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Sunday, 22 December, 2024
होमफीचर'2001 की चुनावी हिंसा ने जिंदगी बदल दी', बांग्लादेश में गैंगरेप पीड़िता को 2024 चुनाव का सता रहा है डर

‘2001 की चुनावी हिंसा ने जिंदगी बदल दी’, बांग्लादेश में गैंगरेप पीड़िता को 2024 चुनाव का सता रहा है डर

जुलाई में बांग्लादेश में हिंसा भड़की थी. बीएनपी चुनाव जीतने के लिए सड़कों पर उतर आई थी. यह चुनाव के बाद हुई उस हिंसा की याद दिलाता है जब वह 2001 में जीती थी.

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ढाका: जब 29 जुलाई को टीवी पर बसों में आग लगाए जाने, राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ पुलिसकर्मियों की झड़प और ढाका की सड़कों पर कॉकटेल बम विस्फोट की तस्वीरें देखीं, तो 2001 की सामूहिक बलात्कार पीड़िता पूर्णिमा रानी शील के पेट में दोबारा दर्द शुरू हो गया. देश की मुख्य विपक्षी पार्टी बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के शेख हसीना सरकार के खिलाफ धरने के बाद बांग्लादेश की सड़कों पर हिंसा भड़क उठी थी.

ढाका मेट्रोपॉलिटन पुलिस ने बांग्लादेश यूनाइटेड न्यूज़ को बताया कि बीएनपी कार्यकर्ताओं ने राजधानी की सभी महत्वपूर्ण सड़कों को जाम कर दिया और जब पुलिस ने यातायात की आवाजाही को आसान बनाने के लिए उन्हें हटाने की कोशिश की, तो उन्होंने पुलिस और उनके वाहनों पर पथराव करना शुरू कर दिया. उन्होंने बसों में भी आग लगा दी और कॉकटेल बम भी फेंके.

दिप्रिंट से बात करते हुए, शील ने कहा कि बांग्लादेश में जनवरी 2024 के आम चुनावों ने उन्हें डर से भर दिया है. एक राजनीतिक परिवर्तन अतीत की भयावहता को वापस ला सकता है, जिस तरह की भयावहता को वह देखने के 22 साल बाद भी वह उससे उबर नहीं पाई है. उन्होंने कहा कि बांग्लादेश की सड़कों पर हिंसा इसे और बदतर बनाती है.

उन्होंने कहा, “अगर बीएनपी और जमात बांग्लादेश में फिर से सत्ता में आते हैं, तो मेरे पास जाने के लिए कहीं नहीं होगा. मैं उस दौर से नहीं गुजर सकती जिस दौर से मैं 2001 में गुजरी थी.”

29 जुलाई की हिंसा से ठीक पहले, बीएनपी के कार्यवाहक प्रमुख तारिक रहमान ने अपनी पार्टी से कहा था कि “देश का भाग्य सड़कों पर तय किया जाएगा.”

शील ने कहा, “लोकतंत्र का अभ्यास सड़कों पर नहीं किया जाता है. सड़कों पर अराजकता फैली है. लेकिन रहमान को इसका पता भी नहीं चलेगा.”

रहमान के बयान की मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और अल्पसंख्यक समुदाय के नेताओं ने भी आलोचना की.

शील को क्या हुआ था?

शील का नाम अगर आप साधारण रूप से Google पर सर्च करेंगे तो आपको 2001 में शिल द्वारा झेली गई कठिन मुश्किलों का पता चल जाएगा. उन्होंने कहा, “मैं मुश्किल से एक किशोरी थी जब उन्होंने मेरे साथ सामूहिक बलात्कार किया और मेरे जीवन को नष्ट कर दिया गया. मेरी कहानी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सुर्खियां बनी लेकिन किसी ने भी मेरी तकलीफ की परवाह नहीं की जिसका मुझे सामना करना पड़ा.”

2001 में, बीएनपी और बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व वाले गठबंधन ने बांग्लादेश में आम चुनाव जीता. चुनाव के बाद हिंसा हुई और अवामी लीग समर्थक और धार्मिक अल्पसंख्यकों के सदस्य निशाने पर थे.

शील ने कहा, “मैं सिराजगंज जिले के पेरबा डेलुआ में अवामी लीग की 12 वर्षीय पोलिंग एजेंट थी. मैंने चुनाव के दौरान बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के कार्यकर्ताओं द्वारा किए जा रहे चुनावी कदाचार का विरोध किया था. नतीजे आने के बाद 8 अक्टूबर 2001 को मेरे घर पर लगभग 30-40 लोगों ने हमला कर दिया. उन्होंने मेरे कपड़े फाड़ दिए और गमछा से मेरा चेहरा बांध दिया. मैं उन्हें पहचानती थी. मैं उनकी टार्च की रोशनी से उनका चेहरा देख सकती थी. वे मुझे पास के एक खेत में ले गए और एक के बाद एक मेरे साथ तब तक बलात्कार किया जब तक मैं बेहोश नहीं हो गई.”

शील ने कहा कि हमले में उसकी बहन की आंखों की रोशनी चली गई और उसके पिता का सैलून लूट लिया गया. उसके परिवार को भागने के लिए मजबूर होना पड़ा. पूर्णिमा ढाका आई और अवामी लीग के सदस्यों ने उसके इलाज की व्यवस्था की. वह फिर कभी अपने गांव वापस नहीं जा सकी.

उन्होंने कहा, “मेरी हालात फिर कभी भी पूरी तरह से ठीक नहीं हुई. लेकिन मेरे साथ जो कुछ भी बचा था, जो कुछ उन्होंने मेरे साथ किया उसके बाद मैंने अपने गांव से जो कुछ भी वापस ला सकती थी, उसे मैं ढाका ले आयी. क्योंकि ग्रामीण काफी भयभीत थे. हिंदू होना किसी हुजूर [एक मुस्लिम धार्मिक उपदेशक] की सनक या किसी पड़ोसी की जहरीली फुसफुसाहट के कारण अभिशाप बन सकता है.”


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2009 में अवामी लीग के सत्ता में लौटने के बाद ही उसके बलात्कारियों के खिलाफ मुकदमा शुरू हुआ. 4 मई 2011 को, उसके साथ सामूहिक बलात्कार के लिए 11 लोगों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई और प्रत्येक पर एक लाख बांग्लादेशी टका का जुर्माना लगाया गया. उसके छह बलात्कारी हिरासत में हैं, जबकि पांच लोग भागे हुए हैं.

उन्होंने कहा, “पुलिस उन पांचों को कभी नहीं पकड़ सकी जो मेरे साथ बलात्कार करने के बाद छिप गए थे. जो लोग जेल में हैं उन्होंने कोर्ट से रहम की अपील की है. उनके दोस्त और रिश्तेदार मुझे प्राइवेट नंबरों से कॉल करते हैं और गालियां देते हैं. वे मुझसे कहते हैं कि जब बांग्लादेश में सरकार बदलेगी तो मेरे साथ फिर से बलात्कार किया जाएगा. मेरे नाम का उपयोग करके सेक्स वीडियो प्रसारित किए जाते हैं. कल्पना कीजिए कि जब मैं बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा देखती हूं तो मुझे क्या महसूस होता है, जबकि अब आम चुनाव करीब हैं.”

2001 की हिंसा

बांग्लादेश में सबसे बड़े अल्पसंख्यक संगठन, बांग्लादेश हिंदू बौद्ध ईसाई ओइक्या परिषद के महासचिव राणा दासगुप्ता ने कहा कि शील 2001 में चुनाव के बाद की हिंसा के कई पीड़ितों में से एक थी. उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “तब लूटपाट, बलात्कार, पूजा स्थलों को जलाने और अल्पसंख्यक नेताओं की हत्या की 28,000 से अधिक घटनाएं दर्ज की गईं. यहां तक ​​कि बांग्लादेश और जमात के कुछ राजनीतिक कार्यकर्ता भी, जो बाद में मंत्री बने, हिंसा में शामिल पाए गए थे.”

उन्होंने रहमान के हालिया संदेश की निंदा की. उन्होंने कहा, “यह अल्पसंख्यकों और इस देश में लोकतंत्र में हिस्सेदारी रखने वाले अन्य सभी लोगों के लिए बहुत परेशान करने वाला है. मुझे आश्चर्य नहीं है कि पूर्णिमा रानी शील इससे प्रभावित हैं.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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