दरभंगा: न जमीन, न भवन, न डॉक्टर, न एमबीबीएस का एक भी छात्र और न ही कोई मरीज. पिछले आठ साल में बिहार में एम्स दरभंगा कुछ भी मैनेज नहीं कर पाया है सिवा इसके कि यह एक कार्यकारी निदेशक – डॉ माधबानंद कर की नियुक्ति कर पाने में कामयाब रहा है.
जब अगस्त 2022 में कर दरभंगा पहुंचे, तो जिला प्रशासन ने उन्हें एक कंप्यूटर ऑपरेटर, दो क्लर्क, एक कार्यालय सहायक और आधिकारिक सर्किट हाउस में एक कमरा प्रदान किया. डिविजनल कमिश्नर के ऑफिस को कर के ऑफिस में परिवर्तित कर दिया गया. वहां पर डीआईजी की जगह एम्स निदेशक की नेमप्लेट है.
यह दरभंगा एम्स की अब तक की कहानी है. मतदाताओं को आकर्षित करने के लिए जिला कस्बों में एक नए एम्स की घोषणा करने की राजनीतिक दौड़ की एक दयनीय कहानी. जो बिना किसी तैयारी और बिना किसी जमीन के तैयार की गई है. कई मायनों में, यह राजनीतिक लाभ के लिए दूर-दराज के इलाकों में नई ट्रेनों की घोषणा करने की हड़बड़ी से अलग नहीं है. दोनों बढ़ती क्षेत्रीय आकांक्षाओं के लिए राजनीतिक प्रतिक्रिया के उदाहरण हैं.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन, बिहार शाखा के सदस्य डॉ अजय कुमार ने कहा, “कुछ लोग डीएमसीएच में एम्स चाहते थे, कुछ इसे कहीं और चाहते थे. एम्स दरभंगा परियोजना पर स्पष्टता की कमी ही बड़ी मुसीबत में बदल गई.”
एम्स दरभंगा अकेला नहीं है.
हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी 2015 में एक रैली के दौरान रेवाड़ी में एम्स खोले जाने की घोषणा की थी, जिसके बाद पूरे क्षेत्र में खुशी की लहर दौड़ गई थी. लेकिन इसके बाद विरोध प्रदर्शन, बैठकों का अंतहीन दौर, देरी और एनओसी के भेंट चढ़ गया. इस बात को सात साल बीत चुके हैं लेकिन, हरियाणा ने अभी तक राज्य का पहला और देश का 22वां एम्स बनाने के लिए आवश्यक भूमि नहीं सौंपी है.
पश्चिम बंगाल में केंद्र-राज्य के बीच चूहे-बिल्ली का खेल भी चल रहा है. 2013-14 में, पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह रायगंज जिले में एक एम्स स्थापित करना चाहते थे क्योंकि उत्तर बंगाल में चिकित्सा सुविधाओं की कमी थी. लेकिन सीएम ममता बनर्जी कल्याणी को लेकर उत्सुक थीं.
एक रिटायर केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के नौकरशाह ने दिप्रिंट से कहा, “राज्य और केंद्र के बीच एक के बाद एक कई लेटर लिए दिए गए, अंत में, हमें राज्य जो चाहता था वही करना पड़ा. लेकिन कल्याणी राज्य की राजधानी के करीब है और उसके पास एक अच्छा जिला अस्पताल भी है. नॉर्थ बंगाल को इसकी (एम्स) बहुत अधिक जरूरत थी.”
एम्स, वोट, राजनीति
दरभंगा शहर की सुनसान गलियों में एम्स सिर्फ अस्पताल नहीं है. यह निवासियों और राजनेताओं दोनों के लिए एक भावना और प्रतिष्ठा का प्रतीक है.
दरभंगा से भाजपा के विधायक संजय सरावगी ने एम्स में देरी के लिए “राजनीति” को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा, “नीतीश कुमार जानते हैं कि उद्घाटन केवल पीएम मोदी द्वारा किया जाएगा और इसका श्रेय उन्हें ही जाएगा. इसलिए उन्होंने यह सुनिश्चित करने के लिए जमीन का मुद्दा बनाया है कि कोई बड़ा अस्पताल न बन सके. ”
28 फरवरी 2015 को, तत्कालीन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अपने बजट भाषण में घोषणा की कि सरकार जम्मू और कश्मीर, पंजाब, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश और असम में पांच नए एम्स स्थापित करने जा रही है.
उन्होंने कहा था, “बिहार में चिकित्सा सेवाओं को बढ़ाने की आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, मैं राज्य में एम्स जैसा एक और संस्थान स्थापित करने का प्रस्ताव करता हूं.” बिहार का पहला एम्स, पटना में, तत्कालीन उपराष्ट्रपति भैरों सिंह शेखावत द्वारा इसकी आधारशिला रखे जाने के आठ साल बाद, 2012 में अस्तित्व में आया था.
12 करोड़ की आबादी के लिए केवल 1.19 लाख डॉक्टरों वाले राज्य बिहार में एम्स जैसी एक और संस्था की खबर जंगल की आग की तरह फैल गई.
पटना जिले के बख्तियारपुर कस्बे के 40 वर्षीय राकेश पासवान ने कहा, ‘हमारे राज्य में एक और दिल्ली जैसा एम्स आ रहा है, तेज बुखार होने पर यह किसी इंजेक्शन से कम नहीं है.’
बिहार में 2015 के अंत में विधानसभा चुनाव होने थे. अगले दो वर्षों में असम, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में भी चुनाव निर्धारित थे – इन सभी राज्यों को एक नया एम्स आवंटित किया गया था. एम्स, राजनीति और वोटों के इर्द-गिर्द घूमता रहा. इसने स्थानीय बूथ कार्यकर्ताओं के भाषणों तक में अपनी जगह बनाई.
पासवान ने कहा, “यह उन चीजों में से एक है जो हमें 2020 में विधानसभा चुनाव के दौरान लगातार याद दिलाई गई थी. अगर भाजपा सत्ता में आती है, तो डबल इंजन सरकार बनेगी और एम्स परियोजना वास्तव में आगे बढ़ सकती है.”
दिल्ली एम्स में एक प्रोफेसर ने कहा, “एक मुख्यमंत्री एम्स की मांग करता है और आप इसकी घोषणा करते हैं. आप अगले राज्य में जाते हैं, एक अन्य सांसद मांग करता है और आप इसकी घोषणा करते हैं. लेकिन मुख्यमंत्री ऐसा नहीं चाहते. आपने एक तरह से एक खिड़की खोल दी है जहां कोई भी निर्वाचन क्षेत्र विरोध में बैठ सकता है और एम्स की मांग कर सकता है. उन्होंने कहा कि उनका मानना है कि नए एम्स की घोषणा नीति से ज्यादा राजनीति से जुड़ी है.
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हालांकि, यह घोषणा, वादे के खेल का एक छोटा सा हिस्सा है. इसके बाद जमीन तलाशने, भूमिकाएं तय करने और फंड से जुड़े तौर-तरीकों पर काम करने की कवायद शुरू हो जाती है. इतना बड़ा इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करने के लिए चीजों की फेहरिस्त लंबी है.
दरभंगा में एम्स की घोषणा करने के तीन महीने बाद, दिल्ली ने जून 2015 में पटना को पत्र लिखकर कहा कि एक महीने के भीतर चार-लेन सड़क जो संपर्क में हो, पानी की आपूर्ति और बिजली के साथ तीन-चार उपयुक्त 200 एकड़ भूमि की पहचान करें .
इंडिया टुडे के अशोक उपाध्याय द्वारा राज्य और केंद्र के बीच हुए पत्राचार पर प्राप्त आरटीआई जवाब एक ऐसी कहानी बताते हैं जो जानबूझकर राजनीति में घसीटने वाली प्रतीत होती है.
पटना ने महीनों तक प्रस्ताव को पटल पर रखा. दिल्ली ने दिसंबर 2015 में और दूसरा मई 2016 में रिमाइंडर भेजा था.
केंद्र की तरफ से भेजे गए पत्र में कहा गया है, ”इस मामले पर पीएमओ की करीबी नजर है.”
जब बिहार ने आखिरकार अगस्त में जवाब दिया, तो उसने केंद्र से खुद जमीन की पहचान करने को कहा.
इस जवाब के चार महीने बाद, केंद्र ने एकबार बिहार को एक और पत्र भेजा: “जैसा कि आप जानते हैं कि नए एम्स की स्थापना के लिए भूमि की पहचान करना राज्य सरकार की प्राथमिक जिम्मेदारी है.”
इस रिमाइंडर का जवाब देने में बिहार को और तीन महीने लग गए. बिहार सरकार पहले अपने रुख पर कायम रही कि केंद्र को खुद ही जमीन की पहचान करनी चाहिए. दिल्ली ने अप्रैल 2017 में फिर से पत्र लिखकर राज्य से अपनी जिम्मेदारी निभाने को कहा.
फरवरी 2018 में दिल्ली की अंतिम चेतावनी, बिहार के तत्कालीन मुख्य सचिव और सीएम नीतीश कुमार के पसंदीदा नौकरशाह अंजनी कुमार सिंह को भेजी गई थी, जिसमें स्पष्ट किया गया था: “यदि 15 दिनों के भीतर कोई जवाब नहीं मिलता है, तो दिल्ली के एम्स जैसा बिहार में दूसरा संस्थान स्थापित करने के प्रस्ताव पर विचार नहीं किया जाएगा.
बिहार सरकार को जमीन तो मिल गई लेकिन यह दरभंगा एम्स की गाथा की शुरुआत भर थी.
आधिकारिक सील
दिसंबर 2018 में बिहार सरकार के शीर्ष नौकरशाहों की बैठक बुलाई गई थी.
“खुशखबरी: अपना बिहार में एक लेख छपा जिसमें “बिहार के दरभंगा को राज्य का दूसरा एम्स मिलेगा,” की घोषणा की. इसमें कहा गया है कि दरभंगा मेडिकल कॉलेज और अस्पताल (डीएमसीएच) से संबंधित 227 एकड़ जमीन को आखिरकार एम्स में बदलने के लिए चुना जा सकता है और दरभंगा को स्वास्थ्य सेवा के राष्ट्रीय मानचित्र पर रखा जा सकता है.
इस परियोजना को 2019 के सार्वजनिक कार्यक्रम में अंतिम मुहर मिली, जिसमें भाजपा के शीर्ष नेताओं और बिहार के मुख्यमंत्री ने भाग लिया. नीतीश कुमार ने तत्कालीन केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री जेपी नड्डा से कहा कि या तो बिहार के 38 जिलों में से प्रत्येक में एक एम्स खोलें या डीएमसीएच को एम्स में अपग्रेड करें.
केंद्र के अधिकारियों के लिए, यह लंबे समय से चली आ रही चालाकी की लड़ाई का अंत जैसा लग रहा था. लेकिन यह यहां भी खत्म नहीं हुआ.
2020 में, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने बिहार से स्पष्टीकरण मांगा कि क्या DMCH एक हेरिटेज बिल्डिंग है. इन सबके बीच नड्डा की जगह हर्षवर्धन को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री बनाया गया. नए मुख्य सचिव और स्वास्थ्य सचिव शामिल हुए. फिलहाल बिहार में कोविड की लहर के बीच नया चुनाव सिर पर है.
इस बीच एक नया विकास हुआ है. केंद्रीय मंत्रिमंडल ने सितंबर 2020 में 15-20 सुपर स्पेशियलिटी विभागों और 750 अस्पताल के बिस्तरों के साथ 1,264 करोड़ रुपये की लागत से दरभंगा में एम्स की स्थापना को मंजूरी दी थी. पिछले फैसले को बरकरार रखा गया था. लेकिन समय सीमा कड़ी थी – परियोजना को 48 महीनों के भीतर पूरा किया जाना था. बिहार को छह महीने के भीतर डीएमसीएच परिसर से 75 एकड़ जमीन सौंपने को कहा गया था. यह आगामी मेडिकल कॉलेज को NH-57 से जोड़ने और एक ओवरब्रिज का निर्माण करने वाला भी था क्योंकि मुख्य परिसर के बीच से एक रेलवे ट्रैक भी गुजरता है.
नवंबर 2021 में, बिहार ने डीएमसीएच की 200 एकड़ भूमि के हस्तांतरण के लिए अपनी मंजूरी दे दी थी, लेकिन एक महीने बाद, दरभंगा की अपनी यात्रा के दौरान, नीतीश कुमार ने घोषित किया कि केवल 150 एकड़ एम्स के लिए आवंटित किया जाएगा – शेष 77 एकड़ को डीएमसीएच की सुविधाओं को बढ़ाने के लिए और इसे अपग्रेड करने के लिए यूज किया जाएगा.
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नई बाधा
जब चीजें ठीक होती दिख रही थीं, तभी एम्स दरभंगा परियोजना में एक नया मोड़ आया. भाजपा सांसद गोपाल जी ठाकुर ने जनवरी 2022 में, बिहार द्वारा भूमि हस्तांतरण की मंजूरी के बमुश्किल एक महीने बाद, एक अलार्म बजाया कि डीएमसीएच के पास 300 एकड़ जमीन होनी चाहिए – न कि 227 एकड़, जैसा कि रिकॉर्ड में दावा किया गया है. उन्होंने पार्लियामेंट लाइब्रेरी सर्विस (LAARDIS) की प्रतिक्रिया का हवाला देते हुए दावा किया कि दरभंगा के तत्कालीन महाराजा रामेश्वर सिंह ने 1946 में स्थापित मेडिकल कॉलेज के लिए “6 लाख रुपये और 300 एकड़ जमीन दान की थी”. उन्होंने तर्क दिया कि 73 एकड़ अतिक्रमण के कारण बर्बाद हो गया था.
सांसद का तर्क था कि बिहार सरकार 200 एकड़ आसानी से स्थानांतरित कर सकती है यदि वह अतिक्रमण को सुलझा सकती है क्योंकि इससे डीएमसीएच को 100 एकड़ छोड़ दिया जाएगा.
इसने एक और मोड़ ला दिया. बिहार के स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडे ने मार्च में राज्य विधानसभा में दावे का खंडन करते हुए कहा कि डीएमसीएच के पास पुनरीक्षण सर्वेक्षण के अनुसार केवल 227 एकड़ जमीन थी. “भूमि रिकॉर्ड DMCH के नाम पर 227 एकड़ दिखाते हैं और यह उसके कब्जे में है. 227 एकड़ जमीन का बंदोबस्त भी डीएमसीएच के नाम पर है.
यह परियोजना रुक गई और फिर तेज हो गई, जब सितंबर 2022 में, बिहार ने एम्स परियोजना के पहले चरण के हिस्से के रूप में 81 एकड़ डीएमसीएच भूमि को आधिकारिक रूप से स्थानांतरित कर दिया. इसने भूमि भरने की प्रक्रिया पर 13 करोड़ रुपये खर्च किए और एनाटोमी विभाग, एक लेक्चर हॉल और एक बैंक शाखा को ध्वस्त कर दिया. इस दौरान बायोकेमिस्ट्री और फिजियोलॉजी विभाग शिफ्टिंग की प्रक्रिया में थे.
सर्किट हाउस से बाहर डेरा डाले हुए एम्स के निदेशक कर को उम्मीद थी कि दूसरे और तीसरे चरण में 20 एकड़ और 57 एकड़ डीएमसीएच भूमि का हस्तांतरण होगा.
पटना एम्स, जो आगामी दरभंगा एम्स का मार्गदर्शन करने जा रहा है, को सूचित किया गया कि 50 एमबीबीएस छात्रों का पहला बैच 2023 में कक्षाओं में भाग लेना शुरू कर देगा. बैच को दरभंगा के बेला पैलेस में अपना पहला तीन-सेमेस्टर प्रशिक्षण दिया जाएगा.
बैठकें अधिक तो भ्रम भी अधिक
लेकिन डीएमसीएच प्रशासन और डॉक्टरों को यह सब रास नहीं आया. वे आशंकित थे कि एम्स परियोजना शुरू होने के बाद डीएमसीएच को बंद कर दिया जाएगा. इसलिए उनलोगों ने मुख्यमंत्री से मिलने की मांग की.
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (आईएमए) के प्रमुख सदस्यों में से एक और डीएमसीएच अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “यह एक डिसास्टर है. डीएमसीएच 2.5 करोड़ लोगों की आबादी को पूरा करता है और उनके पास जाने के लिए कोई जगह नहीं है. मौजूदा बुनियादी ढांचे को ध्वस्त करने, नई इमारत का निर्माण करने और ओपीडी शुरू करने में कम से कम चार से पांच साल का समय लगेगा.”
आईएमए के सदस्य ने कहा, “सीएम पहले आश्वस्त नहीं थे. वास्तव में उन्होंने कहा कि डीएमसीएच को एम्स में अपग्रेड करने का विचार बिहार कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग को एनआईटी पटना में बदलने के उनके अनुभव से आया है.”
डीएमसीएच प्रतिनिधियों के एक समूह ने सीएम से मुलाकात की और उन्हें समझाया कि शिक्षण संस्थान मरीजों की देखभाल करने वाले अस्पतालों से अलग हैं और इसलिए परिवर्तन के लिए एक ही नियम लागू नहीं किया जा सकता है.
नई जमीन की तलाश में
बातों ने फिर करवट ली.
जनवरी 2023 में अपनी समाधान यात्रा के दौरान जहां नीतीश कुमार ने जिलों का दौरा किया और विभिन्न योजनाओं की समीक्षा की, उन्होंने मीडियाकर्मियों के सामने घोषणा की कि डीएमसीएच को एम्स के रूप में अपग्रेड नहीं किया जाएगा और इसे एक नए स्थान पर स्थानांतरित कर दिया जाएगा. जबकि नीतीश ने इसके अलावा कोई जानकारी नहीं दी, राजद के वरिष्ठ नेता और पूर्व विधायक भोला यादव ने दिसंबर 2022 में कहा था कि सरकार दरभंगा से 12 किमी दूर हाया घाट में 400 एकड़ अशोक पेपर मिल में एम्स परियोजना को स्थानांतरित करने की योजना बना रही है, इस जमीन पर न तो खेती बाड़ी हो रही है न ही कोई और काम में इसका उपयोग किया जा रहा है.
इसने भारी हंगामा खड़ा कर दिया क्योंकि मिथिलांचल क्षेत्र में देरी के कारण विभिन्न मुद्दों के साथ यह भी पर्याप्त था. सांसद, विधायक और पूर्व भाजपा मंत्री सहित राज्य के शीर्ष भाजपा नेता विरोध करने के लिए दरभंगा पहुंचे.
आम नागरिक हमेशा एक एम्स चाहते थे. मौजूदा डीएमसीएच को एम्स में बदलने या नया बनाने के बारे में उनके पास कभी कुछ नहीं था. लेकिन जब राज्य सरकार ने डीएमसीएच को एम्स में बदलने का फैसला किया, तो इसका सभी ने स्वागत किया. हालांकि गत वर्षों में भूमि अधिग्रहण की राजनीति अलग-अलग मोड़ लेती रही, तभी जनता का धैर्य खत्म हो गया और कई लोग धरने पर बैठ गए.
अभी तक बीजेपी नेता इस देरी के लिए नीतीश को जिम्मेदार ठहराते हैं. जदयू, जो राजद के साथ गठबंधन में है, को उम्मीद है कि परियोजनाओं में जल्द ही कुछ प्रगति होगी.
दरभंगा से बीजेपी सांसद ठाकुर ने कहा “नीतीश अब विकास पुरुष नहीं हैं. वह अब एक कमजोर प्रशासक हैं.’ उन्होंने दावा किया कि पटना से नया प्रस्ताव जिला मुख्यालय आया है.
लेकिन अब एक नई चिंता पैदा हो गई है.
उन्होंने दावा किया, “उन्होंने जो नई जमीन की पहचान की है, वह बाढ़ प्रभावित क्षेत्र में है.”
लेकिन राजनीतिक विचारों के विपरीत, जिला प्रशासन का कहना है कि वे एम्स परियोजना के लिए एक नया स्थान सौंपने की प्रक्रिया में हैं और इसका बाढ़ से कोई लेना-देना नहीं है.
प्रशासन के एक शीर्ष अधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “स्थान NH-57 से 3-4 किलोमीटर दूर है और पास में एक बाईपास है. क्षेत्र को शोभन कहा जाता है. आवश्यक भूमि का कुछ हिस्सा सरकार का है, और हम अंतर-विभागीय हस्तांतरण (राजस्व से स्वास्थ्य विभाग को) कर रहे हैं. शेष भूमि का अधिग्रहण कानून अधिग्रहण नियमों के अनुसार किया जाएगा.
उन्होंने कहा, “जमीन कभी भी मुद्दा नहीं है, इसके इर्द-गिर्द सिर्फ राजनीति है.”
(संपादन: पूजा मेहरोत्रा )
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