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Friday, 22 November, 2024
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चैत्यभूमि : पा रंजीत की नई प्रस्तुति, आंबेडकर के नाम पर हर साल होने वाले समारोह पर बनी एक फिल्म

फिल्म निर्माता सोमनाथ वाघमारे अपनी डॉक्यूमेंट्री के माध्यम से लोगों को मुंबई के शिवाजी पार्क में हर साल आयोजित किये जाने वाले अंबेडकर स्मारक समारोह और उसके महत्व से अवगत कराना चाहते हैं.

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मुंबई के शिवाजी पार्क में स्थित डॉक्टर आंबेडकर के स्मारक ‘चैत्यभूमि’, जो हर साल उनकी पुण्यतिथि के अवसर पर किताबों, संगीत और प्रदर्शनों के सप्ताह भर चलने वाले कार्निवाल जैसे उत्सव में बदल जाती है, अब पा. रंजीत द्वारा निर्मित एक नई डॉक्यूमेंट्री (वृत्तचित्र) का विषय है. मुंबई के फिल्म निर्माता सोमनाथ वाघमारे द्वारा निर्देशित इस फिल्म का ट्रेलर अब सामने आ चुका है.

इस ट्रेलर के शुरुआती शॉट में दृष्टिबाधित राउल तेलगोटे ‘चैत्यभूमि’ मैदान में तबले के साथ गाते हुए कहते हैं, ‘हे भीम, उत्पीड़ित, परेशान और थके हुए लोगों के लिए फिर से जन्म लें… वे आज आपसे मिलने के लिए तरस रहे हैं….’ उनके साथ ही सैकड़ों दलित, जिन्होंने भारत भर से यहां आने के लिए यात्रा की है, अगले शॉट में डॉक्टर आंबेडकर की यादगारी जश्न मनाने के लिए पार्क में भीड़ लगा देते हैं.

‘चैत्यभूमि’ के महत्व और इसके आसपास की सांस्कृतिक राजनीति के दस्तावेजीकरण की प्रासंगिकता को रेखांकित करते हुए वाघमारे ने दिप्रिंट से कहा, ‘आज के दिन में, प्रख्यात अफ्रीकी अमेरिकी निर्देशक अवा डुवर्ने डॉ आंबेडकर पर एक फिल्म बना रहे हैं. इससे पहले कई कन्नड़ और तेलुगु फिल्म निर्माता भी उन पर फिल्में बना चुके हैं. मलयालम सुपरस्टार मम्मूटी ने एक फिल्म में बाबासाहेब का किरदार निभाया था, लेकिन तथाकथित रूप से प्रगतिशील माने जाने वाला बॉलीवुड उद्योग उनकी निरंतर उपेक्षा करता रहता है. वे गांधी का जिक्र करते हैं, लेकिन बाबासाहेब का नहीं.’

हर साल 6 दिसंबर को, शिवाजी पार्क – मुंबई के दादर क्षेत्र में 28 एकड़ में स्थित इस शहर का सबसे महत्वपूर्ण सार्वजनिक पार्क – बड़ी संख्या में ऐसे लोगों की मेजबानी करता है, जो किताबें बेचते हैं, खरीदते हैं, संगीत बजाते हैं, और भारत के अग्रणी संस्थापकों में से एक रहे डॉ भीमराव आंबेडकर का जश्न मनाते हैं. पार्क से लगभग 750 मीटर की दूरी पर बाबासाहेब का स्मारक स्थल ‘चैत्यभूमि’ है, जो फिल्म निर्माता सोमनाथ वाघमारे की इसी नाम से बनायी जा रही आगामी डाक्यूमेंट्री का केंद्र बिंदु है.

इस डॉक्यूमेंट्री को तमिल अभिनेता-निर्देशक पा रंजीत द्वारा उनके प्रोडक्शन हाउस, नीलम प्रोडक्शंस, के तहत प्रस्तुत किया जा रहा है.


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ट्रेलर के बारे में

हर साल 6 दिसंबर को मनाई जाने वाली डॉ आंबेडकर की पुण्यतिथि के मद्देनजर, महाराष्ट्र सहित पूरे भारत से लोग 1 दिसंबर से शिवाजी पार्क में और उसके आसपास एकत्र होने लगते हैं.

संगीत के सुरों के प्रवाहित होने के साथ ही सैकड़ों बुक स्टॉल किताबों की भरमार और आंबेडकर की लघु मूर्तियों के साथ यहां आ बसते हैं. वाघमारे कहते हैं, ‘यहां के सप्ताह भर चलने वाले जमावड़े के दौरान पिछले साल करीबन 3 करोड़ रुपये की किताबें बिकी थीं.’

Miniature statues of Buddha and Dr B.R. Ambedkar are available to buy along with lakhs of Dalit literature during the week-long celebration in the first week of December every year | Photo: Somnath Waghmare
हर साल दिसंबर के पहले सप्ताह में चलने वाले उत्सव के दौरान खरीदने के लिए लाखों दलित साहित्य के साथ बुद्ध और डॉ. बी.आर. आंबेडकर की छोटी मूर्ति उपलब्ध | फोटो: सोमनाथ वाघमारे

ट्रेलर के शामिल किये गए एक अन्य दृश्य में, मातृ संगठन भारतीय बोध महासभा – आंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने पर स्थापित – ‘चैत्यभूमि’ के पास एकत्रित लोगों के लिए एक सभा का आयोजन करती है. इस सभा को संबोधित करते हुए बाबासाहेब के प्रपौत्र एडवोकेट प्रकाश आंबेडकर देशभर में जाति से जुड़े मुद्दों पर चुप रहने वालों के लिए सवाल उठाते हैं.

सार्वजनिक स्थलों की राजनीति

पिछले सालों की मीडिया कवरेज के बारे में बात करते हुए वाघमारे कहते हैं कि दशकों से शिवाजी पार्क महाराष्ट्र की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है. इसके बावजूद हर साल, दिसंबर के पहले सप्ताह में इस इलाके में उमड़ी भारी भीड़ केवल ट्रैफिक अपडेट के लिए ही सुर्खियों में आती रही है.’ हालांकि, वह हाल के दिनों में हो रहे ‘बेहतर’ मीडिया कवरेज की बात को भी स्वीकार करते हैं.

वाघमारे कहते हैं, ‘मुंबई और उसके आसपास बाबासाहेब आंबेडकर से संबंधित कई प्रासंगिक स्थान हैं, लेकिन ‘चैत्यभूमि’ जैसा कुछ और नहीं है. मैं लोगों को इसके बारे में जागरूक करना चाहता हूं.’

पश्चिमी महाराष्ट्र के मालेवाड़ी में एक ग्रामीण दलित-बौद्ध परिवार में पैदा हुए वाघमारे वर्तमान में टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज से पीएचडी कर रहे हैं.

उन्होंने इससे पहले दो डॉक्यूमेंट्री फिल्में – आई एम नॉट ए विच (2015) और द बैटल ऑफ भीमा कोरेगांव: एन अनेंडिंग जर्नी (2017)- बनाई हैं.

वाघमारे कहते हैं कि ‘चैत्यभूमि’, जो एक वीडियो प्रलेखन (वीडियो डॉक्यूमेंटेशन) से अंकुरित होते हुए एक पूर्ण डाक्यूमेंट्री के रूप में विकसित हुई है, अगले साल अप्रैल, शायद आंबेडकर जयंती से पहले रिलीज हो जानी चाहिए.

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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