नई दिल्ली: सत्ताइस साल के विवेक दहिया अपने दोस्त की हरियाणा वाली शादी में सबसे ज्यादा ध्यान खींचने वाले शख्स थे. काली महिंद्रा थार की छत पर खड़े होकर वो नीचे नाचती बारात पर नोटों की बारिश कर रहे थे. उस दिन वो ‘महाराजा’ थे और थार उनका रथ.
दहिया ने कहा, “जैसे महिलाएं शादी में नए कपड़े और गहने पहनकर खास दिखना चाहती हैं, वैसे ही पुरुष भी कुछ अलग और स्टाइलिश एंट्री करना चाहते हैं. थार में आना उसी का हिस्सा था. ध्यान किसे नहीं चाहिए?”
वे गलत नहीं हैं. SUV को मर्दानगी और ताकत का प्रतीक माना जाता रहा है. 1990 के दशक में मारुति जिप्सी की एडवेंचरस और स्टाइलिश पहचान के बाद, 2000 के दशक में गुज्जर-प्राइड फॉर्च्यूनर और जाट-प्राइड स्कॉर्पियो का जलवा रहा. अब थार भारतीय मिडिल क्लास युवाओं की नई पसंद बन गई है.
यह ट्रेंड सिर्फ थार तक सीमित नहीं है. किया सेल्टोस ने “Badass by Design” टैगलाइन के साथ एक एग्रेसिव इमेज बनाई, जबकि हुंडई क्रेटा ने एक चमकदार, शहरी लेकिन प्रभावशाली पहचान बेची – जो थोड़ी ‘कार’ जैसी भी लगती है. टाटा सफारी ने भी अब अपनी पारंपरिक ‘अल्टीमेट SUV’ छवि से हटकर शहरों के हिसाब से खुद को ढाल लिया है.
जहां SUV कभी ऑफ-रोडिंग और एडवेंचर का सिंबल हुआ करती थी, अब वो भारतीय शहरों में आम हो गई है. अमेरिका में SUV को पारिवारिक, सुरक्षित और ‘सॉकर मॉम’ कार माना जाता है, लेकिन भारत में यह पूरी तरह उल्टा है – यह एडवेंचर और रिस्क लेने का प्रतीक है. थार की अपेक्षाकृत कम कीमत और अलग-अलग वर्गों की दिलचस्पी ने SUV की दुनिया को नए तरह के ग्राहकों से भर दिया है.
SUV चलाने वाले पुरुषों की छवि ब्रांड के अनुसार महिलाओं की नज़र में भी बदलती है. 90 के दशक में जैतून-हरे रंग की जिप्सी चलाने वाला लड़का ‘बेकाबू बगावती’ समझा जाता था जो पारिवारिक नियमों की परवाह नहीं करता. वही छवि अब स्कॉर्पियो और थार जैसे वाहनों के साथ जुड़ चुकी है – लेकिन अब उसमें थोड़ा डेयरडेविल अंदाज़ भी जुड़ गया है. वहीं, महिलाएं SUV चलाकर पितृसत्ता की परंपराओं को तोड़ रही हैं – चाहे वो किसी भी ब्रांड की SUV क्यों न हो.
SUV का रग्ड लुक जानबूझकर बनाया गया है, क्योंकि लोगों को ऐसा वाहन पसंद है जिसमें दम हो, जो ऊंचा दिखे और सड़क पर सबका ध्यान खींचे
– होरमाज़द सोराबजी, ऑटोकार इंडिया के संपादक और वरिष्ठ ऑटो पत्रकार
सोराबजी के अनुसार, SUV का डिज़ाइन ही उसकी सबसे बड़ी ताकत है, खासकर युवाओं के बीच. उन्होंने कहा, “लोगों को ऊंचा बैठना अच्छा लगता है. SUV का डिज़ाइन सीधा-सपाट, ऊंचा और दमदार होता है. इसलिए यह पुरुषों के लिए ताकत का प्रतीक बन जाती है.”
SUV की दुनिया
सब कुछ शुरू हुआ ऑलिव ग्रीन रंग की खुली छत वाली जिप्सी से. पहले यह गाड़ी सेना में इस्तेमाल होती थी, लेकिन बाद में आम लोगों में भी पसंद की जाने लगी. यह देशभक्ति और मजबूती की पहचान बन गई.
ब्रांड एक्सपर्ट अविक चट्टोपाध्याय ने कहा, “जिप्सी को हमेशा देशभक्ति से जोड़ा गया. यह स्वतंत्रता दिवस की परेड में दिखाई देती थी, नेशनल पार्कों में चलती थी और इसे एक सिंपल लेकिन दमदार गाड़ी माना जाता था. जब कोई आम आदमी इसे चलाता था, तो उसकी छवि भी सख्त और बहादुर जैसी लगती थी, जैसे सेना के लोग होते हैं.”
श्याम बेनेगल की फिल्म मंथन (1976) में अभिनेता गिरीश कर्नाड एक गांव में डॉक्टर की भूमिका निभा रहे हैं और खुली गाड़ी चलाते नज़र आते हैं — जो कि जिप्सी थी. इससे उनकी शहरी, पढ़े-लिखे मसीहा जैसी छवि बनती है, जो गांव की मदद के लिए आया है.

आज मारुति सुजुकी के लोग जिम्नी को जिप्सी की अगली पीढ़ी मानते हैं. 2023 में लॉन्च हुई जिम्नी खुद को एक मजबूत और भरोसेमंद गाड़ी के रूप में दिखाती है. इसके विज्ञापन भी इसकी साहसी छवि को दिखाने में मदद करते हैं.
एक ऐड में जब जिम्नी बर्फीली और पहाड़ी सड़कों पर दौड़ती है, तब बैकग्राउंड में एक गाना बजता है — “जहां खतरे बहुत हैं और बहादुर कम.”
इस ऐड को लोगों ने काफी पसंद किया. एक यूज़र ने लिखा, “ये सिर्फ गाड़ी नहीं है — ये एक फ्रीकिंग जिम्नी है!”
जिप्सी के बाद कई SUV ब्रैंड्स ने उसी मर्दाना इमेज को पकड़ने की कोशिश की, लेकिन टोयोटा फॉर्च्यूनर सबसे अलग है — यह आज नेताओं की सबसे पसंदीदा गाड़ी बन गई है.
एक रेडिट यूज़र ने पूछा, “जब नेता कोई भी गाड़ी खरीद सकते हैं, तो फिर ज्यादातर नेता फॉर्च्यूनर ही क्यों लेते हैं?”
एक यूज़र ने जवाब दिया, “फॉर्च्यूनर मिडिल क्लास के सपनों की आखिरी मंज़िल है. नेता BMW या मर्सिडीज़ में बैठकर मिडिल क्लास से कनेक्ट नहीं कर सकते.”
फॉर्च्यूनर की कीमत आज 36 लाख से 52 लाख रुपये तक जाती है.
ऑटो जर्नलिस्ट केतन ठक्कर ने कहा, “फॉर्च्यूनर की दमदार सड़कों पर मौजूदगी, ऊंची सीटिंग और टोयोटा का लोगो — ये सब इसे ताकत और भरोसे का प्रतीक बना देते हैं.”
उन्होंने यह भी बताया कि नेता और रियल एस्टेट के बड़े लोग इसे बहुत पसंद करते हैं. “पहले जैसे सफारी का दौर था, अब वैसा ही फॉर्च्यूनर और स्कॉर्पियो के साथ है.”
पत्रकार कुशान मित्रा ने कहा, “अगर कोई सफेद फॉर्च्यूनर देखता है, तो मान लेता है कि उसमें कोई ताकतवर व्यक्ति बैठा है. आप संसद के बाहर देखेंगे, तो सफेद फॉर्च्यूनर की लाइन लगी मिलेगी.”
SUV की ‘हायरार्की’ यानी रैंकिंग में वे बताते हैं कि सांसदों-विधायकों के लिए फॉर्च्यूनर है और गांव के सरपंचों के लिए स्कॉर्पियो. टाटा सफारी का नया अवतार अब उस लिस्ट से थोड़ा बाहर हो गया है.
कुशान ने कहा, “पहली वाली सफारी एक रग्ड, ऑफ-रोडिंग गाड़ी थी, लेकिन नई सफारी अब एक शहरी गाड़ी बन चुकी है.”

थार ने SUV की मर्दाना और दमदार छवि को एक नई ऊंचाई दी है. बहुत से लोगों ने थार देखकर पहली बार ऑफ-रोडिंग करने की इच्छा जताई. एक ऐड में लाल थार मिट्टी, पानी और उबड़-खाबड़ रास्तों पर दौड़ती दिखती है और पीछे धूल का गुबार उड़ता है.
Mahindra के एक वीडियो में थार के हेड नवीन चोपड़ा इसे “बीस्ट” यानी एक ताकतवर जानवर कहते हैं.
उन्होंने कहा, “ये सिर्फ गाड़ी नहीं है, ये बीस्ट है.” इस वीडियो को 14 लाख से ज्यादा बार देखा जा चुका है.
महिलाएं भी SUV के इस ट्रेंड में शामिल हो रही हैं. थार, स्कॉर्पियो और जिम्नी चलाती महिलाओं के वीडियो यूट्यूब पर खूब दिखते हैं, वे खुद गाड़ियों के रिव्यू भी कर रही हैं.
हालांकि, गाड़ियों के ऐड में महिलाएं अभी तक मुख्य किरदार नहीं बनी हैं, लेकिन Mahindra ने 2020 में ‘Thar Her Drive’ नाम से एक अभियान चलाया, जिसमें 25 महिलाओं ने मुंबई में थार रैली निकाली.
अविक चट्टोपाध्याय ने कहा, “महिलाओं के लिए SUV ताकत का प्रतीक बनती है — पर सुरक्षा के नज़रिए से. जब कोई महिला थार, जिम्नी या स्कॉर्पियो चलाती है, तो लोग उन्हें एक मजबूत और आत्मनिर्भर महिला मानते हैं.”

181 लोगों पर आधारित एक रिसर्च पेपर Unleashing the Power of SUVs: Consumer Preferences and Future Prospects in India में भारत में SUV की बढ़ती मांग को समझने की कोशिश की गई है. यह स्टडी वंदना शर्मा, गौरव गुप्ता और शिखर डांगी ने की है.
लेखकों के अनुसार, SUV पसंद करने की वजहें हैं — इसका बड़ा साइज, ऊंची और साफ दिखने वाली ड्राइविंग पोजिशन और इसका रग्ड और स्पोर्टी लुक. इसके अलावा, ज्यादा सीटों की सुविधा और भारी सामान खींचने की ताकत भी लोगों को आकर्षित करती है.
स्टडी में SUV खरीदने के पांच बड़े कारण बताए गए हैं. सबसे ऊपर है स्टेटस और प्रेस्टिज (62.1%), यानी लोग इसे रुतबा दिखाने के लिए खरीदते हैं. इसके बाद ट्रेंड या दूसरों को देखकर खरीदने का कारण (51.5%) है.
अन्य वजहों में शामिल हैं — गाड़ी की ऊंची ग्राउंड क्लीयरेंस, ऑफ-रोड चलने की क्षमता और ऊंची ड्राइविंग पोजिशन. ये सभी बातें मिलकर SUV को एक ताकतवर, कंट्रोल में रहने वाली और दबदबे वाली गाड़ी की छवि देती हैं.
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आफ्टरमार्केट का जादू
जब इरशाद खान अपनी सफेद थार की ड्राइविंग सीट पर बैठते हैं, तो उनकी चाल-ढाल ही बदल जाती है. पीठ सीधी, चेहरे पर आत्मविश्वास और एक दमदार अंदाज़. जैसे ही वो गाड़ी स्टार्ट करते हैं, लोग उन्हें देखना शुरू कर देते हैं.
29 साल के इरशाद ने कहा, “जब मैं थार लेकर सड़क पर निकलता हूं, तो लोग मुझे देखकर कहते हैं — इस बंदे में कुछ तो बात है. तभी तो थार चला रहा है.” उन्होंने ये गाड़ी तीन वजहों से खरीदी—भौकाल, इज़्ज़त और जलवा.
‘लोग SUV इसलिए नहीं खरीद रहे क्योंकि वो ज़्यादा काम की हैं, बल्कि इसलिए क्योंकि वे ताकत और दबंगई दिखाना चाहते हैं. आज की society पहले से ज़्यादा aggressive और Alpha बनती जा रही है. लोगों के अंदर गुस्सा और बेचैनी है और वे खुद को दूसरों से ज़्यादा ताकतवर दिखाना चाहते हैं. सड़क पर उस गुस्से को दिखाने का सबसे आसान तरीका है — बड़ी, भारी SUV चलाना.’
– अविक चट्टोपाध्याय, फाउंडर, इंडियन स्कूल फॉर डिज़ाइन ऑफ ऑटोमोबाइल्स
लेकिन जो दमदारी और स्टाइल वो चाहते थे, वो सिर्फ शोरूम से नहीं मिली. इसके लिए उन्हें आफ्टरमार्केट का सहारा लेना पड़ा.
गाड़ी खरीदे कुछ ही हफ्ते हुए थे कि खान उत्तर प्रदेश के हमीरपुर से दिल्ली के मशहूर करोल बाग मार्केट पहुंच गए. यहां गाड़ियों को नया लुक देने का जबरदस्त क्रेज़ है. उनका सपना था लैंड रोवर डिफेंडर, लेकिन वो बहुत महंगी थी. तो उन्होंने अपनी थार को ही उसी जैसा दिखाने की ठान ली.
उन्होंने गाड़ी के पीछे काला टूलबॉक्स लगवाया, नीचे मेटल की सीढ़ी लगाई और आगे सफेद और पीली दोहरी हेडलाइट्स लगवाईं जो खूब चमकती हैं. चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी.
उन्होंने कहा, “गाड़ी खरीदी थी, लेकिन ठीक से चला भी नहीं पाया. सबसे पहले इसे यहां लाकर सजवाया.”
अब वे अपनी पत्नी के साथ मनाली जाने की तैयारी कर रहे हैं. ये गाड़ी उनके लिए सिर्फ एक वाहन नहीं, बल्कि रोज़ की थकान से राहत देने वाला ज़रिया बन गई है.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “मेरी बीवी दिन गिन रही हैं. वे पहली बार इतनी बड़ी गाड़ी में बैठेंगी. जब लोग मुझे इसे चलाते देखेंगे, तो उन्हें मुझ पर गर्व होगा.”
ऑटो एक्सपर्ट मित्रा ने कहा, डिफेंडर जैसी गाड़ियां लोगों को ये एहसास कराती हैं कि उन्होंने ज़िंदगी में कुछ बड़ा हासिल किया है.
SUV और नौजवानों का प्यार म्यूज़िक इंडस्ट्री तक भी पहुंच गया है. गानों में थार और मस्कुलर गाड़ियों की खूब तारीफ होती है. मशहूर पंजाबी गाने में सिंगर रूपिंदर हांडा कहती हैं कि उनका बॉयफ्रेंड थार लेकर उनके पीछे-पीछे आता है.
इंस्टाग्राम के पसंदीदा गीत, मेरी काली एक्टिवा दा, जो नौ साल पहले आया था, में गायिका रूपिंदर हांडा ने मज़ाकिया अंदाज़ में बताया है कि कैसे जब वे काली एक्टिवा में सवार होती हैं, उनका प्रेमी लगातार अपनी तेज़ रफ्तार थार में उनका पीछा करता है.
“जद्द ओ मारे, सेल्फ थार दी, मेरे हाथ छों पेड़ा गिरदा नी (जब वो थार स्टार्ट करता है, तो मेरे हाथ से रोटी का पेड़ा गिर जाता है)”

इस लाइन से साफ है कि थार ताकत और स्टाइल की पहचान बन गई है—इतनी कि रसोई में भी असर दिखे.
ब्रांड एक्सपर्ट अविक चट्टोपाध्याय ने कहा, “आज लोग SUV इसलिए नहीं खरीदते क्योंकि उन्हें ज़रूरत है, बल्कि इसलिए क्योंकि वो ताकतवर दिखना चाहते हैं. समाज में गुस्सा बढ़ा है और लोग उसे दिखाने के लिए बड़ी गाड़ियां चला रहे हैं.”
करोल बाग की सड़कों पर इंजन की आवाज़ गूंज रही है और इरशाद अपनी थार के मेकओवर को देख खुश हो रहे हैं.
इरशाद का कहना है कि उनकी पहली पसंद थार नहीं थी—वो पहले स्कॉर्पियो खरीदना चाहते थे, लेकिन जब महिंद्रा ने थार रॉक्स लॉन्च की, जिसमें पांच दरवाज़े और कई नए फीचर्स थे, तो उन्होंने स्कॉर्पियो की जगह थार को चुना.
उन्होंने हंसते हुए कहा, “थार में स्कॉर्पियो जैसी स्टाइल और खूबियां हैं, लेकिन साथ में सनरूफ भी है.”
हमीरपुर में ई-रिक्शा एजेंसी चलाने वाले इरशाद अब इलाके में फेमस हो चुके हैं. मोहल्ले के लड़के उनकी थार देखने आते हैं. फोन लगातार बजता रहता है—कोई शादी में गाड़ी मांग रहा है, कोई राइड के लिए.
चट्टोपाध्याय बताते हैं कि कार कस्टमाइजेशन की शुरुआत भारत में जिप्सी से हुई थी. लोग इसे अपने हिसाब से मॉडिफाई करवाने लगे थे, जिससे आफ्टरमार्केट कल्चर की शुरुआत हुई.
इरशाद अकेले नहीं हैं. पास ही खड़े मुशीर अहमद खान ने थार को “गैंडे की सवारी” कहा. उनके पिता पुलिस में थे और जिप्सी चलाते थे. अब 49 की उम्र में, मुशीर खुद वही रौब दोबारा जीना चाहते हैं. इसलिए अलीगढ़ से दिल्ली आए अपनी थार को मॉडिफाई करवाने के लिए.
मुशीर ने कहा, “पापा की वजह से बचपन से ही उस भौकाल की आदत लग गई थी.”

निखिल कुमार पिछले 20 साल से करोल बाग में कार मॉडिफिकेशन कर रहे हैं. उन्होंने देखा है कैसे समय के साथ लोगों की पसंद बदली है—पहले जिप्सी, फिर बोलेरो-सूमो, अब थार और जिम्नी.
एक बटन दबाते ही उन्होंने कार से पुलिस सायरन की तेज़ आवाज़ निकाली.
उन्होंने पूछा, “ये वाला सायरन चलेगा या कोई और?”
उनकी दुकान पर इस वक्त भी थार, स्कॉर्पियो और जिम्नी का जमावड़ा है. निखिल ने कहा कि थार की डिमांड इतनी बढ़ गई है कि अब वो खुद को ‘थार स्पेशलिस्ट’ कहते हैं.
उन्होंने तीन खड़ी थारों — एक काली, एक सफेद और फिर एक काली पर नज़र रखते हुए कहा, “काम जबरदस्त चल रहा है. हर महीने 20-25 थार मॉडिफाई करते हैं. लोग लाइट्स, सायरन, सीढ़ियां—सब लगवाने आते हैं.”
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विज्ञापन की दुनिया में SUV का जलवा
अंधेरे से ऋतिक रोशन दिखाई देते हैं. उनके हाथ में एक छोटा ऑलिव ग्रीन, आर्मी प्रिंट वाला खिलौना जीप है, जिस पर “USA” लिखा है. जैसे ही वह आगे बढ़ते हैं, पीछे एक असली Jeep Wrangler की परछाईं दिखती है.
वे रुकते हैं, मुस्कुराते हैं और उस गाड़ी को अपना “वन एंड ओनली” कहते हैं — जैसे कोई अपने पार्टनर को खास बताता है. फिर वे Wrangler में बैठते हैं और कहते हैं, “ऐसा स्टैंडर्ड सेट किया है कि उसकी नकल करने वाले भी पास नहीं फटक सकते.”
SUV को लोगों की चाहत और पहचान का हिस्सा बनाने में विज्ञापन बहुत बड़ा रोल निभाते हैं — इसे ताकत और दबदबे की गाड़ी दिखाया जाता है. Jeep Wrangler भी इसी रास्ते पर चला. करीब एक साल पहले कंपनी ने इंडिया में पहली बार बड़ा एड कैंपेन शुरू किया, जिसमें ऋतिक रोशन को दिखाया गया.
लोगों ने एड देखकर खूब तारीफ की: “अरे वाह! आखिरकार Jeep India ने Wrangler के लिए अच्छे से मार्केटिंग शुरू की. ऋतिक को इस एड में देखना अच्छा लगा. इससे गाड़ी की बिक्री ज़रूर बढ़ेगी.”
रत्तन ढिल्लों ने जब Jeep Wrangler खरीदी, तो वो सिर्फ इसलिए नहीं था कि उन्हें जीप पसंद है, बल्कि उस ऐड ने भी उन्हें बहुत असर किया. उनके दोस्त ने व्हाट्सऐप पर वीडियो भेजा था. एड देखते ही उनके अंदर एक जोश भर गया.
उन्होंने अपनी तीनों थार्स बेच दीं और एक ही Wrangler रख ली.

27 साल के ढिल्लों ने कहा, “ये गाड़ी सबका ध्यान खींचती है. Jeep Wrangler एक अलग क्लास है और इसका एड भी ऐसा ही बनना चाहिए जिसमें बड़ी सेलिब्रिटी हों. ऐसे ऐड गर्व और रोमांच का एहसास कराते हैं.”
महिंद्रा के एक पूर्व कर्मचारी ने बताया कि पहले स्कॉर्पियो की बिक्री इस लाइन से की जाती थी: “नेताजी की फॉर्च्यूनर और बाहुबली की स्कॉर्पियो.”
उन्होंने कहा कि आज भी गांवों में लोग ऐसी ही सोच रखते हैं और जब कंपनी ने XUV700 लॉन्च किया, तो उसे बेचने में थोड़ी मुश्किल आई क्योंकि वह थोड़ी शहरी और कम दबंग लगती थी.
हरियाणा और यूपी के गांवों में फॉर्च्यूनर को अब राजनीतिक ताकत की गाड़ी माना जाता है और स्कॉर्पियो अभी भी बहादुरी और दबंगई का सिंबल है.
इंस्टाग्राम रील्स में भी ये साफ दिखता है. एक वीडियो में, क्रिएटर कौशल अमन से पूछा गया: “भइया जी, आप थार की जगह स्कॉर्पियो क्यों लिए?”
वे जवाब देते हैं: “भइया, स्कॉर्पियो को Big Daddy of All SUVs कहा जाता है. ये सब ऊंची गाड़ियों का बाप है और जब थार कोतवाली में होगी, उसे छुड़ाने स्कॉर्पियो-N ही जाएगी.”
हरियाणा के एक स्कॉर्पियो मालिक ने कहा, “अब तो लोगों को लगता है कि अगर आपको दबंग और ताकतवर दिखना है, तो स्कॉर्पियो या फॉर्च्यूनर लेनी ही पड़ेगी.” उन्होंने आगे कहा, “यहां तक कि लड़कियां भी चाहती हैं कि उनकी शादी स्कॉर्पियो या फॉर्च्यूनर वाले से हो.”
कुशान मित्रा ने कहा कि थार आने के बाद भले ही स्कॉर्पियो की ऑफ-रोड इमेज थोड़ी कम हो गई हो, लेकिन शहरों में इसकी डिमांड बढ़ी है.
उन्होंने कहा, “अब स्कॉर्पियो एक अमीरों की गाड़ी बन गई है. पहले ये उन लोगों की थी जो पहाड़-नदियों पर चलाते थे, अब वो शहरी शोऑफ की गाड़ी बन गई है.”
ग्रामीण इलाकों में बोलेरो अभी भी भरोसे की गाड़ी मानी जाती है. मित्रा बताते हैं कि पिछले साल जब वो चंबल गए थे, तो वहां हर गली में बोलेरो ही बोलेरो दिख रही थी.
SUV की ऐसी छवि बनाने में विज्ञापन बहुत बड़ी भूमिका निभाते हैं — जो इन्हें हर जगह चल सकने वाली गाड़ी के रूप में दिखाते हैं.
और जब बात होती है माचो इमेज की असली परीक्षा की — तो मानसून से बड़ा टेस्ट कुछ नहीं.
सोरबजी ने कहा, “मानसून में लोग जानबूझकर अपनी SUVs को भरे हुए पानी में ले जाते हैं — ताकि वो दिखा सकें कि उनकी गाड़ी हर जगह जा सकती है और वो खुद अजेय हैं.”
‘नाम खराब कर रहे हैं’
रत्तन ढिल्लों ने कहा कि उन्होंने सिर्फ इसलिए थार नहीं बेची क्योंकि उन्हें Jeep Wrangler खरीदनी थी, बल्कि एक वजह यह भी थी कि थार की एक अलग तरह की छवि बन गई थी.
उन्होंने कहा, “थार जैसी 4×4 गाड़ी ऑफ-रोडिंग के लिए सस्ती और आसानी से मिल जाती है, जो अच्छी बात है, लेकिन अब कई लोग, जिन्हें ऑफ-रोडिंग का मतलब भी नहीं पता, वो शहर की सड़कों पर स्टंट करके हमारी बदनामी कर रहे हैं.”
चंडीगढ़ के रहने वाले ढिल्लों, जो देशभर में बड़ी-बड़ी एक्सपीडिशन (अभियान) करवाते हैं, ने कहा, “थार आने के बाद मिडिल क्लास में एक तरह का ओवरकॉन्फिडेंस आ गया है. लोग अब शहर में ही ऑफ-रोडिंग करने लगते हैं और बखेड़ा खड़ा कर देते हैं.”

लेकिन ढिल्लों की 70 लाख वाली Jeep Wrangler, 12 लाख की थार जैसी हर किसी के लिए नहीं है.
उनके सोशल मीडिया पोस्ट्स में वो ऐसे लोगों की अक्सर आलोचना करते हैं जो थार से सड़कों पर खतरनाक स्टंट करते हैं. एक पोस्ट में उन्होंने लिखा था: “थार वालों के लिए — अगर दम है तो इस सड़क पर आओ रेस करो, शहर की सड़कों पर स्टंट करना बंद करो.”
अपनी तीनों थार बेचने के बाद अब वो गर्व से खुद को Jeep Wrangler का मालिक कहते हैं.
हाल ही में कुछ ऐसे हादसे हुए हैं जिनसे थार की छवि और बिगड़ी है.
5 मई को एक वीडियो वायरल हुआ, जिसमें एक थार ड्राइवर ने गुस्से में आकर सिक्योरिटी गार्ड को गाड़ी से टक्कर मार दी.
गार्ड ने बस इतना कहा था कि हॉर्न मत बजाओ। वीडियो में दिखा कि पहले ड्राइवर ने गार्ड को टक्कर मारी, फिर रिवर्स लेकर उसे कुचल दिया.
एक और मामले में, जयपुर पुलिस ने सात लोगों को अरेस्ट किया जो गाड़ियों से खतरनाक स्टंट कर रहे थे. इनके पास से 11 थार और 3 स्कॉर्पियो गाड़ियां जब्त हुईं.
दिप्रिंट ने इस बारे में महिंद्रा कंपनी से संपर्क करने की कोशिश की, लेकिन जवाब नहीं मिला.
दिल्ली-एनसीआर के एक थार क्लब का कहना है कि ऐसे मामले सिर्फ थार तक ही सीमित नहीं हैं, बल्कि यह पूरे SUV कल्चर का हिस्सा बन गया है.
ग्रुप के एक मेंबर ने कहा, “बाकी SUVs भी एक्सीडेंट्स में शामिल होती हैं. अगर 1% मामलों में थार का नाम आता है, तो पूरी थार कम्युनिटी को क्यों बदनाम किया जाए?”
पिछले साल अक्टूबर में मोहाली में एक फॉर्च्यूनर ने एक सेडान को टक्कर मार दी थी. हादसे में दो दोस्तों की मौत हो गई। फॉर्च्यूनर डिवाइडर से टकराई और ड्राइवर भाग निकला.
इस बीच, एक्स पर यूज़र आर्यांश ने नोएडा में एक थार ड्राइवर की लापरवाह ड्राइविंग पर ट्वीट किया और पूछा: “क्या थार लेने के बाद लोगों के दिमाग में कोई बदलाव आ जाता है? मैंने आज तक किसी थार वाले को शांति से गाड़ी चलाते नहीं देखा.”
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