बेंगलुरु: सिद्धारमैया के नेतृत्व वाली कर्नाटक सरकार ने मोदी सरकार द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) 2020 को रद्द करने और अपना खुद का एक मसौदा तैयार करने का फैसला किया है.
सोमवार को मीडिया को जारी एक बयान में, कर्नाटक में कांग्रेस सरकार ने “राज्य-विशिष्ट विषय” पर विशेष अधिकारों का हवाला दिया.
सिद्धारमैया ने कहा,“चूंकि यह राज्य का मुद्दा है, इसलिए केंद्र सरकार शिक्षा नीति नहीं बना सकती.”
उन्होंने बयान में कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा नीति राज्य सरकारों को विश्वास में लिए बिना बनाई गई है. शिक्षा नीति केंद्र सरकार द्वारा थोपी नहीं जा सकती.”
सीएम ने एनईपी को “साज़िश” बताते हुए कहा कि इसे जबरन राज्यों पर “थोपा गया” है.
सीएम ने कहा, “भारत जैसे बहुसांस्कृतिक और बहुलवादी समाज वाले देश में एक समान शिक्षा प्रणाली स्थापित नहीं की जा सकती.”
सिद्धारमैया के डिप्टी डी.के. शिवकुमार ने कहा कि नई नीति पर विचार-विमर्श के लिए एक सप्ताह के भीतर एक नई समिति बनाई जाएगी, जिसे उन्होंने “नई कर्नाटक शिक्षा नीति” कहा है.
जब से कांग्रेस ने इस मई में कर्नाटक में 224 विधानसभा सीटों में से 135 सीटें जीतकर भाजपा को बाहर किया है, उसने दावा किया है कि वह अपने पूर्ववर्ती की “गलतियों को ठीक” करेगी. इसमें पशु वध और धर्मांतरण पर विवादास्पद कानून भी शामिल हैं.
एनईपी का फैसला विभिन्न विश्वविद्यालयों के कुलपतियों और अन्य शैक्षणिक विशेषज्ञों द्वारा सोमवार को बेंगलुरु में मुख्यमंत्री और सरकार के अन्य सदस्यों से मुलाकात के बाद आया.
भाजपा और कांग्रेस इस विषय पर कई मौकों पर आमने-सामने हो चुके हैं और एक-दूसरे पर प्रतिशोध की राजनीति करने और राज्य के हित में काम नहीं करने का आरोप लगा रहे हैं.
पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के तहत, कर्नाटक एनईपी लागू करने वाला पहला राज्य बन गया था. 2021-22 में, तत्कालीन केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान ने एकीकृत विश्वविद्यालय और कॉलेज प्रबंधन प्रणाली के तहत उच्च शिक्षा के लिए प्रवेश प्रक्रिया का शुभारंभ किया था.
टिप्पणी के लिए पहुंचे भाजपा नेता बी.सी. नागेश ने कांग्रेस के इस दावे का विरोध किया कि शिक्षा राज्यों का मुद्दा है, उन्होंने कहा कि यह संविधान की समवर्ती सूची का विषय है – ऐसे विषय जिन पर केंद्र और राज्य सरकारें दोनों कानून बना सकती हैं.
कर्नाटक के पूर्व प्राथमिक और माध्यमिक शिक्षा मंत्री नागेश ने कहा कि एनईपी वर्षों से देश भर के अकादमिक विशेषज्ञों के साथ व्यापक विचार-विमर्श का परिणाम है और इसे “राजनीतिक अभ्यास” तक सीमित नहीं किया जाना चाहिए.
नागेश नें दिप्रिंट से कहा, “सबसे पहले, वे (कांग्रेस) एनईपी को नहीं जानते हैं. ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि उन्होंने इसे नहीं पढ़ा है.”
भारतीय संविधान की सातवीं अनुसूची के अनुसार, शिक्षा के कई रूप (विमानन, समुद्री प्रशिक्षण आदि) संघ सूची के अंतर्गत आते हैं, जबकि अन्य (चिकित्सा, तकनीकी, अन्य) समवर्ती सूची के अंतर्गत आते हैं.
कर्नाटक के पूर्व महाधिवक्ता और संवैधानिक कानून के विशेषज्ञ प्रोफेसर रवि वर्मा कुमार ने कहा कि एनईपी “कोई कानून नहीं है, इसलिए यह राज्य पर बाध्यकारी नहीं है”.
उन्होंने कहा, “राष्ट्रीय शिक्षा का अधिकार (आरटीई) एक केंद्रीय कानून है…अब यह राज्य पर बाध्यकारी है, लेकिन एनईपी आरटीई अधिनियम का हिस्सा नहीं है और राज्य पर बाध्यकारी नहीं है. राज्य की अपनी नीति हो सकती है.”
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‘बुरी मिसाल कायम करना’
कर्नाटक सरकार ने अपने बयान में कहा कि कई अन्य भाजपा शासित राज्य भी एनईपी को लागू करने के लिए अनिच्छुक हैं.
सिद्धारमैया ने कहा, “केरल और तमिलनाडु राज्यों ने केंद्र सरकार को स्पष्ट कर दिया है कि वे राष्ट्रीय शिक्षा नीति को लागू नहीं करेंगे.”
जवाब में, नागेश ने कहा, “शिक्षा एक राजनीतिक कार्यक्रम नहीं होना चाहिए. हम यह नहीं कह सकते कि यह घोषणापत्र में है और ऐसा नहीं करना चाहिए (नीति में बदलाव). राष्ट्रीय नीति सरकारों के साथ नहीं बदलती.”
उन्होंने कहा कि अतीत में भाजपा और कांग्रेस द्वारा कई ऐसी नीतियां पेश की गई थीं जिन्हें अन्य दलों के नेतृत्व वाली सरकारों ने स्वीकार किया था, उन्होंने कहा कि सिद्धारमैया प्रशासन “राजनीतिक लाभ के लिए एक बुरी मिसाल” स्थापित कर रहा है.
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
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