नई दिल्ली: राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (NMC) ने मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मानसिक बीमारी के लक्षण अब एमबीबीएस पाठ्यक्रम की आगे की पढ़ाई में बाधा नहीं बन सकते और “दिव्यांगता मूल्यांकन के बेहतर तरीके” तैयार होने के बाद ऐसे अभ्यर्थियों के लिए भविष्य में आरक्षण लाभ पर भी विचार किया जा सकता है.
देश में चिकित्सा शिक्षा को नियंत्रित करने वाले NMC से 18 मई को शीर्ष अदालत ने एमबीबीएस पाठ्यक्रम में प्रवेश में आरक्षण देने के लिए मानसिक बीमारियों, विशेष शिक्षण विकार और ऑटिज्म स्पेक्ट्रम विकार वाले छात्रों की दिव्यांगता मूल्यांकन के विकसित तरीकों की जांच करने के लिए संबंधित विषय के विशेषज्ञों का एक पैनल स्थापित करने को कहा था.
प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे.बी. पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने एक एमबीबीएस आकांक्षी की ओर से पेश वकील गौरव कुमार बंसल की दलीलों पर ध्यान दिया कि कई देश न केवल मानसिक बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों को चिकित्सा शिक्षा हासिल करने की अनुमति दे रहे हैं, बल्कि उन्हें दाखिले में आरक्षण भी दे रहे हैं.
शीर्ष अदालत ने बंसल को एमबीबीएस पाठ्यक्रम में मानसिक बीमारी वाले व्यक्तियों के प्रवेश और दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के तहत फिलहाल उन्हें आरक्षण न देने के मुद्दे पर NMC के नए दिशानिर्देशों को चुनौती देने के लिए याचिका में संशोधन करने की अनुमति दी.
पीठ ने हालांकि इस तथ्य को स्वीकार किया कि NMC ने डोमेन विशेषज्ञों की समिति गठित की और मुद्दे की जांच के बाद कुछ दिशानिर्देश जारी किए. NMC ने कहा कि आठ सदस्यीय विशेषज्ञ समिति ने इस मुद्दे पर चर्चा की.
इसने अपनी रिपोर्ट में कहा, “बैठकों में विशेषज्ञ सदस्यों से प्राप्त अनुशंसाओं पर गहन विचार-विमर्श के बाद, अंडर ग्रेजुएट मेडिकल एजुकेशन बोर्ड इस निष्कर्ष पर पहुंचा है कि मानसिक बीमारी के संबंध में, ‘मानसिक बीमारी का लक्षण अब चिकित्सा शिक्षा (एमबीबीएस) करने की पात्रता के लिए बाधा नहीं बन सकता, बशर्ते अभ्यर्थी प्रतिस्पर्धी प्रवेश परीक्षा, जैसे-नीट-यूजी, में योग्यता सूची में आता हो.”
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