोऊं.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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