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Saturday, 11 January, 2025
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भारत से चोरी हुई प्राचीन विरासत का देश में लौटने के बाद क्या होता है

2014 से भारत लौटी 640 प्राचीन वस्तुओं में से केवल एक दर्जन ही अपने मूल स्थान पर वापस लौटी हैं.

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नई दिल्ली: पिछले साल खजुराहो में ‘ट्रेजर्स की वापसी’ प्रदर्शनी में तीन फुट लंबी, 12वीं सदी की मूर्ति पैरट लेडी में विजिटर्स के लिए खास संदेश था.

टेक्स्ट लेबल में लिखा था, “इस प्रदर्शनी में आप मुझे न केवल एक नायक (प्रमुख महिला) के रूप में देख रहे हैं, बल्कि अवैध तस्करी की एक पूर्व पीड़ित के रूप में भी देख रहे हैं, जिसे चुराया गया था और जबरन मेरे घर से बहुत दूर ले जाया गया था.”.

मूर्ति को 2015 में कनाडा से भारत वापस लाया गया, जहां यह एक कला संग्रहकर्ता के हाथों में थी, जिसने इसे eBay पर खरीदा था. इसकी वापसी नरेंद्र मोदी की भारत से तस्करी की गई कलाकृतियों को वापस देख में लाने के प्रतिष्ठित अभियान का हिस्सा थी. 2014 से 640 चोरी की गई प्राचीन वस्तुओं को भारत वापस लाया गया है, जबकि 1947 और 2014 के बीच केवल 13 ही वापस लाई गई थीं.

हर एक विरासत की वापसी का जश्न मनाया जाता है और इसके लिए विजयी सुर्खियां बनती हैं, लेकिन भारत में उनके लौटने के बाद के हालातों और बाधाओं दोनों की एक जटिल कहानी सामने आती है. ये कलाकृतियां राष्ट्रीय गौरव, पूजा अनुष्ठानों और ऐतिहासिक शोध में सबक देती हैं. फिर भी अपर्याप्त दस्तावेज़ीकरण, सीमित सार्वजनिक पहुंच और प्रत्यावर्तन और उनके मूल स्थलों में वास्तविक पुनर्स्थापना के बीच अंतराल के बारे में भी सवाल हैं.

वर्षों से पश्चिमी जगत के संग्रहालय और सरकारें सुरक्षित रखने की चिंताओं का हवाला देते हुए गरीब देशों को वस्तुएं वापस करने में अनिच्छुक रही हैं. भारत में वास्तविकता मिश्रित है.

अच्छी बात यह है कि कुछ वस्तुओं का शानदार पुनर्जन्म हो रहा है, प्रदर्शनियों, संग्रहालयों और यहां तक कि मंदिर अभयारण्यों में भी उन्हें नई ज़िंदगी मिल रही है.

खजुराहो के बाद दिल्ली में जी20 शिखर सम्मेलन में इन विरासतों की एक और प्रदर्शनी लगाई गई. शो के सितारों में 12वीं सदी के नृत्य गणेश और 11वीं सदी के संगमरमर के ब्रह्मा-ब्राह्मणी थे, जिन्हें ‘Glimpses of Return’ नामक एक खंड में प्रदर्शित किया गया था. हर कलाकृति विस्तृत जानकारी के साथ आई थी, जिसमें उत्पत्ति का स्थान और अद्वितीय परिग्रहण संख्या शामिल थी.

2015 में कनाडा से वापस लाई गई 12वीं सदी की पैरट लेडी के साथ पीएम नरेंद्र मोदी | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
2015 में कनाडा से वापस लाई गई 12वीं सदी की पैरट लेडी के साथ पीएम नरेंद्र मोदी | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

पुनः प्राप्त की गई प्राचीन विरासत सदियों और महाद्वीपों से संबंधित हैं. 10वीं शताब्दी की हरी क्लोराइट दुर्गा महिषमर्दिनी स्टटगार्ट के एक संग्रहालय से कुषाण युग की बैठी हुई बुद्ध की मूर्ति ऑस्ट्रेलिया की राष्ट्रीय गैलरी से और 8वीं शताब्दी की भगवान रेवन्त की पत्थर की पैनल नीलामी घर क्रिस्टी की अमेरिकी शाखा से आई है.

भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की प्रवक्ता और संयुक्त महानिदेशक नंदिनी साहू ने कहा, “उनकी वापसी एक सांस्कृतिक पुनरुत्थान और एक शक्तिशाली संदेश का प्रतीक है — विरासत अपनी जड़ों से जुड़ी होती है. वह भारतीय आत्मा के प्रतीक है.”

हालांकि, 640 प्राचीन वस्तुओं में से केवल एक दर्जन — जिसमें खजुराहो संग्रहालय में अब पैरट लेडी की मूर्ति भी शामिल है — को उन मंदिरों या स्थानों पर वापस लौटाया गया है, जहां से उन्हें चुराया गया था.

एएसआई के एक अधिकारी ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “इनमें से अधिकांश तमिलनाडु में हैं.”

भारत में लौटने के बाद, बाकी आमतौर पर दो जगहों में से एक में रह जाती हैं: एएसआई की जब्त और प्राप्त की गई प्राचीन वस्तुओं की गैलरी और पुराना किला में इसके केंद्रीय पुरावशेष संग्रह (सीएसी) या राष्ट्रीय संग्रहालय में. सभी आम लोगों के देखने के लिए नहीं हैं.

एएसआई में पुरावशेषों के पूर्व निदेशक डीएन डिमरी ने कहा, “एएसआई को उन्हें बंद कमरों में नहीं रखना चाहिए और उन्हें संग्रहालयों में प्रदर्शित करना चाहिए. एएसआई केवल एक संरक्षक है. यह सार्वजनिक संपत्ति है. चीज़ों को इतनी मेहनत से वापस लाया जा रहा है, तो उन्हें उनके मूल स्थान पर वापस भेजने का भी प्रयास किया जाना चाहिए.”

दिल्ली वापस लौटी सभी मूर्तियां गैलरी की सुर्खियों में नहीं आती हैं. कई को सार्वजनिक दृश्य से दूर रखा जाता है, पुराना किला में एएसआई के अत्यधिक सुरक्षित केंद्रीय पुरावशेष संग्रह में रखा जाता है.


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कला दीर्घाओं से लेकर वेदियों तक

चेन्नई सेंट्रल स्टेशन पर यह कोई आम व्यस्त दिन नहीं था. पारंपरिक पोशाक पहने पुजारी इंतज़ार कर रहे थे, संगीतकार ढोल बजाते हुए खड़े थे और जैसे ही दिल्ली से तमिलनाडु एक्सप्रेस ट्रेन प्लेटफॉर्म पर रुकी उत्सुक दर्शक अपनी गर्दनें तान रहे थे. यह ट्रेन एक कीमती माल लेकर जा रही थी: 16वीं शताब्दी की नटराज की मूर्ति, जिसे 1982 में तमिलनाडु के तिरुनेलवेली जिले के एक मंदिर से चुराया गया था.

जैसे ही मूर्ति रेलवे कोच से बाहर निकली, भगवान शिव को समर्पित रचना शिव भूतगण वद्यम के सुर हवा में गूंजने लगे. पुजारी भजन गाने लगे, उनकी आवाज़ें स्तुति में ऊंची उठ रही थीं. उस दिन, 13 सितंबर 2019 को मूर्ति की राज्य में लंबे समय से प्रतीक्षित वापसी हुई, जब इसे दक्षिण ऑस्ट्रेलिया की आर्ट गैलरी (AGSA) में खोजा गया और वापस लाया गया.

तिरुनेलवेली के कल्लिदाईकुरिची में कुलसेकरमुदायन समेधा अरमवलार्थ नयागियाम्मन मंदिर के मुख्य पुजारी एम कृष्णमूर्ति ने कहा, “हम अपने भगवान को वापस पाकर उत्साहित और भाग्यशाली हैं.”

16वीं सदी की नटराज मूर्ति को कल्लिदाईकुरिची में उसके मूल मंदिर में वापस लाया जा रहा है | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब
16वीं सदी की नटराज मूर्ति को कल्लिदाईकुरिची में उसके मूल मंदिर में वापस लाया जा रहा है | यूट्यूब स्क्रीनग्रैब

पुजारी ने उस पल को याद किया जब स्टेशन पर मूर्ति को उसके सीलबंद डिब्बे से बाहर निकाला गया था. उन्होंने पंचलोहा (पांच धातुओं का एक मिश्र धातु) से बनी मूर्ति को रेशम की वेष्टी से लपेटा, उसे फूलों से सजाया और पूजा की.

उन्होंने कहा, “कानूनी प्रक्रिया के बाद, देवता हमारे मंदिर में आ गए. तब से, पूरे अनुष्ठान के साथ उनकी पूजा की जाती है.”

कई दशकों से, मंदिर नटराज मूर्ति की प्रतिकृति का उपयोग कर रहा था.

उन्होंने कहा, “हमने आखिरकार उस मूर्ति को मूल मूर्ति से बदल दिया. यह हमारे देवता की घर वापसी जैसा है.”

अगर पुरावशेष स्टोर रूम में बंद रहेंगे तो उनका कोई फायदा नहीं होगा. भारत वापस आने के बाद इसे स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में तेज़ी लानी चाहिए

— डी.एन. डिमरी, एएसआई की पूर्व पुरावशेष निदेशक

और यही वह जगह है जहां मूर्ति उस साल एक छोटे से चक्कर को छोड़कर रही है जब इसे कुंभकोणम में अतिरिक्त मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत में इसकी उत्पत्ति स्थापित करने के लिए पेश किया गया था.

नटराज कई चोरी की गई कलाकृतियों में से एक है जिसे तमिलनाडु पुलिस की मूर्ति शाखा सीआईडी (आई.डब्लू. — सी.आई.डी.) द्वारा उनके मूल गर्भगृह में वापस कर दिया गया है, जो मूर्ति चोरी की भी जांच करती है.

2022 में इकाई ने तीन और मूर्तियों की वापसी में मदद की: नटराज की कांस्य मूर्ति को कैलासनाथर मंदिर में, बाल-संत संबंदर की कांस्य मूर्ति को सयावनेश्वर मंदिर में और शिव-पार्वती की मूर्ति को वनमीगनाथर मंदिर में वापस लाया गया.

मंदिरों में वापस लाई गई अधिकांश चोरी की गई मूर्तियां तमिलनाडु की हैं, लेकिन 2021 में वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर गलियारे के अंदर नवनिर्मित अन्नपूर्णा मंदिर में मां अन्नपूर्णा की 18वीं सदी की मूर्ति स्थापित की गई.

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी में “108 साल बाद” अन्नपूर्णा की मूर्ति स्थापित की. उन्होंने एक्स पर लिखा, “आज काशी में एक उत्सवी दिन था” | फोटो: एक्स/@myogiadityanath
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वाराणसी में “108 साल बाद” अन्नपूर्णा की मूर्ति स्थापित की. उन्होंने एक्स पर लिखा, “आज काशी में एक उत्सवी दिन था” | फोटो: एक्स/@myogiadityanath

कनाडाई वकील और कला संरक्षक नॉर्मन मैकेंज़ी द्वारा 1913 में भारत से तस्करी करके लाई गई मूर्ति को 2015 में ASI को सौंप दिया गया था. अन्न की देवी और पार्वती के स्वरूप के रूप में पूजी जाने वाली मां अन्नपूर्णा को वाराणसी की रानी भी कहा जाता है. दिल्ली से वाराणसी तक मूर्ति की चार दिवसीय यात्रा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की अगुवाई में एक भव्य समारोह में समाप्त हुई.

आदित्यनाथ ने कार्यक्रम में कहा, “108 साल बाद मां अन्नपूर्णा की मूर्ति एक बार फिर काशी लौटी है. इसका श्रेय काशी के सांसद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जाता है.”

हालांकि, पिछले दशक में बरामद की गई 640 कलाकृतियों की आधिकारिक गणना के बावजूद, लगभग आधी यानी 297 अभी तक भारत नहीं आई हैं. इन्हें मोदी की सितंबर यात्रा के दौरान संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा सौंप दिया गया था और 16 दिसंबर को भारत में परिवहन के लिए मंजूरी का आदेश प्राप्त हुआ था.

एएसआई अधिकारी ने कहा कि जो मूर्तियां देश में हैं, उनमें से अधिकांश अभी भी दिल्ली में हैं.

फिर से मिली और ‘खो गई’?

दिल्ली में वापस लाई गई सभी मूर्तियों को गैलरी में जगह नहीं मिलती. कई मूर्तियों को लोगों की नज़रों से दूर रखा जाता है, उन्हें पुराना किला में ASI के अत्यधिक सुरक्षित केंद्रीय पुरावशेष संग्रह (CAC) में रखा जाता है.

इन पुरावशेषों को शायद ही कभी विशेष सुविधा मिलती है. ASI संरक्षण के लिए अपने मानक प्रोटोकॉल का पालन करता है, लेकिन सार्वजनिक प्रदर्शन सीमित और चुनिंदा रहता है.

राष्ट्रीय संग्रहालय के पूर्व प्रवक्ता और संग्रहालय विज्ञानी संजीव कुमार सिंह ने कहा, “जब कोई पुरावशेष ASI को प्राप्त होता है, तो क्यूरेटोरियल और संरक्षण विशेषज्ञ उसके संरक्षण की स्थिति की जांच करते हैं. ASI के शीर्ष अधिकारी तय करते हैं कि जनता के लिए क्या प्रदर्शित किया जाए या नहीं.”

लेकिन सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित की जाने वाली कलाकृतियों को भी हमेशा नियमित रख-रखाव नहीं मिलता.

2017 में बैठी हुई बुद्ध की मूर्ति को बड़ी धूमधाम से वापस लाया गया और तत्कालीन संस्कृति मंत्री महेश शर्मा ने राष्ट्रीय संग्रहालय में उसका स्वागत किया. 2,000 साल से भी ज़्यादा पुरानी और 1992 में मथुरा से चुराई गई यह बलुआ पत्थर की मूर्ति ऑस्ट्रेलिया से वापस लाई गई थी. अब यह संग्रहालय के महानिदेशक के कार्यालय के बाहर स्थित है. हालांकि, पुरानी होने के कारण इसके कुछ हिस्से टूट चुके हैं, लेकिन हाल ही में इसकी उपेक्षा भी देखने को मिली है — इस महीने की एक दोपहर को इसके दाहिने हाथ पर मकड़ी के जाले लगे थे.

मथुरा, उत्तर प्रदेश से आई बैठी हुई बुद्ध की मूर्ति वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
मथुरा, उत्तर प्रदेश से आई बैठी हुई बुद्ध की मूर्ति वर्तमान में दिल्ली के राष्ट्रीय संग्रहालय में प्रदर्शित है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

आलोचकों का तर्क है कि सरकारी संस्थाएं हमेशा ऐसे खजानों के लिए आदर्श संरक्षक नहीं होती हैं.

लेखक और अर्थशास्त्री संजीव सान्याल ने 2016 के एक लेख में लिखा था कि कलाकृतियां, खासकर मंदिर की मूर्तियां, अपने मूल समुदायों की होती हैं.

उन्होंने बताया, “उदाहरण के लिए प्रसिद्ध पाथुर नटराज को 1991 में ब्रिटेन से वापस लाया गया था, लेकिन उसके बाद से उन्हें नहीं देखा गया है. मंदिर की मूर्तियां जीवित परंपराओं का हिस्सा हैं और उनकी “वास्तविक सुंदरता और अर्थ” केवल इन संदर्भों में ही उभर कर सामने आते हैं.

विरासत हमारे देश में आ रही हैं, लेकिन क्या हम उनका गुणात्मक मूल्यांकन कर रहे हैं या उन्हें गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों में बदल रहे हैं?

— प्रसिद्ध कला इतिहासकार

इसी तरह, शिक्षाविद और संरक्षणवादी समयिता बनर्जी ने व्यवस्थागत उपेक्षा के बारे में चिंता जताई है. 2018 के एक लेख में उन्होंने जयपुर के सिटी पैलेस संग्रहालय से 1,300 लघु चित्रों की चोरी और 1968 में राष्ट्रीय संग्रहालय से 125 प्राचीन आभूषणों के गायब होने का हवाला दिया. बनर्जी ने चेतावनी दी कि घर लौटने वाली कलाकृतियां फिर से ‘खो’ जाने का जोखिम उठाती हैं.

हालांकि, कलाकृतियों को उनके मूल घरों में वापस लाना कोई आसान काम नहीं है.

2014 से 2019 तक एएसआई में पुरावशेषों के निदेशक के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, डीएन डिमरी ने कहा कि उन्होंने कई कलाकृतियों को उनके मूल क्षेत्रों में वापस लाने की देखरेख की, जिसमें पुलवामा से चुराई गई महिषासुरमर्दिनी की मूर्ति भी शामिल है, जिसे श्रीनगर के एक संग्रहालय में वापस लाया गया.

डिमरी ने कहा, “अगर पुरावशेष स्टोर रूम में बंद रहेंगे तो इसका कोई फायदा नहीं होगा. भारत वापस आने के बाद उन्हें स्थानांतरित करने की प्रक्रिया में तेज़ी लाने की ज़रूरत है.”

हालांकि, दस्तावेज़ीकरण की कमी के साथ-साथ रसद और सुरक्षा संबंधी चिंताओं के कारण कई कलाकृतियां भंडारण में ही रह गई हैं.

डिमरी ने 1998 में राजस्थान के बरोली मंदिर परिसर से चोरी हुई नक्काशीदार पत्थर की नटराज मूर्ति के मामले की ओर इशारा किया. 2020 में यूके से वापस आने के बाद भी इसे उसके मूल स्थान पर वापस नहीं लाया जा सका.

डिमरी ने कहा, “उस क्षेत्र में उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं है, इसलिए मूर्ति को मूल स्थान पर नहीं भेजा जा सका. इस बात का भी ध्यान रखना होगा कि मूर्ति फिर से चोरी न हो जाए.”

पिछले साल, विरासत चोरी पर एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में अनुमानित 58 लाख पुरावशेषों में से अब तक केवल 16.8 लाख का ही दस्तावेज़ीकरण किया गया है.

चोरी की गई विरासत का प्रदर्शन

दिल्ली के पुराने किले के एक शांत कोने में, रोहित गुप्ता की आंखें फटी रह गई, जब वह 12वीं शताब्दी की चोल-काल की श्रीदेवी की मूर्ति के सामने खड़े थे. देवी एक सुंदर त्रिभंग मुद्रा में खड़ी थीं, उनके बाएं हाथ में कमल था. दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के छात्र के लिए गैलरी ऑफ रिट्रीव्ड एंटिक्विटीज़ उनके कोर्सवर्क से मुख्य रूप से जुड़ा था और इसने उनके राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाया.

गुप्ता ने कहा, “हाल ही में, मैंने अपनी किताबों में चोल साम्राज्य के बारे में पढ़ा है. इसलिए, मैं कुछ मूर्तियों को खोजने और उन्हें देखने की तलाश में था और मेरी खोज मुझे पुराना किला ले आई.”

वह लगभग पांच अन्य विजिटर्स के साथ वहां गए थे. उन्होंने आगे कहा,“यह गैलरी एक राष्ट्र की अपने चोरी हुए अतीत को पुनः प्राप्त करने की अटूट खोज की मार्मिक याद दिलाती है.”

पुराना किला में जब्त और पुनर्प्राप्त पुरावशेषों की गैलरी का उद्घाटन 2019 में किया गया था | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
पुराना किला में जब्त और पुनर्प्राप्त पुरावशेषों की गैलरी का उद्घाटन 2019 में किया गया था | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

मुगल किले के इस कोने में विजिटर्स एक अलग ही काल में प्रवेश करते हैं. यू-आकार की गैलरी, सीएसी का एक विस्तार, 2019 में दुनिया भर से बरामद लगभग 200 कलाकृतियों के साथ खोला गया था. हालांकि, कई अन्य संग्रहालयों या प्रदर्शनियों में भी ‘यात्रा’ करते हैं. इनमें से अधिकांश खजाने, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व से लेकर 19वीं शताब्दी ईस्वी तक फैले हुए हैं, में 21वीं सदी की नाटकीय वापसी की कहानियां भी हैं.

उदाहरण के लिए श्रीदेवी की मूर्ति जिसकी गुप्ता प्रशंसा करते थे, जो मूल रूप से तमिलनाडु की थी, उसे न्यूयॉर्क में होमलैंड सिक्योरिटी ने जब्त कर लिया था और 2016 में पीएम मोदी के एयर इंडिया वन में इसे भारत वापस लाया गया था.

गैलरी के कर्मचारियों का दावा है कि बरामद कलाकृतियों को देखने के लिए प्रतिदिन 100 से अधिक विजिटर्स आते हैं.

देवी श्रीदेवी की 12वीं शताब्दी की चोल-युग की मूर्ति को 2016 में पीएम मोदी के एयर इंडिया वन में वापस भारत लाया गया था | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
देवी श्रीदेवी की 12वीं शताब्दी की चोल-युग की मूर्ति को 2016 में पीएम मोदी के एयर इंडिया वन में वापस भारत लाया गया था | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

एक बुज़ुर्ग विजिटर ने अपने साथी से देवी पार्वती की 12वीं सदी की कांस्य मूर्ति की प्रशंसा करते हुए कहा, “कितनी बेहतरीन कलाकारी है. हज़ारों सालों के बाद भी चमक बरकरार है.”

लेकिन भारत की ज़्यादातर कलात्मक विरासत का ‘ठिकाना अज्ञात’ है.

पिछले साल, विरासत की चोरी पर एक संसदीय स्थायी समिति की रिपोर्ट में कहा गया था कि भारत में अनुमानित 58 लाख पुरावशेषों में से अब तक केवल 16.8 लाख का ही दस्तावेजीकरण किया गया है.

और हालांकि, आक्रमणकारियों और औपनिवेशिक शासकों द्वारा मंदिर की मूर्तियों की लूट ने लंबे समय से लोगों का ध्यान खींचा है, लेकिन ज़्यादातर लूटपाट हाल के दशकों में हुई है. यूनेस्को का अनुमान है कि 1979 और 1989 के बीच भारतीय मंदिरों से लगभग 50,000 कलाकृतियां चुराई गईं, जिनमें से कई अब पश्चिमी संग्रहालयों या निजी संग्रहों में रखी गई हैं.

जैसा कि पुरातत्वविद् विनय कुमार गुप्ता ने 2019 के एक पेपर में उल्लेख किया है, “औपनिवेशिक शक्तियों द्वारा वैध और संगठित लूटपाट अवैध और असंगठित लूटपाट में बदल गई.”

खोये हुए अतीत की खोज

पुरातन वस्तुओं को वापस लाने के लिए सरकार का अभियान केवल स्वतंत्रता के बाद चुराई गई वस्तुओं को लक्षित करता है. भारत के ब्रिटिश शासकों ने अपनी लूट को वैध बनाने के लिए विभिन्न कानूनी तंत्रों का इस्तेमाल किया और उनमें से अधिकांश अब ब्रिटिश संग्रहालय अधिनियम 1963 जैसे कानूनों द्वारा संरक्षित हैं, जो उनकी वापसी को रोकता है.

लेकिन हाल ही में हुई चोरी के बाद भी, पुरावशेषों को वापस पाना एक मुश्किल काम हो सकता है. कई मामलों में, इसमें कई साल लग गए हैं.

कोटा में एक विष्णु मंदिर के खंडहरों से 2009 में चुराई गई पहली सदी की दो मिथुन मूर्तियों को वापस लाने में काफी मशक्कत करनी पड़ी.

कोटा में एक विष्णु मंदिर के खंडहरों से चुराई गई पहली सदी की बलुआ पत्थर की मिथुन मूर्ति | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
कोटा में एक विष्णु मंदिर के खंडहरों से चुराई गई पहली सदी की बलुआ पत्थर की मिथुन मूर्ति | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

चोरी की गई वस्तुओं में से एक को हांगकांग की एक पत्रिका आर्ट ऑफ एशिया के 2010 के अंक में एक विज्ञापन में देखा गया था. इसकी जानकारी फ्रांसीसी नागरिक मिशेल पोस्टेल से मिली, जिन्होंने तत्कालीन भारतीय राजदूत राजन मथाई को दी थी. इंटरपोल ने अलर्ट जारी किया और अमेरिकी गृह सुरक्षा विभाग ने अंततः मूर्तियों को जब्त कर लिया, जिन्हें 2017 में भारत को वापस कर दिया गया. मूर्तियों को अब पुराना किला गैलरी में प्रदर्शित किया गया है, जिसमें एक लाल तख्ती उनकी कहानी बयां कर रही है.

एएसआई में पुरावशेषों के पूर्व निदेशक डीएन डिमरी ने कहा, “अधिकांश पुरावशेष कला डीलर सुभाष कपूर द्वारा हासिल किए गए थे.”

दुनिया के सबसे विपुल कला तस्करों में से एक कपूर वर्तमान में भारत की जेल में है.

अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से वापस लाई गई 10 पुरावशेषों की फाइल फोटो, जिन्हें 2022 में तमिलनाडु को सौंप दिया गया | एएनआई
अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया से वापस लाई गई 10 पुरावशेषों की फाइल फोटो, जिन्हें 2022 में तमिलनाडु को सौंप दिया गया | एएनआई

पिछले 10 वर्षों में बरामद की गई 640 पुरावशेषों में से अधिकांश अमेरिका से आई हैं, जिनकी संख्या 578 है, इसके बाद ऑस्ट्रेलिया, सिंगापुर, कनाडा, जर्मनी और यूके का स्थान है. जुलाई 2024 में भारत और अमेरिका ने भारतीय कलाकृतियों की अवैध तस्करी को रोकने के लिए 46वीं विश्व धरोहर समिति के मौके पर एक सांस्कृतिक संपत्ति समझौते पर हस्ताक्षर किए.

मई 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा, “आज़ादी से पहले और बाद में हमारे देश से मूर्तियों को अनैतिक तरीके से बाहर ले जाया गया. दुनिया भर में भारत की बढ़ती प्रतिष्ठा के साथ, विभिन्न देशों ने भारत को अपनी विरासत वापस करना शुरू कर दिया है.”

उन्होंने कहा कि दुनिया के किसी भी संग्रहालय को अनैतिक तरीके से हासिल की गई किसी भी कलाकृति को अपने पास नहीं रखना चाहिए.

क्या ये कमियां पूरी हो रही हैं या नहीं?

वापस की जा रही प्राचीन वस्तुएं राष्ट्रीय गौरव को बढ़ाती हैं और इन्हें भारत की वैश्विक शक्ति का प्रतीक माना जाता है, लेकिन यह अनिश्चित है कि क्या ये विद्वत्ता में एक महत्वपूर्ण कमी को पूरा कर रही हैं. कला इतिहासकारों ने अभी तक शोध के लिए उनसे संपर्क नहीं किया है. उन्होंने वापस की गई वस्तुओं की विशिष्टता के बारे में सवाल उठाए हैं.

नाम न बताने की शर्त पर एक प्रसिद्ध कला इतिहासकार ने पूछा, “पश्चिम में संग्रहालय गतिशील हैं और विश्वविद्यालय के छात्र अक्सर प्राचीन वस्तुओं पर शोध पत्र लिखते हैं. वस्तुएं हमारे देश में आ रही हैं, लेकिन क्या हम उनका गुणात्मक मूल्यांकन कर रहे हैं या उन्हें गैर-निष्पादित संपत्ति में बदल रहे हैं?”

इन प्राचीन वस्तुओं की आवाजाही को उचित दस्तावेज़ीकरण और जांच से गुज़रना पड़ता है और परिवहन से पहले, संरक्षण स्थिति की जांच करनी होती है. सभी प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करना संभव नहीं है

— नंदिनी साहू, प्रवक्ता और संयुक्त महानिदेशक, एएसआई

उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या संग्रहालयों को भेजी गई प्राचीन वस्तुओं के रख-रखाव और अध्ययन के लिए पर्याप्त बजटीय सहायता दी जाती है.

भारत भले ही प्राचीन वस्तुओं को वापस लाने के लिए कूटनीतिक, तार्किक और कानूनी प्रयासों में संसाधन लगा रहा है, लेकिन इतिहासकार ने बताया कि भारत के पास अक्सर पहले से ही ऐसे ही नमूने मौजूद हैं. इसलिए, वह ज़रूरी नहीं कि मौजूदा इतिहासलेखन में कुछ नया जोड़ दें.

उन्होंने उनकी विशिष्टता और विद्वानों के महत्व का ज़िक्र करते हुए कहा, “विदेश से आने वाली वस्तुओं का मतलब यह नहीं है कि वह उत्कृष्ट गुणवत्ता की हैं. बेहतर गुणवत्ता वाली वस्तुएं पहले से ही राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी हुई हैं.”


यह भी पढ़ें: PM मोदी भारत की चोरी हुई विरासत को बचा रहे हैं, वह भारत की खोई हुई पहचान को फिर से वापस ला रहे हैं


कागज़ी कार्रवाई और बाधाएं

चोरी हुई प्राचीन विरासतों को वापस पाना केवल आधी लड़ाई है. उनकी उत्पत्ति का पता लगाना और दस्तावेज़ीकरण की पुष्टि करना बहुत कठिन हो सकता है. एएसआई की पुरातन शाखा को प्रत्येक कलाकृति की उत्पत्ति की जांच करनी चाहिए. जब ​​यह ऐतिहासिक अभिलेखों से पूरी तरह मेल खाती है, तभी इसे उस स्थान पर वापस भेजा जाता है, जहां से इसे चुराया गया था.

एएसआई की प्रवक्ता और संयुक्त महानिदेशक नंदिनी साहू ने कहा, “इसके लिए एएसआई के पास चोरी की रिपोर्ट या किसी गुमशुदगी की रिपोर्ट की जांच की जाती है, लेकिन कभी-कभी, पुलिस शिकायत रिकॉर्ड भी गायब होते हैं — या खुद चोरी हो गए होते हैं.”

21 मार्च 2022 को ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत को वापस भेजी गई प्राचीन वस्तुओं का पीएम नरेंद्र मोदी ने निरीक्षण किया | एक्स/@ANI
21 मार्च 2022 को ऑस्ट्रेलिया द्वारा भारत को वापस भेजी गई प्राचीन वस्तुओं का पीएम नरेंद्र मोदी ने निरीक्षण किया | एक्स/@ANI

इस महीने की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह “चौंकाने वाला” है कि तमिलनाडु में 41 पुलिस फाइलें गायब होने के बाद मूर्ति चोरी के मामलों में नई एफआईआर दर्ज की गईं. याचिकाकर्ता ने पुलिस, सिविल सेवकों और संगठित अपराध से जुड़ी एक “गंभीर साजिश” का आरोप लगाया, जिसमें चोरी की गई मूर्तियों की कीमत अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में 300 करोड़ रुपये आंकी गई है.

दस्तावेज़ की कमी के कारण अंतिम वापसी में कई साल या दशकों तक की देरी हो सकती है. 2018 में ब्रिटेन से वापस लाई गई 12वीं सदी की कांस्य बुद्ध प्रतिमा अभी भी एएसआई के पास है. 1961 में नालंदा संग्रहालय से चुराई गई 14 कांस्य प्रतिमाओं में से केवल एक ही बरामद की गई है; इसे 2018 में वापस लाए जाने के बाद से सीएसी में संग्रहीत किया गया है.

स्टटगार्ट संग्रहालय के माध्यम से भारत लौटी 10वीं सदी की हरी क्लोराइट महिषासुरमर्दिनी अब पुराना किला गैलरी में रखी गई है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट
स्टटगार्ट संग्रहालय के माध्यम से भारत लौटी 10वीं सदी की हरी क्लोराइट महिषासुरमर्दिनी अब पुराना किला गैलरी में रखी गई है | फोटो: कृष्ण मुरारी/दिप्रिंट

साहू के अनुसार, ऐसी घटनाओं के बावजूद प्रगति हुई है. उन्होंने कालिया मार्थाना कृष्ण का उदाहरण दिया, जो चोल युग की कांस्य प्रतिमा है जिसे सितंबर में तमिलनाडु मूर्ति विंग को सौंप दिया गया था.

साहू ने कहा, “इन प्राचीन वस्तुओं की आवाजाही उचित दस्तावेजीकरण और जांच से होकर गुज़रती है और परिवहन से पहले, संरक्षण स्थिति की जांच की जानी चाहिए. सभी प्राचीन वस्तुओं को प्रदर्शित करना संभव नहीं है. इसलिए, हमें इसे कहीं रखना होगा. वह है सेंटर एंटिक्विटीज़ कलेक्शन.”

एएसआई की संरक्षण शाखा नाजुकता और अन्य मापदंडों के लिए इन स्थिति जांचों की देखरेख करती है.

पुरातत्वविद् और एएसआई में निदेशक (पुरातत्व) अरविन मंजुल ने कहा, “जी-20 के दौरान केवल कुछ वस्तुओं को दिखाया गया था. संवेदनशील प्राचीन वस्तुओं को यहां से वहां नहीं ले जाया जाता. ये कलाकृतियां हमारी विरासत हैं और अतीत को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं.”

लेकिन कुछ लोगों के लिए, ये प्राचीन विरासत आज भी उतनी ही प्रासंगिक हैं जितनी सदियों पहले थीं.

भावनात्मक घर वापसी

2022 में तमिलनाडु की मूर्ति शाखा CID ने तमिलनाडु के सयानवम गांव में स्थित सयावनेश्वर मंदिर को खड़ी संबंदर की कांस्य मूर्ति सौंपी — चोरी होने के 50 साल बाद.

7वीं शताब्दी के एक श्रद्धेय शैव कवि-संत संबंदर की मूर्ति, जिन्होंने भगवान शिव को समर्पित 16,000 से अधिक भजनों की रचना की थी — को ऑस्ट्रेलिया की नेशनल गैलरी ने “स्वेच्छा से वापस” कर दिया.

चोल युग के मंदिर के 80-वर्षीय पुजारी बी चंद्रशेखर शिवचारियार ने कहा, “मूर्ति को ढूंढना और उसे मंदिर में फिर से स्थापित करना किसी सपने के सच होने से कम नहीं था.”

2022 में तमिलनाडु के सयावनेश्वर मंदिर में कांस्य संबंदर की मूर्ति वापस की गई | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
2022 में तमिलनाडु के सयावनेश्वर मंदिर में कांस्य संबंदर की मूर्ति वापस की गई | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

पुजारी ने याद किया कि मूर्ति तब चोरी हो गई थी जब वे लगभग 20 वर्ष के थे. मूर्ति वापस आने पर पूरे गांव में जश्न मनाया गया, पूरे मंदिर को सजाया गया और विशेष प्रार्थनाएं की गईं.

उन्होंने कहा, “यह एक बहुत ही भावुक क्षण था. मूर्ति वापस आने पर सभी की आंखें नम थीं.”

उनके लिए संबंदर मूर्ति की वापसी ने मंदिर की प्रतिष्ठा को बढ़ा दिया है. शिव मूर्ति के साथ-साथ अब इसकी भी हर दिन पूजा की जाती है.

उन्होंने कहा, “संबंदर के भजन अब दैनिक प्रार्थनाओं में शामिल हैं.”

पुजारी ने कहा, “संबंदर के भजन अब पूजा अनुष्ठानों का हिस्सा हैं. मैंने नहीं सोचा था कि मैं अपनी ज़िंदगी में इसे फिर से देख पाऊंगा.”

(इस ग्राउंड रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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