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Thursday, 25 April, 2024
होमचुनावकर्नाटक विधानसभा चुनावभ्रष्टाचार, कमजोर नेता, कम महिला वोट, स्थानीय मुद्दे, आरक्षण का विफल दांव: BJP की कर्नाटक हार के 5 कारण

भ्रष्टाचार, कमजोर नेता, कम महिला वोट, स्थानीय मुद्दे, आरक्षण का विफल दांव: BJP की कर्नाटक हार के 5 कारण

गुजरात, उत्तराखंड, और यूपी जैसे अन्य बीजेपी शासित राज्यों के विपरीत, कर्नाटक एक अपवाद था क्योंकि भ्रष्टाचार राज्य में एक प्रमुख मुद्दा बन गया था. चुनाव से पहले बोम्मई सरकार को मजबूत सत्ता विरोधी लहर का सामना करना पड़ा था.

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नई दिल्ली: हिमाचल प्रदेश में सत्ता गंवाने के बाद, कर्नाटक में हार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के लिए चुनावी साल में एक बड़ा झटका है, क्योंकि पार्टी को इस साल मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और तेलंगाना जैसे अन्य बड़े राज्यों में भी चुनाव का सामना करना है. 

इस चुनाव का सबसे बड़ा प्रभाव बीजेपी की दक्षिणी राज्यों में भगवा लहराने की महत्वाकांक्षा पर पड़ेगा, क्योंकि पार्टी तेलंगाना, तमिलनाडु और केरल जैसे राज्यों में अपना विस्तार करना चाहती है. कर्नाटक भारत का एकमात्र दक्षिणी राज्य था जहां पार्टी सत्ता में थी.

भारत के सबसे समृद्ध भारतीय राज्यों में से एक को खोना 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले बीजेपी के लिए झटका है क्योंकि कुल 28 संसदीय सीटों वाले इस राज्य में पार्टी के पास एक निर्दलीय से समर्थन सहित कुल 25 सांसद हैं. 

बसवराज बोम्मई सरकार के खिलाफ सत्ता विरोधी लहर का मुकाबला करने के लिए कर्नाटक में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी की पुरजोर कोशिश भी पार्टी को हार से बचा नहीं सकीं. पार्टी को स्थानीय राज्य चुनाव को व्यक्तित्व-आधारित राष्ट्रीय चुनाव में बदलने के सभी प्रयासों के बावजूद हार का सामना करना पड़ा.

हालांकि बीजेपी का वोट शेयर कमोबेश वैसा ही रहा, लेकिन कर्नाटक में पार्टी की हार का कारण अकेले किसी एक कारक पर नहीं लगाया जा सकता है.

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भ्रष्टाचार और सत्ता विरोधी लहर

गुजरात, उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश और यहां तक कि हिमाचल प्रदेश जैसे अन्य बीजेपी शासित राज्यों के विपरीत, कर्नाटक एक अपवाद था जहां चुनाव में या चुनाव से पहले भ्रष्टाचार एक प्रमुख मुद्दा बन गया था.

कांग्रेस के 40 प्रतिशत कमीशन सरकार के अभियान ने बीजेपी सरकार की छवि को धूमिल किया, लेकिन बोम्मई ने इस समस्या को रोकने के लिए कोई मजबूत कदम नहीं उठाया. 

ग्रामीण विकास मंत्री मंत्री केएस ईश्वरप्पा पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने वाले ठेकेदार संतोष पाटिल पिछले साल अप्रैल में  मृत पाए गए थे. इसके बाद इस बीजेपी नेता को इस्तीफा देने के लिए कहा गया था, लेकिन पार्टी ने भ्रष्टाचार के आरोप पर ध्यान देने और उसपर कोई विशेष कार्यवाई करना उचित नहीं समझा. इसके कारण एक पार्टी के प्रति एक नकारात्मक माहौल बना.

कानून मंत्री जे.सी. मधुस्वामी की एक ऑडियो क्लिप, जिसमें उन्होंने कथित तौर पर कहा था कि सरकार कुछ भी काम नहीं कर रही है और पार्टी सिर्फ 2023 के चुनाव पर फोकस कर रही है, ने बोम्मई सरकार की अक्षमता का खुलासा किया.

भ्रष्टाचार से लड़ने या अपने कैबिनेट सहयोगियों को साथ लेकर बोम्मई ने खुद को एक मुखर मुख्यमंत्री के रूप में पेश नहीं किया. यहां तक कि जब कांग्रेस ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाया, तो उन्होंने इसे ‘गंदी राजनीति’ करार दिया.

बागवानी मंत्री मुनिरत्ना के खिलाफ कर्नाटक कॉन्ट्रैक्टर्स एसोसिएशन के आरोप ने कांग्रेस को बीजेपी पर और सवाल खड़ा करने का अवसर दिया. इसके बाद से ही कांग्रेस पार्टी ने PayCM अभियान शुरू किया. हालांकि बीजेपी ने पिछले साल सितंबर में ‘स्कैम रमैया’ लॉन्च किया था, लेकिन नुकसान की भरपाई के लिए तबतक काफी देर हो चुकी थी.

राज्य नेतृत्व की लापरवाही

2018 में चुनाव से पहले, बीजेपी ने घोषणा की थी कि लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा लगभग एक साल पहले उसके मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार थे. जबकि केंद्रीय नेतृत्व ने राज्य इकाई के फैसले का समर्थन किया.

इसके विपरीत इस साल केंद्रीय नेतृत्व ने बोम्मई के साथ प्रचार का सारा जिम्मा अपने हाथों में ले लिया और कहा कि बीजेपी पार्टी के सामूहिक नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी. पार्टी ने फैसला किया कि इस चुनाव में पार्टी का चेहरा घोषित नहीं किया जाएगा.

बीजेपी नेताओं ने सबसे पहले येदियुरप्पा को मंत्रिमंडल विस्तार के लिए बार-बार बुलाकर उनका प्रभाव कम किया, जो बाद में बोम्मई के साथ भी हुआ. येदियुरप्पा को 2021 में सीएम की कुर्सी से हटा दिया गया था, जबकि नेतृत्व अच्छी तरह से जानता था कि वह कर्नाटक में एकमात्र लोकप्रिय जननेता हैं.

पार्टी को तब अपनी गलती का एहसास हुआ और येदियुरप्पा को पिछले साल अगस्त में संसदीय बोर्ड में नियुक्त किया गया. फरवरी 2024 में शटरबग्स के लिए शिमोगा हवाई अड्डे का उद्घाटन करते समय पीएम नरेंद्र मोदी ने अपना जोड़कर गलती में सुधार करने की बात कहीं. मोदी ने आगे येदियुरप्पा द्वारा सुझाए गए सभी प्रतियोगियों को मंजूरी दे दी और वरिष्ठ नेता बी.एल.संतोष के सुझावों को नहीं माना.

येदियुरप्पा और उनके बेटे बी.वाई. विजयेंद्र ने चुनाव में बड़े पैमाने पर प्रचार किया, लेकिन मोदी को पूरे अभियान में पूर्व मुख्यमंत्री की तुलना में अधिक तवज्जो मिली. कई मतदाताओं का तर्क था कि येदियुरप्पा को सीएम से हटाकर बीजेपी ने बहुत बड़ी गलती की है.

इसके विपरीत, कांग्रेस के सिद्धारमैया को येदियुरप्पा की तरह राज्य में काफी लोकप्रियता है. पार्टी ने अपने चुनाव प्रचार में महंगाई, सिलेंडर की कीमत और स्थानीय मुद्दों पर ज्यादा फोकस किया.

उत्तराखंड के विपरीत, जहां पार्टी ने दो सीएम बदले, और गुजरात में, जहां न केवल मुख्यमंत्री विजय रूपाणी और डिप्टी नितिन पटेल, बल्कि यूनिट का पूरा ढांचा भी बदल दिया गया, बीजेपी ने कर्नाटक में कोई बड़ा बदलाव नहीं किया. सिर्फ दो दर्जन मौजूदा विधायकों का टिकट काटा गया. पार्टी ने अपना प्रदेश अध्यक्ष भी नहीं बदला. के.एस. ईश्वरप्पा जैसे कुछ नेताओं को छोड़कर अधिकांश राजवंशों को टिकट दिया गया था.


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स्थानीय चुनाव बनाम केंद्रीय चुनाव

प्रधानमंत्री की लोकप्रियता का लाभ उठाने की बीजेपी की योजना इस चुनाव में काम नहीं आई क्योंकि इस चुनाव में एक मजबूत चुनावी अभियान और एक मजबूत नेतृत्व का समर्थन नहीं था. 

जैसे ही कांग्रेस ने महंगे एलपीजी सिलेंडर, महंगाई, भ्रष्टाचार और स्थानीय मुद्दों पर चुनावी लड़ाई छेड़ी, बीजेपी ने चुनाव को मोदी, उनके नेतृत्व और लोकप्रियता और डबल इंजन सरकार के इर्द-गिर्द मोड़ने की कोशिश की. यहां तक कि चुनाव प्रचार के दौरान गिनाए जा रहे अधिकांश सार्वजनिक कार्य केंद्र सरकार के थे, न कि बोम्मई और येदियुरप्पा के.

चुनाव में मोदी का जादू भी काम नहीं कर पाया क्योंकि कांग्रेस के लगातार चुनावी अभियान के कारण सरकार की छवि धूमिल हुई. इसके अलावा टिकट बंटवारे के बाद आपसी कलह और भी गंभीर हो गई.

ऐसे में बीजेपी समझ गई कि स्थानीय मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाना ही एकमात्र रास्ता है. पार्टी ने भगवान हनुमान का हौवा खड़ा करने के लिए कांग्रेस के घोषणापत्र को भुनाने की कोशिश की, लेकिन कर्नाटक के मतदाताओं ने बीजेपी की रणनीति को देखा और पार्टी को स्थानीय मुद्दों पर बात नहीं करने के लिए दंडित किया.

कर्नाटक के एक वरिष्ठ मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘राज्य में एंटी-इनकंबेंसी के बारे में हमें पता था और एंटी-इनकंबेंसी को मात देने के लिए चुनाव को राष्ट्रीय नैरेटिव पर मोड़ना हमारी सबसे अच्छी रणनीति थी. शुरू से ही हमें राज्य में बहुत निराशाजनक फीडबैक मिल रहा था. हालांकि प्रधानमंत्री ने इस खाई को पाटने की कोशिश की, लेकिन पूरी कहानी हमारे खिलाफ थी.’

हालांकि, इससे पहले झारखंड और दिल्ली जैसे राज्यों में भी ‘मोदी फैक्टर’ नहीं चल पाया था, जहां हेमंत सोरेन और अरविंद केजरीवाल जैसे मजबूत नेता हैं.

आरक्षण में बदलाव से लाभ नहीं

जैसा कि हिजाब और टीपू सुल्तान जैसे विवादों से पार्टी को वह लाभ नहीं मिला जैसा वह उम्मीद कर रही थी. बोम्मई सरकार ने चुनावी लाभ लेने के लिए ‘आरक्षण मैट्रिक्स’ को फिर से शुरू करके अपने सबसे शक्तिशाली हथियार का इस्तेमाल किया, लेकिन पार्टी इसमें भी असफल रही.

2005 में, तत्कालीन कांग्रेस-जनता दल (सेक्युलर) सरकार ने अनुसूचित जातियों के बीच आरक्षण लाभों के समान वितरण की जांच के लिए एक आयोग नियुक्त किया था. इसकी रिपोर्ट विधानसभा में कभी पेश नहीं की गई.

बसवराज बोम्मई सरकार ने पिछले साल दिसंबर में आंतरिक आरक्षण पर पांच सदस्यीय कैबिनेट उपसमिति का गठन किया था. फिर, 23 मार्च को, सरकार ने एक नई आरक्षण नीति की घोषणा की जिसमें लिंगायतों और वोक्कालिगाओं को अतिरिक्त कोटा दिया गया था.

लेकिन, अंतिम समय में लिया गया फैसला पार्टी हित में काम नहीं कर पाया जैसा कि पार्टी उम्मीद कर रही थी. दलित लामबंदी कर्नाटक के कई इलाकों में कांग्रेस के पक्ष में हुई. कुरुबा सिद्धारमैया के पक्ष में एकजुट हो गए, जबकि दलितों – जो रोजगार के मुद्दों का सामना कर रहे थे- ने अपने गढ़ में कांग्रेस का समर्थन किया.

महिलाओं ने बीजेपी को कम वोट किया 

उत्तर प्रदेश, गुजरात और असम जैसे राज्यों के विपरीत, विभिन्न केंद्रीय योजनाओं के लाभार्थियों ने बोम्मई सरकार को पूरी तरह से समर्थन नहीं दिया. जबकि अन्य बीजेपी शासित राज्य में इसे पार्टी ने अच्छी तरह से भुनाया. 

कई तरह की कठिनाइयों का सामना कर अपना धैर्य खो चुकी जनता ने डबल इंजन सरकार और उसके वादे पर अधिक ध्यान नहीं दिया. लोग कांग्रेस की युवा निधि, अन्न भाग्य, गृह ज्योति, उचिता प्रयाण और गृह लक्ष्मी जैसी पांच गारंटियों के प्रति अधिक आकर्षित थे. 

जहां उचिता प्रयाना नियमित सरकारी बसों में महिलाओं के लिए मुफ्त यात्रा का प्रस्ताव करती है, वहीं गृह ज्योति ने सभी घरों में एक महीने में 200 यूनिट मुफ्त बिजली देने का वादा किया है. गृह लक्ष्मी के तहत, परिवार की प्रत्येक महिला मुखिया को 2,000 रुपये मासिक सहायता मिलेगी. 

युवा निधि के तहत दो साल के लिए सभी बेरोजगार स्नातकों को 3,000 रुपये और सभी बेरोजगार डिप्लोमा स्नातकों (दोनों 18 से 25 वर्ष की आयु में) को 1,500 रुपये की मासिक सहायता दी जाएगी. अन्न भाग्य के तहत बीपीएल परिवार के प्रत्येक व्यक्ति को हर महीने 10 किलो अनाज मिलेगा.

भले ही बीजेपी ने स्वच्छ भारत, आयुष भारत और किसान सम्मान निधि के माध्यम से हासिल किए गए अपने ट्रैक रिकॉर्ड को उजागर करते हुए अपने चुनाव प्रचार पर फोकस किया, लेकिन एलपीजी सिलेंडर, खाद्यान्न और आवश्यक वस्तुओं और बिजली दरों में वृद्धि के कारण महिलाओं को सबसे अधिक नुकसान उठाना पड़ा.

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेज़ी में पढ़नें के लिए यहां क्लिक करें)


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