scorecardresearch
Saturday, 20 April, 2024
होमराजनीति'पराली न जलाने के लिए पंजाब की काफी मदद की, AAP इसे रोकने में नाकाम रहीं'- भूपेंद्र यादव

‘पराली न जलाने के लिए पंजाब की काफी मदद की, AAP इसे रोकने में नाकाम रहीं’- भूपेंद्र यादव

यादव ने कहा कि पिछले साल की तुलना में हरियाणा में खेतों में पराली जलाने के मामलों में 30 प्रतिशत की कमी आई है. दिल्ली और पंजाब की AAP सरकार वायु प्रदूषण के स्तर पर चर्चा करने के लिए केंद्र सरकार की ओर से बुलाई गई बैठकों में शामिल तक नहीं हुईं.

Text Size:

नई दिल्ली: केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम भगवंत मान के उन आरोपों का जवाब दे रहे थे जिसमें उन्होंने कहा था कि केंद्र सरकार से समर्थन की कमी के कारण पंजाब में पराली जलाने की घटनाएं हुईं और दिल्ली में प्रदूषण ‘खतरनाक’ स्तर तक पहुंच गया.

आंकड़ों का हवाला देते हुए यादव ने कहा कि इस साल दिल्ली की सीमा से लगे राज्यों में पराली जलाने के 90 फीसदी से ज्यादा मामले पंजाब के रहे हैं.

दिप्रिंट को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में यादव ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से हर संभव मदद मिलने के बावजूद पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार पराली जलाने की घटनाओं पर अंकुश लगाने में नाकाम रही, जो एनसीआर में होने वाले प्रदूषण का एक बड़ा कारण है. इसकी बजाय पार्टी राजनीति करने में अपना समय बिताती रही.

हवा की खराब गुणवत्ता से निपटने के प्रयासों के लिए हरियाणा और उत्तर प्रदेश की सराहना करते हुए यादव ने इस आरोप को खारिज कर दिया कि केंद्र सरकार इस मुद्दे को राजनीतिक मसला मान रही है. उन्होंने कहा कि सभी राज्यों के लिए एक ही मानदंड का पालन किया गया था. दिल्ली-एनसीआर में बिगड़ती हवा की गुणवत्ता पंजाब सरकार की पराली जलाने की घटनाओं को रोकने में विफलता का परिणाम है.

पिछले हफ्ते भाजपा ने केजरीवाल पर प्रदूषण के स्तर को नियंत्रित करने के लिए पर्याप्त कदम नहीं उठाने का आरोप लगाते हुए दिल्ली के स्कूलों को बंद करने की मांग की थी. तब केजरीवाल ने प्रदूषण संकट की उपेक्षा करने का आरोप लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस्तीफे देने की मांग की थी.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

यादव ने कहा, ‘उत्तर प्रदेश के साथ-साथ दिल्ली में भी पराली के लिए बायो-डीकंपोजर का इस्तेमाल काफी कारगर रहा है. इसकी सफलता के बावजूद पंजाब में इस प्रभावी तकनीक को पराली के प्रबंधन के लिए इस्तेमाल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया. यहां तक कि पंजाब में बायो डीकंपोजर एप्लिकेशन के लिए एक निजी संगठन की सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पॉन्सिबिलिटी) पहल की सुविधा तक नहीं दी गई.’

‘ हरियाणा और यूपी में पराली जलाने के मामलों में कमी आई’

आप ने दावा किया कि पराली जलाने की घटनाएं हरियाणा और उत्तर प्रदेश में भी हो रहीं हैं. लेकिन उन्हें अनदेखा किया जा रहा है. यादव ने उनके इन आरोपों का जवाब देते हुए कहा, ‘आंकड़े बता रहे हैं कि भाजपा शासित दो राज्यों में खेतों में पराली जलाने के मामलों में कमी आई है. इस साल 15 सितंबर से 2 नवंबर के बीच हरियाणा में कुल 2,249 खेतों में पराली जलाई गई थी. जबकि पिछले साल इस समय 3,241 मामले सामने आए थे. इस साल लगभग 31 फीसदी मामले कम दर्ज किए गए है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘हम सभी कंपलाइंस के मंत्र का सख्ती से पालन करते हैं. पंजाब के उलट हरियाणा और यूपी दोनों ही बेहतर तरीके से काम कर रहे हैं.’

उन्होंने कहा, ‘धान कटाई सीजन 2022 के दौरान 15 सितंबर से 4 नवंबर के बीच पराली जलाने की घटनाएं पंजाब में 26,583, हरियाणा में 2,440, यूपी (एनसीआर) में 36, दिल्ली में 9 और राजस्थान (एनसीआर) में सिर्फ एक थी.’

पराली जलाने के लिए राज्यों के प्रयासों की तुलना करते हुए उन्होंने कहा, ‘पंजाब के उलट हरियाणा इस साल उपलब्ध मशीनरी के प्रभावी इस्तेमाल, बायो-डीकंपोजर एप्लिकेशन को बढ़ावा देने और किसानों को अन्य तरह की सुविधाएं मुहैया कराकर पराली जलाने की घटनाओं को कम करने में कामयाब रहा है.’

उन्होंने बताया, ‘यूपी के एनसीआर जिलों में भी इस साल, इस अवधि के दौरान पराली जलाने की घटनाओं में 55 से 34 फीसदी तक की कमी आई है. यह इस बात का संकेत है कि अगर धान की पराली जलाने की रोकथाम और नियंत्रण की दिशा में व्यवस्थित रूप से काम करने की इच्छा और प्रतिबद्धता दिखाई जाए, तो इस तरह की घटनाओं में कमी के रूप में परिणाम जमीन पर दिखाई देंगे.’


यह भी पढ़ें: पंजाब में बासमती की कम लागत-अच्छी उपज वाली नई किस्मों को एक ‘क्रांति’ मान रहे धान उत्पादक


‘वे पिछले 6 महीनों में क्या कर रहे थे?’

केजरीवाल की इस टिप्पणी का जिक्र करते हुए कि उनकी सरकार को दिल्ली में वायु प्रदूषण के स्तर को ‘गंभीर’ श्रेणी से नीचे लाने के लिए एक और साल की जरूरत है, यादव ने सवाल किया ‘वे पिछले छह महीनों से क्या कर रहे थे?’

उन्होंने आरोप लगाया कि आज केजरीवाल केंद्र सरकार से इस मुद्दे पर विचार-विमर्श करने का आग्रह कर रहे हैं. लेकिन वे पूर्व में बुलाई गई बैठकों में शामिल नहीं हुए थे.

यादव ने कहा, ‘आप सरकार को कई बैठकों, सम्मेलन (आमंत्रण) और अलर्ट भेजे गए हैं, लेकिन वे उन्हें टालते रहे. उन्होंने सितंबर में केवड़िया (गुजरात में) में हुए पर्यावरण सम्मेलन में भी भाग नहीं लिया था. जबकि इसमें सभी पर्यावरण मंत्री शामिल हुए थे. वे वर्चुअल बैठकों में भी नजर नहीं आए.’

उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार पराली जलाने की घटनाओं को रोकने और नियंत्रित करने के लिए राज्य प्रशासन को तैयारियों के बारे में जागरूक करने के लिए पंजाब सरकार के साथ नियमित रूप से संपर्क में रही है. उन्होंने कहा कि पत्राचार धान की बुवाई के मौसम से काफी पहले फरवरी में ही शुरू हो गया था.

यादव ने बताया, ‘केंद्र सरकार के एक सहयोगी नजरिए और साथ के बावजूद पंजाब सरकार इस ओर बेहतर तरीके से काम नहीं कर पाई है. इस साल पराली जलाने की घटनाओं ने इसी अवधि के पिछले साल की गिनती को भी पार कर लिया है. हरियाणा, यूपी (एनसीआर), दिल्ली और राजस्थान (एनसीआर) में इस साल हुई पराली जलाने की कुल घटनाओं में पंजाब का योगदान 90 फीसदी से ज्यादा रहा है.’

यादव ने कहा कि पंजाब सरकार ने पूसा बायो-डीकंपोजर के इस्तेमाल के लिए ‘कोई प्रयास नहीं’ किया. इसे कमीशन फॉर एयर क्वालिटी मैनेजमेंट (सीएक्यूएम) ने राज्यों को ‘धान के ठूंठ के इन-सीटू प्रबंधन के लिए पूरक प्रयासों’ के तौर पर इस्तेमाल करने की सलाह दी थी. यह प्रयास यूपी और दिल्ली में खासे सफल रहे हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘इस मौसम में हरियाणा ने लगभग 5 लाख एकड़ और यूपी के एनसीआर जिलों में 1.4 लाख एकड़ जमीन पर इसके इस्तेमाल की योजना बनाई गई. लेकिन पंजाब में इस प्रभावी तकनीक को पराली के प्रबंधन के लिए इस्तेमाल करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया.’

यह बताते हुए कि कैसे पराली जलाने से एनसीआर और आस-पास के क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है, यादव ने कहा कि ‘पंजाब में मौजूदा समय में पराली जलाने की घटनाओं में लगातार तेजी दिल्ली के समग्र एक्यूआई (वायु गुणवत्ता सूचकांक) को प्रभावित कर रही है.’

उन्होंने कहा, ‘यहां तक कि पंजाब सरकार की IEC (सूचना, शिक्षा और संचार) गतिविधियां और अभियान अप्रभावी प्रतीत हो रहे हैं. राज्य सरकार द्वारा इस उद्देश्य के लिए 8,000 से अधिक नोडल अधिकारियों को तैनात किए जाने की सूचना के बावजूद क्षेत्र स्तर पर अप्रभावी निगरानी और इन्फोर्समेंट भी स्पष्ट है.’

पंजाब की मदद के लिए किए गए प्रयासों पर प्रकाश डालते हुए यादव ने कहा कि केंद्र सरकार ने अपनी सीआरएम (फसल-अवशेष प्रबंधन) योजना के जरिए चालू वित्तीय वर्ष सहित पिछले पांच वित्तीय सालों में राज्य को 1,347 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं.

वह कहते हैं, ‘इस योजना के तहत बांटी गई धनराशि से पंजाब द्वारा धान की पराली के इन-सीटू और एक्स-सीटू प्रबंधन की सुविधा के लिए कृषि मशीनरी की विस्तृत श्रृंखला की खरीद की गई थी. चालू वर्ष में अतिरिक्त खरीद सहित राज्य में कुल 1,20,000 से अधिक मशीनें उपलब्ध हैं. सीआरएम योजना के तहत इन-सीटू और एक्स-सीटू फार्म एप्लीकेशन के लिए कृषि मशीनरी की सुविधा के लिए राज्य में 13,900 से अधिक कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित किए गए हैं.’

यादव ने दावा किया, ‘उपलब्ध मशीनरी का इस्तेमाल संतोषजनक नहीं रहा है. भारी मात्रा में मशीनों के निष्क्रिय होने से संसाधनों पर भारी असर पड़ा है.’

आप द्वारा भाजपा शासित केंद्र सरकार को ‘किसान विरोधी’ बताने के आरोप का जवाब देते हुए वह कहते हैं कि सरकार पहले से ही कृषि मंत्रालय की सीआरएम योजना के तहत ‘ क्रॉप रेजिडू मशीनरी की खरीद के लिए भारी सब्सिडी’ दे रही है.

यादव ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसके अलावा संबंधित राज्य सरकारों के पास किसानों को स्थायी कृषि अवशेष प्रबंधन तकनीक को अपनाने और पराली जलाने से रोकने के लिए विभिन्न योजनाएं हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ें: पूरे पंजाब के लिए मिसाल बना जालंधर का यह गांव, यहां बिल्कुल भी नहीं जलाई जाती है पराली


share & View comments