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Wednesday, 29 October, 2025
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जानिए, बिहार की जीविका दीदियों ने सरकार से मिले 10,000 रुपये कैसे खर्च किए

जीविका मिशन के 1.25 करोड़ सदस्यों में से एक करोड़ को 10,000 रुपये की पहली किस्त मिल चुकी है. नालंदा ज़िले के लाभार्थी इस पैसे का इस्तेमाल कैसे कर रहे हैं, यहां पढ़ें.

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नालंदा/पटना: बिहार के नालंदा जिले में अपने एक कमरे के कच्चे घर के बाहर 50 साल की चंपा देवी ज़मीन पर बैठी हैं. उनके सामने एक पुराना पत्थर का चाक रखा है, जिस पर वो मिट्टी के बर्तन बना रही हैं. पिछले 30 साल से यही उनका रोज़ का काम है. लेकिन पिछले 10 दिनों से वो बेसब्री से एक नए लोहे के चाक का इंतज़ार कर रही हैं — वो मानती हैं कि उससे उनका काम आसान होगा और उत्पादन दोगुना हो जाएगा.

चंपा देवी बिहार की उन एक करोड़ महिलाओं में से एक हैं, जिन्हें राज्य सरकार की जीविका मिशन के तहत 10,000 रुपये मिले हैं. इस योजना का मकसद महिलाओं को आर्थिक रूप से मज़बूत बनाना है, लेकिन साथ ही ये मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की महिला वोटरों पर फोकस को भी दिखाता है — ठीक बिहार विधानसभा चुनाव से कुछ हफ्ते पहले. मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना के तहत सरकार यह देखेगी कि महिलाएं इस पैसे को कैसे खर्च कर रही हैं और क्या वे अगले छह महीने में अगले किस्त के लिए योग्य साबित होती हैं या नहीं.

चंपा देवी ने इस पैसे से ऑनलाइन एक लोहे का चाक मंगवाया है.

“मैंने अपने छोटे काम में कभी इतना पैसा नहीं लगाया था. मैं एक बड़ा बर्तन 100 रुपये में बेचती हूं, लेकिन उसे बनाने में कई घंटे लग जाते हैं. लोहे के चाक से मेरा काम आसान होगा और मैं दोगुने बर्तन बना पाऊंगी.”

जब वो आधे सूखे बर्तन के किनारे को अपने पतले हाथ से ठोक रही थीं, तब उनके चेहरे पर 10,000 रुपये मिलने की खुशी झलक रही थी.

उन्होंने बताया, “मुझे पैसे 6 अक्टूबर को मिले. इसे संभालना आसान नहीं था. मेरे बच्चे और पति इसे किसी और काम में लगाना चाहते थे, लेकिन मैंने साफ कहा कि ये मेरे काम के लिए है.”

पश्चिम बंगाल, झारखंड, मध्य प्रदेश और दिल्ली की तरह बिहार ने भी महिलाओं को सीधी नकद सहायता देने की योजना शुरू की है. नीतीश कुमार के लिए ये वोटर वर्ग हमेशा अहम रहा है — शराबबंदी से लेकर सरकारी नौकरियों में 35 प्रतिशत आरक्षण तक, और अब 1.25 करोड़ जीविका दीदियों में से एक करोड़ के खातों में 10,000 रुपये डालना. महिलाएं बिहार के लगभग आधे वोटर हैं, इसलिए किसी भी राजनीतिक रणनीति का केंद्र वही हैं.

जीविका मिशन के सदस्य एक संदेश दिखाते हुए पुष्टि करते हैं कि उनके खाते में 10,000 रुपये की पहली किस्त जमा कर दी गई है | फोटो: मोहम्मद हम्माद | दिप्रिंट

अर्थशास्त्री और महिला समूहों के सदस्य मानते हैं कि एकमुश्त आर्थिक सहायता कुछ समय के लिए राहत तो दे सकती है, लेकिन बाज़ार, प्रशिक्षण और ऋण तक पहुंच के बिना ये योजनाएं स्थायी आमदनी नहीं बना पातीं.

पटना विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग के प्रोफेसर संजय सचिन ने कहा,“ये 10,000 रुपये बाज़ार में थोड़ी मांग ज़रूर पैदा कर सकते हैं और खपत में सुधार ला सकते हैं. लेकिन इस प्रक्रिया में पारदर्शिता कम है. गरीबों के हाथ में पैसा देने से थोड़े समय के लिए मांग बढ़ सकती है, खासकर तब जब अर्थव्यवस्था मांग संकट से जूझ रही हो, लेकिन इससे बड़े पैमाने पर रोज़गार नहीं बनेगा.”

 उन्होंने जोड़ा.“बेहतर होता अगर यह पैसा किसी लक्षित निवेश में लगाया जाता. फिलहाल इस योजना में कोई गारंटी नहीं है कि पैसा उत्पादक काम में ही लगेगा.”

राज्य भर में महिलाएं इस पैसे का अलग-अलग तरीकों से इस्तेमाल कर रही हैं — कोई बकरी या सूअर खरीद रही है, कोई जूस की गाड़ी या सिलाई मशीन, तो कोई अपने पुराने छोटे कारोबार में निवेश कर रही है. वहीं कुछ महिलाएं इसे बच्चों की पढ़ाई, सोना खरीदने या आपातकाल के लिए बचाने में लगा रही हैं.

“ये तो बस पहली किस्त है,” नालंदा की जीविका मिशन में काम करने वाली अनुराधा ने कहा. “अब हम देखेंगे कि दीदियां इस पैसे को कैसे खर्च कर रही हैं — कौन-सा काम शुरू किया और कितना बढ़ रहा है. इसी के आधार पर दूसरी किस्त की सूची बनेगी. अभी रकम तय नहीं है, लेकिन ये 10,000 रुपये से ज़्यादा होगी.”

सरकार का लक्ष्य इस योजना के ज़रिए बिहार के हर घर तक पहुंचने का है. जो महिलाएं इस शुरुआती रकम से काम शुरू कर के मुनाफा कमाएंगी, उन्हें आगे चलकर 2 लाख रुपये तक की मदद मिल सकती है.

मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने योजना की शुरुआत करते हुए कहा, “हमारा इरादा राज्य के हर परिवार से एक महिला को इस योजना में शामिल करने का है. 6 अक्टूबर को और भी महिलाओं के खातों में पैसे जाएंगे… इसके बाद हर हफ्ते पैसे भेजे जाएंगे जब तक कोई महिला बाकी न रहे. जो महिलाएं अपने उद्यम में सफलता दिखाएंगी उन्हें 2 लाख रुपये तक की अतिरिक्त मदद दी जाएगी,”

छोटा निवेश, बड़े सपने

सरकार द्वारा पैसे भेजे जाने की घोषणा के बाद हर सुबह 30 साल की अदिति सुमन अपना फोन देखती थीं. फिर 6 अक्टूबर को सुबह 10:30 बजे उन्हें बैंक से संदेश आया — उनके खाते में 10,000 रुपये जमा हो गए हैं. वो पिछले दो साल से गाय खरीदने के लिए बचत कर रही थीं, और अब जाकर वो सपना पूरा हुआ.

सुमन ने कहा, “इस पैसे से मैंने गाय खरीदी. चार महीने में इसकी कीमत निकल जाएगी क्योंकि गाय रोज़ 8 लीटर दूध देगी, और दूध 40 रुपये लीटर बिकता है. चार महीने बाद मुनाफा कमाना शुरू हो जाएगा,” गौतम कुमार की तरह, गीता कुमारी भी नया काम शुरू नहीं कर सकीं, लेकिन अपने पुराने फुटवियर कारोबार में पैसे लगाए.

कुमारी ने कहा, “मैं पहले बुज़ुर्गों के लिए चप्पल बेचती थी. अब बच्चों के जूते भी रख लिए हैं. हमारे बाज़ार में इसकी मांग थी, लेकिन पैसे नहीं थे. अब हैं, और मुझे यकीन है कि मुनाफा होगा.”

50 साल की अनीता देवी, जो विधवा हैं, एक छोटा ब्यूटी पार्लर और कॉस्मेटिक की दुकान चलाती हैं. उन्हें इस योजना के बारे में एक ग्राहक से पता चला और उन्होंने जीविका मिशन से जुड़कर आवेदन किया. तीन बच्चों की मां अनीता को इससे पहले कभी कोई मदद नहीं मिली थी.

उन्होंने कहा, “मैंने चूड़ियां और क्रीम खरीदीं. मेरे पति की 2005 में दुर्घटना में मौत हो गई थी, और परिवार ने कोई मदद नहीं की. ये पहली बार है कि मुझे किसी योजना से मदद मिली है. मैं दूसरी किस्त का इंतज़ार कर रही हूं.”

लेकिन वो मानती हैं कि 10,000 रुपये से कोई नया काम शुरू करना मुश्किल है.

बिहार के नालंदा में ममता कुमारी अपनी नई खरीदी गई सिलाई मशीन के साथ | फोटो: नूतन शर्मा | दिप्रिंट

अनीता ने कहा, “10,000 रुपये कुछ भी नहीं हैं. इतने में क्या शुरू करोगे? मेरे पास पहले से दुकान थी तो थोड़ी मदद मिल गई, लेकिन नया बिज़नेस शुरू करना इससे नामुमकिन है,”

ममता कुमारी के लिए, हालांकि, ये 10,000 रुपये अंधेरे में रोशनी की तरह थे. पहले गृहिणी रहीं ममता अब गांववालों के कपड़े सिलकर कमाती हैं. पैसे मिलते ही अगले दिन उन्होंने सिलाई मशीन खरीदी और ऑर्डर लेने शुरू कर दिए.

 उन्होंने कहा, “अभी मेरे पास पांच-छह ऑर्डर हैं और पिछले 20 दिनों में मैंने 1,000 रुपये कमाए हैं. अगर दूसरी किस्त मिली, तो मैं बाज़ार में छोटी दुकान खोलना चाहूंगी. वहां ज़्यादा ऑर्डर मिलेंगे,”

ममता अपनी कमाई बच्चों की पढ़ाई पर खर्च करना चाहती हैं. फिलहाल वो सरकारी स्कूल में हिंदी माध्यम में पढ़ते हैं.

ममता कुमारी अपनी सिलाई मशीन पर काम करती हुई | फोटो: मोहम्मद हम्माद | दिप्रिंट

उन्होंने कहा, “पति की कमाई घर के खर्च में चली जाती है. मैं चाहती हूं कि मेरी कमाई से बच्चों को अगले साल इंग्लिश मीडियम स्कूल में दाखिला दिलाऊं ताकि उन्हें अच्छी पढ़ाई और बेहतर नौकरी मिल सके,”

उनकी बात चल ही रही थी कि 60 साल की कांति देवी, जो पास खड़ी थीं, गुस्से में बोल पड़ीं और नीतीश कुमार को कोसने लगीं. वो पिछले सात साल से जीविका मिशन से जुड़ी हैं, लेकिन उन्हें पैसे नहीं मिले.

नालंदा के परंपुरी गांव की कांति देवी ने कहा,“जो लोग अभी-अभी मिशन में आए हैं, कुछ तो सिर्फ पैसे के लिए आए हैं, उन्हें मिल गया. हम इतने सालों से हैं, फिर भी कुछ नहीं मिला. मैं एक भैंस खरीदना चाहती हूं. मैं बूढ़ी औरत हूं लेकिन कुछ करना चाहती हूं, फिर भी पैसे नहीं मिले.”

ट्यूशन फीस और गहनों की खरीदारी

बिहार के हर ज़िले में जीविका दीदियां हैं, लेकिन सभी ने पैसे कारोबार में नहीं लगाए. कुछ सिर्फ नाम से जुड़ी हैं और दिल्ली में रहती हैं, और कुछ ने पैसे निजी ज़रूरतों में खर्च कर दिए.

एक दीदी ने कहा, “मैंने 10,000 रुपये से सोने की बालियां खरीदीं. ये भी एक निवेश है. बहुत सोचने के बाद खर्च किया. इतने में कुछ बड़ा नहीं हो सकता था, तो यही ठीक लगा.”

बिमला देवी ने भी कोई कारोबार शुरू नहीं किया, बल्कि पैसे से बच्चों की तीन महीने की बकाया ट्यूशन फीस भरी.

उन्होंने कहा, “मेरे पति को बाइक ने टक्कर मार दी थी और उनकी टांग टूट गई. वो बिस्तर पर हैं. बाकी पैसे घर के खर्च में लगाऊंगी. मुझे सच में इन पैसों की ज़रूरत थी,”

अर्थशास्त्री चेतावनी दे रहे हैं कि ये योजना जीविका मिशन के मूल उद्देश्य से मेल नहीं खाती. पटना यूनिवर्सिटी के इकोनॉमिक्स डिपार्टमेंट के असिस्टेंट प्रोफेसर प्रोफेसर संजय कुमार ने कहा, “कई लोग सिर्फ पैसे पाने के लिए जीविका में रजिस्टर करा रहे हैं. सरस मेले में सिर्फ हस्तशिल्प उत्पादों के नतीजे दिखते हैं. बाकी तो बस पैसे ले रहे हैं, कोई उत्पादक काम नहीं कर रहे. 10,000 रुपये से कोई लंबी आर्थिक सुधार नहीं होगी,” चुनाव से कुछ महीने पहले यह पैसा भेजना राजनीतिक रूप से भी चर्चा में है. विपक्ष ने इसे “चुनावी दिखावा” बताया है और सवाल उठाया है कि क्या यह पैसा सच में सभी महिलाओं तक पहुंचेगा या सिर्फ जीविका समूहों तक सीमित रहेगा.

प्रियंका गांधी वाड्रा ने कहा, “अब जब चुनाव आने वाले हैं, तो 10,000 रुपये दिए जा रहे हैं. लेकिन ध्यान रखिए, ये सरकार हर महीने ऐसा देने का वादा नहीं कर रही.”

 उन्होंने आगे कहा, “महिलाओं में दूसरों की नीयत पहचानने की क्षमता होती है. जैसे वे अपनी बेटियों के लिए वर चुनते वक्त सोच-समझकर फैसला करती हैं, वैसे ही उन्हें मोदी, शाह और नीतीश की नीयत भी समझनी चाहिए.”

ज़मीन पर नालंदा में यह 10,000 रुपये का ट्रांसफर प्रतीकात्मक ज़्यादा दिखता है, बदलावकारी कम. कई जीविका दीदियों के घरों में ये रकम छोटी चीज़ें खरीदने में लगी — बकरी, एक मशीन, या मिट्टी का चाक. मदद तो मिली, लेकिन इतना नहीं कि कोई टिकाऊ रोज़गार बन सके. उनके घरों की तस्वीरें भी यही बताती हैं — झोपड़ी के बाहर बंधी बकरी, एक कोने में सिलाई मशीन, या मिट्टी का पहिया.

विशेषज्ञों और ग्रामीणों का कहना है कि ये नकद मदद काम तो आसान करती है, लेकिन लंबे समय के लिए ऋण, प्रशिक्षण और बाज़ार तक पहुंच की कमी पूरी नहीं कर सकती.

“अब जब ऑनलाइन डिलीवरी गांवों तक पहुंच गई है, तो छोटे कारोबारों जैसे टेलरिंग या दुकानों के लिए टिकना मुश्किल हो गया है. लेकिन महिलाएं ज़्यादातर इसी तरह के काम में पैसा लगा रही हैं. इसलिए लंबी अवधि में इसका असर सीमित ही रहेगा,” संजय सचिन ने कहा.

नालंदा में, सरकार से मिला यह छोटा पैसा उम्मीद तो जगा रहा है, भले ही मामूली ही सही. चंपा देवी, जो अपने लोहे के चाक का इंतज़ार कर रही हैं, इसे अपने आने वाली पीढ़ी के उज्जवल भविष्य की शुरुआत मानती हैं.

उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “ये 10,000 रुपये भविष्य नहीं खरीद सकते, लेकिन उसे शुरू ज़रूर कर सकते हैं. अगर दूसरी किस्त मिल गई, तो मैं अपने बेटे को काम पर रखूंगी. तब शायद मेरे पोते को अपना पहला बर्तन बनाने के लिए किसी औज़ार का इंतज़ार न करना पड़े.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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