गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के नकौड़ी खास गांव में सीसीटीवी कैमरे भगवान के समान हैं. हर सुबह गांव की रहने वाली और पेशे से गृहिणी सुनीता गोरखपुर के इस गांव में अपने घर के बाहर बिजली के खंभे पर लगे दो सीसीटीवी कैमरों के सामने सिर झुकाकर उसका आभार व्यक्त करती हैं.
सुनीता की 21 वर्षीय बेटी जब अपने एक पूर्व सहपाठी के साथ भागने की कोशिश की तो वह गांव में लगे कैमरों की बदौलत ही मिली थी.
यह घटना छह महीने पहले की है. उस वक्त नकौड़ी खास गांव में सिर्फ 20 कैमरे थे. उस रात जब सुनीता की बेटी घर नहीं लौटी तो सुनीता व अन्य ग्रामीण सरपंच गुड्डू सिंह के घर पर जाकर सीसीटीवी फीड देखने गए. एक दिन के भीतर ही लड़की और उसका प्रेमी गोरखपुर रेलवे स्टेशन पर पकड़े गए जहां से वह शहर छोड़ने की तैयारी कर रहे थे.
सुनीता, जो अभी भी एक काले और सफेद कीपैड फोन का उपयोग करती है, कैमरों से चकित है. वह उसे “भगवान का चमत्कार” कहती हैं.
वह दुपट्टे से मुंह ढकते हुए कहती हैं, “मेरी बेटी को खोजने में मेरी मदद करने के लिए मैं हमेशा इन कैमरों की आभारी रहूंगी.”
नकौड़ी खास एक सामान्य सा गांव है जहां सिर्फ 2,000 निवासी रहते हैं. यह गोरखपुर शहर के बाहरी इलाके में स्थित है, जो यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का गढ़ और गृह निर्वाचन क्षेत्र भी है.
नकौड़ी खास को अक्सर स्थानीय लोगों द्वारा “गोरखपुर का लंदन” कहा जाता है क्योंकि पूरा गांव सीसीटीवी कैमरे की निगरानी में है.
गांव छोड़कर भागने का प्रयास कर रहे प्रेमी जोड़े को पकड़ने में मदद करने के कारण पूरे गांव में कैमरे को लेकर एक अलग ही उत्सुकता बनी हुई रहती है. आज नकौड़ी खास की गलियां 103 सीसीटीवी कैमरों की निगरानी में हैं. कैमरे को कहीं बिजली के खंभों पर लगाया गया है तो कहीं दीवारों के ऊपर लगाया गया है. आज लगभग गांव का 90 प्रतिशत हिस्सा कैमरे की निगरानी में है. लेकिन ग्रामीण और अधिक से अधिक कैमरे लगवाना चाहते हैं.
जो ग्रामीण पहले सीसीटीवी लगाने का विरोध कर रहे थे, वे अब उन क्षेत्रों में भी कैमरे लगाने की मांग कर रहे हैं जो अभी तक कवर नहीं किए गए हैं.
उनका दावा है कि कैमरों ने गांव में होने वाले अपराधों को लगभग समाप्त कर दिया है, जैसे कि सड़क पर लड़ाई और छोटी मोटी चोरी आदि.
गांव के सरपंच गुड्डू ने इस सफलता पर गर्व करते हुए कहा, “गोरखपुर में हम एकमात्र अपराध मुक्त गांव हैं. कैमरे का डर ऐसा है कि लोग कुछ भी गलत करने से पहले दो बार सोचते हैं.” इस दावे का इलाके के पुलिस अधिकारी ने भी समर्थन किया है.
यहां गहन सीसीटीवी कवरेज गोरखपुर पुलिस की दो निगरानी योजनाओं का हिस्सा है जिसमें एक है- ऑपरेशन त्रिनेत्र (ऑपरेशन थर्ड आई) और दूसरा है हर घर कैमरा (हर घर में एक कैमरा). इस योजना को पिछले साल लॉन्च किया गया था. हालांकि अपराधों में कथित कमी के दावे के बावजूद परिणाम पूरी तरह संतुष्ठ करने वाले नहीं रहे हैं.
इस कैमरे के लग जाने के कारण सबसे अधिक मुश्किलों का सामना गांव के युवक-युवतियां कर रहे हैं. उनकी फुर्तीली प्रेम कहानियों का अचानक से अंत हो गया है. उनकी आजादी को एकाएक खत्म कर दिया गया.
एक ग्रामीण 20 वर्षीय कोमल ने कहा, “अब हम दोस्तों के साथ कहीं नहीं जा सकते. वे कैमरों से हमारे ऊपर निगरानी रखते हैं.”
‘हर घर कैमरा’
गोरखपुर में सीसीटीवी कार्यक्रम की इतनी सफलता है कि उत्तर प्रदेश के अन्य शहर इसके लिए कतार में खड़े हैं. लखनऊ में भी इसे लॉन्च करने की योजना है.
एक साल पहले यह गांव अपर महानिदेशक (एडीजी) अखिल कुमार की निगरानी में गोरखपुर पुलिस की पहल ऑपरेशन त्रिनेत्र के दायरे में आया था.
इस योजना के पीछे जिले भर में अधिक से अधिक सीसीटीवी कवरेज शुरू करके डकैती, यौन उत्पीड़न और चेन स्नेचिंग जैसे अपराधों पर अंकुश लगाना था. नौकाड़ी खास के सरपंच इस योजना को शुरू करने वाले पहले व्यक्ति थे. उन्होंने पंचायत के लोगों के बीच इसको लेकर उत्साहपूर्वक प्रचार किया. यह सुनिश्चित करने के लिए कि गांव में कैमरे लगाए जाएंगे, पुलिस ने आर्थिक रूप से संपन्न स्थानीय लोगों का समर्थन भी मांगा था.
एडीजे कुमार ने कहा, “हमने उद्योगपतियों, व्यापारियों, डॉक्टरों और अस्पताल मालिकों को इस योजना के लाभ के बारे में बताया. हमने तीन से चार कैमरों के साथ प्रति क्रॉसिंग की लागत का अनुमान लगभग 1 लाख रुपये लगाया था. फिर, हमने स्थानीय नागरिकों से अनुरोध किया और वे बड़ी संख्या में आगे आए और कैमरे लगाने में हमारी मदद करे.”
इसमें मदद करने वाले लोगों को, जिन्हें त्रिनेत्र एंबेसडर कहा जाता है, पुलिस ने सम्मानित किया. साथ ही कई आयोजनों में इन लोगों को आमंत्रित किया गया.
एडीजी कुमार ने कहा, “बहुत से लोग सार्वजनिक सेवा में रुचि रखते हैं, लेकिन उन्हें एक अनोखे तरीके से कुछ पहचान की जरूरत है.”
इस कार्यक्रम को गोरखपुर शहर में सफल माना गया और पिछले अक्टूबर में इसे गांवों में भी शुरू करने का निर्णय लिया गया. इसके लिए राज्य के पंचायती राज विभाग की भी मदद ली गई.
लगभग 6,000 प्रधानों ने अपने गांव से गुजरने वाले ग्रामीण सड़क चौराहों पर कैमरे लगाने के लिए 1 लाख रुपये देने पर सहमति व्यक्त की. एडीजी ने दावा किया कि ऐसे 400 स्थान हैं जहां इस तरह के कैमरे लगे हैं.
पिछले अक्टूबर में, गोरखपुर पुलिस ने हर घर कैमरा नामक एक नई पहल शुरू की.
इस कार्यक्रम के तहत, स्थानीय लोगों को अपराध पर अंकुश लगाने में मदद करने और बेहतर जांच तथा निगरानी के लिए अपने घरों के बाहर कैमरे लगाने के लिए प्रोत्साहित किया गया.
जब नकौड़ी खास के सरपंच गुड्डू ने हर घर कैमरे के बारे में सुना, तो उन्होंने न केवल इस योजना को जमीन पर उतारने का फैसला किया, बल्कि पूरे गांव को सीसीटीवी से कवर करने का फैसला किया.
गुड्डू, जो गोरखपुर में एक व्यवसाय भी चलाते हैं, ने अपने खाते से 10 लाख रुपये का निवेश किया और यह सुनिश्चित किया कि पूरे गांव में कैमरे लगाए जाएं.
वह कहते हैं, “जब मुझे सीसीटीवी कैमरों की सफलता के बारे में पता चला तो मैं काफी उत्सुक था. मैं उस रात सो नहीं सका. अगली सुबह, मैंने ग्रामीणों की एक बैठक बुलाई और उन्हें कैमरों के महत्व के बारे में समझाया.”
उन्होंने कहा, “शुरुआत में ग्रामीण अनिच्छुक थे, लेकिन आखिरकार वे हमारे साथ आए.” गांव में अगले छह महीनों में, कैमरे की संख्या दोगुनी से भी अधिक हो गई. लोग सरपंच के इस प्रयास में जमकर मदद करने लगे.
उनके पीछे एक पोस्टर पर लिखा है, “मुस्कुराते रहिए, आप सीसीटीवी कैमरे की नज़र में हैं”.
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‘युवा लड़कियों पर निगरानी बढ़ी’
गांव में लगे सीसीटीवी कैमरे की फीड पुलिस नहीं देखती है. गांव के सरपंच गुड्डू अब गांव में घूमने या फिर गस्त लगाने के बजाए अपने दो मंजिले सफेद बंगले से पूरे गांव पर निगरानी रखते हैं.
कैमरों से लाइव फीड एक बड़ी टीवी स्क्रीन पर चलती रहती है. गुड्डू वहीं बैठकर नकौड़ी खास के लगभग हर कोने पर नजर रख सकते हैं. यह उनका अपना कमांड-एंड-कंट्रोल सेंटर है.
उदाहरण के लिए, मई गर्मी में जब गांव में एक जगह सड़क निर्माण चल रहा था तो गुड्डू निर्माण स्थल पर जाने के बदले अपने घर से ही निगरानी कर रहे थे. उन्हें वहां काम कर रहे मजदूरों को जो भी निर्देश देना होता था वह सीसीटीवी में देखकर फोन के माध्यम से निर्देश देते हैं. अगर वह घर पर नहीं रहते हैं तो वह अपने फोन के जरिए गांव पर नजर रखते हैं.
रिमोट का बटन दबाकर हंसते हुए गुड्डू कहते हैं, “मेरे गांव में सीसीटीवी लगने से जीवन आसान हो गया है. देखिए, मैं अपने कमरे में बैठकर पूरे गांव पर नजर रख सकता हूं.”
गांव की कई महिलाएं इससे संतुष्ट हैं.
अन्य महिलाओं के एक समूह के साथ बैठी हुई 25 वर्षीय रिशु सिंह कहती हैं कि अब वह कभी भी काम पर आ और जा सकती हैं. वह अपने परिवार में अकेली कमाने वाली है और अपनी अंशकालिक नौकरी के लिए शहर जाती है.
उसने याद किया कि कैसे सीसीटीवी कैमरों के लगने से पहले, पुरुष सड़कों पर ताश खेलते थे और महिलाओं को परेशान करते थे.
रिशु कहती हैं, “अब वे लोग कहीं नज़र नहीं आते. कैमरे का डर ही ऐसा है.”
गांव की रहने वाली एक 60 वर्षीय महिला देवी कैमरों की तुलना देवताओं सबकुछ देखने वाले भगवान की तीसरी आंख से करती है. हालांकि वह इसके अच्छे और बुरे दोनों परिणाम के बारे में बताती है.
देवी कहती हैं, “युवा लड़कियां और लड़के, जो पहले घर से भाग जाते थे, अब वे ऐसा नहीं कर सकते हैं.”
चौराहे पर मौजूद अन्य महिलाओं ने उनकी बातों से सहमति दिखाते हुए सिर हिलाया. उनमें से अधिकतर महिलाओं ने पल्लू से अपना सिर ढका हुआ था.
अपने बेडरूम के पर्दे के पीछे 20 साल की कोमल काली टी-शर्ट और जींस पहने और अपने लंबे लहराते बालों में कंघी कर रही है.
वह देवी की बात पर सवाल करते हुए कहती हैं, “क्या प्यार करना गुनाह है? कैमरों के बाद कुछ भी नहीं बदला है. केवल लड़कियों पर निगरानी बढ़ी है.”
देवी ने उसकी बात पर पलटकर जवाब देते हुए कहा, “देखो, कैसे बहस कर रही है? इसलिए हमें कैमरे चाहिए. कैमरे लगने से ये लोग कंट्रोल में रहेंगे.”
(संपादन: ऋषभ राज)
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