नई दिल्ली: अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से लॉ की डिग्री पूरी करने के बाद जब सोनाली शर्मा 2016 में न्यायिक सेवा परीक्षा की तैयारी कर रही थीं, तब उनके बैच में सिर्फ 400 स्टूडेंट्स थे. आज, यह संख्या दोगुनी से भी ज़्यादा हो गई है.
इस दौरान उनकी ज़िंदगी भी बदल गई है.
31 साल की हो चुकीं शर्मा अभी भी कानून की किताबों और नोट्स से घिरी रहती हैं, लेकिन उनकी भूमिका एक एस्पिरेंट्स से बदलकर एक इंस्ट्रक्टर की बन गई है, जो उन 800 से ज़्यादा छात्रों को पढ़ाती हैं जो भारत के अगली पीढ़ी के न्यायिक अधिकारी बनना चाहते हैं.
भारत की निचली अदालतों और न्यायाधिकरणों में जज बनने की होड़ पिछले कुछ सालों में तेज़ हो गई है, जो ग्रेजुएट्स के करियर ऑप्शन में बड़े बदलाव को दर्शाती है और फिजिक्स वाला, स्टडी आईक्यू, दृष्टि आईएएस और अनएकेडमी जैसे कोचिंग संस्थान इसका फायदा उठा रहे हैं. सरकारी नौकरी की चाहत सिर्फ यूपीएससी, रेलवे, एसएससी या पढ़ाने तक सीमित नहीं है. लॉ स्कूलों में पहले से कहीं ज़्यादा छात्रों के दाखिले के साथ — 2012-13 में 1.88 लाख से 2019-20 में 4.32 लाख तक — कई छात्र न्यायिक परीक्षाओं की ओर रुख कर रहे हैं. वह नौकरी की सामाजिक प्रतिष्ठा, आकर्षक सरकारी भत्ते और कॉरपोरेट लॉ में लंबे समय तक काम करने और उच्च प्रतिस्पर्धा की तुलना में मिलने वाली स्थिरता से आकर्षित होते हैं. एड-टेक कंपनी फिजिक्स वाला ने अब इस बढ़ते बाज़ार का लाभ उठाने के लिए एक नया वर्टिकल — ‘ज्यूडिशियरी वाला’ लॉन्च किया है.
न्यायपालिका भारत की सर्वव्यापी कोचिंग इंडस्ट्री के लिए अगला सुनहरा मौका बन गई है.
स्टडीआईक्यू के एक पूर्व इंस्ट्रक्टर ने कहा, “न्यायपालिका एक अछूता बाज़ार है, जिसे अब कोचिंग संस्थान तलाश रहे हैं.”
कानून एक ऐसा पेशा था जो मुख्य रूप से मुकदमेबाजी या कॉर्पोरेट कानून में पारिवारिक संबंधों वाले लोगों के लिए आरक्षित था — बिल्कुल बॉलीवुड के हकदार राजनीतिक वंश और भाई-भतीजावाद वाले बच्चों की तरह. न्यायाधीशों को अभी भी बड़े पैमाने पर परिवार द्वारा संचालित संचालन, उच्च जाति के गुटों के रूप में देखा जाता है — कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ अक्सर यही तर्क दिया जाता है.
हालांकि, सोशल मीडिया ने इसे थोड़ा हिलाया है.
हरियाणा के एक सिविल जज (जूनियर डिवीजन) जिन्होंने 2022 में न्यायिक सेवा परीक्षा पास की है, ने कहा, “सोशल मीडिया ने भी ऑनलाइन कोर्टरूम को उपलब्ध कराने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. लोगों को यह एहसास होने लगा है कि न केवल आईएएस और आईपीएस बल्कि न्यायाधीशों के पास भी शक्तियां हैं और उनका सामाजिक मूल्य भी है.”
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कोचिंग संस्थानों के लिए नया कारोबार
भारत का चहल-पहल भरी कोचिंग इंडस्ट्री, जो कभी यूपीएससी और अन्य सरकारी परीक्षाओं के इर्द-गिर्द ही फलती-फूलती थी, ने न्यायिक सेवाओं में सोने की खान खोज ली है. लॉ ग्रेजुएट्स की बढ़ती संख्या ने कोचिंग की मांग में भी इज़ाफा किया है.
ऑनलाइन कोचिंग इंस्टीट्यूट के एक शिक्षक ने कहा, “यूपीएससी में ग्रोथ स्थिर हो गई है, लेकिन न्यायपालिका की वृद्धि बहुत तेज़ रही है.”
एस्पिरेंट्स के लिए न्यायिक सेवा परीक्षाएं कॉर्पोरेट कानून के लंबे घंटों और हाई प्रेशर के बजाय एक आकर्षक विकल्प है.
उदाहरण के लिए फिजिक्स वाला को ही लें. ऑनलाइन एड-टेक दिग्गज, जो जेईई और नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए कोचिंग में अपनी सफलता के लिए जाना जाता है, ने 2023 में अपना ज्यूडिशियरी वाला वर्टिकल लॉन्च किया. एक निःशुल्क बैच की पेशकश के केवल दो महीनों के भीतर, 8,000 से अधिक स्टूडेंट्स ने नामांकन कराया और इसके पहले सशुल्क फाउंडेशन कोर्स में 350 छात्र आए. अक्टूबर 2023 तक, कंपनी ने एक क्रैश कोर्स शुरू किया, जिसमें कुछ ही हफ्तों में 1,800 छात्र शामिल हुए.
फिजिक्स वाला के ऑनलाइन वर्टिकल के सीईओ अतुल कुमार ने कहा, “वर्तमान में हमारे पास 5,000 सशुल्क छात्र हैं और YouTube पर हमारे फ्री कंटेंट को एक्सेस करने वाले अतिरिक्त 36,000 छात्र हैं.”
स्टडीआईक्यू और अनएकेडमी ने भी इसी तरह का कदम उठाया है, न्यायिक सेवा परीक्षाओं को शामिल करने के लिए अपने कोर्स की पेशकश का विस्तार किया है, इसमें वित्तीय लाभ बहुत ज़्यादा हैं.
स्टडीआईक्यू के एक पूर्व शिक्षक ने कहा, “जब हम अपने रिकॉर्ड किए गए कोर्स बेच रहे थे, तो रेवेन्यू लगभग 5 लाख रुपये प्रति माह था. 5,000 सशुल्क छात्रों के साथ, यह बढ़कर 1 करोड़ रुपये प्रति माह हो गया.”
जब हम अपने रिकॉर्ड किए गए कोर्स बेच रहे थे, तो रेवेन्यू लगभग 5 लाख रुपये प्रति माह था. 5,000 सशुल्क छात्रों के साथ, यह बढ़कर 1 करोड़ रुपये प्रति माह हो गया
— स्टडीआईक्यू के एक पूर्व शिक्षक
बाकी कोर्स की तरह, न्यायिक सेवाओं के लिए ऑनलाइन कोचिंग छोटे शहरों और कस्बों के एस्पिरेंट्स को एक जैसा लाभ देती है.
ऑनलाइन कोर्स की फीस 17,000 से 50,000 रुपये के बीच है, जो राहुल आईएएस जैसे ऑफलाइन कोचिंग संस्थानों द्वारा ली जाने वाली फीस का एक अंश है — एक कोर्स के लिए 3.2 लाख रुपये.
स्टडीआईक्यू के निदेशक अमित किल्होर ने कहा, “ये ऑनलाइन कोचिंग सेंटर हर संभव क्षेत्र में जा रहे हैं, चाहे वह सीयूईटी हो, स्टेट पीसीएस हो या न्यायपालिका. छोटे शहरों के लोग जो दिल्ली जैसी जगहों पर आने का जोखिम नहीं उठा सकते, वो घर से ही मामूली फीस पर क्लास ले सकते हैं.”
अधिक लॉ ग्रेजुएट्स और एस्पिरेंट्स
बेशक, खाली पदों के बारे में एक बड़ा विरोधाभास है — जबकि एस्पिरेंट्स की संख्या बढ़ रही है, कई राज्यों में न्यायिक अधिकारियों के लिए सीटों की संख्या में कमी आई है.
उत्तर प्रदेश में 2019 में 610 सीटों के लिए लगभग 60,000 एस्पिरेंट्स थे.पिछले साल, 303 पदों के लिए 79,000 से अधिक आवेदकों ने न्यायिक सेवा परीक्षा दी.
बिहार में 2020 और 2023 के बीच, आवेदकों की संख्या 15,000 से बढ़कर 17,000 हो गई, लेकिन खाली पदों की संख्या विपरीत दिशा में चली गई — 221 से 155 तक.
यह ट्रेंड केवल यहां नहीं बल्कि, दिल्ली, जो परंपरागत रूप से न्यायिक सेवा के एस्पिरेंट्स के लिए सबसे अधिक मांग वाले स्थान में से एक है, ने देखा कि 2019 में 50 पदों के लिए आवेदकों की संख्या 10,000 से बढ़कर 2023 में 123 पदों के लिए 15,000 तक पहुंच गई.
भारतीय युवाओं के लिए लॉ एक पसंदीदा करियर ऑप्शन है, जिसका असर उनकी संख्या पर भी पड़ता है. पिछले कुछ सालों में देश में कई प्राइवेट कॉलेज और यूनिवर्सिटी खुले हैं, जिससे अधिक लॉ ग्रेजुएट्स वर्कफोर्स में शामिल हो रहे हैं. शिक्षा मंत्रालय की AISHE रिपोर्ट के अनुसार, 2012-13 और 2019-20 के बीच लॉ कोर्स में नामांकित छात्रों की संख्या में लगभग 130 प्रतिशत की वृद्धि हुई है — 1.88 लाख से बढ़कर 4.32 लाख हो गई.
इनमें से कई एस्पिरेंट्स के लिए न्यायिक सेवा परीक्षाएं कॉर्पोरेट लॉ के लंबे घंटों और हाई प्रेशर के बजाय एक आकर्षक विकल्प है.
28-वर्षीय साहिल कुमार, जिन्होंने 2019 में दिल्ली लॉ यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन की पढ़ाई की, ने मुकदमेबाजी या कॉर्पोरेट वकील बनने के बजाय न्यायिक सेवाओं को चुना क्योंकि इन विकल्पों में खुद को स्थापित करने के लिए “वर्षों की मेहनत की ज़रूरत होती है”. कुमार ने कहा, “मैं अपने परिवार में लॉ पूरा करने वाला पहला व्यक्ति हूं. न्यायपालिका मेरे लिए सबसे अच्छा ऑप्शन है.” उन्होंने दिल्ली न्यायिक सेवाओं के इंटरव्यू को पास करने में विफल रहने के बाद 2022 में हरियाणा न्यायिक सेवाओं को पास किया. कुमार ने कोई कोचिंग क्लास नहीं ली, हालांकि, उनके सभी दोस्तों ने एक को चुना है.
पिछले दो साल से एक और एस्पिरेंट प्रीति जांगड़ा के लिए न्यायिक सेवा अंतिम ऑप्शन बन गई.
जांगड़ा जो अगले साल हरियाणा न्यायिक सेवा परीक्षा में शामिल नहीं होंगी ने कहा, “यह मेरे लिए सबसे सुरक्षित ऑप्शन है. जज बनने के बाद, मेरी नौकरी जाने का कोई डर नहीं होगा या पैसे की भी चिंता नहीं होगी. मैं पहली पीढ़ी का वकील हूं, इसलिए मेरे लिए अच्छी नौकरी पाना काफी मुश्किल रहा है, जिसमें अच्छी सैलरी हो, वह भी बिना लॉ फर्म में काम किए. ऐसा कोई नहीं था जो मेरा सपोर्ट करे. एक सरकारी नौकरी सेफ्टी, पैसा और सामाजिक प्रतिष्ठा देती है और एक महिला होने के नाते, मातृत्व और बच्चे की देखभाल की छुट्टियों जैसे भत्ते भी होंगे.”
लेकिन पदों की संख्या सीमित होने के बावजूद, जांगड़ा जैसे एस्पिरेंट्स के लिए प्रतिस्पर्धा हर साल और भी कड़ी होती जा रही है. हरियाणा में, 2024 में 174 पदों के लिए 34,000 एस्पिरेंट्स ने आवेदन किया, जो कि पांच साल पहले 107 पदों के लिए 14,000 आवेदकों से अधिक है.
यह एक समय का कुलीन पेशा था जो ऐतिहासिक रूप से पारिवारिक संबंधों वाले लोगों के लिए आरक्षित था, धीरे-धीरे भारत के मध्यम वर्ग के लिए खुल गया. जैसा कि लॉ ग्रेजुएट्स की संख्या बढ़ रही थी और पद भी बढ़ रहे हैं. यहां तक कि सुप्रीम कोर्ट ने भी रुचि दिखाई है और देश के बढ़ते मामलों को संभालने के लिए अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति की वकालत की है.
पूर्व न्यायाधीश और वकील भरत चौघ ने कहा, “पहले ऐसी परीक्षाओं पर इतनी निगरानी नहीं थी, लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट ने भी अधिक से अधिक न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए कहा है.”
लॉ पेशा पहले बड़े पैमाने पर परिवार द्वारा संचालित होता था — काफी हद तक राजनीतिक वंशवाद और बॉलीवुड के भाई-भतीजावाद की तरह. न्यायाधीशों को अभी भी मुख्य रूप से उच्च जाति के गुट के रूप में देखा जाता है — यह तर्क अक्सर कॉलेजियम प्रणाली के खिलाफ दिया जाता है. नए लॉ ग्रेजुएट्स ने इस मानसिकता पर प्रहार किया है।
लॉ कॉलेजों की बढ़ती संख्या ने इसमें अहम भूमिका निभाई है. साथ ही, अधिक लॉ ग्रेजुएट्स के आने का मतलब है कि न्यायिक पदों के लिए प्रतिस्पर्धा और भी तीव्र हो गई है. लॉ कॉलेज में पांच साल स्पेशल स्किल हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं हो सकते हैं.
चौघ ने कहा, “परीक्षा पास करने के लिए स्पेशल स्किल की ज़रूरत होती है. एस्पिरेंट्स को एक न्यायाधीश की तरह सोचना होता है; लॉ स्कूल में, उन्हें बहस करने वालों की तरह पढ़ाया जाता है, उनसे जिरह की जाती है, लेकिन कोचिंग संस्थान उन्हें परीक्षा पास करने के लिए ज़रूरी स्किल देते हैं.”
2000 के दशक की शुरुआत में न्यायाधीशों की नियुक्ति काफी हद तक एक गुप्त मामला था; यहां तक कि पद भी कम थे. 2007-2008 के बाद, तस्वीर बदल गई और खाली पदों के बारे में अधिसूचनाएं जनता के सामने आने लगीं.
दिल्ली लॉ यूनिवर्सिटी के एक शिक्षक ने कहा, “अगर, किसी के पास कानून के क्षेत्र में पारिवारिक संबंध नहीं हैं, तो मुकदमेबाजी और कॉर्पोरेट लॉ फर्मों में नाम कमाना मुश्किल हो जाता है. सैलरी अच्छी है, लेकिन काम के घंटे बहुत लंबे हैं और फिर न्यायपालिका है, जो सबसे प्रतिष्ठित और सुरक्षित नौकरियों में से एक है. यही कारण है कि छात्र इसे पसंद करते हैं.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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