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Monday, 13 October, 2025
होमफीचरमहिला ने दिखाया वार्ड का हाहाकार, सफदरजंग अस्पताल ने कहा- बेड के लिए डॉक्टर नहीं सरकार ज़िम्मेदार

महिला ने दिखाया वार्ड का हाहाकार, सफदरजंग अस्पताल ने कहा- बेड के लिए डॉक्टर नहीं सरकार ज़िम्मेदार

एक वीडियो जो ऑनलाइन काफी शेयर हुआ है, उसमें नताशा को सफदरजंग अस्पताल के कर्मचारियों के साथ खराब सुविधाओं को लेकर बहस करते देखा गया.

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नई दिल्ली: नताशा अपनी 47-साल की मां को लेकर सफदरजंग अस्पताल गईं, जब उन्हें सांस लेने में दिक्कत और पेट में दर्द शुरू हुआ. नताशा को जो सबसे मुश्किल लग रहा था — सरकारी अस्पताल में बेड मिलना — वो और भी परेशान करने वाला बन गया जब उनका अस्पताल के कर्मचारियों के साथ जोरदार विवाद हो गया, जिसके बाद उनकी मां का इलाज पूरा होने से पहले ही डिस्चार्ज कर दिया गया.

21 साल की नताशा सांखला ने दिप्रिंट को बताया, “वो मुझसे कह रहे थे कि शिकायत मत करो और अगर कोई दिक्कत है तो अपनी मां को प्राइवेट अस्पताल ले जाओ. अगर हमारे पास पैसा होता, या अगर अन्य परिवारों के पास होता, तो वो यहां पहले ही क्यों आते?”

दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल के इमरजेंसी वार्ड में नताशा का यह वीडियो एक बार फिर भारत में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की स्थिति पर गुस्सा पैदा कर गया है. वीडियो में नताशा अस्पताल के कर्मचारियों से बहस करती दिख रही हैं, इस दौरान वे ओवरक्राउडेड वार्ड्स और मरीजों को बेड शेयर करने के लिए मजबूर होने की ओर इशारा कर रही हैं.

सोशल मीडिया पर कई लोग नताशा के समर्थन में आए और सरकारी अस्पतालों में अपने संघर्ष साझा किए, डॉक्टर और अस्पताल कर्मचारियों का कहना है कि जिन समस्याओं के लिए उनकी आलोचना की जाती है, जैसे खराब इन्फ्रास्ट्रक्चर और सुविधाओं की कमी, वे उनके नियंत्रण से बाहर हैं.

फेडरेशन ऑफ रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (FORDA) की अध्यक्ष डॉ. देवांशी कौल ने कहा, “अस्पताल के डॉक्टर और कर्मचारी बड़े प्रेशर में काम करते हैं, कभी-कभी कई दिन बिना आराम के. इन्फ्रास्ट्रक्चर और प्रबंधन के लिए डॉक्टरों को दोष देना और उनसे लड़ना सिर्फ ऐसे और मामलों को जन्म देता है.”

‘शिकायत नहीं कर सकते’

नताशा अपनी मां, पूनम सांखला, को 1 अक्टूबर को सफदरजंग अस्पताल ले गईं, जहां उनकी मां के फेफड़े में सूजन पाई गई. उन्हें इमरजेंसी वार्ड में भर्ती किया गया और इलाज शुरू हुआ, लेकिन तीन दिन बाद उनकी स्थिति और बिगड़ गई जब उन्हें सांस लेने में दिक्कत होने लगी. अपनी मां की हालत के बावजूद, नताशा ने कहा कि स्टाफ ने बार-बार अनुरोध करने के बाद ही उन्हें ऑक्सीजन दिया.

नताशा ने कहा, “मेरी मां सांस नहीं ले पा रही थीं और उन्होंने तुरंत उन्हें चैक करना भी ज़रूरी नहीं समझा.”

वीडियो में दिखा विवाद किसी एक घटना की वजह से नहीं हुआ, बल्कि नताशा की स्टाफ के पास लगातार शिकायतों की वजह से था. एक बड़ी समस्या तब हुई जब उन्होंने अनुरोध किया कि उनकी मां को दूसरे बेड पर शिफ्ट किया जाए, क्योंकि जिस मरीज के पास वे लेटी थीं, उसने उन्हें लात मारनी शुरू कर दी थी.

नताशा ने कहा, “रात के 12 बजे थे और मदद के लिए कोई आसपास नहीं था. इसलिए हमने फर्श पर ही एक बेड बनाया और वहीं सो गए.”

अगले दिन, जब डॉक्टर और स्टाफ सुबह के राउंड के लिए आए, उन्होंने नताशा से फर्श से हटने को कहा. नताशा ने अनुरोध किया कि उनकी मां को अलग बेड दिया जाए, लेकिन स्टाफ ने मना कर दिया.

नताशा ने अस्पताल की स्थिति को कई वीडियो रिकॉर्ड करके दर्ज किया, जिसमें मरीजों को अलग-अलग और संभावित रूप से इन्फेक्शन वाली बीमारियों के मरीज़ों के साथ बेड शेयर करते देखा गया. उन्होंने पूछा कि क्या ऐसे इंतज़ाम से इन्फेक्शन फैल सकता है.

उन्होंने कहा, “उसी वार्ड में, एक टीबी का मरीज पैरालिसिस से पीड़ित किसी के साथ बेड शेयर कर रहा था और किसी को इन्फेक्शन या बीमारी फैलने का कोई ख्याल नहीं था.”

एक और वीडियो में, नताशा का दावा है कि एक डॉक्टर ने उन्हें कहा कि अगर उन्हें मैनेजमेंट से इतनी परेशानी है तो या तो अपनी मां को डिस्चार्ज करवा लें या किसी प्राइवेट अस्पताल में शिफ्ट करवा लें.

इस घटना पर प्रतिक्रिया देते हुए, डॉ. कौल ने कहा कि ऐसे हालात सफदरजंग अस्पताल में भारी मरीज लोड और मांग और मौजूद इन्फ्रास्ट्रक्चर के बीच अंतर के कारण होते हैं.

डॉ. कौल ने कहा, “ये घटनाएं सिस्टम की कमियों का नतीजा हैं. बेड या सुविधाएं डॉक्टर नहीं देते, ये स्वास्थ्य मंत्रालय और सरकार के फैसले हैं, जनता को समझना चाहिए कि अपनी शिकायतें कहां दर्ज करानी हैं.”

हालांकि, नताशा या उनकी मां ही अस्पताल मैनेजमेंट के खिलाफ शिकायत करने वाले नहीं हैं.

अस्पताल के बाहर ऑटो रिक्शा ढूंढते समय, प्रियांका सारंगी अपनी 73-वर्षीय दादी कमल सारंगी के साथ खड़ी थीं, जिन्होंने आंखों की जांच के लिए अस्पताल में आधा दिन बिताया.

प्रियांका अपनी दादी को 9 अक्टूबर को सफदरजंग अस्पताल के नेत्र विज्ञान विभाग में लेकर गईं. कई राउंड की डॉक्यूमेंटेशन और घंटों इंतज़ार के बाद, उन्हें डॉक्टर के केबिन में बुलाया गया, लेकिन जांच के दौरान, किसी ने कमरे में प्रवेश किया और डॉक्टर से निजी तौर पर बात की. कुछ ही देर बाद, प्रियांका और उनकी दादी से बाहर जाकर इंतज़ार करने के लिए कहा गया.

प्रियांका ने यह कहते हुए कि ऐसे सीन भारत के सरकारी अस्पतालों में आम हैं, कहा, “उन्होंने हमें जांच के बीच में केबिन छोड़ने के लिए कहा — संभवतः किसी को अटेंड करने के लिए जो रेफरेंस या कनेक्शन वाला था.”

उन्होंने कहा, “अगर आप मैनेजमेंट में किसी को जानते हैं, तो आपके लिए कोई क्यू नहीं, कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं और कोई इंतज़ार नहीं. अगर आप इसके खिलाफ शिकायत करते हैं, तो हो सकता है कि आपकी बिलकुल भी मदद न हो.”

‘डॉक्टरों की गलती नहीं’

नताशा ने सफदरजंग अस्पताल में अस्पताल कर्मचारियों की कथित लापरवाही के खिलाफ अधिकारियों के पास औपचारिक शिकायत दर्ज कराई है. उन्होंने रन्होला थाने में भी एफआईआर दर्ज कराई, जिसमें कर्मचारियों के दुर्व्यवहार और उनकी मां के इलाज में देरी का आरोप लगाया गया.

अस्पताल की आंतरिक समिति ने भी इस घटना की जांच शुरू कर दी है और जांच अभी चल रही है.

सफदरजंग अस्पताल भारत के प्रमुख सरकारी अस्पतालों में से एक है और “नो-रिफ्यूज़ल” नीति के तहत काम करता है, यानी क्षमता के बावजूद किसी भी मरीज को मना नहीं किया जा सकता.

डॉ. कौल ने बताया कि मेडिसिन विभाग में केवल 70 बेड उपलब्ध हैं, लेकिन हर दिन 90 से 100 मरीज भर्ती होते हैं. उन्होंने कहा, “असल में, सिर्फ 70 बेड के लिए हर दिन लगभग 180 मरीज भर्ती होते हैं, जिससे बेड की डबलिंग और कभी-कभी ट्रिपलिंग हो जाती है. यह इसलिए होता है क्योंकि सफदरजंग नो-रिफ्यूज़ल नीति का पालन करता है.”

उनके अनुसार, मरीजों को आमतौर पर आगमन पर बेड की कमी और अन्य इन्फ्रास्ट्रक्चर की सीमाओं के बारे में बताया जाता है. हालांकि, नताशा ने कहा कि उनकी मां के भर्ती होने से पहले उन्हें ऐसी कोई जानकारी नहीं दी गई थी.

यह पहली बार नहीं है जब अस्पताल में ऐसी घटना हुई हो. डॉ. कौल ने बताया कि जबकि मरीज और उनके परिवार अक्सर अपनी दिक्कत को सामने लाते हैं, डॉक्टरों की मुश्किलें अक्सर नज़रअंदाज़ कर दी जाती हैं.

उन्होंने कहा, “डॉक्टरों के पास आराम करने के लिए भी बेड नहीं होते. 48 घंटे से अधिक लगातार काम करने के बाद, डॉक्टरों को उन समस्याओं के लिए गालियों और धमकियों का सामना करना पड़ता है जो उनके नियंत्रण से बाहर हैं.”

कौल ने कहा, “इस तरह की घटनाएं नहीं होनी चाहिए, लेकिन ये मंत्रालयों और सरकार के लिए इन्फ्रास्ट्रक्चर सुधारने की चेतावनी भी हैं.”

एक चाय की दुकान पर खड़े, 27-साल के राहुल लगातार टाइम देखकर चाय पी रहे थे. वे 4 बजे — अस्पताल में निर्धारित विजिटिंग आवर — का इंतज़ार कर रहे थे ताकि वह अपनी मां से मिल सकें, जो वर्तमान में इमरजेंसी वार्ड में भर्ती हैं.

अस्पताल के मैनेजमेंट के बारे में बात करते हुए, उन्होंने बताया कि जूनियर डॉक्टर और स्टाफ अक्सर परिवारों का मज़ाक उड़ाते हैं या उन्हें प्राइवेट अस्पताल जाने का सुझाव देते हैं. राहुल ने कहा, “शायद एक वीडियो वायरल हुआ हो, लेकिन यहां स्टाफ का रुख बहुत आम है.”

उन्होंने कहा, “सब लोग डॉक्टरों की इज़्ज़त करते हैं, लेकिन उन्हें यह भी समझना चाहिए कि उन्हें यहां की परिस्थितियां पता होनी चाहिए.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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