रोहतक: हरियाणा की महार्षि दयानंद यूनिवर्सिटी (एमडीयू) में सन्नाटा पसरा है. पांच दिन बीत चुके हैं उस घटना को, जब दो सफाई सुपरवाइज़र और असिस्टेंट रजिस्ट्रार पर तीन महिला सफाईकर्मियों से उनके पीरियड्स साबित करने के लिए सेनेटरी पैड की फोटो खींचने का आरोप लगा.
राज्य को झकझोर देने वाली इस घटना ने यूनिवर्सिटी के सफाईकर्मियों को एकजुट कर दिया है और स्थानीय दलित संगठनों को सक्रिय किया है, लेकिन कोई बात नहीं कर रहा.
सफाईकर्मी और दलित संगठन आरोपियों की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी लड़ाई उदासीनता की दीवार से टकरा गई है.
छोटे शहर की महिलाओं को लेकर पिछड़ी सोच अब सबके सामने आ गई है. चुप्पी की एक डोर यूनिवर्सिटी के व्हाट्सऐप ग्रुप से लेकर मैदान में उतरे कार्यकर्ताओं तक फैली है. छात्रों और शिक्षकों का रवैया उदासीनता का है, जबकि न्याय मांग रहे कार्यकर्ताओं में शर्म का भाव है— “लेडीज़ प्रॉब्लम पर कैसे बात करें?”
यह वही कोडवर्ड है, जो हर महिला के एक प्राकृतिक अनुभव के लिए समाज ने बना रखा है.
सबको पता है मुद्दा क्या है, लेकिन कोई उस ‘हाथी’ को नहीं देखना चाहता जो कमरे में खड़ा है—मासिक धर्म.
छात्रों को यह घटना एक वीडियो क्लिप से पता चली जो एक बंद ग्रुप में शेयर की गई थी, जिसमें लिखा था — “महिला सफाईकर्मियों के साथ गलत व्यवहार.”
लेकिन मैसेज ने कोई चर्चा नहीं छेड़ी. ग्रुप में अगली चैट ऐसे चली, जैसे कुछ हुआ ही न हो. छात्र फिर चुटकुले भेजते रहे, हंसते इमोजी लगाते रहे.
नाम न छापने की शर्त पर पीएचडी की एक स्टूडेंट ने कहा, “यहां छात्रों में सामाजिक जागरूकता की कमी है. उनके लिए बस नौकरी पाना ही मायने रखता है.”
बुधवार को सुपरवाइज़र वितेंद्र कुमार, विनोद हुड्डा और असिस्टेंट रजिस्ट्रार श्याम सुंदर के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई. कुमार और हुड्डा—जो हरियाणा कौशल रोजगार निगम लिमिटेड के माध्यम से अनुबंध पर काम कर रहे थे—उन्हें यूनिवर्सिटी ने सस्पेंड कर दिया है, लेकिन अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है.

मामला क्या था
यह मामला शहर के घरों तक नहीं पहुंचा—हर कोई इसे दबाना चाहता है. रोहतक में ‘लेडीज़ प्रॉब्लम’ को शर्म और इज्ज़त से जोड़ा जाता है. तीनों महिलाओं को गहरा अपमान और तकलीफ महसूस हुई है.
मैं उन लोगों के साथ कैसे काम करूं जिन्होंने मेरी इज्ज़त और गरिमा को ठेस पहुंचाई?
41-वर्षीय सफाईकर्मी
घटना 26 अक्टूबर की है, जब राज्यपाल अशीम कुमार घोष तीन दिन के दौरे पर यूनिवर्सिटी आए हुए थे. उस दिन छुट्टी के बावजूद सभी सफाईकर्मियों को काम पर बुलाया गया था.
असिस्टेंट रजिस्ट्रार श्याम सुंदर कैंपस में घूम रहे थे और बार-बार सफाईकर्मियों को काम ठीक से करने को कह रहे थे— “यह सड़क साफ करो, अब वो.” जैसे ही झाड़ू रुकती, वहीं आकर डांटने लगते.
तीनों महिलाओं ने सुबह लाइब्रेरी के बाहर की सड़क साफ की और एक घंटे बाद थोड़ा आराम करने अंबेडकर मूर्ति के पास बैठीं. धूप और असिस्टेंट रजिस्ट्रार के डर ने थका दिया था.
उनमें से एक महिला पैड बदलने जाना चाहती थी, लेकिन हिचकिचा रही थीं. उन्हें डर था कि कहीं सुपरवाइज़र उन्हें ढूंढते न आ जाएं. थोड़ी देर में उनका अगला काम—कैंपस के अंदरूनी हिस्से की सफाई—शुरू होना था. जैसे ही वह उठने लगीं, कुमार का फोन आया— “इंडोर एरिया साफ करो.” महिलाओं ने मना किया—वे थकी थीं और पीरियड्स के शुरुआती दिन थे. उन्होंने कहा, “थोड़ा रुकिए, हम काम पूरा कर देंगे.”

लेकिन कुमार को यकीन ही नहीं हुआ कि तीनों महिलाएं एक साथ पीरियड्स में हो सकती हैं. थोड़ी देर बाद उसने फिर फोन किया और उन्हें स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स बुला लिया. वहां वितेंद्र कुमार और विनोद हुड्डा दोनों मौजूद थे.
कुमार ने कहा, “जाओ, वॉशरूम में जाकर फोटो खींचो.” हुड्डा ने पास बैठकर मुस्कुराते हुए कहा, “हां हां, जाओ, चेक करो.”
तीनों महिलाएं एक चौथी साथी के साथ वॉशरूम गईं—उसे भी फोटो खींचने के लिए मजबूर किया गया. उन्होंने एक पांचवीं सफाईकर्मी का फोन इस्तेमाल किया, जो पहले से वॉशरूम में थी.
महिलाओं ने अपने सलवार की नाड़ा ढीला किया और साथी ने उनके खून लगे पैड्स की तस्वीरें खींचीं.
एक महिला ने कहा, “हमें बहुत बुरा लगा. यह हमारी इज्ज़त और आत्मसम्मान पर हमला है.”
इसके बाद तीनों महिलाएं स्पोर्ट्स कॉम्प्लेक्स से बाहर निकलीं, लेकिन सदमा वहीं रह गया. दो महिलाएं रजिस्ट्रार के दफ्तर शिकायत करने गईं—कोई नहीं मिला. 41-वर्षीय महिला वाइस-चांसलर के ऑफिस के बाहर रोने लगीं. कुछ छात्रों ने देखा और मामला प्रशासन तक पहुंच गया.
अब महिलाएं प्रशासन से लड़ रही हैं. गुरुवार को उन्होंने सेक्शुएल हैरेसमेंट सेल की प्रमुख प्रोफेसर सपना गर्ग के सामने बयान दिया, लेकिन मामला चार दीवारों में सीमित है. ‘लेडीज़ प्रॉब्लम’ अब एमडीयू के लिए सामाजिक और राजनीतिक संकट बन चुका है.
अब माहौल है—छिपाओ, दबाओ, और बचाओ. सच्चाई छिपाओ, तथ्य दबाओ, और महिलाओं की इज्जत बचाओ.
वर्करों के आसपास अब फोन लाना मना है, कोई रिकॉर्डिंग नहीं. महिलाएं सिर ढककर काम करती हैं. थाने के एसएचओ रोशन लाल भी चाहते हैं कि ‘लेडीज़ मैटर’ की बात महिला पुलिस अधिकारी ही करें.
दिप्रिंट ने प्रोफेसर गर्ग से संपर्क किया, उन्होंने कहा—“मामला संवेदनशील है, मैं कुछ नहीं कह सकती.” वाइस-चांसलर हाल ही में सर्जरी के कारण छुट्टी पर हैं.
दुख, मेंटल हेल्थ और टैबू
यह घटना शर्म और झिझक की चादर में लिपटी हुई है, लेकिन उन महिलाओं के लिए असली संघर्ष अब शुरू हुआ है.
गुरुवार को यूनिवर्सिटी की समिति के साथ पहली दौर की बैठक खत्म कर जब वे बाहर आईं, तो उनके थके हुए, पीले चेहरे घंटों की लगातार पूछताछ का असर बयां कर रहे थे.
एक सफाईकर्मी ने कहा, “मैं तो तोता बन गई हूं. बार-बार वही बात दोहरानी पड़ती है.”
पत्रकार उन्हें घेर लेते हैं. उन्हें बचाने के लिए पुरुष कार्यकर्ता उनके चारों ओर खड़े रहते हैं. वे अब सबके फोकस का सेंटर बन गई हैं — जो उनके दुख को और बढ़ा देता है.
उनमें से एक ने अपने फोन पर आ रहे लगातार कॉल्स को दिखाते हुए कहा, “मुझे अजीब-अजीब नंबरों से फोन आ रहे हैं. वो बार-बार वही बातें पूछते हैं. मैं अब नहीं कर सकती.”
उन्होंने फोन नीचे रख दिया और गहरी सांस ली. वे सुबह-सुबह यूनिवर्सिटी पहुंची थी और बाकी महिलाओं के साथ शाम 7 बजे निकलीं.
इन सफाईकर्मियों को सुपरवाइज़र के मौखिक उत्पीड़न का सामना लंबे समय से करना पड़ रहा है. उन्हें डांटा जाता है, अपमानित किया जाता है.
एक महिला ने कहा, “हम पूरी कोशिश करते हैं कि यूनिवर्सिटी साफ रहे, लेकिन वो कभी खुश नहीं होते. कुछ न कुछ निकाल ही लेंगे.”
अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति की राष्ट्रीय उपाध्यक्ष जगमति सांगवान ने कहा, “दलित महिला को परेशान करना आसान है, क्योंकि जाति के कारण वह पहले से ही कमजोर स्थिति में होती है.”
लैंगिक और सामाजिक पायदान पर दलित महिलाएं सबसे निचले स्तर पर गिनी जाती हैं. समाज में उनकी स्थिति उन्हें शोषण का आसान निशाना बनाती है. ये तीनों सफाईकर्मी दलित महिलाएं हैं, जो ऊंची जाति के अधिकारियों के अधीन काम करती हैं — यह सत्ता के दुरुपयोग को और आसान बना देता है.
छात्रावासों में मोमबत्तियां जलाना
यह घटना कोई अलग-थलग मामला नहीं है. एमडीयू कैंपस में सामान्य तौर पर यौन उत्पीड़न और लिंगभेद की घटनाएं आम हैं. महिलाओं के हॉस्टल शाम 7 बजे बंद हो जाते हैं, जबकि पुरुषों के हॉस्टल 24 घंटे खुले रहते हैं.

दिल्ली की एक फर्स्ट इयर की बीएससी स्टूडेंट ने बताया कि वह एमडीयू इसलिए आई क्योंकि दिल्ली यूनिवर्सिटी में उन्हें मनचाहा कोर्स नहीं मिला, लेकिन यहां के कल्चर ने उन्हें झटका दिया. वे रोज़ाना मिलने वाले उत्पीड़न की शिकायत करती हैं.
उन्होंने कहा, “यहां हर चीज़ में जेंडर के हिसाब से फर्क किया जाता है. पुरुष छात्र अपनी एसयूवी और थार गाड़ियां कैंटीन के बाहर लगाते हैं, जबकि हम लड़कियां पैदल हॉस्टल लौटती हैं.”
जुलाई में यूनिवर्सिटी तब सुर्खियों में थी जब एक शोध छात्रा ने एक सहायक प्रोफेसर पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया था. प्रोफेसर को बर्खास्त कर दिया गया और मामला वहीं खत्म हो गया.
एक स्टूडेंट ने कहा, “जब एक शोध छात्रा के साथ ऐसा हुआ और कुछ नहीं हुआ, तो अब एक सफाईकर्मी के साथ अन्याय पर कौन बोलेगा?”
हरियाणा की टॉप सरकारी यूनिवर्सिटीज़ में शुमार एमडीयू आज भी ऐसे माहौल में है जहां पुरुष और महिलाएं खुलकर बात नहीं कर सकते. यह समाज में बुरा माना जाता है.
यूनिवर्सिटी की महिला छात्राएं ज्यादातर मार्च या विरोध प्रदर्शन में अपने हॉस्टल की खिड़कियों से हिस्सा लेती हैं. कभी भगत सिंह के नारे सुनाई देते हैं, तो कभी वे अपने कमरे की खिड़कियों से मोमबत्ती जलाकर एकजुटता जताती हैं.
जब पूरा देश आर.जी. कर रेप पीड़िता के समर्थन में सड़कों पर उतरा, तो यूनिवर्सिटी के पुरुष छात्रों ने कैंडल मार्च निकाला, लेकिन महिलाएं अपने हॉस्टल के अंदर ही रहीं, क्योंकि उनका कर्फ्यू टाइम हो चुका था.
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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