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Tuesday, 17 September, 2024
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चोरी के लिए कुख्यात राजस्थान का नयाबास कैसे बना सरकारी अधिकारियों का गांव

1970 के दशक तक नयाबास अपराधियों के गांव के नाम से कुख्यात था. अब, इस गांव के करीब 500 लोग सरकारी नौकरी करते हैं, जिनमें 10 यूपीएससी अधिकारी और दो दर्जन से अधिक स्टेट सर्विस में हैं.

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नयाबास (नीम का थाना): राजस्थान का यह गांव जो ज्यादातर चोरी और अवैध शराब के कारोबार के लिए जाना जाता था आज दर्जनों आईएएस, आईपीएस, आईआरएस अधिकारियों वाला गांव कहलाता है. इस गांव के लोगों की पुलिस, रेलवे, बैंक, केंद्रीय बलों, मेडिकल, और शिक्षा के क्षेत्र में रिकॉर्ड संख्या नौकरियां हैं और यह तभी संभव हुआ जब अपराध से ग्रसित नयाबास गांव की एक युवती 2020 में पहली जज बनी और इसकी पुरानी छवि पूरी तरह से धूमिल हो गई.

अभिलाषा ज़ेफ का जज बनना पूरे गांव के लिए खुशी का पल था. डीजे और नाचते-झूमते बच्चों के साथ कार का एक काफिला उनकी जीत का जश्न मना रहा था. पारंपरिक राजस्थानी परिधानों में सजी महिलाओं ने उनका उत्साहवर्धन किया. इनमें सरिता मीणा भी शामिल थीं, जिन्होंने उस दिन अपनी बेटी को पढ़ाने और उसे भी बड़ा अधिकारी बनाने की कसम खाई थी.

राजस्थान के नीम का थाना जिले में स्थित नयाबास की कई युवा लड़कियों के लिए वो खुशी का दिन एक महत्वपूर्ण मोड़ था. अब, ज़ेफ टोंक जिले के देवली कोर्ट में अतिरिक्त सिविल जज हैं और सरिता मीणा की बेटी मिडिल स्कूल में है.

हरे रंग की फूलों वाली साड़ी पहने अपने घर के आंगन में बैठी सरिता ने कहा, “जब पुरुष चुने जाते थे, तो हमने गांव में बहुत जश्न मनाया है, लेकिन उस दिन महिलाओं के लिए बड़ी उपलब्धि थी. हर कोई अपनी बेटियों को पढ़ाने का सपना देखने लगा. यह सब उस गांव में हो रहा है, जो कभी बदनाम था. यह सब शिक्षा की वजह से है.”

अभिलाषा ज़ेफ जज के रूप में चुने जाने के बाद नयाबास में मशहूर हो गईं | फोटो: फेसबुक/@श्रवण प्रधान नयाबास
अभिलाषा ज़ेफ जज के रूप में चुने जाने के बाद नयाबास में मशहूर हो गईं | फोटो: फेसबुक/@श्रवण प्रधान नयाबास

ज़ेफ के इतिहास रचने से पहले, अन्य महिलाओं ने भी इन बाधाओं को तोड़ा था, जिनमें 2010 बैच की आईपीएस अधिकारी अलका मीणा भी शामिल हैं, जो वर्तमान में पंजाब पुलिस में उप महानिरीक्षक (डीआईजी) तैनात हैं.

मीणा बहुल इस गांव में आईएएस-आईपीएस-आईआरएस की ताकत साफ देखी जा सकती है, जो बीते चार दशकों में धीरे-धीरे अपराध-ग्रस्त से अधिकारियों का गांव बन गया है. वर्तमान में सरकारी नौकरी वाले लगभग 500 लोगों में से 10 यूपीएससी अधिकारी हैं और दो दर्जन से अधिक राजस्थान प्रशासनिक सेवा जैसी राज्य सेवाओं में हैं.

अब, नयाबास की दीवारों पर टॉपर्स के चेहरों वाले कोचिंग संस्थानों के होर्डिंग्स हर जगह लगे हुए हैं. यह एस्पिरेंट्स का गांव है और इसे “आईएएस-आईपीएस फैक्ट्री” भी कहा जाता है.

बेहतरीन उपलब्धि हासिल करने वालों की फेहरिस्त में डीआईजी अल्का मीणा, भारतीय राजस्व सेवा अधिकारी श्री राम मीणा, भारतीय आर्थिक सेवा अधिकारी अजय ज़ेफ, सहायक पुलिस अधीक्षक राजेंद्र मीणा, आईएफएस अधिकारी विवेक ज़ेफ और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी केएल मीणा शामिल हैं.

नयाबास के रोल मॉडल सेलिब्रिटी नहीं बल्कि पड़ोसी और परिवार के सदस्य हैं जो सत्ता के गलियारों में छाए हुए हैं, लेकिन ये ‘आदर्श’ किसी दूर के पद पर नहीं हैं. यहां मेंटरशिप की एक मजबूत संस्कृति है.


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हर जगह रोल मॉडल

24-वर्षीय अंकित ज़ेफ अपने बी.एड के एग्जाम में पास होने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे हैं. उनका लक्ष्य सरकारी कॉलेज में मैथ्स का लेक्चरर बनना है. उनके भाई आलोक अगरतला में कस्टम इंस्पेक्टर हैं. उनके जैसे नयाबास के कईं युवाओं के लिए शिक्षा सिर्फ एक जरिया नहीं बल्कि अच्छी ज़िंदगी जीने का एक तरीका है.

अंकित ने कहा, “यहां पानी की बहुत कमी है, इसलिए हम खेती पर निर्भर नहीं रह सकते. हम साल में सिर्फ एक बार मानसून के दौरान ही फसल बो पाते हैं. ऐसी स्थिति में शिक्षा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है.”

नयाबास के युवाओं में अंकित का नज़रिया आम है. यहां युवा माता-पिता से लेकर गांव के बुजुर्गों तक, शिक्षा और उपलब्धि अक्सर चर्चा का विषय होते हैं. रोल मॉडल सेलिब्रिटी नहीं बल्कि पड़ोसी और परिवार के सदस्य हैं जो सत्ता के गलियारे तक भी पहुंच चुके हैं.

जब मैं 1975 में आईएएस अधिकारी बना, तो मेरी आवाज़ मज़बूत हुई और लोगों को समझ में आया कि नौकरी के साथ कितना सम्मान मिलता है. इससे गांव में शिक्षा की प्रक्रिया शुरू हुई

— केएल मीणा, सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी

लेकिन ये ‘रोल मॉडल्स’ कहीं दूर नहीं हैं. यहां मार्गदर्शन की एक मजबूत संस्कृति है. सरकारी नौकरी मिलने के बाद लोग अपने गांव से दूर नहीं भागते बल्कि लगातार संपर्क में रहते हैं और समुदाय को आगे बढ़ने में मदद करते हैं.

अंकित ने बताया, “सेवानिवृत्त अधिकारी लगातार नई पीढ़ी से बात करते हैं और उनका मार्गदर्शन करते रहते हैं.”

साल में दो बार, 15 अगस्त और 26 जनवरी को, समस्याओं और युवाओं के भविष्य पर चर्चा करने के लिए गांव के कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, जिनकी अध्यक्षता प्रतिष्ठित निवासी और विजिटर्स करते हैं. इनमें से एक सेवानिवृत्त ओएनजीली अधिकारी एसआर मीणा हैं, जो युवाओं को मार्गदर्शन देने के लिए अक्सर अपने मुंबई स्थित घर से नयाबास आते हैं. यह उनकी जन्मभूमि में योगदान देने का उनका अपना तरीका है.

उन्होंने कहा, “मैं अक्सर गांव के स्कूलों में जाता हूं और स्टूडेंट्स को बताता हूं कि उन्हें कौन सी स्ट्रीम लेनी चाहिए या कोर्स करना चाहिए.”

नयाबास के पहली पीढ़ी के सरकारी कर्मचारी एसआर मीणा (दाएं) ONGC से महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नयाबास के पहली पीढ़ी के सरकारी कर्मचारी एसआर मीणा (दाएं) ONGC से महाप्रबंधक के पद से सेवानिवृत्त हुए | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

तीन सरकारी स्कूलों के अलावा, लगभग 800 घरों वाले इस गांव में अपना कॉलेज भी है — जिसे सेवानिवृत्त 1975 बैच के आईएएस अधिकारी केएल मीणा ने बनवाया था, ताकि युवाओं को पढ़ाई के लिए दूर न जाना पड़े. यूनिवर्सिटी की पढ़ाई के लिए ज्यादातर स्टूडेंट्स सीकर जाते हैं, जो लगभग दो घंटे की दूरी पर है. इनमें से ज्यादातर कर्ज़ पर निर्भर होने के बजाय सेल्फ फाइनेंस करने हैं क्योंकि लगभग हर घर में एक सेवारत या सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी है, लेकिन स्टूडेंट्स की एक शिकायत है कि गांव में अभी तक कोई लाइब्रेरी नहीं है.

नीम का थाना, नयाबास में महात्मा गांधी सरकारी स्कूल | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नीम का थाना, नयाबास में महात्मा गांधी सरकारी स्कूल | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

2000 में जब अंकित ज़ेफ का जन्म हुआ, तब नयाबास पहले से ही अपनी बदनामी से उबर रहा था, लेकिन सभी बच्चे उनके लिए तय किए गए नए रास्ते पर न चलने की चेतावनी देने वाली कहानियां जानते हैं.

उन्होंने अपने कमरे में स्टडी टेबल पर बैठते हुए कहा, “जब मैं पैदा हुआ, तो गांव की पहचान बदल चुकी थी. मैंने शुरू से ही पढ़ाई का माहौल देखा. हर किसी का एक ही लक्ष्य था — सरकारी नौकरी पाना. यहां कोई दूसरा ऑप्शन नहीं है.”

नयाबास के कई अन्य निवासियों की तरह, अंकित का परिवार भी मीणा के बजाय अपने गोत्र, ज़ेफ को अपने सरनेम की तरह इस्तेमाल करता है. यह उनकी नई पहचान का हिस्सा है.

1972 में पुलिस की कार्रवाई के बाद मिला अपमान नयाबास के लिए बदलाव की बयार साबित हुआ.

निर्णायक मोड़

नयाबास को अपनी छवि बदलने में आधी सदी लग गई और यह कोई आसान काम नहीं था.

अरावली की पहाड़ियों से घिरा यह गांव कभी मवेशी चोरी, अवैध शराब के कारोबार और डकैती जैसे अपराधों के लिए कुख्यात था. यह कलंक खासकर मीणा समुदाय के लिए बहुत बड़ा था — जो ओबीसी सरपंच के परिवार को छोड़कर गांव के सभी घरों में रहता है.

राजस्थान में एक प्रभावशाली अनुसूचित जनजाति समुदाय, मीणा, राज्य की आबादी का लगभग 7 प्रतिशत हिस्सा हैं और 12 प्रतिशत एसटी आरक्षण के प्रमुख लाभार्थी हैं. हालांकि, उनके इतिहास में एक दर्दनाक विरासत शामिल है: ब्रिटिश राज के दौरान उन्हें “आपराधिक जनजाति” का लेबल दिया गया था और राजस्थान आदतन अपराधी अधिनियम 1950 के तहत उन्हें अपराधी माना जाता रहा. 31 अगस्त 1952 को ही उन्हें इस लेबल से मुक्त किया गया.

1920-30 के आसपास, गांव वाले अपनी बेटियों की शादी उन्हीं लड़कों से करते थे जो चोरी करना जानते थे क्योंकि यही आय का एकमात्र स्रोत था. चोरी से लोगों की पहचान बनती थी

— अंकित ज़ेफ, नयाबास निवासी

लेकिन दशकों बाद भी नयाबास नकारात्मक छवि से बाहर नहीं निकल पाया. 1972 में हुई एक घटना ने सब कुछ बदल दिया. यह घटना एक चेतावनी थी और इसने गांव को एहसास दिलाया कि पढ़ाई ही नई शुरुआत की एकमात्र उम्मीद है.

यह सब ज़मीन के एक विवाद से शुरू हुआ. नयाबास के कुछ निवासियों के पास निकट के एक गांव में विवादित ज़मीन थी जिसका मसला 55 किलोमीटर दूर खेतड़ी कोर्ट तक बढ़ गया. एक बार कोर्ट जाते समय नयाबास के पांच ग्रामीणों को उनके ज़मीन प्रतिद्वंद्वियों ने कथित तौर पर मार डाला. बदले में, ग्रामीणों ने एक व्यक्ति को मार डाला.

इससे इलाके में तनाव बढ़ गया, लेकिन किसी को भी इसके बाद पुलिस की कार्रवाई की उम्मीद नहीं थी.

70-वर्षीय बनवारी लाल मीणा के ज़ेहन में 29 जून 1972 की यादें आज भी ताज़ा हैं. उस समय, वे महज़ 15 साल के थे और सरकारी प्राथमिक विद्यालय के पास एक छोटी सी चाय की दुकान चलाते थे. उस दिन सुबह करीब 10 बजे तकरीबन 5,000 पुलिसकर्मियों ने गांव को घेर लिया. नयाबास की घेराबंदी कर दी गई.

आठ साल पहले रेलवे से रिटायर हुए बनवारीलाल मीणा अब नयाबास में राशन की दुकान चलाते हैं. उनका बेटा भीलवाड़ा में सरकारी शिक्षक है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
आठ साल पहले रेलवे से रिटायर हुए बनवारीलाल मीणा अब नयाबास में राशन की दुकान चलाते हैं. उनका बेटा भीलवाड़ा में सरकारी शिक्षक है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

पुलिस ने पूरे गांव में तीन परतों में मोर्चा संभाल लिया और बाहर निकलने के हर रास्ते को बंद कर दिया. हरेक गांव वाले को शक की निगाह से देखा गया और घेराबंदी से बाहर निकलने का मतलब था अपमानजनक सवालों की बौछारों को संभालना पुलिस ने 100 से ज़्यादा लोगों को गिरफ्तार भी किया.

अपनी दुकान पर सफेद बनियान और पायजामे में बैठे बनवारी लाल ने उस बुरे सपने जैसे दिन को याद करते हुए कहा, “बच्चों से लेकर बूढ़ों तक, किसी को भी पुलिस ने नहीं बख्शा. उन्होंने हमारे घरों को भी लूटा और जो कुछ भी मिला उसे ले गए. पूरा गांव अस्त-व्यस्त था.”

बनवारी लाल उन लोगों में से थे जिन्हें पुलिस ने छापेमारी के दौरान हिरासत में लिया था, जिसकी निगरानी नयाबास में तत्कालीन मुख्यमंत्री बरकतुल्लाह खान और गृह मंत्री कमला बेनीवाल ने की थी, जिन्हें एक सख्त प्रशासक की तरह जाना जाता है. उन्हें चार घंटे बाद उनके स्कूल के प्रमाण पत्र दिखाने के बाद रिहा कर दिया गया.

ग्रामीण नाराज़ थे, लेकिन उन्हें पता था कि घेराबंदी का यह पैमाना नयाबास की शराब तस्करी और अपराध के अड्डे के रूप में प्रतिष्ठा के कारण था.


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एक नई उम्मीद

1972 तक नयाबास के कुछ ही लोग निम्न श्रेणी की सरकारी नौकरियों में थे. इनमें से एक केएल मीणा भी थे, जो इंटेलिजेंस ब्यूरो में सब-इंस्पेक्टर थे. छापेमारी के दिन, वे संयोग से गांव में ही थे. अपने दोस्तों और पड़ोसियों को हर पुलिस घेरे में घेरते और अपराधियों की तरह उनसे पूछताछ करते देखना उनके लिए बहुत बड़ा झटका था.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “मैंने गांव वालों को समझाया कि कुछ लोगों की वजह से पूरे गांव को परेशानी उठानी पड़ रही है — चोरी और अवैध शराब में शामिल लोगों का दबदबा है.”

हालात बदलने की चाहत में मीणा ने सिविल सर्विसेज की तैयारी की और पहली ही कोशिश में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली. उनका दावा है कि वे शेखावाटी क्षेत्र से पहले आईएएस अधिकारी हैं, जिसमें सीकर, झुंझुनू, नीम का थाना और चूरू शामिल हैं.

मीणा गांव के लिए एक मशाल वाहक बन गए और सभी का सम्मान अर्जित किया.

हमने 50 साल पहले जो लक्ष्य तय किया था, उसे हासिल कर लिया है. नयाबास अब एक आदर्श गांव है. हमने न केवल कलंक को धोया है, बल्कि एक मिसाल भी कायम की है

—एसआर मीणा, सेवानिवृत्त ओएनजीसी महाप्रबंधक

मीणा, जो 2005 में राजस्थान के अतिरिक्त मुख्य सचिव के पद से सेवानिवृत्त हुए थे, ने कहा, “जब मैं 1975 में आईएएस अधिकारी बना, तो मेरी आवाज़ मज़बूत हुई और लोगों को नौकरी से मिलने वाले सम्मान का एहसास हुआ. इससे गांव में शिक्षा की प्रक्रिया शुरू हुई.”

उनकी सफलता गांव के लिए बदलाव का प्रतीक थी. अन्य लोगों ने भी पढ़ाई और सरकारी नौकरियों के माध्यम से प्रतिष्ठा और सम्मान प्राप्त अर्जित किए.

वर्तमान में नयाबास में 500 से अधिक लोग सरकारी नौकरियों में हैं और सैकड़ों लोग ऐसे पदों से सेवानिवृत्त हुए हैं.

सरकारी नौकरी मिलने से लोगों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है. दो दशक पहले, अधिकांश मकान कच्चे थे; आज, सभी के पास अपना पक्का मकान है. केएल मीणा ने अपनी मां के नाम पर श्रीमती रामप्यारी कॉलेज भी बनवाया, जहां आसपास के कई गांवों से बच्चे पढ़ने आते हैं. पहले, गांव में केवल एक स्कूल था; अब इसमें तीन हैं, जिनमें से एक केवल लड़कियों के लिए है.

नयाबास में कई अच्छे घर हैं, लेकिन कुछ बुनियादी ढांचे जंग खाए हुए हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
नयाबास में कई अच्छे घर हैं, लेकिन कुछ बुनियादी ढांचे जंग खाए हुए हैं | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

हालांकि, स्वास्थ्य सुविधाओं और सड़कों में अभी भी सुधार की ज़रूरत है, लेकिन निवासियों को अपनी प्रगति पर गर्व है.

ओएनजीसी के सेवानिवृत्त महाप्रबंधक एसआर मीणा ने कहा, “हमने 50 साल पहले जो लक्ष्य तय किया था, उसे हासिल कर लिया है. नयाबास अब एक आदर्श गांव है. हमने न केवल कलंक को धोया है, बल्कि एक मिसाल भी कायम की है.” वे गांव के बदलाव को देखने वाली पहली पीढ़ी का हिस्सा हैं.

शिक्षा ने न केवल लोगों को गलत कामों से दूर रखा, बल्कि सदियों से चली आ रही अंधविश्वासी सामाजिक प्रथाओं को खत्म करने में भी मदद की.

एसआर मीणा ने कहा, “हमने भव्य मृत्युभोज और पशु बलि को भी खत्म कर दिया है.”

अधिकारियों के गांव के सरनेम के बावजूद, नयाबास अभी भी खराब सड़कों और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
अधिकारियों के गांव के सरनेम के बावजूद, नयाबास अभी भी खराब सड़कों और अपर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं से जूझ रहा है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

स्थानीय मीडिया में गांव की सफलता का जश्न मनाने वाली सुर्खियां असामान्य नहीं हैं. पिछले कुछ महीनों में ही कुछ सुर्खियां बनी हैं.

एक में लिखा था, “चोरी और सीनाजोरी के लिए बदनाम नयाबास में शिक्षा ने बदले हालात”, एक अन्य ने लिखा: “आईएएस-आईपीएस की फैक्ट्री है ये गांव, एक घटना ने बदल दी तकदीर”.

लेकिन अब, युवा पीढ़ी सरकारी नौकरियों से परे सफलता की पटकथा को अपडेट कर रही है.


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नयाबास 3.0

गांव वालों का दावा है कि 1995 तक नयाबास में मोटरसाइकिल नहीं थी, लेकिन आज रेंज रोवर कार और बीएमडब्ल्यू आम बात है. गांव वाले अक्सर गर्व से अपनी वर्तमान समृद्धि और दर्दनाक अतीत के बीच के अंतर को बताते हैं, अपने पूर्वजों के बारे में कहानियां सुनाते हैं.

अंकित ज़ेफ ने कहा, “1920-30 के आसपास, गांव वाले अपनी बेटियों की शादी उन्हीं लड़कों से करवाते थे, जिन्हें चोरी करनी आती थी क्योंकि यही आय का एकमात्र स्रोत था.”

कहानियां इस बारे में हैं कि कैसे 25-30 लोगों का समूह नयाबास से राजस्थान, मध्य प्रदेश, हरियाणा और पंजाब की लंबी यात्राओं पर निकल जाता था और दो या तीन महीने बाद लूट का माल लेकर लौटता था.

अंकित ने हंसते हुए कहा, “पहले लोग इसे गलत नहीं मानते थे. चोरी से लोगों की पहचान बनती थी. बड़े चोरों की प्रतिष्ठा होती थी. उनके लिए चोरी करने के बाद गांव वापस आना छुट्टियों में आने जैसा था.”

अब वो बुरा अतीत दूर हो गया है, लेकिन नई पीढ़ी जानती है कि भविष्य पहले से ही उनके दरवाज़े पर दस्तक दे रहा है. लोगों में यह एहसास होने लगा है कि वे हमेशा सरकारी नौकरियों पर निर्भर नहीं रह सकते.

अंकित ने कहा, “1972 के बाद गांव में सरकारी नौकरियों की ओर जाने का जो चलन शुरू हुआ था, वो नहीं बदला है.”

उन्होंने कहा कि निजी क्षेत्र के अवसर और उद्यमिता की संस्कृति गांव में अभी भी दिखाई नहीं दे रही है.

हालांकि, गांव धीरे-धीरे नए तरीकों से विकसित हो रहा है और इसके पास एक नया रोल मॉडल है.

पिछले साल इंडो-नेपाल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने के बाद सलोनी मीणा का हीरो की तरह स्वागत | यूट्यूब/स्क्रीनग्रैब
पिछले साल इंडो-नेपाल ताइक्वांडो चैंपियनशिप में स्वर्ण जीतने के बाद सलोनी मीणा का हीरो की तरह स्वागत | यूट्यूब/स्क्रीनग्रैब

पिछले साल, 20-वर्षीय सलोनी मीणा ने इंडो-नेपाल अंतर्राष्ट्रीय ताइक्वांडो चैंपियनशिप में तीसरी बार स्वर्ण पदक जीतकर सभी का ध्यान अपनी ओर खींचा था.

उनके पिता महेंद्र मीणा ने कहा, “जब तक सलोनी राष्ट्रीय और जिला स्तर पर मुकाबला करती थीं, तब तक कोई भी उन्हें नहीं जानता था, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय पदक जीतने के बाद, हर कोई उन्हें पहचानने लगा.”

सलोनी के पास भविष्य के लिए बड़ी योजनाएं हैं. वे 2028 के बारे में सोच रही हैं.

उन्होंने कहा, “मुझे भारत के लिए ओलंपिक में खेलना है.”

लेकिन महेंद्र के लिए, सलोनी पहले से ही कुछ महत्वपूर्ण कर रही है — नयाबास की छवि को फिर से परिभाषित करना.

उन्होंने कहा, “पहले, शिक्षा सभी के लिए ध्यान का विषय थी, लेकिन सलोनी ने एक मिसाल कायम की. उन्हें देखकर, अधिक से अधिक लड़कियां खेलों में शामिल होंगी, जो गांव के लिए एक बड़ी उपलब्धि है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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