नई दिल्ली: आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली के कश्मीरी गेट परिसर की कक्षाओं में, जहां इसके 3,500 छात्रों में से अधिकांश नामांकित हैं, दीवारें रिसाव के कारण बदरंग हो गई हैं. जनरल स्टडीज़ कमरे में पूरी छत पर काली फफूंद लग गई है. कमरा अपने आप में एक पुनर्निर्मित गोदाम जैसा दिखता है, जिसके एक कोने में बिना इस्तेमाल का फर्नीचर रखा हुआ है. शौचालय में भी सीवेज के पानी का रिसाव हो रहा है और वो भी — अनुपयोगी हैं.
इसकी स्थापना के 15 साल बाद, दिल्ली सरकार द्वारा संचालित डॉ. बी.आर. आंबेडकर यूनिवर्सिटी — का उद्देश्य उनके द्वारा निर्देशित सामाजिक विज्ञान और मानविकी में रिसर्च और शिक्षण पर ध्यान केंद्रित करना है. समानता और सामाजिक न्याय को उत्कृष्टता से जोड़ने का आंबेडकर का दृष्टिकोण संकट में है.
एयूडी के अंदरूनी सूत्रों के अनुसार, इसके ढहते बुनियादी ढांचे के साथ-साथ रिसर्च के मानक भी गिर रहे हैं और फैकल्टी और यूनिवर्सिटी प्रशासन के बीच संघर्ष भी बढ़ रहा है.
2016 में केंद्र सरकार के राष्ट्रीय संस्थागत रैंकिंग फ्रेमवर्क (एनआईआरएफ) द्वारा 3,565 संस्थानों में से मल्टी-कैंपस विश्वविद्यालय को 96वां स्थान दिया गया था. 7 साल बाद, जैसे ही मूल्यांकन किए गए यूनिवर्सिटी की सूची बढ़कर 8,565 हो गई, यह पूरी तरह से शीर्ष 200 से बाहर हो गया है (एनआईआरएफ वेबसाइट पर 200 से अधिक रैंक का उल्लेख नहीं किया गया है).
यूनिवर्सिटी को 2014 में राष्ट्रीय मूल्यांकन और प्रत्यायन परिषद द्वारा ‘ए’ ग्रेड दिया गया था. 2022 तक तेज़ी से आगे बढ़ते हुए, ग्रेड एक पायदान गिरकर ‘बी++’ पर आ गया था.
आंबेडकर यूनिवर्सिटी फैकल्टी एसोसिएशन (एयूडीएफए) द्वारा साझा किए गए डेटा से पता चलता है कि पिछले दो वर्षों में 17 फैकल्टी सदस्यों ने इस्तीफा दे दिया है. इस बीच, दो दर्जन अन्य फैकल्टी मेंबर्स यूनिवर्सिटी के कामकाज के तरीके पर अपना असंतोष व्यक्त करने के लिए पिछले तीन सप्ताह से रोजाना विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं. यह सुनिश्चित करने के लिए कि स्टूडेंट्स की पढ़ाई प्रभावित न हो, विरोध को एक घंटे के लंच ब्रेक में शामिल कर दिया गया है.
नाम न छापने की शर्त पर एक स्टूडेंट ने बताया, “हमारे पास कोई सामान्य क्षेत्र नहीं है, जहां हम बैठ सकें और सेल्फ स्टडी कर सकें या कक्षाओं के बीच आराम भी कर सकें.”
उसने आगे कहा, “यहां तक कि पढ़ने के क्षेत्र में केवल 20 सीटें हैं, जिन्हें सभी मास्टर और पीएचडी स्टूडेंट्स को साझा करना पड़ता है. हमारी कक्षाएं समय पर नहीं होती हैं, और, कोविड के बाद, सेमेस्टर शेड्यूल हर जगह होता है.”
सहायक प्रोफेसर मोगोलन भारती, जो आधिकारिक एयूडीएफए प्रवक्ता भी हैं, ने कहा कि प्रशासन ने कई मौकों पर प्रोफेसरों को अंतरराष्ट्रीय सम्मेलनों और स्कोलरशिप में भाग लेने से रोका है.
इस आरोप का खंडन डीन एकेडमिक्स प्रोफेसर सत्यकेतु संस्कृत ने किया, जिन्होंने कहा कि उन्होंने 98 फैकल्टी मेंबर्स को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों में भाग लेने के लिए परमिट दिए थे और पिछले 2 वर्षों में 24 फैकल्टी सदस्यों को अनुसंधान मान्यता पुरस्कार दिए गए थे.
कुलपति अनु सिंह लाठर ने संस्थान की गिरती एनएएसी और एनआईआरएफ रेटिंग को स्वीकार किया, लेकिन कहा कि एयूडी अपेक्षाकृत युवा है और रैंकिंग में वापस आने के लिए काम कर रहा है.
बुनियादी ढांचे की खराब स्थिति का ज़िक्र करते हुए लाठर ने कहा कि उन्होंने संस्था के रखरखाव के लिए पिछले चार वर्षों में 15 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए हैं. हालांकि, उन्होंने कहा, वो केवल इतना ही कर सकते थे क्योंकि कैंपस एक विरासत भवन में स्थापित किया गया था.
उन्होंने कहा कि नए कैंपस की स्थापना की योजना है, लेकिन वो दिल्ली सरकार से पैसे का इंतज़ार कर रहे हैं.
2022 में दिल्ली सरकार ने नए कैंपस में 26,000 नए स्टूडेंट्स को समायोजित करने के लिए 2,306.58 करोड़ रुपये मंजूर किए थे. हालांकि, यूनिवर्सिटी के अधिकारियों के अनुसार, दिल्ली सरकार की कैबिनेट ने अभी तक इस राशि को मंजूरी नहीं दी है.
दिप्रिंट ने यूनिवर्सिटी के सामने आने वाली चुनौतियों पर टिप्पणी के लिए दिल्ली सरकार में उच्च शिक्षा सचिव एलिस वाज़ से मेल के जरिए से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने प्रतिक्रिया नहीं दी है
यह भी पढ़ें: IIM की स्वायत्तता कम करने वाला विधेयक लोकसभा में पेश- राष्ट्रपति को निदेशक की नियुक्ति, हटाने की शक्ति
अव्यवस्था और उपेक्षा
डॉ. बी.आर. आंबेडकर यूनिवर्सिटी दिल्ली की स्थापना 2008 में की गई थी. जबकि इसका मुख्य कैंप कश्मीरी गेट पर स्थित है, वहीं दो अन्य करमपुरा और लोधी रोड पर हैं. एयूडी प्रोफेसरों ने कहा कि धीरपुर और रोहिणी में भी कैंपस स्थापित करने के लिए 2018 में भूखंडों की पहचान की गई थी, लेकिन आधारशिला रखे जाने के बाद से ज्यादा गतिविधि नहीं हुई है.
कश्मीरी गेट कैंपस मेट्रो स्टेशन के नज़दीक लोथियन रोड पर 400 साल पुराने विरासत भवन परिसर में स्थित है.
यूनिवर्सिटी की वेबसाइट इसे “पुरानी दिल्ली के मध्य में 3 एकड़ का विशाल हरा-भरा कैंपस” बताती है.
इसमें कहा गया है, “एयूडी कैंपस में अच्छी तरह से भंडारित लाइब्रेरी, रीडिंग रूम्स, ऑनलाइन मैगज़ीन और कंप्यूटर लैब्स के मामले में अच्छा बुनियादी ढांचा है.” “हॉस्टल की सुविधा केवल छात्राओं के लिए उपलब्ध है. कक्षाएं दृश्य-श्रव्य उपकरणों से सुसज्जित हैं और पूरे परिसर में वाई-फाई कनेक्टिविटी उपलब्ध है.”
हालांकि, जब दिप्रिंट ने 31 अगस्त को कैंपस का दौरा किया, तो अव्यवस्था और उपेक्षा के संकेत स्पष्ट थे.
स्टूडेंट्स के रीडिंग कक्ष की छत का एक हिस्सा — जो दिसंबर 2022 में ढह गया था — उसकी अभी भी मरम्मत नहीं की गई है और उसके स्थान पर एक बड़ा छेद हो गया है. छत का बाकी हिस्सा फफूंद से ग्रस्त है – जो एक ज्ञात स्वास्थ्य खतरा है.
दिप्रिंट से बात करते हुए स्टूडेंट्स और फैकल्टी मेंबर्स ने शिकायत की कि उनके पास पीने के पानी की पर्याप्त सुविधा नहीं है.
मास्टर्स के एक स्टूडेंट ने कहा, “हमारी कक्षाओं की दीवारें ढह रही हैं, हम भारी मात्रा में फंगस अंदर ले जा रहे हैं क्योंकि रीडिंह कक्ष में छत पर भारी फफूंद लगी है और कैंपस में पीने का पानी नहीं है.”
एक अन्य ने कहा, “हम अपनी पानी की बोतलें साथ रखते हैं और वॉशरूम का उपयोग करने से बचते हैं क्योंकि वो टूटे हुए हैं और अक्सर सीवेज का पानी वहां लीक करता है.”
स्टूडेंट्स और फैकल्टी मेंबर्स का दावा है कि कैंपस में गंदगी की स्थिति के कारण वो कई बार बीमार पड़ गए हैं.
एक संस्थापक फैकल्टी मेंबर्स ने कहा, “कैंपस की जगह का प्रबंधन करना हमेशा मुश्किल रहा है, क्योंकि यह एक भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई ) की चिह्नित विरासत इमारत है और इसमें कोई संरचनात्मक परिवर्तन नहीं किया जा सका है.”
फैकल्टी मेंबर ने कहा, “लेकिन पिछले कुछ वर्षों में बुनियादी ढांचे की हालत इतनी खराब कभी नहीं रही.”
एयूडी रजिस्ट्रार डॉ. नितिन मलिक ने कहा कि इमारत की विरासत स्थिति से उनके हाथ बंधे हुए हैं. उन्होंने कहा, “यह देखते हुए कि यह एएसआई-संरक्षित इमारत है, हम संरचना में केवल कॉस्मेटिक बदलाव ही कर सकते हैं. हालांकि, हमने कई बार एएसआई और पीडब्ल्यूडी (लोक निर्माण विभाग) को पत्र लिखकर इमारत को ठीक करने के लिए कहा है, लेकिन हमें सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली है.”
यह भी पढ़ें: एंडाउमेंट फंड्स जुटाने के लिए सेंट्रल यूनिवर्सिटीज़ भी चलेंगी IIT की राह, पर बड़ी हैं चुनौतियां
रैंक और रिसर्च में गिरावट
जर्जर बुनियादी ढांचे के अलावा, एयूडी के अंदरूनी सूत्रों का कहना है कि यूनिवर्सिटी अकादमिक उत्कृष्टता का केंद्र होने के अपने घोषित उद्देश्य के साथ संघर्ष कर रहा है.
उन्होंने कहा कि फैकल्टी मेंबर्स की कमी के कारण कक्षाओं में देरी हुई और शिक्षकों पर अत्यधिक बोझ पड़ा. मेंबर्स का यह भी कहना है कि यूनिवर्सिटी में शोध प्रकाशनों और सहयोग की संख्या कम हो गई है.
एयूडी द्वारा प्रस्तुत एनआईआरएफ डेटा से पता चलता है कि, 2018-19 में, यूनिवर्सिटी में 7.07 करोड़ रुपये की 40 अनुसंधान परियोजनाएं थीं. 2020-21 में यह घटकर 79 लाख रुपये की 10 परियोजनाएं रह गईं.
प्रोफेसर सुमंगला दामोदरन, जिन्होंने एयूडी में शामिल होने से पहले दिल्ली यूनिवर्सिटी में पढ़ाया था, ने कहा कि रैंकिंग में गिरावट ने फैकल्टी को मिलने वाली शोध परियोजनाओं की मात्रा को प्रभावित किया है.
उन्होंने कहा, “मैंने ब्रिक्स देशों के शिक्षाविदों के साथ कई सहयोगी अनुसंधान परियोजनाओं पर काम किया है और वहां मेरे मित्र हैं. जब हमने संयुक्त रूप से शोध के लिए कुछ अनुदानों के लिए आवेदन करने का प्रयास किया, तो मैंने पाया कि मैं पात्र नहीं थी क्योंकि AUD ने अब रैंकिंग मानदंड आवश्यकताओं को पूरा नहीं किया था.”
उन्होंने कहा कि यह “बड़ा नुकसान” है. उन्होंने कहा, “अनुसंधान परियोजनाएं न केवल फंडिंग लाती हैं बल्कि स्टूडेंट्स को सीखने का एक बड़ा मौका भी देती हैं.”
हालांकि, यूनिवर्सिटी ने कहा कि अनुसंधान परियोजनाओं की संख्या में मुख्य रूप से कोविड और विदेशी अनुसंधान परियोजनाओं के लिए लंबी आवेदन प्रक्रिया के कारण गिरावट आई है.
उन्होंने कहा, “2018-19 में, 32 परियोजनाएं थीं और कई परियोजनाएं पूरी होने के चरण में थीं.”
इसमें कहा गया है कि कोविड-19 के कारण, “2020-21 के दौरान फंडिंग के अवसर प्रभावित हुए”.
एयूडी ने कहा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) और भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) और अन्य राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय फंडिंग एजेंसियों की प्रमुख परियोजनाओं को रोक दिया गया है.
इसने कहा, “इससे दो से तीन साल का काम प्रभावित हुआ. इसके बावजूद 2019-20 में 23 परियोजनाएं थीं.”
एयूडी ने बताया कि 2022 में फैकल्टी ने ICSSR के साथ 24 परियोजनाओं के लिए आवेदन किया और 2 को मंजूरी मिल गई. यूनिवर्सिटी ने शेष परियोजनाओं को विश्वविद्यालय के बजट से वित्त पोषित करने के लिए कदम उठाए हैं.”
यह भी पढ़ें: मोदी सरकार के स्कूल सर्वेक्षण से पता चलता है कि भारत के 3/5 जिलों का डिजिटल शिक्षण स्कोर 30% से कम
‘फैकल्टी और प्रशासन के बीच खींचतान’
इस पृष्ठभूमि में शिक्षक तीन सप्ताह से विरोध प्रदर्शन पर हैं और उनका आरोप है कि एयूडी प्रशासन द्वारा बातचीत करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है.
24 अगस्त को एक प्रेस बयान में, AUDFA ने कहा, “AUDFA सुविधाजनक और समावेशी शासन की मांग के प्रति प्रशासनिक उदासीनता का विरोध करता है.”
संगठन ने कहा कि वे “विशेष रूप से यूनिवर्सिटी के भीतर नौकरशाही गतिरोध की आलोचना करते हैं, जिसके कारण विश्वविद्यालय में भारी देरी और गैर-कार्यशीलता के साथ-साथ स्कूलों और केंद्रों में कार्यात्मक स्वायत्तता की कमी होती है”.
“एसोसिएशन संकाय पदोन्नति के लिए यूजीसी नियमों की प्रतिगामी व्याख्या, सेवा नियमों पर स्पष्टता की कमी और शिक्षण समुदाय के लिए चिकित्सा लाभ से संबंधित नियमों के मनमाने ढंग से लागू होने का विरोध करता है.”
शिक्षकों ने भी वी-सी लाठर पर आरोप लगाते हुए कहा कि उन्हें कर्मचारियों पर बहुत कम भरोसा है और वह उनके खिलाफ “आपत्तिजनक भाषा” का इस्तेमाल करने के लिए जानी जाती हैं.
इस साल 27 जुलाई को आयोजित संचालन समिति की बैठक में लाठर ने कथित तौर पर कहा कि “80 प्रतिशत फैकल्टी मेंबर्स दीमक थे”. हालांकि, लाठर ने इस आरोप से इनकार किया है.
एनएएसी और एनआईआरएफ के संबंध में एयूडी के प्रदर्शन के बारे में बात करते हुए, कुलपति लाठर ने कहा कि जिस पैरामीटर पर यूनिवर्सिटी ने एनएएसी में खराब स्कोर किया वह अनुसंधान प्रकाशन (0.94) था.
उन्होंने कहा, “जैसा कि मान्यता निकाय अपने मानदंडों को सख्त बना रहा है, यूनिवर्सिटी बदलते मूल्यांकन मानदंडों को बनाए रखने की कोशिश कर रही है.”
उन्होंने यह स्पष्ट करने की मांग की कि यूनिवर्सिटी का मूल्यांकन 2019 में “उनके कार्यकाल शुरू होने से पहले” एनएएसी द्वारा किया गया था, लेकिन उन्होंने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि बदलते एनएएसी मानदंडों के साथ ग्रेड में सुधार होगा.
एनआईआरएफ रैंकिंग में गिरावट के बारे में उन्होंने कहा, “आंबेडकर यूनिवर्सिटी केवल 15 साल पुरानी है और पिछले कुछ वर्षों में कई संस्थानों को रैंकिंग में जोड़ा गया है. बड़ी फंडिंग और कैंपस वाले सार्वजनिक और निजी विश्वविद्यालयों के साथ प्रतिस्पर्धा करना एक चुनौती है.”
(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: हिंदू धर्मग्रंथों की पढ़ाई और जॉब मार्केट पर भी नजर, DU के नए हिंदू स्टडीज़ के कोर्स में क्या कुछ है