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Sunday, 3 November, 2024
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मध्य प्रदेश में नहीं पकड़ रहे रफ्तार इंजीनियरिंग के हिंदी कोर्स, स्टूडेंट्स बढ़ रहे हैं अंग्रेज़ी की ओर

AICTE ने 2022 में मध्य प्रदेश में 13 सरकारी और निजी कॉलेजों को हिंदी में इंजीनियरिंग डिग्री और डिप्लोमा कोर्स शुरू करने अनुमति दी थी. अब तक 108 ने नामांकन किया है.

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भोपाल: पवन सिंगर इंजीनियरिंग कॉलेज में इलेक्ट्रिकल लैब के बीच में खड़े होकर दूसरे स्टूडेंट्स की नोटबुक में देखने के लिए अपनी गर्दन टेढ़ी कर रहे थे. प्रोफेसर ने अभी-अभी ‘किरचॉफ के नियम का सत्यापन’ समझाया था. स्टूडेंट्स न केवल किरचॉफ की सही वर्तनी को लेकर बल्कि ‘verification’ और ‘eliminate’ जैसे शब्दों को लेकर भी भ्रमित थे.

यह भोपाल में मौलाना आज़ाद नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (MANIT) का ‘जे सेक्शन’ है — 80 स्टूडेंट्स की एक क्लास, जिन्हें हिंदी में पढ़ाया जाता है. मध्य प्रदेश के झाबुआ के भील पवन के लिए, यह ग्रेट इंडियन इंजीनियरिंग ड्रीम में उनका पहला कदम है.

2022 में अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद (एआईसीटीई) ने मध्य प्रदेश के 13 सरकारी और निजी कॉलेजों को हिंदी में इंजीनियरिंग डिग्री और डिप्लोमा कोर्स शुरू करने अनुमति दी. इस फैसले का उद्देश्य स्टूडेंट्स की संख्या बढ़ाना और इंजीनियरिंग को कम लक्जरी और अधिक सुलभ बनाना था. इसके अतिरिक्त, गृह मंत्री अमित शाह ने हिंदी में एमबीबीएस कोर्स शुरू करने की घोषणा की थी.

लेकिन पिछले साल राज्य के हिंदी इंजीनियरिंग कोर्स में केवल 19 स्टूडेंट्स ने दाखिला लिया. तकनीकी शिक्षा निदेशालय के अतिरिक्त निदेशक मोहन सेन ने कहा, 16 ने इसे पूरा किया, सभी एक ही निजी संस्थान से, जबकि 3 ने पढ़ाई छोड़ दी. इस साल, 13 संस्थानों में से सिर्फ 4 में कुल 89 स्टूडेंट्स ने दाखिला लिया.

तकनीकी शिक्षा में राष्ट्रीय महत्व के केंद्रीय वित्त पोषित संस्थान MANIT की भी ऐसी ही कहानी है.

पिछले दो शैक्षणिक सत्रों में 334 में से केवल 27 स्टूडेंट्स ने MANIT में हिंदी सेक्शन को चुना.

अगर हिंदी बड़ी संख्या में छोटे शहरों के स्टूडेंट्स को इंजीनियरिंग में आसानी से एडमिशन दिलाने का साधन है, तो इसने उन्हें सवालों से भी भर दिया है कि यह उन्हें कितनी दूर तक ले जाएगी, क्या उन्हें बड़े शहर में नौकरियां मिलेंगी और क्या वो हमेशा अपने अंग्रेज़ी बोलने वाले समकक्ष से हीन महसूस करेंगे. इससे भी बुरी बात यह है कि किताबें और शिक्षण सामग्री हिंदी और क्षेत्रीय भाषाओं में तैयार नहीं हैं. ग्रेट इंडियन इंजीनियरिंग का सपना अभी भी ज्यादातर अंग्रेज़ी में ही देखा जाता है और अंग्रेज़ी-हिंदी साइलो बनाने का मतलब इसमें कटौती करना नहीं है.

पवन तीन भाई-बहनों में सबसे छोटे हैं. उनके पिता जिला अदालत में पर्यवेक्षक के रूप में काम करते हैं, जबकि उनकी मां घर पर परिवार की देखभाल करती हैं. वो अपने परिवार में इंजीनियरिंग करने वाले पहले व्यक्ति हैं, यह सपना उन्होंने तब से देखा है जब वो चौथी क्लास में थे.

वो इस बात पर जोर देते हैं कि वो अंग्रेज़ी से अपरिचित नहीं हैं; उन्होंने 11वीं कक्षा में इसकी तैयारी शुरू की और इसमें संयुक्त प्रवेश परीक्षा (जेईई) दी. यह उन्हें अब भी आगे बढ़ाता है: हिंदी सेक्शन के स्टूडेंट्स को अपने टर्म पेपर अंग्रेज़ी में लिखने चाहिए.

लेकिन उनके दोस्त महेंद्र बिश्नोई और परमेत जांगिड़, दोनों जोधपुर से हैं, उन्होंने जेईई समेत पूरी पढ़ाई हिंदी में पूरी की है. महेंद्र को अब अंग्रेज़ी में पर्यावरण विज्ञान और रसायन विज्ञान जैसे सैद्धांतिक विषयों की अवधारणाओं को समझने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है.

अपनी क्लास में एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अनूप आर्य भारत की गहरी भाषा विभाजन के प्रति सचेत हैं. वो स्टूडेंट्स को पहले अंग्रेज़ी में और फिर धीरे-धीरे हिंदी में सुरक्षा निर्देशों की जानकारी देते हैं.

English notes in Hindi section
MANIT में जे सेक्शन का एक स्टूडेंट मेहनत से हिंदी में नोट्स बनाता है. बाकी स्टूडेंट्स बाद में उसके लिए Google Translate का उपयोग करते हैं | फोटो: इरम सिद्दीकी/दिप्रिंट

पवन और उसके दोस्त क्सास में लेक्चर के दौरान खाली रहते हैं और यूट्यूब चैनल देखते हैं जो उन्हें कॉन्सेप्ट्स को सीखने में मदद कर सकते हैं. फिर वो अंग्रेज़ी से हिंदी में नोट्स बनाने के लिए गूगल ट्रांसलेट का इस्तेमाल करते हैं. आखिरकार वो अपने टेस्ट लिखने के लिए उन्हें फिर से अंग्रेज़ी में सीखते हैं.

उनके दिमाग में सितंबर में होने वाली पर्यावरण विज्ञान की परीक्षा का बोझ है.

महेंद्र ने कहा, “नौकरी मिलना तो बहुत दूर की बात है. फिलहाल, मुझे बस यही उम्मीद है कि मैं किसी भी कोर्स में फेल नहीं होऊंगा.”

हालांकि, पवन जैसे कई अन्य स्टूडेंट्स के लिए, एक बड़ी दुविधा खड़ी है. हिंदी सेक्शन जिसे भाषा की बाधा पर एक पुल माना जाता था, अब उच्च-भुगतान वाली नौकरियों और स्थिति की राह पर एक गलत मोड़ की तरह लगता है.


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J जंपिंग शिप है

रिग्रेट MANIT के जे सेक्शन में व्याप्त है, जो सीमित अंग्रेज़ी दक्षता वाले स्टूडेंट्स को पूरा करता है. कुछ ने अपनी स्कूल की पूरी पढ़ाई हिंदी में की, जबकि कुछ ने देर से अंग्रेज़ी सीखी. कुछ लोगों का दावा है कि उन्होंने एडमिशन प्रक्रिया के दौरान “गलती से” हिंदी-मीडियम शिक्षा का ऑप्शन चुना.

कुछ लोग पहले अंग्रेज़ी न सीख पाने का अफसोस करते हैं, कुछ अपने एडमिशन फॉर्म की गलतियों पर अफसोस करते हैं और कई लोग कहते हैं कि वो हिंदी सेक्शन के भीतर और अधिक अंग्रेज़ी में ट्रेनिंग लेना चाहते हैं.

परमेट को अपने बड़े भाई से प्रेरणा मिलती है, जिन्होंने हाल ही में एनआईटी राउरकेला से इंजीनियरिंग पूरी की और माइक्रोसॉफ्ट में नौकरी हासिल की है. उनके पिता बढ़ई हैं और उन्होंने अपने दोनों बच्चों को पढ़ाने के लिए 30 लाख रुपये से अधिक का कर्ज़ लिया.

परमेट ने कहा, “जेईई की तैयारी के दौरान मैं 12 घंटे पढ़ाई करता था, लेकिन मेरे भाई ने 15 घंटे पढ़ाई की. वो अंग्रेज़ी सीखने के लिए रोज़ाना तीन एक्स्ट्रा घंटे लगाते थे. मैं अच्छी तरह जानता हूं कि कोई दूसरा रास्ता नहीं है.”

यहां तक कि जे सेक्शन में भी स्टूडेंट्स को अंग्रेज़ी में नोट्स मिलते हैं, इसलिए वो ऑनलाइन हिंदी संसाधनों का उपयोग करने की कोशिश करते हैं. परमेट ने कहा, “क्लास से अपनी समझ को पूरा करने के लिए हम डॉ. गजेंद्र पुरोहित जैसे यूट्यूब चैनलों का सहारा लेते हैं.”

लेकिन भाषा की बाधा के कारण व्यावहारिक सीखने की चुनौतियों का सामना करने के बावजूद, अधिकांश जे सेक्शन के स्टूडेंट्स आखिरकार अंग्रेज़ी-मीडियम सेक्शन में चले जाते हैं.

यह बुरा लग रहा था कि हम उस सेक्शन का हिस्सा थे जिसे हिंदी सेक्शन कहा जाता था

-गौरव बारवाल, स्टूडेंट MANIT

राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) में हिंदी के लिए सरकार के अभियान के जवाब में 2021 में MANIT द्वारा सेक्शन की स्थापना के बाद से यह प्रवृत्ति बनी हुई है.

पिछले दो शैक्षणिक सत्रों में 334 में से केवल 27 छात्रों ने हिंदी सेक्शन को चुना था.

MANIT में शिक्षाविदों के डीन प्रोफेसर एमएम मलिक के अनुसार, फर्स्ट इयर में कुल 1,203 स्टूडेंट्स शामिल हैं. 2021 में 150 छात्रों ने हिंदी में इंजीनियरिंग का विकल्प चुना, लेकिन पहले साल के अंत तक केवल 8 ही इस सेक्शन में रह गए.

2022 में हिंदी सेक्शन में शुरुआत करने वाले 184 में से केवल 18 ही रुके, बाकी अंग्रेज़ी-मीडियम सेक्शन में शिफ्ट हो गए. 2023 में 81 स्टूडेंट्स ने हिंदी में इंजीनियरिंग के लिए साइन अप किया. कितनों ने पढ़ाई इसमें जारी रखी होगी यह प्रश्न का विषय है.

MANIT lab
जे सेक्शन के स्टूडेंट्स MANIT में मैकेनिकल लैब में एक सत्र में भाग लेते हुए | फोटो: इरम सिद्दीकी/दिप्रिंट

कुछ स्टूडेंट्स के लिए सेक्शन बदलना एक उपाय है. प्रथम वर्ष के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स एक जैसे सब्जेक्ट की पढ़ाई करते हैं, लेकिन जैसे-जैसे वो विशेषज्ञता हासिल करते हैं, हिंदी शिक्षा का बुनियादी ढांचा और अधिक खंडित हो जाता है.

स्टूडेंट्स का यह भी कहना है कि अंग्रेज़ी से शुरुआत न करने से उन्हें आगे चलकर नुकसान होता है.

2022-बैच जे सेक्शन के स्टूडेंट आशीष यादव जिन्होंने स्विच किया कहते हैं, “ऐसी समझ है कि हिंदी में प्लेसमेंट के अवसर कम होते हैं क्योंकि ज्यादातर कंपनियां उन स्टूडेंट्स को चुनती हैं जो अंग्रेज़ी में पारंगत होते हैं. प्लेसमेंट इंटरव्यू स्वयं बड़े पैमाने पर अंग्रेज़ी में आयोजित किए जाते हैं.”

दूसरों के लिए जे सेक्शन में होने से उनके गौरव को ठेस पहुंचती है.

पिछले साल अंग्रेज़ी-मीडियम सेक्शन में शिफ्ट होने की मांग करने वाले गौरव बरवाल ने कहा, “बुरा लग रहा था कि हम उस सेक्शन का हिस्सा थे जिसे हिंदी सेक्शन कहा जाता था.”


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हिंदी-मीडियम का लोड

पवन कॉलेज की दिनचर्या में सफल हैं, क्लास जाने से पहले योग और ध्यान के साथ अपने दिन की शुरुआत करते हैं.

फिर भी, उनके तीसरी मंजिल के हॉस्टल के कमरे में थोड़ी बेचैनी का एहसास है. पवन यह साबित करने के लिए उत्सुक है कि वो अपने अंग्रेज़ी मीडियम के रूममेट्स, आकाश अग्रवाल और विवेक गुप्ता से अलग नहीं है.

जब वो अपने-अपने बिस्तरों पर बैठते हैं और बातचीत करते हैं, तो वे सभी इस बात पर जोर देते हैं कि हिंदी सेक्शन में पवन का स्थान फॉर्म भरने के दुस्साहस का परिणाम था.

पवन ने कहा, “मैंने 10वीं कक्षा तक हिंदी में पढ़ाई की, लेकिन 12वीं की परीक्षा मैंने अंग्रेज़ी में दी. मुझे पता था कि अन्यथा इंजीनियरिंग करना मुश्किल होगा. पहले तो यह एक संघर्ष था क्योंकि मुझे समझ नहीं आ रहा था कि टीचर्स क्या कह रहे हैं, लेकिन अब मैं अंग्रेज़ी जानता हूं. मैंने अपना जेईई अंग्रेज़ी में दिया.”

Pawan Singar in his room
हिंदी सेक्शन के छात्र पवन सिंगर (दाएं से पहले) MANIT में अपने हॉस्टल के कमरे में अपने अंग्रेज़ी मीडियम के रूममेट्स के साथ बैठे हैं | फोटो: इरम सिद्दीकी/दिप्रिंट

उनका दावा है कि उन्हें तिरुवनंतपुरम में भारतीय अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी संस्थान में जगह मिल गई थी, लेकिन उन्होंने MANIT को चुना क्योंकि वो घर के करीब रहना चाहते थे. वो स्पष्ट रूप से अपने वाक्यों को अंग्रेज़ी शब्दों से भर देता है.

एक हिंदी मीडियम के स्टूडेंट के रूप में पहचान लोड के साथ आती है. इससे कोई मदद नहीं मिलती कि अंग्रेज़ी प्रवाह को बुद्धिमता का पैमाना मान लिया जाए.

जून में इंदौर में इंजीनियरिंग प्रथम वर्ष के एक स्टूडेंट ने कथित तौर पर अंग्रेज़ी न समझ पाने और पेपर में फेल होने के कारण मजाक उड़ाए जाने के बाद आत्महत्या कर ली थी.

यहां तक कि MANIT के प्रोफेसर भी स्वीकार करते हैं कि हिंदी सेक्शन के स्टूडेंट को अपने बैचमेट के साथ बने रहने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए और विडंबना यह है कि उन्हें अपनी पढ़ाई और करियर में भविष्य की कठिनाइयों से बचने के लिए अपने अंग्रेज़ी स्किल्स में सुधार करना होगा.

संसाधन की कमी — हिंदी और अंग्रेज़ी दोनों के लिए

हिंदी-मीडियम जे सेक्शन पिरामिड के निचले हिस्से की बड़ी आबादी के लिए एक अच्छा प्रवेश बिंदु है, लेकिन पहले कुछ महीनों के भीतर, उन्हें एहसास होता है कि यह जड़ें बढ़ाने के लिए अच्छी जगह नहीं है. वो एकीकृत होने के लिए उत्सुक होने लगते हैं और जल्द ही अंग्रेज़ी में अध्ययन सामग्री और कोचिंग की गुणवत्ता बेहतर होगी.

आशीष यादव ने पिछले साल अपने अंग्रेजी-मीडियम बैचमेट्स में शामिल होने के लिए जे सेक्शन छोड़ दिया था. यह एक व्यावहारिक ऑप्शन था क्योंकि उसे वैसे भी अंग्रेज़ी में नोट्स पढ़ना और पेपर लिखना था. अधिक हिंदी-मीडियम के स्टूडेंट्स समानांतर हिंदी क्लास के बजाय आसान और सौम्य अंग्रेज़ी क्लास पसंद करते हैं.

उत्तर प्रदेश के झांसी से आने वाले आशीष, जो पीएसयू में बतौर इंजीनियर काम करना चाहते हैं, कहते हैं, “मैं अभी भी अंग्रेज़ी सीख रहा हूं और प्लेसमेंट के लिए अभी दो साल बाकी हैं, लेकिन मुझे दृढ़ता से लगता है कि हिंदी पृष्ठभूमि से आने वाले स्टूडेंट्स को भविष्य के लिए तैयार करने के लिए एक अलग अंग्रेज़ी क्लास की ज़रूरत है.”

किताबों को सरल हिंदी में सभी के लिए सुलभ बनाने की दिशा में काम करने की ज़रूरत है

– मोहन सेन, तकनीकी शिक्षा निदेशालय

लेकिन बड़ा नीतिगत प्रयास साइलो बनाने के लिए प्रतीत होता है, भले ही अंग्रेज़ी को कभी भी पूरी तरह से दूर नहीं किया जा सकता है.

MANIT के निदेशक डॉ. करुणेश शुक्ला ने कहा कि हिंदी में इंजीनियरिंग की शुरूआत एनईपी के अनुरूप है और इसका उद्देश्य “सहज” सीखने का अनुभव प्रदान करना है.

उन्होंने कहा, “हमने अंग्रेज़ी और हिंदी दोनों में लैब मैनुअल जारी करने और स्टूडेंट्स को मौखिक परीक्षा के लिए हिंदी को अपने मीडियम के रूप में चुनने की अनुमति देने जैसे कई उपाय किए हैं. हम किसी भी स्टूडेंट को किसी विशेष भाषा को चुनने के लिए मजबूर नहीं करते हैं, यह पूरी तरह से उन पर निर्भर है.” उन्होंने कहा, “लेकिन अंतिम परीक्षा का पेपर केवल अंग्रेज़ी में लिखा गया है.”

फिर भी, हिंदी कोर्स सामग्री की उपलब्धता सीमित है. यहां तक कि एआईसीटीई द्वारा अनुमोदित किताबों में मुश्किल भाषा होती है जिसे स्टूडेंट्स के लिए समझना मुश्किल होता है.

Hindi textbook
प्रथम वर्ष के इंजीनियरिंग स्टूडेंट्स के लिए हिंदी एआईसीटीई की किताबें. कई स्टूडेंट्स को ये किताबें मुश्किल लगती हैं | फोटो: इरम सिद्दीकी/दिप्रिंट

सेन ने कहा, “किताबों को सरल हिंदी में सभी के लिए सुलभ बनाने के लिए काम करने की ज़रूरत है.”

फिर भी, हिंदी कोर्स सामग्री की उपलब्धता सीमित है. यहां तक कि एआईसीटीई द्वारा अनुमोदित किताबों में सघन और जटिल भाषा होती है जिसे स्टूडेंट्स के लिए समझना मुश्किल होता है.

हिंदी में इंजीनियरिंग किताबों के ट्रांसलेशन के नोडल समन्वयक शशिरंगन अकेला ने कहा, फर्स्ट इयर के स्टूडेंट्स के लिए अब तक 20 किताबों का ट्रांसलेशन किया जा चुका है और दूसरे वर्ष के लिए 80 अन्य लाइन में हैं.

एआईसीटीई ने अब इंजीनियरिंग की किताबें लिखने के लिए लेखकों को भी नियुक्त किया है जिनका सरल हिंदी में ट्रांसलेशन किया जाएगा और फिर विशेषज्ञ समितियों द्वारा समीक्षा की जाएगी.


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कम मांग और ‘शोषण’ का सवाल

हिंदी इंजीनियरिंग के प्रति उदासीन प्रतिक्रिया MANIT से आगे तक फैली हुई है. मध्य प्रदेश के 13 राज्य संस्थान, जिन्होंने पिछले साल हिंदी इंजीनियरिंग कोर्स शुरू किया था, वो भी कम नामांकन से जूझ रहे हैं और बीच में ही स्टूडेंट्स के हिंदी छोड़ने की समस्या से भी जूझ रहे हैं.

2022 में दाखिला लेने वाले सभी 19 स्टूडेंट इंदौर के निजी विश्वविद्यालयों से थे. सबसे अधिक संख्या में प्रवेश – 16 – एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड रिसर्च में हुए, जो हिंदी में कंप्यूटर विज्ञान कोर्स प्रदान करता है. इसके बाद आईपीएस अकादमी (इंस्टीट्यूट ऑफ इंजीनियरिंग एंड साइंस) में कंप्यूटर साइंस के लिए दो और जीएस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस में हिंदी बायोमेडिकल इंजीनियरिंग कोर्स में एक प्रवेश हुआ.

भारत में इंजीनियरिंग सिर्फ पढ़ाई का क्षेत्र नहीं है, बल्कि सामाजिक गतिशीलता का टिकट भी है. अलिखित नियम यह है कि अंग्रेज़ी के बिना कुछ भी संभव नहीं है.

19 में से एक्रोपोलिस के केवल 16 स्टूडेंट ने पूरा वर्ष पूरा किया.

संस्थान के निदेशक पीसी शर्मा ने कहा कि स्टूडेंट ने अपने कोर्स में मिश्रित भाषाओं का इस्तेमाल किया – हिंदी में लेखन और अंग्रेज़ी में तकनीकी कार्य.

उन्होंने कहा कि कंप्यूटर विज्ञान एक ऐसा क्षेत्र है जहां भाषा की समझ और लेखन से ज्यादा तकनीकी दक्षता मायने रखती है.

उन्होंने कहा, “स्टूडेंट्स को उनके तकनीकी कौशल के लिए ट्रेनिंग दी जाती है. प्लेसमेंट के दौरान भी कई कंपनियां यह सुनिश्चित करने के लिए प्रवेश परीक्षा आयोजित करती हैं कि स्टूडेंट के पास उन कोर्स को विकसित करने के लिए आवश्यक कौशल हैं जिनकी उन्हें ज़रूरत है.”

जीएस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में प्रवेश लेने वाले एकमात्र स्टूडेंट ने अपना पेपर अंग्रेज़ी में लिखा, और अपना प्रथम वर्ष दोहरा रहा है.

इस साल पूरे मप्र में 89 स्टूडेंट्स ने हिंदी इंजीनियरिंग के लिए दाखिला लिया है. एक्रोपोलिस इंस्टीट्यूट और जीएस इंस्टीट्यूट में क्रमश: 74 और नौ की अधिक संख्या देखी गई. खांडवा में आईपीएस अकादमी और दादाजी इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस ने क्रमशः चार और दो स्टूडेंट का नामांकन किया.

लेकिन इस बारे में थोड़ा संदेह है कि क्या बढ़े हुए नामांकन हिंदी में रुचि में वृद्धि का संकेत देते हैं या कुछ और निंदनीय है.

हिंदी में इंजीनियरिंग के लिए आरक्षित सीटों का अंग्रेज़ी मीडियम के स्टूडेंट द्वारा शोषण नहीं किया जाना चाहिए

-प्रोफेसर प्रशांत बंसोड़, जीएस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस

शुरुआत में अगस्त में 17 छात्रों ने जीएस इंस्टीट्यूट में हिंदी में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग करने के लिए दाखिला लिया था. हालांकि, सितंबर तक, काउंसलिंग के लगातार दौर के बाद, यह संख्या घटकर नौ हो गई, अन्य आठ स्टूडेंट इंजीनियरिंग की अन्य ब्रांच में चले गए, जहां अंग्रेज़ी में पढ़ाया जाता है.

इससे यह चिंता पैदा हो गई कि कुछ स्टूडेंट केवल प्रवेश की संभावना बढ़ाने के लिए हिंदी सीटों के लिए आवेदन कर रहे हैं, यह जानते हुए कि वो अंग्रेज़ी में पेपर लिखना चुन सकते हैं या बाद में किसी अलग सेक्शन में जा सकते हैं.

जीएस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस में बायोमेडिकल इंजीनियरिंग विभाग के प्रमुख प्रोफेसर प्रशांत बंसोड़ ने दिप्रिंट को बताया कि इस साल सभी शुरुआती नामांकन मीडियम पृष्ठभूमि के नहीं थे.

उन्होंने कहा, “हिंदी में इंजीनियरिंग के लिए आरक्षित सीटों का अंग्रेज़ी मीडियम के स्टूडेंट द्वारा फायदा नहीं उठाया जाना चाहिए.”

उन्होंने कहा, “इस स्थिति में हम यह पता लगाने की कोशिश कर रहे हैं कि क्या स्टूडेंट्स को परीक्षा के लिए अपनी भाषा चुनने की अनुमति दी जानी चाहिए या हिंदी को अनिवार्य किया जाना चाहिए.”

लेकिन सबसे बड़ी चुनौती अधिक स्टूडेंट्स को हिंदी इंजीनियरिंग कोर्स की ओर आकर्षित करना है.

यहां तक कि राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय (आरजीपीवी), जो एक तकनीकी विश्वविद्यालय है, जिसमें ग्रामीण मप्र के स्टूडेंट्स का बड़ा प्रतिशत है, में भी हिंदी इंजीनियरिंग के लिए कोई बच्चा नहीं था.

आरजीपीवी, विशेष रूप से तकनीकी शिक्षा के लिए राज्य का नोडल संस्थान है, जिसे पूरे मध्य प्रदेश में परीक्षा आयोजित करने, नीतियां तय करने और निजी और सरकारी दोनों तकनीकी संस्थानों को संचालित करने का काम सौंपा गया है.

Rajiv Gandhi Proudyogiki Vishwavidyalaya
भोपाल में राजीव गांधी प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय का प्रवेश द्वार, जहां कई विशेषज्ञताओं में हिंदी इंजीनियरिंग कोर्स के लिए कोई बच्चा नहीं था | फोटो: फेसबुक/RGPV Bhopal

विभाग के प्रमुख प्रोफेसर एसएस भदोरिया ने कहा, एआईसीटीई ने विश्वविद्यालय को सिविल, मैकेनिकल, इलेक्ट्रिकल, कंप्यूटर विज्ञान, इलेक्ट्रॉनिक्स और दूरसंचार इंजीनियरिंग कोर्स को हिंदी में पेश करने की अनुमति दी थी, लेकिन इनमें से कोई भी कार्यक्रम ज़मीन पर नहीं उतर सका.

उन्होंने कहा, “ओरिएंटेशन के दौरान हम स्टूडेंट्स से पूछते हैं कि क्या वो चाहते हैं कि उनकी शिक्षा का मीडियम हिंदी हो, लेकिन हमारे पास इसके लिए कोई बच्चा नहीं था. पिछले साल किए गए एक सर्वे में भी हिंदी में इंजीनियरिंग के प्रति कम उत्साह पाया गया था.”

हालांकि, जीएस इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी एंड साइंस के प्रवेश डीन राकेश खरे ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि हिंदी में इंजीनियरिंग समय के साथ और अधिक लोकप्रिय हो जाएगी.

उन्होंने कहा, “किसी भी नीति को ज़मीन पर सफलतापूर्वक लागू होने में कुछ साल लगेंगे.”


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समाधान की तलाश

भारत में इंजीनियरिंग सिर्फ पढ़ाई का क्षेत्र नहीं, बल्कि सामाजिक गतिशीलता का टिकट भी है. अलिखित नियम यह है कि अंग्रेज़ी के बिना कुछ भी संभव नहीं है. सेन ने कहा कि इस धारणा को बदलने की ज़रूरत है.

उन्होंने कहा, “हमने पिछले साल स्टूडेंट्स से बात की थी और उन्हें लगता है कि बहुराष्ट्रीय और वैश्विक कंपनियां उन लोगों की तलाश करती हैं जो अंग्रेज़ी में पारंगत हैं, जबकि जब रोज़गार की बात आती है तो हिंदी को नुकसान के रूप में देखा जाता है.”

इसे देखने के लिए उनका सुझाव है कि संस्थानों को विप्रो और टीसीएस जैसी कंपनियों को कैंपस में आने के लिए आमंत्रित करना चाहिए और उन स्टूडेंट्स का मनोबल बढ़ाना चाहिए जिन्होंने हिंदी में इंजीनियरिंग का ऑप्शन लिया है.

सेन ने कहा, “जब एनईपी तैयार की जा रही थी, तब भी उद्योग हितधारकों से परामर्श किया गया था. इसी तरह की कवायद विश्वविद्यालयों को भी करने की ज़रूरत है ताकि स्टूडेंट्स को यह दिखाया जा सके कि हिंदी में इंजीनियरिंग करने वालों के लिए पर्याप्त लोग हैं.”

लेकिन कुछ प्रोफेसरों का तर्क है कि हिंदी को अंग्रेज़ी का विकल्प नहीं माना जा सकता.

आरजीवीपी के एक फैकल्टी मेंबर ने कहा कि अगर स्टूडेंट्स अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री हिंदी में पूरी करते हैं, तो भी वो अंतरराष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित शोध के धन से वंचित रह जाएंगे, जो ज्यादातर अंग्रेज़ी में हैं.

उन्होंने कहा, “हम एक वैश्वीकृत दुनिया में रहते हैं. अंग्रेज़ी जानना फायदेमंद है.”

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस ग्राऊंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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