नई दिल्ली: रौनक खत्री काले रंग की ऊंची घूमने वाली कुर्सी पर बैठे हैं, जिसके चारों ओर सत्ता के प्रतीक हैं. उनकी मेज के दोनों तरफ भारतीय तिरंगा है और नेमप्लेट पर उनका नाम चमक रहा है. इसमें जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय की सभी खूबियां हैं, लेकिन यह दिल्ली यूनिवर्सिटी स्टूडेंट यूनियन के 23-वर्षीय अध्यक्ष का दफ्तर है. खादी-डेनिम पहने हुए उग्र छात्र नेताओं के दिन अब लद गए हैं, जब वह माओ, मार्क्स और हो ची मिन्ह के नारे लगाते थे और पानी की बौछारों और पुलिस की लाठियों का सामना करते थे.
वे अपनी काली कांच की मेज पर रखी घंटी को बजाते हैं और बाहर काले चमड़े के सोफे पर बैठे एक दर्जन छात्र हरकत में आ जाते हैं. उनके हाथ में शिकायतों की एक लंबी लिस्ट है.
खत्री ने अपनी ग्रे नेहरू जैकेट जिसे उन्होंने सफेद शर्ट के साथ पहना है, ठीक करके हंसते हुए कहा, “इसे डीएम ऑफिस ही समझिए”.
सात साल बाद यूनिवर्सिटी में नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (एनएसयूआई) के सत्ता में लौटने के साथ ही नए अध्यक्ष जल्दी ही विवादों का चेहरा बन गए हैं. परीक्षा में देरी को लेकर ऑर्ट्स फैकल्टी के डीन को परेशान करने से लेकर कमला नगर में एक कैफे में घुसकर मालिक को हुक्का सर्विस बंद करने का आदेश देने और हाल ही में यूनिवर्सिटी के हॉस्टल के शौचालयों का औचक निरीक्षण करने तक, खत्री की छात्र राजनीति का अंदाज़ बिल्कुल दक्षिण भारतीय फिल्म जैसा है, जिसमें एक साहसी मर्दाना नायक है जो बदलाव लाने के लिए आक्रामक हाई-विजिबिलिटी वाले हाई-वॉल्यूम वाले कैंपेन का इस्तेमाल करता है और खत्री सभी मानदंडों पर खरे उतरते हैं: वे मुखर हैं, हिंदी में बोल्ड हरियाणवी लहज़े में बोलते हैं और उनके साथ लगातार आधा दर्जन पुरुषों की भीड़ होती है और जब वे सड़क पर होते हैं, तो पांच से छह एसयूवी और जीप का काफिला उनकी फॉर्च्यूनर के साथ चलता हैं.
थर्ड इयर के लॉ स्टूडेंट खत्री जेनज़ी प्रेसिडेंट हैं, जो रील की ताकत को जानते हैं. उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर 1.3 लाख फॉलोअर्स हैं, जिसे उनके दोस्त चलाते हैं जो एक राजनीतिक कंसल्टेंसी चलाते हैं. अकाउंट स्टूडेंट्स को उनकी रोज़ाना की गतिविधियों से अपडेट रखता है — कैंपस विजिट से लेकर कैंटीन में खाने की सुविधाओं की जांच करने से लेकर फ्री बुक कैंपेन और स्वच्छता पहल तक.
मैं सिर्फ गलत चीज़ों के खिलाफ आक्रामक हूं. अगर कोई प्रोफेसर शराब पीकर यूनिवर्सिटी में आता है और 60 से ज़्यादा छात्रों की परीक्षा में देरी करता है, तो क्या मुझे उससे नहीं लड़ना चाहिए?
रौनक खत्री, DUSU अध्यक्ष
उनके सभी वीडियो की शुरुआत में वे कहते हैं, “इंकलाब साथियों”. हर रील के पीछे एक दमदार बॉलीवुड गाना बजता है. चुनाव जीतने के बाद उनकी पहली पोस्ट में कैलाश खेर का गाना था — एक रावण का संघार किया. इसमें सिद्धू मूसेवाला, करण औजला और सुखविंदर सिंह जैसे पंजाबी सिंगर्स के गाने भी शामिल हैं. महाराजा सूरजमल — एक जाट शासक — की पुण्यतिथि पर रिकॉर्ड किए गए एक वीडियो में वे जाटों से एकजुट रहने और पार्टी लाइन के आधार पर विभाजित नहीं होने का आग्रह करते हैं. वीडियो में खशा आला चाहर का गाना जाट ड्रिप है. इसे 26.7K लाइक और एक हज़ार से ज़्यादा शेयर मिले हैं.
अपनी कलाई पर एप्पल वॉच, हाथ में आईफोन, डेस्क पर आईपैड और डेस्क पर रॉयल बंगाल टाइगर की मूर्ति के साथ खत्री दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्र राजनीति के प्रतीक हैं — पैसा, पावर और फेम.
DUSU चुनाव में 1,300 वोटों से जीत हासिल करने के बाद से दो महीनों में खत्री ने एक छात्र नेता की पहचान को टशन के आकार का रूप दे दिया है.
उन्होंने कहा, “मैं सिर्फ गलत चीज़ों के खिलाफ आक्रामक हूं. अगर कोई प्रोफेसर शराब पीकर यूनिवर्सिटी में आएगा और 60 से ज़्यादा छात्रों को प्रभावित करने वाली परीक्षा में देरी करवाएगा, तो क्या मुझे उसका सामना नहीं करना चाहिए?” उन्होंने आगे यह भी कहा, “प्रोफेसर ने माना कि वो नशे में था.”
उन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस में हंगामा मचा दिया है. एक और वीडियो में खत्री को अदिति कॉलेज के हॉस्टल में औचक निरीक्षण के लिए जाते हुए देखा जा सकता है. उनकी टीम उन्हें शौचालयों की खराब स्थिति को उजागर करते हुए रिकॉर्ड करती है. वे एक छात्रा से सैनिटरी पैड वेंडिंग मशीन को चैक करने के लिए भी कहते हुए दिखाई देते हैं, जो काम नहीं करती.
यह वीडियो 5 लाख से ज़्यादा लाइक, 2,000 से ज़्यादा कमेंट और 69,000 शेयर के साथ वायरल हो गया. कैप्शन में लिखा है, “Your President, Your Voice”. एक टिप्पणी में लिखा है, “भाई ने सिस्टम हिला के रखा है.”
उनके समर्थक उनके इस साहसिक दृष्टिकोण की तारीफ करते हैं, प्रोफेसरों का कहना है कि दिल्ली यूनिवर्सिटी में अति-पुरुषवादी राजनीति का उदय तेज़ी से हो रहा है और उनका कहना है कि नए अध्यक्ष भी अपवाद नहीं हैं.
मिरांडा हाउस की एसोसिएट प्रोफेसर आभा देव हबीब ने कहा, “संघवाद का मतलब है अपने अधिकारों को अभिव्यक्त करना और रचनात्मक तरीके से बड़े मुद्दों के लिए लड़ना, लेकिन हम जो देख रहे हैं वह कैंपस में पुरुषवादी राजनीति का उदय है और इसकी शुरुआत रौनक से नहीं हुई — यह कुछ साल पहले शुरू हुई थी, लेकिन वह निश्चित रूप से इसकी उपज हैं.”
दिल्ली यूनिवर्सिटी लंबे समय से अरुण जेटली, अजय माकन और शशि थरूर जैसे राष्ट्रीय नेताओं के लिए लॉन्च पैड रहा है. फिर जेएनयू से उमर खालिद, शेहला राशिद और कन्हैया कुमार जैसे छात्र नेताओं का एक दशक आया. हालांकि, हबीब का तर्क है कि आज की छात्र राजनीति उस तरह की राजनीति से काफी अलग है जो कभी नेताओं को बनाने में काम आती थी.
हबीब ने निराशा जताते हुए कहा, “रौनक जो दिखा रहे हैं, वह यह है कि वह बिना किसी बातचीत के किसी भी प्रोफेसर से भिड़ने और उन्हें पीटने के लिए तैयार हैं. हमें लगा कि हम एबीवीपी की राजनीति की शैली से अलग हो गए हैं और बदलाव आएगा, लेकिन दुर्भाग्य से, हम उसी तरह की राजनीति देख रहे हैं.”
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यूनिवर्सिटी एक देश के जैसी
6 जनवरी को खत्री छात्रों के एक समूह को आर्ट्स फैकल्टी के डीन अमिताव चक्रवर्ती के कार्यालय में ले गए. उन्होंने डीन का फोन छीन लिया, क्योंकि वे किसी को फोन करने की कोशिश कर रहे थे और उनकी शैक्षणिक योग्यता पर सवाल उठाया. उन्होंने पूछा, “आप डीन कैसे बन गए? आपको डीन किसने बनाया? किसके तलवे चाटके आप यहां पहुंचे?”, जबकि छात्र चुपचाप खड़े होकर सुन रहे थे.
घंटों बाद डीन ने इस्तीफा देते हुए कहा कि “यह शारीरिक रूप से खतरनाक माहौल था…मुझ पर इस्तीफा देने का बहुत दबाव था, क्योंकि छात्र शांत होने को तैयार नहीं थे.” खत्री और डीन के बीच कमरे में जो कुछ हुआ, उसके बारे में अलग-अलग बातें जंगल में आग की तरह फैल गईं, जिससे नवनिर्वाचित DUSU अध्यक्ष की साख और मजबूत हो गई. अब, उनके कार्यालय में हमेशा छात्रों की भीड़ लगी रहती है. कुछ छात्र शिकायत दर्ज कराना चाहते हैं, जबकि अन्य नए अध्यक्ष के साथ फोटो खिंचवाना चाहते हैं.
रौनक जो दिखा रहे हैं, वह यह है कि वह बिना किसी बातचीत के किसी भी प्रोफेसर से भिड़ने और उन्हें पीटने के लिए तैयार हैं. हमें लगा कि हम ABVP की राजनीति की शैली से अलग हो गए हैं
— आभा देव हबीब, एसोसिएट प्रोफेसर, मिरांडा हाउस
बिहार से आई 18-वर्षीय साक्षी ने अगस्त में हंसराज कॉलेज में दाखिला लिया. दिल्ली यूनिवर्सिटी में अपने छह महीने के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने खुद को कई समस्याओं से जूझते हुए पाया — ज्यादातर उनके रहने से जुड़ी. आखिरकार, पिछले महीने, उन्होंने मदद के लिए खत्री के दरवाज़े पर दस्तक दी.
उन्हें “बहन” कहकर बुलाते हुए, खत्री, जो अपना दोपहर का समय DUSU कार्यालय में बिताते हैं, साक्षी की शिकायतें लिखी: एक पीजी मालिक ने उनकी सिक्योरिटी मनी वापस करने से इनकार कर दिया, खाने में कॉकरोच थे और पुलिस ने उनकी शिकायतों पर कार्रवाई नहीं की.
खत्री ने तुरंत स्टेशन हाउस ऑफिसर (एसएचओ) को फोन किया. खत्री ने फोन रखने से पहले कहा, “मैं DUSU का अध्यक्ष हूं. मेरे साथी छात्र आपके पास आ रहे हैं, सर. आपने एफआईआर दर्ज की, लेकिन कोई कार्रवाई नहीं की. क्या आप चाहते हैं कि मैं आपके उच्च अधिकारियों को फोन करूं?”
फिर वे साक्षी की ओर मुड़े और उन्हें आश्वस्त किया, “मैं अपने दोस्त को फोन कर रहा हूं. वो आपके साथ पीजी तक जाएगा और आपका काम हो जाएगा.” उन्हें एक कागज़ थमाते हुए उन्होंने कहा, “मुझे अपनी शिकायत लिखित में दीजिए और मैं उस पर साइन कर दूंगा.”
दफ्तर में इंतज़ार कर रहे छात्र खत्री को हैरानी से देखते हैं.
यूनिवर्सिटी अपने आप में एक देश के जैसी है और एक छात्र अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे उन हज़ारों छात्रों के लिए मौजूद रहें जो किसी भी समय उनके कार्यालय में आ सकते हैं
— रौनक खत्री
हर दिन छात्र खत्री के कार्यालय में वाटर कूलर, बेहतर शौचालय और एक्स्ट्रा स्पोर्ट्स इक्विपमेंट से लेकर फीस वृद्धि के विरोध तक की मांगों को लेकर आते हैं.
बतौर लॉ स्टूडेंट खत्री का समस्या के प्रति नज़रिया उनकी लॉ ट्रेनिंग में बसा है.
शिकायत लेकर आने वाले हर छात्र से उन्होंने कहा, “सबसे पहले, सबूत के तौर पर फैकल्टी ईमेल भेजिए. फैकल्टी को जवाब देने के लिए एक हफ्ते का वक्त दें. कॉल करके फॉलो अप करें. अगर फिर भी कार्रवाई नहीं होती है, तो हम विरोध करेंगे और DUSU प्रेसिडेंट आपके साथ हैं.”
हर दो घंटे में, खत्री आराम करने, मैसेज का जवाब देने और एक गर्म कप कॉफी का आनंद लेने के लिए 15 मिनट का ब्रेक लेते हैं. उनके साथ उनके छोटे भाई बैठे हैं, जिन्होंने हाल ही में दिल्ली यूनिवर्सिटी से बी.कॉम की डिग्री ली है, जो खत्री के बिजी शेड्यूल को बखूबी मैनेज करते हैं.
खत्री ने कहा, “यूनिवर्सिटी अपने आप में एक देश के जैसी है और एक छात्र अध्यक्ष को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वे उन हज़ारों छात्रों के लिए मौजूद रहें जो किसी भी समय उनके कार्यालय में आ सकते हैं.”
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सोचा-समझा फैसला
खत्री आधिकारिक तौर पर 2024 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की छात्र शाखा, नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया (NSUI) में शामिल हो गए और कुछ ही महीनों में, वे DUSU चुनावों के लिए अध्यक्ष पद के उम्मीदवार बन गए. एक व्यवसायी के बेटे, खत्री नरेला में रहते हैं और अपनी काली फॉर्च्यूनर कार से यूनिवर्सिटी जाते हैं.
चाहे जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU), DU हो या बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी, छात्र संघ का अध्यक्ष बनना हमेशा प्रतिष्ठा और प्रभाव से जुड़ा रहा है. यही कारण है कि जब खत्री ने चुनाव जीता, तो वे अपने माता-पिता को अपने कार्यालय में लाए और अपनी मां को अपनी कुर्सी पर बैठाया. यह उनकी लंबी राजनीतिक यात्रा का पहला कदम था.
खत्री 10वीं कक्षा में थे, जब उन्होंने अपने चाचा के लिए भाषण लिखना शुरू किया, जो नरेला विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे थे. इसने राजनीति में उनकी रुचि जगाई.
NSUI को चुनने के लिए उन्हें केवल विचारधारा ही नहीं बल्कि महत्वाकांक्षा भी प्रेरित करती है. उन्होंने कहा कि यह एक सोचा-समझा फैसला था. एबीवीपी और लेफ्ट कट्टर हैं और AAP अभी इतनी बड़ी पार्टी नहीं है.
उन्होंने कहा, “एबीवीपी या लेफ्ट में कोई स्वतंत्रता नहीं है; वह केंद्रीय नेताओं के आदेशों का पालन करने वाली कठपुतली हैं. एनएसयूआई में हस्तक्षेप कम है और यह एक राष्ट्रीय पार्टी है. जब तक मैं मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करूंगा, तब तक कांग्रेस सत्ता में वापस आ चुकी होगी.”
अन्य छात्र नेताओं की तरह खत्री भी राष्ट्रीय राजनीतिज्ञ बनने का सपना संजोए हुए हैं. उन्होंने कहा, “अगले दस साल में मैं खुद को दिल्ली का मुख्यमंत्री बनते हुए देखता हूं.”
इन दिनों वे नई दिल्ली में कांग्रेस के लिए प्रचार कर रहे हैं. पार्टी अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे, पार्टी कोषाध्यक्ष अजय माकन, सांसद दीपेंद्र हुड्डा, राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट और एनएसयूआई अध्यक्ष वरुण चौधरी सहित कांग्रेस नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. इनमें से ज्यादातर तस्वीरें खत्री के डूसू अध्यक्ष बनने के बाद खींची गई हैं.
एबीवीपी या लेफ्ट में कोई स्वतंत्रता नहीं है; वह केंद्रीय नेताओं के आदेशों का पालन करने वाली कठपुतली हैं. एनएसयूआई में हस्तक्षेप कम है और यह एक राष्ट्रीय पार्टी है. जब तक मैं मुख्यधारा की राजनीति में प्रवेश करूंगा, तब तक कांग्रेस सत्ता में वापस आ चुकी होगी
— रौनक खत्री
वे खुद को “कांग्रेस का सिपाही” बताते हैं और कांग्रेस के लिए वे एक उभरते हुए नेता हैं, जिन्होंने दिल्ली यूनिवर्सिटी की राजनीति में पार्टी की वापसी तय की है.
जबकि वे छात्र कल्याण के मुद्दों को सक्रिय रूप से उठाते हैं, वे सांप्रदायिकता, विनिवेश, इज़रायल-हमास युद्ध जैसे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों से खुद को दूर रखते हैं. उनकी चिंता कैंपस में एयर कंडीशनर, मेस में खाने की क्वालिटी और शौचालयों के ठीक रखरखाव से जुड़ी है.
पिछले 15 साल से यूनिवर्सिटी में पढ़ा रहे एक प्रोफेसर ने खत्री की राजनीति के ब्रांड को “ग्लैमर की राजनीति” कहा, जब वे दीवार पर खत्री के पोस्टर के साथ एक दुकान के पास चाय की चुस्की ले रहे थे.
“यूनिवर्सिटी की राजनीति का ऐसा आकर्षण है कि छात्र बड़े सपने देखने लगते हैं.”
उन्होंने रुककर कहा, “लेकिन अगर आप बारीकी से देखें, तो पिछले कुछ वर्षों में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कोई बड़ा नेता नहीं निकला है. हमें इस पर सवाल उठाने की ज़रूरत है.”
उन्होंने हंसते हुए कहा, “यहां राजनीति ग्लैमर में खो गई है, ज़मीनी काम से दूर जा रही है. ये तथाकथित छात्र नेता स्कॉर्पियो, बीएमडब्ल्यू और मर्सिडीज चलाते हैं.”
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सोशल मीडिया का इस्तेमाल
अपने 2024 के DUSU चुनाव अभियान के दौरान, खत्री ने भीषण गर्मी के दौरान पूरे कैंपस में पानी के बर्तन रखने के लिए “मटका मैन” का नाम कमाया. उन्होंने कैंपस में पानी के संकट को दूर करने के लिए अदालत में याचिका भी दायर की और कहा कि यही कारण है कि उन्हें चुनाव में जीत मिली.
खत्री ने कहा, “ABVP और अन्य छात्र संगठनों के लिए पानी एक मामूली मुद्दा है, लेकिन वह यह नहीं समझ पाते कि पानी एक बुनियादी ज़रूरत है. यह शर्मनाक है कि हमें इतनी बुनियादी चीज़ के लिए भीख मांगनी पड़ रही है और लड़ना पड़ रहा है.”
लेकिन पानी उनकी जीत का अकेला फैक्टर नहीं है. सोशल मीडिया पर उनकी पहुंच ने भी अहम भूमिका निभाई है. खत्री ने छात्रों तक पहुंचने के लिए अपने Facebook और Instagram अकाउंट का इस्तेमाल किया. उनकी रील्स उनकी चिंताओं पर बात करने से जुड़ी थीं. खत्री ने सोशल मीडिया पर महत्वपूर्ण फॉलोइंग वाले बाकी नेताओं से अलग खड़े होने का तरीका यह था कि उन्होंने इन प्लेटफॉर्म का सही इस्तेमाल कैसे किया.
DUSU अध्यक्ष बनने के बाद एक वीडियो में खत्री ने किशोरों के बीच बढ़ते हुक्का कल्चर पर बात की. एक औचक निरीक्षण के दौरान, वे और उनकी टीम हडसन लेन में एक हुक्का कैफे में गए और वहां युवा किशोरों को धूम्रपान करते हुए पाया. बाद में उन्होंने डीसीपी से मुलाकात की और “स्मॉकिंग फ्री कैंपस” की मांग करते हुए पत्र जारी किए.
वीडियो में सस्पेंस वाला बैकग्राउंड स्कोर है, जैसे कि खत्री आधी रात को छापेमारी करने वाले पुलिस अधिकारी हों. इसे 20,000 से ज़्यादा लाइक, 427 कमेंट और 3,000 से ज़्यादा शेयर मिले. कमेंट में था, “इस अध्यक्ष की DUSU में सालों से ज़रूरत थी, अच्छी पहल”.
एक दूसरे वीडियो में खत्री एक हेड कांस्टेबल पर चिल्लाते हुए नज़र आ रहे हैं, “तेरी नौकरी नहीं छुड़वा दी तो…”. क्लिप में, उन्होंने पुलिस को हुक्का पार्लरों के खिलाफ कार्रवाई करने की चेतावनी दी. वीडियो को 74,000 लाइक और 7000 शेयर मिले.
पिछले कुछ साल में दिल्ली यूनिवर्सिटी से कोई बड़ा नेता नहीं निकला है. हमें इस पर सवाल उठाना चाहिए, यहां राजनीति ग्लैमर में खो गई है
— डीयू प्रोफेसर
खत्री ने दिप्रिंट से कहा, “आजकल हर किसी के पास फोन है, तो क्या यह सही नहीं है कि उन तक उस प्लेटफॉर्म के जरिए पहुंचा जाए जिसका वो सबसे ज्यादा इस्तेमाल करते हैं? मैंने कैंपेन के दौरान सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया और मैं छात्रों को अपनी पहल के बारे में अपडेट करने के लिए इसका इस्तेमाल करता रहूंगा.”
विपक्षी छात्र संगठन एबीवीपी इस बात से सहमत है कि खत्री ने छात्रों तक पहुंचने के लिए सोशल मीडिया का चतुराई से इस्तेमाल किया, लेकिन उनका कहना है कि उनके वादे और प्रसिद्धि ज़मीन पर नहीं उतरी.
एबीवीपी से जुड़े फर्स्ट इयर के स्टूडेंट ने कहा, “चुनाव अभियान के दौरान खत्री सोशल मीडिया पर मशहूर हो गए, लेकिन उनके वादे ज़मीन पर नहीं दिख रहे. उन्होंने कैंपस में पानी की सुविधा का वादा किया था. अभी भी पानी नहीं है.”
खत्री से हारने वाले एबीवीपी के अध्यक्ष पद के उम्मीदवार ऋषभ चौधरी के इंस्टाग्राम पर 21,500 फॉलोअर्स हैं, जबकि खत्री के 1,30,000 फॉलोअर्स हैं. दिल्ली यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट्स ने कहा कि खत्री की जीत के बाद एबीवीपी की डीयू शाखा ने भी सोशल मीडिया का अच्छे से इस्तेमाल करना शुरू कर दिया है.
खत्री जानते हैं कि सोशल मीडिया पहल ही कारगर है और वे विभिन्न कॉलेजों के अध्यक्षों को भी ऐसा करने के लिए प्रोत्साहित करते हैं.
खत्री ने भास्कराचार्य कॉलेज की एबीवीपी अध्यक्ष को निर्देश दिया, “हमारे कैंपस में ‘मेरा कॉलेज, मेरा सुझाव’ शुरू कीजिए और मुझे अपने कॉलेज की दिक्कतों की लिस्ट दीजिए.”
बैठक के बाद, जब वे जाने के लिए खड़ी हुईं, तो उन्होंने कहा, “मैडम, मैं जानता हूं कि हम अलग-अलग छात्र संघों से हैं, लेकिन हमें हमारे काम के लिए चुना गया है. काम के दौरान मतभेदों को भूल जाइए.”
लेकिन हर कोई इस बात पर आश्वस्त नहीं है कि खत्री वह क्रांति लाएंगे जिसका वे वादा करते हैं. संविधान पर शोध कर रहे एक पीएचडी स्कॉलर ने सवाल उठाया कि क्या खत्री की बड़ी योजनाओं के लिए एक साल काफी है.
एक प्रोफेसर ने हंसते हुए कहा, “कुछ और महीने, एक और चुनाव और रौनक को बदल दिया जाएगा. छात्र अभी भी बुनियादी ज़रूरतों — पानी, शौचालय, खाने के लिए संघर्ष कर रहे होंगे. कोई दूसरा प्रेसिडेंट आएगा, ऐसे ही वादे करेगा और हम फिर से इस चक्र से गुज़रेंगे. इस बीच, हम लोकतंत्र का पाठ पढ़ाते रहेंगे.”
(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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