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Sunday, 3 November, 2024
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कोटा के कोचिंग सेंटरों को निर्देश, छात्रों को मिले – कॉउंसलिंग सेशन और रिकॉर्डेड लेक्चर

यह पहली बार नहीं है जब इस जिले के अधिकारी कोचिंग सेंटरों को इस तरह के निर्देश जारी कर रहे हैं. हालांकि, छात्रों का कहना है कि एक बार जब वे संस्थान के अंदर चले जाते हैं तो वे केवल पढ़ाई के बारे में ही सोचते हैं.

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नई दिल्ली: राजस्थान के कोचिंग हब, कोटा में तीन छात्रों की आत्महत्या से हुई मौत के एक दिन बाद, स्थानीय अधिकारियों ने सभी कोचिंग संस्थानों को बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए निर्देश जारी करने के साथ ही एक ऐसा रेमिडियल सेंटर (सुधारात्मक केंद्र) स्थापित करने को भी कहा है, जो उन्हें रिकॉर्ड किए गए लेक्चर्स (व्याख्यान) प्रदान करता हो. ये कदम भविष्य में ऐसी घटनाओं की पुनरावृति रोकने के लिए जरुरी हैं.

कोटा के जिला कलेक्टर और वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने स्थिति का जायजा लेने के लिए मंगलवार दोपहर को एलेन करियर इंस्टीट्यूट, जहां उन तीनों छात्रों ने दाखिला लिया था, सहित सभी कोचिंग संस्थानों के प्रतिनिधियों के साथ बैठक की.

संस्थानों को इस बात पर नजर रखने के लिए कहा गया है कि छात्र किसी भी कक्षा से अनुपस्थित न रहें और यदि वे ऐसा करते हैं तो उनके माता-पिता से संपर्क किया जाये. उन्हें अलग से एक ऐसे रेमिडियल सेंटर की व्यवस्था करने का निर्देश दिया गया है जहां छात्र किसी भी कक्षा के छूट जाने की स्थिति में रिकॉर्ड किए गए व्याख्यानों को सुन सकते हैं.

जिला कलेक्टर ओपी बंकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने सभी कोचिंग सेंटरों को निर्देश दिए हैं और उन्हें अगले 15 दिनों के भीतर एक ठोस प्रणाली की व्यवस्था करने को कहा है.’

उन्होंने कहा, ‘हमने सभी संस्थानों से छात्रों के लिए परामर्श सत्र आयोजित करने के लिए भी कहा है. वास्तव में, हमारे अपने अधिकारी भी कोचिंग सेंटरों में मोटिवेशनल टॉक्स के लिए जाते हैं और हम छात्रों को यह समझाने की कोशिश करते हैं कि आईआईटी में प्रवेश प्राप्त करना ही उनके जीवन का एकमात्र लक्ष्य नहीं होना चाहिए, उन्हें इस बारे में खुले दिमाग के साथ रहना चाहिए.‘

ये निर्देश इसलिए जारी किए गए हैं क्योंकि सोमवार को आत्महत्या करने वाले तीनों छात्र कथित रूप से इस वजह से तनाव में थे, क्योंकि उनका लेक्चर छूट गया था. कोचिंग सेंटर के उनके सहपाठियों और शिक्षकों ने पुलिस को बताया कि वे तीनों अन्य छात्रों से काफी पीछे रह गए थे और इस बात का दबाव उन पर हावी हो गया.

हालांकि, यह कोई पहली बार नहीं है जब अधिकारीगण छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दे पर कोचिंग सेंटरों को निर्देश जारी कर रहे हैं.

साल 2015 में, राज्य सरकार ने सभी कोचिंग सेंटरों के लिए दिशानिर्देश तैयार किए थे, जिसके तहत उन्हें माहौल को ‘तनाव मुक्त’ रखने, सेंटर में छात्रों के लिए मनोरंजक गतिविधियों के लिए जगह बनाने और यह सुनिश्चित करने को आवश्यक बनाया था कि छात्रों को सप्ताह में कम-से-कम एक दिन का अवकाश मिले.

सरकार ने संस्थानों से कक्षा के आकार को 200 छात्रों, जैसा कि अधिकांश संस्थानों में चलन में था, के बजाय अधिकतम 80 छात्रों तक सीमित करने के लिए भी कहा था.

इस वर्ष की शुरुआत में, जिला कलेक्टर ने सभी कोचिंग संस्थानों के लिए ‘शुल्क वापसी’ संबंधी दिशानिर्देश भी पेश किए थे, जिसमें यह कहा गया था कि यदि छात्र बीच में ही कोई कोर्स छोड़ना चाहते हैं तो वे उनकी फीस का पूरा रिफंड (वापसी) प्राप्त कर सकेंगे.

मगर, छात्रों का दावा है कि इन दिशानिर्देशों को ठीक से लागू नहीं किया गया है और एक बार जब वे कोचिंग सेंटर में आ जाते हैं, तो वे केवल पढ़ाई और अगले टेस्ट में बेहतर स्कोर करने के बारे में ही सोच सकते हैं.

इंजीनियरिंग संस्थानों में प्रवेश के लिए कोटा के एक कोचिंग संस्थान में नामांकित एक छात्र मोहन कुमार ने फोन पर दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, ’एक बार जब हम अपनी तैयारी शुरू कर देते हैं, तो फिर सब कुछ पाठ्यक्रम को पूरा करने और अगली आंतरिक परीक्षा (इंटरनल टेस्ट) में बेहतर अंक प्राप्त करने के बारे में ही होता है.

यह उस तरह की प्रतियोगिता होती है जिसके लिए हमें किसी ने तैयार नहीं किया होता है. लेकिन कोचिंग क्लास के शिक्षक हमें बताते रहते हैं कि अगर हम इस तरह के तनाव से निपटने में सक्षम होंगे, तो ही हम आईआईटी को क्रैक कर पाएंगे.‘

एक अन्य छात्र कृष्णा साहू, जो कुमार के रूममेट भी हैं, ने कहा, ’हम न केवल अन्य कोचिंग सेंटरों के छात्रों के साथ बल्कि अपने दोस्तों और रूममेट्स के साथ भी प्रतिस्पर्धा कर रहे होते हैं और यह दबाव बहुत अस्वास्थ्यकर हो जाता है. कोई कोचिंग सेंटर हमारे मनोरंजन या हमारे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नहीं सोचता.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(अनुवाद: रामलाल खन्ना)
(संपादन: अलमिना खातून)


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