नवा रायपुर: छत्तीसगढ़ में नवा रायपुर विकास प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी सौरभ कुमार के दफ्तर में फाइलें तेज़ी से आगे बढ़ रही हैं. उनका फोन लगातार बज रहा है और हमेशा वहां लोगों का इंतज़ार रहता है. दो महिलाएं नवा रायपुर में तीरंदाजी अकादमी के लिए प्रस्ताव लेकर आई हैं जिसे कुमार ने देखते-देखते जल्दी-जल्दी बदलाव किए और दूसरी फाइलों पर आगे बढ़ गए. एक दिन के अंदर राज्य मंत्रिमंडल ने इसके लिए 4 एकड़ की जगह को मंजूरी दे दी.
यह नवा रायपुर में विष्णु देव साय के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की तेज़ गति का उदाहरण है. पिछले डेढ़ साल में राज्य ने 4,500 करोड़ रुपये से अधिक के निवेश के लिए सहमति पत्रों पर हस्ताक्षर किए हैं. मंत्री उद्यमियों से मिल रहे हैं और फाइलों को मंजूरी दे रहे हैं ताकि एक बार जो सपना देखा गया था, उसे दोबारा ज़िंदा किया जा सके: भारत की सबसे अप्रत्याशित ग्रीनफील्ड स्मार्ट सिटी.
मुख्यमंत्री साय ने दिप्रिंट से कहा, “हमारी मौजूदा सरकार के तहत सिर्फ 1.5 साल में नवा रायपुर अटल नगर में ज़मीन आवंटन ने अगले 5 से 7 सालों में निजी और सरकारी संस्थाओं से 4,500 करोड़ रुपये से ज़्यादा के अपेक्षित निवेश की नींव रखी है. यह भविष्य के लिए तैयार छत्तीसगढ़ के निर्माण के लिए हमारी प्रतिबद्धता को दर्शाता है — जहां नीति, योजना और उद्देश्य एक दूसरे से जुड़े हुए हैं.”
अब यह हलचल पूरी तरह से खत्म होने वाली है. नई प्रशासनिक राजधानी बनने में दो दशक की देरी हो गई है. 2000 में छत्तीसगढ़ के निर्माण के तुरंत बाद ही योजना बनाई गई थी और नवा रायपुर को अत्याधुनिक राजधानी शहर माना जाता था. इसका उद्देश्य 21वीं सदी के भारत की महत्वाकांक्षाओं के साथ पुरानी आदिवासी ज़मीन की पहचान को संतुलित करना था, लेकिन छत्तीसगढ़ की कुख्यात नक्सल समस्या और खराब वित्तीय योजना ने इस सपने को पूरी तरह से साकार नहीं होने दिया.

यहां चौड़ी सड़कें और साफ-सुथरे प्लॉट हैं, लेकिन शहरी जीवन की कोई रोमांचक हलचल नहीं है. यह सब सजाया-संवारा गया है, लेकिन जाने की जगह नहीं है. अब आखिरकार कार्रवाई शुरू हो रही है.
ऐसा लगता है कि सीएम देव ने नया अध्याय लिखने को अपना मिशन बना लिया है. लक्ष्य नवा रायपुर को राज्य का विकास इंजन बनाना है, इसे अगला हैदराबाद, बेंगलुरु या मुंबई बनाने का है — सबसे अच्छा और सबसे बेहतर. सरकार नवा रायपुर को केंद्र में रखकर एक राज्य राजधानी क्षेत्र बनाने की योजना बना रही है.
छत्तीसगढ़ के आवास और वित्त मंत्री ओपी चौधरी ने कहा, “हम चाहते हैं कि नवा रायपुर एजुकेटेड सिटी, स्पिरिचुअल सिटी, आईटी सिटी, फार्मा सिटी और वेडिंग डेस्टिनेशन सिटी बने. नए भारत का डेवलपमेंट टियर-2 शहरों से होगा और नवा रायपुर सबसे अच्छी राज्य राजधानी और देश का गौरव बनकर उभरेगा.”
पिछले डेढ़ साल में छत्तीसगढ़ सरकार ने एनआरडीए के खातों को दुरुस्त करने के लिए आक्रामक तरीके से काम किया है. इसने निवेशक शिखर सम्मेलनों का आयोजन किया है, निविदाएं जारी की हैं, ऋणों का पुनर्गठन किया है, तथा निजी खिलाड़ियों के लिए भूमि खोलना शुरू किया है.
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लोगों की कमी
रायपुर के नए मॉल, झील के किनारे वाले बाज़ारों और भीड़-भाड़ वाले इलाकों से लगभग 20 किलोमीटर दूर नया रायपुर बसा है, जो अभी भी अपनी पहचान तलाश रहा है.
यह आधुनिक भारत का एक अनोखा शहर है. इसे बड़े करीने से डिज़ाइन किया गया है और सावधानीपूर्वक इसकी प्लानिंग की गई है. सीवर लाइन बिछाई गई है, बिजली के तार अंडरग्राउंड हैं और उन जंक्शनों पर ट्रैफिक लाइट लगाई गई हैं जहां भीड़भाड़ की आशंका है. रेजिडेंशियल, कमर्शियल और इंडस्ट्रियल क्षेत्रों को सावधानीपूर्वक अलग किया गया है और सड़कों पर गड्ढे नहीं है. महानदी से पानी पंप करने वाली एक जल लाइन बिछाई गई है और 148 सीसीटीवी कैमरे इस सब पर कड़ी नज़र रखते हैं.
एकमात्र बड़ी कमी लोगों की है.
यहां की आबादी नवा रायपुर विकास योजना के अनुमान से लगभग आधी है. सड़कें चौड़ी और बेदाग हैं, लेकिन वह ग्रामीण राजस्थान से गुज़रने वाले राजमार्गों की तरह ही वीरान हैं. बहुत कम लोग नवा रायपुर आकर बसे हैं और इसे अपना घर कहते हैं. हालांकि, रायपुर से आने वाले विजिटर्स लंबी ड्राइव करते हैं और झील के किनारे पिकनिक मनाते हैं.

कुछ क्षेत्रों में विकास दिखाई देता है — सरकारी कार्यालय, मंत्रियों और अधिकारियों के घर और बैंक मुख्यालय, लेकिन अन्य घरों का अधिकांश हिस्सा अधूरा है. शहर को सुंदर बनाने के लिए लगाए गए ताड़ के पेड़ मुरझा रहे हैं.
इसका एक कारण यह भी था कि इसे रायपुर से जोड़ने के लिए परिवहन की कमी थी, लेकिन पिछले एक दशक में स्थिति में सुधार हुआ है. 2016 से नवा रायपुर विकास प्राधिकरण दोनों शहरों के बीच 40 एसी बसें चला रहा है. ये लाल बसें एक तय ट्रांजिट कॉरिडोर पर चलती हैं, केवल चुने गए बस स्टॉप पर रुकती हैं और इनमें कंडक्टर नहीं होते हैं. यात्रियों को पहले से टिकट खरीदना होगा.
2018-2024 में शहर को विकास प्राधिकरण के बजाय सरकारी दुकान के रूप में चलाया गया. हम निजी पारिस्थितिकी तंत्र में आक्रामक रूप से बिक्री नहीं कर रहे थे
— नवा रायपुर विकास प्राधिकरण के सीईओ सौरभ कुमार
शहर में 45 गुलाबी ऑटो भी हैं, जिन्हें आस-पास के गांवों की महिलाएं चलाती हैं, जो रैपिडो से जुड़ी हैं. कई ड्राइवरों के लिए यह आय का एक सशक्त स्रोत है.
ऑटो ड्राइवरों में से एक ज्योति चतुर्वेदी ने कहा, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं अपने घर से बाहर कदम रखूंगी और अब मैं पूरे शहर में इस ऑटो को चला रही हूं! गांव में मेरा सम्मान भी बढ़ गया है.”
शहर में एक नई सीबीडी मेमू ट्रेन सेवा, एक ब्रॉड-गेज रेलवे लाइन आ रही है. वर्तमान में एक ट्रैक चालू है और हर रोज़ दो ट्रेनें चलती हैं. औसतन, रोज़ाना केवल 15 लोग इसका यूज़ करते हैं.

नवा रायपुर का सपना छत्तीसगढ़ के शुरुआती वर्षों में वापस जाता है, जब अजीत जोगी मुख्यमंत्री थे. सोनिया गांधी ने 2003 में इसकी आधारशिला रखी थी, लेकिन जब सरकार बदल गई, तो नए प्रशासन ने एक नई शुरुआत की और प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 2005 में एक और आधारशिला रखी.
भाजपा नेता और पूर्व सीएम रमन सिंह, जो अब छत्तीसगढ़ विधानसभा के अध्यक्ष हैं, याद करते हैं, “जब राज्य का नया गठन हुआ और मैंने 2003 में कार्यभार संभाला, तो सरकार रायपुर के एक जिला अस्पताल से काम कर रही थी. मुख्यमंत्री का कार्यालय एक ऑपरेशन थियेटर हुआ करता था. हमें एक नई राजधानी की ज़रूरत थी. इसलिए हमने ग्रामीणों को विस्थापित किए बिना, छत्तीसगढ़ की नई राजधानी बनाने के लिए शांतिपूर्वक 800 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की. एक स्मार्ट, पॉल्यूशन-फ्री सिटी.”

निर्माण शुरू हुआ और राज्य सचिवालय और सरकारी कार्यालय अंततः नवा रायपुर में स्थानांतरित कर दिए गए, लेकिन फिर कुछ अड़चनें आईं. नवा रायपुर विकास प्राधिकरण (NRDA) के वर्तमान CEO सौरभ कुमार के अनुसार, इसे वर्षों तक संघर्ष करना पड़ा. उन्होंने कहा कि प्राइवेट निवेश को प्रोत्साहित नहीं किया गया और ज़मीन का अधिकांश आवंटन सरकारी विभागों को किया गया. विभागों ने भुगतान में देरी की. NRDA 1,200 करोड़ रुपये के कर्ज़ में डूब गया. इसकी संपत्ति बैंकों ने जब्त कर ली और इसे नॉन-परफॉर्मिंग घोषित कर दिया.
लेकिन पिछले डेढ़ साल में सरकार ने NRDA के खातों को दुरुस्त करने के लिए आक्रामक तरीके से काम किया है. इसने निवेशक शिखर सम्मेलन आयोजित किए निविदाएं जारी कीं, ऋणों का पुनर्गठन किया और प्राइवेट प्लेयर्स को ज़मीनें देना शुरू किया. चार मंत्रियों ने नवा रायपुर में अपना निवास स्थान बदल लिया है. मुख्यमंत्री का आधिकारिक आवास बनकर तैयार है. सितंबर 2025 तक नई राजधानी से विधानसभा के काम करना शुरू करने की उम्मीद है.

‘सरकारी’ दुकान से लेकर व्यापार जगत की समझदारी
कई सालों तक नवा रायपुर की परियोजनाएं आर्थिक रूप से व्यवहार्य दरों पर नहीं बिकीं और ज़मीन खरीदने वाला कोई नहीं था.
सौरभ कुमार ने कहा, “ज्यादातर जमीन अलग-अलग सरकारी विभागों को दे दी गई थी. हम प्राइवेट सेक्टर को ज़मीन बेचने के लिए ज्यादा जोर नहीं लगा रहे थे और सरकारी सौदों को भी पैसों के नजरिए से नहीं देखा जा रहा था. 2018 से 2024 के बीच शहर को एक विकास प्राधिकरण की तरह नहीं, बल्कि एक सरकारी दुकान की तरह चलाया गया.”

अपने सात मंजिला कार्यालय की दीवार के आकार की कांच की खिड़की से, वे पुराने, नए और अभी भी निर्माणाधीन सभी चीज़ों को देख सकते हैं.
कुमार अपने ऑफिस की दीवार पर लगे नवा रायपुर के बड़े नक्शे की तरफ इशारा करते हुए बोले, “मुझे समझ में आता है कि जब कोई इस शहर में आता है तो यह काफी खाली-खाली सा लगता है, लेकिन हमें इसके आकार को सही नज़रिए से देखना होगा. यह शहर 239 वर्ग किलोमीटर में फैला है, जिसमें से करीब 80 वर्ग किलोमीटर मुख्य रूप से विकास के लिए तय किया गया है.”
उन्होंने कहा, “दिल्ली का लुटियंस इलाका करीब 37 वर्ग किलोमीटर में फैला है और चंडीगढ़ 70 वर्ग किलोमीटर में. नवा रायपुर का दायरा वाकई बहुत बड़ा है, लेकिन हमें यह भी देखना होगा कि लोग और सुविधाएं इसे कितना अपना पाते हैं. यहां पर वैसे बड़े पैमाने पर पूंजी नहीं लगेगी जैसी ब्रिटिश राज की राजधानी या चंडीगढ़ में लगी थी — क्योंकि वे या तो समृद्ध राज्यों की राजधानी थीं या एनसीआर जैसे विकसित इलाके के पास थीं.”
अभी, वे नवा रायपुर में शुरू हुए बदलाव को लेकर उत्साहित हैं.
अब हम फार्मा पार्क, टेक्सटाइल पार्क, फर्नीचर पार्क, एआई पार्क और सेमीकंडक्टर पार्क जैसे विशिष्ट औद्योगिक पार्क बनाने पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं
— विश्वेश कुमार, प्रबंध निदेशक, सीएसआईडीसी
पिछले 18 महीनों में एनआरडीए ने 800 करोड़ रुपये की वसूली की है. इसमें सरकार ने अपने बकाया चुकाए हैं और पुराने कर्जों का पुनर्गठन किया गया है. एनआरडीए ने बैंकों द्वारा कब्जे में ली गई ज़मीन पर भी फिर से नियंत्रण पाया है. सबसे अहम बात यह है कि अब निजी कंपनियों को ज़मीन बेचना शुरू किया गया है — जो पहले की सरकारें करने से बचती रही थीं.
कुमार ने कहा, “पिछली सरकार नवा रायपुर में निवेश के लिए निजी कंपनियों को जोड़ने को लेकर ज्यादा उत्साहित नहीं थी, जिसकी वजह से विकास की रफ्तार धीमी पड़ गई. मौजूदा सरकार ने अब निजी उद्योगों को तेज़ी से शामिल करना शुरू किया है.”
अब तक प्राधिकरण ने निजी कंपनियों को 468 एकड़ और अलग-अलग सरकारी एजेंसियों को 382 एकड़ ज़मीन आवंटित की है. कुल मिलाकर करीब 700 करोड़ रुपये की ज़मीन निजी कंपनियों, सरकारी संस्थाओं, स्कूलों और अस्पतालों को बेची जा चुकी है. सरकार हर क्षेत्र में अपनी भागीदारी चाहती है — वह नवा रायपुर को ज्ञान का केंद्र, आध्यात्मिक आकर्षण, विनिर्माण हब और तकनीकी शहर के रूप में विकसित करना चाहती है. इसी सोच के तहत, आर्ट ऑफ लिविंग फाउंडेशन से लेकर रैकबैंक जैसी कंपनियों को ज़मीन दी गई है — रैकबैंक यहां 1,000 करोड़ रुपये का एआई डेटा सेंटर पार्क बना रही है.

कई संस्थानों ने भी एनआरडीए से ज़मीन खरीदी है. इनमें नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ फैशन टेक्नोलॉजी (एनआईएफटी), नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इंफॉर्मेशन टेक्नोलॉजी (एनआईईएलआईटी), गृह मंत्रालय के तहत नेशनल फोरेंसिक यूनिवर्सिटी और भारतीय रिजर्व बैंक शामिल हैं, जो शहर में एक प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने की योजना बना रहा है.
प्राधिकरण अब अपनी पिछली गलतियों को सुधारने की कोशिश कर रहा है. पहले उसने एक केंद्रीय व्यावसायिक जिला (CBD) तैयार किया था, जिसे एक बड़े कारोबारी केंद्र के तौर पर विकसित करने की योजना थी, लेकिन ये इमारतें सालों तक खाली पड़ी रहीं क्योंकि उन्हें खरीदने या किराए पर लेने के लिए कोई ग्राहक नहीं मिला.
अब एनआरडीए ने आईटी कंपनियों और बीपीओ को तैयार ऑफिस स्पेस किराए पर देना शुरू कर दिया है. अब तक ऐसे दो समझौते किए जा चुके हैं, जिनमें से एक पर काम शुरू भी हो चुका है.

हैदराबाद स्थित कंपनी स्क्वायर बिजनेस सर्विसेज प्राइवेट लिमिटेड ने एक कार्यालय स्थान स्थापित किया है और 320 लोगों को काम पर रखा है, जिनमें से अधिकांश छत्तीसगढ़ से हैं. यह स्थान अभी भी अधिकांशतः खाली है और इसमें 1,500 कर्मचारी रह सकते हैं. हैदराबाद और बेंगलुरु के बाद यह कंपनी की तीसरी शाखा है.
स्क्वायर बिजनेस के एसोसिएट वाइस प्रेसिडेंट विनय कुमार आचार्य ने कहा, “एनआरडीए ने हमारा बेहद गर्मजोशी से स्वागत किया. उन्होंने यहां कारोबार शुरू करना हमारे लिए बहुत आसान बना दिया और हमें बेहतरीन बुनियादी ढांचा और सुविधाएं दीं. यह अब हमारा प्रमुख केंद्र बन गया है.”
राज्य के बाकी हिस्सों से अलग, जहां खनन और इस्पात उद्योग हावी हैं, नवा रायपुर में प्रगलन (smelting) या भारी निर्माण जैसे प्रदूषण फैलाने वाले ‘रेड कैटेगरी’ उद्योगों की इजाज़त नहीं है. यही वजह है कि यहां औद्योगिक विकास की रफ्तार बाकी क्षेत्रों की तुलना में थोड़ी धीमी रही है.
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स्टील की अवस्था में सेमीकंडक्टर
नवा रायपुर में ‘सेमीकंडक्टर’ शब्द का ज़िक्र होते ही माहौल बदल जाता है. अधिकारियों की आंखों में चमक आ जाती है और उनके चेहरे पर गर्व साफ नज़र आता है — मानो उनकी मूंछें भी फख्र से तन जाती हों.
उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक है शहर के औद्योगिक क्षेत्र में सेमीकंडक्टर यूनिट की स्थापना. 1.5 लाख वर्ग फीट में फैले पॉलीमेटेक इलेक्ट्रॉनिक्स के इस प्लांट में 5G और 6G तकनीकों के लिए गैलियम नाइट्राइड चिप्स बनाए जाएंगे. 1,100 करोड़ रुपये से ज्यादा के निवेश के साथ इस यूनिट का लक्ष्य है कि वह 2030 से हर साल 10 अरब चिप्स का उत्पादन करे.
छत्तीसगढ़ राज्य औद्योगिक विकास निगम (CSIDC) के प्रबंध निदेशक विश्वेश कुमार ने कहा, “यह न केवल छत्तीसगढ़ के संचार क्षेत्र के लिए फायदेमंद है, बल्कि इससे बहुत सारे रोजगार भी पैदा होंगे.”

लेकिन सेमीकंडक्टर यूनिट केवल एक उदाहरण है. उनके मुताबिक, CSIDC ने अब तक 10 से ज़्यादा कंपनियों के साथ करीब 1,400 करोड़ रुपये के निवेश को लेकर समझौते किए हैं, जिनसे लगभग 37,500 नौकरियों के मौके बनने की उम्मीद है.
उन्होंने कहा, “अब हमारा फोकस फार्मा पार्क, टेक्सटाइल पार्क, फर्नीचर पार्क, एआई पार्क और सेमीकंडक्टर पार्क जैसे खास औद्योगिक ज़ोन बनाने पर है.”
यह अब तक के सुस्त औद्योगिक विकास से एक बड़ा मोड़ है. CSIDC के आंकड़े बताते हैं कि 2012 से 2024 के बीच नवा रायपुर में सिर्फ आठ विनिर्माण इकाइयां ही काम कर रही हैं.

विश्वेश कुमार मानते हैं कि नवा रायपुर में अब तक औद्योगिक विकास धीमा रहने की एक बड़ी वजह यह है कि यहां सिर्फ ग्रीन और ऑरेंज कैटेगरी वाले उद्योगों को ही मंजूरी दी जाती है. राज्य के बाकी हिस्सों में जहां खनन और स्टील जैसे भारी उद्योग खूब चलते हैं, वहीं नवा रायपुर में प्रगलन (smelting) या भारी निर्माण जैसे प्रदूषण फैलाने वाले रेड कैटेगरी उद्योगों की अनुमति नहीं है. कई कारोबारियों का मानना है कि इसी वजह से यहां उद्योगों की रफ्तार धीमी रही है.
इन सीमाओं के बावजूद, अधिकारी शहर को निवेशकों के लिए और अधिक आकर्षक बनाने के लिए काम कर रहे हैं. आठ निजी स्कूल और तीन अस्पताल पाइपलाइन में हैं और आवासीय और वाणिज्यिक भूखंडों पर निर्माण दिखाई दे रहा है.

सीएसआईडीसी के अधिकारी हैदराबाद, मुंबई, बेंगलुरु, सूरत और दूसरे सफल औद्योगिक शहरों का दौरा कर चुके हैं, ताकि वहां की अच्छी चीज़ें नवा रायपुर में अपनाई जा सकें. विश्वेश कुमार के मुताबिक, उनका सपना नवा रायपुर को सिर्फ भारत में ही नहीं, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी एक प्रतिस्पर्धी औद्योगिक शहर बनाना है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में चल रही राजनीतिक अस्थिरता से प्रभावित टेक्सटाइल कंपनियों को नवा रायपुर में आमंत्रित करना एक बड़ा मौका हो सकता है.
उन्होंने कहा, “हमारे पास महिलाओं की बड़ी वर्कफोर्स है. छत्तीसगढ़ की आधी आबादी महिलाएं हैं. इनमें से ज़्यादातर महिलाएं खेती से जुड़ी हैं, लेकिन कपड़ा उद्योग उन्हें ट्रेनिंग देकर रोजगार देने का एक अच्छा माध्यम बन सकता है.”
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) भी आशावादी है। CII के छत्तीसगढ़ चैप्टर की प्रमुख श्वेता सोंगेन ने कहा, “उद्योग-केंद्रित नीतियों की ओर तेज़ी से बदलाव आया है, और नवा रायपुर में व्यवसाय स्थापित करने की प्रक्रिया बहुत आसान हो गई है,” जो नवा रायपुर में निवेश करने के बारे में किसी भी आशंका को दूर करने के लिए निवेशक सम्मेलनों में राज्य के अधिकारियों के साथ गई हैं।
भारतीय उद्योग परिसंघ (CII) भी भविष्य को लेकर सकारात्मक है. CII की छत्तीसगढ़ चैप्टर प्रमुख श्वेता सोंगेन ने कहा, “यहां नीतियों में तेज़ी से बदलाव आया है, जो अब उद्योगों के हित में हैं. नवा रायपुर में बिज़नेस शुरू करना अब पहले के मुकाबले काफी आसान हो गया है. वे राज्य सरकार के अधिकारियों के साथ निवेशक सम्मेलनों में हिस्सा ले चुकी हैं, जहां उन्होंने नवा रायपुर में निवेश को लेकर लोगों की आशंकाएं दूर करने में मदद की.”

इमारतें मौजूद, लेकिन कोई हलचल नहीं
सिविल इंजीनियर बी आदि नारायण राव ने अखबार में एक विज्ञापन देखने के बाद नवा रायपुर में एक अपार्टमेंट खरीदा.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “विज्ञापनों और सरकारी ब्रोशर में यह शहर बहुत ही उम्मीदों भरा, खूबसूरत और भविष्य जैसा लग रहा था. इसी वजह से मैंने यहां एक अपार्टमेंट खरीदा.”
लेकिन 15 साल बाद, राव इस बात से नाराज़ हैं कि किए गए आधे वादे भी पूरे नहीं हुए. उनकी इमारत में दरारें आ गई हैं, रखरखाव का खर्च काफी ज्यादा है और शहर भी वैसा नहीं बना जैसा सोचा गया था.
सिर्फ चार विकसित सेक्टर और मनोरंजन के लिए बहुत कम जगह होने के कारण, निवासी अभी भी अपने आस-पास के नए निर्माण के अनुरूप शहर में हलचल का इंतज़ार कर रहे हैं.

यहां पार्क हैं, झील के किनारे सैर करने की जगहें भी हैं, लेकिन मॉल या मनोरंजन के लिए ज्यादा विकल्प नहीं हैं — बस एक मिराज सिनेमा है. नोश कैफे जैसी कुछ अच्छी जगहें तो सिर्फ पिछले साल ही शुरू हुई हैं. शहर का मुख्य लक्जरी ठिकाना मेफेयर लेक रिज़ॉर्ट है, जिसमें चार रेस्तरां हैं. झील के पास कुछ फूड ट्रक भी खड़े होते हैं, जो शहर के चौराहे के सबसे पास वाला एक छोटा-सा फूड ज़ोन बन गए हैं.
परिवहन को लेकर भी लोगों की एक पुरानी शिकायत है. यहां ऑटो और टैक्सी का किराया काफी महंगा है, जबकि सार्वजनिक बसों की संख्या बहुत कम है.
राव ने कहा, “प्राइवेट ऑटो बहुत ज़्यादा पैसे ले रहे हैं और रायपुर से आखिरी बस शाम 7:30 बजे है, जो बहुत जल्दी है.”
इस समय नवा रायपुर में करीब 5,000 आवासीय इकाइयां हैं, जिनमें से लगभग 70 प्रतिशत में लोग रह रहे हैं. मौजूदा सरकार ने अगले पांच सालों में 10,000 और घर बनाने का वादा किया है. इसके अलावा, 55 एकड़ में एक बड़ा वाणिज्यिक परिसर भी बनाया जाएगा, जिसे अगले सात वर्षों में पूरा करने की योजना है.
राज्य के अन्य लोगों का मानना है कि शहर तभी जीवंत होगा जब राजनीतिक वर्ग पूरी तरह से प्रतिबद्ध होगा. तब तक वह वहां नहीं जाएंगे.
रायपुर में रहने वाले एक रियल एस्टेट एजेंट ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “नवा रायपुर में हमारे लिए करने को कुछ खास नहीं है. वहां जाना भी काफी महंगा पड़ता है. सरकार को खुद पहल करनी होगी. जब मंत्री और बड़े अफसर वहां जाकर बसेंगे, तब लोग भी सोचेंगे.”
वहीं राव जैसे कुछ निवासियों को अब भी उम्मीद है. उन्होंने कहा, “किसी भी शहर को बनने में वक्त लगता है. शायद अगले 10 साल में ज़्यादा से ज़्यादा लोग यहां आकर बसने लगें.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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