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Friday, 19 April, 2024
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कोविड के दौरान 43 % छात्रों को नहीं मिल सकी देश में किसी भी तरह की स्कूली शिक्षा

थिंक टैंक विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा किए गए अध्ययन में कहा गया कि अध्ययन सामग्री, उपकरणों और इंटरनेट तक पहुंच के मामले में पहले से नुकसान वाले बच्चों के लिए शैक्षिक अंतराल सबसे खराब थे.

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नई दिल्ली: ‘आउट ऑफ़ स्कूल चिल्ड्रन (ओओएससी)’ के एक मैपिंग अध्ययन के अनुसार भारत में कोविड -19 महामारी के दौरान स्कूल बंद होने से, कम से कम 43% छात्रों के पास 19 महीनों तक ऑनलाइन पढ़ाई करने का कोई ज़रिया नहीं था.

1 नवंबर को नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक विधि सेंटर फॉर लीगल पॉलिसी द्वारा एक रिपोर्ट जारी की गई थी जिसका शीर्षक था -‘क्लियरिंग द एयर: ए सिंथेसाइज्ड मैपिंग ऑफ ‘आउट ऑफ स्कूल चिल्ड्रेन ड्यूरिंग कोविड -19 इन इंडिया (अप्रैल 2020-मई 2022)’.

अप्रैल 2020 और मई 2022 के बीच प्रकाशित अन्य अध्ययनों को ध्यान में रखते हुए यूनिफाइड डिस्ट्रिक्ट इंफॉर्मेशन सिस्टम ऑफ एजुकेशन (UDISE) और एनुअल स्टेटस ऑफ एजुकेशन रिपोर्ट (ASER) डेटा सहित 21 प्राथमिक अध्ययन स्रोतों का उपयोग करके इस रिपोर्ट को संकलित किया गया है.

‘जिन बच्चों ने कोई ऑनलाइन शिक्षा प्राप्त नहीं की (स्कूल बंद होने की शुरुआत से सर्वेक्षण के समय तक)’ उन बच्चों की संख्या रिपोर्ट में 10 प्रतिशत से 60 प्रतिशत तक है.

थिंक टैंक की वेबसाइट ने कहा ’43 प्रतिशत बच्चों की 19 महीने तक किसी भी स्कूली शिक्षा तक पहुंच नहीं थी (शिक्षा के डिजिटल साधनों की अनुपलब्धता या ऐसे स्कूल में नामांकित होने के कारण जो डिजिटल शिक्षा प्रदान नहीं करता है) जबकि महामारी के दौरान, सबसे खराब स्थिति में भी, स्मार्टफोन के प्रयोग बढ़ने के कुछ सबूत हैं.

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रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘महामारी के कारण स्कूल बंद होने से, पहले से खराब स्थिति वाले बच्चों की स्थिति और अधिक खराब हो गयी.

हम पाते हैं कि अलग-अलग सामाजिक-आर्थिक रचनाओं और शैक्षिक कमियाों में बच्चे गंभीर रूप से प्रभावित हुए हैं – स्कूली शिक्षा जारी रखने के लिए शैक्षिक सामग्री, उपकरणों, इंटरनेट और अन्य बुनियादी संसाधनों तक पहुंच में – पहले से नुकसान वाले लोगों के लिए अपेक्षित रूप से अधिक बदतर था और लिंग, आयु, क्षेत्र और विकलांगता में भिन्न था.


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‘अधिक लचीला और अनुकूल स्कूली शिक्षा प्रणाली बनाने की जरूरत’

अवधि, भूगोल और समूहों के सर्वेक्षण के आधार पर रिपोर्ट में विस्तार से बताते हुए कहा गया कि ‘स्कूलों में ड्रॉप-आउट’ महामारी के दौरान 1.3 प्रतिशत से 43.5 प्रतिशत तक थी.

रिपोर्ट में कहा गया है कि ‘ऊपरी सीमा (43.5 प्रतिशत) ग्रामीण भारत के लिए ASER केंद्र 2018 के आंकड़ों के अनुसार, या UDISE 2019-20 के अनुसार माध्यमिक स्कूल जाने वाले बच्चों के लिए 14.04 प्रतिशत पर देश भर में OOSC आबादी के पूर्व-महामारी अनुमानों से काफी अधिक है.

इसमें आगे कहा गया है कि महामारी के कारण चिंता के कुछ नए क्षेत्र उभर कर सामने आए हैं – ‘छोटे बच्चों में गैर-नामांकन (ड्रॉप-आउट) की बढ़ती घटनाएं, प्रवासी बच्चों के सामने आने वाली चुनौतियों का और गहरा होना और कम फीस वाले निजी स्कूलों में नामांकित बच्चों की भर्ती में वृद्धि हुई है.’

इसमें कहा गया है कि इन क्षेत्रों को पर ‘अधिकारियों को जल्दी ध्यान देने की जरुरत है.’

जिस तरह महामारी के प्रभावों को विभिन्न रूपों में महसूस किया और देखा जा रहा है. जैसा कि हम बच्चों को स्कूलों में वापस लाने की कोशिश कर रहे हैं, यह भी जरुरी है कि बच्चों की पृष्ठभूमि के आधार पर उनके स्कूली शिक्षा के अलग-अलग अनुभवों को ट्रैक किया जाये और उनका निवारण भी किया जाये.

यह कहते है ‘लंबी अवधि के लिए, एक अधिक लचीला और अनुकूली स्कूली शिक्षा प्रणाली, और विशेष रूप से एक अधिक लचीली सार्वजनिक स्कूली शिक्षा प्रणाली बनाने की जरूरत है – बेहतर बुनियादी ढांचे, सुविधाओं के माध्यम से, लेकिन समुदायों को संगठित करने और संलग्न करने की अधिक क्षमता के साथ, और विकेन्द्रीकृत स्तर पर सशक्त जमीनी स्तर के हितधारकों के साथ – दृढ़ता से उभरा है.

(अनुवाद- अलमीना खातून)


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