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Wednesday, 9 October, 2024
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जमानत जब्त, NOTA से भी कम वोट- राजस्थान में JJP की असफलता का हरियाणा के लिए क्या हैं मायने

जेजेपी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव इस दावे के साथ लड़ा था कि वह 'विधानसभा की चाबी (जेजेपी का चुनाव चिन्ह भी) अपने हाथ में' लेकर हरियाणा में किंगमेकर बनकर उभरेगी.

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गुरुग्राम : लोकसभा चुनाव से पहले राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारकर, हरियाणा में सहयोगी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) पर दबाव बनाने की हरियाणा के उप मुख्यमंत्री दुष्यंत सिंह चौटाला की कोशिश विफल हो गई है, क्योंकि राज्य में उनकी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) की सभी 19 सीटों पर जमानत जब्त हो गई है.

पार्टी को मिला 0.14 प्रतिशत वोट शेयर, नोटा के 0.96 प्रतिशत से भी कम है.

चौटाला हरियाणा में अपने सहयोगी दल से एक या दो सीटें पाने के लिए उत्सुक हैं, जहां 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी सीटों पर कब्जा कर लिया था. भाजपा ने किसी भी सीट को छोड़ने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई है, वहीं केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पार्टी कार्यकर्ताओं से सभी 10 चुनाव क्षेत्रों को जीतने का आह्वान किया है.

जेजेपी ने राजस्थान विधानसभा चुनाव इस दावे के साथ लड़ा था कि पार्टी “विधानसभा की चाबी (जेजेपी का चुनाव चिन्ह भी) अपने हाथ में” लेकर हरियाणा में किंगमेकर के रूप में उभरेगी.

संसदीय चुनावों में 6 महीने से भी कम समय बचा है और अगले साल अक्टूबर में हरियाणा में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं, राजनीतिक विश्लेषक और विपक्षी दल यह दिलचस्पी से देख रहे थे कि राजस्थान में दुष्यंत चौटाला का प्रदर्शन भाजपा के साथ उनके समीकरणों को कैसे प्रभावित करेगा.

जबकि राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि राजस्थान के फैसले का निश्चित रूप से हरियाणा में जेजेपी पर असर पड़ेगा, खुद चौटाला ने अगले साल पार्टी की संभावनाओं के बारे में विश्वास जताया है.

अन्य राजनीतिक दलों में, भाजपा को राजस्थान में 41.69 प्रतिशत वोट मिले, जबकि कांग्रेस को 39.53 प्रतिशत और आम आदमी पार्टी (आप) को 0.38 प्रतिशत वोट मिले हैं.


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ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) को 0.01 प्रतिशत, बहुजन समाज पार्टी (बीएसपी) को 1.82 प्रतिशत, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीआई) को 0.04 प्रतिशत, सीपीआई-(मार्क्सवादी) को 0.96 प्रतिशत, सीपीआई-(मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन को 0.01 प्रतिशत वोट मिले, लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) 0.01 प्रतिशत, राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी 2.39 प्रतिशत, शिवसेना 0.15 प्रतिशत, समाजवादी पार्टी 0.01 प्रतिशत और अन्य को 11.90 प्रतिशत.

पार्टी के खराब वोट शेयर के बारे में पूछे जाने पर, चौटाला ने कहा कि मैदान में अन्य छोटे खिलाड़ियों की तुलना में, जेजेपी का प्रदर्शन खराब नहीं, क्योंकि पार्टी के 3 उम्मीदवार 5,000 से अधिक वोट हासिल करने में सफल रहे हैं.

चौटाला ने यह भी कहा कि इन नतीजों का हरियाणा में भाजपा के साथ पार्टी के संबंधों पर असर पड़ने का कोई सवाल ही नहीं है, क्योंकि “सबसे पहले, मेरी पार्टी ने बड़े पैमाने पर उन सीटों पर चुनाव लड़ा, जहां कांग्रेस ताकतवर थी, और दूसरी बात, एक राजनीतिक दल के रूप में, जेजेपी की अपना आधार बढ़ाने आकांक्षाएं हैं.”

चौटाला ने कहा, “हरियाणा में हमारा पार्टी संगठन बहुत मजबूत है और हमने 2019 में राज्य में अपने पहले विधानसभा चुनाव में 10 सीटें जीता” उन्होंने कहा, ”इस बार हमारी पार्टी काफी बेहतर तरीके से तैयार है.”

इस पर भाजपा की राय जानने के लिए संपर्क करने पर पार्टी के राज्य प्रवक्ता संजय शर्मा ने कहा कि वे अभी तक जेजेपी के साथ किसी भी चुनावी गठबंधन में नहीं रहे हैं.

शर्मा ने कहा, “हमने 2019 का विधानसभा चुनाव अलग से लड़ा. चूंकि भाजपा को सरकार बनाने के लिए आवश्यक 46 सीटें नहीं मिल सकीं (भाजपा को 40 सीटें मिलीं), हमने 5 साल तक सरकार चलाने के लिए जेजेपी के साथ चुनाव के बाद गठबंधन किया,” उन्होंने कहा, “जैसा कि चुनाव नतीजों से पता चलता है, राजस्थान में जेजेपी के अभियान से भाजपा को किसी भी तरह से नुकसान नहीं हुआ है. पार्टी ने 199 निर्वाचन क्षेत्रों में से 115 सीटों पर जीत हासिल की है. चुनाव का वक्त आने पर, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व गठबंधन पर फैसला करेगा.”

‘जेजेपी की संभावनाएं धूमिल होंगी’

हरियाणा के राजनीति की विश्लेषक हेमंत अत्री के अनुसार, राजस्थान में जेजेपी के खराब प्रदर्शन का असर आगामी संसदीय और विधानसभा चुनावों में पार्टी की संभावनाओं पर पड़ना तय है.

अत्री ने कहा, “5 राज्यों के चुनावों की घोषणा से पहले, दुष्यंत चौटाला ने राजस्थान में 25 से 30 सीटों पर चुनाव लड़ने की अपनी पार्टी की योजना की घोषणा की, इस उम्मीद में कि भाजपा उनकी पार्टी को समायोजित करेगी और कुछ सीटें देगी.”

उन्होंने कहा, “हालांकि, बीजेपी ने जेजेपी को उस राज्य में गठबंधन के लायक नहीं समझा. अब, चौटाला की पार्टी अपने निराशाजनक प्रदर्शन से बेनकाब हो गई है. इससे अगले साल होने वाले चुनावों में हरियाणा में जेजेपी की संभावनाएं धूमिल होना तय हैं.”

उन्होंने कहा कि, हालांकि, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर समेत भाजपा नेता कई मौकों पर स्पष्ट कर चुके हैं कि उनकी पार्टी का जेजेपी के साथ गठबंधन 5 साल तक सरकार चलाने के लिए है, लेकिन यह देखना होगा कि राजस्थान के नतीजों के बाद दोनों दल मिलकर कैसे काम करते हैं.

दुष्यंत चौटाला के रंजिशजदा चाचा और विपक्षी इंडियन नेशनल लोक दल (आईएनएलडी) के महासचिव अभय सिंह चौटाला ने कहा कि जेजेपी “अपने बेहद खराब प्रदर्शन से” बेनकाब हो गई है.

उन्होंने कहा कि राजस्थान में जेजेपी के साथ जो हुआ, वह अगले साल हरियाणा में होने वाले संसदीय और विधानसभा चुनावों में दोहराया जाएगा, क्योंकि लोगों का अब जेजेपी नेता से मोहभंग हो गया है.

हालांकि, दुष्यंत चौटाला ने कहा कि वह राजस्थान विधानसभा चुनाव में अपनी पार्टी के प्रदर्शन से बिल्कुल भी निराश नहीं हैं.

टिप्पणी के लिए संपर्क किए जाने पर, चौटाला ने कहा कि 2018 में गठित जेजेपी द्वारा हरियाणा के बाहर यह पहला चुनाव था.

चौटाला ने कहा, “राजस्थान में हमारा कोई संगठन नहीं था. लेकिन जब से हमने इस साल मई में पृथ्वीराज मील को अपनी पार्टी की राजस्थान इकाई का अध्यक्ष नियुक्त किया, कई राजनीतिक नेता पार्टी में शामिल हुए हैं और हम उस राज्य में अपना संगठन बनाने में सक्षम हुए हैं.”

उन्होंने कहा, “अब, जब हम राजस्थान में अपना अगला चुनाव लड़ेंगे, तो हमें राज्यभर में हमारी पार्टी इकाइयों का लाभ मिलेगा. सिर्फ विधानसभा चुनाव ही नहीं, हम पंचायती राज संस्थाओं और नगर निकायों के लिए भी चुनाव लड़ेंगे.”

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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