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रविवार, 6 जुलाई, 2025
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गुरु दत्त की फिल्मों की महिलाएं थीं बदलते भारत की तस्वीर

प्यासा और कागज़ के फूल जैसी फिल्मों में महिलाएं सिर्फ सहायक किरदार नहीं थीं, बल्कि वही थीं जो कहानी का नैतिक केंद्र बनकर पुरुष किरदारों की राह तय करती थीं.

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नई दिल्ली: गुरु दत्त की फिल्मों की महिला किरदार उस दौर के बदलते समाज की तस्वीर दिखाती थीं. उनकी कहानियों में ये महिलाएं सिर्फ फिल्म का हिस्सा नहीं थीं, बल्कि पूरी कहानी को दिशा देने वाली थीं. इनके ज़रिए गुरु दत्त ने प्रेम, बिछड़ने का दुख और समाज के बनाए नियमों के बीच जीने की मुश्किलों को दिखाया.

गुरु दत्त का हिंदी सिनेमा पर असर ऐसा है कि उनकी मौत के करीब 60 साल बाद भी उनकी फिल्मों की महिला किरदारों पर रिसर्च हो रही है और उन पर लेख लिखे जा रहे हैं.

आज भी विद्वान और प्रोफेसर उनकी फिल्मों में महिलाओं को लेकर पढ़ाई कर रहे हैं. रत्ना पाठक शाह जैसी बड़ी अभिनेत्री ने भी दत्त की फिल्मों में महिलाओं के किरदारों पर बात की है. हालांकि, उन्होंने कहा था कि कई बार इन फिल्मों में महिलाओं को लेकर कुछ बातें “आपत्तिजनक” भी लगती हैं.

फिर भी यह साफ है कि गुरु दत्त की फिल्मों में महिलाएं बस मां या कमज़ोर किरदार नहीं थीं. वे सिर्फ सहायक भूमिकाओं तक सीमित नहीं थीं, जैसी बाद की बॉलीवुड फिल्मों में देखने को मिला. दत्त की फिल्मों में महिलाएं कहानी का दिल थीं — भावनाओं और नैतिकता का केंद्र.

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के पत्रकारिता और जनसंचार विभाग के सहायक प्रोफेसर पंकज कुमार और शोधार्थी चिन्मयी दास ने अपने 2025 के रिसर्च पेपर में लिखा है, “गुरु दत्त की फिल्मों में ये महिला किरदार पुरुष नायकों की कहानी को आगे बढ़ाते हैं, ये महिलाएं उस समाज के अंधेरे पहलुओं को सामने लाती हैं — जैसे भ्रष्टाचार, धोखा और नैतिक संघर्ष. अक्सर इनके फैसले कहानी को दुखद मोड़ तक ले जाते हैं.”

गुरु दत्त अपने समय से बहुत आगे सोचते थे. प्यासा और कागज़ के फूल जैसी फिल्मों में उन्होंने महिला किरदारों के ज़रिए गहरी भावनाओं और मुश्किल सवालों को दर्शकों के सामने रखा. इनकी छाप ऐसी है कि ये किरदार जैसे किसी तस्वीर में ब्रश से खींची गईं हों — बेहद सजीव, दिल छू लेने वाली और खूबसूरत. इनकी नज़ाकत भरी अदाकारी के ज़रिए उस वक्त के समाज के दर्द, ख्वाहिशों और उलझनों को बेहद असरदार ढंग से दिखाया गया.

रिसर्च पेपर में लिखा है, “गुरु दत्त की फिल्मों में ये महिला किरदार उस दौर के समाज के अंदर मौजूद विरोधाभासों की तस्वीर हैं.”

गुरु दत्त के 100वें जन्म साल पर दिप्रिंट ने उनकी फिल्मों के इन यादगार महिला किरदारों को फिर से सामने लाया है.

जटिल महिला किरदार

प्यासा में एक सीन है, जहां मीना (माला सिन्हा) गुलाब (वहीदा रहमान) से पूछती हैं — “विजय (गुरु दत्त) जैसा अच्छा इंसान तुम्हारे जैसी वेश्या को कैसे जानता है?” गुलाब मुस्कुराते हुए बस इतना कहती हैं — “किस्मत से.”

गुरु दत्त ने इस फिल्म में आज़ाद भारत की असली हकीकत को दिखाया है. फिल्म में विजय की कॉलेज की प्रेमिका मीना प्यार के बजाय पैसा चुनती है. एक बहस के दौरान मीना साफ कहती है — “सिर्फ प्यार से काम नहीं चलता.”

प्यासा में महिला किरदारों को बहुत गहराई से कहानी से जोड़ा गया है. गुलाब और मीना, नारीत्व के दो अलग-अलग चेहरे दिखाते हैं.

गुलाब को समाज में तिरस्कृत और वस्तु की तरह देखा जाता है, लेकिन वे फिर भी हिम्मत दिखाती है और विजय का सहारा बनती है. दूसरी ओर, मीना एक ऐसी महिला की तस्वीर है, जो समाज की उम्मीदों में फंसी हुई है. वे उस दौर की महिलाओं पर लगी बंदिशों को साफ तौर पर दिखाती है.

गुरु दत्त उन सामाजिक नियमों की आलोचना करते हैं जो महिलाओं की आज़ादी और उनके फैसले लेने के अधिकार को सीमित करते हैं.

तमन्ना नाम की एक अंग्रेज़ी शिक्षिका ने अपने 2024 के लेख में लिखा है, “प्यासा एक ऐसी नकली आधुनिक दुनिया की खूबसूरत सिनेमाई तस्वीर है.”

दास ने अपने शोध में लिखा है कि दत्त की महिला किरदार उस दौर के भारत में महिलाओं की बदलती स्थिति को कैसे दिखाते हैं. उनका कहना है, “यह फिल्म आज़ादी, पुराने और नए मूल्यों के बीच टकराव और भौतिकवाद यानी पैसे की चाहत की आलोचना भी करती है. गुरु दत्त अपने किरदारों में ताकत, नर्मी और महत्वाकांक्षा — तीनों का मेल दिखाते हैं.”

गुरु दत्त के लिखे किरदार बहुत सहज होते थे. इतने आसान कि नए कलाकार भी सेट पर उन्हें निभा लेते थे. वहीदा रहमान ने भी एक बार टीवी निर्माता-निर्देशक नसरीन मुन्नी कबीर से बातचीत में माना था कि प्यासा से पहले उन्हें अभिनय का ज्यादा अनुभव नहीं था.

उन्होंने किताब गुरु दत्त: ए लाइफ इन सिनेमा के लिए कबीर से कहा था, “गुलाब के किरदार को जिस तरह गुरु दत्त ने गढ़ा, उसका पूरा श्रेय उन्हीं को जाता है.”


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पितृसत्ता, शादी और ज़मींदारी प्रथा को सवालों के घेरे में लाना

गुरु दत्त के करियर का एक बड़ा मोड़ उनकी चर्चित फिल्म कागज़ के फूल (1959) से आया, जिसे अक्सर उनके निजी जीवन से जुड़ा माना जाता है.

उस दौर में वहीदा रहमान और गुरु दत्त के रिश्तों को लेकर कई बातें उड़ने लगी थीं, जिससे उनकी शादीशुदा जिंदगी पर असर पड़ा. कागज़ के फूल में गुरु दत्त ने एक फिल्म निर्देशक सुरेश का किरदार निभाया है, जिसकी शादी मुश्किल दौर से गुज़रती है. कहानी में वह एक अनाथ लड़की (वहीदा रहमान) को खोजता है, उससे प्यार करने लगता है और उसे एक मशहूर अदाकारा बना देता है.

हालांकि, यह फिल्म रिलीज़ के वक्त फ्लॉप रही, लेकिन 1980 के दशक में इसे फिर से सराहा जाने लगा. अब इसे क्लासिक माना जाता है और यह आज भी कई फिल्मकारों और कलाकारों के लिए प्रेरणा है.

इसके बाद गुरु दत्त ने साहिब बीबी और गुलाम (1962) बनाई, जिसे अबरार अल्वी ने निर्देशित किया और दत्त ने प्रोड्यूस किया था. यह फिल्म पितृसत्ता, शादी और ज़मींदारी जैसी व्यवस्थाओं पर सवाल उठाती है.

फिल्म में मीना कुमारी ने ‘छोटी बहू’ का किरदार निभाया, जो अकेलेपन और चाहत से जूझती है.

हालांकि, छोटी बहू एक अमीर खानदान से है, लेकिन उसकी ज़िंदगी अंदर से पूरी तरह खाली है. किरदार ने उस सोच को तोड़ा, जिसमें कहा जाता था कि एक आदर्श हिंदू पत्नी शराब नहीं पी सकती या अपने पति के अलावा किसी और पुरुष के करीब नहीं जा सकती. फिल्म में छोटी बहू भूतनाथ (गुरु दत्त) के करीब आती है और पति का प्यार पाने के लिए शराब पीने लगती है.

दिल्ली विश्वविद्यालय की असिस्टेंट प्रोफेसर प्रेरणा सिन्हा ने 2021 के अपने रिसर्च पेपर गुरु दत्त: एक लेखक या अस्तित्ववादी — उनकी कला का आलोचनात्मक विश्लेषण में लिखा है, “यह फिल्म दरअसल ब्रिटिश राज के दौरान सामंतवाद के पतन की कहानी है, जब पितृसत्ता ने महिलाओं के लिए मुश्किलें खड़ी कर दी थीं, लेकिन गुरु दत्त ने एक अकेली, अमीर पत्नी के दर्द और दुख को बेहद संवेदनशीलता से दिखाया है, जो पति का ध्यान पाने के लिए खुद को शराबी बना लेती है.”

सिन्हा ने यह भी कहा कि गुरु दत्त ने सिर्फ अमीरी-गरीबी या सामाजिक दर्जे से परे जाकर महिलाओं के दर्द पर ध्यान दिया, जो इस फिल्म को खास बनाता है.

जब मीना कुमारी ने यह फिल्म की, तब वो अपने करियर के सबसे ऊंचे मुकाम पर थीं.

सिन्हा के मुताबिक, फिल्म का वो सीन जिसमें मीना कुमारी शराब पीती हैं, “वाकई उस दौर के लिए बहुत ही क्रांतिकारी” था.

(इस फीचर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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