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Thursday, 21 November, 2024
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‘गरीबी, स्लम, पेरेंट्स का विरोध’, भारतीय ब्रेकडांसर्स ओलंपिक के लिए तैयार, कठिन हालात में भी नहीं टूटे

2024 में होने वाले पेरिस ओलंपिक में ब्रेकडांस को शामिल किया है. भारतीय ब्रेकडांसर्स को उम्मीद है कि उनके वर्षों के संघर्ष का फल अब मिल सकता है. कुश्ती, मुक्केबाजी, शूटिंग और भारोत्तोलन के बाद ब्रेकडांस भारत को अगला ओलंपिक पदक दिला सकता है.

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जुहू बीच पर दो लड़के अचानक गुलाटियां लगाने लगे..वो गुलाटियां (डांस की भाषा में फ्लिप) लगा रहे थे और उनके आस पास खड़े लोग भौंचक उन दोनों की ये हरकत देख रहे थे. कुछ अचानक तालियां बजाने लगे..रंगीन बाल रंगे ये लड़के जिनके शरीर का हर अंग अलग-अलग तरीके से थिरक रहा था, ये लड़के देश की उम्मीदें हैं जो भारत को ओलंपिक 2024 में मेडल दिला सकते हैं. ये वो खिलाड़ी हैं जो राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एक के बाद एक ट्राफियां और मेडल ला रहे हैं.

ब्रेकडांस अब डांस या कला नहीं खेल में शुमार हो गया है और ये 2024 में पेरिस में होने जा रहे ओलंपिक में स्पोर्ट्स की कैटेगरी से पहली बार खेला (डेब्यू) जाएगा. हालांकि, कुछ को यह अभी दूर की कौड़ी लग सकती है लेकिन भारत इस खेल से पेरिस ओलंपिक 24 में मेडल की उम्मीद ठीक वैसे ही कर सकता है जैसे कुश्ती, निशानेबाजी और भारोतोलन से करते रहे हैं.

भारत के युवा ब्रेकडांसर्स – या बी-बॉयज और बी-गर्ल्स के लिए – जो माता-पिता और सामाजिक दबावों के खिलाफ विद्रोह के रूप में शुरू हुआ, खेल में एक आशाजनक करियर विकल्प के रूप में विकसित हो रहा है. उनमें से कई ने अपनी इस कला की शुरुआत समुद्री तटों, फुटपाथों और पार्कों पर कलाबाजी कर की लेकिन यही आज भारत के लिए पदक जीतने में मदद कर सकता है.

भारतीय ब्रेकर पहले से ही अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी जगह बना रहे हैं जिनमें कुछ मुंबई की मलिन बस्तियों से आते हैं तो कुछ अन्य छोटे शहरों के भीतरी इलाकों से. जैसा कि ब्रेकिंग बोलने से ही पता चल जाती है इसकी संस्कृति ही शरीर को तोड़ने की है तो ठीक वैसे ही इनलोगों ने अपने डांस को भी वैकल्पिक नृत्य का रूप दिया है लेकिन इनके स्टेज के लिए दिए गए नाम भी बहुत मजेदार हैं.

देश में फिलहाल 16 बी ब्वायज हैं और 8 बी गर्ल्स हैं. जिसमें फ्लाइंग मशीन,वाल्ड चाइल्ड और टोरनाडो सबसे अधिक प्रसिद्ध हैं और जबकि बी- गर्ल्स में जो (जोहाना रोड्रिग्स) और बार-बी दुनिया में अपने ब्रेकिंग के जलवे बिखेर चुकी हैं और कई मेडल्स भी ला चुकी हैं. रेडबुल साइफर इंडिया के इस साल के विजेता कुरुक्षेत्र के गौतम कौलसी उर्फ गिन्नी और जयपुर की सिमरन रंगा उर्फ ग्लिब अक्टूबर में पेरिस के रोलैंड-गैरोस स्टेडियम में रेडबुल बीसी वन वर्ल्ड फाइनल के लिए क्वालीफाई कर लिया है.

पिछले साल बी-ब्वॉय ईश्वर तिवारी उर्फ वाइल्ड चाइल्ड ने न्यूयॉर्क में वर्ल्ड फाइनल्स में भारत का प्रतिनिधित्व किया था. फिर तीन बार के बीसी वन साइफर इंडिया चैंपियन रहे आरिफ चौधरी उर्फ फ्लाइंग मशीन और 2019 के विजेता रमेश यादव उर्फ टॉरनेडो हैं, जिन्होंने अपने जुनून को आगे बढ़ाने के लिए अपने परिवार से लड़ाई तक लड़ी. तीनों मुंबई के रहने वाले हैं.

शीर्ष बी-लड़कियों में मुंबई की सिद्धि टांबे उर्फ ​​बार-बी शामिल हैं, जो पिछले साल न्यूयॉर्क में फाइनल में पहुंचीं, और जोहाना रोड्रिग्स उर्फ बी-गर्ल जो, बेंगलुरु से, दो बार की साइफर चैंपियन, जिन्होंने भरतनाट्यम से ब्रेकिंग तक का सफर तय किया है.

ब्रेक डांस में सबसे चौंकाने वाली बात यह है कि दुनियाभर में खेले जा रहे ब्रेक डांस की स्पांसर रेड बुल है जो बीसी वन वर्ल्ड फाइनल के लिए अर्हता प्राप्त करते हैं, ओलंपिक के लिए रैंक करने के लिए कार्यक्रमों में भाग लेना अधिक चुनौतीपूर्ण होता है. महज दो साल पुराना ब्रेकडांस फेडरेशन ऑफ इंडिया अभी भी सरकार से मान्यता का इंतजार कर रहा है.

23 फरवरी को, छह बी-लड़कों और बी-लड़कियों ने ओलंपिक क्वालीफायर राउंड के लिए रैंकिंग अंक अर्जित करने के लिए जापान की ब्रेकिंग फॉर गोल्ड (बीएफजी) प्रतियोगिता में भारत का प्रतिनिधित्व किया.

बी-गर्ल जो यहां 50वें स्थान पर रहीं – सभी भारतीय प्रतिभागियों में सर्वश्रेष्ठ रहीं. आरिफ उर्फ फ्लाइंग मशीन को 59वीं रैंक मिली है. लेकिन इस अप्रैल में ब्राजील में बीएफजी में केवल दो भारतीय ब्रेकर ही कंपटीशन में भाग ले सके.

ब्रेक डांसर्स का कहना है कि अगर हम अपने खर्चों को नजरअंदाज भी कर दें तब भी हमारे लिए बहुत बड़ी समस्या हमें सरकार से सपोर्ट न मिलना है.

भारत के टॉप के ब्रेकर ईश्वर तिवारी कहते हैं, “हम झुग्गी -झोपड़ियों में पले-बढ़े हैं. ऊंची ऊंची इमारतों में रहने वाले लोग हमें हेय दृष्टि से दखते हैं लेकिन अब समय बदल गया है. हम भी जो देश के लिए ओलंपिक पदक ला सकते हैं.”

पैसों और स्पांसर की कमी की वजह से उन्होंने किसी भी बीएफजी कार्यक्रम में भाग नहीं लिया. वह कहते हैं कि मेरी तरह कई और भी है.

वह कहते हैं, “अभी हम अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए स्पांसर की तलाश कर रहे हैं. अपने सपनों को पूरा करने से लेकर विदेश में देश का नाम कमाने तक का सार काम हम खुद ही कर रहे हैं. लेकिन मुझे पता है जब हम जीत कर वापस आएंगे तो ये जीत देश की होगी.”


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पैशन और डांस

ब्रेक डांस खेल है या कला? यह शायद दोनों एक सी है, जिसकी जड़ें 1970 के दशक की यूएस हिप-हॉप संस्कृति में दिखाई देती हैं. लेकिन बाद में इसने न्यूयॉर्क की छोटी बस्तियों और सबअर्ब में बढ़ रहे गरीब, बेरोजगार युवाओं की क्रिएटिविटी से शुरुआत की. जो उनकी रचना की अभिव्यक्ति कर रहा था जिसके माध्यम से एक जगह बन रही थी लेकिन यह बहुत पॉपुलर नहीं हो सका.

आज, ब्रेक डांस मेन स्ट्रीम डांस से जुड़ चुका है और इसके चारों ओर एक इंडस्ट्री पनप रही है. प्रायोजित प्रतियोगिताएं, प्रशिक्षण कार्यक्रम, यहां तक कि इसके लिए विशेष जूते भी हैं. अगर कंपटीशन के स्तर पर देखें तो यह कुछ कुछ जिम्नास्टिक के बारे में अधिक बताती है. जिसमें डांसर्स का अंग अंग थिरकता है. जिसमें शरीर को स्थिर कर लेने से लेकर फ्रीजिंग तक अब ये विज्ञान का रूप भी ले रहा है.

1970 की दशक की तरह आज भी भारतीयों के लिए ब्रेक डांस खुद से सीखा गई एक कला है.

इन डांसर्स का आज भी पहला कोट गली मोहल्ले का साइबर कैफे में लगा कंप्यूटर और उसकी स्क्रीन ही है. ये डांसर्स टीवी पर देख कर या फिर दोस्तों से प्रभावित होकर ही अपनी कला को इस अंजाम तक पहुंचाया है. भारतीय खुद का क्रिएट करने में भी माहिर हैं जब वे विदेश में किसी प्रदर्शन में पहुंचे तब सभी ने अपने कंपटीटर को देखा और उस मूव से अलग हटकर खुद के मूव्स बनाए और स्पिन जोड़े जिसे पूरी दुनिया ने आजमाया.

भारत के सबसे पॉपुलर ब्रेक डांसर्स ने अपने पैशन की शुरुआत घर से छुप कर की है. मुंबई के स्लम और सब-अर्ब और बेंगलुरु से निकले ये डांसर्स आज विश्व कीर्तिमान बनाने के लिए तैयार हैं.

लड़कों ने जहां अपने डांस के पैशन को घर से छुप कर पूरा किया है वहीं लड़कियों को परिवार की तरफ से पूरा सपोर्ट मिला है. लड़कों का गुरु कोई और नहीं साइबर कैफे में रखा कंप्यूटर है. उनका कहना है कि डांस मूव्स उन्होंने खुद से डेवेल्प की हैं क्योंकि आप जब कंपटीशन में विदेश जाते हैं तो आपके दोस्त बनते हैं और फिर उनसे बातचीत में डांस मूव्स पर बात होती है. फिर ये बी-ब्वायज अपने मूव्स कंपटीशन के हिसाब खुद से इजाद करते हैं.

ईश्वर तिवारी का स्टेज नाम वाइल्ड चाइल्ड है और 2019 में उनका एक मूव दुनिया भर में खूब वाइरल हुआ जिसे उनके स्टेज के नाम से जोड़कर “वाइल्ड स्पिन” नाम दिया गया. वह बताते हैं कि ब्रीजर विविड शफल द्वारा आयोजित एक प्रतियोगिता के दौरान उन्होंने भारत में ही एक हिप-हॉप कैटेगरी के दौरान इसे किया था इस शो को बी-ब्वॉय डेविड ‘किड डेविड’ श्रीबमैन, जिन्होंने 2011 के म्यूजिकल फुटलूज के लिए जाने जाते हैं, इस कार्यक्रम को जज कर रहे थे.

ईश्वर इस दिन को याद करते हुए आज भी उत्साहित हो जाते हैं, वह कहते हैं “जब मैंने यह मूव की, तो किड डेविड अपनी सीट से उठे और खुशी से झूम उठे. भीड़ भी बिलकुल पागल हो गई थी.”

ईश्वर का कहना है कि उन्होंने ‘वाइल्ड स्पिन’, जो उनका सिग्नेचर मूव है यह बिल्कुल अचानक ही बन गई थी.

वह बताते हैं, “एक दिन, मैं अपने दोस्तों और क्रू के साथ ट्रेनिंग करते हुए, मैंने शोल्डर स्पिन करना शुरू कर दिया. संयोग से, मेरा हाथ एक ऐसी स्थिति में फंस गया, जिसे मैंने पहले कभी नहीं आजमाया था. उसके बाद, मैंने इसे अपनी शैली के रूप में लिया और दो महीने से अधिक समय तक इसकी प्रैक्टिस की.” वह आगे बताते हैं कि “मैंने बीसी वन साइफर इंडिया 2021 में इस मूव को एकबार फिर से किया.” उन्होंने उस वर्ष प्रतियोगिता जीती.

आरिफ ‘फ्लाइंग मशीन’ चौधरी, जो मुंबई की बोली और अमेरिकी टंग ट्विस्टिंग भी बड़ी आसानी से करते हैं, उन्होंने भी ब्रेकिंग खुद ही सीखी है..वह अपना गुरू कंप्यूटर को मानते है.

B-boy Arif Chaudhary
मुंबई की ट्रेन में बी-ब्वॉय आरिफ चौधरी ने दिखाया कि क्यों उन्हें ‘फ्लाइंग मशीन’ कहा जाता है | इंस्टाग्राम/@bboyflyingmachine

10 साल की उम्र में सड़कों पर डांस करना शुरू कर दिया था. आरिफ अभी 25 साल के हैं कहते हैं, “मेरी ब्रेकिंग की ट्रेनिंग मुंबई की सड़कों और पार्क में हुई है.” उन्होंने डांस की कोई फॉर्मल ट्रेनिंग नहीं ली है. वह सेल्फ ट्रेंड हैं.

हालांकि, अब जब देश और दुनिया में आरिफ अपने डांस का डंका बजा चुके हैं उन्होंने देश में भी अपना ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट खोलना शुरू कर दिया है. आरिफ ने पिछले दिनों भोपाल में भी एक इंस्टीट्यूट खोला है.

उनका कहना है कि उन्होंने YouTube पर ऑनलाइन ट्यूटोरियल और टर्न इट लूज, ब्रेक आउट, और यू गॉट सेव्ड जैसी हॉलीवुड डांस फिल्मों से अपने कौशल को आत्मसात किया.

उन्होंने 2018 में ऑस्ट्रिया में ब्रेकिंग बाउंड्रीज़ प्रतियोगिता में भाग लिया और अपना पहला अंतर्राष्ट्रीय जैम जीता. उन्होंने नीदरलैंड, स्लोवाकिया और जापान में चैंपियनशिप में बी-बॉयड भी किया.

लेकिन आरिफ की इस सफलता के पीछे छिपी है उसके अनगिनत तकलीफ भरी रातें, परिवार के मना करने के बाद अपने पैशन को पूरा करने का जुनून और अनगिनत परेशानियां.

गरीबी, विद्रोह, टूटा दिल

आरिफ के परिवार को आज उनकी उपलब्धियों पर गर्व है, लेकिन हमेशा ऐसा नहीं था. जब वह मुंबई के जोगेश्वरी में बड़े हो रहे थे, तो उनके माता-पिता को उनके डांस के इस शौक से बहुत उम्मीदें नहीं थीं बल्कि वो चिंता में पड़ गए थे. उनके मुस्लिम समुदाय में डांस करना हराम माना जाता है. उनके पिता, एक ठेकेदार थे जो चाहते थे कि वह अपनी पढ़ाई पर ध्यान दें.

वह बताते हैं,“मुझे बचपन में डांस करने के लिए बहुत डांट पड़ी थी. हर कोई मेरे करियर को लेकर चिंतित था लेकिन मुझे केवल अपने डांस की चिंता थी.”

आरिफ अक्सर अपने पिता से अपने डांस के शौक को छुपाता था, उन्हें जब उनके शौक के बारे में पता चला तो उसकी खूब पिटाई भी हुई. क्योंकि वह उसके हाथों में किताबों की जगह डांस भी अजीबो गरीब तरीके से करते हुए देखते थे.  वह पढ़ाई में अच्छा था, लेकिन एक बार जब उसने नृत्य में उत्कृष्ट प्रदर्शन करना शुरू कर दिया, तो वह ग्रेजुएशन की पढ़ाई पूरी नहीं कर सका.

आरिफ ने कहा, “मेरी मां ने हमेशा मेरा साथ दिया. जब मैं पहली बार जीतकर लौटा तो मेरे पिता ने भी मेरा बहुत साथ दिया.”

रमेश ‘टोर्नाडो’ यादव 10 साल की उम्र से ब्रेक डांस कर रहे हैं.

वह हंसते हुए कहते हैं, “2024 में ओलंपिक में ब्रेकिंग की शुरुआत हो रही है, लेकिन हम इसके लिए 15 साल की उम्र से अपनी हड्डियां तुड़वा रहे हैं.”

ब्रेकडांसिंग के लिए उनका जुनून आसान भी नहीं रहा है. परिवार का साथ नहीं मिलने पर वह घर छोड़कर अकेले रहने लगे.

मुंबई के मनखुर गवंडी में उसी झुग्गी बस्ती में रहे डांसर सागर को देखकर रमेश का डांस के प्रति जुनून जागा. सागर बस्ती के बच्चों को डांस सिखाता था और स्लम के बच्चों में ही कंपटीशन कराता था.

रमेश ने जब पहली बार ब्रेकिंग शुरू की तो उसे पता भी नहीं था कि इस डांस फॉर्चम का नाम क्लाया है. उसे लगता था कि वो जो भी कर रहा है वह बहुत ही अच्छा है और वह एक्शन स्टंट कर रहा है.

वह कहते हैं, “जब स्लम के एक भाई ने मुझसे कहा कि मैं अच्छा डांस करता हूं. तब तक मुझे यह भी पता नहीं था कि इस डांस में कॉम्पिटिशन होता है और लड़ाईयां लड़ी जाती हैं और इसके लिए विदेश भी जा सकते हैं.”

2019 में, रमेश ने रेड बुल बीसी वन साइफर इंडिया जीता. उन्होंने स्पॉन्सरशिप की मदद से डांस-ऑफ के लिए विदेश यात्रा भी की है. वह पेरिस 2024 में जाने का सपना सिर्फ देखा नहीं है, बल्कि अगर सरकार से मदद मिली और पैसे जमा हो गए तो वे जीत के आने का दम भरते हैं. लेकिन अभी उनकी चिंता सिर्फ पेरिस क्वालीफाइंग के लिए चल रही प्रतियोगिताओं के लिए पर्याप्त राशि एकत्रित करने को लेकर चिंतित हैं.

Ramesh 'Tornado' Yadav
रमेश ‘बवंडर’ यादव | Instagram@tornado.ramesh

ईश्वर तिवारी की कहानी रमेश और आरिफ की कहानी से बहुत अलग नहीं है. उन्होंने 2012 में 14 साल की उम्र में डांस करना शुरू किया था. और वो अपने इस पैशन में इतना रम गए कि पढ़ाई में अच्छे होते हुए भी स्कूल से बाहर कर दिए गए.

वह कहते हैं, “उस समय, मुझे नहीं पता था कि मैं क्या कर रहा हूं. मैं बस इतना जानता था कि जब मैं डांस करता हूं, जिसे करने के बाद मैं दूसरी दुनिया में पहुंच जाता हूं और मेरी पूरी दुनिया बदल जाती है.”

ईश्वर के परिवार ने भी उनका उनके इस पैशन के लिए समर्थन नहीं किया- सिवाय उनकी मां के. वह कहते हैं, “मेरी मां मुझे बहुत प्यार करती है, वह मुझ पर विश्वास करती है. आज आप मुझसे सिर्फ उनके त्याग और विश्वास की वजह से बात कर रही हैं.”

ईश्वर के पिता का 2020 में निधन हो गया, लेकिन उनका कहना है कि परिवार के अन्य सदस्य जो उनके डांस को स्वीकार नहीं करते थे, वे भी अब मेरी सफलता और नाम के बाद मुझसे खुश हैं. वह कहते हैं कि मेरी दादी का अरमान था कि मैं इंग्लिश बोलूं और अब जब मैं अंग्रेजी में बात करता हूं तो मेरी दादी को बहुत अच्छा लगता है. अंग्रेजी उन्होंने अपनी डांसिंग प्रैक्टिस और विदेश यात्राओं के दौरान सीखा है.

वे कहते हैं, ”पहले मैं छिपकर प्रैक्टिस करता था. “अब मेरे परिवार के सदस्यों को मुझ पर गर्व है.”


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बी-गर्ल्स

हालांकि बी-ब्वॉयज की तुलना में बी-गर्ल्स की स्थिति थोड़ी अलग रही है. उन्हें अपने पैशन को पूरा करने के लिए परिवार से न तो भागना पड़ा और न ही कुछ छुपाना ही पड़ा. यहां लड़कों की तुलना में लड़कियों की स्थिति थोड़ी अलग इसलिए भी है कि इन बेटियों को इनकी मां का साथ भी खूब मिला जिससे इन्होंने अपने सपनों में रंग भरे.

भारत की सबसे प्रसिद्ध ब्रेकर्स में से एक, मुंबई की सिद्धि ‘बार्बी गर्ल’ तांबे ने 2021 में बीसी वन इंडिया का खिताब जीता और विश्व फाइनल में प्रतिस्पर्धा करने के लिए आगे बढ़ी.

वह कहती हैं, मुझे टीवी चैनल पर आने वाले डांस शो खूब आकर्षित करते थे. मुझे लगता था कि अगर पॉपुलर होना है तो कुछ अलग करना होगा और फिर डांस से अलग क्या ही हो सकता था. मैंने शुरुआत बॉलीवुड डांस सीखने से की लेकिन मेरी बॉडी और डांसिग स्टाइल देखने के बाद उनके गुरु और टीम मेंबर्स ने उन्हें ब्रेकिंग के लिए राजी कर लिया.

वह 2024 ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने की उम्मीद कर रही हैं, लेकिन पैसा उनके लिए भी एक मुद्दा है. उनकी मां एक आंगनवाड़ी शिक्षिका हैं और उनके पिता अस्पताल के वार्ड सहायक हैं. पैसे की तंगी है.

सिद्धि, जो सेकेंड ईयर की स्टूडेंट हैं कहती हैं कि उसका परिवार उसके डांस को लेकर बंटा हुआ है. उसकी मां चाहती हैं कि वह अपने सपनों में रंग भरती रहें लेकिन उनके पिता को इसपर थोड़ी आपत्ति है.

नतीजतन, उसने एक बीच का रास्ता अपनाया है – अपनी मां के लिए, वह डांस कर रही है, लेकिन अपने पिता के लिए, वह पढ़ाई भी नहीं छोड़ रही है.

सिद्धि कहती हैं, “मैं पढ़ाई में अच्छी हूं. मैं एक वैज्ञानिक बनना चाहती हूं, लेकिन मैं अपना डांस नहीं छोड़ना चाहती, इसलिए मैं बॉटनी और केमिस्ट्री सब्जेक्ट में पढ़ाई कर रही हूं. मैं एमएससी भी करना चाहती हूं.”

Siddhi Tambe
जापान में किताक्यूशु में सिद्धि ‘बारब’ ताम्बे | इंस्टाग्राम/@bgirl_barb

एक दूसरी भारतीय जो देश में ओलंपिक मेडल लाने का सपना देख रही हैं वो हैं बेंगलुरु की जोहाना ‘बी-गर्ल जो’ रोड्रिग्स ने कई अन्य लोगों की तुलना में फुलटाइम डांसर बनने के लिए एक आसान बदलाव किया है.

उनकी मां एक क्लासिकल सिंगर हैं और जब उनकी बेटी ने जब डांस को अपना करियर बनाने की सोची तो उन्हें कोई परेशानी नहीं हुई. वह कहती हैं कि जोहाना ने 12वीं के बाद अपनी शिक्षा छोड़ दी और उनका जीवन ब्रेकिंग और अन्य प्रकार के नृत्य के इर्द-गिर्द घूम रहा है.

वह अपनी अधिकांश कमाई प्रशिक्षकों के साथ काम करने, शरीर को भरपूर न्यूट्रीशन देने और अपने खेल को बेहतर बनाने में लगाती हैं. वह कहती हैं, ”काश सरकार भी हमारी मदद करती.”

क्वालीफाई करने के लिए संघर्ष जारी है

पेरिस 2024 अगले साल जुलाई-अगस्त में होगा, लेकिन अंतिम ओलंपिक क्वालीफ़ायर सीरीज़ तक पहुंचने के लिए पर्याप्त अंक हासिल करने के लिए एक एक क्षण कीमती महसूस हो रहा है और समय तेजी से निकल रहा है.

ब्रेकरों की रैंकिंग इस बात पर निर्भर करती है कि वे ब्रेकिंग फॉर गोल्ड (बीएफजी) श्रृंखला जैसी विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में कैसे स्थान बनाते हैं. अब तक, केवल कुछ मुट्ठी भर ही इसे शॉट दे पाए हैं.

जापान के किताक्यूशू में बीएफजी में, छह की एक टीम ने प्रतिस्पर्धा की. तीन बी-बॉयज में आरिफ ने 59वां स्थान हासिल किया, इसके बाद रमेश और सूरज राउत (‘बी-बॉय सूरज’) क्रमशः 62वें और 91वें स्थान पर रहे.

बी-लड़कियों में, जोहाना ने 50वें स्थान पर सर्वोच्च भारतीय रैंकिंग हासिल की, सुषमा सतीश ऐथल (‘बी-गर्ल सुषमा’) 64वें स्थान पर आ गईं, और सिद्धि तांबे 76वें स्थान पर रहीं.

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जोहाना रोड्रिग्स उर्फ बी-गर्ल जो/Instagram/@bgirrrljo

ब्राजील के रियो डी जनेरियो अप्रैल में बीएफजी में, प्रतिभागियों की संख्या घटकर सिर्फ दो रह गई. केवल सूर्यदर्शन ‘क्रेजी ब्राइट’ बगियाराज और सुषमा ने अपनी-अपनी श्रेणियों में 68वां और 51वां स्थान हासिल करते हुए भारत का प्रतिनिधित्व किया.

ब्रेकडांस फेडरेशन ऑफ इंडिया (बीडीएफआई) के सचिव बिस्वजीत मोहंती ने दिप्रिंट को बताया कि उन्होंने और अन्य प्रतिनिधियों ने ब्राजील प्रतियोगिता से पहले मार्च में केंद्रीय खेल मंत्री अनुराग ठाकुर से मुलाकात की थी.

उन्होंने एथलीट प्रशिक्षण और ओलंपिक से पहले की तैयारी के लिए फंडिंग की मांग की थी, लेकिन मोहंती का कहना है कि उन्हें अभी तक कोई निश्चित प्रतिक्रिया नहीं मिली है. बीडीएफआई को अभी तक सरकार द्वारा मान्यता प्राप्त नहीं है.

यहां तक कि जापान को छह ब्रेकर भेजने का प्रबंध करना भी एक संघर्ष था. वह कहते हैं, “हमारे पास पर्याप्त पैसा नहीं है. एक यात्रा पर प्रति व्यक्ति करीब 12 लाख रुपये का खर्च आता है. हम अपने एथलीटों के साथ एक कोच भी नहीं भेज पाए.”

वह आगे कहते हैं, “हमने धन के लिए भारतीय ओलंपिक संघ से भी संपर्क किया है. हमने इसकी अध्यक्ष पीटी उषा से मिलने की कोशिश की, लेकिन नहीं हो पाई. हमने उनके लिए एक पत्र छोड़ा है.”

अधिकांश भारतीय ब्रेकर्स प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए अपनी तरफ से जुगत में लगे हैं उन्होंने फिंगर क्रॉस कर रखी है और उन्हें चमत्कार पर भी विश्वास है और अपनी मेहनत पर भी जो उन्हेंओलंपिक के लिए क्वालीफाई करने में मदद करेगा.

कुल 32 ब्रेकर- 16 बी-बॉयज और 16 बी-गर्ल्स, ब्रेकिंग में पहली बार ओलंपिक पदक के लिए प्रतिस्पर्धा करेंगे.

योग्यता प्रणाली कुछ जटिल है. लेकिन संक्षेप में, योग्यता इस बात पर निर्भर करती है कि कोई एथलीट वर्ल्ड डांसस्पोर्ट फेडरेशन (डब्ल्यूडीएसएफ) ब्रेकिंग वर्ल्ड रैंकिंग में कैसे स्थान बनाता है. डब्ल्यूडीएसएफ ब्रेकिंग इवेंट्स और अन्य चयनित प्रतियोगिताओं में भाग लेकर अंक अर्जित किए जा सकते हैं. शीर्ष क्रम के एथलीट ओलंपिक के लिए क्वालीफाई करेंगे. एक फाइनल क्वालीफिकेशन सीरीज भी होगी जहां एथलीट ओलंपिक में जगह बना सकते हैं.


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ठंड से लड़ने तैयारी, ‘7-8 घंटे रोज ट्रेनिंग’

भारतीय ब्रेकडांसरों को सिर्फ अपने पैशन के लिए अपने परिवारों और स्पांसर से ही नहीं निपटना पड़ रहा है बल्कि इससे बड़ी चुनौती तब खड़ी हो जाती है जब वो विदेश जाते हैं और वहां के मौसम को एडॉप्ट करने के लिए वहां के मौसम और भोजन भी उनके लिए बड़ी चुनौती से कम नहीं है.

रमेश ‘टोर्नाडो’ यादव कहते हैं, “यूरोप, नीदरलैंड, जापान सभी बहुत ठंडे देश हैं… हमें अपने शरीर को गर्म करने में बहुत कठिनाई का सामना करना पड़ता है.”

प्रिंट ने जितने भी ब्रेकरों से बात की, उनका कहना था कि ब्रेकडांसिंग के लिए कठिन प्रशिक्षण आवश्यक है. सभी ने कहा कि वे हर दिन कम से कम चार से पांच घंटे अभ्यास करते हैं, इसके अलावा कुछ घंटे जिम में कसरत करते हैं.

रमेश फिलहाल स्लम और ब्रेकिंग में रूचि रखने वाले बच्चों को चार घंटे डांसिंग सिखाता है और 7-8 घंटे खुद प्रैक्टिस करता है. जोहाना कहती हैं कि योग से उन्हें अपना कांसनट्रेशन बनाए रखने में भी मदद मिलती है.

ये ब्रेकर्स घंटों जिम करके खुद का स्ट्रेंथ भी बढाते हैं. बी-गर्ल बताती हैं कि वो खुद को फिट रखने के लिए योग करती हैं. स्ट्रेंथ के लिए भी कोचिंग ली है. जबकि डायट, न्यूट्रीशन सप्लीमेंट का ध्यान रखना होता है… न्यूयॉर्क शहर की सड़कों पर 1970 के दशक की शुरुआत में लोकप्रियता हासिल करने वाला, ब्रेकिंग अब एक विश्वव्यापी समुदाय और संस्कृति बन गया है जिसके लिएआपके शरीर में पावर, लचीलापन, कंट्रोल, धीरज और म्यूजिकैलिटी की एक साथ जरूरत होती है.

ओलंपिक से पहले, वे सभी सबसे कम संभव एसी तापमान में अभ्यास कर रहे हैं ताकि ठंड की स्थिति में प्रतिस्पर्धा करने पर वे आसानी से अभ्यस्त हो सकें.

करीब छह-सात साल पहले नीदरलैंड में प्रतिस्पर्धा करने की अपनी यादों को साझा करते हुए, रमेश कहते हैं कि वह लैंग्वेज ही नहीं बल्कि अजीबो-गरीब खाने से भी परेशान हो गया था. जिसका असर उनकी परफॉर्मेंस पर भी पड़ा.

वह आगे कहते हैं, “मैं जब कुछ समझ नहीं पा रहा था तो मैंने वहां एक गुरुद्वारा ढूंढा और पहले दाल-चावल खाया,” वे कहते हैं, “मैं उन दिनों ठीक से अंग्रेजी भी नहीं बोल पाता था, तब से, विशेष रूप से 2019 में बीसी वन साइफर इंडिया चैंपियन बनने के बाद, उनका आत्मविश्वास बढ़ा है.

उनका कहना है कि वह अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय प्रतियोगिता में चकित थे, लेकिन अब वह शीर्ष स्तर के वैश्विक सर्किट का हिस्सा महसूस करते हैं.

वे कहते हैं, “मैं उन लोगों को देखकर घबरा जाता था, जिनके वीडियो से मैंने ब्रेकडांस सीखा था. अब दुनिया के सबसे अच्छे ब्रेकडांसर मेरे दोस्त हैं.”


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