नई दिल्ली: कोविड-19 मामलों में हुई वृद्धि के बाद कई राज्य सरकारों ने स्कूलों के बंद करने के लिए फिर से निर्देश जारी कर दिए हैं, जैसे महामारी की पहली और दूसरी लहर में किए थे. इसके परिणामस्वरूप, थोड़े समय के बाद जब छात्र अपनी कक्षाओं में लौट आए थे, उन्हें अब फिर से ऑनलाइन पढ़ाई पर लौटने के लिए मजबूर कर दिया गया है.
ये परिवर्तन छात्रों के लिए आसान नहीं रहा है, खासकर गरीब परिवारों से आने वालों के लिए, जिनकी ऑनलाइन पढ़ाई के लिए निजी कंप्यूटर्स, टैब्लेट्स या स्मार्टफोन्स जैसे यंत्रों तक बहुत कम पहुंच रही या बिल्कुल भी नहीं रही. शिक्षकों के लिए भी ये उतना ही मुश्किल रहा है, जो ये सुनिश्चित करने में जूझते रहते हैं कि कोई व्यवधान पैदा न हो. उन्हें लगता है कि ऐसे छात्रों तक पहुंचने के लिए सरकार को उन्हें ऑनलाइन कक्षाओं के अलावा कुछ वैकल्पिक तरीके मुहैया कराने चाहिए.
कुछ शिक्षकों का सुझाव है कि राज्य सरकारों को छात्रों के लिए एक फ्री रेडियो सर्विस या डायरेक्ट टू होम टेलीविज़न चैनल शुरू करना चाहिए, जिससे कोर्स सामग्री का प्रसारण किया जा सके, जबकि कुछ अन्य शिक्षकों को लगता है कि प्राधिकारियों को स्ट्रीट क्लासरूम्स की अनुमति दे देनी चाहिए, जिसके तहत रोटेशनल कक्षाओं के लिए उद्यानों और स्कूलों के खेल के मैदानों का आवंटन किया जाना चाहिए.
मई 2020 में, स्कूल बंदी के दौरान छात्रों को शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए शिक्षा मंत्रालय मंत्रालय ने डीटीएच चैनल्स का रुख किया था. मंत्रालय के एक बयान के अनुसार: ‘सामग्री 12 ‘स्वयं प्रभा’ चैनलों पर प्रसारित की जाएगी, जो मंत्रालय के पास एयरटेल और डिश टीवी जैसे डीटीएच प्लेटफॉर्म्स पर हैं. ये पहल एक बड़े ‘पीएम ई-विद्या’ पैकेज का हिस्सा होगी.
दिप्रिंट ने इस बात की पुष्टि की, कि सेवाएं काम कर रही हैं लेकिन स्पष्ट है कि शिक्षकों को उनकी जानकारी नहीं है.
इस खबर के लिए मंत्रालय को की गई फोन कॉल्स, एक ई-मेल और एक लिखित संदेश का कोई जवाब नहीं मिला. जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
दिप्रिंट ने दिल्ली के शिक्षा विभाग के निदेशक हिमांशु गुप्ता और तमिलनाडु में स्कूली शिक्षा की प्रमुख सचिव काकरला ऊषा से फोन कॉल्स और लिखित संदेशों के ज़रिए संपर्क किया लेकिन इस खबर के छपने तक उनकी कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी. उनका जवाब मिलने पर इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.
कई सारे शिक्षकों ने दिप्रिंट को बताया कि फिलहाल बहुत सारे सरकारी स्कूल पढ़ाने के लिए व्हाट्सएप वॉयस नोट्स का सहारा ले रहे हैं, जबकि कुछ दूसरे स्कूल राज्य सरकारों द्वारा उपलब्ध कराई जा रही ऑनलाइन सेवाओं का इस्तेमाल करने की कोशिश करते हैं.
पहले कोविड लॉकडाउन के बाद, जो मार्च 2020 में लगाया गया था, छात्रों ने कथित रूप से 500 दिन से अधिक की फिज़िकल कक्षाएं गंवाईं. पिछले साल केंद्र सरकार की ओर से जारी 2019-20 के लिए शिक्षा के लिए एकीकृत जिला सूचना प्रणाली (यूडीआईएसई+) आंकड़ों के अनुसार, भारत के लगभग 78 स्कूलों में इंटरनेट सुविधाएं नहीं थीं और 61 प्रतिशत से अधिक में कंप्यूटर्स ही नहीं थे.
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‘ऑनलाइन पढ़ाई सबके लिए काम नहीं करती’
अहमदाबाद के ठक्कर पब्लिक स्कूल के एक शिक्षक हितेश ने बताया कि उनके स्कूल में ऑनलाइन कक्षाएं चलाने के लिए एक माइक्रोसॉफ्ट लिंक इस्तेमाल किया जाता है लेकिन छात्रों की उपस्थिति काफी कम हो गई है क्योंकि उनमें सबके पास फोन या इंटरनेट की सुविधा नहीं है.
उन्होंने दिप्रिंट से कहा, ‘जैसे ही हम स्कूलों के बंद होने की खबर सुनते हैं, हमें मालूम हो जाता है कि छात्रों को परेशानी होने वाली है. छात्रों की पढ़ाई पर इसका हानिकारक प्रभाव पड़ा है. क्या आप सोच सकते हैं कि मेरे 50 प्रतिशत से अधिक छात्रों के पास पढ़ने के लिए फोन भी नहीं हैं. हम उन्हें कैसे पढ़ाए?’
बहुत से शिक्षकों के लिए उनकी जिम्मेदारियां पढ़ाने से आगे बढ़ गईं हैं. राजनीतिशास्त्र की एक 57 वर्षीय शिक्षिका ने, जो दिल्ली के तुगलकाबाद इलाके में एक सरकारी स्कूल में काम करती हैं, नाम न बताने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि ऐसे भी मौके आए हैं जब शिक्षकों ने ऐसे छात्रों से संपर्क किया, जो नियमित रूप से कक्षाएं छोड़ रहे थे और उन्हें ये जवाब मिला कि उन्होंने कई दिनों से कुछ खाया नहीं है. उन्होंने आगे कहा, ‘ऐसे मामलों में हम अपनी पूरी कोशिश करते हैं कि उन्हें ज्यादा से ज्यादा भोजन उपलब्ध करा सकें, ताकि छात्रों को मुसीबतें न झेलनी पड़ें’.
उन्होंने आगे कहा कि उन बच्चों के लिए, जो फोन्स तक लगातार पहुंच न होने के कारण ऑनलाइन कक्षाएं नहीं ले पाते, वो व्हाट्सएप वॉयस नोट्स का सहारा लेते हैं: ‘चूंकि हमारे अधिकतर छात्र बिहार और उत्तर प्रदेश में अपने घरों को लौट गए हैं, इसलिए लगातार फोन तथा कनेक्टिविटी उपलब्ध न रहने के कारण, व्हाट्सएप वॉयस नोट्स ही संचार का एकमात्र साधन रह जाते हैं. हम उन्हें सवाल भेजते हैं और एप के ज़रिए सवाल-जवाब लिखाते हैं. छात्रों को जब भी फोन उपलब्ध होता है, वो एप के ज़रिए पढ़ाई कर सकते हैं’.
जो छात्र स्कूल के पास रहते हैं वो अपनी नोट बुक्स चेकिंग के लिए स्कूल में छोड़ सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘हर थोड़े दिन में उन्हें अपनी नोटबुक्स दाखिल करनी पड़ती हैं. इन नोट बुक्स के आने के बाद उन्हें सैनिटाइज़ करके तीन दिन के लिए अलग रख दिया जाता है, जिसके बाद हम मास्क और ग्लव्ज़ पहनकर उन्हें चेक करते हैं’. उन्होंने आगे कहा कि हालांकि उनका काम दोगुना हो गया है लेकिन फिर भी वो अपने छात्रों की मदद करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं.
महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान आदि देश के दूसरे प्रदेशों में, दिप्रिंट ने जिन शिक्षकों से बात की उनका भी यही कहना था कि स्कूलों के लगातार बंद रहने से छात्रों की पढ़ाई पर बुरा असर पड़ा है. उन्होंने ये भी कहा कि तीसरी लहर के दौरान ऑनलाइन कक्षाओं में हाज़िरी काफी कम हो गई है.
शिवानी अग्रवाल, जो अपनी एनजीओ नागरिक सत्ता के दायरे में, नगर निकाय द्वारा संचालित दो स्कूल देखती हैं- एक मुंबई के अंधेरी में और दूसरा जुहू में, उन्होंने दिप्रिंट को बताया कि स्कूलों का बंद होना, शिक्षकों के लिए एक बड़ी चुनौती रहा है.
उन्होंने आगे कहा, ‘छात्र-शिक्षक संपर्क पूरी तरह खत्म हो गया है. हमें अभी तक मालूम नहीं है कि स्कूल बंदी के कारण छात्रों में पढ़ाई का नुकसान किस तरह से हुआ है. हाज़िरी घटकर 10-20 प्रतिशत रह गई है, चूंकि अधिकतर छात्रों के पास या तो फोन नहीं हैं या फिर अपने परिवार को सहारा देने के लिए उन्होंने छोटे-मोटे काम करने शुरू कर दिए हैं’.
चेन्नई में एक टीचर ने, जो अपना नाम नहीं बताना चाहते थे, दिप्रिंट को बताया कि उन्हें घर-घर जाकर चेक करना पड़ता है कि क्या उनके छात्र पढ़ाई कर पा रहे हैं. उन्होंने ये भी कहा, ‘बाकी सब चीज़ों से ज्यादा महामारी ने सीखने के मूल्यांकन को घटाकर बिल्कुल ज़ीरो कर दिया है. ये जानने का कोई तरीका नहीं है कि छात्र ने सिद्धांतों को वास्तव में समझ लिया है या वो टेस्ट में बस जवाब कॉपी कर रहे थे’.
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रेडियो, स्ट्रीट क्लासरूम्स: शिक्षकों ने सुझाए विकल्प
दिल्ली के सुभाष नगर में सर्वोदय बाल विद्यालय के एक शिक्षक संत राम का मानना है कि उनके पास ऑनलाइन पढ़ाई के कुछ विकल्प होने चाहिए, जिससे सुनिश्चित हो सके कि स्कूल बंद हेने के बावजूद शिक्षा का काम न रुके.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘जिन महीनों में स्कूल फिर से खुले थे, हमने 100 प्रतिशत उपस्थिति देखी. उसके बाद मामले बढ़ने के साथ वो फिर से घटकर 10 प्रतिशत रह गई. जब हमें पहले से ही मालूम है कि एक साधन के तौर पर ऑनलाइन शिक्षा, हमारे छात्रों के लिए पूरी तरह फेल हो गई है, तो फिर भी हम उसके भरोसे क्यों बैठे हुए हैं?’
उन्होंने आगे कहा, ‘इसकी बजाय राज्य सरकारों को बच्चों के लिए एक फ्री रेडियो सर्विस या डीटीएच चैनल चलाना चाहिए, जिसमें छात्रों के लिए पूरे राज्य में कोर्स सामग्री प्रसारित की जा सके. सभी शिक्षकों के पास ऐसी सुविधाएं नहीं हैं, कि वो पढ़ाते हुए खुद का वीडियो रिकॉर्ड कर सकें’.
जुलाई 2020 में केंद्र सरकार ने अपनी गाइडलाइंस में कहा था कि जिन बच्चों की पहुंच में स्मार्टफोन्स, इंटरनेट, टीवी, और रेडियो जैसी सुविधाएं नहीं हैं, उन्हें सामुदायिक तरीकों से पढ़ाया जा सकता है. राष्ट्रीय शैक्षणिक अनुसंधान तथा प्रशिक्षण परिषद (एनसीईआरटी) की ओर से तैयार की गई गाइडलाइंस में पढ़ाई के तीन तरीके दिए गए थे- ऑनलाइन, आंशिक रूप से ऑनलाइन और ऑफलाइन.
केंद्र ने सुझाव दिया था कि जन शिक्षा देने के लिए राज्य और ज़िला अधिकारी, पंचायत कार्यालयों, सार्वजनिक स्थलों या लाउडस्पीकरों का इस्तेमाल कर सकते हैं. लेकिन इस पर अमल बहुत कम हुआ है, हां कुछ अपवाद जरूर हैं जैसे झारखंड के दुमका जिले में बनकाठी गांव, जहां एक हेडमास्टर ने पढ़ाने के लिए लाउडस्पीकर्स लगा लिए हैं या हरियाणा जहां कॉलेज छात्रों के वास्ते शिक्षा सामग्री प्रसारित करने के लिए शिक्षा विभाग ने ऑल इंडिया रेडियो के चार स्टेशन आवंटित किए हैं.
राजस्थान-एमपी सीमा पर बांगरेड़ा गांव में एक सरकारी स्कूल टीचर लीना शर्मा ने बताया कि गांव में इंटरनेट कनेक्शन ठीक से काम नहीं करता, जिससे ऑनलाइन पढ़ाई कराना लगभग असंभव हो जाता है. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हमारे अधिकतर छात्रों के माता-पिता किसान हैं और उनके पास स्मार्टफोन्स नहीं हैं. जिनके पास स्मार्टफोन्स हैं भी, वहां भी ख़राब कनेक्टिविटी की वजह से हमारे छात्रों को मजबूरन, छतों पर बैठकर स्टडी मटीरियल डाउनलोड करना पड़ता है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘हमारे लिए सबसे बड़ी सहायता रेडियो शिक्षा सेवा है, जो शिक्षा दर्शन उपलब्ध कराता है. ये सेवा राजस्थान सरकार ने शुरू की है. शिक्षकों के नाते हम घर-घर जाकर शिक्षा के बारे में जागरूकता फैलाते हैं. हम अपनी ओर से पूरी कोशिश करते हैं कि अपने छात्रों की जरूरतों को पूरा किए जाए’.
अहमदाबाद में ठक्कर पब्लिक स्कूल के हितेश का मानना है कि स्कूलों के बंद रहने के दौरान स्ट्रीट क्लासरूम्स चलाने के अतिरिक्त प्रावधान की अनुमति होनी चाहिए, जहां जिले के अधिकारी उद्यानों या स्कूलों के खेल के मैदानों को रोटेशनल कक्षाओं के लिए आवंटित कर सकें.
उहोंने आगे कहा, ‘2020 में, लॉकडाउन के दो महीने तक जारी रहने के बाद मैंने अपने छात्रों से पार्कों में मिलने का फैसला किया. हम मास्क लगाकर थोड़ी दूरी के साथ किसी पेड़ के नीचे बैठ जाते थे, जहां मैं उनकी शंकाएं दूर करता था. जिला प्राधिकारियों को ऐसे स्कूलों को ये प्रावधान देने चाहिए, जहां छात्र महंगे फोन का खर्च वहन नहीं कर सकते’.
कर्नाटक के सावासुड्डी जिले में एक सरकारी स्कूल टीचर लक्ष्मी देवी के लिए अभी तक सिर्फ एक चीज़ ने काम किया है, और वो है सप्ताह में दो बार अपने छात्रों से मुलाकात. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘वो सभी छात्र जिनके मन में संशय होते हैं या जिनके पास फोन नहीं होते, हफ्ते में दो दिन स्कूल आते हैं. हम सिद्धांतों पर चर्चा करते हैं और मैं उनके संशय दूर करने में उनकी सहायता करती हूं. गरीब बच्चों के लिए ऑनलाइन शिक्षा, उस पढ़ाई का विकल्प नहीं हो सकती जो फिज़िकल कक्षाओं में होती है’.
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