छोड़ लिटरेचर को अपनी हिस्ट्री को भूल जा
शैख़-ओ-मस्जिद से तअ’ल्लुक़ तर्क कर स्कूल जा
चार-दिन की ज़िंदगी है कोफ़्त से क्या फ़ाएदा
खा डबल रोटी क्लर्की कर ख़ुशी से फूल जा
नई दिल्ली: छोड़ लिटरेचर को अपनी हिस्ट्री को भूल जा, जब अकबर इलाहाबादी ने ये लिखा होगा तो नहीं सोचा होगा कि कल उनके नाम के साथ भी कुछ लोग डबल रोटी खा कर क्लर्की करेंगे और खुशी से फूल कर उनके नाम से इलाहाबादी हटा उन्हें ‘प्रयागराज’ बुलाएंगे.
हालांकि, सन 1500 में इलाहाबाद प्रयागराज ही हुआ करता था. अक्टूबर 2018 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इसे वापस से प्रयागराज कर दिया.
अब जब इलाहाबाद का नाम वापस प्रयागराज कर दिया गया है तो फिर किसी के नाम के आगे प्रयागराज क्यों रहे, इसलिए यूपी हायर एजुकेशन सर्विस कमीशन ने मशहूर शायरों के नाम इलाहाबादी से बदलकर प्रयागराजी कर दिया है.
सर्विस कमीशन की साइट में इलाहाबाद को उत्तर प्रदेश का एक ओर जहां महत्वपूर्ण शहर बताया गया है वहीं इस शहर को 19वीं और 20 वीं शताब्दी में हिंदी साहित्य के आधुनिकता का दौर का गवाह बताया है. यही शहर महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, सुर्यकांत त्रिपाठी निराला और हरिवंश राय बच्चन का जन्मदाता भी है.
इन लेखकों ने अपने लेखन से साहित्य में बहुत योगदान दिया. हिंदी साहित्य के अलावा, शहर में फारसी और उर्दू साहित्य का भी अध्ययन किया जाता है.
इसी इंट्रोडक्शन में उर्दू के कवियों और साहित्यकारों के नाम को भी बदल कर रख दिया है…और अकबर इलाहाबादी के नाम को बदलकर अकबर प्रयागराज (ओरिजिनली- इलाहाबादी) कर दिया है.
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‘यह भौंडा पन है.’
कमीशन के इन साहित्यकारों की जानकारी देने वाले यहीं नहीं थमे उन्होंने दूसरे प्रसिद्ध आधुनिक उर्दू कवि तेग इलाहाबादी और राशिद इलाहाबादी का नाम भी बदलकर प्रयागराज कर दिया है, और कहा है कि उन शायरों की उत्पत्ति और पढ़ाई लिखाई भी प्रयागराज में हुई है.
उर्दू साहित्यकारों और कवियों के नाम को बदले जाने पर इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास की प्रोफेसर और बीजेपी की नेत्री रीता जोशी बहुगुणा इसे हास्यास्पद बताया. दिप्रिंट से बात करते हुए उन्होंने कहा, ‘किसी का नाम नहीं बदला जा सकता है.’
उन्होंने कहा, ‘यह मानवीय भूल हो सकती है क्योंकि किसी का तकल्लुफ नहीं बदला जा सकता है.’
इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में इतिहास के प्रोफेसर हेरंब चतुर्वेदी ने इस बदलाव की बात पर सीधा कहा,’ यह छेड़छाड़ है..तंगदिली है. मूर्खों को क्षमा किया जाना चाहिए. ‘
वह आगे कहते हैं कि इस शहर का नाम प्रयागराज किए जाने के बाद से ही काफी गड़बड़ हो रही है..अब प्रयागराज के नाम से शहर में तीन स्टेशन है..प्रयागराज सिटी, प्रयाग स्टेशन और प्रयाग घाट. प्रयाग घाट संगम के पास है जो मेले के दौरान यहां आने वाले पर्यटकों को सीधा संगम पर पहुंचाता है. अब जो नया पर्यटक आ रहा है वह समझ ही नहीं पा रहा है कि उसे उतरना कहा है. और उसे जाना प्रयाग घाट होता है और वह प्रयागराज सिटी पर उतर कर भटकता रहता है.
उर्दू कवियों के नाम बदले जाने से नाराज चतुर्वेदी ने कहा, ‘उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष ईश्वर शरण विश्वकर्मा की छोटी समझ ही है कि उन्होंने इस तरह का कदम उठाया है.’
उन्होंने आगे कहा, ‘यह भौंडा पन है.’
इलाहाबाद चंद्रवंशी काल में इलाकावास था उसके बाद इसे 1801 से 1858 के बीच इसका नाम इलाहाबाद कर दिया. चतुर्वेदी ने इस पूरे मामले को पोरस के हाथी से जोड़ा है.
यूपी के उप मुख्यमंत्री और शिक्षा मंत्री दिनेश शर्मा ने हमारी संवाददाता कृतिका शर्मा से फोन पर हुई बातचीत में कहा कि ‘उन्हें कवियों के नाम बदले जाने की जानकारी नहीं है..’ उन्होंने आगे कहा कि ‘किसी का नाम नहीं बदला जा सकता है.’
‘वैसे भी यूपी हाइयर एजूकेशन सर्विस कमीशन एक इंडीपेंडेट बॉडी (स्वतंत्र संस्था) है.’
इतिहास की बदल दी पहचान
UP हाइयर एजुकेशन सर्विस कमीशन ने अपनी ऑफिशियल वेबसाइट uphesc.org के ‘ अबाउट अस’ कॉलम के अबाउट इलाहाबाद सब कॉलम पर प्रयागराज के इतिहास और संस्कृति की जानकारी दी गई है. कुंभ और उत्तर प्रदेश हाई कोर्ट वाले इस शहर के बारे में लिखने वाले ने चंद शब्दों में इलाहाबाद को चंद शब्दों में खूब संजोया है. जिसमें यहां के टूरीज्म, देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू से लेकर हिंदी साहित्य के बड़े बड़े लेखकों का जिक्र किया गया है. यहीं पर उर्दू और परिसयन साहित्यकारों के बारे में भी जिक्र किया गया है.
इसी कॉलम में उर्दू के तीन बड़े और आधुनिक कवियों के नाम का जिक्र किया गया है. जिसमें अकबर इलाहाबादी, तेग इलाहाबादी और राशिद इलाहाबादी के नाम शामिल हैं.
बता दें कि अकबर इलाहाबादी शायरी की दुनिया में बड़ा नाम तो थे ही बल्कि इलाहाबाद में सेशन जज भी थे. उनका वास्तविक नाम सैय्यद अकबर हुसैन रिज़वी था. 16 नवंबर 1846 में तहसीलदार परिवार में जन्में. सरकार ने अकबर को खान बहादुर का खिताब भी दिया गया था.
हंगामा है क्यूँ बरपा थोड़ी सी जो पी ली है , कोई हंस रहा है कोई रो रहा है, दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं जैसी कालजयी रचनाएं लिखने वाले अकबर इलाहाबादी आज भी लोगों के जेहन में जिंदा हैं.
तेग इलाहाबादी जो पाकिस्तान के कराची से इलाहाबाद पढ़ने आए थे वो यहीं के हो गए और उन्होंने अपने नाम के आगे तेग इलाहाबादी कर लिया था. तेग का असली नाम मुस्तफा जैदी था. देश विभाजन के बाद पाकिस्तान वापस चले गए लेकिन उनके दिलों दिमाग में इलाहाबाद इतना बसा था कि वह वहां रह कर भी इलाहाबाद को भुला नहीं पाए और उन्होंने अपने नाम के आगे तेग इलाहादी जोड़ दिया.
वहीं राशिद इलाहाबादी जो यूपी हायर एजूकेशन सर्विस कमीशन की साइट पर अब राशिद प्रयागराज हैं. उनका जन्म भी इलाहाबाद में ही हुआ था.
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