हैदराबाद: जब प्रमथ सिन्हा इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस के संस्थापक डीन बने, तो उन्होंने पारंपरिक एकेडमिक तरीकों को एक तरफ रख दिया. मैकिन्से के पूर्व कंसल्टेंट सिन्हा ने खुद मैदान में उतरकर अपने कॉरपोरेट संपर्कों से बात की और छात्रों को व्यक्तिगत रूप से कोचिंग दी, ताकि उन्हें नौकरी मिल सके.
सिन्हा ने संस्थान के शुरुआती दिनों को याद करते हुए कहा, “एकेडमिक लोग मुझ पर सवाल उठाते थे कि मैं छात्रों के साथ बैठकर उनके रिज्यूमे लिखने में मदद क्यों कर रहा हूं.” उन्होंने कहा कि शुरुआत से प्रतिष्ठा बनाना आसान नहीं होता.
आज वे दिन बहुत पीछे छूट चुके हैं. सिर्फ दो दशक से थोड़ा ज्यादा समय में इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस हैदराबाद के बाहरी इलाके में शुरू हुआ एक साहसिक प्रयोग रहा है, जो अब हैदराबाद के साथ-साथ मोहाली में भी है, और दुनिया के सबसे तेजी से उभरते मैनेजमेंट स्कूलों में शामिल हो गया है. फाइनेंशियल टाइम्स ने इसे देश का बेस्ट बताया है, जबकि लिंक्डइन ने इसे दुनिया में पांचवां स्थान दिया है.

आईआईएम के मुकाबले ISB के फाउंडर्स ने एक बिल्कुल अलग मॉडल पर दांव लगाया. इसमें दुनिया के शीर्ष संस्थानों से आने वाले विजिटिंग फैकल्टी, अनुभवी पेशेवरों के लिए एक साल का कार्यक्रम और विविध पृष्ठभूमि के छात्रों पर जोर दिया गया. आज भी यह संस्थान लगभग एक स्टार्टअप की तरह काम करता है और लगातार नवाचार करता रहता है. इसी साल इसके कोर्सिस में बड़ा बदलाव किया गया.
सिन्हा ने कहा, “हम आईआईएम से सीधे मुकाबला नहीं करना चाहते थे, बल्कि अपनी अलग पहचान बनाना चाहते थे.” उन्होंने माना कि कई मेधावी छात्र आईआईएम में दाखिला नहीं ले पाते और उन्हें एक अच्छे विकल्प की जरूरत होती है. उन्होंने कहा, “विदेश जाने में लागत भी ज्यादा होती है और वहां संस्थानों की विदेशी छात्रों को लेने की भी एक सीमा होती है.”
आज ISB का फॉर्मूला सफल साबित हो रहा है. इसके पूर्व छात्र बोर्डरूम और स्टार्टअप हब में अहम भूमिकाओं में हैं. इसके फैकल्टी दिल्ली में नीति बहसों को दिशा दे रहे हैं. उद्योग और सरकार के साथ इसकी साझेदारियों ने इसके प्रभाव को और गहरा किया है.
आईआईएम बेंगलुरु के प्रोफेसर और पूर्व निदेशक ऋषिकेश कृष्णन ने कहा, “जब ISB की शुरुआत हुई थी, तो सच कहूं तो हममें से कई लोग इसके भविष्य को लेकर संदेह में थे, लेकिन वह पूरी तरह गलत साबित हुआ.” उन्होंने स्कूल के रिसर्च पर जोर, अंतरराष्ट्रीय मान्यता और एक साल के एमबीए कार्यक्रम को इसका श्रेय दिया.
हालांकि, दोनों संस्थान एक-दूसरे से सीखते भी नजर आते हैं. आईआईएम ने रिसर्च और अंतरराष्ट्रीय रैंकिंग पर अपना ध्यान बढ़ाया है, जबकि ISB ने हाल ही में दो साल का एमबीए कार्यक्रम शुरू किया है.
और जैसे ही संस्थान उस दौर में प्रवेश कर रहा है, जिसे मौजूदा डीन मदन पिल्लुतला “प्रभाव का दशक” कहते हैं, ISB अब यह साबित करने की कोशिश नहीं कर रहा कि वह ग्लोबल लीग में है, बल्कि यह तय करने में लगा है कि एक भारतीय बिजनेस स्कूल क्या हो सकता है.
एक्सपेरिमेंटल सीख
इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस अपनी उपलब्धियों पर आराम नहीं कर सकता. एआई एकेडमिक दुनिया को तेजी से बदल रहा है और पुराने फायदों को खत्म कर रहा है. ऐसे में दीपा मणि ने यह सवाल उठाया कि आखिर स्कूल को सच में अलग क्या बनाएगा.
इसका जवाब एक पुराने लेकिन अब और जरूरी हो चुके विचार में मिला, अनुभव आधारित सीख.
मणि ने कहा, “हम इस नतीजे पर पहुंचे कि दशकों से हो रही बहुत सी पढ़ाई अब सामान्य और एक जैसी हो गई है.” उन्होंने कहा कि डिजिटल लर्निंग के कारण बहुत सी जानकारी पहले से ही ऑनलाइन उपलब्ध है. “अगर हमें प्रासंगिक बने रहना है, तो हमें कक्षा में ऐसा अनुभव देना होगा, जो कहीं और न मिल सके.”
इसके लिए वास्तविक दुनिया के हालात को कक्षा में लाना जरूरी था. जैसे कोई छात्र पर्यावरणीय आपदा से निपट रहे एक सीईओ की भूमिका निभाए, वर्चुअल रियलिटी के जरिए भारत में अमेजन की लास्ट माइल डिलीवरी चेन का अध्ययन करे, या इटली की बोकोनी यूनिवर्सिटी और स्पेन की ESADE बिजनेस स्कूल में वैश्विक इमर्शन प्रोग्राम में हिस्सा ले.
मणि ने कहा, “हमारे सभी 800 छात्रों को बिजनेस के संदर्भ की उतनी ही गहरी समझ चाहिए थी, जितनी उसकी सामग्री की.” उन्होंने इसे एक “बड़ी संचालन और शिक्षण संबंधी चुनौती” बताया.
लगभग रातों-रात टीम को लीडरशिप चैलेंज, स्टडी ट्रेक और कंपनियों के साथ प्रोजेक्ट्स की योजना बनानी पड़ी. इसमें सॉवरेन वेल्थ फंड्स की स्टडी करने के लिए सऊदी अरब की यात्रा भी शामिल थी.
ISB में 105 के करीब कंपनियों के साथ 163 प्रोजेक्ट एक साथ चलते हैं. इनमें गूगल और अपोलो हॉस्पिटल्स जैसी कंपनियां शामिल हैं. ये कंपनियां छात्रों को वास्तविक बिजनेस समस्याएं देती हैं, जैसे किसी एफएमसीजी कंपनी की ब्रांडिंग समस्या या किसी पारिवारिक व्यवसाय को पेशेवर बनाना. गूगल में छात्र डिजिटल पब्लिक इंफ्रास्ट्रक्चर पर काम कर रहे हैं.
मणि ने कहा, “प्रोजेक्ट लाने की लॉजिस्टिक्स के अलावा हमें छह महीने तक उन्हें संभालना भी होता है.” उन्होंने बताया कि पहले छात्रों को उनकी पसंद के आधार पर किसी संगठन से जोड़ा जाता है. फिर पूरे प्रोजेक्ट और छात्र की प्रगति पर नजर रखनी होती है. उन्होंने कहा, “अगर पर्याप्त निगरानी नहीं होगी, तो हमें पता नहीं चलेगा कि सीख हो भी रही है या नहीं. इसलिए हमें एक शिक्षण ढांचा तैयार करना पड़ा.”
अनुभव आधारित सीख कोई नई अवधारणा नहीं है, लेकिन ऑनलाइन शिक्षा के बढ़ने के साथ दुनिया भर के बिजनेस स्कूल इसे अपनी खास पहचान के तौर पर इस्तेमाल कर रहे हैं. इसी वजह से मणि ने एकेडमिक दुनिया के एक बड़े संस्थान से मदद ली.
उन्होंने कहा, “मैंने हार्वर्ड बिजनेस स्कूल से बात की, जहां सभी 800 छात्रों के लिए फील्ड इमर्शन होता है. मैं समझना चाहती थी कि इतने बड़े स्तर पर यह कैसे किया जाता है.” इसके बाद उन्होंने कुछ पहलुओं को पहले से मानकीकृत करना सीखा. सभी छात्र अलग-अलग प्रोजेक्ट में जाने से पहले टीम डायनैमिक्स, डिजाइन थिंकिंग और डेटा विश्लेषण से गुजरते हैं.
कॉलेज ने इन कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने के लिए एक नई टीम बनाई, LAB यानी लर्निंग थ्रू एक्शन इन बिजनेस, जो ISB में ऑफिस ऑफ एक्सपीरिएंशियल लर्निंग की तरह काम करती है. पाठ्यक्रम समीक्षा के बाद एक और कार्यालय बनाया गया, जो फैकल्टी को सशक्त बनाने और सीखने के नतीजों का अध्ययन करने पर केंद्रित है.
सूचना प्रणाली के प्रोफेसर विशाल करूंगुलम LAB और सेंटर फॉर लर्निंग एंड टीचिंग एक्सीलेंस दोनों का नेतृत्व करते हैं. स्कूल के मुख्य एट्रियम में, जहां छात्र कक्षाओं और कैफेटेरिया के बीच आते-जाते रहते हैं, गूगल और माइक्रोसॉफ्ट के पूर्व इंजीनियर करूंगुलम ISB की टी-शर्ट और काले फ्रेम का चश्मा पहने बैठे दिखते हैं.
उन्होंने कहा, “लोग कैसे सीखते हैं और कंटेंट कैसे इस्तेमाल करते हैं, यह बदल रहा है.” उन्होंने बताया कि CLTE की भूमिका सीखने के बदलते तरीकों पर रिसर्च करना और फैकल्टी को इन बदलावों के लिए तैयार करना है. उन्होंने कहा, “फिलहाल हम फैकल्टी के साथ एआई के सात अलग-अलग उपयोग मामलों के पायलट चला रहे हैं.”
एआई ISB में पढ़ाने के तरीके को मूल रूप से बदल रहा है. यह कक्षा की जगह नहीं ले रहा, बल्कि कक्षा के भीतर होने वाली सीख को और गहरा बना रहा है. अब छात्र ‘एआई केस कंपैनियन’ के साथ काम करते हैं, जो किसी 20 पन्नों के बिजनेस केस को गहराई से समझता है, मुख्य पात्र की तरह व्यवहार करता है और छात्रों को कक्षा में जाने से पहले सवाल पूछने का मौका देता है.

जल्द ही IDBI बैंक के टर्नअराउंड या बिहार में शराबबंदी पर केस स्टडी में प्री-रीडिंग सामग्री पॉडकास्ट के रूप में होगी. इसके साथ एक एआई बॉट भी होगा, जो छात्रों को बैलेंस शीट, बिजनेस प्लान और बिहार के सामाजिक व आर्थिक संदर्भ को समझने में मदद करेगा, वह भी कक्षा में कदम रखने से पहले.
करूंगुलम ने कहा, “अभी हमारे पास करीब नौ या दस फैकल्टी हैं जो यह प्रयोग कर रहे हैं. अगले टर्म में हम इसे सभी फैकल्टी तक बढ़ा रहे हैं.”
ISB के पाठ्यक्रम संबंधी प्रयासों का असर छात्रों की पसंद पर भी दिख रहा है. 24 वर्षीय जनावी चेरुकु को आईआईएम की शिक्षण पद्धति ज्यादा पारंपरिक लगी, जबकि ISB में जनरेटिव एआई और सोशल मीडिया मार्केटिंग जैसे कोर्स पर ज्यादा जोर था.
चेरुकु ने कहा, “मुझे पसंद आया कि इसका पाठ्यक्रम पश्चिमी देशों की झलक देता है.” उन्होंने ISB में आने से पहले एक्सेंचर में ह्यूमन रिसोर्सेज में काम किया था. उन्होंने कहा, “ये नए जमाने की अवधारणाएं पाठ्यक्रम में शामिल हो रही थीं, जो मेरे लिए अहम थीं.”
इतिहास और शुरुआती रणनीति
आज हैदराबाद की तस्वीर ISB के बिना सोचना मुश्किल है. जब 1999 में इसकी नींव रखी गई थी, तब गाचीबाउली इलाका ज्यादातर खाली जमीन और गांव जैसा था. आज संस्थान के आसपास माइक्रोसॉफ्ट, इंफोसिस और विप्रो के दफ्तर हैं, जो सभी ISB रोड पर स्थित हैं. कभी शहर का शांत बाहरी इलाका अब एक मजबूत बिजनेस कॉरिडोर में बदल चुका है.
लेकिन संस्थान की मूल योजना हैदराबाद की नहीं थी.
प्रमथ सिन्हा ने कहा, “शुरुआत में विचार IIT दिल्ली में एक मैनेजमेंट स्कूल बनाने का था.” उन्होंने अपनी किताब ‘एन आइडिया हूज़ टाइम हैज़ कम’ में इस इंस्टीट्यूट की शुरुआत के बारे में विस्तार से बताया है. उन्होंने कहा, “वहीं से यह एक निजी और स्वतंत्र मैनेजमेंट स्कूल के रूप में विकसित हुआ.”
जब संस्थापकों ने जमीन तलाशनी शुरू की, तो सबसे स्वाभाविक विकल्प देश की व्यावसायिक राजधानी मुंबई थी. स्कूल के अधिकतर बोर्ड सदस्य भी वहीं से थे और टीम ने नवी मुंबई में एक जगह तय कर ली थी.
सिन्हा ने कहा, “अचानक जब हम जमीन के सौदे को अंतिम रूप देने वाले थे, तो महाराष्ट्र सरकार ने फैकल्टी के लिए 50 प्रतिशत आरक्षण, स्टाफ के लिए 100 प्रतिशत आरक्षण और छात्रों के लिए भी कुछ आरक्षण की मांग कर दी.” उन्होंने कहा कि इससे पूरी योजना अटक गई.
मुंबई का नुकसान हैदराबाद का फायदा बन गया. तब आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने समर्थन और जमीन देकर संस्थापक टीम को अपने साथ जोड़ लिया. सिन्हा ने कहा, “वह पूरी तरह गंभीर थे. हमने जोखिम लिया और हैदराबाद आ गए, जो एक बहुत सकारात्मक कदम साबित हुआ.”
राजा गुप्ता और अनिल कुमार ने मिलकर ISB की शुरुआत की थी, जो पहले मैकिन्से एंड कंपनी में सीनियर एग्जीक्यूटिव थे. ISB को देश के बड़े बिज़नेसमैन लोगों से सपोर्ट मिला. गोदरेज ग्रुप के चेयरमैन आदि गोदरेज, HCL के फाउंडर शिव नादर, बजाज ग्रुप के पूर्व चेयरमैन राहुल बजाज, HDFC के पूर्व चेयरमैन दीपक पारेख और इंफोसिस के फाउंडर एनआर नारायण मूर्ति सभी ने इस इंस्टीट्यूट को सपोर्ट किया.

लेकिन विश्व स्तरीय बिजनेस स्कूल बनाना सिर्फ जमीन हासिल करने से कहीं ज्यादा कठिन था. सिर्फ शानदार इमारत छात्रों को आकर्षित करने के लिए काफी नहीं थी.
सिन्हा ने कहा, “आपको शुरुआत से ही शीर्ष स्तर का होना पड़ता है. आप यह नहीं कह सकते कि पहले मारुति बनाएंगे और फिर एक दिन मर्सिडीज बनाएंगे.” उन्होंने समझाया कि गुणवत्ता को धीरे-धीरे बढ़ाया नहीं जा सकता. उन्होंने कहा, “लेकिन जब आपके पास कोई विश्वसनीयता ही न हो, तो पहले दिन से उत्कृष्ट गुणवत्ता कैसे स्थापित की जाए.”
एक मजबूत कार्यकारी बोर्ड बनाने और अपने निजी नेटवर्क से दानदाताओं और फंड देने वालों को जोड़ने के अलावा, सिन्हा ने विजिटिंग फैकल्टी मॉडल पर भरोसा किया. ISB उच्च गुणवत्ता के प्रोफेसरों को आकर्षित करना चाहता था. लेकिन वे दुनिया की नामी यूनिवर्सिटियों में अच्छी और सुरक्षित नौकरियां छोड़कर क्यों आते.
इस समस्या के समाधान के लिए संस्थापक टीम ने छोटे सत्रों के साथ संस्थान शुरू करने का फैसला किया, ताकि शीर्ष प्रोफेसर किसी और संस्थान में काम करते हुए यहां आकर पढ़ा सकें. सिन्हा ने कहा, “पहले साल में यही सबसे बड़ा नवाचार था. लेकिन आज भी फैकल्टी का बड़ा हिस्सा विजिटिंग फैकल्टी है.”
इससे एक मजबूत चक्र शुरू हुआ. बेहतरीन फैकल्टी से होनहार और महत्वाकांक्षी छात्र आए. उन्हें शीर्ष कंपनियों में नौकरियां मिलीं. उनकी सफलता से संस्थान की साख बढ़ी और और भी मजबूत छात्र आवेदन करने लगे.
सिन्हा ने कहा, “फिर विजिटिंग फैकल्टी को लगा कि हम गंभीर हैं और उन्होंने स्थायी रूप से यहां आने का फैसला किया. वहीं से हमने स्थायी फैकल्टी बनानी शुरू की.” उन्होंने इस मॉडल को ISB की सफलता की असली वजह बताया.
डीन मदन पिल्लुटला के लिए यह सफर एक तरह से पूरा चक्र बन गया है. वह पहले लंदन बिजनेस स्कूल में 22 साल तक पढ़ाते रहे और उसी दौरान ISB में विजिटिंग फैकल्टी के रूप में आए थे. उन्हें संगठनात्मक व्यवहार में विशेषज्ञता के कारण चुना गया था.
पिल्लुटला ने कहा, “कोई जोखिम नहीं था, क्योंकि हम सिर्फ छह हफ्ते के लिए यहां आते थे. यही इस मॉडल की खास बात थी.” उन्होंने कहा कि शुरुआती दो वर्षों में बिजनेस स्कूल में ‘रॉकस्टार एकेडमिक’ पढ़ा रहे थे.
शुरुआती वर्षों में पूर्व RBI गवर्नर रघुराम राजन ने फाइनेंस पढ़ाया. स्टैनफोर्ड के वी. ‘सीनू’ श्रीनिवासन ने मार्केटिंग पढ़ाई. अमेरिकी अर्थशास्त्री और व्हार्टन के प्रोफेसर हरबीर सिंह ने स्ट्रैटेजी सिखाई. प्रसिद्ध अकाउंटिंग प्रोफेसर बाला वी. बालचंद्रन ने छात्रों को कैश फ्लो और बैलेंस शीट समझाई. पिल्लुटला ने कहा, “मुझे नहीं लगता कि दुनिया में कहीं इससे बेहतर फैकल्टी रही होगी.”
सितंबर 2025 में, कैंपस के उद्घाटन के करीब 25 साल बाद, संस्थान ने एक नई चमकदार इमारत के दरवाजे खोले. पिल्लुटला का दफ्तर नए एक्जीक्यूटिव एजुकेशन बिल्डिंग की ओर देखता है, जो मोतीलाल ओसवाल फाउंडेशन के 100 करोड़ रुपये के परोपकारी योगदान से बनी है. इस नए केंद्र में आने वाले छात्रों के लिए बेडरूम भी हैं.
पिल्लुटला ने कहा, “पहले हमें कुछ लोगों को पास के होटलों में ठहराना पड़ता था और बस से लाना-ले जाना होता था.” उन्होंने कहा, “उन्हें पूरा कैंपस अनुभव नहीं मिल पाता था. अब वे देर तक काम करने के बाद सीधे अपने कमरे में जा सकते हैं.”
बिजनेस शिक्षा के बाजार में बड़ी हिस्सेदारी हासिल करने के लिए संस्थान कोई कसर नहीं छोड़ रहा है. महामारी के बाद कंपनियां फिर से अपस्किलिंग में निवेश कर रही हैं और ISB ने अपने मजबूत ब्रांड का पूरा फायदा उठाया है, जो पिछले दो दशकों में और मजबूत हुआ है.
रैंकिंग और रिसर्च
ISB की 2024 प्लेसमेंट रिपोर्ट के पहले पन्ने पर गर्व से फाइनेंशियल टाइम्स की ग्लोबल MBA रैंकिंग छपी है. इसमें भारत में पहला, एशिया में पांचवां और दुनिया में इकतीसवां स्थान दिखाया गया है. 2025 में संस्थान FT रैंकिंग में और ऊपर चढ़कर सत्ताइसवें स्थान पर पहुंच गया. हाल ही में लिंक्डइन की टॉप MBA प्रोग्राम्स की सूची में ISB को दुनिया में पांचवां स्थान मिला. रैंकिंग मायने रखती है, भले ही संस्थान की फैकल्टी इस पर बात करने से कतराती हो.
प्रमथ सिन्हा को इसमें कोई संकोच नहीं है.
उन्होंने कहा, “हम भारतीय रैंकिंग सिस्टम नहीं खेलना चाहते थे. पहले दिन से ही हमारा लक्ष्य वैश्विक स्तर पर शीर्ष रैंक पाना था.” उन्होंने कहा कि उन्होंने खासतौर पर फाइनेंशियल टाइम्स की रैंकिंग को देखा. “हमने FT की कसौटियों से उल्टा काम किया. हमने सिस्टम से खेल नहीं खेला, बल्कि कुछ क्षेत्रों को प्राथमिकता दी.”
उन क्षेत्रों में से एक MBA की सैलरी थी. रैंकिंग MBA से पहले और बाद की सैलरी में बढ़ोतरी को देखती है, जिसमें तीन साल बाद की स्थिति भी शामिल होती है. शुरुआती दिनों में सिन्हा ने मैकिन्से में अपने समय के कॉरपोरेट संपर्कों का इस्तेमाल किया.
सिटीबैंक, गोल्डमैन सैक्स और शीर्ष कंसल्टिंग फर्मों ने ISB के पहले बैच से छात्रों की भर्ती की. उन्होंने कहा, “हमने उद्योग के साथ साझेदारियों पर खूब मेहनत की, ताकि लोगों को अच्छी जगहों पर रखा जा सके. इससे छात्रों को उच्च वेतन वाली नौकरियां मिल सकीं.”
टीम ने एलुमनाई नेटवर्क भी तैयार किया, जो रैंकिंग का एक और मानदंड है. पूर्व छात्रों को मेंटर और इंटरव्यू लेने वालों के रूप में जोड़ा गया.
लेकिन मूल रूप से संस्थान रिसर्च के लिए पहचाना जाना चाहता है. संस्थान के मिशन स्टेटमेंट में कहा गया है कि प्रबंधन में रिसर्च आधारित ज्ञान का निर्माण और प्रसार करना है, जो एकेडमिक जगत, व्यवहार और नीति को प्रभावित करे.
पिल्लुटला ने कहा, “यह जरूरी है कि हम ज्ञान के निर्माता हों. यह स्कूल के डीएनए में है.” उन्होंने कहा कि रिसर्च रैंकिंग का हिस्सा है, लेकिन यह शुरू से ही प्राथमिकता रही है. यह रैंकिंग की वजह से नहीं, बल्कि इस विश्वास से प्रेरित था कि स्कूल में यह होना चाहिए.
विचार यह था कि भारत जैसी तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में, जहां सरकार को भी साक्ष्य आधारित नीति निर्माण के लिए मदद चाहिए, वहां पश्चिमी देशों की शीर्ष यूनिवर्सिटियों जैसी रिसर्च की कमी थी.
पिछले कुछ वर्षों में फैकल्टी ने भारत से जुड़े विषयों पर ज्यादा काम किया है. वे हैदराबाद में ग्लोबल कैपेबिलिटी सेंटर्स के उभार से लेकर सरकारी मंत्रालयों की नीति जरूरतों तक का अध्ययन कर रहे हैं.
अगस्त 2025 में संस्थान ने ISB Discover शुरू किया, जहां फैकल्टी की रिसर्च को आसान रूप में प्रकाशित किया जा रहा है, जैसे लेख, वीडियो और पॉडकास्ट. एकेडमिक रिसर्च अक्सर तकनीकी होती है और पेड जर्नल्स के पीछे बंद रहती है, जिससे आम लोगों तक नहीं पहुंच पाती.
पिल्लुटला ने कहा, “अगर हम यह सब करें और फिर अपनी रोशनी झाड़ियों में छिपा दें, तो इसका क्या मतलब है.” उन्होंने नए प्लेटफॉर्म की शुरुआत का कारण समझाया.
एलुमनाई नेटवर्क और साझा सीख
26 वर्षीय अनुराग रॉय खुद मानते हैं कि वह अकाउंटिंग में कमजोर हैं. ऐसे में वह अपने सहपाठियों पर निर्भर रहते हैं, जिनकी पढ़ाई कानून, इतिहास, इंजीनियरिंग, अर्थशास्त्र और लिबरल आर्ट्स में हुई है.
रॉय ने कहा, “अगर मैं सिर्फ दूसरे इंजीनियरों से दोस्ती करता, तो हम सब अकाउंटिंग में फेल हो जाते.” रॉय KPMG में साइबर सिक्योरिटी प्रोफेशनल रह चुके हैं और उनके पिता ISB के सीनियर एक्जीक्यूटिव प्रोग्राम से पासआउट हैं.
उनके आसपास, स्कूल के एट्रियम में बाकी छात्र हंस पड़े. वे कक्षाओं के बीच ISB आने के कारणों पर चर्चा कर रहे थे. हर छात्र भारत के अलग-अलग हिस्सों से आया है और उनकी पृष्ठभूमि भी उतनी ही विविध है, जैसे एक सिविल सर्वेंट, दर्शनशास्त्र का छात्र, साइबर सिक्योरिटी प्रोफेशनल और सरकारी सलाहकार.
पिल्लुटला ने हंसते हुए कहा, “मेरे जैसे फैकल्टी सदस्य के अहंकार को यह चोट पहुंचाता है, लेकिन छात्र एक-दूसरे से बहुत कुछ सीखते हैं.” उन्होंने कहा, “हम ऐसी कक्षाएं बनाते हैं जहां लोग एक-दूसरे से सीखते हैं.”
अगर ऑपरेशंस मैनेजमेंट की कक्षा में सिर्फ इंजीनियर हों, तो समस्या को देखने का नजरिया सीमित होगा. लेकिन उसमें कानून और इतिहास के छात्र जोड़ दिए जाएं, तो नई परतें खुल जाती हैं.

पिल्लुटला ने कहा, “शुरुआत से ही हमारा लक्ष्य ‘संतुलित उत्कृष्टता’ था.” उन्होंने बताया कि ISB सिर्फ ऊंचे GMAT स्कोर वाले छात्रों को नहीं देखता. वह ऐसे लोगों को भी चुनता है जो टेस्ट में अव्वल न हों, लेकिन जिनके पास कुछ खास हो, जैसे टाटा मोटर्स की फैक्ट्री में पहली महिला इंजीनियर होना.
यही विविधता ISB को IIM से अलग बनाती है, जहां इतनी लचीलापन नहीं है. ऋषिकेश कृष्णन ने कहा, “हम पूरी तरह CAT स्कोर, प्रवेश प्रक्रिया और सूचना के अधिकार कानून के अधीन हैं. हमें दिखाना होता है कि हर प्रवेश सख्ती से मेरिट सूची और अन्य मानकों के आधार पर हुआ है.”
रॉय के पास बैठे 32 वर्षीय विक्रांत ढिल्लों ने अलग वजह से ISB चुना. वह सिविल सर्वेंट हैं और अवकाश पर थे. वह बिजली मंत्रालय में काम कर रहे थे. उन्हें नीति निर्माण का अनुभव था और वह बिजनेस सीखना चाहते थे.
ढिल्लों ने कहा, “यह जरूरी था कि प्रोग्राम एक साल से ज्यादा का न हो, क्योंकि मुझे बुनियादी बातें पहले से आती थीं.” उन्होंने कहा, “लेकिन मैं चाहता था कि यहां और ज्यादा अंतरराष्ट्रीय छात्रों को प्रवेश मिले.” उन्हें स्कूल से स्कॉलरशिप भी मिली.
ढिल्लों अपने सहपाठियों के लिए गणित शिक्षक की भूमिका भी निभाते हैं, जो आपसी सीख को बढ़ावा देने का उदाहरण है. रॉय ने कहा, “रात दो बजे हम साथ में मैगी खाते हैं और वह 30 लोगों को पढ़ा रहे होते हैं.” उन्होंने कहा कि ISB छात्रों को समूह अध्ययन के लिए लेक्चर हॉल बुक करने की सुविधा भी देता है.
26 वर्षीय जिगिशा सिंह ने भी सहमति में सिर हिलाया. उन्होंने संस्थान को इसके एलुमनाई नेटवर्क की वजह से चुना. कई पूर्व छात्र मौजूदा पोस्ट ग्रेजुएट प्रोग्राम के छात्रों को मेंटर करते हैं. वर्षों में ISB ने ऐसे एलुमनाई तैयार किए हैं, जो बिजनेस, मीडिया और उद्यमिता में प्रमुख स्थानों पर पहुंचे हैं.
2006 बैच के नीरज अरोड़ा बाद में व्हाट्सऐप के चीफ बिजनेस ऑफिसर बने और फेसबुक द्वारा इसके अधिग्रहण में अहम भूमिका निभाई. उमंग कुमार ने CarDekho की सह-स्थापना की. मयंक कुमार ने upGrad को आगे बढ़ाने में योगदान दिया. उद्यमी और कंटेंट क्रिएटर अंकुर वारिकू भी इसी संस्थान से पढ़े हैं.
सिंह ने कहा, “जब मैं स्टार्टअप इंडिया में काम कर रही थी, तब उद्योग जगत के नेता ISB की खूब तारीफ करते थे. आज हम देखते हैं कि कई एलुमनाई बड़ी कंपनियों में CXO पदों पर काम कर रहे हैं.” वह फिलहाल संस्थान की एलुमनाई अफेयर्स काउंसिल की अध्यक्ष हैं.
बिजनेस स्कूल रैंकिंग को लेकर ज्यादातर छात्र हल्की मुस्कान के साथ बात करते हैं. वे मानते हैं कि रैंकिंग अहम है, लेकिन यही सब कुछ नहीं है. आखिर में फैसला इस बात से होता है कि ISB क्या दर्शाता है, एक तेजी से उभरता भारतीय बिजनेस स्कूल, जो वैश्विक दिग्गजों के सामने आत्मविश्वास के साथ खड़ा हो सकता है.
बस सिंह से पूछिए, जिन्होंने दूसरे नंबर के INSEAD को छोड़कर सत्ताईसवें नंबर के ISB को चुना.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: न शव, न सर्टिफिकेट—रूस के युद्ध में लापता भारतीय, जवाब के लिए मॉस्को तक भटक रहे हैं परिवार
