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Friday, 15 November, 2024
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ज्ञानवापी मामले में महिला याचिकाकर्ताओं की लड़ाई सिर्फ मंदिर की नहीं- वे एक-दूसरे का भी विरोध कर रही हैं

ज्ञानवापी में हिंदुओं के लिए दैनिक पूजा के अधिकार की मांग करने वाले मामले में मुख्य याचिकाकर्ता राखी सिंह पर उनके सह-याचिकाकर्ताओं द्वारा भागने एवं किसी और के इशारों पर काम करने का आरोप लगाया गया है.

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वाराणसी: सावन का महीना चल रहा है जिस कारण वाराणसी की गलियां उपासकों के हलचल से भरी हुई हैं और उसी के बीच से अपनी सुरक्षा के लिए नियुक्त सशस्त्र पुलिस गार्ड के साथ तेजी से चलते हुए, राखी सिंह गुजरती हैं. चमकीले गुलाबी और केसरिया सूट में, वह आत्मविश्वास से काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में ज्ञानवापी मस्जिद में प्रवेश करती है. वह ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर हिंदुओं के लिए दैनिक पूजा के अधिकार की मांग करने वाले मामले में प्राथमिक याचिकाकर्ता हैं, और यही कारण है कि इसके द्वार निरीक्षण के लिए खोले गए हैं.

इस महीने की शुरुआत में, राखी सिंह ने ज्ञानवापी मस्जिद के भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) के ‘वैज्ञानिक सर्वेक्षण’ का निरीक्षण करने के लिए वाराणसी को अपना आधार बनाया था, जिसका आदेश वाराणसी की एक अदालत ने इस साल जुलाई में दिया था.

उन्होंने कहा, “जैसे ही मैंने [8 अगस्त को एएसआई सर्वेक्षण के] पहले दिन परिसर में प्रवेश किया, मुझे बहुत शांति महसूस हुई और वहां एक सकारात्मक ऊर्जा थी. हालांकि दीवारें खंडहर हो चुकी थीं, फिर भी मुझे महसूस हो रहा था कि यह हमारा मंदिर है. मैं अभिभूत थी और मुझे ऐसा महसूस हो रहा था, मानो यहां हमारे देवता मौजूद हैं और उनके सामने हमें झुकना चाहिए जैसे हम किसी मंदिर में झुकते हैं. मैं सोच रही थी कि हमारे महादेव, जो इतने लंबे समय से फंसे हुए हैं, उन्हें जल्द ही मुक्त किया जाना चाहिए ताकि दुनिया को पता चल सके कि उस इमारत में क्या है.”

सिंह को नमाज अदा की जाने वाली कमरे में प्रवेश करने से रोके जाने से पहने उन्होंने प्रत्येक कमरे का दौरा किया. “मुझे बताया गया कि महिलाएं अंदर नहीं जा सकतीं.” वह हर दिन ज्ञानवापी मस्जिद परिसर का दौरा करती रही हैं और इससे इस मामले में कई और साल समर्पित करने का उनका संकल्प मजबूत हुआ है.

उन्होंने कहा, “हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं कि मस्जिद के अंदर सभी दीवारें मंदिर की हैं. लेकिन केवल गुंबद मस्जिद के हैं. केस का अंत हिंदुओं के पक्ष में होगा. लेकिन तब तक, हम उन्हें (मुसलमानों को) प्रार्थना करने से नहीं रोक सकते.”

Petitioner Rakhi Singh on the way to Gyanvapi mosque to observe the ASI survey team. She has been provided security since she filed a case demanding praying rights inside the Gyanvapi mosque complex | Sonal Matharu, ThePrint
याचिकाकर्ता राखी सिंह एएसआई सर्वेक्षण टीम का निरीक्षण करने के लिए ज्ञानवापी मस्जिद जाते हुए. ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर प्रार्थना करने के अधिकार की मांग को लेकर मामला दायर करने के बाद से उन्हें सुरक्षा प्रदान की गई है | सोनल मथारू, दिप्रिंट

यह पहली बार है जब राखी सिंह अपने मामले के विकास में सक्रिय रूप से भाग ले रही हैं, जो 2021 में चार अन्य याचिकाकर्ताओं – लक्ष्मी देवी, सीता साहू, मंजू व्यास और रेखा पाठक – के साथ दायर किया गया था. छ: और 1.5 वर्ष की आयु के दो बच्चों की मां 30 वर्षीय याचिकाकर्ता पर अंततः उसके सह-याचिकाकर्ताओं द्वारा बाहरी और नकली होने का आरोप लगाया गया. वाराणसी से लंबे समय तक अनुपस्थित रहने के कारण उन्होंने कथित तौर पर उन्हें ‘भगोड़ा’ कहा था. आलोचना से परेशान होकर सिंह ने पिछले महीने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू को एक खुला पत्र लिखकर अपना जीवन समाप्त करने की अनुमति मांगी थी.

“मई 2022 में, महिलाओं और उनके वकीलों ने फर्जी खबर फैलाई कि मैं मामले से अपना नाम वापस ले रही हूं. न तो मैंने और न ही मेरे चाचा जितेंद्र सिंह बिशेन ने ऐसा कोई बयान दिया. इस फर्जी खबर को फैलाकर वे हमें हिंदू समुदाय में गद्दार के रूप में प्रदर्शित कर रहे हैं. हम बहुत मानसिक दबाव में हैं,” उन्होंने राष्ट्रपति मुर्मू को लिखे अपने पत्र में यह सब लिखा, जिसे उन्होंने व्हाट्सएप पर मीडिया को प्रसारित किया था.


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क्या पुरुष दोषी हैं?

सिंह के मामले को करीब से देखने वाले निवासियों के अनुसार, उनके सह-याचिकाकर्ता समस्या नहीं हैं; उनका कहना है कि इस कीचड़ उछालने की कोशिश का नेतृत्व सुर्खियों में आने की कोशिश कर रहे लोग कर रहे हैं. सिंह ने अपने चाचा बिशेन, विश्व वैदिक सनातन संघ के संस्थापक को पावर ऑफ अटॉर्नी प्रदान की, जो ज्ञानवापी पर कुछ मामलों का संचालन करने वाला ट्रस्ट है. इस बीच, वकील हरि शंकर जैन और उनके बेटे विष्णु शंकर जैन मामले में अन्य चार याचिकाकर्ताओं का प्रतिनिधित्व करते हैं.

निवासियों का दावा है कि याचिकाकर्ता और उनके वकील “लोगो का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए” इन मामलों को आगे बढ़ा रहे हैं. आख़िरकार एएसआई सर्वेक्षण आदेश ने ज्ञानवापी मस्जिद पर ध्यान केंद्रित कर दिया.

Busy lanes next to the Kashi Vishwanath temple and Gyanvapi mosque complex | Sonal Matharu, ThePrint
काशी विश्वनाथ मंदिर और ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के बगल में लोगो और गाड़ियों से भरी हुई गलियां | सोनल मथारू, दिप्रिंट

भाजपा के सदस्य और 1991 में ज्ञानवापी मस्जिद पर वाराणसी अदालत में जाने वाले पहले व्यक्तियों में से एक हरिहर पांडे कहते हैं, “मैं सर्वेक्षण को स्वीकार नहीं करता. याचिकाकर्ताओं को मंदिर और मस्जिद के बारे में कुछ भी पता नहीं है. वे प्रचार के कारण इस मामले का हिस्सा बनने के लिए सहमत हो गए हैं.”

इस मामले को पहले से ही हिंदुओं के लिए एक बड़ी सफलता माना जा रहा है क्योंकि इसने अदालतों में 1991 के पूजा स्थल अधिनियम के तहत स्थिरता की बाधा को पार कर लिया है. लेकिन याचिकाकर्ताओं और वकीलों के बीच खुली फूट के कारण दरारें उभरने लगी हैं. मामले से करीबी तौर पर जुड़े लोगों का कहना है कि यह विभाजन अदालत के नतीजे पर असर डाल सकता है और हिंदुओं के खिलाफ भी जा सकता है.

बिशेन कहते हैं, “मामले में विभाजन के कारण ध्यान ज्ञानवापी मुद्दे से हटकर व्यक्तिगत प्रचार पर केंद्रित हो रहा है. अदालत में परस्पर विरोधी प्रार्थना पत्र दिए जाते हैं, जिससे भविष्य में मुकदमे को नुकसान होगा. हमारा बड़ा लक्ष्य मंदिर को फिर से हासिल करने का होना चाहिए.”

याचिकाकर्ताओं के बीच बंटवारा

2021 में जब राखी सिंह के मामले को पहली बार सिविल कोर्ट में पेश किया गया तो इससे हलचल मच गई थी. पांच महिला याचिकाकर्ताओं और उनके वकीलों ने चतुराई से ज्ञानवापी भूमि विवाद मुद्दे को टाल दिया और बस एक मौलिक अधिकार – मस्जिद के अंदर पूजा करने का अधिकार – की मांग की.

पांचों महिलाओं ने शुरू में मीडिया के लिए एक संयुक्त मोर्चा प्रस्तुत किया. उन्होंने दावा किया कि एक सत्संग (प्रार्थना सभा) में मिलने के बाद उन्होंने “मामले को अदालत में ले जाने का फैसला किया”. लेकिन जल्द ही आपत्तियां सामने आने लगीं – अन्य चार याचिकाकर्ता तो कैमरों के सामने नज़र आते रहे और टीवी बहस में दिखाई दिए, जबकि राखी सिंह कहीं भी नजर नहीं आईं.

फिर, सिंह के वकील मीडिया और अदालत में अन्य याचिकाकर्ताओं के वकीलों के साथ भिड़ने लगे, जहां उन्होंने बार-बार एक-दूसरे की दलीलों का प्रतिवाद किया. उदाहरण के लिए, वाराणसी जिला अदालत में, सिंह के वकीलों ने ज्ञानवापी के विभिन्न पहलुओं को छूने वाले सात मामलों को एक साथ जोड़ने पर आपत्ति जताई. परन्तु जैनियों ने इसका समर्थन किया.

सिंह कहते हैं, “उन्होंने कहा कि मेरी जगह कोई और कागजात पर हस्ताक्षर कर रहा है. फिर उन्होंने सभी मामलों को एक साथ जोड़ दिया और उन मामलों को कमजोर कर दिया जो जमीन की मांग कर रहे थे.”

17 अगस्त को, बिशेन ने एक खुला पत्र लिखकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच मामले को अदालत के बाहर सुलझाने की अपील की, जिससे वकील फिर से सिंह के खेमे के साथ आमने-सामने आ गए.

इन सार्वजनिक असहमतियों की पृष्ठभूमि में सिंह ने कहा कि वह अपने सह-याचिकाकर्ताओं से पहली बार 8 अगस्त को मिलीं, जब वह एएसआई सर्वेक्षण का निरीक्षण करने के लिए ज्ञानवापी गईं थीं. लेकिन महिलाओं के बीच किसी भी तरह की बातचीत नहीं हुई.

“मैंने उनसे बात नहीं की. वे सभी मुझसे नाराज़ लग रहे थे, और उन्होंने मेरे बारे में जो कुछ भी कहा, क्या उसके बाद मुझे उनसे बात करनी चाहिए थी?”

Entry gate number 4 which has access to the Gyanvapi mosque and the Kashi Vishwanath Temple is heavily guarded since the ASI survey began in August | Sonal Matharu, ThePrint
एंट्री गेट नंबर 4, ज्ञानवापी मस्जिद और काशी विश्वनाथ में अगस्त में एएसआई सर्वेक्षण शुरू होने के बाद से भारी सुरक्षा की गई है | सोनल मथारू, दिप्रिंट

दिप्रिंट ने अन्य याचिकाकर्ताओं से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. विष्णु शंकर जैन ने भी दोनों खेमों के बीच मतभेद पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया.

याचिकाकर्ता का नेतृत्व करने के लिए राखी की यात्रा

जब सिंह ने ज्ञानवापी अदालत के कागजात पर हस्ताक्षर किए तब वह अपने दूसरे बच्चे के साथ छह महीने की गर्भवती थीं. डेढ़ महीने बाद, उनकी बेटी का जन्म समय से पहले हो गया. सिंह ने कहा, बच्ची के जन्म के बाद उसके स्वास्थ्य के कारणों ने उन्हें वाराणसी जाने से रोक दिया.

लेकिन “किसी को हिंदू मंदिर के लिए आगे आना होगा,” सिंह ने अपनी बेटी को गोद में लेते हुए कहा.

अदालत में, पांच महिलाओं ने दलील दी कि 1993 में मस्जिद की बैरिकेडिंग से पहले, हिंदू ज्ञानवापी मस्जिद परिसर के अंदर नियमित प्रार्थना करते थे. उनका तर्क है कि इमारत में कई “दृश्यमान और अदृश्य देवता” हैं और उन्हें प्रवेश की अनुमति दी जानी चाहिए.

सिंह ने कहा, “मुझे नहीं पता था कि या मामला इतना चर्चित हो जाएगा. इस मामले पर दायर पिछले मामलों की तरह, मुझे लगा कि इसे भी खारिज कर दिया जाएगा.”

इस बीच, वाराणसी में हिंदुओं का एक वर्ग, जो मंदिर और मस्जिद परिसर से निकटता से जुड़ा हुआ है, पांच याचिकाकर्ताओं की साख पर सवाल उठाता है.

काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत (पुजारी) राजेंद्र तिवारी कहते हैं, “जिन महिलाओं ने मामला दर्ज कराया है वे कभी मस्जिद परिसर में नहीं गईं. अब, वे श्रृंगार गौरी के माध्यम से मामले में प्रवेश करने की कोशिश कर रहे हैं.”

वाराणसी स्थित एनजीओ संकट मोचन फाउंडेशन के प्रमुख विश्वंभर नाथ मिश्रा पूछते हैं, “सिंह सहित याचिकाकर्ताओं का अधिकार क्षेत्र क्या है? इन महिलाओं को क्या दिलचस्पी है? उन्हें कोई नहीं जानता. वे इस मामले में महज़ कठपुतलियां हैं.”

लेकिन सिंह को केवल एक प्रतीकात्मक व्यक्ति के रूप में खारिज करने से इंकार कर दिया गया है जो अपने चाचा का आंख बंद करके अनुसरण करती है. वह दावा करती है कि वह उन सभी दस्तावेजों को पढ़ती है जिन पर वह हस्ताक्षर करती है और संदर्भ के लिए सॉफ्ट कॉपी भी संभाल कर रखती है.

भले ही उनका जन्म सितंबर 1993 में हुआ था, सिंह का कहना है कि वह श्रृंगार गौरी पूजा के मुद्दे पर विस्तृत पारिवारिक चर्चा सुनकर बड़ी हुई हैं. यह मामला “हिंदू हित” के लिए है, यही वजह है कि उन्होंने यह कदम उठाने का फैसला किया है.

उनका परिवार उत्तर प्रदेश के गोंडा के बीरपुर बिशेन गांव से है, लेकिन सिंह का जन्म और पालन-पोषण दिल्ली में हुआ. दिल्ली विश्वविद्यालय से अंग्रेजी ऑनर्स में ग्रेजुएट सिंह ने 18 साल के होने के एक महीने बाद शादी कर ली थी.

वाराणसी के एक होटल में अपनी छोटी बेटी के साथ रह रही, सिंह कहती हैं कि उनकी याचिका एक बड़ी लड़ाई की शुरुआत है – जो “ज्ञानवापी के नीचे दबे एक प्राचीन हिंदू मंदिर” को पुनः प्राप्त करने और मुक्त करने का प्रयास करती है.

सिंह वादियों के परिवार से आती हैं. उनके अलावा, उनके चाचा और उनकी पत्नी किरण बिशेन ने अपना मामला दर्ज कराया है. सिंह ने भी अगस्त में इलाहाबाद हाई कोर्ट में एक नया मामला दायर किया, जिसमें मस्जिद परिसर के भीतर जहां भी कलाकृतियां और मूर्तियां पाई गईं, उन स्थानों और क्षेत्रों को गैर-हिंदुओं के प्रवेश पर रोक लगाने के लिए सील करने को कहा गया. मामला वाराणसी जिला अदालत में स्थानांतरित कर दिया गया है.

उनके लिए ज्ञानवापी की लड़ाई न्याय की लड़ाई है.

वह कहती हैं, ”अगर एएसआई की टीम को पता चलता है कि वहां मस्जिद है तो मैं खुद योगी जी से अपील करूंगी कि वह वहां दोबारा मस्जिद बनवाएं.”

मामले के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के बावजूद, सिंह एक पत्नी और एक मां के रूप में अपनी जिम्मेदारियों से बच नहीं सकतीं.

“महिलाएं चांद पर जा सकती हैं, लेकिन उससे पहले उन्हें घर का चाय-नाश्ता तैयार करके जाना होगा.”

(संपादन: अलमिना खातून)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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