गोरखपुर, नौतनवा: उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का बाहुबली ब्राह्मण नेता अमरमणि त्रिपाठी और उनकी पत्नी मधुमणि त्रिपाठी को एक हत्या के मामले में समय से पहले रिहा करने का दयालु कदम अचानक नहीं आया. इसकी शुरुआत 15 साल पहले जेल में बने रिश्ते से हुई थी. योगी का राजनीतिक ग्राफ तब बढ़ ही रहा था जब उन्हें 27 जनवरी 2007 को दिए गए भड़काऊ भाषण को लेकर 11 दिनों के लिए गोरखपुर जेल भेज दिया गया था. कवियित्री मधुमिता शुक्ला की हत्या के जुर्म में त्रिपाठी को अभी दोषी ठहराया जाना बाकी था और उम्रकैद की सजा सुनाई जानी थी लेकिन वह उस वक्त जेल में ही बंद थे. वे वहां का ‘बॉस’ था और उन्होंने उस वक्त आदित्यनाथ की काफी मदद की और यह सुनिश्चित किया कि उन्हें कोई परेशानी न हो.
उस समय गोरखपुर जेल में तैनात एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा, “त्रिपाठी जेल में भी काफी मजबूत थे. उन्होंने आदित्यनाथ को हर प्रकार के शोषण से बचाया और त्रिपाठी ने जेल के अंदर आदित्यनाथ को कोई परेशानी नहीं होने दी.”
वह मदद, खासकर समाजवादी पार्टी के मुलायम सिंह के सत्ता में रहते हुए, योगी के लिए अमूल्य थी. अब जबकि भाजपा 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कमर कस रही है, योगी-त्रिपाठी की यह जुगलबंदी एक शक्तिशाली ठाकुर-ब्राह्मण वोट बैंक को मजबूत कर सकती है. उत्तर प्रदेश की आबादी में ब्राह्मण लगभग 9-10 प्रतिशत हैं जबकि ठाकुर 7-8 प्रतिशत हैं.
24 वर्षीय कवियित्री की हत्या के लिए अक्टूबर 2007 में दी गई आजीवन कारावास की सजा के 16 साल काटने के बाद अमरमणि (66) और मधुमणि (61) को जेल से रिहा करने का उत्तर प्रदेश सरकार का 24 अगस्त को आया आदेश कई परतें लिए हुए है. लेकिन जैसे ही उत्तर प्रदेश अगले साल आम चुनाव के लिए तैयार हो रहा है, त्रिपाठी परिवार जेल की कोठरी से नहीं बल्कि अस्पताल के वार्ड से बाहर निकलेंगे. पूर्व मंत्री और महराजगंज जिले के नौतनवा से चार बार विधायक रहे अमरमणि ने दोषी ठहराए जाने के बाद तुरंत सिस्टम को अपने हिसाब से तय करना शुरू कर दिया और यह सुनिश्चित कर लिया कि वह और उनकी पत्नी अपनी सजा का अधिकांश हिस्सा बीआरडी मेडिकल कॉलेज, गोरखपुर के एक निजी वार्ड में बिताएंगे.
त्रिपाठी के एक करीबी सहयोगी ने कहा, “वह अस्पताल के वार्ड से अपना साम्राज्य चलाते थे. यहीं से वे अपने निर्वाचन क्षेत्र (नौतनवा) की राजनीति की योजना बनाते थे.” निजी वार्ड आधुनिक समय के दरबार के रूप में कार्य करते थे जहां त्रिपाठी चाय और बिस्कुट के साथ घंटों राजनीति पर बात करते थे. हत्या की शिकार मधुमिता की बहन निधि शुक्ला का आरोप है कि त्रिपाठी दंपत्ति ने अपनी सजा का 62 फीसदी हिस्सा जेल से बिताया है.
अब, चाय बेचने वालों से लेकर राजनीतिक विश्लेषकों तक, गोरखपुर में हर कोई अमरमणि की समय से पहले रिहाई पर चर्चा कर रहा है. राजनीतिक विश्लेषक मनोज सिंह कहते हैं कि इससे पता चलता है कि योगी आदित्यनाथ इतने साल पहले जेल में मिली मदद को नहीं भूले हैं. उन्होंने कहा, “यह रिहाई गोरखपुर जेल में उस दौरान बने रिश्तों का नतीजा लगती है.”
यहां तक कि उनके बेटे और नौतनवा से विधायक रहे अमन मणि त्रिपाठी, जिनपर 2015 में अपनी पत्नी सारा सिंह की हत्या का मामला चल रहा है, भी आदित्यनाथ के साथ पारिवारिक संबंधों के बारे में इन दिनों खुलकर बात कर रहे हैं. रिहाई आदेश मिलने के बाद उन्होंने कहा, “मुख्यमंत्री हमारे अभिभावक और मार्गदर्शक हैं. मैं नियमित रूप से उनसे मिलता हूं और उनका आशीर्वाद लेता हूं. हमारा रिश्ता राजनीतिक नहीं, बल्कि पारिवारिक है.”
अमनमणि त्रिपाठी की रिहाई पूर्वांचल के सभी राजनीतिक खिलाड़ियों के बीच इन दिनों चर्चा का मुख्य विषय बना हुआ है.
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कमरा नंबर 15 और 16
बीआरडी कॉलेज के प्राइवेट वार्ड के प्रांगण में खुलेआम गोबर पड़ा नजर आता है और नालियां बहती दिखती हैं. ड्यूटी पर तैनात पांच पुलिसकर्मी पहली मंजिल पर गंदे गलियारों में त्रिपाठी से मिलने आने वाले शुभचिंतकों से पूछताछ करते दिखते हैं. और पिछले 24 घंटों में उनकी संख्या में वृद्धि ही हुई है.
लेकिन रिहाई आदेश के बाद से अमरमणि अपनी सामान्य सुबह की सैर के लिए बाहर नहीं निकलते हैं. उनकी सुरक्षा में तैनात एक पुलिसकर्मी ने बताया, “बाहर इतने सारे लोग हैं कि उनके लिए बाहर निकलना मुश्किल है.”
कमरा नंबर 15 और 16 के दरवाजे, जहां त्रिपाठी 2012 से रह रहे हैं, बंद रहते हैं. भले ही अमरमणि का कमरा (15) पर कमरा संख्या नहीं लिखा है लेकिन अस्पताल में हर कोई जानता है कि इसमें रहने वाला वीआईपी कौन है.
अस्पताल की इमारत जर्जर स्थिति में है, इसके गलियारे और वार्ड गंदे दिखते हैं. जबकि फीका लाल और पीला पेंट उखड़ रहा है और जगह-जगह बुलबुले बन रहे हैं, वहीं कथित तौर पर त्रिपाठियों के कमरों में नियमित रूप से पेंट होता रहता है.
त्रिपाठी के एक सहयोगी ने कहा, “कोई भी उनके कमरे में प्रवेश नहीं कर सकता. लेकिन उन्हें समय-समय पर साफ और रंगा जाता है.” खिड़की के शीशे लोहे की महीन जाली की चादरों से ढके हुए हैं, जिससे अंदर क्या हो रहा है इसकी एक भी झलक पाना असंभव है.
नौतनवा से 100 किलोमीटर का सफर तय कर अमरमणि से मिलने पहुंचे एक समर्थक किसी तरह कमरे में दाखिल हो गये. 45 वर्षीय व्यक्ति ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “मैंने वर्षों से त्रिपाठी जी को नहीं देखा था, लेकिन उनकी रिहाई की खबर के बाद, मैं खुद को रोक नहीं सका. मैं अंदर गया और उनका आशीर्वाद लिया और उनसे जल्द विधानसभा क्षेत्र लौटने का अनुरोध किया.”
त्रिपाठी की सुरक्षा में लगे पुलिसकर्मियों के लिए भी प्राइवेट वार्ड में अलग से व्यवस्था की गई है. त्रिपाठियों के बगल में उनका एक अलग कमरा है. अस्पताल के एक सूत्र ने बताया कि शुरुआत से ही ऐसा रहा है.
भारत-नेपाल सीमा से सटे अपने गृह क्षेत्र नौतनवा में अमरमणि की वापसी की तैयारियां चल रही हैं. स्थानीय निवासियों का मानना है कि त्रिपाठी को फंसाया गया है. 9 मई 2003 को दो बंदूकधारियों ने पेपर मिल कॉलोनी, निशातगंज, लखनऊ में मधुमिता शुक्ला के घर का दरवाजा खटखटाकर गोली मारकर हत्या कर दी थी. अफवाह थी कि अमरमणि का उस कवियित्री के साथ प्रेम संबंध था.
उसकी हत्या के बाद पता चला कि शुक्ला छह महीने की गर्भवती थी. इस खबर ने मीडिया में हलचल मचा दी. त्रिपाठी चार बार राज्य विधानसभा के लिए चुने गए, जिसमें 2007 में जेल से चुना जाना भी शामिल था और 2001 में भाजपा सरकार के साथ-साथ 2002 में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) सरकार में मंत्री के रूप में कार्य किया.
2003 में गिरफ्तारी के एक साल से भी कम समय बाद जब उन्हें जमानत पर रिहा किया गया, तो ‘पति, पत्नी और वो ‘ जैसी सुर्खियों ने उन टीवी कार्यक्रमों की याद दिला दी जो उस समय बहुत लोकप्रिय हुए थे.
और अब, यूपी कारागार प्रशासन एवं सुधार अनुभाग द्वारा ‘अच्छे आचरण’ के आधार पर उनकी समयपूर्व रिहाई के आदेश जारी करने के बाद त्रिपाठी दंपत्ति फिर से बाहर आ जाएगा. राज्य की 2018 की छूट नीति और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार, आजीवन कारावास की सजा काट रहे 60 साल से अधिक उम्र के दोषी अपराधी छूट के पात्र हैं, अगर उन्होंने 16 साल की सजा पूरी कर ली है.
लेकिन मधुमिता शुक्ला की बहन निधि का कहना है कि उन्होंने आरटीआई के जरिए सरकारी दस्तावेज हासिल किए हैं जिनसे पता चलता है कि अमरमणि 2012 से 2023 के बीच कभी जेल ही नहीं गए, इसलिए सजा माफी की शर्त पूरी करने का सवाल ही नहीं उठता. सुप्रीम कोर्ट के बाहर पत्रकारों से बात करते हुए उन्होंने राज्यपाल और मुख्यमंत्री से अमरमणि की रिहाई पर रोक लगाने की अपील की.
उसने कहा, “अमरमणि एक मास्टरमाइंड है जो आठ सप्ताह में कुछ भी मैनेज कर सकता है. यह संभव है कि वह यह सुनिश्चित करने के लिए मेरी हत्या करवा सकता है कि (उसकी रिहाई को) चुनौती देने वाला कोई ना रहे.”
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में भी पुलिस आने-जाने वाले शुभचिंतकों पर नजर रख रही है. अमरमणि और मधुमणि को अभी तक छुट्टी नहीं दी गई है और उनका इलाज कर रहे डॉक्टरों ने भी अभी तक कोई बयान जारी नहीं किया है. डॉ. तपस कुमार आइच की देखरेख में अमरमणि का इलाज चल रहा है. लेकिन आइच और बीआरडी मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल डॉ. गणेश कुमार दोनों ने उनकी स्वास्थ्य स्थिति पर टिप्पणी करने से इनकार कर दिया. त्रिपाठी के बेटे अमन मणि ने कहा, “मेरे पिता को ऑर्थो और न्यूरो संबंधी समस्याएं हैं और मां को मनोरोग संबंधी समस्याएं हैं.”
त्रिपाठी की सफेद धोती वार्ड के गलियारे में बंधी रस्सी पर लहरा रही है. इसकी सफेदी आसपास की गंदगी का एकतरफा मुकाबला करती दिखती है.
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नौतनवा में कैसा है माहौल
गोरखपुर से करीब सौ किलोमीटर दूर नौतनवा में त्रिपाठी के स्वागत के लिए समर्थकों में अलग ढंग का उत्साह दिखाई दे रहा है.
उनके एक समर्थक ने कहा, “पूर्वांचल का ब्राह्मण शेर लौट रहा है. दो दशकों के बाद, हमारे नेता वापस आ रहे हैं.”
26 अगस्त की सुबह सैकड़ों लोग रेलवे स्टेशन के पास अमरमणि के कार्यालय के बाहर एकत्र हुए और मिठाइयां बांटी और पटाखे फोड़े.
नौतनवा नगर पालिका के चेयरमैन ब्रिजेश मणि त्रिपाठी ने भी क्षेत्र के प्राचीन झारखंडी मंदिर में रुद्राभिषेक किया. इस दौरान लोगों ने ‘पूर्वांचल का शेर…अमरमणि त्रिपाठी ‘ के नारे लगाए.
ब्रिजेश मणि ने कहा, “लोग ऐसे जश्न मना रहे हैं जैसे भगवान राम 14 साल के वनवास के बाद लौट रहे हैं.”
भारत-नेपाल सीमा से महज कुछ किलोमीटर दूर नौतनवा, त्रिपाठी की राजनीति का केंद्र बिंदु रहा है. उनकी रिहाई के बाद से, शहर राजनीतिक रूप से सक्रिय हो गया है. उनकी मौजूदगी स्थानीय नेताओं के सामने चुनौती पेश कर सकती है.
उनकी राजनीति में वापसी को लेकर अटकलें तेज हैं, लेकिन परिवार खुले तौर पर बीजेपी के साथ जुड़ेगा या नहीं, इस सवाल पर जवाब नहीं दे रहा है. उनके बेटे अमन मणि, जिन्होंने 2017 में नौतनवा सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी, अभी भी अपनी पत्नी की हत्या के मामले में जमानत पर हैं और परिवार की राजनीति संभाल रहे हैं.
उन्होंने कहा, “हम एक राजनीतिक परिवार हैं. लेकिन अभी सारा ध्यान माता-पिता की सेहत पर है. राजनीति के संबंध में अभी तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है.”
गोरखपुर विश्वविद्यालय के गठन के बाद से ही पूर्वांचल में ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति हावी होने लगी. एक तरफ समाजवादी पार्टी के राजनेता और बाहुबली हरि शंकर तिवारी थे, जिनके पास ब्राह्मण वोट थे और दूसरी तरफ गैंगस्टर वीरेंद्र प्रताप शाही थे, जिन्हें ठाकुर समुदाय का समर्थन हासिल था. उनकी लड़ाई अक्सर सड़कों पर देखी जा सकती थी, जो अक्सर ठाकुर बनाम ब्राह्मण के आधार पर विभाजित हो जाती थी. तिवारी ने शाही का मुकाबला करने के लिए अमरमणि त्रिपाठी को खड़ा किया.
ब्राह्मण बनाम ठाकुर की राजनीति ने अमरमणि को पूर्वांचल में एक प्रमुख नेता बना दिया, हालांकि अपने प्रतिद्वंद्वियों को हराने में उन्हें एक दशक लग गए. उन्होंने अपना पहला विधानसभा चुनाव 1981 में लक्ष्मीपुर निर्वाचन क्षेत्र से सीपीआई के टिकट पर शाही के खिलाफ लड़ा लेकिन हार गए. 1985 में भी ऐसा ही हुआ लेकिन 1989 में त्रिपाठी कांग्रेस के टिकट पर जीते और उसके बाद फिर उन्हें कोई रोक नहीं सका.
सिंह ने कहा, “उनकी स्पष्टवादिता और स्वयं की निडर प्रस्तुति ने उन्हें जनता का प्रिय बना दिया. उन्होंने हमेशा चुनौतियों को स्वीकार किया और विषम परिस्थितियों में भी शांत रहे. उनके चेहरे से मुस्कान शायद ही कभी जाती थी.”
शाही की पकड़ कमजोर होती गई और एक नया नेता उभरा- जिसने अपने घरेलू मैदान पर अपनी पकड़ कभी नहीं खोई.
ब्रिजेश मणि ने कहा, “अगर कोई नेता दो साल तक अपने क्षेत्र से दूर रहता है, तो जनता भूल जाती है. लेकिन 20 साल दूर रहने के बाद भी अमरमणि त्रिपाठी लोगों के दिलों से गायब नहीं हुए. उनकी पहचान कभी खत्म नहीं हुई. अमरमणि का नाम बहुत बड़ा है.”
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त्रिपाठी ने कैसे खड़ा किया साम्राज्य
राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि अमरमणि की रिहाई में कुछ भी ‘सामान्य’ नहीं है.
मनोज सिंह ने कहा, “आदेश के 24 घंटे के भीतर, जेलर (अरुण कुमार) खुद अस्पताल पहुंचते हैं और जमानत की सभी औपचारिकताएं पूरी करते हैं. इस तरह का वीवीआईपी व्यवहार ऊपर से संकेत के बिना नहीं हो सकता.”
अमरमणि का प्रभाव क्षेत्र कांग्रेस, सपा, बसपा और भाजपा सभी पार्टियों तक फैला हुआ है. उन्होंने कई सरकारों में मंत्री पद भी संभाला है. उनके आवास पर एक रैली में मुलायम सिंह यादव के साथ उनकी तस्वीर शान से दीवार पर लगी दिखती है.
अस्थिर सरकारों के दौर में त्रिपाठी की राजनीति का उभार हुआ. गठबंधन सरकार में, बाहुबलियों के पास काफी प्रभाव होता है. मनोज सिंह के अनुसार, त्रिपाठी ने इसका फायदा उठाया और भाजपा की कल्याण सिंह और राजनाथ सिंह, सपा के मुलायम सिंह और बसपा की मायावती के नेतृत्व वाली सरकारों में मंत्री पद बरकरार रखा. गोरखपुर स्थित राजनीतिक विश्लेषक मनोज सिंह ने तीन दशकों तक त्रिपाठी के राजनीतिक सफर पर बारीकी से नज़र रखी है.
उनके मुताबिक अमरमणि त्रिपाठी हत्याकांड में दोषी ठहराए जाने का उनके समर्थकों के लिए कोई महत्व नहीं है. उन पर अपहरण और जमीन हड़पने का भी आरोप है. स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके परिवार ने नौतनवा में दुर्गा ऑयल मिल पर फिर से कब्जा कर लिया, जिसे 2016 में हाई कोर्ट के आदेश के बाद महाराजगंज जिला मजिस्ट्रेट की उपस्थिति में अतिक्रमण मुक्त कराया गया था. हालांकि, इनमें से किसी भी मामले का उनके समर्थकों पर कोई असर नहीं दिख रहा है.
1960 से 1980 तक पूर्वांचल में बाहुबल का बोलबाला रहा. जबरन वसूली, अपहरण और रेलवे टैंडर उनकी आमदनी का प्रमुख जरिया थी. लेकिन 1991 के उदारीकरण के बाद “बाहुबलियों” ने अपने प्रभुत्व को मजबूत करने के लिए नए रास्ते खोजे- सरकारी अनुबंध, रियल एस्टेट उद्यम और शैक्षणिक संस्थानों की स्थापना.
नौतनवा में संचालित दो डिग्री कॉलेज, कई स्कूल और एक गैस एजेंसी सभी अमरमणि त्रिपाठी द्वारा नियंत्रित हैं. स्थानीय निवासियों का कहना है कि दो दशकों तक राजनीति से उनकी अनुपस्थिति के बावजूद, ये उपक्रम लोगों के बीच उनकी उपस्थिति बनाए रखने में सहायक रहे हैं.
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पूर्वांचल की राजनीति और एक नाटकीय कैरम बोर्ड
त्रिपाठी की रिहाई एक आजमाई हुई और परखी हुई राजनीति का संकेत देता है, जो बिहार में भी सामने आई है. इस साल अप्रैल में, बाहुबली नेता आनंद मोहन सिंह को नीतीश कुमार सरकार ने रिहा कर दिया था, जिसे राज्य में राजपूत वोट बैंक को साधने के प्रयास के रूप में देखा गया था.
मनोज सिंह ने कहा, “त्रिपाठी की रिहाई में भी यही पैटर्न स्पष्ट है, हालांकि यहां के प्रयासों का उद्देश्य ब्राह्मणों को लुभाना है.”
राजनीतिक दल सधे हुए बयानों और प्रतिक्रियाओं के साथ स्थिति पर नजर बनाए हुए हैं. न तो भाजपा और न ही बसपा ने इस मुद्दे पर खुलकर बात की है.
हालांकि, समाजवादी पार्टी नेता और कन्नौज सांसद डिंपल यादव ने त्रिपाठी की रिहाई को बिलकिस बानो मामले के आरोपियों से जोड़ा है.
उत्तर प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “यह (योगी आदित्यनाथ) सरकार महिला विरोधी है. चिन्मयानंद से लेकर कुलदीप सेंगर और अब त्रिपाठी तक, सरकार ने महिलाओं के खिलाफ अपराध करने वालों के खिलाफ नरम रुख दिखाया है.”
कयास लगाए जा रहे हैं कि बीजेपी आगामी चुनाव में अमरमणि त्रिपाठी को ब्राह्मण चेहरे के तौर पर पूर्वांचल की राजनीति में इस्तेमाल कर सकती है. सिंह ने कहा, “पूर्वांचल में ब्राह्मण नेताओं की कोई कमी नहीं है. फिर भी, किसी के पास वह सार्वजनिक अपील नहीं है जो त्रिपाठी के पास है. शायद इसीलिए भाजपा ने उनकी रिहाई सुनिश्चित की.”
आजादी के बाद से उत्तर प्रदेश की राजनीति में ब्राह्मणों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. यूपी के पहले सीएम गोविंद बल्लभ पंत से लेकर एनडी तिवारी तक ब्राह्मण नेताओं की एक लंबी फेहरिस्त कांग्रेस से जुड़ी रही है. मनोज सिंह ने कहा कि यूपी में ब्राह्मण लंबे समय तक कांग्रेस के प्रति वफादार रहे. त्रिपाठी ने अपना राजनीतिक सफर खुद कांग्रेस से विधायक के रूप में शुरू किया था.
हालांकि, 1989 में मंडल-कमंडल की राजनीति ने जातीय समीकरण बदल दिए, जिससे ब्राह्मण बीजेपी और बीएसपी के बीच शिफ्ट हो गए. 2014, 2017 और 2019 के चुनाव में यूपी में 70 फीसदी से ज्यादा ब्राह्मणों ने बीजेपी को वोट दिया.
सिंह बताते हैं, “ठाकुर बनाम ब्राह्मण की राजनीति पूर्वांचल में काफी सक्रिय है, यहां तक कि भाजपा के भीतर भी. मुख्यमंत्री आदित्यनाथ (ठाकुर) के साथ, भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व एक ब्राह्मण व्यक्ति को आगे करके सत्ता को संतुलित करने की कोशिश करेगा, जो पहले से ही महत्वपूर्ण ढंग से सार्वजनिक अपील रखता है.”
सपा नेता मुन्ना सिंह का कहना है कि त्रिपाठी की वापसी से कुछ नहीं बदलेगा. पूर्व विधायक और त्रिपाठी के सबसे बड़े प्रतिद्वंद्वी सिंह ने कहा, “वह एक दुष्चरित्र व्यक्ति है. त्रिपाठी चार बार जीते हैं तो चार बार हारे भी हैं. हालांकि उनकी वापसी से भाजपा को निश्चित रूप से फायदा हो सकता है लेकिन समाज को नहीं.”
लेकिन मुन्ना सिंह की राय से सहमत होने वालों की संख्या बहुत कम है. मनोज सिंह 2016 की एक घटना को याद करते हैं जब महराजगंज प्रशासन ने अवैध अतिक्रमण मामले में त्रिपाठी के घर से उसका सारा सामान खाली करा दिया था. कार्रवाई के लिए तीन ट्रकों को लगाया गया था. मनोज उस वक्त वहां मौजूद थे और जब आखिरी ट्रक परिसर से बाहर निकला तो उन्होंने देखा कि उसके पीछे एक कैरम बोर्ड लटका हुआ है.
त्रिपाठी की रिहाई ने मनोज सिंह को उस कैरम बोर्ड की फिर से याद दिला दी. ये ठीक वैसा ही था जैसे कि एक पूरा जीवन चक्र.
“अमरमणि त्रिपाठी को एक और मौका मिल गया है. वह फिर से राजनीति में आ सकते हैं और एक बार फिर राजनीति की बिसात पर अपने मोहरे चल सकते हैं.”
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