नई दिल्ली: द्वारका में एक EV चार्जिंग स्टेशन के भीड़भाड़ वाले ऑफिस में फोन लगातार बज रहा है, कांच का दरवाज़ा बार-बार खुल रहा है और लोग ऐसे अंदर आ रहे हैं जैसे कोई फ्लैश सेल चल रही हो. तीन लाख रुपये से कम कीमत में मिलने वाली पुरानी ब्लूस्मार्ट इलेक्ट्रिक कारें दिल्ली-NCR की नई दीवानगी बन गई हैं.
यह कारों की बिक्री कम और शादी का बाजार ज़्यादा लगता है, जहां हर कार को खामियों, उम्र और बीते अनुभवों के हिसाब से परखा जा रहा है – “माइलेज कितना है? कितने साल की है? एक्सीडेंट तो नहीं हुआ?”
कुछ ग्राहक पटना जैसे दूर-दराज़ के इलाकों से उम्मीदों के साथ आते हैं, लेकिन नो-ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (NOC) की कागज़ी झंझटों से निराश हो जाते हैं. कुछ लोग कारें थोक में खरीदना चाहते हैं, लेकिन स्क्रैच और घिसी हुई सीटों को देखकर नाक सिकोड़ लेते हैं.
डीलर्स कॉल्स, चाय और भीड़ समेत सब कुछ संभालते हैं.
अप्रैल में एक बड़े फाइनेंशियल फ्रॉड के कारण ब्लूस्मार्ट के अचानक बंद होने के बाद इन पुरानी EVs की बाढ़ आ गई है. यह अब एक अनोखा सोशल मीडिया ट्रेंड बन गया है. यूट्यूब शॉर्ट्स और इंस्टाग्राम रील्स में क्रिएटर्स नीलामी और कार लॉट्स को दिखा रहे हैं, और दावा कर रहे हैं कि पहले 10 लाख से ज़्यादा की EVs अब 50,000 रुपये में मिल रही हैं. ये वायरल वीडियो ग्राउंड रिपोर्ट्स, मोलभाव और पुरानी टैक्सियों की सैर के साथ एक तमाशा बन गए हैं.
एक ग्राहक ने कार लॉट में खुद को फिल्माते हुए और बताया कि उसके दोस्त को 2.5 लाख रुपये में शानदार डील मिली: “कंपनी बंद हो गई और Tigor EV फूटकर में बेच रहे हैं.”

इन वायरल वीडियोज़ के पीछे एक नया बिजनेस मॉडल है जो ज़रूरत से पैदा हुआ है. बड़ी लीजिंग कंपनियां, प्राइवेट लेंडर्स, छोटे फ्लीट ऑपरेटर्स और यहां तक कि प्रतिद्वंद्वी टैक्सी स्टार्टअप्स ब्लूस्मार्ट से कारें वापस ले रहे हैं और उन्हें बड़ी संख्या में बेच रहे हैं. कुछ को Evera और Everest Fleet जैसे प्रतिद्वंद्वियों ने अपनाया है. बाकी छोटी कंपनियों, गिग ड्राइवर्स या पर्यावरण के प्रति जागरूक खरीदारों द्वारा खरीदी जा रही हैं जो दिल्ली के क्लीन-एयर फ्यूचर के लिए सस्ती गाड़ी की तलाश में हैं.
हालांकि भारी छूट के बावजूद, ज़्यादातर कारों की कीमत लगभग 2.95 लाख रुपये है — जो सोशल मीडिया पर चल रहे 50,000 रुपये के “फायर-सेल” दावों से काफी दूर है.
“बाकी सबकी तरह मैं भी यूट्यूब शॉर्ट्स और इंस्टाग्राम रील्स देखकर यहां आया था, ये देखने कि क्या सच में इतनी सस्ती गाड़ियां बिक रही हैं. कुछ यूट्यूबर्स यहां वीडियो शूट कर रहे थे — मैं भी उन्हें देखकर आया. लेकिन उन्होंने कहा कि गाड़ियां 70,000 रुपये में बिक रही हैं, जो शायद सिर्फ क्लिकबेट था,” दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्र प्रशांत ने कहा, जो आखिरकार एक कार खरीद ही लिया.
कभी भारत के ग्रीन मोबिलिटी आइकन माने जाने वाले ब्लूस्मार्ट के को-फाउंडर्स — अनमोल सिंह जग्गी, पुनीत सिंह जग्गी और पुनीत के गोयल — ने जब 2019 में कंपनी लॉन्च की थी तो शहरी परिवहन के नियम बदल दिए थे. इसकी ऑल-इलेक्ट्रिक टैक्सियां दिल्ली-एनसीआर में दौड़ रही थीं और स्टार इन्वेस्टर्स व सेलेब्रिटीज जैसे दीपिका पादुकोण ने इसका समर्थन किया था. ब्लूस्मार्ट के ज़्यादातर वाहन जेनसोल— एक और कंपनी जो जग्गी भाइयों की ही थी — के जरिए फाइनेंस किए गए थे, जिसने कर्ज़ लेकर EVs खरीदीं और फिर उन्हें ब्लूस्मार्ट को लीज पर दिया. लेकिन कंपनी के ढहते ही लेंडर्स और लेसर्स ने तेज़ी से कार्रवाई करते हुए 8,000 की कुल फ्लीट में से लगभग 5,000 EVs जब्त कर लीं और नीलामी में बेच दीं.
“आठ हजार कारें सुनने में ज़्यादा लग सकती हैं, लेकिन 42 लाख की कार मार्केट में यह सिर्फ एक बूंद है,” ऑटो एनालिस्ट अनुराग विजय ने कहा. “इस गिरावट ने उन खामियों को उजागर कर दिया है जिनका फायदा जेनसोल और ब्लूस्मार्ट उठा रहे थे.” उन्होंने यह भी कहा कि रीसेल की होड़ लाज़मी थी, क्योंकि कोई भी कंपनी इन गाड़ियों को दोबारा लीज़ पर लेने या बड़ी संख्या में खरीदने को तैयार नहीं थी, क्योंकि ये पहले ही भारी माइलेज ले चुकी थीं.
हाइप बनाम हकीकत
आशीष कुमार, 46, जो पश्चिम विहार से द्वारका आए थे, एक निजी EV खरीदने की उम्मीद में, उन्होंने 20-25 प्रदर्शित कारों में से एक को ध्यान से देखा, डेंट्स, स्क्रैच और घिसी हुई सीटों का निरीक्षण किया. उन्होंने अफसोस के साथ सिर हिलाया.
उन्होंने कहा और वहां से चले गए, “यहां की हालत देखकर लग नहीं रहा कि कार लेने लायक है. यूट्यूब पर तो बहुत बेहतर लग रही थी. अब लेने का मन नहीं है.”
उनके लिए 2.95 लाख रुपये की कीमत सोशल मीडिया पर दिखाए गए पैसा वसूल हाइप के बराबर नहीं थी. हर कार की डील एक जैसी थी—सभी 2022 की Tata Tigor EVs, जिनके ओडोमीटर पर 1.5 से 2 लाख किलोमीटर तक का आंकड़ा था. मोलभाव की कोई गुंजाइश नहीं थी.
पश्चिमी दिल्ली के लक्ष्मी नगर से आए फ्लीट ऑपरेटर विशाल चौहान ने कई वाहन खरीदने की योजना बनाई थी, लेकिन जब उन्होंने गाड़ियां देखीं, तो उन्हीं शंकाओं से जूझते नज़र आए.

“इन गाड़ियों को देखकर नहीं लगता कि इनमें निवेश करना चाहिए। मैं 3 लाख में एक नई गाड़ी फाइनेंस करवा सकता हूं। ये पूरी तरह से घिस चुकी हैं. अगर अब मेंटेनेंस में पैसे लगेंगे, तो क्या फायदा?”
लेकिन वकील दिबाकर भारद्वाज के लिए यह डील ब्रेकर नहीं थी. उन्होंने एक महीना पहले एक पुरानी ब्लूस्मार्ट ईवी खरीदी और अब ऑफिस आने-जाने के लिए इसका इस्तेमाल करते हैं. उसी Tigor EV का नया वर्जन उन्हें करीब 14 लाख रुपये में पड़ता. ब्लूस्मार्ट का लोगो हटाया जा चुका था और गाड़ी चलने के लिए तैयार थी.
“गाड़ी बहुत अच्छे से चल रही है. सिर्फ 10% बैटरी खपत में करीब 17 से 18 किलोमीटर देती है,” भारद्वाज ने कहा, जो इसे या तो घर पर या नज़दीकी पब्लिक स्टेशन पर चार्ज करते हैं.
EVs की कीमत आम पेट्रोल-डीजल कारों से तेज़ी से गिरती है — और टैक्सियों की तो और भी ज़्यादा. ये हाई-माइलेज गाड़ियां थीं, जिनका इस्तेमाल आमतौर पर मालिकों ने नहीं किया था. तो अगर अब ये इतनी सस्ती बिक रही हैं, तो ये मार्केट रियलिटी को दिखाता है.
ब्लूस्मार्ट के बंद होने के बाद कई गाड़ियां लगभग चार महीने तक बिना उपयोग के खड़ी रहीं. तीसरे पक्ष के फ्लीट ऑपरेटरों ने हाई-माइलेज EVs को लीज़ पर लेने से इनकार कर दिया, जिससे कंपनी ने इन्हें सीधे आम जनता को बेचना शुरू किया — और कुछ मामलों में अपने पूर्व ड्राइवर्स को भी. कुछ गाड़ियां दिल्ली के यूज़्ड-कार डीलरों ने ले लीं और अपनी दुकानों के ज़रिए बेचीं, जबकि कुछ गुड़गांव पहुंच गईं.
“हज़ारों EVs महीनों तक बेकार खड़ी थीं,” द्वारका EV चार्जिंग स्टेशन के मालिक सुरेन्द्र यादव ने कहा, जहां अब ज़्यादातर ब्लूस्मार्ट कारें बेची जा रही हैं. “हमने इनमें बेसिक रिपेयर किया है और उनके असली मालिकों — फ्लीट फाइनेंसरों और लेसर्स — को इन्हें दोबारा बेचने में मदद कर रहे हैं.”
कई ग्राहक बार-बार पूछते रहे, यह इशारा करते हुए कि शायद कहीं और अच्छी गाड़ियां छिपी हैं, लेकिन यादव की पत्नी दिव्या शर्मा, जो ग्राहक पूछताछ संभालती हैं, उन्हें सीधे जवाब देती हैं.
उनका हर बार एक ही जवाब होता: “यही गाड़ियां हैं हमारे पास, और सभी की हालत एक जैसी है. एक बार फुल चार्ज हो जाए, तो करीब 135 किलोमीटर चलेगी — जहां ले जाना है ले जाइए.”
क्यों सस्ती होती हैं यूज़्ड EVs
प्रशांत के लिए सेकंड हैंड ईवी खरीदने का सफर उतार-चढ़ाव से भरा रहा.
अपने दोस्तों के साथ पहली बार जब वो द्वारका EV लॉट पहुंचे, तो बिना खरीदे लौट गए.
DU छात्र ने याद किया, “मेरे दोस्तों ने कहा, ‘थोड़ा और खर्च कर लो, तो एक ढंग की गाड़ी मिल जाएगी जो एक साल चल जाए. ये मत लो.'”
लेकिन तीन दिन बाद, प्रशांत अकेले लौटे, इस बार पूरी रिसर्च के साथ. उन्होंने सेकंड-हैंड मार्केट की गहराई से तुलना की, कीमतें देखीं, विकल्पों को तौला और अपना बजट देखा. इससे उनका मन बदल गया और उन्होंने डील फाइनल कर दी.
“मुझे बस एक-आध साल के लिए गाड़ी चाहिए जब तक मैं कॉलेज में हूं. और मैं ज़्यादातर दिल्ली में ही चलाऊंगा, तो ये मेरे लिए सही है,” उन्होंने कहा. “मेरे बजट में आमतौर पर पुरानी पेट्रोल कारें आती हैं जिनमें मेंटेनेंस ज़्यादा है. ये इलेक्ट्रिक कार सस्ती चलती है. पूरी परफेक्ट नहीं है, लेकिन मेरी ज़रूरत और बजट के हिसाब से फिट है.”
EVs की कीमतें तेज़ी से गिरती हैं क्योंकि बैटरी खराब होती है, रीसेल की डिमांड कम होती है, टेक्नोलॉजी जल्दी पुरानी हो जाती है और इस मामले में तो भारी कमर्शियल इस्तेमाल भी हुआ है.
“EVs की कीमत पेट्रोल गाड़ियों से ज़्यादा गिरती है — टैक्सी तो और भी तेज़,” विजय ने कहा. “ये हाई-माइलेज गाड़ियां थीं जिनका इस्तेमाल मालिकों ने नहीं किया. इसलिए अगर ये इतनी सस्ती बिक रही हैं, तो ये मार्केट रियलिटी को दिखाता है.”
ब्लूस्मार्ट कारों की ज़िंदगी और उसके बाद
सुरेंद्र यादव और उनकी पत्नी दिव्या कई हफ्तों से थक कर चूर हो चुके हैं. लोग लगातार कॉल करते हैं और उनका दिन बैंकों के चक्कर लगाकर बीतता है ताकि ग्राहकों के लिए NOC मिल सके. जैसे ही कोई अंदर आता है, वे ऑटोमोड में चले जाते हैं — रन-टाइम, माइलेज, कंडीशन और कीमत गिनाना शुरू कर देते हैं.
बाहर, उनका चार्जिंग स्टेशन पूरी तरह भर गया है. EVs चुपचाप कतारों में खड़ी हैं, चार्ज लेते हुए उनकी हेडलाइट्स जलती-बुझती हैं. यहां तक कि उनका घर भी अस्थायी पार्किंग यार्ड बन चुका है, हर कोना कारों से भरा है जो नई ज़िंदगी के इंतज़ार में हैं. पिछले एक महीने में ही उन्होंने 1,000 से ज़्यादा ब्लूस्मार्ट EVs बेच दी हैं.
लेकिन यादव का ब्लूस्मार्ट से रिश्ता यहीं शुरू नहीं हुआ था. 2019 में जब यादव एक स्ट्रैटेजी और मार्केटिंग कंसल्टेंट थे, तब जग्गी भाइयों ने उनसे मदद मांगी. यह ब्लूस्मार्ट के नाम बनने से पहले की बात थी.
यादव ने बताया, “तब मैंने उन्हें लाइसेंसिंग से लेकर लोकेशन स्ट्रैटेजी और स्केलिंग प्लान्स तक की सलाह दी थी. दिल्ली में ब्लूस्मार्ट को कैसे आगे बढ़ाना है.”

सब कुछ तेजी से आगे बढ़ रहा था जब कोविड-19 ने सब रोक दिया. फिर भी ब्लूस्मार्ट बंद नहीं हुई. जेनसोल— जग्गी भाइयों की 2007 में बनी गुजरात बेस्ड रिन्यूएबल एनर्जी और EV कंपनी — ने लोन लेकर, गाड़ियां खरीदकर और उन्हें ब्लूस्मार्ट को लीज़ पर देकर इसे बचाया. चार्जिंग स्टेशन बनाए गए जिनमें सैकड़ों गाड़ियों की जगह थी, और दुबई तक एक्सपैंड करने के प्लान थे.
शुरुआत से ही मॉडल साफ था: यह स्केल का खेल था. ब्लूस्मार्ट को अपने नंबर सही रखने के लिए कम से कम 500–700 गाड़ियों को लगातार दौड़ाना होता था.

ब्लूस्मार्ट की शुरुआत में कार लीज़ मॉडल पर थी. जेनसोल ने महिंद्रा और टाटा मोटर्स जैसी कंपनियों से EVs खरीदीं और फिर उन्हें ब्लूस्मार्ट को मल्टी-ईयर एग्रीमेंट्स पर लीज़ पर दिया. इससे ब्लूस्मार्ट बिना भारी पूंजी निवेश के फ्लीट और ऑपरेशन्स बढ़ा सका. बाद में ब्लूस्मार्ट ने “Assure by BluSmart” प्रोग्राम के जरिए अपने लीज़िंग पार्टनर्स का दायरा बढ़ाया — जिसमें इंडिविजुअल्स से लेकर फैमिली बिज़नेस और ग्रीन फाइनेंस इंस्टिट्यूशन्स तक शामिल थे.

दीपिका पादुकोण, एमएस धोनी और संजीव बजाज जैसे शुरुआती समर्थकों ने ब्लूस्मार्ट में भरोसा जताया और इसकी ग्रोथ ने संस्थागत निवेशकों को आकर्षित किया. महिंद्रा फाइनेंस, आईसीआईसीआई और एचडीएफसी बैंक जैसे फाइनेंसिंग पार्टनर्स ने लीज़िंग अरेंजमेंट्स के ज़रिए फ्लीट को बढ़ाने में मदद की. 2023 में, पावर फाइनेंस कॉर्पोरेशन ने जेनसोल को ब्लूस्मार्ट की EVs के लिए 633 करोड़ रुपये का लोन दिया.
यादव के अनुसार, ऑपरेशंस को आसान बनाने के लिए ब्लूस्मार्ट ने अपने बिज़नेस को अलग-अलग हिस्सों में बांट दिया: ब्लूस्मार्ट मोबिलिटी (फ्लीट ऑपरेशन), ब्लूस्मार्ट चार्ज (इंफ्रास्ट्रक्चर), और ब्लूस्मार्ट मोबिलिटी टेक (ऐप और पेमेंट्स).
फिर आया पतन. इस साल की शुरुआत में सेबी ने जेनसोल और जग्गी भाइयों पर ब्लूस्मार्ट की EV फ्लीट के लिए लिए गए 262 करोड़ रुपये के लोन को निजी खर्चों में इस्तेमाल करने का आरोप लगाया. लेंडर्स ने रिकवरी की कार्रवाई शुरू की. Orix जैसी कंपनियां दिल्ली हाई कोर्ट पहुंच गईं। अब दरारें छिपाई नहीं जा सकीं और ब्लूस्मार्ट ने अपने ऑपरेशन्स बंद कर दिए.

हज़ारों EVs जब्त कर ली गईं और यार्ड्स में खड़ी रह गईं. कोई फ्लीट ऑपरेटर हाई-माइलेज टैक्सियां नहीं लेना चाहता था और EV कैब्स के लिए कोई रीसेल नेटवर्क भी नहीं था. तभी कुछ कंपनियां जो पहले ब्लूस्मार्ट को गाड़ियां लीज़ पर देती थीं, यादव के पास आईं ताकि वह उन्हें बेचने में मदद करें। उनके पास ज़मीन, इंफ्रास्ट्रक्चर और लोकल नेटवर्क था.
यादव मान गए, हालांकि वह यह साफ कर देते हैं कि उनका बिज़नेस ब्लूस्मार्ट से जुड़ा नहीं है.
“यह चार्जिंग स्टेशन पूरी तरह से मेरी संपत्ति थी,” उन्होंने कहा. “इसका बुनियादी ढांचा मेरा था. चार्जर स्टैटिक एयर जैसी कंपनियों से किराए पर लिए गए हैं.”
अब यादव और उनकी पत्नी भारत के सबसे अजीब रीसेल मार्केट्स में से एक में अनजाने ब्रोकर बन गए हैं.
उनके द्वारका ऑफिस में फोन की घंटियां अब भी शोर मचाती रहती हैं. एक आदमी दरवाज़े पर स्क्रैच की शिकायत करता है. शर्मा बिना देखे वही लाइन दोहराती हैं जो वह उस दिन सौ बार कह चुकी होती हैं: “सर, जो है वही है। न मोलभाव, न रिटर्न। लेना है तो लो, वरना छोड़ दो.”
बाहर, एक जमाने की हाई-टेक टैक्सियां, जिनके लोगो आधे उखड़े हुए हैं लेकिन बैटरियां फुल हैं, अपने दूसरे मौके का इंतज़ार कर रही हैं.
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