कटरा: वैष्णो देवी मंदिर के प्रवेशद्वार बाणगंगा में तीन दशक पुरानी चाय की दुकान के बाहर खड़े सोनू ठाकुर ने घोषणा की: “लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है”.
उनकी घोषणा ने दो दर्जन घोड़े वालों और दुकानदारों की भीड़ में एक स्वर को जन्म दिया: “हम बेरोज़गार हो जाएंगे, अगर रोपवे यह बनाएंगे”. ठाकुर घूम-घूमकर लोगों को रोपवे प्रोजेक्ट के बारे में जानकारी देते हैं. ऐसी छोटी-छोटी सभाओं में ही उन्हें समर्थन मिलता है.
वैष्णो देवी संघर्ष समिति (वीडीएसएस) के सदस्य ठाकुर 250 करोड़ रुपये की रोपवे प्रोजेक्ट के खिलाफ लोगों को संगठित कर रहे हैं. प्रोजक्ट का उद्देश्य ताराकोट मार्ग को सांझी छत से जोड़ना है, जिससे मंदिर तक 13 किलोमीटर की पैदल यात्रा को कम करके केवल छह मिनट में पूरा किया जा सकेगा, जो आमतौर पर 5-6 घंटे में पूरी होती है.
वीडीएसएस 60,000 दुकानदारों, घोड़ेवालों और पालकी ढोने वालों का प्रतिनिधित्व करता है और इसका गठन रोपवे प्रोजेक्ट की घोषणा की पृष्ठभूमि में किया गया था. वीडीएसएस का कहना है कि रोपवे प्रोजेक्ट हिंदू पौराणिक कथाओं को प्रभावित करता है, इसलिए इससे मंदिर की धार्मिक पवित्रता को नुकसान पहुंचेगा.
वीडीएसएस के अध्यक्ष बेली राम ने कहा, “सरकार तीर्थयात्रा को पिकनिक स्पॉट में बदलना चाहती है. वैष्णो देवी मंदिर का रास्ता माता के रास्ते जैसा ही है और तीर्थयात्रा का मतलब क्या है, अगर उसमें दृढ़ता और यात्रा न हो. वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड हज़ारों लोगों की आजीविका छीनते हुए भवन (गर्भगृह) तक जाने वाले मार्ग का व्यवसायीकरण करना चाहता है.”
कटरा के पहाड़ी शहर में विकास बनाम आजीविका की बहस का एक नया दौर चल रहा है, लेकिन अर्धकुंवारी से भवन तक बैटरी से चलने वाली कारों और हेलीकॉप्टर की सवारी जैसी कनेक्टिविटी की पिछली पहलों के विपरीत, रोपवे प्रोजेक्ट को स्थानीय व्यवसायों के सबसे बड़े हत्यारे के रूप में देखा जा रहा है. एक महीने पहले स्थानीय प्रदर्शनकारियों ने सीआरपीएफ के एक वाहन पर हमला किया था और वीडीएसएस के सदस्यों सहित 18 लोगों को गिरफ्तार किया गया और बाद में रिहा कर दिया गया. पिछले कुछ हफ्तों से यहां विरोध प्रदर्शन, बंद, लाठीचार्ज और परेशान श्रद्धालु चर्चा का विषय रहे हैं.
एक बार ऐसा हुआ है कि सभी राजनीतिक दल एक तरफ हैं — उन्होंने केंद्र सरकार के इस प्रोजेक्ट का विरोध किया है. यहां तक कि स्थानीय भाजपा सांसद का भी मानना है कि रोपवे को उसके वर्तमान स्थान पर नहीं बनाया जाना चाहिए. स्थानीय व्यापारिक समुदाय के लिए, यह ताराकोट में मंदिर बोर्ड द्वारा स्थापित समानांतर अर्थव्यवस्था को रोकने की लड़ाई है.
नया मार्ग शुरू नहीं हो रहा
वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड (VDSB) द्वारा निर्मित और 2018 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा उद्घाटन किया गया सात किलोमीटर लंबा ताराकोट मार्ग, तीर्थस्थल बोर्ड और प्रदर्शनकारियों के बीच विवाद का मुख्य मुद्दा बन गया है.
प्रदर्शनकारियों ने कहा कि ताराकोट से सांझी छत तक रोपवे शुरू करके, श्राइन बोर्ड कटरा से बेस कैंप को ताराकोट में शिफ्ट करने की कोशिश कर रहा है और यह कटरा की अर्थव्यवस्था के लिए एक बड़ा झटका होगा.
समिति के पार्षद राजेश सदोत्रा ने कहा, “वह न केवल रोपवे ला रहे हैं, बल्कि इसके ज़रिए बेस कैंप को भी शिफ्ट करने की कोशिश कर रहे हैं. नया बेस कैंप पुराने रास्ते और उस पर अपनी आजीविका के लिए निर्भर सभी लोगों के लिए खतरा है.”
स्थानीय लोग ताराकोट मार्ग के शुरू न होने को आस्था से जोड़ते हैं. तीर्थयात्री उस मार्ग से जाना पसंद करते हैं जहां वह गुफा है जिसके बारे में मान्यता है कि देवी राक्षस से बचने के दौरान रुकी थीं. अन्य कारणों में खच्चरों, पालकी, ट्रॉली वाहक आदि की कमी शामिल है. अगर कोई तीर्थयात्री पूछता है कि कौन सा मार्ग लेना है, तो स्थानीय लोग सक्रिय रूप से उन्हें गुफा मंदिर के लिए पुराने, ऐतिहासिक मार्ग को चुनने के लिए राजी करते हैं.
केंद्र सरकार तीर्थयात्रा को पिकनिक स्पॉट में बदलना चाहती है. वैष्णो देवी मंदिर का मार्ग माता द्वारा अपनाए गए मार्ग को दर्शाता है और तीर्थयात्रा का क्या मतलब है अगर दृढ़ता और यात्रा न हो
— बेली राम, अध्यक्ष, वीडीएसएस
वैष्णो देवी मंदिर का पुराना मार्ग बाणगंगा, चरण पादुका, अर्धकुंवारी से होकर गुफा तक जाता है जहां देवी का निवास है. इस मार्ग पर, खच्चर वालों, पालकी वाहकों, ट्रॉली खींचने वालों और दुकानदारों की पीढ़ियों ने अपनी आजीविका बनाई है. यह तीर्थयात्रियों की सेवा करने वाले छोटे व्यवसायों से भरा हुआ है. खाने के स्टॉल से लेकर मेमोरियल की दुकानों और पालकी और खच्चर लगातार घुमावदार रास्ते पर चलते रहते हैं.
संघर्ष समिति की चिंता वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के बढ़ते अधिकार क्षेत्र तक फैली हुई है. समिति के अनुसार, बोर्ड का उद्देश्य पुराने मार्ग को अप्रचलित बनाना है, जिससे स्थानीय समुदाय को बाहर रखते हुए मंदिर तक पहुंचने वाले पूरे मार्ग का व्यवसायीकरण हो जाएगा.
दिप्रिंट ने वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड से फोन कॉल और ईमेल के ज़रिए संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन कोई जवाब नहीं मिला.
जब दिप्रिंट ने ताराकोट मार्ग का दौरा किया — जो पुराने मार्ग की तुलना में चौड़ा, सीमेंटेड और कम ढलान वाला रास्ता है — तो बहुत कम भक्त नए मार्ग से यात्रा कर रहे थे. पुराने व्यस्त मार्ग के विपरीत, ताराकोट मार्ग पर कोई भी व्यावसायिक भोजनालय नहीं था, यहां केवल चंद श्राइन बोर्ड भोजनालय थे जो भक्तों की सेवा कर रहे थे.
जम्मू और कश्मीर प्रशासन के एक सूत्र ने स्वीकार किया कि ताराकोट मार्ग चालू होने के बाद से ही शुरू नहीं हो पाया है और इस पर बहुत कम लोग आते हैं.
रियासी से भाजपा के पूर्व विधायक अजय नंदा ने कहा कि ताराकोट मार्ग बनाने के लिए त्रिकुटा पहाड़ियों से छेड़छाड़ की गई थी. नंदा जब 2014 में विधायक बने, तब ताराकोट मार्ग पहले से ही स्थापित था. उस समय भी विरोध प्रदर्शन हुए थे.
नंदा ने कहा कि तब से कटरा में यह भावना है कि तीर्थस्थल बोर्ड कटरा शहर को दरकिनार कर ताराकोट में एक नया शहर बनाने की कोशिश कर रहा है, जहां वह अपने लोगों को काम पर रखेगा और हज़ारों लोगों की आजीविका को नष्ट करने के बाद अपनी अर्थव्यवस्था का निर्माण करेगा.
नंदा ने कहा, “नए रास्ते के निर्माण में पहाड़ों को तोड़ना शामिल था, जिससे बरसात के मौसम में ताराकोट मार्ग पर भूस्खलन होता था. लोगों ने विरोध किया और यह तय किया गया कि मार्ग बाणगंगा से शुरू होगा और पर्यटक तय करेंगे कि वह किस रास्ते से जाना चाहते हैं.”
हालांकि, पर्यटकों ने ट्रेक के लिए ताराकोट मार्ग का इस्तेमाल नहीं किया. इसके बजाय, वह भवन तक पहुंचने के लिए पुराना मार्ग अपनाते हैं.
नंदा ने कहा, “ऐसा पुराने मार्ग के धार्मिक महत्व के कारण है. नया रास्ता ऐसा नहीं है. साथ ही, जबकि नए मार्ग में चौड़ी सड़कें हैं, यह जंगलों से घिरा और सुनसान है. तीर्थस्थल बोर्ड द्वारा मुफ्त लंगर की व्यवस्था के बावजूद तीर्थयात्री पुराने मार्ग को ही चुन रहे हैं. ताराकोट मार्ग का इस्तेमाल केवल वीआईपी और मंत्री ही करते हैं जो दर्शन के लिए आते हैं.”
समुदाय में भय
28-वर्षीय बराज तीसरी पीढ़ी से एक छोटी सी चाय और किराने की दुकान के मालिक हैं, जो बाणगंगा में ट्रेक के शुरुआत में है. उनकी दुकान के बाहर, त्रिकुटा पहाड़ियों के ऊपर, घुमावदार सड़कें दिखाई देती हैं. लाउडस्पीकर से ‘ओम नमः शिवाय’ का जाप हवा में गूंजता रहता है.
नवंबर में रोपवे प्रोजेक्ट का निर्माण शुरू होने पर बराज अपनी सहायिका बिंदु के साथ विरोध प्रदर्शन में शामिल हुए थे.
बराज ने कहा, “इस दुकान ने दशकों से मेरे परिवार का भरण-पोषण किया है. अगर रोपवे बनता है, तो कोई भी तीर्थयात्री चाय के लिए मेरी दुकान पर नहीं रुकेगा; वह केबल कार के ज़रिए जल्दी यात्रा करना पसंद करेंगे.”
प्रोजेक्ट को लेकर अनिश्चितता ने उन्हें दुकान के विस्तार की अपनी योजना को स्थगित करने पर मजबूर कर दिया है.
बराज शादी करने की योजना बना रहे थे, लेकिन उससे पहले, वह अपनी दुकान को बढ़ाना चाहते थे और अपने पिता और दादा से बड़ा कारोबार बनाना चाहते थे.
उन्होंने कहा, “अगर वह हमारी नौकरियां छीन लेते हैं, तो हम निश्चित रूप से सड़कों पर आ जाएंगे.”
कटरा शहर में अनिश्चितता का माहौल होटलों, मेमोरियल, कपड़ों और खाने-पीने के सामान की दुकानों में भी दिखाई देता है. दिल्ली को कश्मीर से जोड़ने वाला नया रेल मार्ग स्थानीय लोगों के लिए चिंता का एक और कारण है, जिनका कहना है कि इससे कटरा में पर्यटन प्रभावित होगा. उन्हें डर है कि पर्यटक वैष्णो देवी तक जाने के लिए नए रोपवे के माध्यम से केबल कार का विकल्प चुनेंगे, अपने दर्शन पूरे करेंगे और फिर स्थानीय होटलों को दरकिनार करते हुए श्रीनगर वापस जाने वाली ट्रेन में सवार हो जाएंगे.
जम्मू और कश्मीर के एक होटल व्यवसायी विक्रम सिंह ने कहा कि अगर रोपवे चालू हो जाता है, तो पर्यटक कटरा में होटल बुक करना बंद कर देंगे. सिंह 2010 से 12 कमरों वाला होटल चला रहे हैं. चरणपादुका मंदिर के पास उनकी नौ दुकानें भी हैं, जिनमें सूखे मेवे, कृत्रिम आभूषण, मालिश सेवाएं और पेय पदार्थ बेचने वाली दुकानें शामिल हैं.
उन्होंने कहा, “वह कटरा में होटल क्यों बुक करेंगे? वो केबल कार से मंदिर तक जाएंगे, वापस आएंगे और फिर श्रीनगर के लिए निकल जाएंगे. अगर केबल कार उन्हें दो घंटे में दर्शन पूरा करने में मदद कर रही है, तो वह होटल क्यों बुक करेंगे? ऐतिहासिक मार्ग के साथ, पर्यटक कम से कम 2-3 दिन कटरा में रुकते हैं.”
लेकिन 60-वर्षीय शेर सिंह, जो अपनी चौथी बेटी की शादी करने के बाद पांच साल में सेवानिवृत्ति की योजना बना रहे थे, उनके लिए हर दिन एक चुनौती है. अब वह अपने दिन जल्दी शुरू करते हैं ताकि वह कम से कम दो यात्राएं कर सकें, ताकि अगर प्रोजेक्ट सफल हो भी जाता है, तो उनके पास तब तक पर्याप्त पैसा बच जाएगा.
उन्होंने कहा, “इस उम्र में, मैं कुछ भी नया नहीं सीख सकता, लेकिन मैं बस इतना कर सकता हूं कि कोशिश करूं और ज़्यादा पैसे कमाऊं.”
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विभाजित भाजपा
जब जम्मू के भाजपा सांसद जुगल किशोर शर्मा डेढ़ महीने तक प्रदर्शनकारी दुकानदारों और खच्चर मालिकों से मिलने नहीं आए, तो कटरा में पोस्टर लगे, जिसमें पूछा गया था, “लापता सांसद. वह कहां हैं?”
कुछ दिनों बाद, शर्मा संघर्ष समिति के सदस्यों से मिलने आए और उन्हें आश्वासन दिया कि अगर वह इसे नहीं चाहते हैं तो प्रोजेक्ट को रद्द कर दिया जाएगा. शर्मा के कटरा दौरे को समिति के सदस्यों ने जीत के रूप में देखा, जिन्होंने कहा कि भाजपा पूरे रोपवे प्रोजेक्ट विरोध से दूर रहने की कोशिश कर रही है.
समिति के एक सदस्य जिन्हें भी विरोध के लिए गिरफ्तार किया गया था, उन्होंने कहा, “अगर चुनाव होते, तो भाजपा इस प्रोजेक्ट को खुले तौर पर खारिज कर देती और केंद्र सरकार भी इसे स्वीकार कर लेती, लेकिन अब, जब लोगों ने उन्हें सत्ता में ला दिया है, तो वह अपना असली रंग दिखा रहे हैं.”
लेकिन पूर्व विधायक नंदा और जम्मू-कश्मीर विश्व हिंदू परिषद के सचिव करण सिंह के प्रदर्शनकारियों के समर्थन में आने के बाद, भाजपा के पास अपना रुख बदलने के अलावा कोई विकल्प नहीं था. इसने भाजपा को भी दो खेमों में विभाजित कर दिया है — एक खेमों का नेतृत्व नंदा जैसे लोगों ने किया है जो प्रदर्शनकारियों का खुलकर समर्थन कर रहे हैं; दूसरा खेमा प्रदर्शनकारियों का विरोध तो नहीं कर रहा है, लेकिन केंद्र सरकार की आलोचना करने से कतरा रहा है.
करण सिंह ने कहा, “एलजी मनोज सिन्हा भाजपा से हैं और वैष्णो देवी श्राइन बोर्ड के अध्यक्ष भी हैं. इसलिए भाजपा एलजी के खिलाफ नहीं जाना चाहती थी, लेकिन जब उन्होंने उनकी बात नहीं सुनी, तो उनके पास लोगों का समर्थन करने के अलावा कोई विकल्प नहीं था.”
सिंह ने कहा कि जम्मू संभाग की अर्थव्यवस्था कटरा में वैष्णो देवी पर बहुत अधिक निर्भर है और किसी भी व्यवधान से भाजपा के खिलाफ व्यापक आक्रोश पैदा होगा.
‘गिरफ्तारी को नहीं भूलेंगे’
26-वर्षीय साहिल ठाकुर को 25 दिसंबर को रोपवे प्रोजेक्ट के खिलाफ प्रदर्शन करते समय 17 अन्य लोगों के साथ गिरफ्तार किया गया था. इसके तुरंत बाद, उन्हें रियासी जिला जेल ले जाया गया और वहां से प्रदर्शनकारियों को समूहों में विभाजित किया गया — कुछ को उधमपुर जिला जेल भेजा गया और बाकी को रियासी जेल में रखा गया.
उन्हें लगा कि वह हमें एक सप्ताह तक सलाखों के पीछे रखेंगे और हम चुपचाप उनके दबाव में आकर रोपवे प्रोजेक्ट को होने देंगे, लेकिन, हमने ऐसा नहीं किया
साहिल ठाकुर
ठाकुर ने गिरफ्तारियों को “गैरकानूनी और लोकतांत्रिक भावना के खिलाफ” बताया. उन्होंने कहा कि गिरफ्तारियां प्रदर्शनकारियों की भावना को तोड़ने के लिए की गई थीं, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
ठाकुर ने कहा, “उन्हें लगा कि वह हमें एक सप्ताह तक सलाखों के पीछे रखेंगे और हम चुपचाप उनके दबाव में आकर रोपवे प्रोजेक्ट को होने देंगे, लेकिन, हमने ऐसा नहीं किया.”
गिरफ्तारी के बाद, कटरा में विरोध प्रदर्शनों का एक और दौर देखा गया. गिरफ्तार किए गए लोगों के परिवार के सदस्य सड़कों पर उतर आए और स्थानीय लोगों ने उनका समर्थन किया. बंद का आह्वान किया गया और कुछ लोग भूख हड़ताल पर भी बैठे.
एक हफ्ते बाद, 31 दिसंबर की आधी रात को प्रदर्शनकारियों को रिहा कर दिया गया और एलजी ने रोपवे प्रोजेक्ट से संबंधित सभी मुद्दों को हल करने के लिए एक समिति के गठन का आदेश दिया.
अपनी रिहाई के बाद, जब ठाकुर कटरा पहुंचे, तो स्थानीय लोगों की एक भीड़ ने उनका और अन्य लोगों का स्वागत किया, साथ ही ढोल भी बजाए गए.
दिसंबर के विरोध प्रदर्शन और गिरफ्तारियों की यादें आसानी से मिट नहीं रही हैं. पुलिस कार्रवाई के बाद रोपवे प्रोजेक्ट के खिलाफ सोनू ठाकुर का रुख और मजबूत हो गया है. उनके दिन लोगों को सक्रिय रूप से संगठित करने और जेल में बिताए अपने समय के दर्दनाक पलों को साझा करने में बीतते हैं.
उन्होंने पूछा, “जेल में, उन्होंने हमें कश्मीर के आतंकवादियों के साथ रखा. क्या हम आतंकवादी हैं, जो अपना अधिकार मांग रहे हैं?”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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