हर शाम 4 बजे, ट्रैफिक पुलिस अधिकारी कृष्ण मुरारी दुबे और उनकी तीन हेड कॉन्स्टेबल्स की टीम नोएडा की एक लगभग 300 मीटर लंबी मुख्य सड़क पर पहुंचती है. उनके पास एक घंटे का वक्त होता है ताकि सड़क को दिल्ली और स्थानीय खरीदारों से आने वाली गाड़ियों से पहले अवैध स्ट्रीट वेंडर्स से खाली कराया जा सके. ये जगह है मशहूर अट्टा मार्केट, जो कभी नोएडा की शान हुआ करती थी, और अब कैप्टन विजयंत थापर मार्ग पर दुबे और उनकी टीम की परेशानी की वजह बनी हुई है.
दुबे ने दिप्रिंट से कहा, “जैसे ही हम मुख्य मार्केट से हटते हैं, ठेले वाले अपनी अस्थायी दुकानें फिर से लगा लेते हैं.”
लेकिन 25 साल पहले चीजें बहुत अलग थीं. कभी “नोएडा का कनॉट प्लेस” कहे जाने वाले अट्टा मार्केट को सैटेलाइट टाउन के एक प्रमुख व्यावसायिक केंद्र के रूप में कल्पना की गई थी, जो फिलहाल अपनी 50वीं सालगिरह मना रहा है. आज यह मार्केट—जिसमें 700 से ज़्यादा दुकानें हैं—अपने पुराने रूप की एक हल्की परछाईं बनकर रह गई है, और अब यह सरोजिनी नगर के एक अराजक और छोटे संस्करण जैसा दिखता है. फुटपाथ और सड़क के हिस्सों पर कब्जा कर चुके ठेलेवालों की वजह से पिछले तीन दशकों से यहां व्यापार कर रहे दुकानदारों का धंधा बुरी तरह प्रभावित हुआ है. भीड़-भाड़, ट्रैफिक जाम, पार्किंग की जगह नहीं होना और खतरनाक बिजली की तारें—ये सब मिलकर इसके अस्त-व्यस्त हालात की वजह बने हैं. इस पूरे झंझट के पीछे कई लोग गुज्जर वर्चस्व को जिम्मेदार मानते हैं. वे ठेलेवालों से मोटा किराया वसूलते हैं, जो जाम की वजह बनते हैं. वहीं ठेलेवाले एक तय जगह की मांग करते हैं जहां वे अपना काम कर सकें.
“पुलिस, गुज्जर मकान मालिक और यहां तक कि सरकार—कोई कुछ करने को तैयार नहीं,” अली हसन ने कहा, जो 2002 से सेक्टर 18 मेट्रो स्टेशन के नीचे एक अस्थायी जूते की दुकान चला रहे हैं.
उन्होंने आगे कहा, “अब तो हमारी सुरक्षा भगवान भरोसे है.”

अतीत की छाया
जब सीबी झा 1982 में पंजाब से नोएडा एक होम्योपैथिक डॉक्टर के रूप में आए, तब अट्टा मार्केट एक शांत, कम विकसित इलाका था जिसमें कुछ गिनी-चुनी दुकानें थीं. दशकों में उन्होंने इस मार्केट का रूपांतरण देखा है — शुरुआती संघर्षों से लेकर इसके सुनहरे दौर तक, और अब इसकी धीमी और दर्दनाक गिरावट तक. झा अट्टा मार्केट ट्रेडर्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष हैं.
“तब ये जगह सुनसान रहती थी. कोई सुविधा नहीं थी और सूरज ढलने के बाद कोई यहां आता भी नहीं था — चारों तरफ जंगल ही जंगल था,” झा ने याद करते हुए कहा. “1995 में हमने दिवाली का एक आयोजन किया — मार्केट को सजाया, छूट दी, और हैम्पर बांटे — तभी लोग हमें नोटिस करने लगे.”
यही था इसकी चढ़ाई की शुरुआत, और जैसे-जैसे विकास हुआ, भीड़ भी बढ़ती गई. उन्होंने वो समय याद किया जब अट्टा शादी की खरीदारी के लिए पहली पसंद था — अब लोग चांदनी चौक जाते हैं.
80 वर्षीय झा ने बताया, “तब के ज़माने का कोई भी ब्रांड ले लो — यहां मिलता था. त्योहारों और शादी के सीजन में लोग दिल्ली और गाज़ियाबाद से अट्टा शॉपिंग करने आते थे. कई बार तो डिमांड पूरी नहीं हो पाती थी.”
आज का नज़ारा बिल्कुल अलग है. कई दुकानदारों ने या तो दुकानें बंद कर दी हैं या मुश्किल से चला रहे हैं. जो कभी एक चहल-पहल वाला कमर्शियल हब था, अब एक सस्ते बाज़ार में बदल गया है, जहां ज़्यादातर लोग सस्ते कपड़े, चश्मे, नकली गहने, घड़ियां, मोबाइल रिपेयर जैसी चीज़ें लेने आते हैं.

झा के मुताबिक, टर्निंग पॉइंट 2009 में दिल्ली मेट्रो लाइन के आने के साथ आया.
उन्होंने कहा कि मेट्रो अधिकारियों ने अट्टा मार्केट को तोड़ने का प्लान बनाया था — जिसे बातचीत के ज़रिए अट्टा ने किसी तरह टाल दिया.
“मेट्रो से तो हमने लड़ाई जीत ली, लेकिन नोएडा प्रशासन ने हमें सौतेले बच्चे की तरह ही ट्रीट किया,” झा ने अट्टा को लेकर दिखाई गई कथित उदासीनता का जिक्र करते हुए कहा. “सरकार ने सेक्टर 18 के मॉल्स वगैरह के लिए करोड़ों खर्च किए, लेकिन अट्टा के लिए एक रुपया भी नहीं दिया.”
आज मार्केट के अंदर और आसपास कम से कम 16 गड्ढे खुले पड़े हैं, जिनके बारे में अध्यक्ष का कहना है कि ये “नज़रअंदाज़ किए जाने का प्रतीक हैं.”
कमल सलूजा, जो अट्टा में 40 साल से फर्नीचर की दुकान चला रहे हैं, कहते हैं “मार्केट खंडहर बन चुका है.”
अपने बिज़नेस के पहले दो-तीन दशकों में सलूजा हर महीने लगभग दो लाख रुपये की बिक्री करते थे. अब तो कई बार दिनभर में एक भी ग्राहक नहीं आता.

उन्होंने कहा, “इन ठेले वालों ने हमारा व्यापार बर्बाद कर दिया। हमारे ग्राहक पहले हाई-एंड होते थे — अब वे सब मॉल्स की तरफ चले गए हैं.”
सलूजा और उनके जैसे कई दुकानदार खुद को फंसा हुआ महसूस करते हैं. वे कहीं और की आसमान छूती किरायेदारी वहन नहीं कर सकते, जबकि अट्टा में व्यापार लगातार घट रहा है.
“अब तो अपनी जेब से दुकान चला रहे हैं.”
‘जमींदारों का आतंक’
जिस ज़मीन पर अट्टा मार्केट बना है, वो अट्टा गांव के गुर्जर समुदाय की है, जो मेन मार्केट के ठीक पीछे बसा हुआ है. यह समुदाय यहां दशकों से रह रहा है.
जब सलूजा ने 40 साल पहले अट्टा मार्केट में अपनी दुकान खोली थी, तो उनके गुर्जर मकान मालिक से रिश्ते पारिवारिक जैसे थे. किराए में मामूली बढ़ोतरी होती थी, त्योहारों पर मिठाईयों का लेन-देन होता था और मकान मालिक अक्सर दुकानदारों के साथ घंटों बैठकर बातें करते थे. लेकिन समय के साथ, जब नई पीढ़ी ने कमान संभाली, तो ये रिश्ते कमजोर हो गए.
“आज दुकानदार मकान मालिकों से डरते हैं,” सलूजा ने कहा और 2014 की उस भयावह घटना को याद किया जो उनकी दुकान से कुछ किलोमीटर दूर घटी थी.

एक 35 वर्षीय फर्नीचर व्यापारी नवीन आहूजा की उसके मकान मालिक शिब्बू अवाना ने कथित तौर पर उसकी दुकान में ही गोली मारकर हत्या कर दी थी. दोनों के बीच किराए को लेकर लंबे समय से विवाद चल रहा था.
सलूजा के मुताबिक, नई पीढ़ी के मकान मालिकों में उनके पिता जैसी गर्मजोशी और सद्भाव नहीं है.
“उनका पूरा ध्यान सिर्फ पैसे पर है। और अभी सबसे बड़ा पैसा ठेले वालों से आ रहा है, तो सारा फोकस उन्हीं पर है,” उन्होंने कहा.
कुमार ने आरोप लगाया कि मकान मालिक सिर्फ दुकानों से ही नहीं, बल्कि उन ठेले वालों से भी किराया वसूलते हैं जो सार्वजनिक फुटपाथ पर दुकान लगाते हैं.
दीपक कुमार, 41 साल के हैं और 2000 से अट्टा मार्केट में मोबाइल रिपेयर और कवर की दुकान चला रहे हैं. उस समय उनकी 6 बाई 9 वर्गफुट की दुकान का किराया 6,000 रुपये था. आज, वो दावा करते हैं कि वो हर महीने 1,20,000 रुपये किराया दे रहे हैं.
उन्होंने कहा, “हम कमाते तो हैं, लेकिन बचा नहीं पाते. सब कुछ किराए में चला जाता है। जो खाते हैं, पहनते हैं, वही हमारी कमाई है.”
कुमार के मुताबिक, अस्थायी दुकान वालों पर हर तरफ से दबाव है.
“गुर्जर मकान मालिक हमसे ज़्यादा किराया लेते हैं क्योंकि हम ज़्यादा बिक्री करते हैं. और पुलिस भी हमारी दुकानों के पीछे पड़ी रहती है,” कुमार ने कहा. “सरकार को हमें एक तय जगह देनी चाहिए जहां हम व्यापार कर सकें. हम यहां 1 लाख दे रहे हैं, सरकार को 50,000 देने को तैयार हैं.”
जितेंद्र चौधरी, जो एक गुर्जर मकान मालिक हैं और अट्टा मार्केट इलाके में लगभग 100–150 रिहायशी और कमर्शियल यूनिट्स के मालिक हैं, वे इस बात को जानते हैं कि मकान मालिकों की इलाके में कैसी छवि है. लेकिन उन्होंने “मकान मालिकों का आतंक” होने की बात को “ज्यादातर झूठ” बताया.
“यही किराया ही हमारी एकमात्र आमदनी है — हमारे पास और कोई आजीविका नहीं है,” चौधरी ने कहा, जो अट्टा के तीसरी पीढ़ी के निवासी हैं.
“लेकिन अगर दुकानदार नियमित रूप से किराया नहीं देते और हमारी जगह का इस्तेमाल करते रहते हैं, तो हमारे पास कार्रवाई करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचता.” किराया नहीं देने पर दुकानें जबरन खाली कराई जाती हैं.
उन्होंने ये भी खारिज किया कि मकान मालिक ठेले वालों से पैसे लेते हैं. यह दुकानदारों और मकान मालिकों की बातों में टकराव है — दोनों की कहानी अलग है.

उन्होंने कहा, “मैं अपनी बात करूं तो मैं किसी ठेले वाले से पैसे नहीं लेता. जिन मकान मालिकों को मैं जानता हूं, वो भी नहीं लेते. तो मुझे नहीं पता ये लोग किसे पैसे दे रहे हैं.”
यातायात अव्यवस्था
सेक्टर 18 मेट्रो स्टेशन के आसपास ट्रैफिक जाम एक आम समस्या है, जिसमें अट्टा मार्केट, वहां के ठेले-खोमचे और अवैध पार्किंग का बड़ा हाथ है.
खास बात ये है कि अट्टा में कोई पार्किंग की सुविधा नहीं है. सबसे पास की कार पार्किंग सेक्टर 18 पॉकेट ए में है, जो सड़क के पार है. मेट्रो स्टेशन भी भीड़भाड़ के समय में इस अफरा-तफरी को और बढ़ा देता है.
“शाम 5 बजे से रात 9 बजे तक यहां पूरा हंगामा रहता है,” ड्यूटी पर तैनात दुबे ने कहा, जिन्हें छह महीने पहले यहां भेजा गया था.
ठेले वालों को हटाने के बाद भी लोग अपनी गाड़ियां चलती लेन में पार्क कर देते हैं, और फूड स्टॉल्स पर भीड़ लग जाती है, जिससे ट्रैफिक और बिगड़ जाता है.

उन्होंने जोड़ा, “अगर एक फ्लाईओवर बन जाए, तो यहां की सारी ट्रैफिक समस्याएं खत्म हो जाएंगी.”
ई-रिक्शा और ऑटो भी मेट्रो स्टेशन और मार्केट के पास जहां-तहां सवारी चढ़ाने-उतारने के कारण जाम को बढ़ाते हैं.
नोएडा की शहरी योजना की कमज़ोर कड़ी अट्टा जैसे इलाके हैं, जहां रिहायशी और व्यावसायिक इलाका एक साथ बसा है. ये ट्रैफिक जाम का एकदम पक्का कारण है.
अट्टा मार्केट की अव्यवस्था पूरी तरह से प्लानिंग की कमी से जुड़ी है, ऐसा कहना है अज़ीम ख़ान का, जो सेक्टर 18 मार्केट एसोसिएशन की योजना और विकास में शामिल रहे हैं. उन्होंने बताया कि वो 1999 से नोएडा अथॉरिटी के साथ काम कर रहे हैं, जब मार्केट के लिए एक ब्लूप्रिंट तैयार किया गया था.
55 साल के खान के मुताबिक, आखिरकार मार्केट के लिए प्लान, गाइडलाइंस और निर्माण के नियम खुद अथॉरिटी ने ही दिए थे. लेकिन अट्टा थोड़ा अलग है. ये अट्टा गांव के निवासियों की ज़मीन पर बना है.
उन्होंने कहा, “यहां कोई भी ढांचा या सिस्टम नहीं है— न कोई नियम, न कायदे.”
कई दुकानदारों ने कहा कि चूंकि यह इलाका गुर्जर बहुल है, इसलिए प्रशासन दखल नहीं देता.
नोएडा के सेक्टर 18 और सेक्टर 38 में बने सेंट्रल स्टेज मॉल, द ग्रेट इंडिया प्लेस और डीएलएफ मॉल ऑफ इंडिया जैसे मॉल्स में बढ़ती भीड़ का सीधा असर अट्टा मार्केट के आसपास के ट्रैफिक पर भी पड़ा है.
पिछले साल अक्टूबर में त्योहारों के मौसम के दौरान, ट्रैफिक पुलिस ने अट्टा मार्केट और अट्टा पीर के बीच की 250 मीटर की सड़क पर अतिक्रमण हटाओ अभियान चलाया था, ताकि ट्रैफिक सुधारा जा सके.

नोएडा सेक्टर के एसएचओ धरम प्रकाश शुक्ला ने कहा, “उस इलाके में पुलिस की स्थायी तैनाती है.”
शुक्ला के मुताबिक, इलाके में सबसे ज़्यादा ट्रैफिक मेट्रो के कारण है, न कि सिर्फ ठेले वालों की वजह से. उन्होंने बताया कि पुलिस की तरफ से कई बार नोएडा अथॉरिटी को पत्र भेजे गए हैं, जिनमें ठेले-खोमचों को हटाने की मांग की गई है, लेकिन अभी तक कोई कार्रवाई नहीं हुई है.
शुक्ला ने कहा, “ये दिखाता है कि इनके पीछे कोई न कोई ताकत है। कई लोग और विभाग इसमें शामिल हैं.”
हालांकि, अस्थायी दुकान लगाने वाले खुद को लाचार मानते हैं.
“हम जाएं तो जाएं कहां?” 42 साल के मुकेश शाह ने कहा, जो पिछले 15 सालों से अट्टा में शर्ट और जींस बेचने का स्टॉल चला रहे हैं.
आग लगने की आशंका वाला क्षेत्र
दिल्ली मेट्रो की ब्लू लाइन, जो लैफ्टिनेंट विजयंती थापर मार्ग और सेक्टर 18 मेट्रो स्टेशन के ऊपर से गुजरती है, दो नोएडा को अलग करती है. एक तरफ है पुराना, भीड़-भाड़ वाला अट्टा मार्केट और दूसरी तरफ हैं मॉल्स और ब्रांडेड आउटलेट्स जो मेट्रो आने के बाद बने. इन्हीं मॉल्स और आउटलेट्स ने अट्टा मार्केट के दुकानदारों की कमाई छीन ली और एक लगातार ट्रैफिक का बहाव छोड़ दिया.
अट्टा मार्केट के वीआईपी ग्राहक अब कम भीड़भाड़ वाले और एसी वाले मॉल्स को पसंद करते हैं, जहां बेहतर पार्किंग और सलीकेदार शॉपिंग का अनुभव मिलता है—जो अट्टा की अव्यवस्थित गलियों में मुमकिन नहीं था.
फिर भी मार्केट ज़िंदा रहा, वक्त के आगे हार मानने से इनकार करता हुआ.

लेकिन उसकी उम्र दिखती है—सिर्फ दीवारों की रंगत उतरने या शटर के जंग लगने से नहीं, बल्कि उन उलझे हुए और खुले बिजली के तारों से जो खंभों पर लिपटे हैं और सिर के ऊपर लटकते हैं.
अब यह इलाका आग लगने की घटनाओं के लिए संवेदनशील बन चुका है.
इस साल की शुरुआत में सेक्टर 18 के कृष्णा अपरा प्लाज़ा में आग लग गई, जब एक रियल एस्टेट ऑफिस में एसी फट गया. ये ऑफिस पहली मंज़िल पर था। सौभाग्य से कोई जनहानि नहीं हुई. लेकिन इसने दुकानदारों को डरा जरूर दिया.
हसन ने कहा, “डर के मारे काम नहीं छोड़ सकता। घर पर बच्चे हैं.”
पिछले साल मई में, नोएडा फायर डिपार्टमेंट ने अट्टा मार्केट में एक जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें ज़मीन मालिकों और दुकानदारों से पैनल ठीक करने की अपील की गई ताकि शॉर्ट-सर्किट से बचा जा सके. साथ ही दुकानदारों को यह भी बताया गया कि आग लगने की स्थिति में क्या-क्या सावधानी बरतनी चाहिए.
चौधरी ने भी माना कि मार्केट को खतरा है.
उन्होंने कहा, “हम शॉर्ट-सर्किट के बारे में सुनते हैं, खासकर गर्मियों में, जब लोड ज़्यादा होता है… ये खतरा बना रहता है लेकिन हम क्या करें?”

उन्होंने बताया कि बिजली की तारों को ज़मीन के नीचे डालने की कोशिश की गई थी लेकिन वो फेल हो गई क्योंकि पानी की पाइपें फट जाती थीं.
चौधरी ने कहा कि उन्होंने एनपीसीएल (नोएडा पावर कंपनी लिमिटेड) को कई बार पत्र लिखे हैं ताकि खुले तारों को दुरुस्त किया जाए और पूरा वायरिंग सिस्टम ज़मीन के नीचे किया जाए, लेकिन हर बार सिर्फ एक जैसा जवाब मिला — “हम इस पर ध्यान देंगे.”
यह लेख ‘नोएडा@50’ सीरीज का हिस्सा है.
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