नोएडा: एक छोटे से, साउंडप्रूफ स्टूडियो के अंदर, एक आदमी और एक महिला माइक के करीब झुके बैठे थे, उनके कानों पर हेडफोन लगे थे. शीशे के पार से जैसे ही इशारा मिला, आदमी की भारी आवाज़ गूंजी — “रोम रोम भाई, लो मैं आ गया थारा ताऊ और यो थारी ताई भी आ गई है और हम शुरू करेंगे यो पंचायत का प्रोग्राम.” उनके चेहरे पर मुस्कान खिल गई. ये दोनों अब नोएडा के ‘ताऊ-ताई’ बन चुके हैं, अपनी आवाज़ नोएडा के गांवों तक पहुंचा रहे हैं — गूजरों और जाटों तक, जो अक्सर शहरी बातचीत से बाहर छूट जाते हैं.
महिला ने माइक में कहा, “और आज का मुद्दा है दहेज — जो अब भी हमारे समाज को परेशान कर रहा है.”
नोएडा का नाम अब तक ज़्यादातर प्रॉपर्टी विवादों, जाम और गड्ढों वाली सड़कों से जुड़ा रहा है, लेकिन सेक्टर-16 के फिल्म सिटी के एक शांत कोने में मारवाह स्टूडियोज़ का कम्युनिटी रेडियो स्टेशन 107.4 FM एक नई पहचान गढ़ रहा है.
‘पंचायत’, ‘नो टू वायलेंस’, ‘संजीवनी’ जैसे कार्यक्रमों के अलावा मानसिक स्वास्थ्य पर भी शो चलने वाले इस स्टेशन ने 2009 से नोएडा के साथ-साथ खुद को भी बदला है — दिल्ली के विस्तार से लेकर NCR के अपने अलग शहर तक.
107.4 FM सिर्फ सुबह SUV में ऑफिस जाने वाले IT वर्कर्स के लिए नहीं है. इसकी पहुंच नोएडा के उन गांवों तक भी है, जो नक्शे पर नहीं दिखते — झुग्गियां, प्रवासी बस्तियां, जहां घरेलू हिंसा और दहेज जैसे मुद्दे दबे रहते हैं और मीडिया भी इनकी तरफ नहीं देखता.
RJ अमिता ने कहा, “अब मैं ज़िंदा और आत्मविश्वासी महसूस करती हूं. पहले मेरी खुद की कोई पहचान नहीं थी, लेकिन अब लोग मुझे एक स्वतंत्र महिला के तौर पर जानते हैं. मेरी दोनों बेटियां सबसे ज़्यादा खुश हैं.”

यह स्टेशन उस चमक-दमक वाले नोएडा की कहानी से अलग है, जहां मॉल्स, ऊंची इमारतें और गुरुग्राम से बेहतर बनने की होड़ की बातें होती हैं. जैसे-जैसे नोएडा 50 साल का हो रहा है, यह लोकल स्टेशन अपनी जड़ों से जुड़ा रहने की कोशिश कर रहा है.
इसके श्रोता हैं — ट्रक ड्राइवर, टेक वर्कर्स को ऑफिस ले जाने वाले कैब ड्राइवर, फैक्ट्री वर्कर जो चाय की चुस्कियों में इसे सुनते हैं, यूपी के छात्र और रोज़गार की तलाश में आए युवा. गटर की समस्या हो या घरेलू झगड़े — यहां हर मुद्दे पर बात होती है.
लोग अपने सवाल और समस्याएं गुमनाम तौर पर भेजते हैं — स्टेशन उन्हें जवाब देता है और उनकी आवाज़ बनता है. यहां के रेडियो जॉकी भी नोएडा के ही रहने वाले हैं.
107.4 FM के डायरेक्टर सुशील भारती ने बताया, “यह नोएडा का पहला और इकलौता कम्युनिटी रेडियो स्टेशन है. इसने शहर को बदलते देखा है — एक अनियोजित टाउनशिप से कॉस्मोपॉलिटन हब तक. शहर की भागदौड़ में यह स्टेशन लोगों को अपनी आवाज़ देता है, उन्हें जोड़ता है. कम्युनिटी रेडियो का मकसद है — लोगों से जुड़ना, उनकी समस्याओं पर बात करना और सरकारी योजनाओं को सही लोगों तक पहुंचाना.”

107.4 FM के डायरेक्टर सुशील भारती ने बताया, “यह नोएडा का पहला और इकलौता कम्युनिटी रेडियो स्टेशन है. इसने शहर को बदलते देखा है — एक अनियोजित टाउनशिप से कॉस्मोपॉलिटन हब तक.
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107.4 FM: रेडियो पर नई पहचान
अमिता शर्मा दो साल पहले 107.4 FM से जुड़ीं. उनके लिए यह एक आज़ादी का मौका था. 25 साल तक गृहिणी रहने के बाद उन्होंने खुद के लिए एक नई पहचान बनाने की राह पकड़ी. आज नोएडा उन्हें RJ अमिता के नाम से जानता है.
अमिता ने कहा, “अब मैं ज़िंदा महसूस करती हूं, आत्मविश्वासी हूं. पहले मेरी कोई पहचान नहीं थी, लेकिन अब लोग मुझे एक स्वतंत्र महिला के तौर पर पहचानते हैं. मेरी दोनों बेटियां सबसे ज़्यादा खुश हैं.”
वे तीन शो होस्ट करती हैं — भारत की वीरांगनाएं, वीमेन: द अचीवर्स और एक मुलाकात. उन्हें रेडियो का कोई अनुभव नहीं था. सब कुछ उन्होंने यहीं सीखा, स्टेशन डायरेक्टर सुशील भारती की मदद से.

अमिता ने कहा, “वे हर दिन आधे घंटे मेरे साथ बैठते थे. बोलने का तरीका, श्रोताओं से जुड़ाव और सही गानों का सिलेक्शन — सब सिखाया.”
उन्होंने बताया कि भारती ने उन्हें कहा था, “ऐसे बात करो जैसे सामने बैठे इंसान से गपशप कर रही हो — तभी वो असली लगेगा.”
पहली बार जब उनकी 17 साल की बेटी ने मां को रेडियो पर सुना, तो उन्हें यकीन नहीं हुआ. अमिता हंसते हुए याद करती हैं, “मम्मी, आप तो प्रोफेशनल लग रही हो! ऐसा लग ही नहीं रहा कि आप नई हो.”
आज उनके शो सिर्फ जानकारियों का स्रोत नहीं हैं, बल्कि उनके बच्चों की ‘नाइट टाइम स्टोरी’ भी बन गए हैं. पिछले हफ्ते भारत की वीरांगनाएं के लिए अमिता ने लक्ष्मी कायला की कहानी पर रिसर्च की. लक्ष्मी कायला रानी झांसी रेजिमेंट की सदस्य थीं — नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आज़ाद हिंद फौज की महिला टुकड़ी.
अमिता ने कहा, “मैंने उनके बारे में कभी नहीं सुना था. जब उनके बारे में पढ़ा, तो मन भारी हो गया. लगा जैसे हमारे इतिहास से कई महिला योद्धा, लीडर और बदलाव लाने वाली महिलाएं गायब कर दी गई हैं.”
कायला की कहानी, जिन्होंने बहुत छोटी उम्र में सेना जॉइन की थी, ने अमिता को नया संकल्प दिया — ऐसी महिलाओं की कहानियां सामने लाना, जिन्होंने संघर्ष कर अपनी पहचान बनाई.
अब यह शो उनके लिए और भी निजी हो गया है. उन्होंने कहा, “जैसे मैंने अपनी पहचान बनाई, वैसे ही मैं इन भूली-बिसरी महिलाओं की पहचान बना रही हूं — उनकी बहादुरी और हौसले की कहानियां सुनाकर.”
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समुदायों को जोड़ने वाला रेडियो
अपने कार्यक्रमों की रिसर्च के दौरान, डायरेक्टर सुशील भारती और उनकी टीम ने नोएडा के अलग-अलग इलाकों का दौरा किया. इसी दौरान उन्हें शिव नगरी नाम की एक झुग्गी बस्ती के बारे में पता चला, जहां बड़ी संख्या में बच्चे स्कूल छोड़ चुके थे. एक एनजीओ से संपर्क के बाद उन्होंने ‘अपना स्कूल’ नाम से एक लर्निंग प्रोजेक्ट शुरू किया, जो निर्माण मजदूरों और अन्य श्रमिकों के बच्चों के लिए है. फिलहाल, नोएडा में ऐसे 10 स्कूल चल रहे हैं.
रेडियो स्टेशन खुद अपने संसाधनों से इन स्कूलों में टीचरों की सैलरी, पंखे, टॉयलेट जैसी ज़रूरी सुविधाएं जुटाता है.
भारती ने कहा, “हम फिल्म सिटी में बैठते हैं, जो काफी चमक-धमक वाली जगह है. यहां कांच की इमारतें हैं, ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स हैं, चौड़ी सड़कें हैं. मगर नोएडा सिर्फ इतना ही नहीं है. रिसर्च में हमें पता चला कि इस चमक के पीछे भी एक नोएडा है — सेक्टर, झुग्गियां और प्रवासी कॉलोनियां, जहां शहर की बड़ी आबादी रहती है.”
इन्हीं बस्तियों और इलाकों के लिए स्टेशन ने ‘उड़ान जिंदगी’ और ‘हौसलों की उड़ान’ जैसे कार्यक्रम शुरू किए हैं, जिनमें बच्चे खुद पंचायत जैसी चर्चा करते हैं — अपनी समस्याओं पर और अपने आसपास की समस्याओं पर भी. भारती ने कहा, “सोच यह थी कि समुदाय की भावना को बढ़ाया जाए. एंकर भी बच्चा होगा, मेहमान और होस्ट भी बच्चे ही होंगे.”
उन्होंने कहा, “हम फिल्म सिटी में हैं, जो बाहर से ग्लैमरस और मॉडर्न दिखती है. मगर असलियत में, इस चकाचौंध के पीछे एक और नोएडा बसा है — वह नोएडा जो झुग्गियों, सेक्टरों और मजदूर बस्तियों में बसता है.”
‘वीमेन: द अचीवर्स’ नाम का एक और शो महिलाओं की कहानियों को सामने लाता है, जो अपनी ज़िंदगी की दूसरी पारी शुरू कर रही हैं — जो कुछ नया करने की कोशिश कर रही हैं.
भारती ने बताया, “ऐसी महिलाओं को पहचान कर उनकी कहानियां सुनाई जाती हैं, ताकि बाकी महिलाएं भी प्रेरित हों.”
हालांकि, भारत में कम्युनिटी रेडियो स्टेशन को न तो न्यूज़ प्रसारित करने की इज़ाज़त है, न ही राजनीति या धर्म पर बोलने की, लेकिन 107.4 FM के आरजे कहते हैं कि वे जान-बूझकर उन सामाजिक मुद्दों पर फोकस करते हैं, जो पूरे समुदाय को जोड़ते हैं.
टैबू तोड़ना, बातचीत का पुल बनाना
अनुपमा भारद्वाज ने माइक संभाला और अपनी मुलायम आवाज़ में ‘शर्म’ पर बात शुरू की. उनकी आवाज़ कभी धीमी तो कभी तेज़ होती रही, जैसे-जैसे उन्होंने घरेलू हिंसा, मासिक धर्म और प्रजनन स्वास्थ्य जैसे विषयों पर बात की.
उन्होंने कहा, “अगर आप गांव में भी रहते हैं, तो भी अपने प्रजनन स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं. आज हमारे साथ एक गायनेकोलॉजिस्ट भी हैं, जो बताएंगे कि कम संसाधनों में कैसे देखभाल करें.” उन्होंने कहा, “मेरे लिए मेरे असली श्रोता वे ग्रामीण महिलाएं हैं, जिनकी ज़िंदगी पितृसत्ता के ईर्द-गिर्द घूमती है, जो दिनभर की मेहनत में खुद के लिए सोच भी नहीं पातीं.”
नोएडा के 107.4 FM पर अनुपमा उन महिला आरजे में से हैं, जो स्वास्थ्य और सामाजिक मुद्दों पर खुलकर बात करती हैं. वे खुद को ‘नारीवादी’ मानती हैं और अपने कार्यक्रमों के ज़रिए महिलाओं के स्वास्थ्य से जुड़े टैबू पर बात करती हैं.
अनुपमा ने कहा, “हमें ये चुप्पी तोड़नी होगी. पब्लिक हेल्थ में शर्म की कोई जगह नहीं है.”
उनके कार्यक्रम ‘संजीवनी’ और ‘नो टू वायलेंस’ इन्हीं विषयों पर केंद्रित हैं. वे घरेलू हिंसा और दहेज उत्पीड़न से जूझ रहीं महिलाओं के गुमनाम मैसेज पढ़ती हैं और उन पर चर्चा करती हैं.
अनुपमा भी नोएडा से ही हैं. डायरेक्टर सुशील भारती ने कहा, “कम्युनिटी रेडियो की सोच ही यह है कि समुदाय के लोग खुद बोलें, ताकि वे खुले दिल से अपने समाज की समस्याओं पर बात कर सकें.”
उनके मुताबिक, स्टेशन के कार्यक्रम पूरे दिन के घरेलू रूटीन के हिसाब से तय होते हैं. सुबह, जब लोग दिन की शुरुआत कर रहे होते हैं, तो ‘व्हाट्स न्यू इन नोएडा’ शो सुबह 8 से 11 बजे तक चलता है, जिसमें पिंक ऑटो, ट्रैफिक नियमों और सड़क डायवर्जन जैसी बातें होती हैं.
सुबह 11 बजे के बाद, जब ज़्यादातर घरों में महिलाएं या बुजुर्ग ही होते हैं, तब ‘वीमेन: द अचीवर्स’ और ‘नो टू वायलेंस’ जैसे कार्यक्रम आते हैं.
शाम को, जब लोग अपने-अपने काम से लौटते हैं, तब ‘संजीवनी’ प्रसारित होता है, जिसमें डॉक्टर स्वास्थ्य से जुड़े मुद्दों पर चर्चा करते हैं. दिन का आखिरी शो होता है ‘एक मुलाकात’ — जिसमें प्यार, अकेलापन, अधूरा इश्क और महानगर की टेंशन जैसे विषयों पर बात होती है.
और महीने में एक बार, ‘ताऊ-ताई’ की जोड़ी फिर लौटती है, नोएडा की अनकही गलियों की किस्सागोई लेकर.
एक शो में ताऊ पूछते हैं, “अरे ताई, दहेज लेना ठीक है क्या?”
ताई ज़ोर से माइक पर बोलती हैं, “बिल्कुल नहीं! औरत कोई सौदा नहीं है, जिसे खरीदा जा सके.”
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