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Thursday, 21 August, 2025
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पटना से लंदन तक — कैसे बिहार के पूर्व IAS ने क्रॉसवर्ड को दी नई पहचान

वेबसाइट crypticsingh.com दुनिया भर के क्रॉसवर्ड प्रेमियों का एक पसंदीदा जगह बन गई है.

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पटना: बिहार में एक शांत क्रांति चल रही है. यह जाति की नहीं बल्कि क्रॉसवर्ड की है.

और जून में, यह लंदन पहुंच गई. पूर्व IAS अधिकारी विवेक सिंह द्वारा स्थापित वर्ल्ड क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड चैम्पियनशिप का पहला वैश्विक आयोजन लंदन के नेहरू सेंटर में हुआ.

सिंह की काले-सफेद ग्रिड के प्रति दीवानगी 1980 के दशक में एक विश्वविद्यालय हड़ताल के दौरान शुरू हुई थी. 40 साल से अधिक बाद, राज्य के डेवलपमेंट कमिश्नर के रूप में सेवा देने के बाद रिटायर हुए IAS ने बिहार को गर्व करने की एक और वजह दी है—वह इतिहास का कोई टुकड़ा नहीं बता रहे, बल्कि एक नया बना रहे हैं.

“दो लंबे साल तक, 1982-83 में दिल्ली विश्वविद्यालय शिक्षक संघ (DUTA) और दिल्ली विश्वविद्यालय कर्मचारी संघ (DUKU) की हड़तालों के कारण हमारी कक्षाएं ज्यादातर समय स्थगित रहीं. तभी मैंने द टाइम्स ऑफ इंडिया का संडे क्रॉसवर्ड हल करना शुरू किया,” 1989 बैच के बिहार कैडर के IAS अधिकारी सिंह ने याद करते हुए कहा.

आज, 60 साल की उम्र में, सिंह एक अनुभवी क्रूसिवर्बलिस्ट के रूप में खड़े हैं, जो यह परिभाषित कर रहे हैं कि बिहार और पूरे भारत में क्रॉसवर्ड का क्या अर्थ हो सकता है.

अगर आपने 90 के दशक में कोई घरेलू उड़ान भरी थी और स्वागत, इंडियन एयरलाइंस की पत्रिका, में क्रॉसवर्ड देखा और हल किया, तो संभव है कि वह सिंह द्वारा बनाया गया हो. बाद में, 2000 के दशक में, अगर आपने हिंदुस्तान टाइम्स में “5151” उपनाम से प्रकाशित कोई पज़ल हल किया हो, तो वह भी सिंह ही थे. यह संख्या जब रोमन और हिंग्लिश में लिखी जाए तो “VIVEK” बनती है.

आज, रामजस के इस स्नातक को भारत के क्रॉसवर्ड आंदोलन का ‘आर्किटेक्ट’ कहा जाता है. करीब एक दशक पहले तक, यह ज्यादातर निजी शौक था. लेकिन जब 2013 में दुनिया ने क्रॉसवर्ड की शताब्दी मनाई, तो सिंह इसे बहुत बड़े पैमाने पर जनता तक ले जाने से खुद को रोक नहीं पाए.

बिहार के पर्यावरण और वन विभाग में प्रधान सचिव के रूप में सेवा करते हुए, उन्होंने इंडियन क्रॉसवर्ड लीग (IXL), अनुभवी क्रॉसवर्ड प्रेमियों के लिए पहली ऑनलाइन प्रतियोगिता, और CCCC (CBSE क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड कॉन्टेस्ट, एक राष्ट्रीय स्तर की इंटर-स्कूल चैम्पियनशिप) की शुरुआत की.

लंदन के नेहरू केंद्र में प्रतिभागी | विशेष व्यवस्था

“प्रतिक्रिया जबरदस्त थी,” सिंह ने द प्रिंट से कहा.

अन्य बोर्डों के स्कूलों के प्रतियोगिता में शामिल होने के बाद, इसका नाम बदलकर नेशनल इंटर-स्कूल क्रॉसवर्ड चैम्पियनशिप रखा गया. हालांकि, ब्रांड पहचान और विरासत के लिए उन्होंने मूल संक्षिप्त नाम CCCC ही रखा.

2022 में, सिंह ने भारत में बढ़ती क्रॉसवर्ड प्रतियोगिताओं की सूची में NICE (नेशनल इंटर-कॉलेज क्रॉसवर्ड एक्सपीडिशन) भी जोड़ा.

ग्रामीण बिहार में यह कैसे फैला

हर दोपहर ठीक 3:35 बजे, crypticsingh.com वेबसाइट पर ACAD (A Clue A Day) नाम से एक क्लू आता है. यह स्कूल के छात्रों के लिए क्रॉसवर्ड हल करने के लिए होता है. यह वेबसाइट सिंह ने 2013 में रोज़ाना पज़ल देने के लिए शुरू की थी.

सिर्फ पांच मिनट बाद, 3:40 बजे, एक और क्लू आता है. यह थोड़ा कठिन पज़ल होता है, जो कॉलेज स्तर के छात्रों के लिए बनाया गया है.

शहरों और गांवों, कॉन्वेंट स्कूलों और सरकारी छात्रावासों, लंदन से लेकर ऑस्ट्रेलिया तक, लोग एक साथ लॉग इन करते हैं. इनमें से एक हैं तान्या कुमारी, 17, जो पटना के गै घाट स्थित आंबेडकर गर्ल्स रेजिडेंशियल स्कूल की कक्षा 11 की विज्ञान की छात्रा हैं. यह स्कूल अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजातियों की कक्षा 1 से 12 तक की 700 लड़कियों का घर है.

डॉ. भीमराव अंबेडकर आवासीय विद्यालय के विद्यार्थियों ने राष्ट्रीय स्तर की क्रॉसवर्ड प्रतियोगिता CCCC12.0 में भाग लिया | विशेष व्यवस्था

“मैंने शायद पहली बार कक्षा 9 में क्रॉसवर्ड ग्रिड देखा था, लेकिन मेरे आसपास कोई नहीं था जो समझा सके कि यह कैसे काम करता है,” तान्या ने कहा. उनके पिता वीर चंद्र राम एक दिहाड़ी मज़दूर हैं जो निर्माण स्थल पर रोज़ 500 रुपये कमाते हैं. यह दो साल पहले की बात है. लेकिन 2023 में एससी-एसटी कल्याण विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यशाला ने सब कुछ बदल दिया.

आज, तान्या लगभग रोज़ क्रॉसवर्ड हल करने की कोशिश करती हैं. और अब वह प्रतियोगिताओं में भाग ले रही हैं—माइंड फेस्ट, CCCC और अब BSEB क्रॉसवर्ड प्रतियोगिता 2025. तान्या की तरह, उनके स्कूल की 29 अन्य छात्राएँ भी यह खेल नियमित रूप से खेल रही हैं.

तान्या की अंग्रेज़ी बेहतर हुई है और उनमें नया आत्मविश्वास आया है.

“हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि आप अंग्रेज़ी बोल सकते हैं,” तान्या ने इस रिपोर्टर से अंग्रेज़ी में बात करते हुए अपनी माँ की भावना व्यक्त की. कक्षा 11 की यह छात्रा वैशाली ज़िले के बिलंदपुर गाँव की रहने वाली हैं, जो बिहार की राजधानी पटना से 30 किलोमीटर दूर है.

अंग्रेज़ी लंबे समय से हिंदी भाषी छात्रों के लिए एक बाधा की तरह रही है. कई छात्र इस भाषा से ही डरते रहे हैं. क्रॉसवर्ड धीरे-धीरे उन्हें इस खाई को पाटने में मदद कर रहा है.

दिल्ली क्रॉसवर्ड एसोसिएशन के उपाध्यक्ष और अनुभवी मेंटर, 58 वर्षीय विनायक एकबोटे ने देखा है कि भाषा के मामले में तान्या ने किस तरह प्रगति की है. वह उन विशेषज्ञों में से थे जिन्होंने सबसे पहले तान्या के स्कूल में कार्यशालाएँ आयोजित की थीं.

“तान्या जैसी छात्राएं भाषा से ही डरती थीं. इससे पहले कि मैं क्लूज़ या एनाग्राम्स के बारे में बात कर पाता, जैसे कि नेपाल से ‘Plane’ या ‘Panel’ या ‘Penal’ या ‘Plena’ बन सकता है, मुझे पहले उनका अंग्रेज़ी का डर दूर करना पड़ता था,” उन्होंने कहा.

स्कूलों में, मानसिक खेलों के लिए एक विशाल, कम-अन्वेषित क्षेत्र था, और सोशल मीडिया और डिजिटल विकर्षणों के बढ़ते प्रभुत्व वाले युग में, क्रॉसवर्ड एक बौद्धिक विकल्प प्रस्तुत करते थे | विशेष व्यवस्था

तान्या की अंग्रेज़ी बोलने की क्षमता अब स्कूल के प्रिंसिपल डॉ. बिरेंद्र कुमार बिनय के लिए भी गर्व की बात है, जो 2023 में जुड़े थे.

“हमने क्रॉसवर्ड खेलने वाली लड़कियों को अंग्रेज़ी शिक्षकों से जोड़ा है. इसने पूरे स्कूल की संस्कृति बदल दी है,” उन्होंने कहा.

स्कूलों में माइंडस्पोर्ट्स के लिए एक बड़ा, अनछुआ क्षेत्र था. और एक ऐसे दौर में जब सोशल मीडिया और डिजिटल आकर्षण बढ़ रहे हैं, क्रॉसवर्ड ने एक बौद्धिक विकल्प दिया. बिहार के एससी-एसटी रेजिडेंशियल स्कूलों को सही समय पर जोड़ा गया, क्योंकि उनमें से कई इंटरनेट, वाई-फाई और हज़ारों किताबों से भरी लाइब्रेरियों से लैस हैं. उदाहरण के लिए, तान्या कुमारी के स्कूल में 13,000 से अधिक किताबों वाली लाइब्रेरी है.

पायलट प्रोजेक्ट से लेकर महोत्सव तक

बिहार में आयोजित क्रॉसवर्ड प्रतियोगिताएं अब सालभर चलने वाले उत्सव में बदल गई हैं. कुछ महीने रजिस्ट्रेशन के लिए रखे जाते हैं, फिर प्रारंभिक राउंड होते हैं, उसके बाद शहर स्तर की प्रतियोगिताएं और अंत में बेंगलुरु और दिल्ली जैसे शहरों में ग्रैंड फिनाले होता है. इसका केंद्र पटना ही रहता है.

सिंह ने क्रॉसवर्ड संस्कृति को बिहार के गांवों तक पहुंचाया है. उन्होंने एससी-एसटी कल्याण विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग को जोड़ा, साथ ही आईआईएम और आईआईटी जैसी प्रमुख संस्थाओं का सहयोग भी हासिल किया.

बिहार में 38 इंजीनियरिंग कॉलेज और 46 सरकारी पॉलिटेक्निक हैं. विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग के आँकड़ों के अनुसार, क्रॉसवर्ड में रजिस्ट्रेशन करने वाले छात्रों की संख्या 10,000 से अधिक हो गई है.

2023 में बिहार के एससी और एसटी कल्याण विभाग ने आवासीय स्कूलों में एक पायलट प्रोजेक्ट शुरू किया.

91 स्कूलों में पढ़ने वाले 28,000 से अधिक एससी-एसटी बच्चों में से, इस पायलट में आठ स्कूलों में क्रॉसवर्ड की शुरुआत की गई.

माइंड फेस्ट के पटना, गया, मुज़फ़्फ़रपुर, पूर्णिया, भागलपुर और दरभंगा जैसे ज़िलों में सात संस्करण पूरे हो चुके हैं. इसका नवीनतम संस्करण 19-20 जुलाई को पटना स्थित बिहार संग्रहालय में आयोजित किया गया था. | ज्योति यादव | दिप्रिंट

अधिकांश स्कूल और कॉलेज नहीं समझ पा रहे थे कि यह क्या है. शिक्षक और प्रिंसिपल ब्लैक-एंड-व्हाइट ग्रिड को देखते रह गए, यह जाने बिना कि यह क्या है और कैसे काम करता है. “ना देखा, ना सुना, ना बताने वाला”—यह प्रिंसिपलों और शिक्षकों का आम जवाब था.

विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी और एससी-एसटी कल्याण विभाग की टीमों के सामने चुनौती संसाधनों या ढाँचे की नहीं थी, बल्कि ग्रामीण छात्रों में रोल मॉडल की अनुपस्थिति की थी.

“इसे आसान बनाने के लिए, 2023 की दूसरी छमाही में, आठ स्कूलों से कक्षा 7, 8 और 9 के दो-दो छात्रों को चुना गया,” 36 वर्षीय सुमित सिंधी, एससी-एसटी कल्याण विभाग के अधिकारी ने कहा.

“उन्हें और प्रशिक्षण देकर विभिन्न प्रतियोगिताओं में भेजा गया. हमने इंतज़ार किया कि वे किसी प्रतियोगिता को जीतें, तभी इसे बड़े स्तर पर ले जाया जा सके. बिना किसी पुरस्कार के यह मुश्किल होता. क्रॉसवर्ड क्या होता है?” सिंधी ने याद किया.

प्रगति की निगरानी और उत्साह बनाए रखने के लिए विभाग ने ज़िला स्तर पर नोडल अधिकारियों की नियुक्ति भी की.

2024 में, विभाग की भागीदारी के सिर्फ एक साल के भीतर, विभिन्न जिलों के स्कूलों की टीमें, यहाँ तक कि कैमूर, मोतिहारी, अररिया जैसे दूरस्थ इलाकों से भी, CCCC 12.0 क्रॉसवर्ड प्रतियोगिता में शामिल हुईं. यह राष्ट्रीय स्तर की इंटर-स्कूल क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड प्रतियोगिता का 12वां संस्करण था.

इस भागीदारी ने राज्य को प्रतियोगिता को और व्यवस्थित रूप से बढ़ाने के लिए प्रेरित किया. अब 73 आवासीय स्कूलों के पाठ्यक्रम में क्रॉसवर्ड शामिल हो चुका है.

“लंबे समय तक इसे केवल कॉन्वेंट या एलीट स्कूलों की चीज़ माना जाता था. हमने इसे तोड़ा है, और अब कुछ बेहतरीन सॉल्वर दूरस्थ सरकारी स्कूलों से आ रहे हैं,” सिंह ने कहा. उन्होंने जोड़ा कि अब क्रॉसवर्ड DPS और सेंट माइकल की सीमाओं से परे जा चुका है. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति (BSEB) भी इस साल अपने स्कूलों में क्रॉसवर्ड प्रतियोगिता करा रही है.

वर्तमान में, CCCC के 13वें संस्करण और NICE के चौथे संस्करण के लिए रजिस्ट्रेशन चल रहे हैं. आयोजकों ने पहले ही पूरे भारत के हज़ारों स्कूलों से पाँच लाख से अधिक प्रतिभागियों को पंजीकृत कर लिया है.

“सिर्फ एक दशक पहले, कुछ हज़ार रजिस्ट्रेशन से ही हम बेहद खुश हो जाते थे. यह ऐतिहासिक है,” सिंह ने कहा.

उन्हें केवल संख्या ही उत्साहित नहीं करती, बल्कि इसे वास्तविक समय, मंचीय आयोजन में बदलते देखना भी उत्साहित करता है—सैकड़ों प्रतिभागी पज़ल में डूबे रहते हैं, भौंहें उठी होती हैं, और शब्द पूरे हॉल में नाचते नज़र आते हैं.

“मैं क्रॉसवर्ड को सिर्फ टाइमपास नहीं मानता. यह एक दर्शक खेल है. मुझे कोई आपत्ति नहीं होगी अगर यह कभी ओलंपिक का हिस्सा बने.”

सिंह ने यह बयान हाल ही में एक बड़ी उपलब्धि के बाद दिया—लंदन से लौटने के तुरंत बाद, जहाँ उन्होंने 29 जून को नेहरू सेंटर में पहली बार वर्ल्ड क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड चैम्पियनशिप (WCCC) का आयोजन किया.

इस चैम्पियनशिप में 9 देशों के शीर्ष 12 क्रुसिवरबलिस्ट्स शामिल हुए, जिनमें भारत, इंग्लैंड, अमेरिका, ऑस्ट्रेलिया और सिंगापुर शामिल थे. यह आयोजन 50 से अधिक देशों में लाइव-स्ट्रीम किया गया और यह क्रॉसवर्ड समुदाय तथा सिंह दोनों के लिए एक मील का पत्थर साबित हुआ.

यूके की सबसे प्रतिष्ठित पज़ल प्रतियोगिता द टाइम्स क्रॉसवर्ड चैम्पियनशिप, जो 1970 से चल रही है, ने WCCC पर ध्यान दिया. उन्होंने आयोजन के पैमाने और महत्वाकांक्षा की सराहना की, खासकर इसके साहसिक प्रयास की, जिसने क्रॉसवर्ड को ओलंपिक खेल की तरह पेश करने और इसे दर्शक खेल बनाने की दिशा में कदम बढ़ाया.

“उनकी तारीफ़ें मिलना बहुत हौसला बढ़ाने वाला था.” लौटने के बाद से ही उनके इनबॉक्स में लगातार ईमेल आ रहे हैं.

पटना में माइंड फेस्ट प्रतियोगिता के प्रतिभागी। | ज्योति यादव | दिप्रिंट

उन्होंने जोड़ा, “दूसरे राज्यों में स्कूल और छात्र इसे अकेले खेल रहे हैं. लेकिन बिहार में यह सामूहिक प्रयास का नतीजा है,” विनायक एकबोटे ने सिंह को श्रेय देते हुए कहा. “क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड आंदोलन उन्हीं का है.”

अब दिल्ली में रहने वाले एकबोटे भारत में क्रॉसवर्ड बनाने वालों के छोटे से समूह से ताल्लुक रखते हैं — करीब 25 लोग — और उससे भी छोटे मेंटर्स के समुदाय से। वह पिछली पीढ़ी के क्रूसिवरबलिस्ट्स से आते हैं — आर्मी मेजर, सिविल सर्वेंट, इंजीनियर, बैंकर, जिन्होंने साप्ताहिक क्रॉसवर्ड के दौर में इसे शौक के तौर पर अपनाया.

1970 के दशक में छात्र रहते वह द हिंदू का क्रॉसवर्ड हल किया करते थे। पेशे से इंजीनियर, उन्होंने रूस में काम किया. और 90 के दशक के आखिर में दिल्ली से हैदराबाद की एक उड़ान ने उनके जुनून को फिर से जगा दिया.

मुझे स्वागत मैगज़ीन मिली. बिहार के आईएएस विवेक सिंह का नाम मेरे दिमाग में रह गया,” उन्होंने याद किया. “यह जानकर मुझे हैरानी हुई कि बिहार में कोई क्रॉसवर्ड बना रहा है.”

दशकों बाद, एकबोटे की मुलाकात सिंह से हुई। इस बार वह दिल्ली के मदर्स इंटरनेशनल स्कूल की टीम के मेंटर के तौर पर थे, जो 2013 में सीसीसीसी के पहले संस्करण के ग्रैंड फिनाले तक पहुंची थी. आज वे एक टीम हैं, जेन ज़ी सॉल्वर्स को मेंटर कर रहे हैं.

दरभंगा से दिल्ली तक

1980 के दशक में क्रॉसवर्ड पज़ल ज़्यादातर बड़े शहरों तक ही सीमित थीं. लेकिन सिंह पटना के एक स्कूल में गए जो राज्य में अतिरिक्त पाठ्यक्रम गतिविधियों में आगे था — जीके क्लब, इलेक्ट्रॉनिक्स लैब, यहां तक कि मॉडलिंग वर्कशॉप तक. गंगा किनारे स्थित सेंट माइकल्स हाई स्कूल पिछले सौ साल से नेताओं की नर्सरी रहा है. और भले ही 80 के दशक में स्कूल में क्रॉसवर्ड की खास संस्कृति न रही हो, क्विज़िंग ज़रूर थी. यही स्कूल के क्विज़ चैम्पियन आगे चलकर दिल्ली के विभिन्न शीर्ष संस्थानों में पढ़ते हुए क्रॉसवर्ड को आगे बढ़ाते.

“सबसे बड़े क्विज़ फ़ॉर्मैट भी बड़े शहरों तक सीमित थे और पटना उनमें नहीं आता था,” सिंह ने याद किया, जिनका जन्म दरभंगा ज़िले के एक समृद्ध परिवार में हुआ था. उनके पिता, रुद्र नारायण सिंह, आबकारी विभाग में डिप्टी कमिश्नर थे.

उस समय बिहार में शैक्षणिक उत्कृष्टता आम बात थी, ख़ासकर लड़कों के लिए जिन्हें दिल्ली में “IAS ड्रीम” के लिए तैयार किया जाता था.

“क्विज़ बहुत बड़ी हिट थी,” उन्होंने कहा, “मुझे आज भी साफ़ याद है कि प्रिंसिपल मुझे क्लास 12 की फेयरवेल पार्टी के बीच से निकालकर ले गए, सिर्फ इसलिए कि हमारी टीम ने क्विज़ कॉन्टेस्ट जीता था.”

1982 में, सिंह और उनका बैच ग्रेजुएट होकर उच्च शिक्षा संस्थानों में बिखर गया: दिल्ली यूनिवर्सिटी के कॉलेजों से लेकर IIT तक.

“ज़्यादातर कॉलेज क्विज़ टीमों में माइकल्स का कोई न कोई लड़का था — चाहे वह सेंट स्टीफ़न्स हो, किरोरी मल, द हिंदू क्विज़ हो या IIT दिल्ली,” उन्होंने कहा. लेकिन रामजस टीम फाइनल तक नहीं पहुंच पाई.

पूर्व आईएएस अधिकारी विवेक सिंह लंदन के नेहरू सेंटर में. सिंह द्वारा स्थापित विश्व क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड चैंपियनशिप का पहला वैश्विक आयोजन जून में इसी सेंटर में हुआ था | विशेष व्यवस्था

इसके बाद सिंह और सेंट माइकल्स के एक अन्य पूर्व छात्र ने दिल्ली यूनिवर्सिटी के वार्षिक कॉलेज फेस्ट्स में लोकप्रिय एक शब्द-आधारित खेल वॉच वर्ड में भाग लेना शुरू किया. यह दो-खिलाड़ियों का खेल था. एक खिलाड़ी दिए गए शब्द के लिए उसका पर्यायवाची, शब्द की उत्पत्ति और अन्य जुड़े हुए संकेत बताता, और दूसरा खिलाड़ी उस शब्द को पहचानने की कोशिश करता. यह शब्दावली, तेज सोच और स्मार्ट अनुमान की परीक्षा थी. इन्हीं प्रतियोगिताओं से उन्होंने क्विज़िंग से क्रॉसवर्ड की ओर रुख किया.

तीसरे वर्ष तक सिंह ने उस लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया, जिसने उन्हें दिल्ली लाया था — IAS अधिकारी बनना. आखिरकार उन्होंने 1989 में परीक्षा पास की और 26वां रैंक हासिल किया.

जब तक वह मसूरी के एलबीएसएनएए में ट्रेनिंग लेने पहुंचे, वह पज़ल सुलझाने की कला में महारत हासिल कर चुके थे. उन्हें दो ट्रेनी ग्रुप — नेचर लवर्स और हॉबीज़ क्लब — के लिए क्रॉसवर्ड बनाने का काम सौंपा गया.

“मैंने मज़ेदार बनाने के लिए प्रोफ़ेसरों और बैचमेट्स के नाम जोड़ दिए,” उन्होंने याद किया.

यही पर उनकी मुलाक़ात करियर एंड कॉम्पिटिशन टाइम्स (टाइम्स ऑफ इंडिया का प्रकाशन) के संपादक वाई.सी. दलाल से हुई, जिसने एक अप्रत्याशित ऑफ़र दिया. उन्हें पेशेवर तौर पर क्रॉसवर्ड बनाने का अवसर मिला.

अगले वर्षों में, उन्होंने अविभाजित बिहार में विभिन्न भूमिकाओं में सेवा दी, जिनमें रोहतास और पाकुड़ में डीएम और बाद में गया के डिविज़नल कमिश्नर के कार्यकाल शामिल हैं.

“प्रोबेशनर के तौर पर सर्किट हाउस में आपके पास बात करने के लिए ज़्यादा लोग नहीं होते,” उन्होंने साझा किया. “और शाम को मेरे पास गॉसिप, टेलीविज़न या क्रॉसवर्ड में से चुनने का विकल्प था.”

1990 और 2000 के दशकों में, उन्होंने एयर इंडिया मैगज़ीन, वीमन’स एरा, स्वागत, डिस्कवर इंडिया, और संडे पायनियर जैसी पत्रिकाओं के लिए क्रॉसवर्ड बनाए.

2010 में सिंह ने अपनी पहली किताब प्रकाशित की, अंडरस्टैंडिंग क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड्स: अ स्टेप-बाय-स्टेप गाइड, लेक्सिसनेक्सिस पब्लिकेशन से.

“यह किताब क्रिप्टिक क्लूज़ की संरचना, हिडन वर्ड्स, डिफ़िनिशन, वर्डप्ले आदि को समझाती है,” सिंह ने कहा, जो वर्तमान में इसके छठे संस्करण पर काम कर रहे हैं.

2013 — क्रॉसवर्ड पजल की सौवीं सालगिरह

2013 में जब क्रॉसवर्ड ने 100 साल पूरे किए, तो इस मौके को पूरी दुनिया में याद किया गया. गूगल ने भी एक खास डूडल बनाया.

बिहार में, सिंह ने अलग-अलग राज्यों के युवा अधिकारियों का नेटवर्क तैयार किया और भारत का पहला नेशनल स्कूल-लेवल क्रॉसवर्ड चैम्पियनशिप शुरू किया.

क्रॉसवर्ड का जन्म 1913 में हुआ था. इसे ब्रिटिश मूल के पत्रकार आर्थर विन ने बनाया था. शुरुआत में उन्होंने इसका नाम “वर्ड-क्रॉस” रखा. लेकिन एक प्रिंटिंग गलती की वजह से यह “क्रॉसवर्ड” बन गया.

समय के साथ यह अमेरिका में एक राष्ट्रीय दीवानगी बन गया. और बड़े युद्धों के समय यह लोगों के लिए ध्यान बंटाने और सुकून देने वाला साधन बन गया.

“बाद में, इसमें बदलाव हुआ और इसे नए तरीके से पेश किया गया. इसी से क्रिप्टिक क्रॉसवर्ड का फॉर्मेट सामने आया,” सिंह ने कहा.

भारत में भी, 1925 तक टाइम्स ऑफ इंडिया ने “क्रॉसवर्ड महामारी” की रिपोर्ट की थी.

2018 में, सिंह और उनकी टीम ने माइंड फेस्ट के ज़रिए क्रॉसवर्ड की दीवानगी को और फैलाया. माइंड फेस्ट के अब तक सात एडिशन पटना, गया, मुज़फ़्फ़रपुर, पूर्णिया, भागलपुर और दरभंगा जैसे ज़िलों में हो चुके हैं. इसका ताज़ा एडिशन 19-20 जुलाई को पटना के बिहार म्यूज़ियम में हुआ.

सिंह पूरे भारत में घूम-घूमकर क्रॉसवर्ड प्रतियोगिताएं करवाते हैं. उन्होंने मिरांडा हाउस, लेडी श्रीराम, लेडी इरविन, आईआईटी दिल्ली, जेएनयू और यहां तक कि रामजस कॉलेज—जहां से यह सब उनके लिए शुरू हुआ था—में भी कार्यक्रम किए हैं.

“यह लहर फैल रही है. छात्र समूह और कॉलेज प्रशासन—हर कोई अगला क्रॉसवर्ड स्थल बनने की तैयारी कर रहा है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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