पटना: बिहार में शिक्षक भर्ती परीक्षा का पेपर बड़ी पहाड़ी इलाके में हाईवे पर स्थित एक ढाबे से लीक हो गया. संवेदनशील प्रश्नपत्र ले जा रहे ट्रक का ड्राइवर ब्रेक लेने के लिए रुका और बस इसी तरह, शक्तिशाली पेपर माफिया उसके पास पहुंच गया.
पूरे राज्य में बिजली की स्पीड से पेपर लीक गए. अधिकारी, बिचौलिए और छात्र हरकत में आ गए. परीक्षा फिर से आयोजित की गई और लाखों एस्पिरेंट्स की महत्वाकांक्षाएं चकनाचूर हो गईं. यह सब मार्च 2024 में हुआ था. तब से अब तक 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.
बिहार में सरकारी भर्ती परीक्षा आयोजित करना इतना मुश्किल हो गया है कि यह आम चुनाव कराने से कम नहीं है. बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के उपायों में अब कंट्रोल रूम, सीसीटीवी, स्ट्रांगरूम, कोड, डिजिटल लॉक वाले ट्रक, स्पेशल दस्ते, कई एजेंसियों की भागीदारी, लॉक किए गए प्रश्नपत्र कंटेनर और उन्हें स्टोर करने के लिए गुप्त गोदाम शामिल हैं, लेकिन उन्होंने माफिया को रोकने और लीक और व्यवधानों को रोकने के लिए बहुत कम किया है. यह ऐसी कु-व्यवस्था है, जिसके कारण विरोध प्रदर्शन और सुर्खियां लगातार चलती रहती हैं.
परीक्षा नियंत्रक राजेश कुमार सिंह ने दिप्रिंट से कहा, “3,00,000 से 4,00,000 एस्पिरेंट्स के साथ इस तरह की परीक्षा आयोजित करने के लिए हज़ारों कर्मियों को तैनात करने की ज़रूरत होती है.” उनकी आवाज़ में निराशा थी. यह जिला प्रशासन के कर्मचारियों, राज्य पुलिस, निरीक्षकों, परीक्षकों, सीसीटीवी ऑपरेटरों, जैमर लगाने वाली एजेंसियों और चपरासी और बायोमेट्रिक हैंडलर जैसे सहायक कर्मचारियों की एक सेना है. “ऐसी एक परीक्षा आयोजित करने का खर्च तीन से चार करोड़ रुपये तक होता है.”
2024 के मामले में कोलकाता स्थित प्रिंटर, जिसे कॉन्ट्रैक्ट दिया गया था, उसने लागत बचाने के प्रयास में कोषागारों के बजाय पटना में एक परिवहन गोदाम में प्रश्नपत्र बांट दिए. वहां से सीलबंद कंटेनर ट्रकों के बजाय छोटे वाहनों में 38 जिला कोषागारों को प्रश्नपत्र वितरित किए गए.
प्रिंटर को ब्लैकलिस्ट कर दिया गया, लेकिन की गई कार्रवाई सबसे खराब है. सार्वजनिक सेवा आयोग को बाथरूम में छिपे सेलफोन के ज़रिए सोशल मीडिया पर पेपर वायरल होने से शर्मिंदगी उठानी पड़ी है.
पेपर माफिया के साथ सरकार की लड़ाई ने लाखों छात्रों को निराश, उदास और हतोत्साहित कर दिया है. ज़्यादातर ने परीक्षा की तैयारी में सालों बिता दिए हैं, बस उन्हें बार-बार परीक्षा देनी पड़ रही है.
पिछले साल 13 दिसंबर को एक परीक्षा केंद्र पर हुई भारी गड़बड़ी ने इस परेशानी को और बढ़ा दिया. यह वह जगह थी जहां 70वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (CCE) की प्रारंभिक परीक्षा हो रही थी. तब से लगातार विरोध प्रदर्शन जारी है, आरोप है कि पेपर लीक हो गया था, इसे रद्द करने की मांग की जा रही है, पुलिस ने एस्पिरेंट्स पर लाठीचार्ज किया और नौकरशाही की लापरवाही की शिकायतें कीं. यह मामला अब पटना हाई कोर्ट के अधीन है, जहां याचिकाकर्ता, सभी एस्पिरेंट्स, जांच और परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं. कोर्ट ने राज्य और आयोग को 30 जनवरी तक हलफनामा दाखिल करने को कहा है. मामले की अगली सुनवाई 31 जनवरी को होगी.
26-वर्षीय रिया कुमारी ने कहा, “बीपीएससी अध्यक्ष ने प्रदर्शनकारी छात्रों में गंभीरता की कमी बताई है. अगर वह गंभीरता देखना चाहते हैं, तो आयोग को दोबारा परीक्षा आयोजित करनी चाहिए.”
2022 में पहली बार परीक्षा देने वाली रिया कुमारी ने बताया कि पेपर रद्द होने के कारण उनके दोनों अटेम्प्ट रद्द कर दिए गए हैं.
ऐसी एक परीक्षा आयोजित करने का खर्च तीन से चार करोड़ रुपये तक है
— राजेश कुमार सिंह, परीक्षा नियंत्रक
जैसे-जैसे विरोध प्रदर्शन का राजनीतिकरण होता जा रहा है, इसने बिहार लोक सेवा आयोग और सुरक्षित सरकारी नौकरी के लिए प्रतिस्पर्धा करने वाले एस्पिरेंट्स के बीच की खाई को चौड़ा कर दिया है.
बीपीएससी के पूर्व अध्यक्ष और सेवानिवृत्त आईएएस अधिकारी अतुल प्रसाद ने कहा, “आयोग और छात्रों के बीच विश्वास की कमी है.”
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क्या पेपर लीक हुआ?
BPSC के नए परीक्षा नियंत्रक राजेश कुमार सिंह ने 70वीं संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा (CCE) की प्रारंभिक परीक्षा की योजना छोटी से छोटी डिटेल तक बनाई थी. सुबह 11 बजे जब परीक्षा शुरू हुई तो उन्होंने राहत की सांस ली. पेपर लीक होने या पेपर के साथ छेड़छाड़ की कोई बात नहीं हुई, लेकिन तभी पटना के बेली रोड स्थित BPSC के कंट्रोल रूम का फोन बजा. दोपहर के 12:12 बजे थे.
बिहार भर में 912 परीक्षा केंद्रों में से एक पटना के बापू परीक्षा केंद्र में गड़बड़ी हुई. अगस्त 2023 में उद्घाटन किया गया यह राज्य का सबसे बड़ा परीक्षा केंद्र है जिसमें 20,000 एस्पिरेंट्स के बैठने की क्षमता है. यह पहली बार था जब BPSC इस केंद्र पर अपनी सिविल सेवा परीक्षा आयोजित कर रहा था. बिहार, उत्तर प्रदेश और ओडिशा के छह जिलों से 12,000 से अधिक एस्पिरेंट्स वहां मौजूद थे.
एहतियात के तौर पर आयोग ने केंद्र पर अपने दो अधिकारियों को भी तैनात किया था. आखिरकार, यहां पर गलत चीज़ें होने का इतिहास रहा है. एक कमरे में हंगामा होने की शुरुआती सूचना के करीब पांच मिनट बाद सिंह ने अपडेट के लिए वापस फोन किया, लेकिन किसी ने जवाब नहीं दिया.
12:30 बजे तक, हंगामा दूसरे कमरों में भी फैल गया और दस मिनट के भीतर ही वहां अफरा-तफरी मच गई. सोशल मीडिया पर वीडियो में एस्पिरेंट्स को अपनी ओएमआर शीट फाड़ते हुए दिखाया गया है. एक अन्य क्लिप में एस्पिरेंट्स से पेपर छीनकर हवा में उछाले जाते हुए दिखाया गया है.
इस घटना के कारण पूरे बिहार में बीपीएससी के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जो अब एक पूर्ण राजनीतिक युद्ध में बदल गया है. कहानी के दो संस्करण हैं: एक छात्रों का, जो दावा करते हैं कि पेपर लीक हुआ था और दूसरा आयोग का, जो इस बात पर जोर देता है कि ऐसा नहीं हुआ था.
दो महीने पहले नियंत्रक नियुक्त किए गए सिंह ने कहा, “सुबह 11 बजे से दोपहर 2 बजे के बीच सभी एस्पिरेंट्स को पूरी तरह से चैक करने के बाद इन परीक्षा हॉलों में कैद कर दिया जाता है.”
उन्होंने कहा कि अगर 11 बजे से एक मिनट पहले भी पेपर लीक हुआ होता तो वे परीक्षा रद्द कर देते.
पेपर लीक न होने के अपने रुख पर अड़े सिंह और बीपीएससी ने केंद्र पर केवल 12,012 एस्पिरेंट्स की परीक्षा रद्द कर दी. 4 जनवरी को दोबारा परीक्षा हुई, लेकिन उसमें केवल 5,943 एस्पिरेंट ही बैठे.
आयोग और छात्रों के बीच विश्वास की कमी है
— अतुल प्रसाद, पूर्व बीपीएससी अध्यक्ष
सिंह ने दिप्रिंट को बताया, “संयुक्त प्रक्रिया के माध्यम से जनवरी के अंतिम सप्ताह में अंतिम परिणाम घोषित करेंगे. इसका मतलब है कि हमारे पास 3.24 लाख छात्रों और शेष 5,943 छात्रों के दो सैंपल साइज हैं.”
लेकिन रिया कुमारी और पटना केंद्र के सैकड़ों एस्पिरेंट पूरी परीक्षा रद्द करने की मांग कर रहे हैं. 29 दिसंबर को, उन्होंने पटना के गर्दनीबाग में ‘शिक्षा सत्याग्रह’ के बैनर तले रैली निकाली, लेकिन पुलिस ने उन पर लाठीचार्ज कर दिया.
बिहार के नालंदा जिले की रहने वाली इया ने 2022 में 67वीं BPSC से अपनी BPSC यात्रा शुरू की, जो पेपर लीक की वजह से खराब हो गई थी. उन्हें दोबारा परीक्षा देनी पड़ी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाईं. दो साल बाद, वे खुद को 70वीं BPSC परीक्षा के साथ एक ऐसी ही स्थिति में पाती हैं. पेपर लीक के आरोप, दोबारा परीक्षा की एकजुट मांग और साल के अंत में विधानसभा चुनाव से पहले एक तीव्र राजनीतिक अभियान.
उन्होंने याद किया, “मैं गेट नंबर 3 के पास ब्लॉक बी के एक कमरे में बैठी थी. हम पहली मंजिल पर थे, 12:30 बजे तक प्रश्नपत्र का इंतज़ार कर रहे थे. हमने देखा कि प्रश्नपत्र पहले ही ग्राउंड फ्लोर पर बांटे जा चुके थे.”
वे घर लौट आई हैं, लेकिन 13 दिसंबर की घटनाओं से हुई मानसिक पीड़ा से अभी भी जूझ रही हैं.
उन्होंने आरोप लगाया कि जब बगल के कमरे में बैठे पुरुष एस्पिरेंट्स का धैर्य जवाब दे गया, तो वह उत्तेजित हो गए और अपने कमरों से बाहर निकलने लगे. तभी उनके कमरे में बैठे एस्पिरेंट्स भी भीड़ में शामिल हो गए.
“हम उत्सुकता से निरीक्षक द्वारा प्रश्नपत्र मिलने का इंतज़ा कर रहे थे. आधा घंटा बीत चुका था और प्रश्नपत्र या ओएमआर शीट का कोई निशान नहीं था. हमें प्रश्नपत्र कभी नहीं मिला.”
अब, ऐसी अफवाहें हैं कि प्रश्नपत्र सील नहीं किए गए थे और हंगामा शुरू करने वाले समूह द्वारा लीक किए गए थे।
हमारे पास ऐसे मामलों की एक मिसाल है, हम पहले ही प्रभावित केंद्र के लिए दोबारा परीक्षा आयोजित कर चुके हैं. एक केंद्र पर जो हुआ उसके लिए बाकी लाखों छात्र क्यों पीड़ित हों?
— सत्य प्रकाश शर्मा, BPSC सचिव
रिया जिन्होंने दोबारा परीक्षा नहीं दी, उन्होंने कहा, “स्ट्रैस के कारण मैं बीमार हो गई.”
उन्हें उम्मीद है कि विरोध प्रदर्शन कुछ सफल होगा और पूरी परीक्षा रद्द घोषित की जाएगी. पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय से भूगोल ऑनर्स में मास्टर की छात्रा, उन्होंने इससे पहले सब-इंस्पेक्टर और कांस्टेबल परीक्षा पास की थी, लेकिन उनकी निगाहें BPSC पर टिकी थीं.
“मैं अब दिशाहीन महसूस कर रही हूं.”
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राजनीतिक युद्ध
15 जनवरी तक आरोप-प्रत्यारोप पेपर लीक होने से आगे बढ़ गए. छात्र अब दावा कर रहे हैं कि कुछ केंद्रों पर जैमर काम नहीं कर रहे थे. कुछ सेंटर्स पर बार-बार बिजली जा रही थी. कुछ छात्र अब दावा कर रहे हैं कि उनका बायोमेट्रिक्स नहीं किया गया था और परीक्षा की डेट से कुछ दिन पहले लगभग 5,000 छात्रों के परीक्षा केंद्र बदल दिए गए. यह सब हाईकोर्ट में दायर की गई याचिका का हिस्सा है.
परीक्षा को पूरी तरह से रद्द करने की मांग जोर पकड़ रही है. पटना के गर्दनीबाग में पीले रंग के टेंट के साथ विरोध प्रदर्शन स्थल उन एस्पिरेंट्स के लिए एकता का प्रतीक बन गया है, जिन्होंने राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान, मुख्य सचिव अमृत लाल मीणा और बीपीएससी के अध्यक्ष परमार रवि मनुभाई से मिलकर इसे पूरी तरह से रद्द करने की अपील की है.
स्थिति का फायदा उठाने के लिए राजद, कांग्रेस, लोजपा और जन सुराज जैसी पार्टियां मैदान में उतर आई हैं और सरकार पर एस्पिरेंट्स पर लाठीचार्ज करने का आरोप लगाया है. पूर्णिया के सांसद पप्पू यादव ने तो बिहार बंद का आह्वान भी कर दिया है. प्रदर्शनकारी छात्र मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिलने की मांग कर रहे हैं, जिन्होंने अभी तक इस मामले पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
राजनीतिकरण से कुछ हासिल होगा या नहीं, कम से कम हमारे लिए आवाज़ तो उठ रही है
— एमके, बीपीएससी एस्पिरेंट
13 जनवरी को, जब मुख्यमंत्री अपनी प्रगति यात्रा के लिए समस्तीपुर में थे, बीपीएससी एस्पिरेंट्स और अन्य छात्र संगठनों के एक समूह ने ‘नीतीश कुमार वापस जाओ’ के नारे लगाते हुए तख्तियाँ लेकर विरोध प्रदर्शन किया.
पटना के गांधी मैदान में 2 जनवरी को एक और विरोध प्रदर्शन हुआ — जन सुराज के प्रशांत किशोर के नेतृत्व में भूख हड़ताल, लेकिन 5 जनवरी की आधी रात के कुछ ही समय बाद बिहार पुलिस ने किशोर को विरोध स्थल से हटा दिया. जवाब में, उन्होंने अपना विरोध जारी रखने के लिए गंगा नदी के बगल में ‘मरीन ड्राइव’ पर अपने टेंट शिफ्ट कर दिए. राज्य के अधिकारियों ने 12 जनवरी को वहां से भी टेंट सिटी को हटा दिया. बाद में उन्हें उस स्थान पर टेंट लगाने की अनुमति दी गई. किशोर ने 16 जनवरी को अपनी भूख हड़ताल समाप्त कर दी, लेकिन उन्होंने कहा कि वे छात्रों का समर्थन करते रहेंगे.
किशोर ने अपने टेंट सिटी से सत्याग्रह पार्ट 2 की शुरुआत करते हुए स्थानीय मीडिया आउटलेट लाइव सिटीज़ से कहा, “हम गांधी मैदान में जो हुआ उसे भूले नहीं हैं. हमारे खिलाफ कानून का दुरुपयोग करने वालों को न्याय का सामना करना पड़ेगा.”
उन्होंने कहा, “हम छात्रों के मुद्दे पर दृढ़ता से विश्वास करते हैं और राज्य और आयोग को सही काम करना होगा.”
किशोर के खिलाफ बीपीएससी के कानूनी नोटिस के अनुसार, उन्होंने आरोप लगाया कि “बच्चों की नौकरियां 1 करोड़ से 1.5 करोड़ रुपये में बेची गईं” और दावा किया कि घोटाला “1,000 करोड़ रुपये से अधिक” का है.
28-वर्षीय एमके, जो बीपीएससी एस्पिरेंट हैं और जिन्होंने 29 दिसंबर के विरोध प्रदर्शन में भाग लिया था और लाठीचार्ज का शिकार हुए थे, उन्होंने कहा, “राजनीतिकरण से कुछ हासिल होगा या नहीं, कम से कम हमारे लिए आवाज़ तो उठ रही है.”
यह उनका तीसरा अटेम्प्ट था.
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लीक का सबूत नहीं
राज्य सरकार के पदों के लिए सिविल सेवा परीक्षा आयोजित करना एक बहुत बड़ा और महंगा काम है और माफिया से एक कदम आगे रहना और सभी खामियों को दूर करना BPSC के लिए एक चुनौती साबित हो रहा है.
सिंह ने एक घटना को याद किया जब एक कम रैंक वाले सरकारी कर्मचारी ने परीक्षा से दो दिन पहले बाथरूम में एक फोन छिपा दिया था.
सिंह ने कहा, “परीक्षा के दिन, उसने निरीक्षक से यह झूठ बोलकर पेपर सेट हासिल कर लिया कि अधीक्षक ने इसे मांगा है. फिर वह पेपर लीक करने के लिए मोबाइल फोन जाम वाले क्षेत्र से बाहर चला गया.”
ईओयू के उप महानिरीक्षक (डीआईजी) मानवजीत सिंह ढिल्लों के अनुसार, बिहार पुलिस की आर्थिक अपराध इकाई ने 2012 से 10 मामले दर्ज किए हैं, जिसके परिणामस्वरूप 545 आरोपी व्यक्तियों को गिरफ्तार किया गया है.
पिछले महीने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में डीआईजी ने कहा था, “उनमें से 249 के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की गई है और हमें उम्मीद है कि अगले दो हफ्तों में चार्जशीट किए गए आरोपियों की संख्या 400 से अधिक हो जाएगी, लेकिन ईओयू 13 दिसंबर की घटना की जांच नहीं कर रहा है.”
ढिल्लों ने कहा, “पेपर लीक होने का कोई सबूत नहीं है.”
कोई भी इसे लीक कर सकता है, या हेरफेर कर सकता है या गलत तरीके से हैंडल कर सकता है. हमने परीक्षा से दो घंटे पहले इसे पहुंचाने का फैसला किया. हमने बोरियों की जगह डिजिटल लॉक वाले ट्रक मंगाए. पासकोड परीक्षा से आधे घंटे पहले ही बताए जाने थे
— अतुल प्रसाद, पूर्व बीपीएससी अध्यक्ष
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कई उपाय
BPSC अध्यक्ष का पद एक हॉट सीट है – जिस पर 2022 से अब तक चार अध्यक्षों की नियुक्ति हो चुकी है, जिसमें दो कार्यवाहक अध्यक्ष भी शामिल हैं.
67वें BPSC घोटाले के बाद, जब 2022 में सोशल मीडिया पर पेपर वायरल हो गया था, तो सरकार ने IAS अधिकारी अतुल प्रसाद को इस गलती को सुधारने वाले व्यक्ति के रूप में नियुक्त किया था. अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 67वीं पुनर्परीक्षा के साथ-साथ 68वीं और 69वीं परीक्षाएं भी आयोजित कीं. उन्होंने कई कोशिशें की, लेकिन हाईवे ढाबा पेपर लीक का मामला उनकी निगरानी में ही सामने आया – उनके सेवानिवृत्त होने से कुछ दिन पहले.
उन्होंने जो पहला काम किया, वह था परीक्षा केंद्रों को लीक-प्रूफ बनाना.
उन्होंने कहा, “परीक्षा केंद्र ही सबसे बड़ी कमज़ोरी है. मैंने परीक्षा से एक घंटे पहले एस्पिरेंट्स के प्रवेश को नियंत्रित किया. उदाहरण के लिए अगर कोई परीक्षा 12 बजे शुरू होती है, तो सभी एस्पिरेंट्स सुबह 11 बजे तक सेंटर पर पहुंचने चाहिए.”
छात्रों द्वारा खाली OMR शीट जमा करने के मामले सामने आए. उन्होंने एस्पिरेंट्स के परीक्षा केंद्र छोड़ने से पहले ओएमआर शीट को सील करना अनिवार्य कर दिया, ताकि बाद में उनमें हेरफेर न किया जा सके.
जब उन्होंने कार्यभार संभाला, तो परीक्षा से दो दिन पहले प्रश्नपत्रों का सेट बांटने की प्रथा थी.
उन्होंने कहा, “कोई भी इसे लीक कर सकता है, हेरफेर कर सकता है या गलत तरीके से इस्तेमाल कर सकता है. हमने परीक्षा से दो घंटे पहले इसे बांटने का फैसला किया. हमने बोरियों की जगह डिजिटल लॉक वाले ट्रक रखे. पासकोड परीक्षा से आधे घंटे पहले ही बताए जाने थे.”
आयोग ने एक कंट्रोल रूम भी स्थापित किया, केंद्रों में सीसीटीवी कैमरे लगाए और मूल्यांकन प्रणाली को मानकीकृत किया. अधिक पारदर्शिता के लिए, ऑन-स्क्रीन मूल्यांकन शुरू किया गया, जहां ग्रेडेड उत्तर पुस्तिकाओं को स्कैन किया गया और परीक्षार्थियों को फोटोकॉपी दी गई. सभी के उपयोग के लिए ओएमआर शीट भी ऑनलाइन अपलोड की गईं. उन्होंने कहा, “हमने एक कदम से ओएमआर शीट मांगने वाले अंतहीन आरटीआई और ईमेल को समाप्त कर दिया.”
हाल की घटनाओं से प्रसाद निराश हैं.
प्रसाद जिनकी छात्रों और मीडिया के साथ खुले दरवाजे की नीति थी, उन्होंने कहा, “आयोग ने पिछले एक महीने में अपनी विश्वसनीयता काफी हद तक खो दी है। लाठीचार्ज की नौबत आने से पहले ही उन्हें इस पर काबू पा लेना चाहिए था.”
BPSC में हर कोई इस नीति से सहमत नहीं था.
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर इसे सिरदर्द बताया.
वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि प्रसाद ने छात्रों, कोचिंग संस्थानों, अभिभावकों — सभी से बात की और इसका नतीजा गलत सूचना और गलतफहमियों के रूप में सामने आया.
अधिकारी ने कहा, “दुर्भाग्य से, आसान पहुंच के कारण एस्पिरेंट्स ने आयोग को मुकदमेबाजी में घसीटा और कोचिंग माफिया ने प्रमुख के साथ बातचीत का फायदा उठाया. इसलिए हमें इसे खत्म करना पड़ा.”
वर्तमान अध्यक्ष परमार रवि मीडिया या एस्पिरेंट्स से सीधे तौर पर बात नहीं करते हैं. इसके बजाय, आयोग ने जनता से जुड़ने के लिए एक पूर्णकालिक पीआरओ नियुक्त किया है, लेकिन प्रदर्शनकारियों के बीच, इसने तानाशाही नेतृत्व की भावना पैदा कर दी है.
आयोग ने पिछले एक महीने में अपनी विश्वसनीयता काफी हद तक खो दी है। लाठीचार्ज की नौबत आने से पहले ही उन्हें इस पर काबू पा लेना चाहिए था
— अतुल प्रसाद, पूर्व BPSC अध्यक्ष
रवि ने भी पेपर माफिया को रोकने के लिए उपाय शुरू किए हैं. पहले, BPSC केवल एक सेट के प्रश्नपत्रों का उपयोग करता था, जिससे लीक होने की संभावना बहुत अधिक थी. अब, प्रश्नों के तीन रंग-कोडित सेट हैं.
अब कौन सा पेपर इस्तेमाल किया जाए, इसका फैसला लॉटरी सिस्टम पर आधारित है जिसमें अध्यक्ष, सचिव, परीक्षा नियंत्रक और BPSC के कुछ कर्मचारी शामिल होते हैं.
परीक्षा के दिन, सुबह 9 बजे वह सभी इकट्ठा होते हैं और कर्मचारियों में से एक चिट उठाता है. आयोग के सचिव सत्य प्रकाश शर्मा ने दिप्रिंट को बताया, “कोषागार अधिकारी को 9:05 बजे सूचित किया जाता है.” इसके बाद परीक्षा केंद्र और कोषागार के बीच की दूरी के आधार पर गश्ती मजिस्ट्रेट द्वारा 30 से 60 मिनट के भीतर प्रश्नपत्र केंद्र पर पहुंचा दिए जाते हैं.
डिजिटल रूप से लॉक किए गए प्रश्नपत्र ट्रंक को प्रत्येक कमरे से दो एस्पिरेंट्स, केंद्र अधीक्षक, सहायक अधीक्षक और गश्ती मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में खोला जाता है.
शर्मा ने कहा, “प्रश्नपत्र तीन तरफ से सील किए जाते हैं, जिससे एक या दो सील खुलने पर भी लीक होने की संभावना कम हो जाती है.”
ढाबा लीक के बाद, प्रिंटर भी कड़ी जांच के दायरे में हैं. उनकी पहचान गुप्त रखी जाती है और मुद्रित प्रश्नपत्र अब एक कंटेनर ट्रक में एयरटाइट डिजिटल लॉक के साथ भेजे जाते हैं. अंदर रखे सामान की निगरानी के लिए एक सीसीटीवी कैमरा लगाया जाता है और ट्रकों को जीपीएस के माध्यम से ट्रैक किया जाता है.
बिहार सरकार ने बिहार सार्वजनिक परीक्षा (अनुचित साधनों की रोकथाम) विधेयक 2024 पेश किया है, जिसमें पेपर लीक में शामिल व्यक्तियों को तीन से पांच साल की जेल और 10 लाख रुपये का जुर्माना होगा. इसके अलावा, अगर कोई सर्विस प्रोवाइडर चाहे वह सरकारी संस्था हो या निजी एजेंसी, पेपर लीक में शामिल है, तो उसे 1 करोड़ रुपये का जुर्माना और चार साल की सेवा निलंबन का सामना करना पड़ेगा.
पूर्व अध्यक्ष प्रसाद ने कहा, “माफिया से निपटने का एकमात्र तरीका उनसे दो कदम आगे रहना है.”
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कोचिंग ‘माफिया’
बीपीएससी सचिव सत्य प्रकाश शर्मा के अनुसार, आयोग के लिए असली सिरदर्द पेपर माफिया नहीं, बल्कि कोचिंग ‘माफिया’ है.
उन्होंने कहा, “मौजूदा विरोध प्रदर्शन इसी ‘माफिया’ द्वारा भड़काए गए हैं. नतीजतन, आयोग ने न केवल प्रशांत किशोर को बल्कि खान सर और अन्य कोचिंग संस्थानों को भी कानूनी नोटिस भेजे हैं.”
उन्होंने उन पर डेट को आगे बढ़ाने और पेपर लीक की अफवाहों के जरिए एस्पिरेंट्स को गुमराह करने का आरोप लगाया.
शर्मा ने कहा, “हर बार डेट को आगे बढ़ाने के लिए वह 12,000 रुपये में क्रैश कोर्स शुरू करते हैं. अगर एक कोचिंग सेंटर में 2,500 छात्र हैं, तो वह एक बार डेट को आगे बढ़ाने के लिए 3 करोड़ रुपये कमाते हैं. सोचिए अगर, 10 कोचिंग सेंटर ऐसा कर रहे हों तो?”
13 दिसंबर को हुए उपद्रव पर अपनी रिपोर्ट में जिसे आयोग ने हाईकोर्ट को सौंपा है, इसने स्पष्ट किया है कि नवादा जिले के पांच हज़ार एस्पिरेंट्स के लिए परीक्षा केंद्र अंतिम समय में नहीं बदला गया था. गलती से जिला नवादा की जगह गया छप गया था, लेकिन स्कूल का नाम, ब्लॉक का नाम, शहर का नाम और गली नंबर सही थे. परीक्षा से चार दिन पहले आयोग ने हर एक एस्पिरेंट को ईमेल और मैसेज भेजकर बताया कि सही जिला नवादा है.
मौजूदा विरोध प्रदर्शन को इस (कोचिंग) ‘माफिया’ ने भड़काया और हवा दी है. नतीजतन, आयोग ने न केवल प्रशांत किशोर को बल्कि खान सर और अन्य कोचिंग संस्थानों को भी कानूनी नोटिस भेजा है
— सत्य प्रकाश शर्मा, बीपीएससी सचिव
मौजूदा विरोध प्रदर्शन पर शर्मा ने कहा कि 20 एस्पिरेंट्स की पहचान उपद्रवी के रूप में की गई है. बिहार विद्यालय परीक्षा समिति से कहा गया है कि वह बापू परीक्षा केंद्र पर हंगामा करने वालों, ओएमआर शीट फाड़ने और शांतिपूर्ण परीक्षार्थियों को परेशान करने वालों की दोबारा जांच करे.
68वीं बीपीएससी परीक्षा के दौरान भी ऐसी ही घटना हुई थी, जहां प्रश्नपत्र 20 मिनट देरी से दिया गया था, जबकि शिकायतें थीं कि इसे क्लास में नहीं बल्कि कॉरिडोर में खोला गया था. मामला हाई कोर्ट पहुंचा, जिसने फैसला किया कि बीपीएससी उस विशेष केंद्र के लिए फिर से परीक्षा आयोजित करेगा और एक संयुक्त परिणाम घोषित करेगा.
शर्मा ने कहा, “अब जब हमारे पास ऐसे मामलों की मिसाल है, तो हमने प्रभावित केंद्र के लिए फिर से परीक्षा आयोजित कर ली है. एक केंद्र पर जो हुआ, उसके लिए बाकी लाखों छात्र क्यों पीड़ित हों?”
लेकिन बीपीएससी की प्रतिक्रिया रिया कुमारी और रोहतास जिले के 28-वर्षीय एससी एस्पिरेंट जैसे बच्चों के लिए एक झटका है, जो अभी भी लाठीचार्ज के जख्मों को सह रहे हैं.
2020 में कोविड-19 का जोखिम उठाकर वह सिर्फ BPSC परीक्षा की तैयारी के लिए पटना आए थे, लेकिन वे अभी तक सफल नहीं हो पाए हैं. 29 दिसंबर तक उन्होंने हर विरोध प्रदर्शन में हिस्सा लिया, जब वे घायल अवस्था में अपने एक कमरे में वापस आ गए. कुछ दिन पहले, वे और 50 अन्य एस्पिरेंट बोरिंग रोड पर प्रियम नामक एक निजी लाइब्रेरी में एकत्र हुए. उन्होंने इस अंधेरी, गंदी लाइब्रेरी में बैठकर सुबह 9 बजे से रात 8 बजे तक पढ़ाई करने के लिए हर महीने एक हज़ार रुपये दिए थे.
नाम न बताने की शर्त पर एस्पिरेंट ने कहा, “आयोग को हमारे जैसे लोगों की गंभीरता और कड़ी मेहनत नहीं दिखती. एक पेपर लीक सालों की मेहनत पर पानी फेर देता है. मेरे जैसे किसी व्यक्ति के लिए, यह न केवल पीढ़ी दर पीढ़ी चली आ रही गरीबी से मुक्ति पाने का एक तरीका है, बल्कि अपनी कहानी को फिर से लिखने का एकमात्र रास्ता भी है.”
“आप नहीं जानते, हो सकता है कि मैं एक दिन इंटरव्यू तक पहुंच जाऊं और मैं नहीं चाहता कि वे मुझे पहचानें.”
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