नई दिल्ली: एक वक्त था जब भारतीय घरों की छतों और बालकनियों में सिर्फ तुलसी का पौधा नज़र आता था, लेकिन अब यह तस्वीर बदल रही है. अब भारत में छतों और बालकनियों पर हरियाली की एक नई लहर दिखाई दे रही है.
दिल्ली के लाजपत नगर की 66 साल की पूनम आहूजा ने अपने तीन मंज़िला घर की 150 वर्ग फुट की छत और बालकनी को एक छोटे बाग में बदल दिया है. शुरुआत में उन्होंने सिर्फ पूजा के लिए तुलसी का पौधा लगाया था, लेकिन अब उनके बाग में पालक, बैंगन, कद्दू, नींबू और तरह-तरह के फूलों के पौधे भी लहलहा रहे हैं.
पूनम बताती हैं, “शुरुआत कुछ फूलों के पौधों से की थी. फिर रसोई में इस्तेमाल होने वाले बीजों से टमाटर, संतरा और बैंगन उगाने का प्रयोग किया. कुछ पौधे तो बिना ज्यादा देखभाल के ही बढ़ते चले गए.” उन्होंने 2020 में कोविड महामारी के दौरान बागवानी की शुरुआत की थी.
दिल्ली-एनसीआर में अब छात्र, नौकरीपेशा लोग और रिटायर हो चुके बुज़ुर्ग भी बड़ी संख्या में अपनी छतों, बालकनियों और खिड़कियों पर बागवानी कर रहे हैं. जगह, पानी, साफ हवा और मिट्टी की कमी के बावजूद, यह शहर अब हज़ारों छोटे बागानों वाला शहर बनने की ओर बढ़ रहा है और अब यह बागवानी सिर्फ फूल उगाने तक सीमित नहीं रह गई — लोग सब्जियां, फल और खाने-पीने की कई चीज़ें भी उगा रहे हैं. कुछ लोग अपने इन अनुभवों को सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, तो कुछ इसे वर्कशॉप और जागरूकता अभियानों के ज़रिए दूसरों तक पहुंचा रहे हैं. ये लोग अब ‘मिशन ग्रीन दिल्ली’ और ‘दिल्ली ग्रीन्स’ जैसे प्लेटफॉर्म से जुड़कर शहर के नए ‘ग्रीन ब्रांड एम्बेसडर’ बन चुके हैं. एक ऐसा शहर जो दुनिया में जहरीली हवा के लिए जाना जाता है, उसी के कोनों में अब हरियाली की छोटी-छोटी दुनिया बस रही है.
48-साल के प्रवीण मिश्रा, जो शहरी खेती पर वर्कशॉप्स और क्लासेज़ चलाते हैं, उन्होंने कहा, “शहरी खेती सिर्फ पौधे उगाने का तरीका नहीं है, ये सेहत को वापस पाने और मिट्टी से दोबारा जुड़ने की एक कोशिश है.”
कई मामलों में, पूनम आहूजा और प्रवीण मिश्रा जैसे लोग अब वहां से पहल कर रहे हैं जहां सरकार ने हाथ खींच लिए. 2022 में दिल्ली सरकार ने ‘मुख्यमंत्री शहरी बागवानी योजना’ शुरू की थी, ताकि शहरों में खेती को बढ़ावा मिले, लेकिन ये योजना ज़मीन पर कभी पूरी तरह लागू नहीं हो पाई. अब लोग सरकार का इंतज़ार नहीं कर रहे — वो खुद अपने खाने और जीने का तरीका बदल रहे हैं.
द्वारका की 60 साल की अर्बन फार्मर नरकेश यादव ने कहा, “जो कुछ साल पहले सिर्फ सजावट के लिए लाया गया मनी प्लांट था, उसने अब हमें अपनी हरियाली खुद बनाने की प्रेरणा दी है. दिल्ली जैसे प्रदूषित और तनाव भरे शहर में ये हमारी राहत की छोटी-छोटी जगहें बन गई हैं.”
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दिल्ली की हरित क्रांति
दिल्ली की हरियाली को लेकर जागरूकता अब केवल सरकारी अभियानों तक सीमित नहीं रही. पूनम आहूजा और प्रवीण मिश्रा जैसे लोग ‘मिशन ग्रीन दिल्ली’ जैसे सामुदायिक ब्लॉग और प्लेटफॉर्म के ज़रिए एक हरित क्रांति की नींव रख रहे हैं.

एक दिन यूट्यूब पर मिश्रा का वीडियो देखने के बाद आहूजा ने उनकी ऑनलाइन क्लास जॉइन कर ली. वहीं से उन्होंने जैविक कंपोस्ट बनाना, मिट्टी की समझ और पौधों की रोपाई जैसे स्किल सीखे. आज, पूनम आहूजा अपने घर की छत और बालकनी में 150 से ज़्यादा किस्मों के पौधे लगाकर न सिर्फ अपना समय बिताती हैं, बल्कि दूसरों को भी प्रेरित करती हैं.
वे मुस्कुराते हुए कहती हैं, “पौधों के ज़रिए जीवन को संवारने से ज़्यादा सकारात्मक और क्या हो सकता है?”
वहीं प्रवीण मिश्रा — जो पेशे से पत्रकारिता में पोस्ट ग्रेजुएट हैं, अब दिल्ली-एनसीआर में हरित जीवनशैली के एक सक्रिय प्रचारक बन चुके हैं. वे स्कूलों, कॉलेजों और आरडब्ल्यूए में जाकर लोगों को शहरी खेती का महत्व समझाते हैं.
साल 2016 में कृषि विज्ञान केंद्र से जैविक खेती की औपचारिक ट्रेनिंग लेने के बाद, उन्होंने बुराड़ी में अपनी 2.5 एकड़ ज़मीन पर खेती शुरू की. आज वे वहां अमरूद, संतरा, अनार, सेब जैसे फल उगाने के साथ-साथ पत्तेदार सब्ज़ियां और मौसमी फसलें भी उगाते हैं वो भी पूरी तरह से जैविक तरीकों से.
मिश्रा अब तक सैकड़ों परिवारों को यह सिखा चुके हैं कि कैसे बिना किसी रसायन या कीटनाशक के, वे अपनी बालकनी या छत पर अपना भोजन खुद उगा सकते हैं. उनका छह महीने का शहरी खेती का कोर्स जिसकी फीस सिर्फ 1,000 रुपये महीना है, मिट्टी तैयार करने से लेकर कंपोस्टिंग और किचन वेस्ट से बायो-एंज़ाइम बनाने तक हर पहलू को कवर करता है.
उन्होंने कहा, “खेती के लिए ज़मीन नहीं, समझ चाहिए. एक गमला, एक खिड़की या एक कोना भी, हरियाली की शुरुआत कहीं से भी हो सकती है.”

शौक से बिजनेस तक
प्रीत विहार की रहने वाली किषी अरोड़ा की छत उनके लिए एक सुकून भरी जगह है, जहां वे दिल्ली की भीड़-भाड़ और शोर-शराबे से दूर शांति पाती हैं.
उनकी छत पर बहुत सारे पौधे हैं — एलोवेरा, मनी प्लांट, फिकस और स्पाइडर प्लांट जैसे सजावटी पौधे और तुलसी, पुदीना, धनिया, लेमनग्रास, रोज़मेरी, करी पत्ता जैसी जड़ी-बूटियां भी. फूलों में सूरजमुखी, गुड़हल, चमेली और रजनीगंधा से छत रंग-बिरंगी लगती है. साथ ही, बैंगन, लौकी, गाजर, आलू, करेला जैसी सब्ज़ियां और स्ट्रॉबेरी, अंगूर, अमरूद जैसे फल भी गमलों में उगाए जा रहे हैं.
छत पर पक्षियों के लिए घोंसले लगे हैं, तितलियां उड़ती रहती हैं और मधुमक्खियां गुनगुनाती रहती हैं. हवा में विंड चाइम की मधुर ध्वनि माहौल को और भी सुकून भरा बना देती है.
किषी ने कहा, ‘‘पौधे लगाना सिर्फ बीज बोना नहीं है, ये एक पूरा छोटा-सा प्राकृतिक संसार होता है जहां पक्षी, कीड़े, तितलियां और पौधे सब मिलकर साथ रहते हैं.’’
किषी एक शेफ, बेकरी चलाने वाली, फूड कंसल्टेंट और सोशल मीडिया इन्फ्लुएंसर हैं. इंस्टाग्राम पर उनके 56,000 से ज़्यादा फॉलोअर्स हैं, लेकिन उन्हें सबसे ज़्यादा पसंद है खुद को ‘प्लांट पेरेंट’ कहना.
उन्होंने कहा, ‘‘पौधों को उतना ही प्यार और ध्यान चाहिए, जितना एक बच्चे को. अगर आप सच में ध्यान देंगे, तो पौधे भी आपको बहुत कुछ लौटाते हैं.’’

किषी घर के कचरे से जैविक खाद और नेचुरल कीटनाशक बनाती हैं. जैसे नींबू और संतरे के छिलके पीसकर पौधों पर छिड़कती हैं ताकि कीड़े दूर रहें. एलोवेरा से घर पर जैविक खाद बनाना भी उनका पसंदीदा तरीका है.

उनकी छत पर लटकी बेलों से पके हुए अंगूर और जामुन वो खुद तोड़ती हैं — ब्लूबेरी, शहतूत, स्ट्रॉबेरी, जावा प्लम जैसे फल अब उनके लिए शौक से ज़्यादा हैं.
अब यही शौक उनका एक छोटा सा बिज़नेस भी बन गया है. वो घर पर बने जैम की बिक्री करती हैं, 1,500 में दो 250 ग्राम की जार वाले पैक — जो उनकी वेबसाइट पर ‘फूडाहोलिक्स’ नाम से मिलते हैं.
कविंदर यादव और उनकी मां नरकेश ने भी अपने गार्डनिंग के शौक को बिज़नेस में बदला है. उन्होंने ‘एनके ग्रीन्स’ नाम से छत और बालकनी बागवानी की सेवा शुरू की है और ‘शक्तिग्रो प्लांट इलिक्सिर’ नाम की खाद भी लॉन्च की है.
दिल्ली में ‘मिशन ग्रीन दिल्ली’ और ‘दिल्ली ग्रीन्स’ जैसे संगठन लोगों को गार्डनिंग के लिए प्रेरित कर रहे हैं. ये लोग आरडब्ल्यूए और स्कूल-कॉलेज के साथ मिलकर पौधारोपण और छत की बागवानी पर कार्यशालाएं करते हैं.

द्वारका के एक निवासी बोले, ‘‘जब एक सोसाइटी कुछ अच्छा करती है, तो बाकी भी प्रेरित होती हैं. इसी तरह जब कोई अपने पौधों से जुड़ी कहानी सुनाता है, तो बाकी लोग भी गार्डनिंग शुरू करना चाहते हैं.’’
काफी समय से रुकी एक अच्छी कोशिश
दिल्ली में बढ़ती इन शहरी बागवानों की संख्या के बावजूद, सरकार से उन्हें कोई खास मदद नहीं मिल रही है. आरडब्ल्यूए (रिहायशी कल्याण समिति) के कई सदस्य कहते हैं कि ज़्यादातर सरकारी योजनाएं या तो शुरू ही नहीं हो पातीं या अधूरी रह जाती हैं. ऐसी ही एक योजना थी — ‘स्मार्ट अर्बन फार्मिंग’.
इस योजना का मकसद दिल्ली में हरियाली बढ़ाना और इसे शहरी खेती का एक आदर्श मॉडल बनाना था. उस समय के पर्यावरण मंत्री गोपाल राय ने बताया कि उन्होंने यह योजना तत्कालीन मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के साथ मिलकर शुरू की थी.
गोपाल राय ने कहा, “योजना का ऐलान तो हो गया था, लेकिन राज्य सरकार की मंज़ूरी का इंतज़ार करते-करते मामला अटक गया. चुनाव आ गए और सब ठंडा पड़ गया. आजकल लोग ऑर्गेनिक खाना, घर में उगाए फल-सब्ज़ियां और पर्यावरण के अनुकूल जीवनशैली अपनाना चाहते हैं. यह योजना लोगों को खासकर महिलाओं और युवाओं को घर पर खेती करने की ट्रेनिंग देने के लिए थी.”
दिल्ली का वन विभाग भी इस योजना की तैयारी में शामिल था. विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया, “हमने आरडब्ल्यूए, स्थानीय लोगों और अधिकारियों से कई बार बातचीत की. योजना तो हमेशा तैयार थी, लेकिन कभी अमल का मौका ही नहीं मिला.”
अब यह योजना कहीं खो सी गई है. शहर को आत्मनिर्भर बनाने का सपना अधूरा रह गया, लेकिन कुछ लोग जैसे मिश्रा और उनके जैसे कई शौकीन बागवान इस कमी को खुद पूरी करने में लगे हैं.
भारत के बाकी कुछ राज्यों में इस दिशा में बेहतर काम हुआ है. केरल में सरकार ने वर्टिकल गार्डन (दीवारों पर बागवानी) को बढ़ावा देने के लिए सब्सिडी दी. तमिलनाडु ने 2014 में एक योजना शुरू की, जिसमें शहर के लोगों को खुद बागवानी करने की किट दी जाती है. बिहार भी 2021 से शहरी इलाकों में छत बागवानी को बढ़ावा दे रहा है.
शहरी खेती, पारंपरिक खेती का एक अच्छा और टिकाऊ विकल्प बन सकती है, लेकिन इसके अपने कुछ झंझट हैं.
जैसे, द्वारका की 26 साल की दिव्या शर्मा बताती हैं कि उन्होंने अपनी छोटी सी बालकनी को किचन गार्डन बना रखा है, लेकिन जगह सबसे बड़ी समस्या है. उन्होंने कहा, “अगर पूरा परिवार फ्लैट में साथ रहता है, तो और भी मुश्किल हो जाती है. हमारी बिल्डिंग की छत सबके लिए साझा है, इसलिए मैं वहां कुछ नहीं लगा सकती.”
दूसरी चुनौती है पानी की कमी, खासकर दिल्ली की गर्मियों में. शहरी बागवानी और सामूहिक खेती का जो ट्रेंड यूरोप, अमेरिका और कुछ एशियाई देशों में है, वो दिल्ली में अभी तक ठीक से शुरू भी नहीं हुआ है.
लेकिन प्रीत विहार की किषी अरोड़ा इन मुश्किलों को रुकावट नहीं मानतीं.
उन्होंने मुस्कराकर कहा, “जगह या पानी नहीं, असली ज़रूरत होती है धैर्य और प्यार की. पौधे परेशानी नहीं लाते, समाधान लेकर आते हैं.”
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