थेह पोलर (कैथल): हरियाणा के इस छोटे से गांव में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) ने बेदखली के नोटिस भेजे हैं — एक बार फिर से. इसने हरियाणा के थेह पोलर गांव के निवासियों को हरकत में ला दिया है. पिछले दो हफ्तों में उन्होंने रणनीति बनाने के लिए बैठकों, स्थानीय राजनेताओं से अपील और अदालत में बेदखली के खिलाफ लड़ने के लिए क्राउडफंडिंग अभियान का एक दौर शुरू किया है.
भारत के प्राचीन इतिहास के सबूत खोजने के लिए महाभारत-युग की खुदाई दांव पर है, जो 1500-900 ईसा पूर्व की है. पिछली बार यहां पुरातात्विक खुदाई 2013 में हुई थी, इससे पहले 1930 और फिर 1960 में खुदाई हुई थी.
स्वतंत्रता-पूर्व पुरातत्वविदों को मिट्टी के बर्तन, सिक्के और तांबे की मुहरें मिलीं, लेकिन कलाकृतियों को लाहौर भेज दिया गया. 1934-35 की वार्षिक एएसआई रिपोर्ट थेह पोलर के पुरातात्विक महत्व का एकमात्र स्वतंत्रता-पूर्व रिकॉर्ड है.
एएसआई के एक अधिकारी ने कहा, “हमें उस काल की प्राचीन वस्तुओं और खुदाई के बारे में कोई जानकारी नहीं है, लेकिन इस जगह से हमें बहुत उम्मीदें हैं और यहां और अधिक खुदाई की ज़रूरत है.”
5,000 ग्रामीणों में से अधिकांश किसान हैं, जो विभाजन के दौरान पाकिस्तान में अपनी मातृभूमि छोड़कर भारत आ गए थे. विस्थापन ने उनके अतीत को आकार दिया. अब, उन्होंने तय कर लिया है कि यह उनके भविष्य को परिभाषित नहीं करेगा.
गांववालों का कहना है कि वह इस बार नहीं जाएंगे.
कैथल जिले में 48.31 एकड़ की जगह पर फैले प्राचीन खंडहरों और टीलों पर अपना जीवन बसाने वाले 75 साल के मोती राम ने कहा, “हम पाकिस्तान से भाग आए हैं. हम फिर से बेघर नहीं होना चाहते.” खास बात यह है कि एएसआई ने 1926 में यह ज़मीन 56 रुपए 6 पैसे और 3 आने में खरीदी थी.

इस गतिरोध के साथ, एक लंबे समय से भुला दिया गया ज़मीन विवाद एक ऐसा मुद्दा बन गया है, जहां इतिहास और घर के सवाल टकराते हैं. एएसआई अपने सबसे बड़े, सबसे जटिल निष्कासन अभियान में इस ज़मीन को दोबारा हासिल करने के लिए आगे बढ़ रहा है. यह हरियाणा में अन्य प्रमुख जगहों को खाली करने के लिए एक खाका तैयार करेगा, जहां एएसआई मवेशियों और बस्तियों को हटाने के लिए संघर्ष कर रहा है. इनमें राखीगढ़ी, हांसी में असीगढ़ किला, सिरसा में थेर टीला, भिवानी में नौरंगाबाद टीला और रोहतक में खोकराकोट टीला शामिल हैं.
यह स्थान एक प्राचीन शहर हुआ करता था, जो एक प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था. बाद में इसे फिर से बसाया गया. तब इसका नाम ‘थेह पोलर’ रखा गया. थेह का मतलब है वह स्थान जहां कभी कोई बस्ती थी.
-बीबी भारद्वाज, इतिहासकार
थेह पोलर में विवाद इस बात पर कि कुछ पुरातत्वविदों ने अनुमान लगाया है कि ज़मीन के नीचे क्या हो सकता है. उनका तर्क है कि कुरुक्षेत्र से इसकी निकटता के कारण, यह गांव पांडवों और कौरवों के बीच युद्ध में नष्ट हुई बस्ती का स्थल हो सकता है और राजस्थान के डीग में खुदाई की तरह, यह नरेंद्र मोदी सरकार के भारत की प्राचीन जड़ों की गहराई से खोज करने और महाभारत काल के सम्मोहक सबूतों को उजागर करने के अभियान का हिस्सा है. अगर सब कुछ योजना के अनुसार हुआ, तो यह कैथल, कुरुक्षेत्र और हिसार को जोड़ने वाले पुरातात्विक पर्यटन मार्ग का हिस्सा हो सकता है.
एएसआई के चंडीगढ़ सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् केए काबुई ने कहा, “थेह पोलर महत्वपूर्ण और अधिसूचित संरक्षित स्थलों में से एक है. इस स्थल के सटीक कालक्रम को जानने के लिए विस्तृत खुदाई करनी होगी और इसके लिए अतिक्रमण हटाना ज़रूरी है. थेह पोलर गांव का इतिहास महाभारत काल से जुड़ा है, लेकिन कई दशकों से यह अवैध कब्जे में है.”
गांव वालों को इससे कोई मतलब नहीं है. मोती राम के भतीजे, पूर्व सरपंच श्रवण कुमार, अपने गांव को बचाने के लिए अभियान की अगुआई कर रहे हैं. उन्होंने अब तक 2 लाख रुपए से ज़्यादा जमा कर लिए हैं और लंबी कानूनी लड़ाई की तैयारी कर रहे हैं.
55 साल के कुमार हुक्का पीते हुए कहते हैं, “हम सभी का भविष्य दांव पर लगा है. हमने अपने अस्तित्व के लिए मिलकर लड़ने का फैसला किया है.”
15 मई से गांव वालों को अपने घर खाली करने के लिए कई नोटिस मिल रहे हैं. जवाब में उन्होंने ‘पोलर बचाओ समिति’ को फिर से शुरू कर दिया है, जिसे उन्होंने दो दशक पहले बनाया था.
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महाभारत के सपने, मामूली खोज
महाभारत काल से जुड़ी खोई हुई कड़ियों को खोजने के इरादे से भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के लिए यह बहुत बड़ी चुनौती है. पिछली सदी में तीन बार पोलर की खुदाई की गई है.
पहली खुदाई 1933-34 में हुई थी, लेकिन ASI की वार्षिक रिपोर्ट में निष्कर्षों का उल्लेख केवल सरसरी तौर पर किया गया था. हरियाणा पर्यटन विभाग की वेबसाइट के अनुसार, लगभग तीन दशक बाद, पुरातत्वविद् शंकर नाथ ने इस स्थल की एक छोटे पैमाने पर खुदाई की और पेंटेड ग्रे वेयर (PGW) मिलने की सूचना दी, जो भारतीय उपमहाद्वीप में लौह युग से जुड़े मिट्टी के बर्तनों का एक प्रकार है. इसने काफी हलचल मचाई, खासकर इसलिए क्योंकि अनुभवी पुरातत्वविद् बीबी लाल ने PGW को महाभारत युग से जोड़ा था.

हरियाणा के भारतीय इतिहास संकलन समिति के पूर्व अध्यक्ष और इतिहासकार बी.बी. भारद्वाज ने बताया, “यह जगह पहले एक प्राचीन शहर हुआ करता था, जो एक प्राकृतिक आपदा में नष्ट हो गया था. बाद में इसे फिर से बसाया गया. तब इसका नाम ‘थेह पोलर’ रखा गया. थेह का मतलब है वह जगह जहां कभी कोई बस्ती थी.”
तीसरी खुदाई 2013 में हुई. यह एक हफ्ते तक सीमित थी और केवल एक छोटे से भूखंड पर ही की गई थी क्योंकि तब तक थेह पोलर एक पूर्ण विकसित गांव बन चुका था. यह पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट के निर्देशन में किया गया था, जिसमें एएसआई के चंडीगढ़ सर्कल के अधीक्षण पुरातत्वविद् वीसी शर्मा खुदाई की देखरेख कर रहे थे.
टीम ने कुषाण काल के मिट्टी के बर्तनों का पता लगाया, जिनके लगभग 2,000 साल पुराने होने का अनुमान है, साथ ही फूलदान, मिट्टी के खिलौने और ईंटें भी. ये सभी खोज अब एएसआई के चंडीगढ़ सर्कल संग्रह में रखी गई हैं.
जब मैं बच्ची थी, तब गांव के कई हिस्सों में बड़े-बड़े गड्ढे हुआ करते थे. अक्सर बच्चे और यहां तक कि बड़े भी उनमें गिर जाते थे. ये पिछली खुदाई के अवशेष थे, लेकिन हमने इसे मिट्टी से भर दिया और घर बना लिए
— राज रानी, थेह पोलर निवासी
आज, 2013 में जिस ज़मीन की खुदाई की गई थी, वह समतल, खुला हुआ प्लॉट है. वहां ASI की कोई बाड़ नहीं है. ग्रामीणों का कहना है कि खुदाई में कुछ भी मूल्यवान नहीं मिला. एक ने कहा, “उन्हें बस ज़मीन चाहिए थी, इसलिए उन्होंने यह शोर मचाया.”
निश्चित रूप से हरियाणा में इस साइट की प्रसिद्धि बढ़ी है. 2021 में यह हरियाणा कर्मचारी चयन आयोग की भर्ती परीक्षा में भी शामिल था. एक सवाल था: “हरियाणा में थेह पोलर का प्राचीन स्थल कहां स्थित है?”
अब, ASI खुदाई फिर से शुरू करने की तैयारी कर रहा है और पिछले उदाहरणों पर भरोसा कर रहा है. 2008 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने निर्देश दिया था कि स्थानीय प्रशासन की मदद से संरक्षित स्मारकों और स्थलों पर अतिक्रमण हटाया जाना चाहिए. तब से, ASI ने दिल्ली से लेकर उत्तर प्रदेश के संभल और बिहार के नालंदा तक पूरे भारत में बेदखली अभियान चलाए हैं.
लेकिन खुद ASI ने स्वीकार किया है कि प्रगति धीमी रही है. पिछले 20 सालों में यह केवल दो जगहों को फिर से हासिल करने में सफल रहा है, दोनों दिल्ली में हैं — 2024 में बारापुला पुल और 2023 में तुगलकाबाद किला. थेह पोलर में बेदखली का पैमाना पहले किए गए किसी भी प्रयास से अलग होगा.
चंडीगढ़ में वकील एसएस मोमी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में नोटिस को चुनौती देने की तैयारी में व्यस्त हैं. उन्हें यकीन है कि इस बार ग्रामीणों का मामला मजबूत है.
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लड़ाई की तैयारी
श्रवण कुमार गांव का सर्वेक्षण कर रहे हैं, जहां पक्के ईंट और सीमेंट के घर हैं. यहां एक स्कूल है, जिस पर नीले रंग का पेंट है और गांव में पक्की ईंटों से बने रास्ते हैं. स्थानीय दुकानों और बाज़ार में खूब कारोबार होता है. कई ग्रामीणों के पास मवेशी हैं. बस दिक्कत यह है कि उनके पास ज़मीन नहीं है.
थेह पोलर एएसआई के तहत 3,695 केंद्रीय संरक्षित स्मारकों और स्थलों में से एक है. अकेले हरियाणा में राष्ट्रीय महत्व की ऐसी 90 साइट्स हैं. एएसआई का पहला बेदखली नोटिस 2005-2006 में आया था, उसके एक दशक बाद दूसरा दौर आया, लेकिन हकीकत जस की तस रही, लेकिन अब हालात बदल रहे हैं, तनाव बढ़ रहा है. 15 मई से, ग्रामीणों को अपने घर खाली करने के लिए कई नोटिस मिले हैं. जवाब में, उन्होंने ‘पोलर बचाओ समिति’ को फिर से बहाल किया है, जिसे उन्होंने दो दशक पहले बनाया था. सदस्यों की संख्या 21 से बढ़कर 50 से ज़्यादा हो गई है.

चंडीगढ़ में वकील एसएस मोमी पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में नोटिस को चुनौती देने की तैयारी में व्यस्त हैं. उन्हें यकीन है कि इस बार ग्रामीणों का मामला मजबूत है. 2007 में उन्होंने पहले बेदखली नोटिस के खिलाफ अपील की थी, लेकिन एएसआई द्वारा ज़मीन के दस्तावेज़ पेश किए जाने के बाद हाईकोर्ट ने इसे खारिज कर दिया था.
मोमी ने कहा, “ग्रामीणों को दिया गया वर्तमान नोटिस एएसआई द्वारा एकतरफा आदेश पर आधारित है, जिसमें ग्रामीणों को अपना मामला रखने का मौका नहीं दिया गया था.” वे अगले हफ्ते अदालत में अपने दस्तावेज़ दाखिल करने की योजना बना रहे हैं. कुमार ने उन्हें लगभग एक दशक पहले थेह पोलर गांव का प्रतिनिधित्व करने के लिए नियुक्त किया था, जब एएसआई ने उन्हें 2017 में और फिर 2018 में बेदखली नोटिस दिया था. पिछले महीने उन्हें व्यक्तिगत रूप से भेजा गया नोटिस चौथी और नवीनतम चेतावनी है.
2013 की खुदाई में भी यहां कुछ ठोस नहीं मिला. दूसरी ओर, सरकार आज़ादी के बाद से ही लोगों को सभी सुविधाएं मुहैया करा रही है
— एसएस मोमी, वकील
इसमें 21 अप्रैल के एएसआई के आदेश का हवाला दिया गया है, जिसमें कहा गया है कि सार्वजनिक परिसर (अनधिकृत कब्जाधारियों की बेदखली) अधिनियम 1971 के तहत “अधिसूचित संरक्षित स्थल” पर अवैध कब्जे के लिए कार्यवाही शुरू की गई है. मोमी ने इस बात को इतनी बेपरवाही से टाल दिया कि ग्रामीणों में विश्वास पैदा हो गया. उन्होंने बताया कि एएसआई ने खुद अधिनियम की धारा 4 के तहत यह फैसला जारी किया है — जो एस्टेट अधिकारियों को लिखित नोटिस जारी करने की अनुमति देता है अगर उन्हें लगता है कि कोई व्यक्ति बिना अनुमति के सार्वजनिक ज़मीन पर कब्जा कर रहा है.

उन्होंने कहा, “2013 की खुदाई में भी यहां कुछ ठोस नहीं मिला. दूसरी ओर, सरकार आज़ादी के बाद से लोगों को सभी सुविधाएं मुहैया करवा रही है.” उन्होंने सड़क, बिजली, पानी की आपूर्ति और सरकारी योजनाओं में शामिल किए जाने का ज़िक्र किया.
निवासियों के पास मतदाता पहचान पत्र, राशन कार्ड और आधार भी हैं. विडंबना यह है कि कैथल जिला प्रशासन को इस चल रही खींचतान के बारे में कुछ भी पता नहीं है. जनसंपर्क अधिकारी के अनुसार, राज्य पुरातत्व विभाग ने उन्हें बेदखली नोटिस के बारे में सूचित नहीं किया है.
मई में जब सभी 206 परिवारों के घरों पर नोटिस पहुंचने लगे, तो ग्रामीणों ने डाकिए को वापस भेज दिया. उन्होंने अपना विरोध दर्ज कराने के लिए दस्तावेज़ लेने से इनकार कर दिया. केवल एक ग्रामीण ने इसे लिया था, बस एक प्रति रिकॉर्ड में रखने के लिए.

अब समिति नेताओं और स्थानीय नेताओं के बीच समर्थन जुटाने के लिए जोर-शोर से जुट गई है. 25 से अधिक ग्रामीणों के एक प्रतिनिधिमंडल ने गुहला से कांग्रेस विधायक देवेंद्र हंस से मुलाकात की और उन्हें एक ज्ञापन सौंपा है.
हंस ने दिप्रिंट से कहा, “अगर ज़रूरत पड़ी तो हम ग्रामीणों के साथ कोर्ट जाएंगे.”
इसी विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के पूर्व विधायक कुलवंत बाजीगर भी थेह पोलर के समर्थन में उतने ही दृढ़ थे.
उन्होंने कहा, “हम गांव को यहां से नहीं जाने देंगे. मैंने इस मामले पर मुख्यमंत्री से भी बात की है और उन्होंने कहा कि ये लोग मेरे अपने हैं. कौन अपने लोगों को विस्थापित होने देता है?”
अपनेपन का सवाल
गांव के ठीक बाहर, मौसमी सरस्वती नदी की ओर जाने वाले घाट पर काम चल रहा है. ग्रामीण स्थानीय मंदिर में प्रार्थना करते हैं, जो 1960 के दशक का है.
पूज्य सरस्वती के किनारे थेह पोलर का स्थान प्राचीन कथाओं को जीवित रखने में मदद करता है. ग्रामीणों का कहना है कि यह वह जगह है जहां रावण के दादा, ऋषि पुलस्त्य मुनि ने दैवीय शक्तियां प्राप्त करने के लिए तपस्या की थी.
लेकिन किसी भी चीज़ से ज़्यादा, विभाजन थेह पोलर के इतिहास में चलने वाला एक आम धागा है. मोती राम, जो अब 75 साल के हैं, उनका जन्म पाकिस्तान के लायलपुर से भागकर थेह पोलर में शरण लेने के तीन साल बाद हुआ था. जल्द ही मुल्तान, सिंध और अमृतसर से परिवार यहां आ गए.

मोती राम ने एक जनरल स्टोर के बाहर बैठे हुए कहा, “यहां कुछ भी नहीं था. यह एक खाली ज़मीन थी. लोगों को जहां भी जगह मिली उन्होंने वहां अपना घर बना लिया और उसे रहने लायक बना दिया. एएसआई इतने दशकों बाद हमें यहां से बेदखल करने आ रही है. जब हम यहां आए थे, तब हमें क्यों नहीं रोका गया?”
वह स्पष्ट रूप से चिंतित है. उन्हें फिर से सब कुछ खोने का डर सता रहा है.
पड़ोस के एक घर में एक परिवार ने अपने सभी दस्तावेज़ तैयार रखे हैं — आधार कार्ड, राशन कार्ड, मतदाता पहचान पत्र — बस अगर उन्हें यह साबित करना पड़े कि वह यहां के निवासी हैं — वह तैयार हैं. एक अन्य ग्रामीण, 60 वर्षीय राज रानी ने पक्का घर बनाने के लिए 3 लाख रुपये का बैंक लोन लिया है. जब वह अपनी पोती को अपनी गोद में खेलते हुए देखती हैं, तो वह भविष्य के बारे में चिंता करती हैं.
उन्होंने कहा, “जब मैं बच्ची थी, तब गांव के कई हिस्सों में बड़े-बड़े गड्ढे हुआ करते थे. अक्सर बच्चे और यहां तक कि बड़े भी उनमें गिर जाते थे. यह पिछली खुदाई के अवशेष थे, लेकिन हमने इसे मिट्टी से भर दिया और घर बना लिए.”
थेह पोलर के ‘नए’ निवासियों के लिए, अतीत को दफन कर देना ही बेहतर है.
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