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Thursday, 25 April, 2024
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Covid के दौरान 50 फीसदी से ज्यादा छात्रों को अंग्रेजी और गणित लर्निंग में हुई मुश्किल- सर्वे

सामाजिक संगठन स्माइल फाउंडेशन ने मई और जुलाई 2022 के बीच किए गए अपने अध्ययन में पाया कि इन कक्षाओं में पढ़ने वाले 50 फीसदी से अधिक छात्र सीखने-समझने में असमर्थ थे और उनमें लर्निंग की गंभीर खामियां सामने आई.

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नई दिल्ली: कोविड के दौरान दूसरी से लेकर आठवीं कक्षा तक के छात्रों के लिए पढ़ाई किसी चुनौती से कम नहीं थी. खासकर गणित और अंग्रेजी विषयों का सीखना-समझना उनके लिए सबसे ज्यादा मुश्किल रहा. ये बात 22 भारतीय राज्यों में किए गए एक सर्वेक्षण में सामने आई है.

सामाजिक संगठन स्माइल फाउंडेशन ने मई और जुलाई 2022 के बीच किए गए अपने अध्ययन में पाया कि इन कक्षाओं में पढ़ने वाले 50 फीसदी से अधिक छात्र सीखने-समझने में असमर्थ थे और उनमें लर्निंग की गंभीर खामियां सामने आई.

सर्वे में वो छात्र शामिल थे, जिन्होंने कोविड-19 के कारण सभी बाधाओं के बावजूद अपनी पढ़ाई जारी रखी हुई थी. फाउंडेशन के साथ पंजीकृत 48,000 छात्रों में से पांच प्रतिशत यानी कक्षा दूसरी से लेकर आठवीं तक के 2,464 छात्रों पर ये अध्ययन किया गया था.

सर्वे में सौ टीचर, 10 गैर-सरकारी संगठन के नेताओं और 500 अभिभावकों ने भी भाग लिया.

सर्वेक्षण से पता चला कि ग्रेड 2 के 51 प्रतिशत छात्र छोटे और बड़े अक्षरों, विराम चिह्नों को पहचान नहीं सकते थे या फिर वाक्य नहीं बना सकते थे. 52 फीसदी सबजेक्ट टेक्स्ट को समझने और बिना किसी परेशानी के लिखने में सक्षम नहीं थे और 51 फीसदी छात्र अपनी उम्र के मुताबिक शब्दों की सही तरीके से पहचान नहीं कर पा रहे थे.

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कक्षा दो के 51 फीसदी छात्र गणित विषय के बुनियादी जोड़, घटाव, गुणा और भाग नहीं कर सके. 52 फीसदी संख्याओं और स्थानीय मानों की मूल गणना कर पाने में सक्षम नहीं थे और 61 फीसदी छात्रों को बुनियादी ज्यामितीय आकृतियों की समझ नहीं थी.

तीसरी क्लास में पढ़ने वाले 63 फीसदी बच्चों को वाक्य बनाना नहीं आता था. जबकि 64 फीसदी अक्षरों से शब्द बनाने या उच्चारण सुनकर उनका अर्थ बताने में विफल रहे.

चौथा कक्षा में पढ़ने वाले 52 प्रतिशत छात्रों को गणित के स्थानीय मान, अंकीय जोड़, घटाव, गुणा और भाग का ज्ञान नहीं था.

69 फीसदी बच्चों के माता-पिता ने माना की उनकी उम्र के मुताबिक सीखने-समझने के स्तर पर लाने के लिए उन्हें गणित और अंग्रेजी विषय में ज्यादा मदद की दरकार है.

स्माइल फाउंडेशन के सह-संस्थापक संतनु मिश्रा ने बताया, ‘छात्र महामारी से सबसे बुरी तरह प्रभावित समूहों में से एक रहे हैं. उन्होंने सीखने के अलग-अलग तरीकों को अपनाने के लिए काफी संघर्ष किया है. और इसी वजह से उनके लर्निंग प्रोसेस में गैप रहा है. यह देश के ग्रामीण इलाकों की सच्चाई है. हमारी रिपोर्ट ‘लर्निंग लॉस एंड एजुकेशन रिकवरी’ स्माइल फाउंडेशन के परिचालन स्थानों में कोविड -19 के बाद स्कूल जाने वाले बच्चों की लर्निंग के नुकसान को दूर करने के लिए निष्कर्षों और उसके लिए आगे के रास्ते के बारे में बताती है.’


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कोविड के बाद माता-पिता को ज्यादा ध्यान देना पड़ा

सर्वेक्षण में पाया गया कि कोविड के बाद माता-पिता को बच्चों की पढ़ाई को लेकर उन पर ज्यादा देने लगे हैं. 47 फीसदी बच्चों के माता-पिता ने कहा कि टीचर के साथ उनका इंटरेक्शन बढ़ा है. अब इसके लिए चाहे उन्होंने टीचर से फोन पर बात की हो या फिर व्यक्तिगत तौर पर उनसे मिले हों. 38 फीसदी अभिभावकों ने स्कूलों में जाकर शिक्षकों के साथ बातचीत शुरू की. पीटीएम में भी अभिभावकों की उपस्थिति 27 फीसदी बढ़ गई.

50 फीसदी माता-पिता ने डिजिटल संसाधनों – डिवाइस, नेटवर्क, डेटा पैक – की कमी महसूस करने की बात कबूली. महामारी के दौरान इनकी कमी ने बच्चों के लिए लर्निंग को मुश्किल बना दिया. 67 प्रतिशत अभिभावकों ने कहा कि महामारी के कारण स्कूल बंद होने से बच्चों की सीखने-समझने की क्षमता पर काफी असर पड़ा है.

स्माइल फाउंडेशन हर साल 15 लाख से ज्यादा बच्चों और उनके परिवारों को सीधे लाभ पहुंचाता है. संगठन के पास भारत के 25 राज्यों में 2,000 से अधिक दूरदराज के गांवों और शहरी मलिन बस्तियों में शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल, आजीविका और महिला सशक्तिकरण पर 400 से अधिक कल्याणकारी योजनाएं हैं.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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