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Sunday, 22 December, 2024
होमएजुकेशनसरकार का सुझाव- क्लास 2 तक कोई होमवर्क नहीं, स्कूल बैग शरीर के वज़न के 10% से अधिक भारी न हों

सरकार का सुझाव- क्लास 2 तक कोई होमवर्क नहीं, स्कूल बैग शरीर के वज़न के 10% से अधिक भारी न हों

शिक्षा मंत्रालय की नई स्कूल बैग पॉलिसी, जो NCERT द्वारा किए गए कई सर्वेक्षणों और स्टडीज़ पर आधारित है, पिछले महीने राज्य सरकारों के साथ साझा की गई.

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नई दिल्ली: शिक्षा मंत्रालय की ओर से जारी, नई स्कूल बैग नीति 2020 के अनुसार, दूसरी क्लास के बच्चों को होमवर्क नहीं दिया जाना चाहिए, और उन्हें 2 किलो से ज़्यादा भारी बैग लेकर नहीं चलना चाहिए.

पॉलिसी का दस्तावेज़, जिसकी प्रतिलिपि दिप्रिंट के हाथ लगी है, नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) की तरह ही है, जो जुलाई में जारी की गई थी. इसमें पहली से 12वीं क्लास तक के लिए, होमवर्क और स्कूली बस्तों को लेकर दिशा-निर्देश दिए गए हैं.

इसे 24 नवंबर को तमाम राज्य सरकारों के साथ साझा किया गया, और साथ ही एक सर्कुलर जारी करके, उन्हें इसे लागू करने को कहा गया.

सर्कुलर में कहा गया, ‘अनुरोध किया जाता है कि कृपया, स्कूल बैग पॉलिसी और एनईपी 2020 के प्रासंगिक सुझावों को अपनाएं, और अपने क्षेत्र में उनका कार्यान्वयन सुनिश्चित करें. इस बारे में अनुपालन रिपोर्ट इस विभाग (मंत्रालय) के साथ साझा की जा सकती है’.


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स्कूल प्रमुख सुनिश्चित करें कि पाठ्यपुस्तकों का वज़न बराबर वितरित हो

पॉलिसी डॉक्युमेंट में कहा गया है कि पॉलिसी, राष्ट्रीय शैक्षिक अनुसन्धान और प्रशिक्षण परिषद द्वारा किए गए, कई सर्वेक्षणों और स्टडीज़ पर आधारित है.

इसमें स्कूल बैग और शरीर के वज़न के बीच, 10 प्रतिशत के अनुपात की एक कक्षावार रेंज सुझाई गई है. मसलन, पहली और दूसरी क्लास के बच्चे के बस्ते का वज़न, 1.6 से 2.2 किलोग्राम के बीच होना चाहिए, चूंकि उस उम्र में बच्चे के शरीर का औसत वज़न, 16-22 किलोग्राम होता है.

इसी तरह, 11वीं और 12वीं क्लास के छात्र 3.5 से 5 किलो तक का बैग कैरी कर सकते हैं, चूंकि उस उम्र में बच्चों का वज़न, 35 से 50 किलोग्राम के बीच होता है.

पॉलिसी डॉक्युमेंट में कहा गया, ‘शिक्षा सत्र की शुरूआत में, एक बार किसी क्लास का सब्जेक्ट टाइम टेबल तय हो जाए, तो फिर स्कूल प्रमुख को सुनिश्चित करना होगा, कि पहली से 12वीं क्लास के छात्रों के लिए, हर रोज़ पाठ्यपुस्तकों का वज़न, उचित तरीक़े से वितरित किया जाए’.

नौवीं से 12वीं कक्षाओं के लिए हर रोज़ 2 घंटे का होमवर्क

नीति में अलग अलग स्तर पर छात्रों के लिए, होमवर्क के बारे में भी विस्तार से चर्चा की गई है, और कहा गया है कि शुरू में दूसरी क्लास तक कोई होमवर्क नहीं होगा, और नौवीं से 12वीं क्लास के बीच, छात्रों का होमवर्क 2 घंटे का होना चाहिए.

डॉक्युमेंट में सुझाया गया है, ‘पहली और दूसरी क्लास के बच्चे, होमवर्क के लिए ज़्यादा घंटों तक नहीं बैठ सकते, इसलिए उन्हें किसी तरह का होमवर्क देने की ज़रूरत नहीं है. इसकी बजाय उन्हें क्लास में बोलने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए, कि उन्होंने घर पर अपनी शाम कैसे बिताई, क्या खेल खेला, क्या खाना खाया, वग़ैरह वग़ैरह’.

तीसरी, चौथी, और पांचवीं क्लास के बच्चों को, प्रति सप्ताह ज़्यादा से ज़्यादा दो घंटे का होमवर्क दिया जाना चाहिए. इसमें सुझाया गया है कि होमवर्क के तौर पर टीचर को, ‘बच्चों से शाम का रूटीन पूछना चाहिए, पिछली रात उन्होंने क्या डिनर किया- खाने के आइटम क्या थे, उनमें क्या डाला गया है, अलग अलग तरह के खानों की उनकी पसंद नापसंद, उनके घर में कौन क्या करता है’.

छठी से आठवीं क्लास तक के लिए, एक दिन में ज़्यादा से ज़्यादा, एक घंटे का होमवर्क होना चाहिए.

डॉक्युमेंट में सुझाया गया, ‘इस स्टेज पर, बच्चों में थोड़ा ज़्यादा देर तक ध्यान लगाकर बैठने की आदत पैदा हो जाती है, इसलिए उन्हें ऐसे होमवर्क दिए जा सकते हैं, जैसे किसी समकालीन मुद्दे पर कोई कहानी, निबंध या लेख लिखना; अपने इलाक़े की समस्याओं पर लेख लिखना; और अन्य चीज़ों के अलावा बिजली और पेट्रोल बचाने के उपाय वग़ैरह’.

डॉक्युमेंट में ये भी सुझाया गया, कि जूनियर कक्षाओं के लिए टीचर्स को, छात्रों की व्यक्तिगत रूचि को ध्यान में रखते हुए, ‘दिलचस्प होमवर्क’ तैयार करना चाहिए.

सेकंडरी और हायर सेकंडरी स्टेज पर, दिन भर के लिए अधिकतम दो घंटे के होमवर्क की सिफारिश की गई है.

डॉक्युमेंट में कहा गया, ‘छात्र इस समय का उपयोग प्रोजेक्ट वर्क में कर सकते हैं. टीचर्स इनमें लगने वाले समय का हिसाब लगाकर, अंतःविषय प्रोजेक्ट्स तैयार कर सकते हैं, जो छात्रों को दिए जा सकते हैं.

उसमें आगे कहा गया, ‘एक ज़रूरत ये भी है कि बच्चों को दिए गए, होमवर्क के समय और प्रकार पर नज़र रखी जाए, और ये भी देखा जाए, ख़ासकर छठी क्लास से आगे, कि क्या वो अलग अलग विषयों के पाठ्यक्रम, तथा पाठ्यपुस्तकों में दी गई अवधारणाओं को समझ पा रहे हैं’.

सर्कुलर में भी स्कूलों से कहा गया है, कि बच्चों को मिट्टी के बर्तन बनाने, और बाग़वानी जैसी व्यावसायिक गतिविधियों में लगाना चाहिए.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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