नई दिल्ली: 40 छात्रों का एक बैच जज बनने के लिए, नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी (एनएलयू) नागपुर में एक विशेष ट्रेनिंग ले रहा है, जो अपनी तरह का पहला कोर्स है.
‘न्यायिक निर्णय और इंसाफ’ में ऑनर्स प्रोग्राम का पांच साल का कोर्स, पिछले साल अक्तूबर में शुरू हुआ था, जिसका मक़सद गहन और विस्तृत ट्रेनिंग प्रदान करना है, ताकि ज़िला अदालतों में प्रवेश स्तर के जजों के पद के लिए, छात्रों में विवेचनात्मक क़ानूनी सोच विकसित हो सके.
ज़िला न्यायपालिका में जजों का चयन, परीक्षाओं के ज़रिए किया जाता है, जिन्हें राज्य सरकारें या उच्च न्यायालय संचालित कराते हैं, और अधीनस्थ न्यायालयों पर प्रशानिक नियंत्रण- तबादलों को छोड़कर-राज्य सरकारों का होता है.
फिलहाल भारत में लॉ ग्रेजुएट्स, अपनी स्नातक पढ़ाई पूरी करने के बाद, क़ानूनी प्रेक्टिस के अनुभव के बिना ही, सिविल जज और न्यायिक मजिस्ट्रेट के पद के लिए आवेदन कर सकते हैं.
लेकिन, अंडरग्रेजुएट लॉ डिग्री एलएलबी के विपरीत, ये कोर्स छात्रों को जज बनने की, ट्रेनिंग देने के लिए तैयार किया गया है, जिसमें दस सेमेस्टर्स के दौरान, उन्हें आदेश और फैसले लिखने की ट्रेनिंग दी जाएगी, और प्रभावी कोर्ट प्रशासन सिखाया जाएगा. इसके अलावा, अगर कोई छात्र जज नहीं बन पाता, तो उसके पास किसी भी दूसरे लॉ स्नातक की तरह, क़ानूनी प्रेक्टिस करने का विकल्प खुला रहता है.
इस कोर्स में नियमित इंटर्नशिप प्रोग्राम्स भी होते हैं, जो न्यायपालिका से जुड़ी एजेंसियों और संस्थानों के साथ होते हैं, जैसे पुलिस एजेंसियां, क़ानूनी सहायता सेवाएं, मानवाधिकार संस्थाएं, न्यायिक क्लर्कशिप, और हाईकोर्ट तथा ज़िला जजों के संरक्षण में, छह-महीने की शागिर्दी भी होती है.
दिप्रिंट से बात करते हुए, बॉम्बे हाईकोर्ट के पूर्व जज और यूनिवर्सिटी कार्यकारी परिषद के सदस्य, जस्टिस आरएस चौहान ने कहा, कि कोर्स इस तरह से तैयार किया गया है, कि सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाएं आकर्षित हों, और निचली अदालतों में न्याय वितरण प्रणाली में सुधार आए.
जस्टिस चौहान ने कहा, ‘किसी भी नागरिक के लिए निचली अदालतें, न्यायिक पदानुक्रम में पहला संपर्क होती हैं, और फैसला सुनाने की ख़राब गुणवत्ता चिंता का एक विषय है. इसके अलावा, प्रतिभा की कमी की वजह से, बहुत से राज्यों को अधीनस्थ न्यायपालिका में रिक्तियां भरने में, मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. इस कोर्स को पास करने वाले छात्रों में, वो योग्यता, कौशल, और विशेषताएं होती हैं, जिनकी जज को ज़रूरत होती है’.
यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर विजेंदर कुमार ने कहा, कि ये दुनिया भर में अपनी तरह का पहला कोर्स है.
उन्होंने कहा, ‘कुछ देशों में न्यायपालिका में मास्टर डिग्री कोर्स होते हैं. लेकिन ये पहला अंडरग्रेजुएट कोर्स है’. दाख़िला प्रक्रिया से लेकर कोर्स के ढांचे तक, इस प्रोग्राम में एक अनोखे पैटर्न का पालन किया जाता है, और ये क़ानून के नियमित पाठ्यक्रमों से अलग है.
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कठिन दाख़िला प्रक्रिया, न्याय और न्यायिक नैतिकता पर पर्चे
कोर्स को बार काउंसिल ऑफ इंडिया (बीसीआई) द्वारा निर्धारित नियमों के हिसाब से तय किया गया है, जो देश में क़ानूनी शिक्षा और पेशे की, शीर्ष नियामक संस्था है.
क़ानून पढ़ने की इच्छा रखने वाले जो छात्र, प्रवेश परीक्षा कॉमन लॉ एडमिशन टेस्ट (क्लैट) को पास करते हैं, वो इस कोर्स में शामिल होने के पात्र होते हैं.
दाख़िला प्रक्रिया में तीन चरणों की, एक कठिन चयन प्रणाली होती है, जिसमें एक साइकोमेट्रिक टेस्ट, ग्रुप चर्चा, और निजी इंटरव्यू होता है.
चयन प्रक्रिया का उद्देश्य ये पता लगाना था, कि क्या उम्मीदवार में कुछ ख़ास विशेषताएं हैं, जैसे अभिव्यक्ति और स्पष्ट उच्चारण, न्याय की भावना, निर्णय लेने की क्षमता, धैर्य, अन्य चीज़ों के अलावा, पूर्वाग्रह से ऊपर उठने की सलाहियत आदि, जो न्यायिक पद पर बैठने के लिए, आवश्यक मानी जाती हैं.
पहले बैच के दाख़िले बॉम्बे हाईकोर्ट के मार्गदर्शन, और एक कमेटी की निगरानी में किए गए थे, जिनमें हाईकोर्ट के जज शामिल थे. कोर्स में शामिल होने वाले छात्रों में, 50 प्रतिशत से अधिक लड़कियां हैं.
जस्टिस चौहान ने समझाया कि कोर्स का ढांचा, इस तरह तैयार किया गया है, कि छात्रों को एक समग्र प्रशिक्षण दिया जा सके. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘मिसाल के तौर पर, पहले वर्ष में उहोंने ऐसी गतिविधियां कीं, जिनका मक़सद व्यक्तित्व के उन पहलुओं की पहचान करना था, जिनमें अधिकारी को विशेष प्रयास की ज़रूरत होती है, जैसे संचार कौशल, सामाजिक-सांस्कृतिक पूर्वाग्रह आदि’.
चौहान ने कहा, ‘छात्रों में तर्क कौशल को बढ़ाने के लिए, न्याय की परिकल्पना, न्याय के सिद्धांत, अपराध विज्ञान, आहत शास्त्र, और सज़ा के सिद्धांत जैसे विषयों के परचे शुरू किए गए हैं, जिससे कि वो सुबूतों को समझ सकें, और अंतिम फैसला लिखने के उद्देश्य से, उनका विश्लेषण कर सकें’.
छात्रों को न्यायिक नैतिकता, पेशेवर संबंधों, कोर्ट प्रबंधन और केस प्रबंधन, मानसिक स्वास्थ्य और तनाव प्रबंधन, और दीवानी तथा आपराधिक न्याय प्रशासन पर भी पर्चे लिखने होंगे.
वी-सी कुमार ने कहा कि वैसे तो कोई भी फ्रेश लॉ ग्रेजुएट, आधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल होने के लिए, परीक्षा में बैठने का पात्र होता है. लेकिन, जिन छात्रों ने न्यायपालिका पर ज़्यादा फोकस करने वाला ये कोर्स पढ़ा है, उन्हें उन छात्रों पर बढ़त हासिल होगी, जो क़ानून का एक नियमित कोर्स पढ़ते हैं.
बीसीआई सदस्य और सह-अध्यक्ष वेद शर्मा ने, छात्रों को प्रशिक्षित करने के, एनएलयू नागपुर के इस अग्रणी प्रयास की सराहना की, जिससे वो छात्र न्यायिक प्रणाली के लिए, एक संपत्ति साबित हो सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘आमतौर पर, जो वकील राज्य न्यायिक परीक्षा पास कर लेते हैं, उन्हें सेवा में शामिल होने से पहले, राज्य न्यायिक अकादमियों में, एक वर्ष के कठिन प्रशिक्षण से गुज़रना पड़ता है. लेकिन स्नातक स्तर पर ही ये विशिष्ट प्रशिक्षण, निश्चित रूप से एक बेहतर भविष्य के लिए, संस्थान के काम आएगा’.
शर्मा ने उम्मीद जताई कि दूसरे एनएलयूज़ भी, इसी तरह के कोर्सेज़ की पहल करेंगे, ताकि अधीनस्थ न्यायपालिका की प्रवेश परीक्षाओं में, सबके लिए समान स्थितियां सुनिश्चित की जा सकें.
सुप्रीम कोर्ट के जज जस्टिस बीआर गवई, जो एनएलयू नागपुर के चांसलर भी है, नए कोर्स के कार्यान्वयन की निजी रूप से निगरानी कर रहे हैं.
पूर्व CJI बोबड़े ने प्रवेश-स्तर पर जजों के लिए न्यायिक आकादमी का समर्थन किया
प्रवेश-स्तर पर जजों के तौर पर, आधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल होने के इच्छुक उम्मीदवारों के लिए, एक स्पेशल कोर्स शुरू करने का विचार, सबसे पहले भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) एसए बोबड़े ने, 2019 में कार्यभार संभालने के, कुछ ही समय बाद पेश किया था.
जस्टिस बोबड़े ने उस समय सरकार से, सशस्त्र बलों की राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (एनडीए) की तर्ज़ पर, एक अकादमी स्थापित करने की सम्भाव्यता पर, विचार करने का आग्रह किया था, जहां छात्र क़ानून की पढ़ाई कर सकते हैं, और फिर पास होने पर प्रवेश-स्तर के जजों के तौर पर, आधीनस्थ न्यायपालिका में शामिल हो सकते हैं.
सुप्रीम कोर्ट के सूत्रों ने दिप्रिंट से कहा, कि बोबड़े ने एक कमेटी भी गठित की थी, जिसने छात्रों को जज बनने की ट्रेनिंग देने के लिए, एक विशिष्ट अकादमी बनाए जाने का समर्थन किया था. लेकिन, केंद्र सरकार ने कथित रूप से, अलग से अकादमी बनाने का प्रस्ताव ख़ारिज कर दिया.
जस्टिस बोबड़े और गवई दोनों नागपुर से हैं, और उन्होंने अपनी क़ानूनी प्रेक्टिस, बॉम्बे हाईकोर्ट की नागपुर बेंच से शुरू की थी.
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