चुराचांदपुर: चुराचांदपुर में प्लास्टिक की थैली में लिपटे एक युवती के शव की तस्वीर को कुकी पुरुषों द्वारा मैतेई महिला के साथ बलात्कार और हत्या के रूप में वायरल किया गया. झूठे दावे के साथ यह तस्वीर 3 मई को मणिपुर में झड़प के कुछ ही दिनों बाद जारी की गई थी.
बाद में फोटो में दिख रही महिला की पुष्टि दिल्ली की आयुषी चौधरी के रूप में की गई, जिसकी नवंबर 2022 में उसके माता-पिता ने हत्या कर दी थी – वह मणिपुर की नर्सिंग छात्रा नहीं थी. लेकिन तब तक, फर्जी खबर ने कथित तौर पर मैतेई भीड़ द्वारा कुकी आदिवासी महिलाओं पर प्रति हिंसा का एक नया, घातक चक्र शुरू कर दिया था. कुकिस और मैतेई के बीच दो महीनों से चल रही जातीय झड़पों के दौरान 150 से अधिक लोग मारे गए, 300 घायल हुए और 40,000 से अधिक विस्थापित हुए. लेकिन मणिपुर जातीय भीड़ के हमलों में महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा की घटना सबसे कम चर्चा का विषय रही है – यह बलात्कार के आसपास सामाजिक कलंक और चुप्पी की संस्कृति का प्रमाण है जिससे भारतीय महिलाएं अभी भी लड़ती हैं.
4 मई को नशे में धुत्त कुछ लोग, जिनमें से कुछ 15 साल के युवा थे, 40 साल की एक कुकी महिला और एक किशोरी को बिष्णुपुर जिले के तौबुल गांव के पास धान के खेत में खींच ले गए और उनके साथ बलात्कार किया. जब उनके साथ ये हो रहा था, तो पुरुष चिल्लाने लगे, “हम आपके साथ वही करेंगे जो आपके पुरुषों ने हमारी महिलाओं के साथ किया था.” उनके लिए यह प्रतिशोध था.
चुराचांदपुर के राहत शिविर में एक खाली कमरे में बैठी महिला ने पानी के घूंट पीने के लिए रुकते हुए दिप्रिंट से कहा, “यह सब एक फर्जी खबर के कारण था. वे लोग कह रहे थे कि ‘यह चुराचांदपुर मामले का बदला है’, उन्होंने दो घंटे से अधिक समय तक अपनी आपबीती बताई और उस दौरान की घटना की एक एक जानकारी दी.
वह अभी भी स्तब्ध और सदमे में हैं, वह अपने जीवन को फिर से जोड़ने की कोशिश कर रही हैं और राहत शिविर से बाहर जाने की योजना बना रही है.
उन्होंने कहा, “मैं अभी भी कुछ भी समझ नहीं पा रही हूं. युवक शराब के नशे में थे. मुझे नहीं लगता कि वे जानते थे कि वे क्या कर रहे हैं.”
लेकिन बड़े पैमाने पर लिंचिंग, आगजनी, लूटपाट और जातीय रेखाओं के बीच, जिसने मणिपुर को गांवों, शहरों, सड़कों और मोहल्लों में विभाजित कर दिया है, खामोश खामोशी वाली ये चादर महिलाओं को उनके खिलाफ होने वाले भयानक यौन अत्याचारों के बारे में बोलने से रोक रहा है.
40 वर्षीय बलात्कार पीड़िता सहित किसी भी महिला ने अभी तक पुलिस में शिकायत दर्ज नहीं कराई है.
यौन अपराधों की शर्म, अपमान और कलंक से लड़ते हुए, मणिपुर स्थित वकीलों और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं ने कहा कि ये अपराध हमेशा के लिए दफन हो सकते हैं.
चुराचांदपुर के एक वकील काई सुंता कहते हैं, “अगर महिलाएं अपराध की रिपोर्ट नहीं करती हैं, तो इन्हें आदिवासी समुदाय में ज्यादातर भुला दिया जाएगा. हम इन चीजों के बारे में कभी बात नहीं करते हैं.”
महिलाएं बोल नहीं रही हैं, लेकिन आश्रय स्थल पर चश्मदीद गवाह, पहली रेस्पोंडर्स और देखभालकर्ता हैं जो यौन हमलों के बारे में जानते हैं.
दुनिया भर में दंगों और संघर्ष की स्थितियों के दौरान बलात्कार को हिंसा के साधन के रूप में उपयोग किया जाता है. इसे नरसंहार कन्वेंशन अंतर्राष्ट्रीय संधि द्वारा भी मान्यता प्राप्त है.
2002 के गुजरात और 2020 के दिल्ली दंगों के दौरान महिलाओं पर यौन हिंसा पर काम करने वाली वकील सुरूर मंदर ने कहा, “महिलाओं के शरीर में समुदाय की वीरता और गौरव निहित है. और एक समूह दूसरे समुदाय की महिलाओं के साथ बलात्कार करके इसे कुचल देता है. ” यदि पुलिस सांप्रदायिक दंगों में बलात्कार पर एफआईआर दर्ज करती है, तो वे नेमलेस, फेसलेस ‘भीड़’ का जिक्र करते हैं.
मणिपुर में, दिप्रिंट ने कुकी महिलाओं के साथ बलात्कार के कम से कम छह मामलों के बारे में जानने के लिए राहत शिविरों में बचे लोगों और वॉलेंटीयर्स से बात की, जिनमें बिष्णुपुर की 40 वर्षीय और किशोरी भी शामिल थी. कांगपोकपी की 18 वर्षीय पीड़िता की मेडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टि हुई है, लेकिन उसने भी एफआईआर दर्ज नहीं कराई है. 22 वर्षीय मेडिकल छात्रा ने दिप्रिंट से इस बात से इनकार किया है कि उसके साथ बलात्कार हुआ था. इंफाल में एक कार वॉश की दुकान पर काम करने वाली दो महिलाओं एलिस और मैरी (बदले हुए नाम) के परिवारों ने अपनी बेटियों के साथ बलात्कार और हत्या का आरोप लगाते हुए एफआईआर दर्ज कराई है.
पुलिस का कहना है कि उन्होंने भी बलात्कार के बारे में सुना है. लेकिन यह भी जोड़ा कि अभी तक उन्हें कोई शिकायत नहीं मिली है.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “दोनों समुदायों (मैतई और कुकी) की ओर से बलात्कार के आरोप हैं, लेकिन अब तक कोई मामला दर्ज नहीं किया गया है. पीड़ित की सहमति आवश्यक है और पुलिस स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई नहीं कर सकती.”
हमले के दो महीने से अधिक समय बाद, जीवित बचे लोग विभिन्न राहत शिविरों में हजारों विस्थापित लोगों के बीच मिल गए हैं. और उनका यौन आघात भयावह भीड़ हमलों की अनगिनत कहानियों में विलीन हो गया है.
फर्जी खबरों के कारण बलात्कार हुए
मणिपुर में झड़प होने और सोशल मीडिया पर झूठा दावा फैलने के 48 घंटे के भीतर पुलिस ने फर्जी खबर का भंडाफोड़ कर दिया.
5 मई को, तत्कालीन पुलिस महानिदेशक पी डौंगेल ने तुरंत साफ किया कि चुराचांदपुर में मैतेई महिलाओं के साथ कोई बलात्कार नहीं हुआ. वायरल दावे में उल्लिखित कथित नर्सिंग छात्रा के पिता ने एक स्थानीय प्रसारण नेटवर्क इम्पैक्ट टीवी को एक बयान दिया कि उनकी बेटी को कोई नुकसान नहीं हुआ है.
लेकिन सोशल मीडिया पर उन्माद भीड़ को उकसाता रहा.
5 मई की शाम को, ऐलिस और मैरी, जो लगभग 20 वर्ष की थीं को एक डर ने घेर लिया. वे कुकी महिलाओं की तलाश कर रही भीड़ से बचने के लिए अपनी कार धोने की दुकान में एक बिस्तर के नीचे छिप गईं, लेकिन लंबे समय तक छिपी नहीं रह सकीं. दो घंटे तक, उनके असहाय सहकर्मियों ने उनकी चीखें और मिन्नतें सुनीं, जिन्होंने खुद को कमरे में बंद कर लिया था. बाद में महिलाएं मृत पाई गईं, उनका खून और बाल पूरे कमरे में बिखरे हुए थे.
ऐलिस की बड़ी बहन ने कहा, “कार वॉश के लोगों ने हमें बताया कि उन लोगों ने बंद कमरे के अंदर गलत काम किया. मेरी बहन और मैरी चिल्ला रही थी.”
हैदराबाद विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के पढ़ाने वाली होइनिलिंग सितल्हो ने मणिपुर में महिलाओं के खिलाफ हिंसा के मामलों की जांच शुरू की. उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि महिलाओं का चिल्लाना, ‘कृपया मुझे जाने दो’, ‘मुझे मत छुओ’, ‘कृपया मुझे अकेला छोड़ दो’, यह दर्शाता है कि उनके साथ यौन उत्पीड़न किया गया था.
बलात्कार की शर्म और अपमान केवल महिला की शारीरिक अखंडता के अपवित्र होने के आघात तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पूरे समुदाय से जुड़ा हुआ है.
नाम न छापने का अनुरोध करते हुए एक मानवाधिकार कार्यकर्ता जिन्हें लगातार धमकियां मिल रही हैं, कहते हैं, “कभी-कभी महिला का अपना परिवार और समुदाय, जो उसके समर्थन का स्रोत होना चाहिए, पलट जाते हैं और उसे ‘प्रदूषित’ के रूप में देखते हैं,”
अमेरिकी चुनावों से लेकर यूक्रेन युद्ध तक – दुनिया भर में हिंसा भड़काने में अफवाहें और फर्जी सूचनाएं तेजी से भयावह भूमिका निभा रही हैं. भारत में सांप्रदायिक दंगों में फर्जी खबरों पर आधारित कई बदले की भावना से किए गए हमले शामिल हैं – मुजफ्फरनगर दंगों से लेकर दिल्ली दंगों तक.
वकील मंदर ने कहा, “दंगों के दौरान फर्जी खबरें गुस्से को बढ़ाती हैं. यह जंगल में सूखी लकड़ी पर चिंगारी की तरह काम करता है. इससे जंगल में आग लग जाती है और उसके ऊपर एक ये उग्र स्थिति है.”
मंदर बताती हैं कि जब 2013 में मुजफ्फरनगर दंगे भड़के थे, तो दो लोगों के बीच लड़ाई का एक पुराना वीडियो फेसबुक पर झूठे दावे के साथ प्रसारित किया गया था कि उनमें से एक ने दूसरे की बहन से छेड़छाड़ करने की कोशिश की थी.
वह कहती हैं, “यह सच्ची कहानी नहीं है. दरअसल, लड़की ने कई मौकों पर आधिकारिक तौर पर इसका खंडन किया है. झूठ और फर्जी कहानियां गुस्सा दिलाती हैं.”
यह दूसरे समुदाय को अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाने के लिए भी उकसाता है.
मंदर कहते हैं, “समुदाय के भीतर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक डर पैदा किया जाता है जो बाद में उन्हें रक्षात्मक बनने और कार्रवाई करने के लिए मजबूर करता है. इसके बाद यह लगातार हिंसा को बढ़ावा देता है और इसे कायम रखता है. अधिक हिंसा होती है और राज्य महिलाओं और महिलाओं के शरीर पर फिर से अत्याचार करके इसे दबा देता है.”
वह कहती हैं, “यह सच्ची कहानी नहीं है. दरअसल, लड़की ने कई मौकों पर आधिकारिक तौर पर इसका खंडन किया है. झूठ और फर्जी कहानियां गुस्सा पैदा करती हैं.”
यह दूसरे समुदाय को अपनी रक्षा के लिए हथियार उठाने के लिए भी उकसाता है.
मंदर कहते हैं, “समुदाय के भीतर महिलाओं की सुरक्षा को लेकर एक डर पैदा किया जाता है जो बाद में उन्हें रक्षात्मक बनने और कार्रवाई करने के लिए मजबूर करता है. इसके बाद यह लगातार हिंसा को बढ़ावा देता है और इसे कायम रखता है. अधिक हिंसा होती है और राज्य महिलाओं और महिलाओं के शरीर पर फिर से अत्याचार करके इसे दबा दिया जाता है.”
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इस बीच, महिलाओं के खिलाफ यौन हिंसा दंगों के शुरुआती दिनों से भी आगे बढ़ गई जब गलत सूचना महिलाओं को प्रताड़ित करने का बहाना बन गई.
15 मई की शाम को, इंफाल में एक मुस्लिम परिवार के घर में शरण लेने वाले 18 वर्षीय कुकी कॉलेज ड्रॉपआउट को काली टी-शर्ट पहने हुए दो कारों – एक सफेद बोलेरो और एक में आए लोगों ने एक एटीएम के बाहर से अपहरण कर लिया था. एक बैंगनी स्विफ्ट. संघर्ष शुरू होने के बाद से, काले कपड़ों में पुरुषों को एक सशस्त्र मैतेई समूह, अरामबाई तेंगगोल के पुरुषों के रूप में संदर्भित किया जा रहा है. काले कपड़े ही उनकी वर्दी हैं.
कर्फ्यू वाले एक शहर में, दोनों वाहन उस लड़की को लेकर घूमने में कामयाब रहे, जिसकी आंखों पर पट्टी बंधी हुई थी.
कांगपोकपी में एक राहत शिविर में एक वॉलेंटियर ने कहा, जिसे 18 वर्षीय लड़की ने अपनी कहानी सुनाई थी, “वह चार लोगों के साथ थी जो बोलेरो में थे और दूसरी कार चली गई. उसे वाहन के अंदर पीटा गया और उस पर हमला किया गया.”
स्वयंसेवक का कहना है कि पुरुष उसे एक पहाड़ी पर ले गए और जब लड़की ने उनके यौन संबंधों से इनकार कर दिया, तो उन्होंने उसे अपनी बंदूकों की बट से पीटा जिसके बाद वह बेहोश हो गई. जब उसे होश आया, तो वह पहाड़ी से लुढ़क कर बच निकली और एक मुस्लिम ऑटो चालक की मदद ली जिसने उसे सुरक्षित निकाल लिया.
वॉलेंटियर ने कहा, “तीन दिन बाद, जब लड़की हमारे राहत शिविर में पहुंची, तो उसका चेहरा चोट और घावों से भरा हुआ था और वह बोल भी नहीं पा रही थी. उसकी भौंह पर एक बड़ा कट था, उसके होंठ नीले थे और उसकी आंखें पूरी तरह से लाल थीं. उसे देखकर ही मेरे रोंगटे खड़े हो गए और मैं उस पल को याद करके बहुत असहज महसूस करता हूं. ”
लड़की का परिवार वॉलेंटियर से बात करने में अनिच्छुक था क्योंकि लड़की को उसके अपहरणकर्ताओं ने धमकी दी थी.
वॉलेंटियर ने कहा, “उन लोगों ने कहा कि उसकी जिंदगी अभी भी उनके हाथ में है और उसे न तो पुलिस को इसकी सूचना देनी चाहिए और न ही मीडिया से बात करनी चाहिए.”
लेकिन जब लड़की की हालत खराब हो गई और उसे रक्तस्राव होने लगा तो उसे पड़ोसी राज्य नागालैंड के एक अस्पताल में ले जाया गया. उनकी मेडिकल रिपोर्ट, जिसे दिप्रिंट ने देखा है, बलात्कार और यौन उत्पीड़न की पुष्टि करती है.
रिपोर्ट में कहा गया है, “15 मई को मणिपुर में आदिवासी संघर्ष के दौरान हमला और बलात्कार.”
लेकिन परिवार इस बारे में पुलिस के पास भी नहीं गया है.
क्या किया जा सकता है
महासचिव एनी राजा की अध्यक्षता में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी की महिला शाखा, नेशनल फेडरेशन ऑफ इंडियन वुमेन (एनएफआईडब्ल्यू) की तीन सदस्यीय टीम ने पिछले महीने (28 जून – 1 जुलाई) मणिपुर का दौरा किया और उन महिलाओं से मुलाकात की जो कथित तौर पर यौन हिंसा पीड़ित थीं.
पीड़ित महिलाएं किस समुदाय से थीं, इसका खुलासा किए बिना, राजा ने दिप्रिंट को बताया कि अपराध का आघात गहरा है और उन्हें बहुत कम समर्थन या सहायता मिली है.
राजा ने कहा, “महिलाएं अपने सामने आई बातों को साझा करने में झिझकती हैं. एक महिला ने बताना शुरू किया कि कैसे उसे परेशान किया गया, लेकिन बलात्कार की कहानी बताने से पहले ही वह रुक गई और रोने लगी. हमने इस बात पर जोर नहीं दिया कि उसे खुलकर बोलना चाहिए क्योंकि इसका मतलब उसे फिर से दंडित करना होगा. ”
मणिपुर से ताल्लुक रखने वाले सितलहौ बताते हैं कि ऐसी धारणा है कि आदिवासी समाज समतावादी हैं, लेकिन आदिवासी समुदायों में भी पितृसत्ता गहरी है.
सीतलहोउ ने कहा, “बलात्कार से जुड़े कलंक का संबंध महिला की शादी की संभावना से है. परिवार शायद उन महिलाओं को स्वीकार न करें जो, इस तरह से कहें तो, ‘अपवित्र’ रही हैं.
संघर्ष के समय में, महिलाओं के आगे आकर अपराध की रिपोर्ट करने के लिए माहौल भी अनुकूल नहीं है. अक्सर, दंगों के दौरान पुरुष ही किसी समुदाय और उसकी त्रासदियों के प्रवक्ता बन जाते हैं.
महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर काम करने वाली वरिष्ठ वकील अपर्णा भट्ट कहती हैं, “जब महिलाएं विस्थापित होती हैं, तो उस समय उनकी पहली चिंता अपने और अपने परिवार के लिए एक सुरक्षित स्थान ढूंढना होता है. ” उनके पास बलात्कार के बारे में सोचने और रिपोर्ट करने की मानसिक क्षमता भी नहीं है.
वह कहती हैं कि अपराध पर रिपोर्टिंग महिलाओं को सुरक्षित स्थान मिलने के बाद होती है, शायद बहुत बाद में.
हालांकि, विशेषज्ञों का सुझाव है कि राष्ट्रीय महिला आयोग या मानवाधिकार आयोग मामलों की जांच कर सकता है. पुलिस मीडिया रिपोर्टों के आधार पर स्वत: संज्ञान लेकर कार्रवाई कर सकती है या सरकार जांच आयोग भी बना सकती है.
जीवन छोटा हो गया
ऐलिस की बहन ने कहा, “मेरी बहन सबसे ज्यादा खुश थी जब वह शीशे के सामने थी,” ऐलिस की बहन ने फोन पर जोर-जोर से सांस लेते हुए कहा क्योंकि उसकी बहन और उसके दुखद अंत की यादें उसे इमोशनल कर रही थीं. ऐलिस केवल 24 साल की थी और ब्यूटीशियन बनना चाहती थी.
जिस कमरे में दोनों महिलाओं के साथ दरिंदगी हुई, वहां चारों तरफ बाल फैले हुए थे. प्रत्यक्षदर्शियों ने उसकी बहन को बताया कि हमले के दौरान मैरी के लंबे खूबसूरत बाल खींचे गए और काट दिए गए.
उनके माता-पिता द्वारा दर्ज की गई एफआईआर में अब तक कोई प्रगति नहीं हुई है. परिवारों को अपनी बेटियों के शव भी नहीं मिले हैं, जिन्हें कथित तौर पर इंफाल के जवाहरलाल नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (जेएनआईएमएस) अस्पताल के मुर्दाघर में रखा गया है.
धान के खेत में बलात्कार की शिकार किशोरी को चंदेल जिले में एक अज्ञात स्थान पर स्थानांतरित कर दिया गया है, जबकि 18 वर्षीय किशोरी अपने परिवार के साथ एक नए राहत शिविर में चली गई है.
इस बीच, चुराचांदपुर में, 22 वर्षीय मेडिकल छात्रा, जिसे 4 मई को इंफाल में भीड़ ने बेरहमी से पीटा था, धीरे-धीरे अपनी चोटों से उबर रही है. जब उसे वह दुखद रात याद आई जब उसे मरने के लिए छोड़ दिया गया था तो उसकी आंखें भर आईं. पुरुषों ने उसके चेहरे पर मुक्के मारे, उसके शरीर पर खड़े हो गए और उसके सामने के तीन दांत तोड़ दिए. उन्हें इंफाल के जेएनआईएमएस अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में होश आया.
जेएनआईएमएस, जहां उसे पहली बार ले जाया गया था, उसका नुस्खा अस्पताल के लेटरहेड के बजाय सादे ए4 शीट पर लिखा गया है. हालांकि उसे हिंसा की शिकार के रूप में स्वीकार किया गया था, लेकिन यौन उत्पीड़न के लिए उसका परीक्षण नहीं किया गया था. उसे सिरदर्द, चेहरे और आंखों पर दर्द और सूजन की शिकायत थी और सामने के तीन दांत गायब थे. उपचार के लिए, उसे एंटीबायोटिक्स, आईड्रॉप्स और दर्द निवारक दवाएं दी गईं.
जब भीड़ पिटाई कर रही थी तो उसमें शामिल महिलाएं चिल्लाने लगीं, “उसका बलात्कार करो, उसे मार डालो, उसे जला दो.” उसके साथ वही करो जो उसके लोगों ने हमारी स्त्रियों के साथ किया.” वे चुराचांदपुर में मैतेई नर्सिंग छात्रा के बलात्कार और हत्या की उसी फर्जी खबर का जिक्र कर रहे थे.
राहत शिविर में स्वयंसेवकों ने मेडिकल छात्र के मामले को अब तक के सबसे भयावह मामलों में से एक बताया. लेकिन जब दिप्रिंट ने पिछले महीने चुराचांदपुर जिला अस्पताल में स्वास्थ्य लाभ करते हुए उससे मुलाकात की, तो उसने इस बात से इनकार किया कि उसके साथ बलात्कार हुआ था.
भीड़ चिल्ला रही थी, ‘उसका बलात्कार करो’. लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया,” वह सीधे चेहरे से कहती हैं.
दिप्रिंट की अनन्या भारद्वाज ने इंफाल से इस कहानी में योगदान दिया.
(अनुवाद, संपादन/ पूजा मेहरोत्रा)
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