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रविवार, 8 जून, 2025
होमफीचरहिंदी साहित्यिक पत्रिका नई धारा को नया रूप दे रहे हैं अशोका यूनिवर्सिटी के संस्थापक, उनके लिए यह निजी काम है

हिंदी साहित्यिक पत्रिका नई धारा को नया रूप दे रहे हैं अशोका यूनिवर्सिटी के संस्थापक, उनके लिए यह निजी काम है

नई धारा के शुरुआती दिनों से ही हरिवंश राय बच्चन, निराला और दिनकर सरीखे लोग जुड़े. 75 बरस के अपने सफर में कई उतार-चढ़ाव के बाद यह ऑनलाइन स्वरूप में आई है और हिंदी साहित्य को नए ढंग से पाठकों के बीच पेश कर रही है.

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नई दिल्ली: 1950 के दशक में जब हिंदी साहित्य जगत में इलाहाबाद की तूती बोलती थी, तब बिहार से एक द्विमासिक पत्रिका नए विचारों और आवाज़ों के साथ शुरू हुई. न केवल अपने विषय-वस्तु बल्कि अपने कद के कारण भी नई धारा ने हिंदी साहित्य में हलचल मचाई, जिसमें उस समय के सबसे प्रभावशाली नाम- हरिवंश राय बच्चन, रामधारी सिंह दिनकर, महादेवी वर्मा, अमृता प्रीतम लगातार छपते रहे.

बिहार के सूरजपुरा ज़मींदारी एस्टेट के उदय राज सिंह द्वारा ने 75 साल पहले नई धारा की शुरुआत की लेकिन लंबा वक्फा बीत चुका है और अब डिजिटल युग में यह नए अवतार में नजर आने लगी है. इसके पीछे उनके बेटे प्रमथ राज सिन्हा की दिलचस्पी है, जो अशोका यूनिवर्सिटी के संस्थापकों में से एक और इंडियन स्कूल ऑफ बिज़नेस के संस्थापक डीन हैं.

दिल्ली स्थित अपने घर पर गर्व से सिन्हा कहते हैं, “जब मैं संस्थान बना सकता हूं, तो मैं अपनी विरासत को भी पुनर्जीवित कर सकता हूं. इन दिनों पढ़ने और लिखने का चलन पूरी तरह से बदल चुका है. नई धारा हिंदी साहित्य के लिए एक नए अवतार में भूमिका निभाने की कोशिश कर रही है. आज, जब ऐसा माहौल दिख रहा है कि लोगों की हिंदी साहित्य में रुचि नहीं है, तो यह उन लोगों के लिए एक मंच बन गया है, जिनकी इसमें रुचि है.”

60 वर्षीय सिन्हा के लिए नई धारा की पुरानी दुनिया की लय युवा पीढ़ी तक पहुंचने के लिए ज़रूरी थी. इसलिए उन्होंने वह करना शुरू किया जिसके लिए वे एक शिक्षाविद् के रूप में जाने जाते हैं — इसे बदलना और आधुनिक बनाना. उनकी देखरेख में पत्रिका ने अपने आर्काइव्स को डिजिटल किया है, वीडियो और ऑडियो फॉर्मेट में सामग्री को पेश किया है और सोशल मीडिया पर एक नई उपस्थिति दर्ज कराई है जहां हिंदी के प्रसिद्ध लोगों की कविताएं अब रील के रूप में दिखलाई पड़ती हैं. सिन्हा ‘नई धारा भाखा’ सीरीज़ जैसे संगीत कार्यक्रमों के साथ भी नए प्रयोग कर रहे हैं, जहां लोकगीत और साहित्य आपस में तालमेल करते नज़र आते हैं. सबसे हालिया कोशिश पटना के ऐतिहासिक सूर्यपुरा हाउस में पहली हिंदी लेखकों की रेजीडेंसी है.

नई धारा कार्यक्रम के दौरान हिंदी-मैथिली विद्वान उषा किरण खां के साथ प्रमथ राज सिन्हा | फोटो: विशेष प्रबंध
नई धारा कार्यक्रम के दौरान हिंदी-मैथिली विद्वान उषा किरण खां के साथ प्रमथ राज सिन्हा | फोटो: विशेष प्रबंध

एक तरह से, नई धारा यथास्थिति को चुनौती देने की अपनी खोज वाले अवतार में लौट आई है. जब इसे अप्रैल 1950 में लॉन्च किया गया था, तो इसका उद्देश्य प्रिंट की दुनिया में नए तरह का हस्तक्षेप करना था, विशेष रूप से इलाहाबाद के कुलीन, एकाकी साहित्यिक हलकों के बरक्स. इसकी प्रतिष्ठा तेज़ी से बढ़ी और बहुत जल्द ऐसी जगह बनाई जहां बड़े नाम और नए लेखक एक साथ छपते थे.

लेकिन इसकी बुनियाद में हमेशा एक ठोस नींव रही है. संस्थापक परिवार की तीन पीढ़ियों ने हिंदी साहित्य में एक जगह बनाई है, जिसकी शुरुआत सिन्हा के दादा राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह से हुई, जो 1930 और 40 के दशक के मार्क्सवादी-प्रभावित प्रगतिवादी (प्रगतिशील) आंदोलन के अग्रणी प्रकाश स्तंभों में से एक थे — इसके बावजूद कि वह एक ज़मींदार घराने से ताल्लुक रखते थे.

मेरे पिता को लगता था कि उनके जाने के बाद सब कुछ बंद हो जाएगा, लेकिन शायद उन्हें यह एहसास नहीं था कि घर के माहौल ने बचपन से ही मुझ पर कितनी गहरी छाप छोड़ी है

— प्रमथ राज सिन्हा

आज भी, पत्रिका अपनी जड़ों से जुड़ी है, जिसका नारा है “1950 से साहित्य की अनन्य धरोहर”. जहां एक तरफ हिंदी पत्रिका संस्कृति के सिकुड़ने के कारण धर्मयुग, दिनमान और कादम्बिनी जैसे दिग्गज बंद हो गए, वहीं नई धारा 75 साल से अनवरत छप रही है. साथ ही, इसने हंस, वनमाली, कथादेश, वागर्थ, तद्भव और आलोचना जैसे अन्य जीवित दिग्गजों की तुलना में नए मीडिया को अधिक आक्रामक तरीके से इस्तेमाल किया है.

नई धारा की डिजिटल संपादक आरती जैन कहती हैं, “हमारी डिजिटल मौजूदगी के साथ, दर्शक हमारे काम को रोज़ाना के आधार पर जानते हैं और उससे जुड़ते हैं. पांच साल में इस तरह का बदलाव अपने आप में उल्लेखनीय है.”

कई लेखकों के लिए नई धारा आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत थी. प्रख्यात कवि रघुवीर सहाय द्वारा उदय राज सिंह को 1967 में लिखे गए पत्र में लिखा था, “कुछ आर्थिक कारणों से बाध्य होकर मैं अनुरोध कर रहा हूं कि लेख आपको स्वीकार हो तो कृपया इसका पारिश्रमिक मुझे अग्रिम भेज दें.”


यह भी पढ़े: विक्रमादित्य से सुहेलदेव और अग्रसेन तक — हिंदू योद्धाओं की विरासत को फिर से खोजा जा रहा है


कैसे इलाहाबाद के बरक्स खड़ा हुआ पटना

अपने पहले अंक से ही नई धारा ने संकेत दे दिया था कि यह पहले से ही बड़ी लीग में शामिल है. इसमें हरिवंश राय बच्चन की ‘प्रिय शेष बहुत है रात अभी मत जाओ’ कविता शामिल थी, जो उस साल प्रशंसित संग्रह मिलन यामिनी में प्रकाशित हुई थी. बच्चन ने बाद में कहा कि 1949 में लिखी गई यह कविता उनकी पसंदीदा कविताओं में से एक है.

जल्द ही, दिनकर, निराला और मैथिली शरण गुप्त जैसे लोग इसके पन्नों पर नियमित रूप से छपने लगे.

1968 में दिनकर ने उदय राज सिंह को अपने बेटे रामसेवक की बीमारी के बारे में बताया.

दिनकर ने लिखा, “बड़ी विपत्ति में दिन गुजार रहा हूं. रामसेवक भयानक रूप से बीमार है. एलोपैथी में कोई इलाज नहीं है. आयुर्वेद से भी कोई लाभ नहीं हुआ. अब होमियोपैथी का सहारा लिया है. भगवान की जानते होंगे कि क्या होने वाला है.”

1968 में उन्होंने बधाई पत्र भेजा, जिसमें लिखा था: “पत्रिका बहुत ठीक निकल रही है. बधाई”.

नई धारा के शुरुआती अंक, जिनमें अप्रैल 1950 का पहला अंक और बाद में राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह की विशेषांक वाला कवर शामिल है | फोटो: विशेष प्रबंध
नई धारा के शुरुआती अंक, जिनमें अप्रैल 1950 का पहला अंक और बाद में राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह की विशेषांक वाला कवर शामिल है | फोटो: विशेष प्रबंध

कई लेखकों के लिए नई धारा आय का एक महत्वपूर्ण स्रोत थी.

प्रख्यात कवि रघुवीर सहाय द्वारा उदय राज सिंह को 1967 में लिखे गए पत्र में लिखा था, “कुछ आर्थिक कारणों से बाध्य होकर मैं अनुरोध कर रहा हूं कि लेख आपको स्वीकार हो तो कृपया इसका पारिश्रमिक मुझे अग्रिम भेज दें.” सहाय को कविता संग्रह लोग भूल गए हैं के लिए 1984 का साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला था.

प्रेस में आने से पहले ही, पत्रिका के बारे में चर्चा होने लगी थी, जिसका मुख्य कारण उदय राज सिंह और संस्थापक संपादक रामबृक्ष बेनीपुरी थे, जो अपने समय के खाटी समाजवादी और प्रसिद्ध लेखक थे.

फरवरी 1950 में उद्घाटन अंक से दो महीने पहले, प्रसिद्ध उपन्यासकार हज़ारी प्रसाद द्विवेदी ने शांतिनिकेतन से बेनीपुरी को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने अपना समर्थन देने का वचन दिया.

द्विवेदी ने लिखा, “आप नई धारा निकालने जा रहे हैं. यह अत्यंत प्रसन्नता की बात है. जब आप संपादन करेंगे तो निस्संदेह उसका मान बहुत ऊंचा होगा. आप पत्र निकालें और मैं उसमें सहयोग न दूं – यह हो नहीं सकता.”

बच्चन ने भी उसी महीने एक पत्र में अपनी निष्ठा व्यक्त की: “जभी कोई अच्छी चीज़ लिखूंगा, नई धारा के लिए रिजर्व कर लूंगा.”

हमारा ख्याल था कि हम न तो वामपंथ की तरफ देखेंग और न ही दक्षिणपंथ की तरफ — हम काम की गुणवत्ता को देखेंगे और नए लेखकों को अवसर देंगे

— शिव नारायण, नई धारा संपादक

जब पटना में नई धारा की शुरुआत हुई, तो यह एक शानदार आयोजन था. तत्कालीन बिहार के मुख्यमंत्री श्री कृष्ण सिंह मुख्य अतिथि थे, जबकि दिनकर और रेणु जैसे साहित्यकारों की उपस्थिति थी.

उदय राज सिंह के सामने दो प्रमुख लक्ष्य थे. एक तो नए लेखकों को मंच देना और अपने पिता के काम को बढ़ावा देना. शैली सम्राट के नाम से मशहूर राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह को हिंदी लघु कहानी के पहले लेखकों में से एक माना जाता है, लेकिन उनकी रचनाएं आसानी से उपलब्ध नहीं थीं. उदय इस स्थिति को बदलना चाहते थे.

प्रमथ सिन्हा बताते हैं, “कई लोगों की यह शिकायत थी. इसलिए मेरे पिता ने प्रेस शुरू की.” यह मेरे करीबी दोस्त हेमवती नंदन बहुगुणा थे, जिन्होंने उदय को इलाहाबाद में बिक्री के लिए एक प्रेस के बारे में बताया. उन्होंने इसे खरीदा और पटना ले आए.

सिन्हा ने कहा, “मेरे पिता ने अशोक नाम से एक सेकंड-हैंड प्रेस शुरू की. फिर शिवपूजन सहाय ने उन्हें एक पत्रिका शुरू करने की सलाह दी. इस तरह 1950 में नई धारा का जन्म हुआ.”

शुरू में, भोजपुरी और हिंदी के लेखक सहाय को पहला संपादक बनना था, लेकिन उन्हें एक सरकारी परियोजना में शामिल कर लिया गया और इसलिए यह काम बेनीपुरी के जिम्मे आ गया.

बिहार में पुनर्निर्मित सूरजपुरा हाउस, सिन्हा परिवार का पारिवारिक घर है, जो आम के पेड़ों से घिरा हुआ है. अब यहां इस साल नई धारा द्वारा स्थापित लेखकों का निवास है | फोटो: विशेष प्रबंध
बिहार में पुनर्निर्मित सूरजपुरा हाउस, सिन्हा परिवार का पारिवारिक घर है, जो आम के पेड़ों से घिरा हुआ है. अब यहां इस साल नई धारा द्वारा स्थापित लेखकों का निवास है | फोटो: विशेष प्रबंध

उस वक्त, इलाहाबाद में परिमल साहित्यिक आंदोलन एक प्रमुख शक्ति थी जो स्थानीय पत्रिकाओं का समर्थन करती थी, जिसमें धर्मवीर भारती जैसे लेखक थे — जिन्होंने बाद में धर्मयुग का नेतृत्व किया. बेनीपुरी पटना से भी कुछ ऐसा ही प्रभावशाली काम करना चाहते थे.

36 साल से नई धारा से जुड़े रहने वाले शिव नारायण जो अब इसके संपादक हैं, बताते हैं, “उस समय बेनीपुरी एक बड़ा नाम थे. वे पटना से इलाहाबाद स्तर की एक पत्रिका निकालना चाहते थे.”

लेकिन दूसरी हिंदी पत्रिकाओं से उलट, जो अपनी विचारधारा को खुलकर सामने रखती हैं, नई धारा ने खुद को किसी भी खेमे में जाने से बचाए रखा.

नारायण ने कहा, “हमारी सोच स्पष्ट थी कि हम न तो वामपंथ की तरफ जाएंगे और न ही दक्षिणपंथ की तरफ. हम काम की गुणवत्ता को देखेंगे और नए लेखकों को अवसर देंगे.”

फिर भी, सभी ने तटस्थता की छवि को स्वीकार नहीं किया. हिंदी लेखक और प्रोफेसर प्रभात रंजन ने कहा कि इसे “पूंजीपतियों की पत्रिका” की तरफ देखा जाता रहा है, एक ऐसा लेबल जिसने इसकी साहित्यिक छवि को नुकसान पहुंचाया.

उन्होंने कहा, “बिना किसी प्रतिस्पर्धा के यह पत्रिका प्रकाशन जगत में बनी हुई है और हिंदी लेखकों को अच्छा मानदेय दे रही है, लेकिन इस पत्रिका का प्रभाव हंस और सारिका जैसी पत्रिकाओं जैसा नहीं है.”

नारायण इन दावों को सिरे से खारिज करते हैं.

उन्होंने कहा, “इस पत्रिका ने विचारधारा से परे काम किया है और समाजवादी रामबृक्ष बेनीपुरी और कम्युनिस्ट विजय मोहन सिंह दोनों को अपना संपादक बनाया है.”

नई धारा का ऑनलाइन प्रसार बढ़ रहा है. वर्तमान में सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर इसके लगभग 158,000 सब्सक्राइबर्स हैं, जबकि 2021 में यह संख्या केवल 12,000 थी. जैन ने बताया कि यह सब “ऑर्गेनिक” ढंग से हुआ है.

रेजीडेंसी, रील्स और लोगों तक पहुंच

कवि कृष्ण कल्पित की फेसबुक टाइमलाइन पिछले महीने बधाईयों से पटी पड़ी थी. उन्हें हाल ही में नई धारा के साहित्यिक निवास कार्यक्रम के लिए चुना गया, जिसे उन्होंने हिंदी लेखकों के लिए अपनी तरह की पहली पहल बताया.

कल्पित ने अपने फेसबुक पोस्ट में लिखा, “छह हफ्ते के इस निवास कार्यक्रम में लेखक अपनी अधूरी पांडुलिपियों को पूरा कर सकते हैं.” 1 जून को, उन्होंने और एक अन्य लेखिका शिवांगी गोयल ने पटना के आलीशान सफेद दीवारों वाले सूर्यपुरा हाउस में अपना छह हफ्ते का कार्यकाल शुरू किया, जो कभी राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का घर हुआ करता था.

कई सालों से लेखक प्रमथ सिन्हा से अनुरोध कर रहे थे कि वे एक ऐसी जगह बनाएं जहां वे शांति से काम कर सकें. उन्होंने कहा कि यह निवास हिंदी साहित्यिक समुदाय को उनका उपहार है.

सिन्हा कहते हैं, “अपने 75वें साल में हमने यह राइटर्स रेजीडेंसी बनाई है, जिसमें स्थापित और उभरते लेखकों को अपना काम पूरा करने के लिए एक साथ लाया गया है.”

सूरजपुरा हाउस का कमरा जहां राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह कभी रहा करते थे, किताबों से भरा हुआ है, जिनमें दुर्लभ पुराने संस्करण भी शामिल हैं.

कवि कृष्ण कल्पित ने अपनी नई धारा निवास की शुरुआत करने के बाद लिखा, “मैं उन्हें छूता हूं, देखता हूं और रोमांचित होता हूं.” | फोटो: फेसबुक/@कृष्ण कल्पित
कवि कृष्ण कल्पित ने अपनी नई धारा निवास की शुरुआत करने के बाद लिखा, “मैं उन्हें छूता हूं, देखता हूं और रोमांचित होता हूं.” | फोटो: फेसबुक/@कृष्ण कल्पित

यह नई धारा को नया रूप देने की उनकी व्यापक योजना का एक हिस्सा है. दूसरा डिजिटल महत्वाकांक्षा के साथ विरासत को जोड़ना भी.

जैन के अनुसार, आज सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगभग 158,000 सब्सक्राइबर के साथ इसका ऑनलाइन उपस्थिति बढ़ रही है, जबकि 2021 में यह संख्या केवल 12,000 थी. फेसबुक पर इसके 87,000, एक्स पर 1,053 और इंस्टाग्राम पर 40,000 से ज़्यादा फॉलोअर हैं. 16,000 सब्सक्राइबर वाले इसके यूट्यूब चैनल पर साक्षात्कार, और साहित्यिक बातचीत मिल जाती हैं.

सिन्हा ने कहा, “हम ऑडियो और वीडियो फॉर्म में साहित्य प्रस्तुत कर रहे हैं. इनमें इंटरव्यू, पॉडकास्ट और हर दिन एक कविता शामिल है — जिसे बेहतरीन उच्चारण के साथ प्रस्तुत किया जाता है.”

इंस्टाग्राम पर कविताएं आसानी से साझा किए जा सकने वाले मीम्स के रूप में पोस्ट की जाती हैं. हाल ही में निर्मला गर्ग की एक छोटी, अपेक्षाकृत अस्पष्ट कविता थी:

मैं अपनी सबसे अच्छी कविता
कागज़ पर नहीं लिखूंगी-
पत्ते पर.
पेड़ प्रकाशक से ज्यादा उदार
ज़्यादा समझदार होता है

कुछ टिप्पणीकारों ने इसकी खूबी की, जबकि दूसरे ने पूछा कि इसका पूरा संस्करण कहां मिल सकता है. नई धारा हैंडल से जवाब आया: “इतनी ही है”.

जबकि प्रिंट संस्करण पटना से निकलती है. वहीं ऑनलाइन काम दिल्ली से डिजिटल संपादक आरती जैन चलाती हैं, जिनकी 10 लोगों की एक टीम है. उनका काम तेज़ी से बदलते स्वाद वाली ऑनलाइन पीढ़ी के लिए हिंदी को सुलभ बनाना है.

उन्होंने कहा, “हमारी यात्रा एक मैराथन की तरह है. हम लंबे समय से यहां हैं. हम विभिन्न पीढ़ियों, विचारों और लेखन शैली का अच्छा मिश्रण पेश करते हैं.”

जैन ने कई कंटेंट वर्टिकल के साथ हिंदी साहित्य को ऑनलाइन कैसे पेश किया जाता है, इसकी फिर से कल्पना की है. प्रतिदिन एक कविता सीरीज़ में हर दिन एक कविता सुनाई जाती है, जो भावपूर्ण दृश्यों के साथ मेल खाती है. कवियों में जौन एलिया और अशोक वाजपेयी से लेकर रामनाथ अवस्थी और वंदना मिश्रा तक शामिल हैं.

एकल सीरीज़ में थिएटर कलाकार साहित्यिक कृतियों को पढ़ते या प्रस्तुत करते हैं. हिमानी शिवपुरी कृष्णा सोबती की मित्रो मरजानी की मित्रो के रूप में दिखाई दीं, वीरेंद्र सक्सेना ने भीष्म साहनी की भावपूर्ण हानूश भूमिका निभाई और राजेंद्र गुप्ता ने मोहन राकेश की आषाढ़ का एक दिन का पाठ किया.

हिमानी शिवपुरी ने मित्रो मरजानी की भूमिका निभाई है और राजेंद्र गुप्ता ने नई धारा की एकल श्रृंखला में आषाढ़ का एक दिन पढ़ते हुए | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब्स
हिमानी शिवपुरी ने मित्रो मरजानी की भूमिका निभाई है और राजेंद्र गुप्ता ने नई धारा की एकल श्रृंखला में आषाढ़ का एक दिन पढ़ते हुए | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब्स

फिर “पन्नो से परदे तक” है, जो साहित्य और सिनेमा के बीच के संबंध को उजागर करता है. 25 मई को इंस्टाग्राम रील ने निदा फाजली के गीत “तेरे बगैर जहां में कोई कमी सी थी” को हाइलाइट किया, जिसे मोहम्मद रफी ने आप तो ऐसे ना थे में गाया था.

अन्य श्रृंखलाओं में जैन द्वारा सुनाई गई कहानी ट्रेन, 365 डेज़, 365 बुक्स और नई धारा संवाद शामिल हैं, जिसमें बुकर प्राइज़ विजेता गीतांजलि श्री से लेकर पत्रकार और लेखिका मृणाल पांडे तक के साथ चर्चा की गई है.

नई धारा वेबसाइट का दावा है कि पत्रिका ने 10,000 से अधिक लेख प्रकाशित किए हैं और 3,000 लेखकों के साथ इसका मजबूत रिश्ता है.

इसमें लिखा है, “वीडियो साक्षात्कार, पॉडकास्ट एवं विविध आकर्षक कार्यक्रमों के माध्यम से नई धारा वेबसाइट हिंदी साहित्य को एक क्लिक पर आपके लिए उपलब्ध कराती है.”

डिजिटल प्रचार को ऑफलाइन कार्यक्रमों से मजबूती मिली है, जिसमें अनामिका जैसे कवियों द्वारा आयोजित लेखन कार्यशालाएं, वार्षिक साहित्य उत्सव उदयोत्सव और लोक संगीत श्रृंखला भाखा शामिल हैं.

प्रमथ राज सिन्हा उदयोत्सव 2024 में राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम को सम्मानित करते हुए. नई धारा की डिजिटल संपादक आरती जैन दाईं ओर दिखाई दे रही हैं | फोटो: विशेष प्रबंध
प्रमथ राज सिन्हा उदयोत्सव 2024 में राजकमल प्रकाशन के संपादक सत्यानंद निरुपम को सम्मानित करते हुए. नई धारा की डिजिटल संपादक आरती जैन दाईं ओर दिखाई दे रही हैं | फोटो: विशेष प्रबंध

एक कार्यक्रम में वाराणसी के लोक गायक मन्नू यादव ने दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में प्रस्तुति दी.

वीडियो कैप्शन में कहा गया है, “लोकगीत जहां एक तरफ हमें ऐतिहासिक चीज़ों से जोड़ता है, वहीं इस विधा में बड़ी से बड़ी बातें, बड़े-बड़े फलसफे एकदम आस-पास की चीज़ों के वर्णन से कर दिए जाते हैं.”

जैन ने कहा कि लोक बोलियों और औपचारिक भाषा के बीच इस अटूट निरंतरता पर कबीर ने लिखा था: संस्कृत है कूप जल, भाखा बहता नीर.

प्रमथ सिन्हा सिर्फ नई धारा ही नहीं, बल्कि साहित्य, संगीत और कलाओं का यह संपूर्ण और जुड़ा हुआ पारिस्थितिकी तंत्र फिर से बनाना चाहते हैं.

सिन्हा, जिनके ड्राइंग रूम में एक सितार रखा हुआ है, ने कहा, “यह हमारी संस्कृति और इतिहास का अभिन्न अंग रहा है. हम उत्तर भारत के लोक संगीत को बढ़ावा दे रहे हैं और भाखा नामक एक कार्यक्रम आयोजित कर रहे हैं, जिस शैली में कबीर ने लिखा था.”

जैन ने कहा कि नई धारा ने पिछले पांच साल लोगों को उनकी अपनी भाषा में जोड़ने के नए तरीके खोजने में बिताए हैं और यह विकास पूरी तरह से स्वाभाविक रहा है.

उन्होंने कहा कि नई धारा का नया अवतार, प्रमथ सिन्हा के लिए एक जुनून और एक भावनात्मक परियोजना दोनों थी.

नई धारा का अस्तित्व कभी भी दिखावटी प्रकाशन नहीं था, न ही इसका उद्देश्य एक अलग पारिवारिक परियोजना होना था. शुरू से ही, इसने व्यापक साहित्यिक संस्कृति को जोड़ने का लक्ष्य रखा — शैलियों, रूपों और विचारधाराओं में.

पारिवारिक परंपरा

सूर्यपुरा हाउस में पले-बढ़े प्रमथ सिन्हा का बचपन हिंदी साहित्य के कुछ नामचीन लोगों के बीच बीता.

उन्होंने कहा, “जब भी महादेवी वर्मा साहित्यिक गोष्ठी के लिए पटना आती थीं, तो वे हमेशा हमारे घर पर रुकती थीं. हमारा घर हिंदी लेखकों के लिए गेस्ट हाउस जैसा था. मेरे पिता उन सभी से बहुत प्यार करते थे. वह बहुत अच्छे दिन हुआ करते थे.”

बचपन में सिन्हा अक्सर अपने पिता उदय राज सिंह के साथ पुस्तक विमोचन और साहित्य गोष्ठियों में शामिल होते थे. शुरुआत में तो उनकी इसमें रुचि नहीं थी, लेकिन धीरे-धीरे उनकी दिलचस्पी बढ़ती गई.

सिन्हा ने कहा, “वहां जाकर अद्भुत लगता था. बड़े लेखकों का व्यवहार बहुत सरल और विनम्र होता था. इतने प्रसिद्ध होने के बावजूद, वह विनम्रता से खुद को पेश करते थे.”

उदय राज सिंह अपनी पत्नी शीला के साथ. “बाबूजी के निधन के बाद भी, अम्मा ने पिछले 17 वर्षों से नई धारा को जीवित रखा”, उनके बेटे प्रमथ सिन्हा ने 2021 में एक लेख में लिखा | फोटो: विशेष प्रबंध
उदय राज सिंह अपनी पत्नी शीला के साथ. “बाबूजी के निधन के बाद भी, अम्मा ने पिछले 17 वर्षों से नई धारा को जीवित रखा”, उनके बेटे प्रमथ सिन्हा ने 2021 में एक लेख में लिखा | फोटो: विशेष प्रबंध

उन्होंने बताया कि उनमें से कई लोग राजनीतिक रूप से भी सक्रिय थे, खासकर आपातकाल के वक्त. 1970 के दशक में बिहार में जेपी आंदोलन भी शुरू हुआ, जिससे राजनीतिक सक्रियता में तेज़ी आई.

सिन्हा ने कहा, “जेपी हमारे आदर्श हुआ करते थे. मैंने उनके संपूर्ण क्रांति आंदोलन को बहुत करीब से देखा और इसका मुझ पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा.”

इस दौर में उनके परिवार के भीतर भी राजनीतिक गतिविधियां तेज़ थी. बिहार के पांचवें मुख्यमंत्री और पारिवारिक मित्र जनता दल के नेता महामाया प्रसाद सिन्हा जब लोकसभा चुनाव लड़ रहे थे तब चुनावी प्रचार सामग्री सिन्हा के प्रेस में ही छपती थी.

सिन्हा ने कहा, “इंदिरा गांधी ने मेरे चाचा राजेंद्र प्रताप सिन्हा को उनके खिलाफ चुनाव लड़ाया था. मेरे घर में ही दो खेमे बन गए थे.”

उन्हें याद है कि जेपी अपने दोस्त बीपी कोइराला के साथ उनके घर आते थे और राजनीतिक रणनीति पर लंबी चर्चा होती थी, साथ ही उनके मौसा बिपिन बिहारी सिन्हा आपातकाल के दौरान अंडरग्राउंड हो गए थे.

उन्होंने कहा, “वह जेपी के बहुत करीबी थे. उन दिनों वह अंडरग्राउंड बुलेटिन प्रकाशित करते थे. हमारे पास साइक्लोस्टाइलिंग मशीन थी और मैं बुलेटिन तैयार करने में मदद करता था. यह सब अब किताबों और फिल्मों में देखा जाता है, लेकिन मैंने इसे जिया है. लोग अब उस समय को भूल चुके हैं कि आज़ादी के 28 साल बाद हमें एक नई आज़ादी मिली थी.”

नई धारा ने खुद को सिर्फ साहित्य तक ही सीमित नहीं रखा, बल्कि रंगमंच, सिनेमा, बर्नार्ड शॉ विशेषांक और समांतर कहानी विशेषांक जैसी विभिन्न विधाओं को भी प्रकाशित किया, जो काफी लोकप्रिय हुए. हमारे लिए मशहूर नामों से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि किसी लेखक ने अपने समय की संवेदनाओं को कितनी अच्छी तरह से व्यक्त किया है

— शिव नारायण, संपादक

इस उथल-पुथल भरे दौर में उदय राज सिंह की राजनेताओं से दोस्ती बनी रही, लेकिन साहित्य से वह डिगे नहीं. वह ऐसा दौर था जब साहित्य और संगीत एक दूसरे से गहरे जुड़े थे.

सिन्हा ने कहा, “पटना में दशहरा के दौरान तीन-चार दिनों तक संगीत सम्मेलन होता था. इसमें लेखक शामिल होते थे और अध्यक्षता भी करते थे. साहित्यिक सेमिनार में दिखने वाले वही लोग अब शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रमों की कमान संभाल रहे थे. यह देखकर हैरानी होती थी.”

घर में साहित्य रोजमर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बन गया था. उनकी बड़ी बहन मंजरी जारूहर, जो बिहार की पहली महिला आईपीएस अधिकारी थीं, उन्होंने भी अपने संस्मरण मैडम सर में नई धारा के बारे में लिखा है.

उन्होंने लिखा, “पिताजी के परिवार में साहित्यिक परंपरा बहुत मजबूत थी. उनके अपने पिता, दादा, परदादा कविता और साहित्य की दुनिया से थे. बाबूजी भी लेखक और पत्रकार थे. नई धारा पत्रिका का पहला अंक अप्रैल 1950 में मेरे जन्म से छह महीने पहले निकला था.”

लेकिन जारूहर सरकारी नौकरी की ओर आकर्षित हुईं और सिन्हा विज्ञान की ओर. उन्होंने आईआईटी कानपुर से मेटलर्जिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की, उसके बाद यूनिवर्सिटी ऑफ पेनसिल्वेनिया से मास्टर डिग्री हासिल की. मैकिन्से में काम करने के दौरान ही उन्होंने अपने पिता के पदचिन्हों पर चलना शुरू किया — जमीन से शुरू करके संस्थानों का निर्माण किया. उन्होंने इंडियन स्कूल ऑफ बिजनेस, अशोका यूनिवर्सिटी, हड़प्पा एजुकेशन और अन्य उपक्रमों की स्थापना में भूमिका निभाई, लेकिन इन सबके बावजूद, वह अपनी साहित्यिक विरासत से जुड़े रहे.

प्रमथ सिन्हा अपनी मां शीला और बहन मंजरी जारुहर के साथ | फोटो: विशेष प्रबंध
प्रमथ सिन्हा अपनी मां शीला और बहन मंजरी जारुहर के साथ | फोटो: विशेष प्रबंध

कई सालों तक वे अपने पेशे पर ध्यान केंद्रित करते रहे, जबकि उनके पिता नई धारा संभालते रहे, उन्होंने कभी भी अपने बच्चों पर यह जिम्मेदारी उठाने का दबाव नहीं डाला.

सिन्हा ने कहा, “मेरे पिता को लगता था कि उनके बाद सब कुछ बंद हो जाएगा, लेकिन शायद उन्हें इस बात का एहसास नहीं था कि घर के माहौल ने बचपन से ही मुझ पर कितनी गहरी छाप छोड़ी है.”

नई धारा को पुनर्जीवित करने का फैसला 2020 में महामारी के दौरान शुरू हुआ — अपने पिता और अपनी मां की विरासत का सम्मान करने के तरीके के रूप में. उन्होंने कई सालों तक चुपचाप पत्रिका को संभाले रखा.

अक्टूबर 2021 में एक लेख में सिन्हा ने लिखा, “नई धारा की कामयाबी में अम्मा का महत्वपूर्ण योगदान इस पत्रिका के जन्म से रहा है. बाबू जी के जाने के बाद पिछले 17 सालों में भी अम्मा ने नई धारा को कायम रखा और अंत तक अपनी दिलचस्पी बनाए रखीं. तो नई धारा में सिर्फ हमारे संस्थापक उदय राज सिंह के ही प्राण नहीं, अम्मा के भी प्राण बसे हैं.”

उनका अगला प्रोजेक्ट सभी हिंदी लेखकों का एक संग्रह बनाना है. उन्होंने कहा कि भाषा को संरक्षित करके हम संस्कृति और इतिहास को भी संरक्षित करते हैं.

प्रमथ राज सिन्हा दिल्ली स्थित अपने घर पर | फोटो: अनीशा नेहरा/दिप्रिंट
प्रमथ राज सिन्हा दिल्ली स्थित अपने घर पर | फोटो: अनीशा नेहरा/दिप्रिंट

धारा को आगे बढ़ाते हुए

जब 2004 में उदय राज सिंह का निधन हुआ, तो हिंदी साहित्य जगत और नई धारा में एक खालीपन आ गया. कुछ आलोचकों के अनुसार, न केवल पाठकों की संख्या में कमी आई, बल्कि इसकी गुणवत्ता में भी गिरावट आई.

सासाराम के इतिहासकार श्याम सुंदर तिवारी ने कहा, “नई धारा पत्रिका सासाराम, कैमूर और रोहतास के कई घरों में आती है, लेकिन ये वही लोग हैं, जिन्होंने उदय राज सिंह के समय में इसकी सदस्यता ली थी. उनका कहना है कि अब पत्रिका पहले जैसी नहीं रही.”

बिहार में सूरजपुरा एस्टेट का जीर्ण-शीर्ण किला | फोटो: विशेष प्रबंध
बिहार में सूरजपुरा एस्टेट का जीर्ण-शीर्ण किला | फोटो: विशेष प्रबंध

लेकिन प्रमथ सिन्हा के अनुसार, पत्रिका की लंबी आयु और इतिहास का मतलब है कि इसे इतनी आसानी से खारिज नहीं किया जा सकता.

उन्होंने कहा, “इन 75 साल में उस समय के प्रसिद्ध लेखकों की रचनाएं इसमें प्रकाशित हुई हैं. हिंदी साहित्य का एक बहुत ही मूल्यवान संग्रह तैयार हुआ है.”

बचपन में उदय राज सिंह के भीतर की चिंगारी सिर्फ पुत्र-भक्ति और साहित्य के प्रति प्रेम से ही नहीं, बल्कि जवाहरलाल नेहरू से भी आई थी.

1937 में जब नेहरू आरा में एक चुनावी सभा के लिए आए, तो उदय राज के परिवार ने उन्हें जाने से मना कर दिया. दोपहर में जब सभी लोग झपकी ले रहे थे, तो वह चुपके से सभा मैदान की तरफ भागे. एक दशक बाद, इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में एक छात्र के रूप में, उन्होंने एक प्रिंटिंग प्रेस शुरू करने और नेहरू पर एक किताब के साथ इसका उद्घाटन करने की उम्मीद की, लेकिन, जैसा कि उन्होंने एक लेख में लिखा था, ऐसा करने का उनका पहला उत्सुक प्रयास विदेश में राजदूतों को बिना उचित प्रोटोकॉल के पत्र भेजना था, जिससे उन्हें खुद नेहरू से फटकार मिली.

इसके समानांतर, वे अपने पिता के काम को व्यापक दर्शकों तक पहुंचाने के लिए भी उतने ही दृढ़ थे, एक ऐसा प्रयास जिसमें वे अधिक सफल रहे.

युवा व्यक्ति के रूप में उदय राज सिंह. वे एक ज़मींदारी परिवार से थे, लेकिन नेहरू से बहुत प्रभावित थे | फोटो: विशेष प्रबंध
युवा व्यक्ति के रूप में उदय राज सिंह. वे एक ज़मींदारी परिवार से थे, लेकिन नेहरू से बहुत प्रभावित थे | फोटो: विशेष प्रबंध

दिसंबर 2024 में नई धारा के उदयोत्सव कार्यक्रम में फिल्म इतिहासकार रविकांत ने खुद को राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह का बहुत बड़ा भक्त बताया, जिनका जन्म 1890 में सूरजपुरा के जमींदार परिवार में हुआ था.

रविकांत ने कहा, “मैं चूंकि राधिका रमण प्रसाद सिंह का बहुत बड़ा भक्त हूं, इसलिए कि वो हिंदुस्तानी में लिखते थे, वो संस्कृतनिष्ठ हिंदी और फारसीनिष्ठ उर्दू – दोनों मिला करके एक अजीब खिलंदर भाषा गढ़ते थे, और बिहार के लेखक आमतौर पर बहुत बड़े शैलीकार हुए हैं और इसलिए हुए हैं क्योंकि उनकी जड़ें दरअसल उस गांव में है.”

राजा राधिका रमण की सबसे मशहूर कहानियों में से एक थी कानो में कंगना, जो समाज में महिलाओं की स्थिति के बारे में एक संक्षिप्त, लेकिन परतदार कहानी है.

उदय राज ने अपने संस्मरण में इलाहाबाद के दारागंज में संगम के तट पर स्थित उनके घर पर प्रख्यात हिंदी कवि सूर्यकांत त्रिपाठी निराला से मिलने के बारे में लिखा है. जब उन्होंने निराला के पैर छुए, तो कवि ने उनकी ओर देखा और कहा, “ओह! तुम राधिका रमण के बेटे हो! मुझे कानो में कंगना अभी भी याद है.”

प्रमथ सिन्हा अपने दादा के बारे में भी बहुत भावुक हैं.

उन्होंने कहा, “जब मैंने पहली बार वह कहानी पढ़ी तो मुझे बिल्कुल समझ में नहीं आई. जब मैंने उसे कई बार पढ़ा तो वह मुझे बहुत प्रभावित कर गई. उनकी कहानी राम रहीम भी काफी मशहूर है. उस समय के समाज पर टिप्पणी और जिस लय और भाषा में वे लिखते थे, वह बिल्कुल अद्भुत थी. इसलिए वे शैली सम्राट हैं. स्कूल में हमें उनकी एक कहानी पढ़ाई गई थी — दरिद्र नारायण. यह जानकर बहुत अच्छा लगा था कि मेरे दादा की कहानी मेरी किताब में है.”

नई धारा के दो हालिया अंक. एक के मुख्य कवर कैप्शन में लिखा है ‘मां बनी तो मां और भी याद आई’, जबकि दूसरे में लिखा है ‘कॉमरेड, जाति-भेद समस्या नहीं है’ | फोटो: विशेष प्रबंध
नई धारा के दो हालिया अंक. एक के मुख्य कवर कैप्शन में लिखा है ‘मां बनी तो मां और भी याद आई’, जबकि दूसरे में लिखा है ‘कॉमरेड, जाति-भेद समस्या नहीं है’ | फोटो: विशेष प्रबंध

लेकिन नई धारा का उद्देश्य कभी भी दिखावटी प्रकाशन नहीं था, न ही इसे एकांतिक पारिवारिक परियोजना माना गया था. शुरू से ही, इसने व्यापक साहित्यिक संस्कृति को जोड़ने का लक्ष्य रखा — सभी विधाओं, रूपों और विचारधाराओं में.

संपादक शिव नारायण कहते हैं, “नई धारा ने खुद को केवल साहित्य तक सीमित नहीं रखा, बल्कि थिएटर, सिनेमा, बर्नार्ड शॉ विशेषांक और समांनांतर कहानी विशेषांक जैसी विभिन्न विधाओं को भी प्रकाशित किया, जो काफी लोकप्रिय हुए. विचारधारा के आधार पर कभी किसी के साथ भेदभाव नहीं किया गया. हमारे लिए प्रसिद्ध नामों से ज़्यादा महत्वपूर्ण यह है कि किसी लेखक ने अपने समय की संवेदनाओं को कितनी अच्छी तरह से व्यक्त किया है.”

पत्रिका सालाना छह अंक प्रकाशित करती है, जिसमें साल की शुरुआत में ही विषयों का चयन कर लिया जाता है. नारायण ने कहा कि “समकालीन विषयों” को प्राथमिकता दी जाती है और लेखकों को उस आधार पर योगदान देने के लिए आमंत्रित किया जाता है.

उन्होंने कहा, “हमारा पहचान-आधारित लेखन पर भी जोर है , जिसमें आदिवासी और अल्पसंख्यकों के मुद्दे शामिल हैं.”

वेबसाइट पर अब “नारीवादी विमर्श” और “दलित विमर्श” पर समर्पित अनुभाग हैं. अप्रैल में दलित लेखक और प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन ने जाति और ‘योग्यता’ के बारे में क्रीमी लेयर शीर्षक से एक लेख लिखा था.

नई आवाज़ों को मंच देने की प्रतिबद्धता पत्रिका की विशेषता बनी हुई है. विजय मोहन सिंह, केदारनाथ सिंह और गोविंद मिश्र जैसे प्रमुख हिंदी लेखकों ने अपने शुरुआती दिनों में पत्रिका में लिखना शुरू किया.

प्रमथ सिन्हा उस परंपरा को जारी रखने के लिए उत्सुक हैं.

उन्होंने कहा, “इसलिए पत्रिका का नाम है नई धारा. आज भी हम इस बात को ध्यान में रखते हैं कि हमें युवाओं को प्राथमिकता देनी है — क्योंकि यही पीढ़ी साहित्य को आगे ले जा सकती है.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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