जोधपुर: पुष्पा देवी 30 साल से एक ऐसी नौकरी कर रही हैं जो उनकी नहीं है. इससे उन्हें सिर्फ आधी तनख्वाह मिलती है और यह सदियों पुराने भेदभाव की याद दिलाता है.
हर सुबह, 50-वर्षीय पुष्पा देवी रबड़ की चप्पल पहनकर जोधपुर के प्रतिष्ठित घंटाघर तक 5 किलोमीटर पैदल चलती हैं. बाज़ार खुलने से पहले, वे सड़क पर फैले पत्ते और चिप्स के पैकेट हटाती हैं और जानवरों का मल साफ करती हैं. फिर भी, वे जोधपुर नगर निगम के वेतन वाली कर्मचारी नहीं हैं, जो इस क्षेत्र में सफाई के लिए ज़िम्मेदार है. पुष्पा एक बदली, ‘2 बाय 2’ या प्रॉक्सी वर्कर हैं — जिन्हें किसी और का आधिकारिक काम करने के लिए रखा गया है.
दशकों से बदली के काम ने देश भर में वाल्मीकि समाज से आने वाले सफाई कर्मचारियों को कम वेतन वाली, असुरक्षित नौकरियों में फंसाया हुआ है, लेकिन अब, उन्हें राजस्थान में दोहरी मार झेलनी पड़ रही है. 2018 में राज्य सरकार ने साफ-सफाई की नौकरियों के लिए आरक्षण-आधारित प्रणाली शुरू की, जिसमें सामान्य श्रेणी, ओबीसी, एससी/एसटी और अन्य के लिए कोटा निर्धारित किया गया. वाल्मीकि समाज जिनकी कई पीढ़ियां यह काम करती आ रही हैं, उनकी अनदेखी की गई और अब, सामाजिक रूप से प्रभावशाली जातियों के सदस्य सफाई कर्मचारी की सरकारी नौकरी तो ले रहे हैं, लेकिन काम नहीं कर रहे हैं.
पुष्पा ने कहा, “अगड़ी जाति के लोग हमारी नौकरी छीन रहे हैं. हमारे लिए यह काम मजबूरी है — हमें अपने बच्चों को खाना खिलाना है और हमारे पास कहीं और काम करने का विकल्प नहीं है. वो हमारी नौकरियां तो चाहते हैं, लेकिन हमारे जैसा काम नहीं करना चाहते हैं.”
बदली के कारण उन्हें सरकारी वेतन, लाभ और सुरक्षा से वंचित रहना पड़ता है.
उन्होंने कहा, “अगर मेरे पास सरकारी नौकरी होती, तो मैं महीने के कम से कम 20,000 रुपये, मेडिकल बीमा और पेंशन का लाभ ले पाती. बजाय इसके मैं हर महीने 5,000 रुपये पर काम करने के लिए मजबूर हूं.”
जातिगत पूर्वाग्रह पर यह आधुनिक मोड़ सबसे हाशिए पर पड़े लोगों को सबसे निचले पायदान पर पहुंचा देता है. आरक्षण नीति, जिसका उद्देश्य उत्थान करना है, सकारात्मक कार्रवाई को पराजित कर रही है और शोषण का शिकार हो रही है.
वाल्मीकि समाज के लोग नहीं जानते कि वह किसकी जगह ले रहे हैं, लेकिन वह ज़्यादातर सामान्य जाति लोगों के पदों पर काम करते हैं
— अखिल भारतीय दलित महासभा के अध्यक्ष प्रकाश सिंह विद्रोही
पूरे भारत में सफाई की नौकरियों में प्रॉक्सी, ‘बदली’ या ‘एवज’ के नाम पर काफी काम होते हैं. कई लोगों को संदेह है कि वाल्मीकि समाज जो सरकारी नौकरियों के पदों पर सालों से भरते आ रहे हैं, वह अब दूसरे समूहों को मिल रही हैं — ‘सामान्य’ श्रेणी के आवेदकों से लेकर दूसरी दलित उपजातियों तक, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि इस काम से जुड़ा ऐतिहासिक कलंक खत्म हो रहा है.
सरकारी लाभ वाली सफाई कर्मचारियों की नौकरियों के लिए होड़ मची हुई है, लेकिन बहुत कम लोग असल में यह काम करना चाहते हैं. इस साल की शुरुआत में लगभग 46,000 ग्रेजुएट्स और पोस्ट-ग्रेजुएट्स ने सरकारी कॉन्ट्रैक्ट वाली नौकरियों के लिए एक पोर्टल ‘हरियाणा कौशल रोज़गार निगम’ के माध्यम से सफाई नौकरियों के लिए आवेदन किया था, लेकिन हरियाणा के वाल्मीकि समाज के सफाई कर्मचारियों ने दिप्रिंट को बताया कि प्रमुख जाति के सफाई कर्मचारी झाड़ू उठाकर काम नहीं करते हैं. वे केवल वाल्मीकियों को काम का ठेका देते हैं. 2017 में दिल्ली हाई कोर्ट ने प्रॉक्सी समस्या से निपटने के लिए सफाई कर्मचारियों की फोटो-आधारित उपस्थिति का आदेश दिया और 2019 में पंजाब के अबोहर में कम से कम 30 सरकारी सफाई कर्मचारी अपना काम ठेके पर देते पाए गए.
अगस्त में जयपुर में वाल्मीकि समाज के कर्मचारियों ने काम में प्राथमिकता की मांग करते हुए दो सप्ताह की हड़ताल की. उनका दावा है कि अगड़ी जाति के कर्मचारी कम से कम वेतन पर अपनी शिफ्ट को कवर करने के लिए वाल्मीकियों को नियुक्त करते हैं, या अलग-अलग भूमिकाओं में स्थानांतरित होने के लिए ‘संबंधों’ का उपयोग करते हैं.
अधिकारी मानते हैं कि समस्या बहुत गहरी है, लेकिन यह किसी एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है.
जोधपुर नगर निगम के नगर आयुक्त डॉ. टी. शुभमंगला ने कहा, “सफाई के कामों में प्रॉक्सी काम की समस्या प्रणालीगत और गहरी है और यह सिर्फ राजस्थान में ही नहीं है. वर्तमान में जोधपुर नगर निगम में ही 1,000 से अधिक प्रॉक्सी कर्मचारी हैं और निगम बायोमेट्रिक अटेंडेंस की मदद से इस समस्या को कम करने की पूरी कोशिश कर रहा है.”
सफाई कर्मचारी आंदोलन (एसकेए) के संयोजक और मैग्सेसे पुरस्कार विजेता बेजवाड़ा विल्सन ने कहा कि सभी को सड़कों की सफाई करनी चाहिए.
विल्सन ने दिप्रिंट से कहा, “नौकरियों के लोकतंत्रीकरण के नाम पर कर्मचारियों का शोषण हो रहा है. ऐसा नहीं है कि हम नहीं चाहते कि प्रमुख जातियों के लिए नौकरियां खुलें, सभी को यहां सड़कों की सफाई करनी चाहिए, लेकिन प्रमुख जातियां नौकरी करने को तैयार हैं, लेकिन काम करने को तैयार नहीं हैं. हमें इसे बदलना होगा, स्थानीय निकायों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रॉक्सी काम न हो.”
विल्सन ने इस बात पर जोर दिया कि प्रॉक्सी काम का मुद्दा “हर राज्य” को प्रभावित करता है.
उन्होंने कहा, “वाल्मीकि समुदाय के लोगों को उनके हक के वेतन के एक अंश पर सबलेट कॉन्ट्रैक्ट पर सफाई का काम करने के लिए मजबूर किया जाता है.”
बदली कर्मचारियों का कोई राष्ट्रीय डेटा नहीं होने और ठेका मजदूरों की संख्या में वृद्धि के कारण, इस पैमाने का अंदाज़ा लगाना ज़रा मुश्किल है. इकोनॉमिक एंड पॉलिटिकल वीकली में एक विश्लेषण के अनुसार, 2004 से 2021 के बीच साफ-सफाई की सरकारी नौकरियों में तेज़ी से गिरावट आई है और अब ऐसे अधिकांश पद ठेकेदारों को आउटसोर्स किए गए हैं. केंद्र सरकार में सफाई कर्मचारियों के पद 2003 में 1.26 लाख से घटकर 2021 में केवल 44,000 रह गए हैं. इसी अवधि के दौरान, इन पदों पर दलितों का अनुपात 58 प्रतिशत से घटकर 32 प्रतिशत से थोड़ा अधिक रह गया.
फिर भी, वाल्मीकि समुदाय के लोग अभी भी काम का बड़ा हिस्सा करते हैं.
अखिल भारतीय दलित महासभा के अध्यक्ष सरदार प्रकाश सिंह विद्रोही ने कहा, “वाल्मीकि-मेहतर समुदाय परंपरागत रूप से सफाई का काम करता रहा है और आगे भी करता रहेगा. बिश्नोई, चौधरी, ब्राह्मण, ओबीसी जैसे अन्य समुदाय — ये सभी सफाई कर्मचारी के रूप में कार्यरत हैं, लेकिन वह कभी यह काम नहीं करते. सफाई के काम को हमेशा घृणा की दृष्टि से देखा जाता है.”
प्रॉक्सी हायरिंग कभी भी प्रत्यक्ष नहीं होती. इसके बजाय, सफाई निरीक्षक वाल्मीकि बस्तियों में जाकर प्रॉक्सी की भर्ती करते हैं. जो वास्तविक कर्मचारी सफाई का काम करने के लिए तैयार नहीं होते, वह निरीक्षक को अपने वेतन का एक हिस्सा देते हैं.
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सिर्फ काम, कोई वेतन नहीं
पुष्पा ने कई सालों तक जोधपुर की सड़कें साफ की हैं, पर्यटक स्थलों को साफ रखा है और बड़े लोगों के घरों के सामने से कूड़ा उठाया है. फिर भी, उन्होंने कभी भी इन आलीशान मकानों के अंदर कदम नहीं रखा है.
पुष्पा ने वाल्मीकि बस्ती में अपने घर से कहा, “वह (अगड़े) वे मेहतर समाज को अपने आस-पास नहीं आने देना चाहते. जब हम उनके घरों के बाहर काम करते हैं, तब भी वह हमें दूरी बनाए रखने के लिए कहते हैं.”
पुष्पा का घर — अरावली से लाए गए पत्थरों से बनी एक झुग्गी — हल्के पीले रंग से रंगा हुआ है, जिसमें उनके बढ़ते परिवार के लिए छोटे-छोटे कमरे हैं. कुछ कमरों में छत भी नहीं है. उनके दस लोगों के परिवार के लिए खाना मिट्टी के चूल्हे पर पकाया जाता है.
सफाई कोटा भले ही हाल ही की नीति हो, लेकिन शोषण उनके लिए कोई नई बात नहीं है. पुष्पा का दावा है कि वे जोधपुर नगर पालिका के लिए 30 साल से काम कर रही हैं. हालांकि उन्हें कभी भी उनके साथ नौकरी नहीं मिल पाई. वे नाराज़ और हताश हैं, लेकिन साथ ही लाचार भी हैं.
उन्होंने कहा, “मैंने कई बार नौकरी के लिए आवेदन किया, आवेदन शुल्क पर हज़ारों खर्च किए, लॉटरी सिस्टम (2012 में शुरू किया गया) भी आजमाया, लेकिन मैं भाग्यशाली नहीं रही. मेरे घर में एक भी सरकारी नौकरी नहीं है.”
पुष्पा ने कहा कि उनकी अनौपचारिक भर्ती एक सफाई निरीक्षक के माध्यम से हुई थी — एक कर्मचारी जिसे पर्यवेक्षक की भूमिका में पदोन्नत किया गया था. कागज़ पर, इन निरीक्षकों को कोई अतिरिक्त लाभ नहीं मिलता है, लेकिन व्यवहार में, उन्हें वार्ड नेता माना जाता है. प्रॉक्सी हायरिंग कभी भी प्रत्यक्ष नहीं होती है. इसके बजाय, सफाई निरीक्षक वाल्मीकि बस्तियों में जाकर प्रॉक्सी की भर्ती करते हैं. जो वास्तविक नियुक्तियां सफाई का काम करने के लिए तैयार नहीं हैं, वह निरीक्षक को अपने वेतन का एक हिस्सा देते हैं. बदले में निरीक्षक प्रॉक्सी कर्मचारियों को ढूंढते हैं और प्रमुख और गैर-वाल्मीकि जाति के कर्मचारियों की उपस्थिति दर्ज करते हैं.
हमने नगर निगम जोधपुर दक्षिण ऐप विकसित किया है जिसके माध्यम से हम लोगों की रोज़ाना की उपस्थिति दर्ज करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिस व्यक्ति को नौकरी के लिए मूल रूप से नियुक्त किया गया है वे काम कर रहा है. मेरी टीम लगातार नज़र रख रही है, लेकिन हज़ारों चेहरों को छांटना मुश्किल है.
— टी शुभमंगला, आईएएस अधिकारी और जोधपुर नगर आयुक्त
एक्टिविस्ट विद्रोही, जो खुद रेलवे में सेवा देने वाले एक सेवानिवृत्त सफाई कर्मचारी हैं, ने कहा, “वाल्मीकि नहीं जानते कि वह किसकी जगह ले रहे हैं, लेकिन वह ज़्यादातर सामान्य जाति के पदों पर काम करते हैं.”
हालांकि, सफाई के काम में सहयोग केवल ‘उच्च जाति’ की घटना नहीं है. अनुसूचित जातियों में भी कुछ समूह इस काम को करने से इनकार करते हैं.
विद्रोही ने कहा, “मेघवाल, मीणा और अन्य एससी और ओबीसी जातियों के सदस्य सफाई का काम नहीं करना चाहते. यह वाल्मीकि, विशेष रूप से मेहतर जाति के लिए आरक्षित है.”
जोधपुर के सफाई निरीक्षकों के संघ के सदस्यों ने दिप्रिंट को बताया कि हर वार्ड में प्रॉक्सी एक स्थायी व्यवस्था है. सभी उच्च जाति के सफाई कर्मचारी या तो प्रॉक्सी रखते हैं या डेस्क जॉब जैसे कंप्यूटर ऑपरेटर, रिकॉर्ड कीपर, चपरासी आदि पर काम करते हैं.
वाल्मीकि बस्ती में पुष्पा के कई पड़ोसी प्रॉक्सी के रूप में काम करते हैं, जिनमें से कुछ को प्रतिदिन 200 रुपये से भी कम मिलते हैं. उनमें से 32-वर्षीय पूजा, पांच साल से प्रॉक्सी के रूप में काम कर रही हैं और उन्हें हर महीने सिर्फ 3,000 रुपये मिलते हैं. अगर ये कर्मचारी औपचारिक रूप से काम करते, तो वह कम से कम 20,000 रुपये प्रति माह कमा सकते हैं.
अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए कुछ लोग स्कूल के शौचालयों की सफाई करके या शादी के मौसम में छोटे-मोटे काम करके अपनी आय को बढ़ाते हैं, लेकिन यह मौके काफी कम हैं और वंचितता का एक पीढ़ी-दर-पीढ़ी चक्र जारी है.
पुष्पा ने कहा, “मैं 30 साल से बतौर सफाई कर्मी काम कर रही हूं, लेकिन मैं अपने बच्चों को पढ़ा नहीं पाई हूं, इसलिए वो भी अब इस जाल में फंस गए हैं.” उनके दो बेटे, जो पहले प्रॉक्सी के तौर पर काम करते थे, अब जोधपुर नगर निगम के लिए अनुबंधित कचरा ट्रक चालक हैं.
सफाई की भूमिकाओं में स्पष्ट लैंगिक विभाजन है. महिलाओं को ज्यादातर सड़कों की सफाई का काम सौंपा जाता है, जबकि पुरुष सीवर की सफाई और ड्राइविंग का काम संभालते हैं. महिलाओं के विपरीत पुरुषों को जमादार और सफाई निरीक्षक की भूमिका में भी पदोन्नत किया जाता है.
घर पर भी पुष्पा की ज़रूरतें सबसे आखिर में आती हैं. वे न केवल बहुत कम पैसे में काम करती है क्योंकि दूसरे लोग उसके काम को अपने से नीचे समझते हैं, बल्कि वे अपनी शिफ्ट से पहले और बाद में घर के सारे काम खुद ही करती हैं. उनका पति किसी पुरानी बीमारी के कारण काम नहीं कर सकता.
पुष्पा ने कहा, “मैं सुबह 4 बजे उठती हूं और आधी रात को सोती हूं.”
“इतने बड़े झाड़ू पकड़ने और कचरे से भरी गाड़ी खींचने के बाद दिन के अंत तक मेरा शरीर टूट जाता है. मैं पूरे दिन काम के अलावा कुछ नहीं करती.”
सितंबर में जयपुर में स्थानीय स्वशासन विभाग ने एक निर्देश जारी किया जिसमें नगर निगम आयुक्तों को अपने काम को आउटसोर्स करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया. हालांकि, सिस्टम का शोषण करने वालों को निशाना बनाने के बजाय, ऐसा लगता है कि यह जिम्मेदारी प्रॉक्सी के रूप में काम करने वाले वाल्मीकि लोगों पर आ गई है.
प्रॉक्सी को खत्म करने के लिए ऐप
जोधपुर नगर निगम प्रॉक्सी काम के लिए एक नया समाधान आजमा रहा है: एक ऐप जो यह पता लगाएगा कि असल में कौन काम पर मौजूद है.
नगर निगम आयुक्त शुभमंगला ने कहा, “हमने नगर निगम जोधपुर दक्षिण ऐप विकसित किया है जिसके माध्यम से हम लोगों की रोज़ की उपस्थिति दर्ज करते हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जिस व्यक्ति को काम के लिए मूल रूप से नियुक्त किया गया है, वह काम कर रहा है. मेरी टीम लगातार नज़र रख रही है, लेकिन हज़ारों चेहरों को छांटना मुश्किल है. हमने अब तक 3-4 मामलों की पहचान की है और ज़रूरी अनुशासनात्मक कार्रवाई कर रहे हैं.”
हालांकि, उन आधिकारिक कर्मचारियों का पता लगाना एक चुनौती बनी हुई है जिन्होंने अपनी भूमिकाएं बदली श्रमिकों को आउटसोर्स की हैं.
शुभमंगला ने कहा, “वर्कफोर्स बहुत बड़ा है, हमारे पास हज़ारों कर्मचारी हैं, और यह पहचानना मुश्किल है कि प्रॉक्सी के लिए लोगों को किसने काम पर रखा है.”
एक और बाधा प्रभावित लोगों की चुप्पी है.
उन्होंने कहा, “मुझे पता है कि (सफाई का काम करने के लिए) इस तरह का विरोध है, लेकिन कोई भी मुझसे व्यक्तिगत रूप से शिकायत करने नहीं आया है.” सितंबर में जयपुर में स्थानीय स्वशासन विभाग ने राजस्थान के सभी नगर निकायों को एक निर्देश जारी किया था, जिसे दिप्रिंट ने देखा था. इसमें आयुक्तों को अपने काम को आउटसोर्स करने वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने का निर्देश दिया गया था. यहां तक कि एफआईआर दर्ज करने का सुझाव भी दिया गया था.
सामान्य वर्ग काम नहीं करना चाहता. वह सिर्फ घर बैठकर सैलरी लेना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि कच्ची नौकरी पक्की हो जाए. वो इस काम को गंदा और अपने से नीचे मानते हैं
— हरियाणा में एक सफाई निरीक्षक
हालांकि, सिस्टम का शोषण करने वालों को निशाना बनाने के बजाय, प्रॉक्सी के रूप में काम करने वाले वाल्मीकि लोगों पर जिम्मेदारी आ गई है. ऐसा इसलिए है क्योंकि जब वार्ड में कोई कर्मचारी बदलता रहता है तो उसे नोटिस करना आसान होता है, बजाय इसके कि वास्तव में वहां कौन होना चाहिए.
शुभमंगला ने कहा, “हमने रजिस्ट्रेशन के बारे में सोचा है, लेकिन अभी केवल प्रॉक्सी के रूप में काम करने वाले वाल्मीकि लोगों के खिलाफ ही शिकायत दर्ज की जा सकती है. हम पहले अपने कर्मचारियों की पहचान करना चाहते हैं.”
यह निर्दिष्ट नहीं किया गया है कि भारतीय न्याय संहिता की किस धारा के तहत कोई कार्यवाही शुरू की जाएगी.
ठेके के काम में ‘जातिगत भेदभाव’
भारत में सफाई से जुड़ी ज़्यादातर नौकरियां अनौपचारिक या ठेके पर आधारित हैं. कांग्रेस नेता और दलित कार्यकर्ता राजेंद्र पाल गौतम ने दिप्रिंट को बताया कि 2002 में चौथे वेतन आयोग के लागू होने के बाद, हरियाणा समेत कई राज्यों में सरकारी नौकरियां ठेके पर दी जाने लगीं.
लेकिन ठेका प्रणाली ने बदली की समस्या को राज्य-नियंत्रित व्यवस्थाओं से भी ज़्यादा बेशर्म बना दिया है.
पानीपत में दिप्रिंट से बात करते हुए सफाई कर्मचारी आंदोलन के सदस्य राजकुमार ने कहा, “ठेकेदार सभी अगड़ी जाति के हैं और अपने परिचितों को सफाई कर्मचारी के तौर पर रखते हैं. वो वाल्मीकि लोगों को वेतन का सिर्फ 30-40 प्रतिशत ही देते हैं.”
हरियाणा में कई प्रॉक्सी कर्मचारियों ने अपनी नौकरी खोने के डर से दिप्रिंट से बात करने से इनकार कर दिया. एक सफाई निरीक्षक ने नाम न बताने की शर्त पर बताया कि 20-25 प्रतिशत ठेका कर्मचारी सामान्य श्रेणी के हैं.
निरीक्षक ने कहा, “सामान्य श्रेणी के लोग काम नहीं करना चाहते. वो केवल घर बैठकर सैलरी लेना चाहते हैं. उन्हें उम्मीद है कि कच्ची नौकरी पक्की हो जाए. वह इस काम को गंदा और अपने से नीचे समझते हैं. ठेके पर काम करने की वजह से नौकरी पर जातिगत अत्याचार बढ़ गए हैं, लोगों को नियमित रूप से नौकरी से वंचित किया जाता है. प्रॉक्सी कर्मचारियों को काम के दौरान घायल होने पर इलाज के लिए भी पैसे नहीं मिलते.”
वाल्मीकि लोगों को सुबह 7 बजे काम पर पहुंचना होता है, जबकि सामान्य श्रेणी के सफाई कर्मचारी सुबह 10 बजे तक आते हैं, अपनी हाजिरी बनाते हैं और दूसरे काम पर निकल जाते हैं.
चूंकि, वह सड़कों पर काम नहीं करते, इसलिए हमें काम संभालना पड़ता है और हमारे ऊपर अतिरिक्त काम का बोझ होता है
— रणवीर, समालखा सफाई कर्मचारियों के यूनियन नेता
हरियाणा में सफाई कर्मचारियों की नौकरियों के लिए हाल ही में उच्च शिक्षित उम्मीदवारों की भीड़ को लेकर संदेह है.
राजकुमार ने कहा, “इनमें से बहुत से ग्रेजुएट, खास तौर पर उच्च जाति के लोग जिन्हें अगर नौकरी मिल जाती है तो वह अपने लिए काम करने के लिए दूसरों को ढूंढ लेते हैं.”
कई श्रमिकों का कहना है कि जातिगत भेदभाव उनके काम के हर पहलू में व्याप्त है — जैसे कि गंभीर जोखिम के बावजूद खुली नालियों में काम करते समय उन्हें उचित सुरक्षात्मक उपकरण नहीं दिए जाते.
नौकरी, लेकिन कोई प्रगति नहीं
कई युवा सफाई कर्मचारी इस व्यवस्था से बहुत नाराज़ हैं, उनका कहना है कि यह उनके खिलाफ है — तब भी जब उन्हें वास्तविक नौकरी मिलती है.
हरियाणा के समालखा में सफाई कर्मचारी आज़ाद ने कहा, “हमें कभी प्रमोशन नहीं मिलता, लेकिन सामान्य श्रेणी के कर्मचारी जो नौकरी में शामिल होते हैं, उन्हें ‘सुपरवाइज़र’ बना दिया जाता है, जबकि उन्होंने अपनी ज़िंदगी में एक भी दिन सफाई का काम नहीं किया होता. मेरे पास सेनेटरी इंस्पेक्टर का डिप्लोमा है, लेकिन मैं यहां हूं — अभी भी एक सफाई कर्मचारी के तौर पर काम कर रहा हूं.”
जोधपुर में औपचारिक नौकरियों में वाल्मीकि कर्मचारियों द्वारा भी इसी तरह की निराशा व्यक्त की जाती है.
जोधपुर नगर निगम के जमादार राजू बारसा ने कहा, “हम जन्म से सफाई कर्मचारी हैं, फिर भी हमें कभी प्रमोशन नहीं मिलता. हम अपनी पूरी ज़िंदगी काम कर सकते हैं और सफाई कर्मचारी के तौर पर ही रिटायर होंगे. यह सच है. दूसरी जातियां हमारी नौकरी ले लेती हैं, फिर पर्यवेक्षक बनकर हमारे ऊपर बैठ जाती हैं और आदेश देती हैं.”
कई कर्मचारियों का कहना है कि जातिगत भेदभाव उनके काम के हर पहलू में समाया हुआ है — जैसे कि खुले नालों में काम करते समय गंभीर जोखिम के बावजूद उचित सेफ्टी गियर न दिया जाना. पिछले महीने ही राजस्थान के सीकर जिले में तीन सफाई कर्मचारियों की बंद सीवेज लाइन की सफाई करते समय दम घुटने से मौत हो गई थी.
सफाई कर्मचारियों का यह भी आरोप है कि उन्हें नगर निगम के दफ्तरों से बाहर रखा जाता है, उन्हें केवल तभी प्रवेश दिया जाता है जब उन्हें विशेष रूप से बुलाया जाता है.
समालखा सफाई कर्मचारियों के यूनियन नेता रणवीर ने कहा, “लोगों को सुबह 7 बजे काम पर पहुंचना पड़ता है, जबकि सामान्य श्रेणी के सफाई कर्मचारी सुबह 10 बजे पहुंचते हैं, अपनी हाजिरी बनाते हैं और दूसरे कामों के लिए निकल जाते हैं. चूंकि, वह सड़कों पर काम नहीं करते हैं, इसलिए हमें काम संभालना पड़ता है और हमारे ऊपर अतिरिक्त काम का बोझ होता है.”
जोधपुर नगर निगम के सूत्रों का आरोप है कि विभागों के अधिकारी अक्सर प्रॉक्सी सिस्टम से लाभ उठाते हैं.
शानदार नौकरी की अदला-बदली
महेंद्र चौधरी को 2018 में सफाई कर्मचारी के तौर पर काम पर रखा गया था, लेकिन जोधपुर के वार्ड नंबर 6 की सड़कों पर सफाई करने के बजाय, जहां उन्हें नियुक्त किया गया था, वे अतिरिक्त जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय में चपरासी के तौर पर फाइलें निपटाते हैं.
चौधरी ने जोर देकर कहा कि इसमें कोई गड़बड़ी नहीं है और उन्होंने ऊपर से मिले निर्देशों पर काम किया है.
एडीएम कार्यालय में उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “मुझे नगर आयुक्त के आदेश पर यहां नियुक्त किया गया था. मैं दिनभर कड़ी मेहनत करके अपना गुज़ारा करता हूं. मुझे सफाई का काम करने में कोई दिक्कत नहीं है. मुझे लगता है कि हर काम में सम्मान होता है. अगर मुझे मेरे वार्ड में वापस भेजा जाता है, तो मैं खुशी-खुशी वहां जाऊंगा.”
सामान्य श्रेणी के सफाई कर्मचारियों को अक्सर नगर निगम और कलेक्ट्रेट जैसी सरकारी इमारतों के अलावा जजों, आईएएस और आरएएस अधिकारियों के घरों पर तैनात किया जाता है. वह नहीं चाहते कि मौजूदा व्यवस्था में कोई व्यवधान आए
— जोधपुर सफाई निरीक्षक
चौधरी अकेले सामान्य श्रेणी के कर्मचारी नहीं हैं जिन्हें दूसरे विभाग में काम करने के लिए प्रतिनियुक्त किया गया है. जोधपुर कलेक्ट्रेट के सूत्रों ने आरोप लगाया कि इमारत के भीतर विभिन्न पदों पर करीब 40 “सफाई कर्मचारियों” को कंप्यूटर ऑपरेटर या चपरासी के रूप में काम करने के लिए तैनात किया गया है.
राजस्थान के स्थानीय स्वशासन विभाग द्वारा इस पर लगाम लगाने के बार-बार प्रयासों के बावजूद यह काम धड़ल्ले से चल रहा है. 2012 से विभाग ने यह सुनिश्चित करने के लिए कई आदेश जारी किए हैं कि सभी नियुक्त सफाई कर्मचारी वास्तव में अपना काम कर रहे हैं या नहीं, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ.
2021 में विभाग के निदेशक के एक पत्र ने विभिन्न नगर निगमों और परिषदों को सभी सफाई कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से उनके मूल पदों पर वापस करने का निर्देश दिया.
दिप्रिंट द्वारा देखे गए पत्र में कहा गया है कि 2012, 2018 और 2020 में भी इसी तरह के निर्देश जारी किए गए थे, लेकिन निर्देशों का पालन नहीं किया गया.
सितंबर 2024 में निदेशक कुमार पाल गौतम द्वारा भेजे गए एक अन्य पत्र में इन निर्देशों को दोहराया गया, जिसमें सभी आयुक्तों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया गया कि सभी सफाई कर्मचारियों को उनकी मूल पोस्टिंग पर वापस भेजा जाए. इस बार, पत्र में ऐसे कर्मचारियों और आदेशों को लागू करने में विफल रहने वाले अधिकारियों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई की भी धमकी दी गई.
फिर भी, नगर निगम भवन सहित विभिन्न कार्यालयों में प्रतिनियुक्ति पर “सफाई कर्मचारी” अपना काम कर रहे हैं.
हालांकि, नगर निगम आयुक्त ने इसे दरकिनार करते हुए जोर देकर कहा कि संख्या “बहुत कम” है. अधिकारी आमतौर पर अपने विभागों में प्रतिनियुक्त सफाई कर्मचारियों के बारे में अज्ञानता का दावा करते हैं.
जोधपुर नगर निगम के स्वास्थ्य निरीक्षक मनोज वर्मा ने कहा कि उन्हें नहीं पता था कि उनके सहायक चंद्रप्रकाश गहलोत को मूल रूप से सफाई कर्मचारी के रूप में काम पर रखा गया था. वर्मा द्वारा दो घंटे से अधिक समय तक बार-बार कॉल करने के बावजूद, गहलोत निगम में नहीं आए.
वर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “हम (अधिकारी) इस बात पर चर्चा कर रहे हैं कि इन कर्मचारियों को उनके मूल कार्यस्थल पर वापस कैसे भेजा जाए. हमने ऐसे कर्मचारियों की पहचान करने और उन्हें उनके वार्ड में वापस भेजने की प्रक्रिया शुरू कर दी है, लेकिन इसमें समय लग रहा है.”
हालांकि, नगर निगम के सूत्रों का आरोप है कि विभागों के अधिकारी अक्सर प्रॉक्सी सिस्टम से लाभ उठाते हैं.
नाम न बताने की शर्त पर एक सफाई निरीक्षक ने कहा, “सामान्य श्रेणी के सफाई कर्मचारियों को अक्सर नगर निगम और कलेक्ट्रेट जैसे सरकारी भवनों के अलावा न्यायाधीशों, आईएएस और आरएएस अधिकारियों के घरों पर तैनात किया जाता है. वह नहीं चाहते कि मौजूदा व्यवस्था बाधित हो.”
जोधपुर नगर निगम के एक वरिष्ठ अधिकारी ने इसकी पुष्टि की. उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “इन लोगों को न्यायाधीशों के घरों से बाहर निकालना मुश्किल है.”
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एक नई बाधा
वाल्मीकि समाज के सफाई कर्मचारियों ने 6 अगस्त को अपनी हड़ताल समाप्त कर दी, लेकिन ज़मीनी स्तर पर इससे बहुत कुछ नहीं बदला है. पुष्पा जैसे कर्मचारी अभी भी उस दिन का इंतज़ार कर रहे हैं, जब उन्हें आखिरकार सरकारी नौकरी मिलेगी, लेकिन फिलहाल उनके लिए मुश्किलें खड़ी हैं.
विरोध प्रदर्शनों के बाद, राजस्थान सरकार ने एक शुद्धिपत्र जारी किया, जिसमें कहा गया कि केवल नगर निगम में अनुशंसा पत्र और कार्य अनुभव वाले आवेदक ही नई सफाई नौकरियों के लिए आवेदन कर सकते हैं. पुष्पा जैसे वाल्मीकि, जिन्होंने वर्षों से अनौपचारिक रूप से काम किया है, उनके लिए यह एक और बाधा है.
विद्रोही ने कहा, “सफाई का काम वाल्मीकि लोगों को समाज द्वारा दिया जाने वाला पारंपरिक काम है. वाल्मीकि लोगों के लिए अनुभव पत्र अनिवार्य नहीं होना चाहिए.”
पिछले हफ्ते उदयपुरवाटी और जयपुर में सफाई कर्मचारियों ने अनुभव प्रमाण पत्र की ज़रूरत और अन्य मांगों को लेकर एक नया विरोध प्रदर्शन शुरू किया, लेकिन जब तक इस तरह के विरोध प्रदर्शनों से वास्तविक बदलाव नहीं आता, तब तक पुष्पा जैसे सफाई कर्मचारियों को अपने काम और पहचान को खत्म करने का सामना करना पड़ेगा.
पुष्पा ने कहा, “मैंने ज़िंदगी भर नगर निगम में काम किया है, लेकिन अगर मैं जाकर सिफारिश पत्र मांगती हूं, तो मुझे बताया जाता है कि कोई भी कागज़ पर यह नहीं लिख सकता कि मैं यहां सफाई कर्मचारी हूं. मेरे इतने सालों के काम का कोई मूल्य नहीं है.” और मुंह पर कपड़ा बांधकर फिर से झाड़ू लगाना शुरू कर दिया.
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