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Friday, 15 November, 2024
होमएजुकेशन‘इफ्तार में हिंदू, होली में मुसलमान’: पूर्व और मौजूदा छात्रों ने कहा- धार्मिक उत्सव JNU संस्कृति का हिस्सा

‘इफ्तार में हिंदू, होली में मुसलमान’: पूर्व और मौजूदा छात्रों ने कहा- धार्मिक उत्सव JNU संस्कृति का हिस्सा

वर्तमान और पूर्व छात्रों का कहना है कि सेक्यूलर कैम्पस में धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों को लेकर कभी टकराव नहीं हुए थे, और रविवार की हिंसा ऐसी पहली घटना है.

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नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी (जेएनयू) बीते सालों में बहुत से सियासी विवादों के केंद्र में रही है- चाहे वो 2016 में वामपंथी छात्रों का तीन साल पहले कश्मीरी अलगाववादी अफज़ल गुरू की फांसी के खिलाफ प्रदर्शन हो, या फिर रविवार की हिंसा के बाद ताज़ा तनाव हो, जो कथित तौर पर राम नवमी के अवसर पर एक हॉस्टल मेस में मांसाहारी भोजन परोसे जाने पर हुआ.

लेकिन, दिप्रिंट से बात करने वाले वर्तमान और पूर्व छात्रों ने कहा, कि कैम्पस में धार्मिक अनुष्ठानों और उत्सवों को लेकर कभी कोई टकराव नहीं हुए थे और रविवार की हिंसा ऐसी पहली घटना है.

संस्थान के कई जाने-माने पूर्व छात्रों ने कहा, कि पूजा और धार्मिक उत्सव हमेशा से जेएनयू संस्कृति का एक समृद्ध हिस्सा रहे हैं. उन्होंने आगे कहा कि हिंदू उत्सव ही नहीं, बल्कि परिसर में सभी धर्मों के त्यौहार मनाए गए हैं.

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) की छात्र विंग अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी), और भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) लिबरेशन (सीपीआईएमएल) से संबद्ध ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन (एआईएसए) के सदस्यों ने दावा किया, कि जोएनयू एक ‘सेक्युलर परिसर’ रही है.

फिर भी, एबीवीपी और वामपंथी छात्र रामनवमी के दिन रविवार शाम यूनिवर्सिटी के कावेरी हॉस्टल में एक दूसरे से टकरा गए. जहां वाम संगठनों ने दावा किया कि एबीवीपी से जुड़े क़रीब 30-40 छात्रों और कार्यकर्त्ताओं के एक समूह ने, एक हंगामा खड़ा कर दिया और चिकन पकाने को लेकर शारीरिक रूप से छात्रों पर हमला किया, वहीं एबीवीपी ने आरोप लगाया कि उसके सदस्यों ने परिसर में एक पूजा का आयोजन किया था, जिसे वाम-पंथी छात्रों ने आकर बाधित किया.

एबीवीपी नेशनल मीडिया कनवीनर सिद्धार्थ यादव ने दावा किया है, कि वाम संगठन ‘ये बर्दाश्त नहीं कर सके कि इतने सारे छात्र जेएनयू में एक पूजा में शरीक होने आए थे’. इस बीच एआईएसए और अन्य वाम समूहों ने आरोप लगाया, कि असली मुद्दा भोजन के चुनाव को लेकर था. दिल्ली पुलिस ने उसके बाद दोनों समूहों की शिकायत के आधार पर, क्रॉस एफआईआर्स दर्ज कर ली हैं.

जेएनयू प्रशासन के सदस्यों ने कहा कि हालांकि पूजा या किसी धार्मिक सभा के लिए, डीन स्टूडेंट्स वेल्फेयर और हॉस्टल वॉर्डन की अनुमति की होती है, लेकिन अगर छात्रों की योजना में कोई हवन (ऐसा अनुष्ठान जिसमें आग जलाई जाती है) भी शामिल होता है, तो उसके लिए रजिस्ट्रार से अनुमति लेनी होती है, क्योंकि उससे आग लगने का ख़तरा रहता है.

दिप्रिंट द्वारा संपर्क किए जाने पर,कावेरी हॉस्टल के वॉर्डन- जहां रविवार को हिंसा हुई- गोपाल राम ने कहा, ‘परिसर के अंदर पूजा के लिए एक स्थल निर्धारित है. चूंकि ऐसे आयोजनों में खुली आग होती है, इसलिए उनसे हॉस्टल को आग का ख़तरा पैदा हो सकता है. रविवार को जो पूजा हुई, वो मेरी औपचारिक अनुमति के बिना आयोजित की गई’.


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‘सांस्कृतिक टकराव परिसर में भी दिखते हैं’

पत्रकार और लेखक विकास पाठक ने, जिन्होंने जेएनयू से आधुनिक इतिहास में पीएचडी की है और यूनिवर्सिटी के अपने समय में एबीवीपी से जुड़े रहे थे, दिप्रिंट को बताया कि 20 साल पहले उन्होंने और उनकी टीम ने, परिसर में दुर्गा पूजा मनाने का प्रचलन शुरू किया था.

पाठक ने कहा, ‘हालांकि उससे कुछ तनाव हुआ था, लेकिन उसे सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझा लिया गया था, और दुर्गा पूजा समारोह अब परिसर में हर साल मनाया जाता है’.

उन्होंने आगे कहा, ‘सभी धर्मों के समारोह हमेशा से जेएनयू का हिस्सा रहे हैं. मुझे याद है कि जेएनयू में होली का जश्न बहुत सुव्यवस्थित होता था और लोग उसका इंतज़ार करते थे. हम दीवाली भी मनाते थे और बंगाली तथा उड़िया छात्रों द्वारा आयोजित सरस्वती पूजा में भी शरीक होते थे. इफ्तार पार्टियां भी जारी रही हैं’.

रविवार की घटना के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा, ‘असल में होता ये है कि राष्ट्रीय स्तर पर जो तमाम सांस्कृतिक टकराव चल रहे होते हैं, वही सब जेएनयू कैम्पस में भी नज़र आते हैं’.

उन्हीं के विचारों से सहमति जताते हुए, एक सीपीआईएमएल नेता और जवाहरलाल नेहरू छात्र संगठन (जेएनयूएसयू) की पूर्व संयुक्त सचिव कविता कृष्णन ने दिप्रिंट से कहा, ‘भारत के किसी भी दूसरे हिस्से की तरह, कैंपस निवासी जिनमें छात्र भी शामिल होते हैं, अपने अपने धर्मों के त्यौहार मनाते हैं. हिंदू लोग इफ्तार, ईद,और क्रिसमस सभाओं में जाते हैं, हर कोई होली खेलता है, और मुसलमान भी सरस्वती और दुर्गा पूजा पण्डालों में मिठाइयां खाते हैं. लेकिन अब जो हम देख रहे हैं- जिसमें उत्सवों को बहाना बनाकर हिंसा फैलाई जा रही है- वो एक ऐसी चीज़ है जो पहले कभी नहीं हुई है’.

जेएनयू में अर्थशास्त्र के प्रोफेसर और जेएनयूएसयू के दो बार के अध्यक्ष रोहित आज़ाद ने कहा, कि कैम्पस में उत्सवों के मनाने के पीछे सर्व धर्म संभाव (सभी धर्म एक ही लक्ष्य पर ले जाते हैं) का सिद्धांत काम करता है. उन्होंने आगे कहा, ‘हर क्षेत्रीय उत्सव हमेशा से सामूहिक रूप से उत्साह के साथ मनाया गया है, भले ही वो सबसे अधिक राजनीतिक रूप से लड़े जा रहे छात्र संघ चुनावों के दौरान हो. समारोह राजनीति से आगे बढ़ जाते हैं’.

दिप्रिंट से बात करने वाले वर्तमान छात्रों ने भी कहा, कि इन आयोजनों में बहुत सारे छात्र शरीक होते हैं. एबीवीपी के एक छात्र सदस्य रवि राज ने कहा, ‘हिंदू त्यौहारों के दौरान हमें कैम्पस में पूजा कराते हुए क़रीब पांच साल हो गए हैं. महाशिवरात्रि से लेकर राम नवमी तक, हमें हमेशा अनुमति मिल जाती है, और बहुत सारे छात्र इन आयोजनों में हिस्सा लेते हैं’.

एक और छात्र ने, जो एआईएसए से जुड़ा है, नाम न बताने की इच्छा के साथ कहा, ‘पहली बात तो ये कि हमें पूजा से कभी कोई समस्या नहीं थी. उन्होंने अपनी पूजा का आयोजन किया और हमारी किसी दख़लअंदाज़ी के बिना उसे पूरा कर लिया. छात्रों के तौर पर हम हमेशा एक साथ त्यौहार मनाने का इंतज़ार करते हैं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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